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बुधवार, 27 सितंबर 2023

मंगल-केतु युति २०२३



३ अक्टूबर २०२३ को मंगल द्वारा चित्रा नक्षत्र के तृतीय चरण में प्रवेश के साथ ही 'तुला राशि' में मंगल–केतु का योग बनने जा रहा है जो कि लगभग २८ दिनों का होगा । इस अवधिकाल में विश्वभर में अनेक अमंगलकारी घटनाएं घटित होंगी ।

मंगल ग्रहों का सेनापति होता है, जब भी यह गोचर में पापी ग्रहों की युति अथवा दृष्टि से पीड़ित होता है तो विश्वभर में सेना तथा सेनापतियों को हानि उठानी पड़ती है ।

इधर १७–१८ अक्टूबर की मध्य रात्रि को ग्रहों के राजा सूर्य भी अपनी नीच राशि 'तुला' में संचार करने लगेंगे और वह वहां पहले से ही स्थित केतु की युति तथा राहु की दृष्टि में आ जाएंगे अर्थात् ग्रहों का सेनापति और राजा दोनों ही पाप प्रभाव में आकर पीड़ित होने से शासन तंत्रों के विरुद्ध अराजक तत्वों का उदय होगा, जिसके कारण विश्व भर में अशांति व्याप्त होगी और शासकों तथा सेना के लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण रहेगा ।

भारत के संदर्भ में यह समय और भी चुनौतीपूर्ण इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यहां पहले से ही अनेक अराजक और देशद्रोही तत्वों का जमावड़ा बना रहता है जो निरन्तर विदेशी पैशाचिक शक्तियों के सहयोग से सनातन धर्म को हानि पहुंचाने की चेष्टा करते रहते हैं तथा पिछले ९ वर्षों में राष्ट्रवादी सरकार द्वारा खाद-पानी न दिए जाने के कारण अपने बिलों से बाहर निकलने के लिए कुलबुला रहे हैं अतः २८ दिन के इस अवधिकाल में हमारी सेना, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिस प्रशासन से जुड़े लोगों को विशेष सावधानी रखनी चाहिए, जिससे कोई भी अराजक तत्व भारत में किसी भी प्रकार का उपद्रव न मचा सके ।

विद्वान मनुष्यों को २८ दिन के इस अवधिकाल में अपनी कोई शल्य चिकित्सा (Operation) करवाने, छोटे वाहनों से लंबी दूरी की यात्रा करने अथवा अपने बच्चे का जन्म (Delivery) करवाने से 'यथासंभव' बचना चाहिए ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों को गोचर में २८ दिनों के लिए बनने वाली इस मंगल-केतु युति से निम्नलिखित फल प्राप्त हो सकते हैं ।

मेष राशि- मेष लग्न
आपकी जन्म कुंडली के सप्तम भाव में बनने जा रहे इस योग से आपके वैवाहिक जीवन में कोई नई समस्या उत्पन्न हो सकती है अतः विवाद की स्थिति से बचें, व्यापार से जुड़े हुए जातक अपने व्यापार तथा पार्टनरशिप में सावधानी रखें । सिर की चोट से बचें ।

वृष राशि-वृष लग्न
२८ दिन के इस अवधिकाल में यथासंभव लंबी दूरी की यात्रा करने से बचें । गुप्त शत्रुओं से आपको सावधान रहने की आवश्यकता है । अपने जीवन साथी के साथ इन २८ दिनों में कोई यात्रा न करें तथा उनके स्वास्थ्य का ध्यान 
रखें ।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
आपको अपनी संतानों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए,पेट तथा हृदय रोगी अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें तथा इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं इन २८ दिनों में विशेष सावधानी रखें । अपने बड़े भाई-बहनों को अनावश्यक यात्रा (विशेषकर उत्तर-पश्चिम दिशा की) न करने दें ।

कर्क राशि- कर्क लग्न
आपकी जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में मंगल-केतु का योग आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए विपरीत फल देने वाला हो सकता है l यदि आप कोई नया भवन, भूमि, वाहन लेने जा रहे हैं तो आपको इन २८ दिनों के व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए । आपके सेवकों को कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपको तथा आपकी संतान को वाहन चलाते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्कता है, आपकी संतान इस अवधिकाल में उत्तर दिशा की यात्रा भूलकर भी न करें ।

सिंह राशि- सिंह लग्न
छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंधों में मधुरता रहे इसका ध्यान रखें । कान और गले के रोगी  इस समय अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें । यह समय पराक्रम दिखाने का नहीं है अतः व्यर्थ के विवाद टाल दें । आपके माता-पिता को इस समय लंबी दूरी की यात्रा (विशेषकर उत्तर-पूर्व दिशा की) नहीं करनी चाहिए ।

कन्या राशि-कन्या लग्न
इन २८ दिनों में अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा अपनी वाणी के कारण विवाद में पड़ जाएंगे । अपने कुटुंब में  क्लेश की स्थिति उत्पन्न न होने दें ।  यदि आपके दांतों का कोई उपचार चल रहा है तो सावधानी से उपचार करवाएं । इन २८ दिनों में अनावश्यक लेन-देन से बचें अन्यथा कोई धन हानि हो सकती है । अपने दक्षिण नेत्र को 
शुद्ध जल से धोते रहें ।

तुला राशि-तुला लग्न
मंगल-केतु का यह योग आपके सिर के स्थान पर बनने से व्यर्थ की चिंताएं आपको घेर सकती हैं, यथासंभव आपको सिर की चोट आदि से बचना चाहिए । क्रोध में अपना आवेश न खोएं, जीवन साथी से विवाद की स्थिति को इन २८ दिनों के लिए टाल दें ।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
चिकित्सालय अथवा न्यायालय में आपका धन का व्यय न हो इसके लिए मंगल-केतु के मंत्रों का जाप करें, आपकी दादी के लिए ये समय कष्टकारी है । व्यर्थ के विवाद को अधिक न बढ़ाएं अन्यथा न्यायालय द्वारा दंडित किए जा सकते हैं । अपने वाम नेत्र को शुद्ध जल से धोते रहें । पैरों के नाखूनों को अच्छे से काट कर रखें अन्यथा उसमें चोट लगने की संभावना है।

धनु राशि-धनु लग्न
बड़े भाई-बहनों का स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंध मधुर बने रहें इसका ध्यान रखें । हृदय तथा पेट के रोगी अपने चिकित्सकों से परामर्श करते रहें तथा संतान के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें । इन २८ दिनों में अपने छोटे बच्चों को वाहन आदि देने से आपको बचना चाहिए ।

मकर राशि-मकर लग्न
इस राशि-लग्न वाले जो जातक शासन तंत्र के आधीन कार्यरत हैं उन्हें विशेष सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा किसी विवाद में पड़ने से मानसिक चिंताएं बढ़ सकती हैं ।जो लोग सरकारी ठेके आदि लेते हैं उनके लिए भी २८ दिन का यह समय उत्तम नहीं है । घुटने तथा छाती की चोट आदि समस्या से आपको बचना चाहिए । माता तथा बड़े भाई- बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । अपनी माता तथा अपने बड़े भाई-बहनों को दक्षिण दिशा की यात्रा न करने दें ।

