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बुधवार, 27 सितंबर 2023

मंगल-केतु युति २०२३



३ अक्टूबर २०२३ को मंगल द्वारा चित्रा नक्षत्र के तृतीय चरण में प्रवेश के साथ ही 'तुला राशि' में मंगल–केतु का योग बनने जा रहा है जो कि लगभग २८ दिनों का होगा । इस अवधिकाल में विश्वभर में अनेक अमंगलकारी घटनाएं घटित होंगी ।

मंगल ग्रहों का सेनापति होता है, जब भी यह गोचर में पापी ग्रहों की युति अथवा दृष्टि से पीड़ित होता है तो विश्वभर में सेना तथा सेनापतियों को हानि उठानी पड़ती है ।

इधर १७–१८ अक्टूबर की मध्य रात्रि को ग्रहों के राजा सूर्य भी अपनी नीच राशि 'तुला' में संचार करने लगेंगे और वह वहां पहले से ही स्थित केतु की युति तथा राहु की दृष्टि में आ जाएंगे अर्थात् ग्रहों का सेनापति और राजा दोनों ही पाप प्रभाव में आकर पीड़ित होने से शासन तंत्रों के विरुद्ध अराजक तत्वों का उदय होगा, जिसके कारण विश्व भर में अशांति व्याप्त होगी और शासकों तथा सेना के लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण रहेगा ।

भारत के संदर्भ में यह समय और भी चुनौतीपूर्ण इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यहां पहले से ही अनेक अराजक और देशद्रोही तत्वों का जमावड़ा बना रहता है जो निरन्तर विदेशी पैशाचिक शक्तियों के सहयोग से सनातन धर्म को हानि पहुंचाने की चेष्टा करते रहते हैं तथा पिछले ९ वर्षों में राष्ट्रवादी सरकार द्वारा खाद-पानी न दिए जाने के कारण अपने बिलों से बाहर निकलने के लिए कुलबुला रहे हैं अतः २८ दिन के इस अवधिकाल में हमारी सेना, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिस प्रशासन से जुड़े लोगों को विशेष सावधानी रखनी चाहिए, जिससे कोई भी अराजक तत्व भारत में किसी भी प्रकार का उपद्रव न मचा सके ।

विद्वान मनुष्यों को २८ दिन के इस अवधिकाल में अपनी कोई शल्य चिकित्सा (Operation) करवाने, छोटे वाहनों से लंबी दूरी की यात्रा करने अथवा अपने बच्चे का जन्म (Delivery) करवाने से 'यथासंभव' बचना चाहिए ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों को गोचर में २८ दिनों के लिए बनने वाली इस मंगल-केतु युति से निम्नलिखित फल प्राप्त हो सकते हैं ।

मेष राशि- मेष लग्न
आपकी जन्म कुंडली के सप्तम भाव में बनने जा रहे इस योग से आपके वैवाहिक जीवन में कोई नई समस्या उत्पन्न हो सकती है अतः विवाद की स्थिति से बचें, व्यापार से जुड़े हुए जातक अपने व्यापार तथा पार्टनरशिप में सावधानी रखें । सिर की चोट से बचें ।

वृष राशि-वृष लग्न
२८ दिन के इस अवधिकाल में यथासंभव लंबी दूरी की यात्रा करने से बचें । गुप्त शत्रुओं से आपको सावधान रहने की आवश्यकता है । अपने जीवन साथी के साथ इन २८ दिनों में कोई यात्रा न करें तथा उनके स्वास्थ्य का ध्यान 
रखें ।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
आपको अपनी संतानों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए,पेट तथा हृदय रोगी अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें तथा इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं इन २८ दिनों में विशेष सावधानी रखें । अपने बड़े भाई-बहनों को अनावश्यक यात्रा (विशेषकर उत्तर-पश्चिम दिशा की) न करने दें ।

कर्क राशि- कर्क लग्न
आपकी जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में मंगल-केतु का योग आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए विपरीत फल देने वाला हो सकता है l यदि आप कोई नया भवन, भूमि, वाहन लेने जा रहे हैं तो आपको इन २८ दिनों के व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए । आपके सेवकों को कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपको तथा आपकी संतान को वाहन चलाते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्कता है, आपकी संतान इस अवधिकाल में उत्तर दिशा की यात्रा भूलकर भी न करें ।

सिंह राशि- सिंह लग्न
छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंधों में मधुरता रहे इसका ध्यान रखें । कान और गले के रोगी  इस समय अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें । यह समय पराक्रम दिखाने का नहीं है अतः व्यर्थ के विवाद टाल दें । आपके माता-पिता को इस समय लंबी दूरी की यात्रा (विशेषकर उत्तर-पूर्व दिशा की) नहीं करनी चाहिए ।

कन्या राशि-कन्या लग्न
इन २८ दिनों में अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा अपनी वाणी के कारण विवाद में पड़ जाएंगे । अपने कुटुंब में  क्लेश की स्थिति उत्पन्न न होने दें ।  यदि आपके दांतों का कोई उपचार चल रहा है तो सावधानी से उपचार करवाएं । इन २८ दिनों में अनावश्यक लेन-देन से बचें अन्यथा कोई धन हानि हो सकती है । अपने दक्षिण नेत्र को 
शुद्ध जल से धोते रहें ।

तुला राशि-तुला लग्न
मंगल-केतु का यह योग आपके सिर के स्थान पर बनने से व्यर्थ की चिंताएं आपको घेर सकती हैं, यथासंभव आपको सिर की चोट आदि से बचना चाहिए । क्रोध में अपना आवेश न खोएं, जीवन साथी से विवाद की स्थिति को इन २८ दिनों के लिए टाल दें ।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
चिकित्सालय अथवा न्यायालय में आपका धन का व्यय न हो इसके लिए मंगल-केतु के मंत्रों का जाप करें, आपकी दादी के लिए ये समय कष्टकारी है । व्यर्थ के विवाद को अधिक न बढ़ाएं अन्यथा न्यायालय द्वारा दंडित किए जा सकते हैं । अपने वाम नेत्र को शुद्ध जल से धोते रहें । पैरों के नाखूनों को अच्छे से काट कर रखें अन्यथा उसमें चोट लगने की संभावना है।

धनु राशि-धनु लग्न
बड़े भाई-बहनों का स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंध मधुर बने रहें इसका ध्यान रखें । हृदय तथा पेट के रोगी अपने चिकित्सकों से परामर्श करते रहें तथा संतान के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें । इन २८ दिनों में अपने छोटे बच्चों को वाहन आदि देने से आपको बचना चाहिए ।

मकर राशि-मकर लग्न
इस राशि-लग्न वाले जो जातक शासन तंत्र के आधीन कार्यरत हैं उन्हें विशेष सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा किसी विवाद में पड़ने से मानसिक चिंताएं बढ़ सकती हैं ।जो लोग सरकारी ठेके आदि लेते हैं उनके लिए भी २८ दिन का यह समय उत्तम नहीं है । घुटने तथा छाती की चोट आदि समस्या से आपको बचना चाहिए । माता तथा बड़े भाई- बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । अपनी माता तथा अपने बड़े भाई-बहनों को दक्षिण दिशा की यात्रा न करने दें ।

कुंभ राशि-कुंभ लग्न
आपको तथा आपके छोटे भाई-बहनों को इन २८ दिनों में  अनावश्यक यात्राओं( विशेषकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की) से बचना चाहिए । पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । पढ़ते-लिखते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधे करके उचित अवस्था में बैठें । २८ दिन का यह समय काल आपके भाग्य के लिए अच्छा नहीं है अतः कोई नवीन कार्य करने के लिए इस समय के निकलने की प्रतीक्षा करें ।

मीन राशि-मीन लग्न
धन के अपव्यय से बचें तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, आपको भी अपनी पीठ तथा कटिबंध स्थान का ध्यान रखना चाहिए । भारी वस्तुएं उठाने से बचें तथा अपने पिता को किसी भी परिस्थिति में दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा न करने दें । इन २८ दिनों में आपके पिता को घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में निवास करने से बचना चाहिए ।

मंगल-केतु की युति के विषय में पूर्व में मेरा एक ब्लॉग आ चुका है और उसमें तब मैने जो भी Prediction की थीं वह सभी सत्य घटित हुई थीं । ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन कर रहे विद्वान मेरे पुराने ब्लॉग को पढ़कर इन २८ दिनों में घटित होने जा रही घटनाओं का पूर्व अनुमान लगा सकते हैं। मंगल-केतु युति के ऊपर मेरे पुराने ब्लॉग का लिंक—

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में मंगल व केतु पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ प्रभाव में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति इतनी अमंगलकारी नहीं होगी जितना कि उपरोक्त फलादेश में बताया गया है किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में मंगल और केतु पहले से ही अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पाप अथवा क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हुए तथा उन पर किसी भी प्रकार की शुभ दृष्टि न हुई और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी । ऐसे जातकों को अपने-अपने अधिकार की सीमा में भगवान् शंकर तथा हनुमान जी की उपासना करने से किसी भी प्रकार की कोई भी हानि नहीं होगी ।

"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 13 अगस्त 2023

जीवन में हमारे कुलदेवी/देवता का महत्व...

