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सोमवार, 29 मार्च 2021

श्रीमद्भागवत् गीता के नाम पर चल रहे मिथ्या प्रचार का निराकरण...

 



क्या आप जानते हैं गीता में यह लिखा है, वह लिखा है, ऐसे जितने भी लेख आपको देखने को मिलते हैं उनमें से 99% वाक्य गीता में लिखे ही नहीं होते।

 कृपया हिन्दू समाज अपने ग्रंथों को बिना पढ़े कुछ भी शेयर करने की प्रवृत्ति को त्यागे और साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि उन्हें जब भी ऐसी कोई पोस्ट दिखाई दे तो वह उस व्यक्ति से उस पोस्ट का स्रोत अवश्य पूछें कि यदि गीता में यह लिखा है तो वह कौन से अध्याय के कौन से नम्बर श्लोक में लिखा है।


धर्म का आलम्बन लेकर अपना जीवन यापन करने वाले निष्ठावान साधक, श्रीमद्भागवत् गीता ही नहीं अपने अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करके स्वयं भी जाग्रत हों और दूसरों को भी जाग्रत करें, जिससे धर्म की रक्षा की जा सके, क्योंकि...

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्

अर्थात-

मरा हुआ धर्म,मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म, रक्षक की रक्षा करता है,इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।

 "शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 27 मार्च 2021

फिल्मी कलाकारों का भगवान के रूप में पूजन : उचित अथवा अनुचित ?

 


प्रायः देखने मे यह आ रहा है कि सामान्य जनमानस उन फिल्मी कलाकारों को ही अपने इष्ट देव के रूप में ध्यान करके पूजने लगता है जो फिल्मों अथवा टीवी सीरियलों में देवी-देवताओं का रोल करते हैं । सनातनियों में यह एक ऐसी बुराई है जिस ओर कोई धर्म गुरु ध्यान नहीं दे रहा है।

 

ये सभी कलाकार यदि मांसाहारी न भी हों तो भी अधिकांशतः उन होटलों में भोजन ग्रहण अवश्य करते हैं जिनमें मांस पकाया जाता है तथा जहां शुद्धि-अशुद्धि का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। यही नहीं, शराब पीना तो इन कलाकारों की दिनचर्या का अभिन्न अंग होता है, जिसके बिना तो इनकी कोई भी पार्टी अधूरी होती है ।


अधिकांशतः इन कलाकारों का जीवन फिल्मों के अश्लील वातावरण में ही व्यतीत होने से इनमें नकारात्मक ऊर्जा की मात्रा सामान्य मनुष्यों से भी कई गुना अधिक होती है।

 

आकर्षण का सिद्धांत यह कहता है कि आप जिस चीज का भी ध्यान करते हो वह आपसे आकर्षित होकर आपके पास आने लगती है, ऐसे में यदि जो मनुष्य इन फिल्मी कलाकारों को अपने इष्ट के रूप में ध्यान करता है तो उन मनुष्यों में ईश्वरीय गुणों के स्थान पर इन फिल्मी कलाकारों की नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर जाती है और मनुष्य अपना पतन स्वयं ही कर बैठता है ।


यदि हम यह भी मान लेते हैं कि कोई टीवी कलाकार किसी धार्मिक सीरियल अथवा फिल्म को करने के पश्चात सात्विक आचरण करके अपनी दिनचर्या व्यतीत कर रहा है तब भी वह भगवान के समान ऊर्जा वाला तो नहीं हो सकता न। ऐसे में उस टीवी कलाकार का ध्यान करने में साधक की आध्यात्मिक ऊर्जा दिशाहीन ही कही जाएगी क्योंकि उसे उसी निम्न स्तर की ऊर्जा की ही प्राप्ति होगी जिसका वह ध्यान कर रहा है।

 

अतः सनातनियो में व्याप्त इस भयानक रोग को अब नष्ट करने का समय आ गया है, अन्यथा इन फिल्मी कलाकारों को ईश्वर के रूप में पूजने से मोक्ष मिलना तो दूर उल्टा आपका विनाश ही होगा ।

''शिवार्पणमस्तु"


-Astrologer Manu Bhargava