कुंभ राशि-कुंभ लग्न
आपको तथा आपके छोटे भाई-बहनों को इन २८ दिनों में  अनावश्यक यात्राओं( विशेषकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की) से बचना चाहिए । पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । पढ़ते-लिखते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधे करके उचित अवस्था में बैठें । २८ दिन का यह समय काल आपके भाग्य के लिए अच्छा नहीं है अतः कोई नवीन कार्य करने के लिए इस समय के निकलने की प्रतीक्षा करें ।

मीन राशि-मीन लग्न
धन के अपव्यय से बचें तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, आपको भी अपनी पीठ तथा कटिबंध स्थान का ध्यान रखना चाहिए । भारी वस्तुएं उठाने से बचें तथा अपने पिता को किसी भी परिस्थिति में दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा न करने दें । इन २८ दिनों में आपके पिता को घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में निवास करने से बचना चाहिए ।

मंगल-केतु की युति के विषय में पूर्व में मेरा एक ब्लॉग आ चुका है और उसमें तब मैने जो भी Prediction की थीं वह सभी सत्य घटित हुई थीं । ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन कर रहे विद्वान मेरे पुराने ब्लॉग को पढ़कर इन २८ दिनों में घटित होने जा रही घटनाओं का पूर्व अनुमान लगा सकते हैं। मंगल-केतु युति के ऊपर मेरे पुराने ब्लॉग का लिंक—

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में मंगल व केतु पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ प्रभाव में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति इतनी अमंगलकारी नहीं होगी जितना कि उपरोक्त फलादेश में बताया गया है किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में मंगल और केतु पहले से ही अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पाप अथवा क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हुए तथा उन पर किसी भी प्रकार की शुभ दृष्टि न हुई और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी । ऐसे जातकों को अपने-अपने अधिकार की सीमा में भगवान् शंकर तथा हनुमान जी की उपासना करने से किसी भी प्रकार की कोई भी हानि नहीं होगी ।

"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

भगवान् श्री कृष्ण की शिव भक्ति...



 भगवान् शंकर और मां भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं कलियुग के दक्ष बन चुके एक शिव-शक्ति निंदक अधर्मी Cult के मिथ्या प्रचार का अंत करने जा रहा हूँ जो भगवान् श्री कृष्ण को सर्वशक्तिमान परमेश्वर बताकर और उनकी आड़ लेकर भगवान् शंकर और माता भवानी का निरन्तर अपमान करता रहता है ।

इस Cult के अधर्मी तत्व अपनी अधर्म की दुकान चलाने के लिए इतने निम्न स्तर तक गिर चुके हैं कि वह अब सनातन धर्म में हस्तक्षेप करते हुए हमारे उच्च कोटि के देवी-देवताओं को भी नीचा दिखाने से पीछे नहीं हट रहे।
(इस cult के द्वारा किए गए मिथ्या प्रचार के खंडन पर मेरे अन्य ब्लॉग भी देखें)—




'श्रीमद्भगवतगीता' के कुछ श्लोकों का उदाहरण प्रस्तुत करके इस कलियुगी cult के चेले, अन्य देवी-देवताओं को तुच्छ बताने का प्रयास करते समय यह भूल जाते हैं कि 'भगवद्गीता' भी 'महाभारत' ग्रंथ का ही एक अंश है (जैसे जल की एक बूंद महासमुद्र का एक अंश मात्र होती है) जिसमें अनेक स्थानों पर श्री कृष्ण-अर्जुन द्वारा शिव-शक्ति, देवी दुर्गा आदि का पूजन करने का विवरण हमें प्राप्त होता है । अतः इन अधर्मियों को उत्तर देने के लिए आज मैं पवित्र महाभारत ग्रंथ में से ही भगवान् श्री कृष्ण द्वारा शिव भक्ति करने के प्रमाण प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

श्री कृष्ण युधिष्ठिर संवाद— श्री कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को अपनी शिव भक्ति के विषय में कहना {श्री महाभारत अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दान-धर्म-पर्व में मेघवाहन पर्व के अध्याय १८ की श्लोक संख्या 👉३५-३६}

वासुदेवस्तदोवाच पुनर्मतिमतां वरः ।
सुवर्णाक्षो महादेवस्तपसा तोषितो मया ॥ ३० ।।
उस समय बुद्धिमानों में श्रेष्ठ भगवान् श्रीकृष्ण फिर इस प्रकार बोले— "मैंने सुवर्ण-जैसे नेत्रवाले महादेव जी को अपनी तपस्या से संतुष्ट किया  । ३० ।।

ततोऽथ भगवानाह प्रीतो मां वै युधिष्ठिर ।
अर्थात् प्रियतरः कृष्ण मत्प्रसादाद् भविष्यसि ।। ३१ ।।
" युधिष्ठिर! तब भगवान् शिव ने मुझसे प्रसन्नतापूर्वक कहा— 'श्रीकृष्ण ! तुम मेरी कृपा से प्रिय पदार्थों की अपेक्षा भी अत्यन्त प्रिय होओगे.... । ३१।।

अपराजितश्च युद्धेषु तेजश्चैवानलोपमम् ।
एवं सहस्रशश्चान्यान् महादेवो वरं ददौ ।। ३२ ।।
युद्ध में तुम्हारी कभी पराजय नहीं होगी तथा तुम्हें अग्नि के समान दुस्सह तेज की प्राप्ति होगी'। इस तरह महादेव जी ने मुझे और भी सहस्त्रों वर दिए । (इसी कारण यदि कभी भी भगवान् शंकर प्रेमवश श्री कृष्ण से किसी युद्ध में पराजित हो जाते हैं तो इसमें किसी भी प्रकार के आश्चर्य की कोई बात नहीं है अपितु इसे भगवान् शंकर द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया वरदान ही समझना चाहिए) ।। ३२ ।।

मणिमन्थेऽथ शैले वै पुरा सम्पूजितो मया ।
वर्षायुतसहस्राणां सहस्रं शतमेव च ।। ३३ ।।
"केवल इसी अवतार में नहीं अपितु पूर्वकाल में अन्य अवतारों के समय भी मणिमन्थ पर्वत पर मैंने लाखों-करोड़ों वर्षों तक महादेव की आराधना की थी ।। ३३ ।।

ततो मां भगवान् प्रीत इदं वचनमब्रवीत् ।
वरं वृणीष्व भद्रं ते यस्ते मनसि वर्तते ॥ ३४ ।।
“इससे प्रसन्न होकर भगवान् ने मुझसे कहा – 'कृष्ण! तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन से जैसी रुचि हो, उसके अनुसार कोई वर माँगो' ।। ३४ ।।

ततः प्रणम्य शिरसा इदं वचनमब्रुवम् ।
यदि प्रीतो महादेवो भक्त्या परमया प्रभुः ।। ३५ ।।
नित्यकालं तवेशान भक्तिर्भवतु मे स्थिरा ।
एवमस्त्विति भगवांस्तत्रोक्त्वान्तरधीयत ।। ३६ ।।
"यह सुनकर मैंने मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और कहा- 'यदि मेरी परम भक्ति से भगवान् महादेव प्रसन्न हों तो समस्त विद्याओं के ईश्वर तथा सब के ऊपर शासन करने वाले ईशान! आपके प्रति नित्य-निरन्तर मेरी स्थिर भक्ति बनी रहे।' तब 'एवमस्तु' कहकर भगवान् शिव वहीं अन्तर्धान हो गये" ।। ३५-३६ ।।

इस प्रकार महाभारत ग्रंथ में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा बोले गए इन वचनों से यह सिद्ध होता है कि अपनी ही योगमाया से मनुष्य शरीर धारण किए हुए स्वयं भगवान् श्री हरि विष्णु, श्री कृष्ण के रूप में भगवान् शंकर की आराधना किया करते थे ।


यही नहीं यदि इसी अनुशासन पर्व के अन्तर्गत दान-धर्म-पर्व के मेघवाहन पर्व के ही १५वें अध्याय को आप पढ़ेंगे तो उससे आपको यह ज्ञात होता है कि भगवान् श्री कृष्ण ने भगवान् शंकर सहित माता भवानी की भी घोर तपस्या करके उनसे भी ८ प्रकार के वर प्राप्त किए थे ।

आशा करता हूँ कि मेरे इस ब्लॉग को पढ़ने के उपरान्त कोई भी 'सनातन धर्मी' हमारे उच्च कोटि के देवी-देवताओं के प्रति किए जा रहे विष-वमन में सहायक नहीं बनेगा । चाहे वह विष-वमन अपनी उदर पूर्ति के लिए धार्मिक टीवी सीरियल बनाने वाले निर्माताओं के द्वारा किया जा रहा हो अथवा अपने cult के अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से किसी cult के 'अधर्म' गुरुओं द्वारा ।

—Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

पशुओं के अकारण रोने का रहस्य...

 प्रायः देखने में आता है जब कभी हमारे घर के आसपास कोई कुत्ता,बिल्ली आदि पशु यदि असमय ही विलाप करने लगते हैं तो हमारे घर के बड़े बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि कोई अशुभ घटना घटित होने वाली है, क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि का रोना शुभ नहीं माना जाता।


मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति से प्राप्त शिक्षा के कारण हिन्दू युवा पीढ़ी उनकी इन बातों को अंधविश्वास का नाम देकर उनका उपहास उड़ाती है। ऐसे में क्या इन जानवरों के रोने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार छुपा हुआ है या हमारे बड़े बुजुर्ग अंधविश्वासी हैं ? आइये जानते हैं...

मनुष्य अपने नेत्रों से वैज्ञानिकों द्वारा ज्ञात Electromagnetic Spectrum के एक छोटे से अंश को ही देख पाता है । इस Visible light Spectrum की सीमा 380 नैनोमीटर से लेकर 750 नैनोमीटर तक ही होती है, जिसमें 7 रंगों का समावेश होता है, जिसका संयुक्त स्वरूप हमें श्वेत रंग के रूप में प्राप्त होता है।


जबकि बहुत सारे पशु-पक्षी और यहां तक कि मछलियां तक इस सीमा से पार भी देख पाते हैं, ऐसे में वह उन शक्तियों को देख लेते हैं जिनको मनुष्य अपने नग्न नेत्रों से नहीं देख पाता और वह पशु-पक्षी भयभीत या विचलित होकर असामान्य सा व्यवहार करने लगते हैं।

जब भी किसी स्थान पर निकट भविष्य में किसी की मृत्यु होने वाली होती है अथवा भयानक आपदा आने वाली होती है तो वहां के वातावरण में एक प्रकार की खिन्नता छा जाती है, जिसका कारण है कि वह स्थान उसके मृत सगे सम्बन्धियों, मृत शुभचिंतकों एवं मित्रों की आत्माओं से भर जाता है और वह आत्माएं उसे अपने साथ ले जाने के लिए वहीं एकत्र हो जाती हैं।


जिसके कारण अनेक बार मरणासन्न व्यक्ति मूर्छा की अवस्था में अपने परिवारजनों को यह बताये हुए देखा जाता है कि मुझे लेने मेरे मरे हुए मित्र या सगे सम्बन्धी आये हुए हैं और मुझे बुला रहे हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार मृत व्यक्तियों को लेने के लिए हमें यमदूतों के आने का भी विवरण प्राप्त होता है। ऐसे में यह दृश्य देखकर कुत्ते, बिल्ली आदि पशु रोने तथा विचित्र प्रकार का क्रंदन करने लगते हैं।

अनेक बार जब मौसम वैज्ञानिकों ने ऐसे जीवों के व्यवहार का अध्ययन किया तो यहां तक पाया कि जब भी कोई भूकम्प, सूनामी या चक्रवात आदि आने वाले होते हैं जो अनेक जीव पहले से ही असामान्य व्यवहार करने लगते हैं जिसका कारण उनके Sensors का हमारे Sensors से अधिक Active (जाग्रत) होना होता है। उदाहरण स्वरूप- वर्षा आने से पूर्व चींटियों का अपने अंडे लेकर उस स्थान को छोड़ देना ।

बहुत सारे अज्ञानी मनुष्य जो आत्माओं पर विश्वास नहीं करते उनको यह अवश्य जान लेना चाहिए कि Energy (ऊर्जा) कभी समाप्त नहीं होती, बस वह एक स्वरूप (Form) से दूसरे स्वरूप में परिवर्तित हो जाती है और आत्मा भी एक Energy ही है, जो कभी नष्ट नहीं होती, बस शरीर बदलती रहती है। इसलिए श्रीमद्भागवत् गीता में आत्मा के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि...


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
    तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
अर्थात-
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
           न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।2.23।।
अर्थात-
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है ; जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।

अब अपने विषय पर पुनः लौटते हुए बात करते हैं उन पशुओं की जिनके व्यवहार में हम अचानक से ऐसे परिवर्तन देखते हैं।

ऐसे पशुओं के व्यवहार में अचानक से आये इन परिवर्तनों का कारण यदि उनका चोटिल हो जाना, उनके बच्चे आदि की मृत्यु हो जाना हो तब तो यह सामान्य बात है परंतु यदि यह कारण नहीं है तो समझ लेना चाहिये कि कुछ ही समय में कोई विपत्ति आने वाली है।

ऐसे में उन पशुओं को वहां से भगाने के स्थान पर अपनी तथा घर की Aura (आभामंडल) को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए तथा पहले से ही जिनके आधीन ब्रह्मांड की समस्त नकारात्मक शक्तियां रहती हैं ऐसे कालों के भी काल, भगवान शंकर का भवानी सहित ध्यान करके उनसे विपत्ति को टालने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

बुध का अपनी नीच राशि मीन में प्रवेश

 


बुध ग्रह 1 अप्रैल 2021 से लेकर 16 अप्रैल 2021 तक अपनी नीच राशि 'मीन' में स्थित रहेंगे, जिसमें वह वहीं पहले से संचार कर रहे 'उच्च के शुक्र' से युति करके कुछ राशियों के लिए नीचभंग राजयोग तो बनाएंगे परंतु अपने से सम्बंधित रोग भी देंगे।


बुध का यह 16 दिनों का अपनी नीच राशि में गोचर जीवों में गले, श्वांस, त्वचा और मस्तिष्क से सम्बंधित रोगों में वृद्धि तथा वाणी से सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न करेगा।

अतः जो व्यक्ति पहले से ही इनसे सम्बंधित रोगों से ग्रसित हैं वह अपने चिकित्सकों से परामर्श करके अपनी जांच करवा लें, जिससे समय पर उनको सही उपचार मिल सके।

{बुध के मीन राशि में संचार का 12 लग्नों एवं राशियों पर पड़ने वाला प्रभाव}

(मेष लग्न-मेष राशि)
आपके लिए बुध का यह गोचर आपके छोटे भाई बहनों के लिए अशुभ रहेगा, आप गले की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं।

(वृष लग्न-वृष राशि)
बुध का यह गोचर आपको अकस्मात धन लाभ दे सकता है परंतु पेट तथा संतान के लिए शुभ नहीं है, अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें।

(मिथुन लग्न-मिथुन राशि)
यदि संभव हो तो इन 16 दिनों के लिए अपने सरकारी कार्यों को टाल दें तथा भूमि, वाहन का क्रय-विक्रय करने से बचें।

(कर्क लग्न-कर्क राशि)
विदेश यात्रा से बचें तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

(सिंह लग्न-सिंह राशि)
ससुराल पक्ष से विवाद करने की स्थिति से बचें तथा बड़े भाई- बहन के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(कन्या लग्न-कन्या राशि)
जीवन साथी तथा नौकरी से अकस्मात लाभ हो सकता है परंतु जीवन साथी के स्वास्थ्य के लिए यह समय शुभ नहीं है।

(तुला लग्न-तुला राशि)
पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(वृश्चिक लग्न-वृश्चिक राशि)
शेयर मार्केट से अकस्मात ही धन की प्राप्ति हो सकती है परंतु अपने उदर तथा संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(धनु लग्न-धनु राशि)
जीवन साथी से भूमि तथा वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे परंतु माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(मकर लग्न-मकर राशि)
यद्द्पि इस लग्न-राशि के निर्यातकों को इस अवधि काल में विदेशों में कर्ज देने से बचना चाहिए तथापि उनका विदेशों से भाग्योदय होगा।

(कुम्भ लग्न- कुम्भ राशि)
इस लग्न-राशि के जातकों की संतान को धन लाभ होने की प्रबल संभावना रहेगी परंतु कुटुंब में किसी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है। इस लग्न-राशि के जातकों को इस 16 दिन की अवधि काल में मुख से सम्बंधित कोई रोग प्रकट हो सकता है।

(मीन लग्न-मीन राशि)
विदेश यात्रा से धन लाभ होगा परंतु स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

विशेष-
जिन जातकों की जन्मकुंडली में बुध शुभ स्थिति में है और उन्होंने किसी 'ज्योतिष और रत्न विशेषज्ञ' के परामर्श से 'पन्ना रत्न' धारण किया हुआ है उनको चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, उनके लिए बुध का यह गोचर अन्य की अपेक्षाकृत कम समस्याएं लेकर आएगा।

जो जातक अपनी जन्म-कुंडली में बुध की अशुभ स्थिति में होने के कारण पन्ना धारण नहीं कर सकते, वह बुध ग्रह के दान करें, हरे वस्त्रों का प्रयोग न करें तथा श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ एवम गणेश जी की आराधना करें।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

जीवांश-परमात्मांश रहस्य


 भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुए तथा पराशर ऋषि को प्रणाम करते हुए मैं उन्ही के शब्दों में जीवांश एवं परमात्मांश तत्व का रहस्य प्रकट करने जा रहा हूँ।


मैत्रेय उवाच
रामकृष्णादयो ये ये ह्यवतारा रमापतेः ।
तेSपि जीवांशसंयुक्ताः किं वा ब्रूहि मुनीश्वर !।।
मैत्रेय जी ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! राम, कृष्ण आदि जो परमात्मा के अवतार हैं, क्या वे भी जीवांश से युक्त हैं ?


पराशर उवाच
रामः कृष्णश्च भो विप्र ! नृसिंहः सूकरस्तथा ।
एते पूर्णावताराश्च ह्यन्ये जीवांशकान्विताः ।।
महर्षि पराशर जी ने कहा- हे विप्र ! राम, कृष्ण, नृसिंह तथा वराह-- ये चार पूर्ण अवतार हैं और इससे भिन्न जो अवतार हैं, वे सभी जीवांश से युक्त होते हैं ।


अवताराण्यनेकानि ह्यजस्य परमात्मनः ।
जीवानां कर्मफलदो ग्रहरूपी जनार्दनः ।।
दैत्यानां बलनाशाय देवानां बलवृद्धये ।
धर्मसंस्थापनार्थाय ग्रहाज्जाताः शुभाः क्रमात् ।।
अजन्मा परमेश्वर के अनेक अवतार हैं और उनमें से जीवों के लिए स्वकर्मानुसार फलदायक के रूप में ग्रहस्वरूप जनार्दननामक अवतार है । दैत्यों के बल- नाशार्थ, देवों के बल- वृद्धयर्थ और धर्म स्थापन के लिए उक्त सूर्यादि ग्रहों से ही शुभप्रद अवतार हुए हैं।


यथा--
रामोSवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः ।
नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च ।।
वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च ।
कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः ।।
केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेSपि खेटजाः।
परात्मांशोSधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधाः ।
जैसे -- सूर्य से श्रीराम का, चंद्रमा से श्रीकृष्ण का, मंगल से श्रीनृसिंह का, बुध से बुद्ध का, गुरु से वामन का, शुक्र से भार्गव परशुराम जी का, शनि से कूर्म का, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुआ है । इसके अतिरिक्त जितने भी अवतार हैं वे भी ग्रहों से ही अवतीर्ण हुए हैं । उनमें से जिसमे परमात्मांश अधिक है, वे खेचर अर्थात् देवता कहलाते हैं ।


जीवांशो ह्यधिको येषु जीवास्ते वै प्रकीर्तिताः ।
सूर्यादिभ्यो ग्रहेभ्यश्च परमात्मांशनिः सृताः ।।
रामकृष्णादयः सर्वे ह्यवतारा भवन्ति वै ।
तत्रैव ते विलीयन्ते पुनः कार्योत्तरे सदा ।।
जीवांशनिः सृतास्तेषां तेभ्यो जाता नरादयः ।
तेSपि तत्रैव लीयन्ते तेSव्यक्ते समयन्ति हि ।।
इदं ते कथितं विप्र ! सर्वं यस्मिन् भवेदिति ।
भूतान्यपि भविष्यन्ति तत्तज्जानन्ति तद्विदः ।।
विना तज्जयौतिषं नान्यो ज्ञातुं शक्नोति कर्हिचित् ।
तस्मादवश्यमध्येयं ब्रह्माणैश्च विशेषतः ।।
यो नरः शास्त्रमज्ञात्वा ज्यौतिषं खलु निन्दति ।
रौरवं नरकं भुक्त्वा चान्धत्वं चान्यजन्मनि ।।
जिनमें अधिक जीवांश है, वे जीव कहलाते हैं । सूर्यादि ग्रहों से अधिक परमात्मांश निकलकर राम, कृष्ण आदि अवतार होते हैं । फिर वे अपने-अपने कार्य को सुसम्पन्न करके सूर्यादि ग्रहों में ही लीन हो जाते हैं । साथ ही सूर्यादि ग्रहों से ही जीवांश निकलकर मनुष्यादि जीवों में प्रवेश करता है, जो जीवांश कहलाता है । वे भी अपने शुभाशुभ कर्मों को भोग कर अन्त में उन्हीं ग्रहों में लीन हो जाते हैं । प्रलयकाल के समय में वे सूर्यादि ग्रह भी अव्यक्त परमात्मा में ही लीन हो जाते हैं । इस प्रकार सृष्टि और प्रलय जिन-जिन समयों में होता है अथवा होने वाला होता है , उन सबको वे ही अच्छी प्रकार जान सकते हैं । यह समस्त ज्ञान ज्योतिषशास्त्र के बिना कोई जान नहीं सकता । इसलिये सभी को विशेषकर विप्रों को ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए ।
जो मानव ज्योतिषशास्त्र को अच्छी प्रकार न समझकर उसकी निंदा करता है, वह रौरव नामक नरक में वास करके अन्धा होकर जन्म ग्रहण करता है।।

"शिवार्पणमस्तु "

-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

आयुर्दाय



ज्योतिष शास्त्र के महान ऋषि 'पराशर जी' अपने दिव्य ग्रन्थ 'बृहत्पाराशर होरा शास्त्र' में ऋषि मैत्रेय जी को संबोधित करते हुए कहते हैं-

अथाS न्यदपि वक्ष्यामि द्विज ! मारकलक्षणम् ।
त्रिविधाश्चायुषो योगाः स्वलपायुर्ममध्यमोत्तमाः ।।

द्वात्रिंशत् पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततः परम् ।
चतुष्षष्टयाः पुरस्तात्तु  ततो दीर्घमुदाहृतम् ।।

उत्तमायुः शतादूर्ध्वं ज्ञातव्यं द्विजसत्तम ! ।
जनैर्विंशतिवर्षान्तमायुर्ज्ञातुं न शक्यते ।।

जप - होम - चिकित्साधैर्बालरक्षां हि कारयेत् ।
म्रियन्ते पितृदोषैश्च केचिन्मातृग्रहैरपि ।।

केचित् स्वारिष्टयोगाच्च त्रिविधा बालमृत्यवः ।
ततः परं नृणामायुर्गणयेद् द्विजसत्तम ! ।।


हे द्विज ! और भी मारक ग्रह के लक्षण कहता हूँ ।
पूर्व में जो अल्पायु, मध्यमायु और पूर्णायु - यह तीन प्रकार का आयुर्दाय बताया गया है, उसमें ३२ वर्ष से पूर्व अल्पायु, तदन्तर ६४ वर्ष पर्यन्त मध्यमायु और उसके बाद १०० वर्ष तक दीर्घायु तथा १०० वर्ष से ऊपर उत्तमायु जानना चाहिये ।

२० वर्ष तक जातकों के आयुर्दाय का निर्धारण करना कठिन होता है । अतः जन्म से २० वर्ष तक पापग्रहों से रक्षा हेतु जप-होम-चिकित्सादि द्वारा जातक की रक्षा करनी चाहिये ।

२० वर्ष तक कोई पिता के दोष से, कोई माता के दोष से, कोई अपने पूर्वार्जित कुकर्म से उत्पन्न अरिष्ट योगों से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । अतः बाल्यावस्था में मरण के तीन कारण होते हैं । इसलिये २० वर्ष के बाद ही आयुर्दाय का गणित करके आयु का निर्धारण करना चाहिये ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 5 अगस्त 2020

महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र


सनातन धर्म में एक महान् धार्मिक ग्रन्थ श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है  जिसका नाम है 'महाभारत'। इस दिव्य ग्रन्थ के रचयिता हैं ज्योतिष शास्त्र के महान ज्ञाता 'ऋषि पाराशर' के पुत्र 'महर्षि वेदव्यास'।

महर्षि वेदव्यास जी भगवान विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। उनका जन्म द्वीप में हुआ था, अत: उनका नाम द्वैपायन पड़ा। उनका शरीर श्याम वर्ण का था, इसलिए वह कृष्ण द्वैपायन भी कहलाये । वेदों के विभाग करने के कारण उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा। बद्रीवन में निवास करने के कारण बादरायण भी कहलाये । वे महामुनि 'पराशर' के पुत्र थे और उनकी माता का नाम 'सत्यवती' था।

वेदव्यास जी ने ब्रह्मसूत्र की रचना के साथ-साथ 18 पुराण तथा उपपुराणों की रचना भी की है । परन्तु मैं यहां उनके द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र का वर्णन करने जा रहा हूँ, जिसके विधिवत् पाठ करने से निकलने वाली ध्वनि तरंगों की ऊर्जा से सभी ग्रहों से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।


|| नवग्रह स्तोत्र ||

श्री गणेशाय नमः
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् |
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् || १ ||

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् |
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् || २ ||

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् |
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् || ३ ||

प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् |
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् || ४ ||

देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् |
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् || ५ ||

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् |
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् || ६ ||

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् || ७ ||

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् |
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् || ८ ||

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् |
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् || ९ ||

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः |
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति || १० ||

नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् |
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् || ११ ||

ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः |
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः || १२ ||

|| इति श्री वेद व्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ||


जो जपापुष्प के समान अरुणिम आभावाले , महान् तेज से सम्पन्न , अन्धकार के विनाशक , सभी पापों को दूर करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं , उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो दधि , शंख तथा हिम के समान आभा वाले , क्षीर समुद्र से प्रादुर्भूत , भगवान् शंकर के शिरोभूषण तथा अमृतस्वरूप हैं , उन चन्द्रमा को मैं नमस्कार करता हूँ।

जो पृथ्वी देवी से उद्भूत, विद्युत् की कान्तिके समान प्रभा वाले, कुमारावस्था वाले तथा हाथ में शक्ति लिये हुए हैं , उन मंगल को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो प्रियंगु लता की कली के समान गहरे हरित वर्ण वाले, अतुलनीय सौन्दर्य वाले तथा सौम्यगुण से सम्पन्न हैं , उन चन्द्रमा के पुत्र बुध को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं , स्वर्णिम आभा वाले हैं, ज्ञानसे सम्पन्न हैं तथा तीनों लोकों के स्वामी हैं, उन बृहस्पति को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो हिम, कुन्दपुष्प तथा कमलनाल के तन्तु के समान श्वेत आभा वाले, दैत्यों के परम गुरु, सभी शास्त्रों के उपदेष्टा तथा महर्षि भृगु के पुत्र हैं, उन शुक्र को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो नीले कज्जलके समान आभा वाले , सूर्य के पुत्र , यमराज के ज्येष्ठ भ्राता तथा सूर्य पत्नी छाया तथा मार्तण्ड ( सूर्य ) – से उत्पन्न हैं , उन शनैश्चर को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो आधे शरीरवाले हैं , महान् पराक्रम से सम्पन्न हैं , सूर्य तथा चन्द्र को ग्रसने वाले हैं तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं , उन राहु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

पलाशपुष्पके समान जिनकी आभा हैं , जो रुद्रस्वभाव वाले और रुद्र के पुत्र हैं , भयंकर हैं , तारकादि ग्रहों में प्रधान हैं , उन केतु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

भगवान् वेदव्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति का जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित्त होकर पाठ करता है , उसके समस्त विघ्न शान्त हो जाते हैं ।

स्त्री – पुरुष और राजाओंके दुःस्वप्नोंका नाश हो जाता है । पाठ करने वालों को अतुलनीय ऐश्वर्य और आरोग्य प्राप्त होता है तथा उनके पुष्टि की वृद्धि होती है ।

किसी भी ग्रह, नक्षत्र, चोर तथा अग्नि से जनित पीड़ायें शान्त हो जाती हैं. इस प्रकार स्वयं व्यास जी कहते हैं, इसलिए इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये।

इस प्रकार महर्षि व्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 26 जून 2020

बृहस्पति का स्वराशि में प्रवेश


30 जून 2020 को बृहस्पति वक्री गति से भ्रमण करते हुए नीच राशि से निकलकर अपनी स्वराशि में प्रवेश करेंगे और वहां 20 नवम्बर 2020 तक रहेंगे।जिसके परिणाम स्वरूप ज्ञान, आध्यात्म और बैंक से संबंधित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिये शुभ समय का आरंभ होगा। विद्यार्थियों के लिए भी आने वाले 5 माह का समय शुभ होगा।

आइए जानते हैं बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ेगा।

मेष राशि- मेष लग्न
मेष राशि-मेष लग्न वाले जातकों के भाग्य में अब तक जो रुकावटें आ रही थीं वह दूर होंगी तथा धर्म में रुचि बढ़ेगी, एवं देश में ही यात्राओं के योग बनेंगे।

वृष राशि-वृष लग्न
वृष राशि-वृष लग्न वाले जिन जातकों के पिता के स्वास्थ्य में समस्याएं चल रही थीं वह ठीक होंगी, ससुराल पक्ष से संबंधों में सुधार होगा तथा जीवन साथी को धन की प्राप्ति के योग बनेंगे।

'मिथुन राशि- मिथुन लग्न'
मिथुन राशि-मिथुन लग्न वाली जिन कन्याओं का विवाह संबंध टूट गया है, वह संबध पुनः वापस आयेगा। स्त्रियों की जन्म कुंडली मे बृहस्पति पति का कारक होता है, ऐसे में उसके स्वराशि में प्रवेश कर लेने से स्त्रियों के वैवाहिक संबंधों में अप्रत्याशित सुधार देखने को मिलेंगे। सभी जातकों को इस पांच महीने पार्टनरशिप तथा सरकारी नौकरी से लाभ मिलेगा।

कर्क राशि-कर्क लग्न
कर्क राशि-कर्क लग्न वाले जातकों के जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, शत्रु पक्ष शांत होंगे तथा कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के योग बढ जाएंगे।

सिंह राशि-सिंह लग्न
सिंह राशि-सिंह लग्न के जो छात्र प्रतियोगी प्ररीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, यदि उनकी जन्म कुंडली में भी बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित हुए तो वह आगामी पांच माह तक अपने सभी परीक्षा परिणामों में सफलता प्राप्त करेंगे।

कन्या राशि-कन्या लग्न
कन्या राशि-कन्या लग्न वाले जिन जातकों के भूमि-भवन से संबंधित कार्य रुके हुए थे अब वह पूर्ण होंगे तथा जिनकी माता को शारिरिक कष्ट चल रहे थे उनकी माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
नये वाहन का सुख प्राप्त होगा तथा सेवकों से संबंध मधुर होंगे।

तुला राशि-तुला लग्न
तुला राशि-तुला लग्न वाले जिन एक्सपोर्टरों का विदेश में धन रुका हुआ था अब वह आना आरम्भ हो जायेगा, तथा मित्रों एवं छोटे भाई-बहनों से संबंध मधुर होंगे।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न वाले जातकों के लिये गुरु का स्वराशि में प्रवेश अत्यंत शुभ फल दायक है। क्यों कि गुरु इनकी कुण्डली में धनेश होकर धन भाव में गोचर करने के कारण एक तो वैसे ही धन देंगे तथा  धन के कारक होने से इस पांच माह में अत्यधिक धन वर्षा करेंगे एवं संतान प्राप्ति भी करवाएंगे।

धनु राशि-धनु लग्न
धनु राशि-धनु लग्न वाले जातकों को गुरु लग्न में ही आ जाने के कारण से उत्तम स्वास्थ्य, मान-सम्मान, माता, भूमि, वाहन आदि का सुख देंगे।

मकर राशि-मकर लग्न
मकर राशि-मकर लग्न वाले जातकों का चिकित्सा के ऊपर खर्चा बन्द करवाकर देव गुरु बृहस्पति अब धार्मिक अनुष्ठानों एवं शुभ कार्यों में धन खर्च करवाएंगे, तथा कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के योग बढ़ जायेंगे।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न वाले जातकों को देव गुरु बृहस्पति अत्यधिक धन लाभ देंगे तथा इनके चाचा, छोटी बुआ एवं बड़े भाई-बहनों को मान-सम्मान और स्वास्थ्य का लाभ होगा।

मीन राशि- मीन लग्न
मीन राशि-मीन लग्न वाले जातकों को स्वास्थ्य, मान-सम्मान प्राप्त होगा तथा रुके हुये सरकारी कार्य पूर्ण होंगे, तथा इस राशि-लग्न वाले सरकारी अधिकारी व राजनेता अब तक जिन कठिनाइयों का सामना कर रहे थे वह उनसे मुक्त होंगे।

यदि इनमें से किसी की जन्म कुंडली में बृहस्पति अशुभ स्थिति अथवा अत्यधिक प्राप प्रभाव में हैं और उनकी दशा अंतर्दशा भी अशुभ चल रही है तो उन्हें इन सब उत्तम फलों की प्राप्ति नहीं होगी अथवा कम होगी।

परंतु जिन लोगों की जन्म कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थानों के स्वामी होकर शुभ स्थिति, शुभ प्रभाव में हैं और उन्होंने  उसका रत्न आदि धारण करके उसे शक्ति प्रदान की हुई है, उनके लिये यह समय अत्यंत शुभ फलप्रद होगा।

'शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

सनातन धर्म की आतंरिक चुनौतियाँ




सनातन धर्म के लिए दो प्रमुख चुनौतियाँ वर्तमान समय में हमारे लिए विकराल रूप धारण करती जा रही हैं जिनका उल्लेख मैं अपने इस ब्लॉग में करने जा रहा हूँ। जिनमें से प्रथम है विलुप्त होती प्राचीन पूजा पद्धति और द्वितीय है परंपरा से दीक्षित धर्म गुरुओं का अभाव।

पूजा पद्धति -

देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर से युद्ध को नाट्य रूप में प्रदर्शित करने के लिये बनाया गया 'डांडिया रास' जिसमें कभी शुद्ध भक्ति भाव समाहित हुआ करता था वह कब प्रेमी जोड़ों के मिलन का आयोजन बनकर रह गया हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

वर्ष भर अच्छी वर्षा के लिये इंद्र आदि देवताओं के लिये यज्ञ द्वारा नवीन अन्न भेंट करने के लिये मनाया जाने वाला होली पर्व , जिसमें नगर तथा गाँव के हर चौराहों पर बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन हुआ करता था, कब हुड़दंगों से सरोबार हो गया हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

रात्रि भर जागरण करते हुए दुर्गा सप्तशती तथा वेदोक्त देवी सूक्त के उच्च कोटि के मंत्रो द्वारा भगवती दुर्गा की उपासना करके प्रातः यज्ञ करके उनको आहुति प्रदान करने वाला तथा 9 दिनों तक शरीर में स्थित 9 चक्रों के भेदन के पश्चात सिद्धि प्राप्ति के लिये शास्त्रों में वर्णित 'नवरात्रि' का शुभ मुहूर्त कब फिल्मी संगीत पर आधारित भौंडे संगीत का आयोजन (जागरण) बनकर रह गया हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

ब्रह्मांड में दो महा प्रलयंकारी शक्तियों के मिलन का सिद्ध मुहूर्त 'महाशिवरात्रि' जिसमें हम रात्रि जागरण करके उच्च कोटि के मंत्रो द्वारा शिव-शक्ति की सम्मलित शक्ति को एक साथ आत्मसात किया करते थे, कब 'भोले की बारात' बनकर रह गया, हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

गोपनीय और दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति के लिए शास्त्रों में वर्णित अत्यन्त सिद्ध मुहूर्त ( दीपावली ) कब विस्फोटक पदार्थों से विस्फोट करके प्रकृति के कण-कण में सूक्ष्म रूप में व्याप्त ब्रह्म चेतना को आहत करके उसे कुपित करने, मदिरापान और जुआ खेलने का पर्व बनकर रह गया, हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

ऐसे अनेक उदाहरण आज मिल जाएंगे जिससे ज्ञात होता है कि भक्ति काल और उसके पश्चात हमारी पूजा पद्धति में किस प्रकार से विकृति आयी है जिसके कारण कभी अंतरिक्ष को भी अपने प्रलयंकारी शस्त्रों की टंकार से हिलाकर रख देने वाला 'हिन्दू' आज अपने ग्रन्थों में वर्णित मंत्रो की शक्ति से अज्ञान रहकर जीवन और मृत्यु के बीच रगड़ने को विवश है।


परंपरा से दीक्षित धर्म गुरुओं का आभाव-

हिंदुओं का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि यदि परपंरा प्राप्त कुछ गिने-चुने धर्म गुरुओं को छोड़ दिया जाये तो उन्हें उनके ही धर्मगुरुओं ने कभी धर्म का सही स्वरूप समझाया ही नहीं अन्यथा आज धर्म के विषय में बोलने के लिए अनाधिकृत (जिसको अधिकार न प्राप्त हो) लोग अपनी चोंच न खोल रहे होते।

जिन हिंदुओं के 99% देवी-देवता अपने हाथों में विध्वंसकारी अस्त्र-शस्त्र धारण करके निरंतर यह संदेश देते हों कि दुष्ट, दुराचारी, विधर्मी आसुरी शक्ति वाले दुष्टों का वध करना पुण्य कार्य है पाप नहीं, उन्ही हिंदुओं को उनके धर्म गुरुओं ने केवल भक्ति का पाठ पढ़ाकर सनातन धर्म के साथ जो अन्नाय किया है उसका भुगतान हमारी आने वाली पीढ़ियों को करना होगा।

यहां तक भी ठीक था परंतु अब स्थिति यह है कि भक्ति काल और उसके पश्चात सनातन धर्म में कुकुरमुत्तों की भांति ऐसे अनेक सम्प्रदाय उग आये हैं जिनका उद्देश्य केवल अपने-अपने गुरुओं का महिमा-मंडन करना और अपने भक्तों को उन्हीं गुरुओं के इर्द-गिर्द भटकाये रखना है, जिससे उनके चंदे की दुकानें चलती रहें फिर चाहे धर्म की कितनी ही हानि क्यों न हो जाये।

इन सम्प्रदायों द्वारा चलाये गये ब्रेन वाशिंग प्रोग्राम से उनके चेलों की स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है कि आप चाहे उनके समक्ष ईश्वर को कुछ भी कह लें परंतु यदि उनके सम्प्रदाय के गुरु के लिए आपने कुछ भी लिख दिया अथवा कह दिया तो वह आप पर झुंड लेकर टूट पड़ेंगे।

इनके अनुयायी संख्या बल में इतने अधिक हो चुके हैं कि हैं कि अनेक सरकारों को भी इनके वोट बैंक के कारण इनके समक्ष झुकना पड़ता है ।

यह तो निश्चित है कि मानव द्वारा निर्मित सब कुछ नष्ट हो जाना है फिर वह चाहे वह कोई पंथ हो, मजहब हो अथवा सम्प्रदाय ! शेष रहना है तो केवल ईश्वर द्वारा निर्मित धर्म और ज्ञान ! परंतु जब तक ऐसा नहीं हो जाता, तब तक हम इन पंथों, सम्प्रदायों तथा उनके अनुयायियों द्वारा सनातन धर्म में किये जा रहे अतिक्रमणों और उनकी सीमाओं के उल्लंघनों को झेलने के लिए विवश हैं।

(शिवार्पणमस्तु)


Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 19 अगस्त 2019

Tantra Peethika Rahasay तंत्र पीठिका रहस्य



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों मे अपना मस्तक रखते हुये तथा 'कालीतत्व रहस्य', दुर्गातत्व तथा पदार्थदर्श (शारदातिलक की व्याख्या) के रचनाकार और वेदांत तथा आगम शास्त्र के प्रकांड पंडित 'राघवभट्ट' जी को प्रणाम करते हुए मैं तंत्र शास्त्र में वर्णित उन चार पीठिकाओं का वर्णनं करने जा रहा हूँ जिनके बिना मंत्र सिद्धि नहीं की जा सकती।  दक्षिणमार्गी, मध्यममार्गी तथा वाम मार्गी तीनों ही प्रकार के साधकों के लिए उपयोगी ये चार पीठिकायें इस प्रकार हैं- 
१- श्मशान पीठ, २- शव पीठ, ३- अरण्य पीठ, 4- श्यामा पीठ 

(श्मशान पीठ)

जिस साधना में प्रतिदिन रात्रि काल में श्मशान भूमि में जाकर यथाशक्ति विधि से मन्त्र का जाप किया जाता है उसे 'श्मशान' पीठ कहते हैं। जितने दिन का प्रयोग होता है, उतने दिन तक मन्त्र का साधन यथाविधि किया जाता है। अधिकांशतः तंत्र साधक इसी पीठ का आश्रय लेते हैं क्यों कि यह पीठ शेष तीन पीठिकाओं के अपेक्षाकृत सरल है।

(शव पीठ)

किसी मृत कलेश्वर के ऊपर बैठकर या उसके भीतर घुसकर मन्त्रानुष्ठान संपूर्ण करना 'शव-पीठिका' है। प्रायः वाममार्गियों में इस पीठिका की प्रधानता देखी जाती है। कर्णपिशाचिनी, उच्छिष्ठ चाण्डालिनी, कर्णेश्वरी, उच्छिष्ठ गणपति
आदि उग्र शक्तियों की साधना तथा अघोर पंथियों की साधनाएं इसी पीठिका के द्वारा सम्पन्न होती हैं।

(अरण्य पीठ)

मनुष्य जाति का जहां संचार न हो, हिंसक पशुओं जैसे बाघ, सिंह, भालू, भेड़िये, विषैले सर्प आदि जहां बहुतायत में निवास करते हों, ऐसे निर्जन वन-स्थान में किसी पवित्र वृक्ष अथवा शून्य मंदिर (जहां कोई मनुष्य न आता जाता हो) का आश्रय लेकर मन्त्र-साधना करना और निर्भयतापूर्वक मन को एकाग्र रखकर तल्लीन हो जाना 'अरण्य-पीठिका' है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि इसी पीठिका का आश्रय लेकर महान सिद्धियों को प्राप्त किया करते थे। 

(श्यामापीठ)

यह अत्यंत कठिन से कठिनतर पीठिका है , बहुत कम मनुष्य इस पीठिका से उत्तीर्ण हो सकते हैं। एकांत में किसी षोडशवर्षीय, नवयौवना, सुंदर कन्या को वस्त्र-रहित कर, स्वयं उसके सम्मुख बैठकर साधक मन्त्र-साधने में तत्पर हो तथा मन मे काम-वासना के विचार लाना तो दूर एक पल के लिए भी अपने मन को विचलित न होने दे और कठोर ब्रह्मचर्य में स्थित रहकर मन्त्र का साधन करे, इसे ही 'श्यामा-पीठिका' कहते हैं।  
जैन-ग्रन्थ में लिखा है कि द्वैपायनपुत्र मुनीश्वर शुकदेव, स्थूलिभद्राचार्य और हेमचंद्राचार्य ने इस पीठिका का आलम्बन लेकर मन्त्र-साधना की थी तथा वह सिद्ध हुये थे। 

चेतावनी- 
अंतिम और सर्वाधिक कठिन पीठिका (श्यामा पीठ) का वर्णन मैंने यहां केवल ज्ञान देने के उद्देश्य की पूर्ति मात्र के लिये किया है तथा यह पीठ कंठ तक वासना में डूबे कलियुगी मनुष्यों के लिए नहीं है, जिसका कारण यह है कलियुगी मनुष्यों में इतना संयम नहीं है कि वह इस पीठिका से उत्तीर्ण हो सकें तथा यह हमारी वर्तमान न्याय-व्यवस्था द्वारा दंडनीय अपराध भी है। अतः वर्तमान न्याय-व्यवस्था का सम्मान करते हुए भी किसी भी व्यक्ति को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये। तब भी यदि कोई साधक इस पीठिका का प्रयोग सिद्धियों की प्राप्ति के लिये करता है तो वह अपने विनाशकारी कर्म के लिये स्वयं ही उत्तरदायी होगा।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

Dus Mahavidhya Rahasaya दस महाविद्या रहस्य




दस महाविद्यायें और उनकी उत्त्पत्ति का रहस्य 

दस महाविद्याओं का संबंध परंपरातः सती (शिवा, पार्वती) से है। सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान् शिव को आमंत्रित नहीं किया, सती ने शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। शिव ने अनुचित बताकर उन्हें रोका, परंतु सती अपने निश्चय पर अटल रहीं।

उन्होंने कहा- मैं प्रजापति के यज्ञ में अवश्य जाऊँगी और वहां या तो अपने प्राणेश्वर देवाधिदेव के लिये यज्ञभाग प्राप्त करूंगी या उस यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी।

यह कहते हुये सती के नेत्र लाल हो गये, वे शिव को उग्र दृष्टि से देखने लगीं, उनके अधर फड़कने लगे, वर्ण कृष्ण हो गया, क्रोधाग्नि से दग्ध शरीर महाभयानक एवं उग्र दिखने लगा।

देवी का यह स्वरूप साक्षात महादेव के लिये भी भयप्रद और प्रचण्ड था। उस समय उनका श्री विग्रह करोड़ों मध्याह्न के सूर्यों के समान तेज-सम्पन्न था और वे बार बार अट्टहास कर रही थीं।

देवी के इस विकराल रूप को देखकर शिव(लीलावश) भाग चले। भागते हुये रुद्र को दसों दिशाओं में रोकने के लिये देवी ने अपनी अङ्गभूता दस देवियों को प्रकट किया। देवी की ये स्वरूपा शक्तियां ही 'दस महाविद्याएं' हैं । 

जिनके नाम हैं-  (१) काली(२) तारा (३) छिन्नमस्ता (४) भुवनेश्वरी (५) बगलामुखी (६) धूमावती (७) त्रिपुर सुंदरी (८) मातङ्गी (९) षोडशी (१०) त्रिपुर भैरवी।

शिव ने सती से इन महाविधाओं का जब परिचय पूँछा तब सती ने स्वयं इसकी व्याख्या करके उन्हें बताया-

येयं  ते पुरतः  कृष्णा सा काली भीमलोचना ।
श्यामवर्णा च या देवी स्वयमूर्ध्वं व्यवस्थिता ।।
सेयं   तारा   महाविद्या  महाकालस्वरूपिणी ।
सव्येतरेयं     या   देवी    विशीर्षातिभयप्रदा ।।
इयं    देवी   छिन्नमस्ता   महाविद्या   महामते ।
वामे   त्वेयं   या   देवी  सा  शम्भो भुवनेश्वरी ।।
पृष्ठतस्तव     या    देवी    बगला    शत्रुसूदनी ।
वह्निकोणे    तवेयं    या  विधावारूपधारिणी ।।
सेयं    धूमावती     देवी    महाविधा    महेश्वरी ।
नैऋत्यां   तव    या    देवी   सेयं   त्रिपुरसुंदरी ।।
वायौ   या   ते  महाविद्या  सेयं   मतङ्गकन्यका ।
ऐशान्यां   षोडशी   देवी  महाविद्या   महेश्वरी  ।।
अहं   तु  भैरवी  भीमा  शम्भो  मा  त्वं  भयं कुरु ।
एताः    सर्वा:   प्रकृष्टास्तु    मूर्तयो   बहुमूर्तिषु ।।

'शम्भो ! आपके सम्मुख जो यह कृष्णवर्णा एवं भयंकर नेत्रों वाली देवी स्थित हैं वह 'काली' हैं । जो श्याम वर्ण वाली देवी स्वयं ऊर्ध्व भाग में स्थित हैं यह महाकालस्वरूपिणी महाविद्या 'तारा' हैं । महामते ! बायीं ओर जो यह अत्यन्त भयदायिनी मस्तकरहित देवी हैं, यह महाविद्या 'छिन्नमस्ता' हैं । शम्भो ! आपके वामभाग में जो यह देवी हैं वह 'भुवनेश्वरी' हैं । आपके पृष्ठभाग में जो देवी हैं वह शत्रु संहारिणी 'बगला' हैं । आपके अग्निकोण में जो यह विधवा का रूप धारण करने वाली देवी हैं वह महेश्वरी महाविद्या 'धूमावती' हैं । आपके नैऋत्य कोण में जो देवी हैं वह 'त्रिपुरसुंदरी' हैं । आपके वायव्यकोण में जो देवी हैं वह मतङ्गकन्या महाविद्या 'मातङ्गी' हैं । आपके ईशानकोण में महेश्वरी महाविद्या 'षोडशी' देवी हैं । शम्भो ! मैं भयंकर रूप वाली 'भैरवी' हूँ । आप भय मत करें ! ये सभी मूर्तियां बहुत सी मूर्तियों में प्रकृष्ट हैं ।

इस प्रकार 'श्रीमन्महीधर भट्ट' द्वारा रचित दिव्य ग्रन्थ 'मंत्र महोदधि' में वर्णित 'दस महाविद्याओं' की उत्पत्ति का रहस्य समाप्त हुआ।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava