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शुक्रवार, 23 मई 2025
उदर (Stomach) रोग वाली जन्मकुंडली का विश्लेषण व उपाय
गुरुवार, 6 मार्च 2025
पिशाच योग (शनि-राहु युति २०२५)
यदि और अधिक सरल शब्दों में कहूं तो शनि-राहु की युति के इस अवधिकाल को ईश्वर की शरण में रहकर शान्ति के साथ निकालने की आवश्यकता है क्योंकि मीन राशि में होने जा रही इस युति के कारण अब तक वहां संचार कर रहे उच्च के शुक्र भी अपनी शुभता को खो देंगे तथा वह विभिन्न जातकों के जिस-जिस भाव के स्वामी व कारक होंगे वहां से सम्बन्धित पदार्थों की हानि करने लगेंगे ।
नोट—
[ ] शनि के राशि परिवर्तन कर लेने के साथ ही कुछ जातकों की ढैया-साढ़े साती समाप्त, तो कुछ की आरम्भ होगी किन्तु यह इस ब्लॉग का विषय न होने से इस विषय में यहां जानकारी नहीं दे रहा हूँ । यदि संभव हुआ तो उसके लिए अलग से एक ब्लॉग लिख दूंगा ।
[ ] ज्योतिष शास्त्र में श्रद्धा रखने वाले विद्वान मनुष्यों को २९ मार्च से लेकर १८ मई तक अपने बच्चों की डिलीवरी करवाने से बचना चाहिए । यदि संभव हो सके तो २९ मार्च से पूर्व (शनि-राहु युति बनने से पूर्व) अथवा ६ जून के पश्चात् (मंगल के नीच राशि में संचार करने के कारण) ही बच्चों की डिलीवरी हो अन्यथा उनकी जन्म-कुंडली में जीवनभर के लिए शनि-राहु की युति तथा नीच राशि के मंगल की स्थिति बन जाएगी, जो कि बहुत कष्टकारी सिद्ध होगी ।
"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava
मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024
सनातन धर्म की आन्तरिक चुनौतियां भाग—३
बुधवार, 2 अक्टूबर 2024
लग्न और लग्नेश
शुक्रवार, 26 जुलाई 2024
राहु केतु के शुभाशुभ फल
राहु-केतु पृथकतावादी ग्रह होते हुए भी किस अवस्था में अपना शुभ फल प्रदान करते हैं तथा जन्म कुंडली में इनकी शुभ स्थिति प्राप्त होने पर भी हमें इनके रत्न क्यों धारण नहीं करने चाहिए ? आइए जानते हैं ।
इस जातक का जन्म—१५ सितम्बर सन् १९८२ को रात्रि ८ बजकर १० मिनट पर मथुरा जिले में हुआ है । इनकी जन्म कुंडली के तृतीय भाव में राहु अपनी उच्च राशि 'मिथुन' में 'आद्रा' नक्षत्र के तृतीय चरण में स्थित हैं जो कि राहु का अपना ही नक्षत्र होता है । अंशावस्था से भी यह राहु-केतु अपनी युवावस्था (१२ से लेकर १८ डिग्री के मध्य) में हैं अर्थात् यह अपना पूर्ण शुभ फल देने में सक्षम हैं ।
भावात्-भावम् सिद्धांत के अनुसार द्वितीय से द्वितीय भाव में उच्च अवस्था में स्थित राहु ने इनको सम्पन्न घराने में जन्म दिया तथा भाग्य स्थान पर स्थित उच्च के केतु ने इनका भाग्योदय भी अति शीघ्र ही करवा दिया । जैसे ही इस जातक का विवाह हुआ बृहस्पति ने भाग्येश होकर सप्तम भाव में स्थित होने का फल प्रदान करना आरंभ कर दिया और ऐसे बृहस्पति की सहायता की, उसकी राशि पर स्थित केतु ने क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि कोई भी ग्रह जन्मकुंडली के किसी भी भाव में विराजमान हो, वह जिस भाव का स्वामी होगा वहां का फल तो प्रदान करेगा ही इसके साथ ही उसकी राशि पर जो ग्रह विराजमान होता है, पीछे से वह ग्रह भी अपना फल प्रदान करता है ।
इधर उच्च के राहु ने इन्हें घोर पराक्रम तथा अपने स्वभाव के समान व्यसनी किन्तु सहयोगी मित्र प्रदान किए, जिनके सहयोग से इन्होंने विदेश से व्यापार में नवीन ऊंचाइयां प्राप्त कीं । यद्यपि विदेश स्थान पर बैठे राहु ने इनको विदेशी यात्राओं से लाभ प्रदान किया तथापि इसी राहु ने अपने मूल आसुरी स्वभाव के कारण इनको अत्यधिक व्यसनी भी बना दिया ।
तृतीय भाव के इस राहु का सूक्ष्म अध्ययन करने के पश्चात् मैं यह जान गया कि इन्होंने अपने व्यसनी मित्रों के साथ बैठकर अनेक ऐसे कार्य किए जिनका उल्लेख करने पर इनके वैवाहिक जीवन पर संकट खड़ा हो सकता था । शुक्र का सप्तमेश होकर प्रेम संबंधों के भाव में जाना भी इसी ओर संकेत कर रहा है । ये व्यक्ति जब-जब बैंकॉक आदि की विदेश यात्रा पर गए, वहाँ इन्होंने राहु के आसुरी स्वभाव को अपने कार्यों में पूर्णतः प्रदर्शित किया ।
तृतीय भाव में उच्च के राहु की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर यदि ऐसा जातक राहु का रत्न गोमेद धारण करता है तो यह रत्न तृतीय भाव के फलों में कई गुना वृद्धि कर देता है । गोमेद धारण करने के उपरान्त ऐसा जातक अपने पराक्रम से सभी वस्तुओं को प्राप्त कर लेगा, उसके छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य, आयु, मान सम्मान में वृद्धि होगी, मित्रों से और अधिक सहयोग प्राप्त होगा तथा विदेश यात्राओं से कई गुना लाभ प्राप्त होगा । इतने सब के उपरान्त भी मैंने इन्हें गोमेद रत्न धारण नहीं करवाया, जिसका कारण यह है कि गले की राशि और गले के भाव पर बैठा हुआ राहु और उस पर मंगल की अष्टम दृष्टि तथा गले के कारक व स्वामी 'बुध' के छ्ठे भाव में स्थित 'शनि' की युति के पाप प्रभाव में होने से एक तो पहले से ही इनको गले के कैंसर होने अथवा किसी भी कारण से गले के कट जाने का योग बन रहे हैं । उस पर दुर्भाग्य से यह जातक तम्बाकू उत्पादों का भी अधिक मात्रा में सेवन करते हैं । ऐसे में गोमेद अथवा मूंगा रत्न यदि ये धारण करते हैं तो राहु-मंगल अत्यन्त तीव्र गति से इनके गले को काटने का प्रयास करेंगे ।
इसी प्रकार से पीठ व कमर की राशि और भाव में बैठे केतु इनको पीठ व कमर की गंभीर समस्या देंगे और यदि केतु का रत्न लहसुनिया भी इनको धारण करवा दिया जाए तो वह रत्न भाग्य में तो कई गुना वृद्धि करेगा किन्तु उतनी ही तीव्रता और उग्रता से इनको पीठ और कमर के रोग भी देगा ।
मेष लग्न की कुंडलियों में यह समस्या इसलिए भी अधिक हो जाती है क्योंकि इस लग्न में राशि और भाव एक ही होने से जीवन में जितनी तीव्रता से ऊंचाइयां प्राप्त होती हैं, हानि और रोग भी उतनी ही तीव्रता से घटित होते हैं । जैसे कि अष्टम भाव में स्वराशि में स्थित मंगल पर शनि की तृतीय दृष्टि ने इनको बवासीर (Piles) का रोगी भी बना दिया क्योंकि यहां भाव और भाव का स्वामी दोनों एक साथ शनि की तृतीय दृष्टि से पीड़ित हुए ।
यहां इस कुंडली को आपके समक्ष रखने का केवल एक मात्र कारण यही समझाना था कि कोई पृथकतावादी ग्रह यदि अपनी उच्च , मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में अपने कारक स्थान में भी क्यों न हो, वह जिस राशि, नक्षत्र और भाव में होगा उन राशि, नक्षत्र और भाव से बनने वाले शारीरिक अंगों में कष्ट अवश्य देगा । इसलिए राहु, केतु, शनि, मंगल और सूर्य जैसे पृथकतावादी ग्रहों के रत्नों का चुनाव करने के लिए चिकित्सा ज्योतिष ( Medical Astrology) को समझने की बहुत आवश्यकता होती है अन्यथा हो सकता है कि जहां एक स्थान पर जातक को धन, सम्पत्ति, मान-सम्मान, पद प्रतिष्ठा, चुनावों में विजय आदि तो प्राप्त हो रही हो, वहीं दूसरे स्थान पर उसके शरीर में कोई असाध्य रोग भी प्रकट हो रहा हो ।
चिकित्सा ज्योतिष के विषय में अधिक जानकारी के लिए मेरा यह ब्लॉग पढ़े—
https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html
उपचार—ऐसी कुंडली में एक पन्ना रत्न धारण करवाने से गले के रोगों से बचाव होगा क्योंकि गले के स्थान के स्वामी और कारक बुध को शक्ति प्राप्त होगी तथा इस जातक द्वारा पुखराज रत्न धारण करने से नवम भाव को ऊर्जा प्राप्त होगी, जिसके कारण पीठ व कमर के रोगों से बचाव होगा ।
यदि यहां कोई कहता है कि बृहस्पति तो १२वें भाव का स्वामी भी है ऐसे में क्या वह इनकी पत्नी को कष्ट नहीं देगा तो उनके ज्ञान वृद्धि के लिए महर्षि पराशर जी का एक सूत्र बताता हूँ जिसमें वह बताते हैं कि कोई भी ग्रह जिसकी दो राशियां हैं और उसकी मूल त्रिकोण राशि को छोड़कर कोई अन्य राशि १२वें भाव में स्थित है, ऐसे में वह ग्रह अपने १२वें भाव की राशि का फल न देकर अपनी मूल त्रिकोण राशि का फल प्रदान करता है जो कि इस लग्न में ९ वें भाव में स्थित है । अतः ऐसा बृहस्पति, पुखराज रत्न का उपयोग करने से शक्ति प्राप्त करके नवम भाव से संबंधित फलों में वृद्धि तो करेगा ही, साथ ही इसके प्रभाव से केतु के शुभ फलों में भी वृद्धि होगी क्योंकि राहु और केतु क्रमशः अपने शनि व मंगल जैसे पृथकतावादी प्रभावों के अतिरिक्त जिन ग्रहों की राशि और जिन ग्रहों के साथ बैठते हैं उनकी छाया लेकर उन ग्रहों जैसे प्रभाव भी देने लगते हैं ।
वर्तमान में इनकी मंगल की महादशा चल रही जो कि सितम्बर २०३० तक चलेगी तत्पश्चात् इनकी राहु की महादशा आरंभ होगी जिसमें उपरोक्त शुभाशुभ फल पूर्णतः से प्रकट होंगे, ऐसे में इनको अभी से ही तम्बाकू उत्पादों का परित्याग कर देना चाहिए तथा नीले, काले व रक्त वर्ण के वस्त्रों को धारण करने से बचना चाहिए । इसके अतिरिक्त अपने अधिकार की सीमा में विधिवत् देवी दुर्गा व हनुमान जी की आराधना उनके उच्च कोटि के मंत्रों द्वारा करनी चाहिए, जिससे राहु की आने वाली महादशा इनकी कुंडली के तृतीय भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित होने के शुभ फलों को प्रदान करे और यह निरोगी होकर दीर्घ जीवन जी सकें ।
ज्योतिष के इन उपायों द्वारा यदि इन्होंने राहु की आने वाली १८ वर्ष की महादशा बिना कोई बड़ा कष्ट प्राप्त किए काट ली, तो राहु की यह महादशा तो इनको नवीन ऊंचाइयों पर लेकर जायेगी ही, इसके पश्चात् आने वाली देव गुरु बृहस्पति की महादशा भी इनके जीवन के अंत काल में इनको देश के भीतर तीर्थ यात्राओं (बृहस्पति के नवम भावाधिपति होने के कारण) में महान पुण्य अर्जित करवाने वाली सिद्ध होगी और इन्होंने अपने जीवन काल में अब तक जितने भी अशुभ कार्य किए हैं, उस बृहस्पति की वह महादशा प्राप्त होने पर यह अपने शुभ कर्मों के प्रभाव से उन सभी पाप कर्मों को जला कर भस्मसात कर देंगे ।
"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava
गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023
ग्रहों का राशि परिवर्तन और चन्द्र ग्रहण २०२३
—Astrologer Manu Bhargava
बुधवार, 27 सितंबर 2023
मंगल-केतु युति २०२३
गुरुवार, 24 अगस्त 2023
प्रेम-वियोग और अध्यात्म
अपने Professional Astrology के कैरियर में अब तक मेरे पास हजारों ऐसी जन्मकुंडलियां आ चुकी हैं जिसमें प्रेम संबंधों में वियोग हो जाने से सच्चा प्रेम करने वाले स्त्री-पुरुष आन्तरिक रूप से इतना टूट जाते हैं कि अपने जीवन जीने की समस्त इच्छा ही समाप्त कर लेते हैं । यदि प्रेम दोनों ही ओर से हो तब तो ठीक है किन्तु यदि एक व्यक्ति प्रेम करता है और दूसरा उसके साथ प्रेम करने का अभिनय कर रहा है तो ऐसे में सच्चा प्रेम करने वाला व्यक्ति अपने साथ हुए इस छल को सह नहीं पाता और स्वयं को चारों ओर से घोर मानसिक दुःख से घेर लेता है । उसे किसी से बात करना, मिलना-जुलना नहीं भाता क्योंकि उसे लगता है कि कोई भी दूसरा उसके विरह के दुःख को समझ नहीं पा रहा है (अपने प्रेमी-प्रेमिका के साथ बिताए गए अच्छे पलों के बार-बार स्मरण होने तथा भविष्य में कभी उन पलों को पुनः न जी सकने का दुःख) ।
सोमवार, 8 मई 2023
मंगल का अपनी नीच राशि 'कर्क 'में प्रवेश (२०२३)—
१० मई २०२३ दोपहर १ बजकर ३९ मिनट पर गोचर में मंगल अपनी नीच राशि 'कर्क' में प्रवेश करने जा रहे हैं और वह १ जुलाई २०२३ प्रातः २ बजकर १६ मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात् अपनी मित्र राशि 'सिंह' में प्रवेश करेंगे ।
अपने इस राशि परिवर्तन के साथ ही मंगल स्वयं राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर राहु के ही केंद्रीय प्रभाव में आ जाएंगे और शनि के साथ षडाष्टक योग भी बना लेंगे । मंगल-शनि का यह षडाष्टक योग संसार के लिए विशेष पीड़ादायक होता है अतः इस योग का दुष्प्रभाव सभी जातकों के ऊपर पड़ेगा ।
मंगल के नीच राशि में गोचर करने तथा