पूर्व काल में हमारे ऋषि कुलों (आदि पूर्वजों) ने अपने इष्ट देवी/देवताओं को उचित स्थान देकर (मंदिर आदि बनाकर) उनका अपने कुल देवी/देवता के रूप में पूजन करना आरंभ किया जिससे एक पारलौकिक शक्ति उनके कुल के वंशजों की नकारात्मक ऊर्जाओं, ग्रह जनित बाधाओं तथा मांत्रिक शक्तियों से सदैव रक्षा करती रहे । हमारे पूर्वज इन शक्तियों से यह वचन लिया करते थे कि वह उनके कुल की यथा संभव रक्षा करेंगी जिसके कारण अपनी-अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार यह शक्तियां अपने-अपने कुलों की रक्षा किया करती थीं ।


कालान्तर में विधर्मी मलेच्छ आक्रांताओं के आक्रमणों और उनके द्वारा की जा रही हिंसा, लूट, बलात्कारों के भय से बहुत से हिन्दू परिवार अपने स्थानों से विस्थापित होने लगे, मलेच्छों द्वारा लाखों की संख्या में धर्म परायण वेदपाठी ब्राह्मणों की हत्याओं, मंदिरों के विध्वंस तथा धर्म ग्रंथ जलाए जाने के कारण से सनातन धर्म का लोप होने लगा । जीवन बचाने के लिए जिसे जहां 
जो स्थान मिला वह वहीं बसने लगा, अंतर्जातीय विवाह होने से वर्णाश्रम व्यवस्था भंग होने लगी जिसके कारण कुलीन परंपरा विलुप्त होती गई । 


इधर वर्तमान की स्थिति का अवलोकन करने के पश्चात् हमें यह ज्ञात होता है कि पाश्चात्य संस्कृति का अंध अनुसरण करने से संस्कार शून्य हुए अधिकांश सनातनी एक तो पहले से ही यह भूल चुके हैं कि उनके कुल देवी/देवता कौन हैं ? ऊपर से मलेच्छ भूमि (समुद्र पार के देश) में जाकर बस जाने से स्थिति और भी भयावह हो चुकी है । 
मलेच्छ भूमि पर बसने वाले सनातनी अपना द्विजत्व खो जाने से मलेच्छत्व को प्राप्त हो चुके हैं और विडंबना यह है कि आप उन्हें इसका ज्ञान भी नहीं करवा सकते क्योंकि धर्म ज्ञान के अभाव में अधिकांश सनातनी, विदेशी भूमि पर निवास करने के मिथ्या अहंकार से भरे होने के कारण स्वयं को श्रेष्ठ समझने के ऐसे महान भ्रमजाल में फंसे हुए हैं जिसमें से उन्हें शायद ही कभी निकाला जा सकता है ।


(याज्ञिक भूमि केवल भारतवर्ष ही है, जिसमें कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर जिसमें मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र तक सभी ७ चक्र स्थित हैं तथा इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना नाड़ियों के रूप में गंगा, यमुना, सरस्वती भी हैं जिनका संगम प्रयाग क्षेत्र अर्थात् दोनों नेत्रों के मध्य स्थित आज्ञा चक्र में होता है । इन तीनों नदियों का संगम प्रयाग क्षेत्र में ठीक उसी प्रकार से होता है जैसे सिद्ध अवस्था में एक योगी के शरीर में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का आज्ञा चक्र में होता है । शरीर की ७२ हजार नाड़ियां और कुछ नहीं इसी भारत भूमि पर बह रही असंख्य नदियां, झीलों आदि का जाल है—  यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे)

अतः भारत भूमि और कुछ नहीं एक जीती-जागती पवित्र देह है जिसमें दिव्य ऊर्जा का प्रवाह स्वतः ही स्फुरित होता रहता है । यही कारण है कि इस भूमि को माता कहा जाता है जिसके गर्भ में भगवान् जन्म (अवतार) लिया करते हैं । इस विषय पर 'विष्णु पुराण' में एक श्लोक आता है–
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे।
स्वर्गापवर्गास्पद हेतुभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात॥
अर्थात्—
देवता भी स्वर्ग में यह गान करते हैं, धन्य हैं वह लोग जो भारत-भूमि के किसी भाग में उत्पन्न हुए । वह भूमि स्वर्ग से बढ़कर है क्योंकि वहां स्वर्ग के अतिरिक्त मोक्ष की साधना भी की जा सकती है ।

यहां विषय से हटकर मलेच्छत्व के विषय को विस्तार देने का कारण यही था कि जो भी सनातनी अपना देश छोड़कर विदेशों में जाकर बस चुके हैं किन्तु भीतर से धर्मपरायण और बुद्धिमान हैं वह इस ब्लॉग को पढ़कर यह समझ सकेंगे कि धर्म पालन में भारतवर्ष की क्या भूमिका है । साथ ही वह यह भी समझेंगे कि इस ब्लॉग को लिखते समय मेरी भावना किसी भी प्रकार से अहंकार, स्वार्थ और विद्वेषपूर्ण नहीं अपितु केवल और केवल शास्त्रसम्मत थी ।

अब इस विषय को और अधिक विस्तार न देते हुए पुनः वापस लौटते हैं अपने इस ब्लॉग के विषय पर अर्थात् जीवन में कुलदेवी/देवता का महत्व—
वचनबद्ध होने के कारण हमारे कुल देवी/देवता हमारे चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाकर रखते हैं । जो मनुष्य उनकी उपेक्षा करता है, उचित समय पर उनका पूजन नहीं करता, सदैव मलेच्छों की संगति में रहता है, उनकी संगति से प्रेरित होकर मांस (विशेषकर गौ मांस) भक्षण करता है तथा उनकी पूजा करने के स्थान पर भूत-प्रेतों, कब्रों, मजारों आदि का पूजन करता है, ऐसे व्यक्तियों के ऊपर से वह अपना सुरक्षा सुरक्षा कवच हटा लेते हैं और ऐसा मनुष्य शीघ्रता से तंत्र सम्बंधी बाधाओं, अभिचार कर्मों अथवा ब्रह्मांड में अनगिनत मात्रा में विचरण कर रही नकारात्मक काली शक्तियों की चपेट में आ जाता है।

ऐसे मनुष्यों के जीवन में कोई कार्य न बनना, गृह क्लेश रहना, मानसिक समस्याओं से ग्रसित होकर आत्महत्या करने के विचार आना, कोर्ट केस आदि में फंस जाना, धनी परिवार में जन्म लेने के पश्चात् भी अत्यन्त दरिद्र हो जाना, उसके कुल की स्त्रियों का दूषित हो जाना, परिवार में आकस्मिक दुर्घटनाएं होते रहना, घर में अग्नि कांड होना, घर में दीमक लग जाना आदि अनिष्टकारी घटनाएं घटित होती रहती हैं ।

ऐसी अवस्था में व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकता रहता है और अनेक ज्योतिषियों, तांत्रिकों आदि के द्वारा बताए गए उपायों को करवाने के पश्चात् भी उसको अपने जीवन में कोई लाभ दृष्टिगोचर नहीं होता । यहां यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ऐसा व्यक्ति श्रापित होकर जीवन में अनेक दुःख भोगने को विवश होता है ।

मैंने अपने जीवन काल में अनेक जन्मकुंडलियों का अध्ययन करके यह पाया कि ऐसे व्यक्तियों को हमारे द्वारा बताए गए ज्योतिषीय उपाय भी उतना अधिक फलीभूत नहीं होते जितना कि उन्हें होना चाहिए किन्तु यही जातक जब अपने रुष्ट कुल देवी/देवता को प्रसन्न कर लेते हैं तो उन्हीं ज्योतिषीय उपायों से उनके जीवन में अद्भुत चमत्कार घटित होने लगते हैं । इसलिए अपने कुलदेवी/देवताओं का पूजन करना प्रत्येक सनातनी हिंदू का न केवल धर्म है, अपितु अनिवार्य कर्तव्य भी है ।

हमारे कुल देवी/देवता वह शक्तियां हैं जिनकी कृपा से हम सभी प्रकार की सफलता प्राप्त करते हुए सुखी व समृद्ध जीवन जी सकते हैं । अतः यदि किसी का घर बड़ा है और वास्तु के अनुसार बना हुआ है तथा वहां शुद्धता भी रहती है, तो उसे अपने घर के किसी वृद्ध व्यक्ति से अपने कुलदेवी/देवता के विषय में जानकारी प्राप्त करके उनको वहां उचित स्थान देना चाहिए । स्थान देते समय किसी योग्य वेदपाठी ब्राह्मण को बुलाकर अपने कुलदेवी/देवता का शास्त्र विधि अनुसार पूजन करवा लेना चाहिए तथा समय-समय पर उनका पूजन होते रहने की व्यवस्था करनी चाहिए । उस स्थान पर नित्य प्रतिदिन देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी का दीपक जलाना चाहिए । इससे उसके कुल देवी/देवता प्रसन्न होकर उसे अपने संरक्षण में ले लेंगे और उसे सभी प्रकार की सुख समृद्धि प्रदान करते हुए संसार में सदैव अपराजित रखेंगे ।

जिस व्यक्ति का घर छोटा है, घर में शुद्धि-अशुद्धि का विचार भी नहीं किया जाता, वास्तु द्वारा निर्मित भी नहीं है, घर में कुत्ता-बिल्ली-मुर्गा आदि पाले हुए हैं उसको अपने कुल देवी/देवता को घर में स्थान न देकर उसके पूर्वजों द्वारा स्थापित कुलदेवी/देवता के मंदिर में जाकर वर्ष में एक बार उनका विधि-विधान से पूजन अवश्य करना चाहिए । इसके अतिरिक्त घर में कोई शुभ कार्य होने वाला हो तब भी उस मंदिर में जाकर उनसे अनुमति और आशीर्वाद अवश्य ले लेना चाहिए जिससे बिना किसी अवरोध के उनका वह कार्य सम्पन्न हो सके तथा उसमें उन्हें आगे सफलता भी प्राप्त हो ।

यहां यह स्मरण रहे कि घर का मुखिया पुरुष होता है अतः यह कार्य किसी धर्मनिष्ठ पुरुष के द्वारा ही सम्पन्न होना चाहिए, घर की स्त्रियां उसका इस कार्य में सहयोग करें और इस धर्म कार्य में उसकी सहभागिनी बनकर श्रद्धापूर्वक अपने कुलदेवी/देवता की पूजा-अर्चना करें ।

अनेक बार देखा गया है कि जनसमुदाय अपने बच्चों के विवाह आदि शुभ अवसरों पर मनमाने ढंग से अपने कुलदेवी/देवताओं का पूजन करता है, विद्वान और धर्म परायण व्यक्तियों को इससे बचना चाहिए क्योंकि शास्त्र सम्मत आचरण करने में ही सबका कल्याण है, व्यर्थ के प्रमाद में पड़कर शास्त्र विरुद्ध आचरण करने से लाभ के स्थान पर उल्टा हानि ही उठानी पड़ती है ("यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।। १६.२३—श्रीमद् भगवद्गीता") ।

अब बात करते हैं उन व्यक्तियों की जिनके पास न तो धन है और न ही इतना सामर्थ्य है कि वह विधि-विधान से अपने कुलदेवी/देवता का पूजन कर सकें तो ऐसे व्यक्तियों को मानसिक रूप से ही अपने कुलदेवी/देवता का ध्यान करना चाहिए तथा हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वह उन्हें इन भीषण विपत्तियों से निकाल कर अपना संरक्षण प्रदान करें (निष्कपट, शुद्ध और द्वेष रहित मन से की गई प्रार्थना देवी/देवताओं तक अवश्य पहुंचती है केवल कपटी, दंभी, धूर्त, लोभी और राग द्वेष भावना से युक्त मनुष्य ही उनकी कृपा कभी प्राप्त नहीं कर सकता)  इस प्रकार से प्रत्येक सनातनी हिंदू अपने जीवन में अपने कुलदेवी/देवता की कृपा प्राप्त करके स्वयं को सुखी और समृद्ध बना सकता है ।
"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

भगवान् श्री कृष्ण की शिव भक्ति...



 भगवान् शंकर और मां भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं कलियुग के दक्ष बन चुके एक शिव-शक्ति निंदक अधर्मी Cult के मिथ्या प्रचार का अंत करने जा रहा हूँ जो भगवान् श्री कृष्ण को सर्वशक्तिमान परमेश्वर बताकर और उनकी आड़ लेकर भगवान् शंकर और माता भवानी का निरन्तर अपमान करता रहता है ।

इस Cult के अधर्मी तत्व अपनी अधर्म की दुकान चलाने के लिए इतने निम्न स्तर तक गिर चुके हैं कि वह अब सनातन धर्म में हस्तक्षेप करते हुए हमारे उच्च कोटि के देवी-देवताओं को भी नीचा दिखाने से पीछे नहीं हट रहे।
(इस cult के द्वारा किए गए मिथ्या प्रचार के खंडन पर मेरे अन्य ब्लॉग भी देखें)—




'श्रीमद्भगवतगीता' के कुछ श्लोकों का उदाहरण प्रस्तुत करके इस कलियुगी cult के चेले, अन्य देवी-देवताओं को तुच्छ बताने का प्रयास करते समय यह भूल जाते हैं कि 'भगवद्गीता' भी 'महाभारत' ग्रंथ का ही एक अंश है (जैसे जल की एक बूंद महासमुद्र का एक अंश मात्र होती है) जिसमें अनेक स्थानों पर श्री कृष्ण-अर्जुन द्वारा शिव-शक्ति, देवी दुर्गा आदि का पूजन करने का विवरण हमें प्राप्त होता है । अतः इन अधर्मियों को उत्तर देने के लिए आज मैं पवित्र महाभारत ग्रंथ में से ही भगवान् श्री कृष्ण द्वारा शिव भक्ति करने के प्रमाण प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

श्री कृष्ण युधिष्ठिर संवाद— श्री कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को अपनी शिव भक्ति के विषय में कहना {श्री महाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दान-धर्म-पर्व में मेघवाहन पर्व के अध्याय १८ की श्लोक संख्या 👉३५-३६}

वासुदेवस्तदोवाच पुनर्मतिमतां वरः ।
सुवर्णाक्षो महादेवस्तपसा तोषितो मया ॥ ३० ।।
उस समय बुद्धिमानों में श्रेष्ठ भगवान् श्रीकृष्ण फिर इस प्रकार बोले— "मैंने सुवर्ण-जैसे नेत्रवाले महादेव जी को अपनी तपस्या से संतुष्ट किया  । ३० ।।

ततोऽथ भगवानाह प्रीतो मां वै युधिष्ठिर ।
अर्थात् प्रियतरः कृष्ण मत्प्रसादाद् भविष्यसि ।। ३१ ।।
" युधिष्ठिर! तब भगवान् शिव ने मुझसे प्रसन्नतापूर्वक कहा— 'श्रीकृष्ण ! तुम मेरी कृपा से प्रिय पदार्थों की अपेक्षा भी अत्यन्त प्रिय होओगे.... । ३१।।

अपराजितश्च युद्धेषु तेजश्चैवानलोपमम् ।
एवं सहस्रशश्चान्यान् महादेवो वरं ददौ ।। ३२ ।।
युद्ध में तुम्हारी कभी पराजय नहीं होगी तथा तुम्हें अग्नि के समान दुस्सह तेज की प्राप्ति होगी'। इस तरह महादेव जी ने मुझे और भी सहस्त्रों वर दिए । (इसी कारण यदि कभी भी भगवान् शंकर प्रेमवश श्री कृष्ण से किसी युद्ध में पराजित हो जाते हैं तो इसमें किसी भी प्रकार के आश्चर्य की कोई बात नहीं है अपितु इसे भगवान् शंकर द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया वरदान ही समझना चाहिए) ।। ३२ ।।

मणिमन्थेऽथ शैले वै पुरा सम्पूजितो मया ।
वर्षायुतसहस्राणां सहस्रं शतमेव च ।। ३३ ।।
"केवल इसी अवतार में नहीं अपितु पूर्वकाल में अन्य अवतारों के समय भी मणिमन्थ पर्वत पर मैंने लाखों-करोड़ों वर्षों तक महादेव की आराधना की थी ।। ३३ ।।

ततो मां भगवान् प्रीत इदं वचनमब्रवीत् ।
वरं वृणीष्व भद्रं ते यस्ते मनसि वर्तते ॥ ३४ ।।
“इससे प्रसन्न होकर भगवान् ने मुझसे कहा – 'कृष्ण! तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन से जैसी रुचि हो, उसके अनुसार कोई वर माँगो' ।। ३४ ।।

ततः प्रणम्य शिरसा इदं वचनमब्रुवम् ।
यदि प्रीतो महादेवो भक्त्या परमया प्रभुः ।। ३५ ।।
नित्यकालं तवेशान भक्तिर्भवतु मे स्थिरा ।
एवमस्त्विति भगवांस्तत्रोक्त्वान्तरधीयत ।। ३६ ।।
"यह सुनकर मैंने मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और कहा- 'यदि मेरी परम भक्ति से भगवान् महादेव प्रसन्न हों तो समस्त विद्याओं के ईश्वर तथा सब के ऊपर शासन करने वाले ईशान! आपके प्रति नित्य-निरन्तर मेरी स्थिर भक्ति बनी रहे।' तब 'एवमस्तु' कहकर भगवान् शिव वहीं अन्तर्धान हो गये" ।। ३५-३६ ।।

इस प्रकार महाभारत ग्रंथ में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा बोले गए इन वचनों से यह सिद्ध होता है कि अपनी ही योगमाया से मनुष्य शरीर धारण किए हुए स्वयं भगवान् श्री हरि विष्णु, श्री कृष्ण के रूप में भगवान् शंकर की आराधना किया करते थे ।


यही नहीं यदि इसी अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दान-धर्म-पर्व के मेघवाहन पर्व के ही १५वें अध्याय को आप पढ़ेंगे तो उससे आपको यह ज्ञात होता है कि भगवान् श्री कृष्ण ने भगवान् शंकर सहित माता भवानी की भी घोर तपस्या करके उनसे भी ८ प्रकार के वर प्राप्त किए थे ।

आशा करता हूँ कि मेरे इस ब्लॉग को पढ़ने के उपरान्त कोई भी 'सनातन धर्मी' हमारे उच्च कोटि के देवी-देवताओं के प्रति किए जा रहे विष-वमन में सहायक नहीं बनेगा । चाहे वह विष-वमन अपनी उदर पूर्ति के लिए धार्मिक टीवी सीरियल बनाने वाले निर्माताओं के द्वारा किया जा रहा हो अथवा अपने cult के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से किसी cult के 'अधर्म' गुरुओं द्वारा ।

—Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 8 मई 2023

मंगल का अपनी नीच राशि 'कर्क 'में प्रवेश (२०२३)—


 
१० मई २०२३ दोपहर १ बजकर ३९ मिनट पर गोचर में मंगल अपनी नीच राशि 'कर्क' में प्रवेश करने जा रहे हैं और वह १ जुलाई २०२३ प्रातः २ बजकर १६ मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात् अपनी मित्र राशि 'सिंह' में प्रवेश करेंगे ।

अपने इस राशि परिवर्तन के साथ ही मंगल स्वयं राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर राहु के ही केंद्रीय प्रभाव में आ जाएंगे और शनि के साथ षडाष्टक योग भी बना लेंगे । मंगल-शनि का यह षडाष्टक योग संसार के लिए विशेष पीड़ादायक होता है अतः इस योग का दुष्प्रभाव सभी जातकों के ऊपर पड़ेगा ।

मंगल के नीच राशि में गोचर करने तथा शनि के साथ यह षडाष्टक योग बन जाने से इस अवधिकाल में विश्व भर में हिंसा, आगजनी जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी और विश्व भर से ट्रेन पलटना, प्लेन क्रैश होना तथा गैस पाइप लाइन में आग लग जाना जैसी अशुभ सूचनाएं प्राप्त होंगी इसके अतिरिक्त सामान्य से कहीं अधिक सड़क दुर्घटनाएं होने के आंकड़े भी प्राप्त होंगे। अतः विद्वान मनुष्यों को इस अवधिकाल में निजी वाहनों से लंबी दूरी की यात्राओं से यथा संभव बचना चाहिए, घरेलू महिलाओं को गैस सिलेण्डर का उपयोग करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए तथा आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को विशेष प्रबन्ध करने चाहिए।

राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर अपनी नीच राशि में रहने के कारण मंगल के दुष्प्रभावों में एक विशेष विध्वंसकारी शक्ति आ गई है जिसके फलस्वरूप ऐसा मंगल गोचर में जातकों की जन्मकुंडलियों के जिस-जिस भावों का स्वामी होकर जिन-जिन भावों में जाएगा और यह सभी भाव शरीर के जिन अंगों, कारक तत्वों तथा सगे-संबंधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन सभी के लिए हानिकारक सिद्ध होगा।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति होने से जातक को जो रोग, चोट, दुर्घटनाएं प्राप्त होती हैं, इस अवधिकाल में उसमें अधिकता देखी जाएगी । जन्मकुंडली में १२ भावों तथा मंगल से होने वाले रोगों के विषय में जानने के लिए मेरा यह ब्लॉग देखें

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर 'मन की राशि' में संचार करते हुए मंगल की मारक क्षमता के प्रभाव से जीवों के मन में हिंसा की भावना जन्म लेगी जिससे इस अवधिकाल में एक दूसरे के प्रति हिंसा में अत्यधिक वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप विश्व भर में हिंसा-रक्तपात और यहां न लिख सकने वाली अनेक अशुभ घटनाएं घटित होंगी । 

मंगल शल्य चिकित्सा का कारक ग्रह है जब यह अशुभ स्थिति में होता है तब विश्व भर में ऑपरेशन होने की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होती है अतः चिकित्सकों के लिए यह समय व्यस्ततापूर्ण रहेगा ।

ब्लॉग का विस्तार न हो यह देखते हुए तथा समय के अभाव में सभी राशि-लग्नों वाले जातकों का भविष्यफल इस ब्लॉग में बताना संभव नहीं है अतः मंगल के इस विनाशकारी गोचर से सभी जातकों के बचाव के लिए कुछ उपायों का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूँ ।

  •  हनुमान जी की उपासना करें ।
  •  रक्त वर्ण की देशी गाय की सेवा करें तथा उसे गुड़ का सेवन करवाएं ।
  •  मंगल के उस मंत्र का जाप करें जिसके लिए आप अधिकृत हैं ।
  •  गुड़, घी, लाल मसूर की दाल, तांबे का पात्र, अनार, गेंहू, लाल वस्त्र आदि वस्तुओं का दान किसी ऐसे मंदिर में करें जिसमें शास्त्र मर्यादा का पालन करने वाले वेदपाठी ब्राह्मण विद्वानों की नियुक्ति की गई हो 
  • अपने छोटे भाइयों को उनकी प्रिय वस्तु भेंट करें (ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 'मंगल' छोटे भाई का कारक होता है) ।
  • स्वयं रक्त वर्ण के वस्त्र धारण करने से बचें।

नोट—
मंगल का यह अशुभ गोचर उन जातकों के लिए उतना हानिकारक नहीं होगा जिनकी जन्मकुंडलियों में मंगल शुभ स्थिति में होंगे तथा उनकी दशा–अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ योगकारक ग्रहों की चल रही होगी किन्तु जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में मंगल अशुभ स्थिति में हुए और उनकी दशा–अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की हुई, उनके लिए मंगल का यह गोचर अत्यन्त हानिकारक सिद्ध होगा ।

 

"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

महाशिवरात्रि का रहस्य


मानव दृष्टि और चेतना जिस-जिस स्थान तक जाती है मनुष्य वहीं-वहीं तक देख सकता है, समझ सकता है किन्तु अध्यात्म विद्या को जानने वाले मनुष्य, साधारण मनुष्यों की दृष्टि और चेतना से भी परे देख व समझ सकते हैं । साधारण मनुष्य जो देख व समझ नहीं पाता वह उसको नहीं मानता किन्तु जिसे वह देख नहीं पाता, समझ नहीं पाता, यह आवश्यक तो नहीं कि वह पदार्थ अथवा तत्व इस जगत में है ही नहीं ?


इसी प्रकार ईश्वरीय तत्व परमाणु स्वरूप में प्रत्येक स्थान पर विद्यमान है, केवल आवश्कता होती है उसे जाग्रत करने की ।

तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र की सहायता से उस ईश्वरीय तत्व को जाग्रत करके आत्मसात किया जाता है जिससे उसकी ऊर्जा से अपने तथा अन्य व्यक्तियों के जीवन की नकारात्मकता को दूर किया जा सके। इसके लिए प्राचीन ग्रंथो में कुछ सिद्ध रात्रियां बताई गई हैं जिनमें से 'महाशिवरात्रि' प्रमुख है ।

यह वह समय काल होता है जब ब्रह्माण्ड की दो महाशक्तियां  (Super Natural Powers) जिनमें से एक भगवान् शंकर और दूसरी महाकाली का मिलन होता है और इन दोनों शक्तियों का यह मिलन एक महाशक्तिशाली ऊर्जा का निर्माण करता है ।

महाशिवरात्रि के समय इन दोनों महान शक्तियों के एक हो जाने से ब्रह्माण्ड में चारों ओर अदृश्य रूप से जिस महाशक्तिशाली ऊर्जा का निर्माण होता है इसको साधारण साधक अनुभव कर सकता है और उच्च कोटि का साधक देख व अनुभव दोनों कर सकता है ।

यह ऊर्जा कल्याणकारी तथा प्रयलंकारी दोनों ही प्रकार की होती हैं, निर्भर यह करता है कि साधक किस ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित करके उसे आत्मसात कर रहा है ।

जहां एक ओर दक्षिणमार्गी साधक शिव-शक्ति के मिलन से उत्पन्न हुई इस रहस्यमयी ऊर्जा में से सात्विक और कल्याणकारी तत्व को ग्रहण करते हैं वहीं दूसरी ओर कापालिक, अघोरी और वाममार्गी साधक इस महान ऊर्जा से उत्पन्न इसके प्रलयंकारी तत्व को ग्रहण करते हैं ।

विश्व के सभी सात्विक तत्वों को भगवान् विष्णु द्वारा ग्रहण कर लेने के पश्चात् कहीं तामसी ऊर्जाएं अनियंत्रित न हो जाए इस कारण से भगवान् शंकर और देवी महाकाली ने उनको अपने अधीन कर लिया l हलाहल विष और कुछ नहीं ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऐसा भयानक विनाशकारी परमाणु विकिरण (Nuclear Radiation) था जिसके संपर्क में आने से कोई भी सुरक्षित नहीं रह सकता था इसी कारण से भगवान् शंकर ने उसे ग्रहण कर लिया। ब्रह्माण्ड की उस अद्भुत घटना के वैज्ञानिक रहस्यों पर किसी अन्य ब्लॉग में चर्चा करूंगा अभी पुनः अपने विषय पर आते हैं ।

वस्तुतः महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, साधना के माध्यम से अपनी अंतः चेतना को नवीन आयाम देने के लिए ईश्वर के द्वारा हमें दिया गया एक सिद्ध मुहूर्त है जिसके माध्यम से हम जन्मजन्मांतरों तक के लिए भगवान् शंकर और माता भवानी की भक्ति और उनका संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं । इसके लिए आवश्कता है इस साधना के रहस्य को जानकर अपनी आत्मा के स्तर से इस साधना को करने की क्योंकि प्रत्येक जन्म में हमारे साथ हमारा शरीर नहीं आत्मा जाती है। अतः साधनाओं को शरीर के स्तर पर न करके आत्मिक स्तर पर करना चाहिए, शरीर तो केवल माध्यम मात्र होना चाहिए किसी भी साधना को करने के लिए ।

साधक साधना करते समय अपने स्थूल (देह) और सूक्ष्म (मन) शरीरों के प्रति मोह, अनुराग और प्रीति को त्यागकर जब अपने कारण शरीर (आत्मा) से मंत्र जाप करता है तो वह निश्चित् ही अपने इष्ट का सानिध्य और उनकी शक्तियों का कुछ अंश प्राप्त कर लेता है। अतः साधकों को आत्मा के स्तर से मंत्र जाप करना चाहिए । यह एक अत्यन्त गुप्त रहस्य है जिसको केवल गुरु कृपा अथवा पूर्वजन्म की साधनाओं के इस जन्म में प्रकट होने पर ही जाना जा सकता है ।

इस विषय को अब और अधिक विस्तार न देते हुए अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ और आशा करता हूँ मेरे इस ब्लॉग की गहनता को समझते हुए इससे प्रेरणा लेकर साधक गण अनन्त काल तक केवल महाशिवरात्रि ही नहीं अपितु विभिन्न सिद्ध रात्रियों में अपने 'अधिकार की सीमा में आने वाले मन्त्रों' का जाप करके भगवान् की शरणागति प्राप्त करते रहेंगे जिससे मेरी आत्मा का मनुष्य रूप में जन्म लेने का उद्देश्य भी सार्थक सिद्ध होगा।

”शिवार्पणमस्तु”

—Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 1 अगस्त 2022

पंचदेवोपासना



प्राचीन 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धान्त' के अनुसार कौन हैं 'पंचदेव' और क्यों करते हैं 'पंचदेवों' की साधना ?

वस्तुतः परब्रह्म परमेश्वर ही पंचदेवों के रूप में व्यक्त हैं तथा सम्पूर्ण चराचर जगत में भी वही व्याप्त हैं।

वेदानुसार निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव—

परब्रह्म परमात्मा (आदि शक्ति) निराकार व अशरीरी हैं, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उनके स्वरूप का ज्ञान असंभव है इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार स्वरूप को ५ महान शक्तियों के रूप में प्रकट किया और उनकी उपासना करने का विधान निश्चित किया। निराकार परब्रह्म की यही ५ शक्तियां 'पंचदेव' कहलाती हैं

हमारे शास्त्रों में इन पंचदेवों की मान्यता पूर्ण ब्रह्म के रूप में है, जिनकी साधना से पूर्ण ब्रह्म की ही प्राप्ति होती है। इसलिये अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार इन पंचदेवों में से किसी एक को अपना इष्ट देव मानकर उनकी उपासना करने का विधान है।

यह पंचदेव हैं–गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु और सूर्य।

इनमें से गणपति के उपासक–गाणपत्य , शिव के उपासक–शैव, शक्ति के उपासक–शाक्त, विष्णु के उपासक–वैष्णव तथा सूर्य के उपासक–सौर कहे जाते हैं और जो मनुष्य इन पांचों देवी-देवताओं की उपासना करते हैं उन्हें 'स्मार्त' कहा जाता है।

अत्यन्त हास्यास्पद बात है कि निराकार परब्रह्म परमेश्वर की जो शक्तियां भिन्न होकर भी एक ही शक्ति का अंश हैं उनके नाम पर बनने वाले सम्प्रदाय आपस में एक दूसरे के देवी-देवताओं को नीचा दिखाने का कार्य करते हैं जबकि इन सम्प्रदायों के निर्माण का उद्देश्य मानव को उसकी अभिरुचि के अनुसार साधना के मार्ग पर आगे बढ़ाकर सद्गति प्राप्त करवाना था।

अति तो तब हो गई जब इन पंचदेवों की शक्तिशाली ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले 'अवतारों' के नाम पर भी नए-नए सम्प्रदाय अस्तित्व में आ गए, जिसमें से कुछ तो प्राचीन ज्ञान परम्परा का अनुसरण करते हैं किन्तु अधिकांश का प्राचीन सनातन ज्ञान परम्परा से कोई लेना-देना ही नहीं है और इनका उद्देश्य केवल अपने चेलों की संख्या बढ़ाकर अपने-अपने 'Cult' के महान गुरु की पदवी प्राप्त करके सनातनी जनता से धन ऐंठना मात्र है।

वस्तुतः कलियुगी व्यक्ति-विशेषों द्वारा बनाए गए इन 'Cults' को सम्प्रदायों की श्रेणी में रखना भी इन पंचदेवों की साधना के लिए बनाए गए प्राचीन सम्प्रदायों का अपमान करना ही है। इस विषय पर मेरे यह ब्लॉग देखें—

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post_28.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2019/07/dharm-yudh.html


इस प्रकार यहां मैंने पंचदेवों और उनकी साधना के विषय में वर्णन किया जिससे सभी सनातनी भाई-बहन विभिन्न Cults के प्रपंच में पड़ने के स्थान पर अपने मूल 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत' का अनुसरण करके मुक्ति प्राप्त कर सकें।

 (शिवार्पणमस्तु)

-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 21 मार्च 2022

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2022

गोचर में 12 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 17 मिनट पर (दिल्ली समयानुसार) अपनी वक्री गति से राहु व केतु क्रमशः 'वृष व वृश्चिक' राशि से निकलकर 'मेष व तुला' राशि में प्रवेश करेंगे, जहाँ वह 30 अक्टूबर 2023 दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात क्रमशः 'मीन व कन्या' राशि में चले जायेंगे। लगभग 18 महीने के इस अवधिकाल में राहु-केतु, सवा दो-सवा दो नक्षत्रों में संचार करेंगे जिसके कारण सभी जातकों को इनके भिन्न-भिन्न परिणाम देखने को प्राप्त होंगे। 

राशि परिवर्तन के आरम्भ में राहु- सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका', तत्पश्चात शुक्र के नक्षत्र 'भरणी' और केतु के नक्षत्र 'अश्वनी' में संचार करेगा और केतु- गुरु के नक्षत्र 'विशाखा', तत्पश्चात राहु के नक्षत्र 'स्वाति' और मंगल के नक्षत्र 'चित्रा' में प्रवेश करेगा । 

राहु-केतु खगोलीय दृष्टि से कोई ग्रह भले ही ना हों किन्तु ज्योतिष शास्त्र में इनका बहुत अधिक महत्व है। यह दोनों ग्रह एक दूसरे के विपरीत बिंदुओं पर समान गति से गोचर करते हैं। अपना कोई भौतिक आकार ना होने के कारण राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है। राक्षस जाति और स्वभाव से क्रूर होने के कारण शनि के साथ-साथ इन दोनों ग्रहों को भी पापी ग्रहों की संज्ञा दी गयी है। यह दोनों ग्रह जिस राशि तथा जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, उनकी भी छाया ग्रहण कर लेते हैं और अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। यदि यह बृहस्पति जैसे शुभ ग्रह के साथ आ जाएँ तो स्वयं तो अपने स्वभाव में शुभता ले आते हैं परन्तु बृहस्पति को दूषित करके गुरु-चांडाल दोष बना देते हैं और ऐसा बृहस्पति भी अपनी दशा-अन्तर्दशा में अशुभ फल देने लगता है। 

यदि यह शनि जैसे पापी अथवा सूर्य, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के साथ बैठ जाते हैं तो उनकी छाया लेकर अपने पापत्व और क्रूरता में कई गुना वृद्धि करके जातक का जीवन नष्ट कर देते हैं। ऐसे राहु-केतु जातक की जन्म-कुंडली में जिस भी भाव पर बैठ जाते हैं, वहां के सभी शुभ फलों को पूर्णतः नष्ट कर देते हैं और वह भाव तथा उसमें स्थित राशि जिन शाररिक अंगों को बनाती है उन अंगों में भयानक रोग प्रकट कर देते हैं। 

यह दोनों पापी ग्रह जिस नक्षत्र में होते हैं वह नक्षत्र शरीर के जिस अंग को बनाता है उस अंग में बार-बार कोई समस्या आती रहती है। यही कारण है कि बहुत सारे लोगों के बार-बार एक ही अंग में चोट लगना, पीड़ा होना अथवा ऑपरेशन होने जैसी समस्या अधिकांशतः हमें देखने को मिलती रहती हैं। 

मैंने अपने ज्योतिष के Professional Career में ऐसी अनेक जन्म-कुंडलियों का विश्लेषण करके यह अनुसन्धान किया है कि राहु-केतु की युति जिन भी ग्रहों के साथ हुई है, इन दोनों पापी ग्रहों ने उन ग्रहों से निर्माण होने वाले शारिरिक अंगों में रोग, चोट, ऑपरेशन आदि करवाये हुए हैं। यही कारण है कि अनेक बार राहु-केतु के उच्च राशि अथवा शुभ स्थिति में होते हुए भी मैं जातक को इनके रत्न धारण नहीं करवाता क्यूंकि ऐसी स्थिति में जहाँ इनके रत्न जीवन को नयी ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाले सिद्ध होते हैं वहीं दूसरी ओर वह शरीर के उन अंगों को पीड़ित भी कर देते हैं जिस अंग को बनाने वाले नक्षत्र-राशि-भाव में राहु-केतु स्थित होते हैं। 

उदाहरण स्वरुप- यदि राहु-केतु की युति सूर्य के साथ हो जाये तो जातक को सूर्य से उत्पन्न अवयवों (पेट, ह्रदय, दाहिना नेत्र, हड्डियां) में कोई ना कोई समस्या अवश्य रहेगी तथा सूर्य का पिता के कारक होने से पिता को भी गंभीर रोग रहेंगें और अनेक बार उनकी मृत्यु का कारक हार्ट अटैक बनेगा। इस विषय पर आप सभी मेरा चिकित्सा ज्योतिष (Medical Astrology) पर लिखा गया ब्लॉग देख सकते हैं। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

इन सब कारणों से राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है क्यूंकि इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे- 

राहु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव- 

मेष राशि - मेष लग्न

लग्न में शत्रु राशि के राहु के संचार करने के कारण सिर की चोट से बचाव करें। सिर पर राहु के विराजमान होने से मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन बना रहेगा अतः अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें अन्यथा राहु की सप्तम दृष्टि विवाह स्थान पर होने से आपके वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकती है। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः संतान व पिता स्थान पर होने के कारण आपकी संतान और पिता के स्वास्थ्य के लिए भी यह समय कष्टकारी सिद्ध होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां विशेष सावधानी रखें, यदि आप या आपके पिता पहले से ही ह्रदय से सम्बंधित रोगों से ग्रसित हों तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

वृष राशि - वृष लग्न

आपके बड़े भाई-बहन, छोटी बुआ, चाचा की धन हानि तथा उनके दाहिने नेत्र या दांतों में और आपके बाएं नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई कष्ट उत्पन्न हो सकता है। 12वें भाव में मंगल की राशि का राहु आपकी दादी की आयु और उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। माता को पीठ व कमर की चोट से बचाव करें। आपका खर्चा हॉस्पिटल या कोर्ट केस आदि में ना हो इसके लिए राहु के दान व विधिपूर्वक उनके मन्त्रों का जाप करें तथा इस अवधिकाल में नीला रंग धारण करने से बचें। यदि आपने किसी से कोई ऋण लिया हुआ है तो उसको उतार दें अन्यथा आपका धन चिकित्सालय अथवा कोर्ट केसों में निकल जायेगा। 

मिथुन राशि - मिथुन लग्न

बड़े भाई-बहन, चाचा व छोटी बुआ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और माता की आयु की सुरक्षा करें। राहु गोचर में आपके 11वें भाव में संचार करेंगे अतः पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। राहु की सप्तम दृष्टि आपकी संतान के लिए कष्टकारी है अतः इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं विशेष सावधानी रखें। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है। इन सब नकारात्मक बातों के पश्चात भी राहु जब भरणी नक्षत्र में संचार करेंगे तो उस अवधिकाल में लाभ स्थान में होने से आपके लाभ में कई गुना वृद्धि करवायेंगे। 

कर्क राशि - कर्क लग्न

दशम भाव में शत्रु राशि का राहु आपके राजनैतिक कैरियर, आपकी नौकरी तथा आपके पिता के धन के लिये हानिकारक है। सरकारी विवाद से बचें। पिता के दांतों तथा दाहिने नेत्र तथा आपके स्वयं के घुटनों में कोई समस्या आ सकती है। अपनी सास की आयु की सुरक्षा करें। राहु की पंचम शत्रु दृष्टि आपके धन-कुटुंब के लिए अच्छी नहीं है अतः अपने ऋणों से मुक्ति प्राप्त कर लें अन्यथा आपका धन कहीं और निकल जायेगा। यदि आप सरकारी नौकरी में हैं और आपकी जन्मकुंडली में भी आपका दशम भाव-दशमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हुआ तो इस समय आपकी नौकरी जा सकती है। 

सिंह राशि - सिंह लग्न

नवम भाव में राहु का संचार आपके पिता, छोटा साला-छोटी साली के स्वास्थ्य तथा आयु के लिए अच्छा नहीं है, इसकी आपके लग्न पर शत्रु तथा संतान भाव पर नीच दृष्टि आपके व आपकी संतान के लिए भी अनिष्टकारी है। स्वयं अपने सिर, पीठ व कमर की चोट से बचाव करें तथा संतान की सुरक्षा के लिए राहु के मन्त्रों के जाप और उनके दान करें तथा पिता की आयु की सुरक्षा के लिए राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के मन्त्रों के जाप करें। इस अवधिकाल में देश में होने वाली यात्राओं को यथासंभव टालने का प्रयास करें। 

कन्या राशि - कन्या लग्न

अष्टम भाव में शत्रु राशि का राहु आपको अत्यधिक मानसिक पीड़ा और डिप्रेशन देने जा रहा है, यह आपकी आयु का स्थान भी है अतः आत्महत्या जैसे महापाप को करने के विचार से भी बचें। इस समय आपके जीवन साथी के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आ सकती है तथा उनके धन-कुटुंब के लिए भी यह समय ठीक नहीं है। आपके पिता को बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि आपके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उनको उसमें पराजय का सामना करना पड़ेगा। इस अवधिकाल में आपकी माता को पेट में भी कोई समस्या आ सकती है। इस समय आपके छोटे-मामा मौसी विदेश यात्रा ना करें और आप गहरी नदियों व समुद्री स्थानों से दूर रहें। 

तुला राशि - तुला लग्न

राहु का आपके सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए अशुभकारी है। यदि आप व्यापार में किसी के साथ पार्टनरशिप में हैं तो विवाद की स्थिति से बचें। अपनी बड़ी बुआ तथा ताऊ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। सप्तम के राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः आपके एकादश और तृतीय भाव में पड़ने से आपके भाई बहनों के लिए यह समय अशुभकारी है। पैरों तथा हाथों की चोट से सावधान रहें और यदि आप स्त्री हैं तो नीच प्रकृति के पुरुषों से दूर रहें तथा एकांत स्थान पर अकेले जाने से बचें। इस राशि-लग्न वाले जातकों की जन्मकुंडली में 'शुक्र' यदि अपनी नीच या शत्रु राशि अथवा अस्त व पाप प्रभाव में हुए तो इनके यौन अंगों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

वृश्चिक राशि - वृश्चिक  लग्न

इस डेढ़ वर्ष के अवधिकाल में आपको दुर्घटना से बचाव करने की आवश्यकता है। यदि आप पहले से ही किडनी, आंतो, पेंक्रियाज अथवा लिवर की समस्या से पीड़ित हैं तो यह समय आपके लिए बहुत कष्टकारी है । आप यदि मधुमेह के रोगी हैं तो अपनी शुगर का ध्यान रखें। इस समय आपके शत्रु आपको चोट पहुँचाने का प्रयास करेंगे, सावधान रहें। आपके जीवन साथी को अपने बायें नेत्र, एड़ी-पंजो तथा आपको अपने घुटनों की चोट से भी बचाव करना होगा। इस समय आपकी संतान की धन हानि के योग बने हुए हैं तथा उनको दांतों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके धन-कुटुंब भाव पर है अतः कर्ज लेने से बचें अन्यथा चिंता ग्रसित हो जायेंगे। कुटुंब में व्यर्थ के विवाद से बचें। बचाव के लिए योग्य वेदपाठी विद्वानों से विधिवत श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ तथा यज्ञ करवायें। 

धनु राशि - धनु लग्न

यह समय आपकी संतान के लिए शुभ नहीं है। यदि आप गर्भवती महिला हैं तो बहुत सावधानी रखें, गर्भपात हो सकता है। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको परीक्षाओं में प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होंगे। अपने पेट व ह्रदय का ध्यान रखें। राहु की पंचम दृष्टि आपके पिता के लिए हानिकारक है, यदि वह पहले से ही ह्रदय रोगी हैं तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें। अपनी माता के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आने के योग बन रहे हैं। स्वयं आप सिर,पीठ व कमर की चोट आदि से बचें। इस अवधिकाल में आपको आपके इष्ट देवता के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। राहु के मन्त्रों का जाप तथा उनके दान करें। नीले वस्त्रों को धारण करने से बचें। 

मकर राशि - मकर लग्न

शत्रु राशि के राहु के आपके चतुर्थ भाव में गोचर करने के कारण यह समय आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं। इस समय यदि आप कोई प्रॉपर्टी अथवा वाहन लेने जा रहे हैं तो बहुत विचार करके ही लें। यदि आपका आपकी किसी संपत्ति पर विवाद चल रहा है तो आगामी डेढ़ वर्ष उस विवाद को टालने का प्रयास करें। इस अवधिकाल में राहु आपके तथा अपनी पंचम दृष्टि से आपके ससुराल के सुख में भी कमी करेगा तथा आपके जीवन साथी के धन की हानि करेगा। स्वयं के वाहन द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा से बचें। हॉस्पिटल का यदि कोई खर्च रुका हुआ हो तो उसको हो जाने दें। 

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न

भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें उनके लिए यह समय अनुकूल नहीं है। स्वयं का गले-छाती के रोगों से बचाव करें। आगामी डेढ़ वर्ष तक कोई विदेश यात्रा करने तथा मित्रों से विवाद की स्थिति से बचें। इस समय आपके बड़े मामा-मौसी की धन की हानि तथा उनके दाहिने नेत्र व दांतों में पीड़ा के योग बन रहे हैं। हाथ-पैरों की चोट से बचें। इस अवधिकाल में आपके जीवन साथी को पीठ अथवा कमर में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

मीन राशि - मीन लग्न

द्वितीय भाव में शत्रु राशि में स्थित राहु आपके धन की हानि करवाता रहेगा। अतः यदि कोई ऋण हो तो उससे मुक्ति प्राप्त कर लें। इस अवधिकाल में आपके दांतों तथा दाहिने नेत्र में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह समय आपके कुटुंब के लिए बहुत विनाशकारी है। वाणी स्थान पर बैठे राहु आपसे कड़वी वाणी का उपयोग करवायेंगे जिसके कारण आप लोगों को अपने शत्रु बना लेंगे, अतः सोच समझ कर बोलें। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि आपको किडनी, आंतों, पेंक्रियाज, लिवर तथा घुटनों में कोई समस्या ना दे इसके लिए राहु के दान करें तथा उनके मन्त्रों का जाप करें। 


केतु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव-

स्वभाव से राहु के समक्ष केतु थोड़े कम पापी ग्रह माने जाते हैं परन्तु फलित करते समय यह भी राहु से कम विध्वंसकारी नहीं होते। गोचर में जब-जब केतु की युति मंगल अथवा शनि से होती है तो संसार में अग्निकांड और विषैली गैसों से होने वाली दुर्घटनायें कई गुना बढ़ जाती हैं। यदि किसी की जन्मकुंडली के किसी भाव में पहले से ही मंगल-केतु, मंगल-शनि की युति हो और उसकी दशा-अंतर्दशा भी इन्हीं ग्रहों की चल रही हो तथा गोचर में भी उसी भाव में यह युति बन जाये तो इनकी यह युति जातक के उस शारिरिक अंग के लिए बहुत कष्टकारी होती है जिसको वह भाव बनाता है और कई बार जातक का वह अंग-भंग तक हो जाता है। अतः ऐसी स्थिति में सभी को इन ग्रहों के दान व शांतियाँ अवश्य करवा लेनी चाहिए, इससे इनके अशुभ प्रभाव में बहुत कमी आ जाती है और यह अपना सम्पूर्ण अशुभ फल ना देकर छोटी-मोटी चोट, खरोंच आदि देकर आगे निकल जाते हैं। 

सभी राशि लग्नों पर केतु का फलादेश भी लगभग राहु के सामान अशुभ फल देने वाला ही होगा, ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए इसके अलग से फलादेश करने की आवश्यकता नहीं है। सभी जातक अपनी-अपनी राशि लग्नों पर इसको राहु के जैसा अशुभ फल देने वाला ही मानें। अधिक जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग स्पॉट पर केतु से सम्बंधित दिए गए अन्य ब्लॉग पढ़ें। इसमें 'महामारियों का कारण व निवारण', गोचर में मंगल-केतु युति व 'आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति' अवश्य पढ़ें। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/09/blog-post.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/03/mahamariyon-ka-kaaran-aur-nivaran.html

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/02/blog-post.html

नोट- यहाँ केवल राहु-केतु के राशि परिवर्तन से प्रकट होने वाले परिणामों का वर्णन किया गया है, किसी अन्य ग्रहों के गोचर में राशि परिवर्तन से पड़ने वाले शुभाशुभ परिणामों का नहीं। इसके अतिरिक्त विषय की विस्तारता को ध्यान में रखते हुए इन 18 महीनों में राहु-केतु के साथ ही गोचर में भ्रमण करते हुए अन्य ग्रहों की राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के परिणामों का भी उल्लेख यहाँ पर नहीं किया जा सकता है। यदि संभव हुआ तो आगामी समय में किसी अन्य ब्लॉग के माध्यम से मैं आप सभी के लिए वह फलादेश भी उपलब्ध करवा दूंगा।

राहु-केतु के क्रमशः अपने परम शत्रुओं (मंगल-शुक्र) की राशियों में संचार करने के कारण इन डेढ़ वर्षों में राहु व केतु बहुत उपद्रव मचाने जा रहे हैं जिससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा। 'मेष' राशि हमारे सिर (Head) और 'तुला' राशि हमारे यौन अंगों (Sex Organs) का निर्माण करती है, राहु-केतु का इन राशियों में संचार करना आगामी डेढ़ वर्ष तक विश्व भर में इन अंगों से सम्बंधित रोगियों की मात्रा में भारी वृद्धि करने जा रहा है। इस अवधिकाल में सड़क दुर्घटनाओं में सिर में चोट लगकर मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलेगी। अतः जो लोग सड़क यात्रा के समय मोटरसाईकिल आदि वाहनों का प्रयोग करते हैं वह हेलमेट का प्रयोग अवश्य करें। सेना-पुलिस-अर्ध सैनिक बलों के हमारे जवान भी यथासंभव सिर की चोट से बचने का प्रयास करें। 

यदि किसी जातक की जन्म-कुंडली में राहु व केतु शुभ ग्रहों की राशि में शुभ ग्रहों के साथ स्थित हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का राशि परिवर्तन उतना अनिष्टकारी नहीं होगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अपनी नीच व शत्रु राशियों में पापी अथवा क्रूर ग्रहों के साथ स्थित हुए और उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध होगा।  

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 17 मार्च 2022

देव गुरु 'बृहस्पति' का स्वराशि 'मीन' में प्रवेश

13 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 21 मिनट ('दिल्ली समयानुसार') पर देव गुरु बृहस्पति 'कुंभ' राशि से निकलकर अपनी राशि 'मीन' में प्रवेश करेंगे और यहां वह 22 अप्रैल 2023 को प्रातः 3 बजकर 32 मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात मेष राशि में प्रविष्ट हो जाएंगे। देव गुरु बृहस्पति का स्वग्रही होना देव शक्तियों के जागरण के लिये मार्ग प्रशस्त करने वाला तथा आसुरी शक्तियों को भयाक्रांत करने वाला होगा। इसलिए यह एक वर्ष सनातन धर्म के उत्थान के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रहा है।

लगभग 1 वर्ष 10 दिन का यह अवधिकाल- शिक्षा, ज्ञान, आध्यात्म और बैंक से सम्बंधित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिये अत्यंत शुभ फलदायक होगा। विद्यार्थियों तथा साधकों के लिए भी गुरु का स्वराशि में गोचर बहुत शुभ होगा।

देव गुरु 'बृहस्पति' के 'स्वराशि' में संचार करने के कारण इस एक वर्ष में लगभग 70% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह हो जायेंगे। केवल उन्हीं कन्याओं के विवाह में रुकावटें आयेंगीं जिनकी जन्म-कुंडलियों में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह का कारक 'बृहस्पति' अशुभ स्थिति में होंगे और दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली के उन्हीं अशुभ ग्रहों की चल रही होंगी जिन्होंने सप्तम भाव, सप्तमेश और बृहस्पति को अपने पाप प्रभाव से ग्रसित किया हुआ होगा।

यद्यपि सनातन धर्म की मर्यादा के अनुसार पुत्र एवं पुत्री दोनों की ही प्राप्ति एक समान सुखदायक होती है तथापि बृहस्पति के प्रभाव के कारण इस एक वर्ष में विश्व भर में जन्म लेने वाली लगभग 70% संतानें 'पुत्र' के रूप में जन्म लेंगी । यहाँ तक कि पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों में भी यही अनुपात देखने को मिलेगा।

आइए जानते हैं कि गोचर में बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ेगा।

मेष राशि - मेष लग्न
मेष राशि-मेष लग्न वाले जातकों का गुरु 12वें भाव में संचार करने के कारण जातक का धन शुभ कार्यों में खर्च होगा, दादी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, पिता को प्रॉपर्टी, वाहन का सुख तथा स्वयं को कोर्ट केस से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जो जातक अनिद्रा की समस्या से पीड़ित हैं उन्हें अनिद्रा रोग से मुक्ति मिलेगी और जिन जातकों की आयु का अंतिम पड़ाव आ चुका है और जन्म-कुंडली में भी अकेले बृहस्पति 12वें भाव में स्थित हैं, उन जातकों को मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग की प्राप्ति होगी। बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजे के रोग से सम्बंधित रोगियों को चिकित्सा से लाभ होगा। इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को धन का लाभ होगा।

वृष राशि - वृष लग्न
वृष राशि-वृष लग्न वाले जातकों का बृहस्पति 11वें भाव (लाभ स्थान) में अपनी ही राशि में संचार करने के कारण स्वयं को सभी प्रकार का लाभ होगा तथा इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को स्वास्थ्य एवं आयु का लाभ होगा और उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इन जातकों के ससुराल में प्रॉपर्टी, वाहन आने के योग बनेंगे। पिता को गले-छाती के रोगों की समस्या से तथा स्वयं को पिंडलियों की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माता यदि मरणासन्न अवस्था में हुईं तो गुरु के इस राशिपरिवर्तन के साथ ही वह चमत्कारिक ढंग से ठीक हो जाएंगी। इस राशि-लग्न वाली कन्याओं के विवाह में आ रहे अवरोध अब दूर होंगे।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
मिथुन राशि-मिथुन लग्न वाले जातकों की सरकारी नौकरी से सम्बंधित सभी बाधाएँ दूर होंगी तथा इस राशि-लग्न के जिन जातकों के सरकारी कार्य रुके हुए हैं, अब वह पूर्ण होंगे और प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे । जो लोग राजनीति में हैं वह राजनीति में उच्च पद प्राप्त करेंगे। इनके बृहस्पति के दशम भाव में संचार करने से इनके पिता को वर्ष भर धन की प्राप्ति होती रहेगी। इनके पिता के दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग दूर होंगे तथा इनके जीवन साथी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। सास की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की वृद्धि होगी पंच महापुरुष राजयोग में से एक 'हंसक' नामक राजयोग इनके गोचर से 'दशम भाव' में बनने जा रहा है जो इनको जीवन में नवीन ऊँचाइयाँ प्राप्त करवाने मे सहायक होगा।

कर्क राशि - कर्क लग्न
कर्क राशि-कर्क लग्न वाले जातकों के स्वराशि के गुरु के नवम् भाव में संचार करने के कारण इनके भाग्य में चल रहे सभी अवरोध अब दूर होंगे। इनके पिता को आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। यदि इनकी जन्मकुंडली में नवम् भाव और नवमेश की स्थिति भी शुभ हुई तो इन जातकों की अचानक से धर्म में रूचि बढ़ जाएगी और यह देश के भीतर ही धार्मिक यात्राएँ करेंगे । ईश्वर की कृपा से यह लोग अपने अगले जन्म में मिलने वाले जन्म-स्थान की यात्रा कर सकेंगे जिससे अगला जन्म पाने पर यह ऐसी अनुभूति करेंगे कि वह पहले भी इस स्थान पर आ चुके हैं । इनके ससुराल में धन की वृद्धि होगी, इनके छोटे साला-साली यदि कष्ट में हुए तो उनको उस कष्ट से मुक्ति मिलेगी तथा इनके छोटे मामा-मौसी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। इनके स्वयं के पीठ अथवा कमर की पीड़ा चमत्कारिक ढंग से दूर हो जाएगी और इनकी संतान भाव से पंचम में स्वराशि के गुरु होने से इनकी संतान को प्रतियोगी परीक्षाओं मे सफलता प्राप्त होगी। इनकी माताएँ यदि किडनी, लीवर, आंतो के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अत्यधिक सुधार होगा तथा इनके जीवन साथी के गले-छाती के रोग समाप्त होंगे।

सिंह राशि - सिंह लग्न
सिंह राशि-सिंह लग्न के जो जातक मरणासन्न अवस्था में थे, वह गुरु के इस राशि परिवर्तन वाले दिन से ही चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने आरम्भ हो जायेंगे। स्वराशि के गुरु का इनके अष्टम भाव में गोचर इनके जीवन साथी के धन की वृद्धि करने वाला होगा तथा उनके दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग अब दूर हो जायेंगे। इनकी संतान को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता के बाएं नेत्र के विकार ठीक होंगे और उनका धन शुभ कार्यों में खर्च होगा। यदि इनके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उन्हें अब उसमें विजय प्राप्त होगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माताओ को पेट के रोगों में सुधार देखने को मिलेगा।

कन्या राशि - कन्या लग्न
कन्या राशि-कन्या लग्न वाली 90% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह इस वर्ष हो जायेंगे और इस राशि लग्न वाली जिन स्त्रियों के जीवन साथी के स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहे थे अथवा संबंधों में मतभेद चल रहे थे अब वह ठीक होने लगेंगे। यहाँ तक कि इस राशि-लग्न वाले किसी जातक ने अपने जीवन साथी से तलाक (सनातन हिन्दू संस्कृति में इसके लिए कोई शब्द और स्थान ही नहीं है) के लिए कोर्ट केस किया हुआ है तो वह उसे वापस ले लेंगे। आपके बृहस्पति के कारण आपके जीवन साथी को आयु, मान-सम्मान का भी सुख प्राप्त होगा । इस राशि-लग्न के जातकों के गोचर में सप्तम भाव में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बन जाने से इनके जीवन साथी, ताऊ और बड़ी बुआ को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे तथा इनकी माता को प्रॉपर्टी और वाहन सुख की प्राप्ति के योग बनेंगे।

तुला राशि - तुला लग्न
तुला राशि-तुला लग्न वाले जातकों के गोचर में स्वराशि के गुरु के छठे भाव में संचार करने के कारण ऐसे व्यक्ति अपने पराक्रम और ज्ञान से अपने शत्रुओं को पराजित करेंगे और यदि पराजित कर सकने योग्य ना हुए तो दैवीय शक्तियों की सहायता से इनके शत्रु स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे। इस राशि-लग्न वाले जिन जातकों को किडनी, लिवर, आंतों की समस्या चल रही थी वह अब ठीक होने के योग बनेंगे। इनके छोटा मामा-छोटी मौसी में से यदि कोई मरणासन्न अवस्था में हुआ तो वह अब ठीक होने लगेगा। इनके छोटे भाई-बहनों एवं मित्रों को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि इनकी माता गले छाती के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अब सुधार होगा। इस राशि-लग्न वाले जातकों के पिता के सरकारी कार्यों की रूकावटें दूर होंगी और यदि इनके पिता सरकारी नौकरी में हैं तो उनको प्रमोशन के योग बनेंगे अथवा उन्हें सरकार से कोई सहायता प्राप्त होगी। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के लिए यह समय अत्यंत शुभ है।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न वाले जातकों के बृहस्पति उनके पंचम स्थान में गोचर करेंगे, जिसके कारण उनको संतान की प्राप्ति के प्रबल योग बनेंगे। यदि ये राजनीति में हैं तो इनको मंत्री पद की प्राप्ति के प्रबल योग हैं। इस राशि-लग्न वाले पेट-हार्ट के रोगियों के स्वास्थ्य में भी बहुत सुधार होने के योग बनेंगे। यदि यह विधार्थी हैं तो यह परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होंगे। इनकी माता को धन प्राप्ति के योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब में सुख की वृद्धि होगी। पंचमेश गुरु के अपने ही स्थान में गोचर करने से इस राशि-लग्न के जातकों के प्रेम संबंधों में मधुरता आएगी। यदि किसी की संतान उसको छोड़कर दूर चली गयी है तो उसके भी वापसी के योग बनेंगे। इस समय पर आपके पूर्व जन्म के इष्ट देवता आपको अपनी अनुभूति करवाएंगे, यदि आप साधक हैं तो उनके संकेतों को आपको समझना चाहिए। इस अवधिकाल में आपके इष्ट देवता आपका हर प्रकार से सहयोग करेंगे तथा पूर्व जन्म के परिचित लोगों से आपका मिलना होगा, जिसके कारण आपको अनुभूति होगी कि आप पहले से उन्हें जानते हैं। यदि इस राशि-लग्न में जन्म लेने वाला कोई उच्च कोटि का साधक इस एक वर्ष के अवधिकाल में अपने इष्ट देवता की साधना करेगा तो उसको सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।

धनु राशि - धनु लग्न
धनु राशि-धनु लग्न वाले जातकों के लिये उनके चतुर्थ भाव में 'हंसक'नामक पंच महापुरुष राजयोग बनेगा जो कि इनको वाहन, प्रॉपर्टी और नौकर-चाकरों का सुख प्रदान करने वाला होगा। इनके माता की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की भी वृद्धि होगी, तथा माता से इनके संबंधों में सुधार होगा। केंद्र में स्वराशि के गुरु का संचार इन्हें सभी प्रकार के सुख-संसाधनों का भोग करवाने वाला होगा। यदि इनका किसी सम्पत्ति को लेकर कोई विवाद चल रहा होगा तो उसका भी निस्तारण इसी एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहा है। पिता के स्थान 'नवम् भाव' से अष्टम (उनकी आयु भाव) में गुरु के स्वराशि में संचार होने से यदि किसी के पिता मरणासन्न अवस्था में भी हुए तो वह बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के साथ चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने लगेंगे। इस राशि-लग्न के जातकों के मित्रों और छोटे-भाई बहनों के लिए इस एक वर्ष के अवधिकाल में धन प्राप्ति के बहुत अच्छे योग बनेंगे। यदि आप जनता के बीच जाकर चुनाव लड़ना चाहते हैं तो लड़ सकते हैं, सफलता प्राप्त होने की प्रबल सम्भावना है।

मकर राशि - मकर लग्न
मकर राशि-मकर लग्न के जातकों के बृहस्पति उनके तृतीय भाव में संचार करने से इनके छोटे-भाई बहनों तथा मित्रों की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इस राशि-लग्न के जातकों के विदेश यात्रा के प्रबल योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब और बड़े मामा-बड़ी मौसी के धन की वृद्धि होगी। इनकी माता को यदि उनके बाएं नेत्र, एड़ी-पंजों में कोई समस्या रही हो तो उनको इस समय अपना उपचार करवा लेना चाहिए, लाभ होगा। इनके स्वयं के गले, सीधे हाथ और दाहिने कान में कोई समस्या रही हो तो उसका भी उपचार ये करवा सकते हैं,समस्या ठीक हो जाएगी।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न वाले जातकों के धन-कुटुंब के भाव में स्वराशि का बृहस्पति इन्हें बहुत अधिक धन प्राप्त करवाने जा रहा है, यदि किसी के कुटुंब में कलेश रहते हों तो वहां शांति स्थापित करने का यही समय है। इस एक वर्ष की अवधिकाल में आपके मुख से निकली अनेक बातें सत्य घटित होंगी। यदि आप ज्योतिष का कार्य करते हैं तो यह एक वर्ष आपके मुख से निकली हुई वाणी को सत्य घटित करवाने जा रहा है। आपको आपके बड़े मामा-बड़ी मौसी से अनेक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। आपके बड़े भाई-बहन,चाचा तथा छोटी बुआ को प्रॉपर्टी और वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि किसी की माता को पैर में पीड़ा हो तो उसका भी निवारण होने जा रहा है। किन्तु आपके छठे भाव पर बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि आपके शत्रुओं को ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाली होगी।

मीन राशि - मीन लग्न
मीन राशि-मीन लग्न वाले जातकों के लिए देव गुरु बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन उनके लग्न में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बनाने जा रहा है जिसके कारण इनकी आयु, स्वास्थ्य और मान सम्मान में वृद्धि होगी, यदि आप सरकारी नौकरी में हैं तो आपके प्रमोशन के योग बनेंगे और यदि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं तो यह समय बहुत अनुकूल है। यदि सरकारी ठेके लेते हैं अथवा सरकार से सम्बंधित कोई कार्य करते हैं तो आपको उसमें सफलता मिलेगी। आपके पिता यदि पेट-हार्ट की समस्या अथवा माता घुटनों की समस्या से ग्रसित हों तो उनको इन रोगों में स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होगा। इस राशि लग्न वाले जातकों की माता यदि सरकारी नौकरी में हों तो उन्हें प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे। मीन राशि की उन 90% कन्याओं के विवाह इस एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहे हैं जिनकी जन्मकुंडली में पहले से ही बृहस्पति शुभ स्थिति में हैं और यदि ये पहले से ही विवाहित होंगी तो इनके पति के स्वास्थ्य और उनसे इनके संबंधों में बहुत सुधार देखने को मिलेगा। बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि, पंचम भाव  पर होने से आपको पुत्र प्राप्ति के प्रबल योग हैं।


नोट- इस फलादेश का इस एक वर्ष में गुरु के साथ विभिन्न ग्रहों की युति-दृष्टि से जातकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही गोचर में होने वाले अन्य ग्रहों के राशि परिवर्तनों का। यहाँ केवल बृहस्पति के अपनी राशि 'मीन' में होने के फलादेश का वर्णन किया जा रहा है।

इसके अतिरिक्त यदि इन राशि-लग्नों में जन्म लेने वाले किसी जातक की स्वयं की जन्म-कुंडली में बृहस्पति ग्रह अपनी शत्रु राशि, नीचराशि अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव की स्थिति में होंगे तथा उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी, तो उन्हें इन सब उत्तम फलों की प्राप्ति नहीं होगी अथवा कम होगी।

इसके विपरीत जिन जातकों की जन्म-कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थानों के स्वामी होकर अपने मित्र या उच्च राशि में स्थित होकर शुभ प्रभाव में होंगे तथा उन्होंने उसका रत्न आदि धारण करके उसे शक्ति प्रदान की हुई होगी, उनके लिये बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन अत्यंत शुभ प्रदान करने वाला होगा।
'शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava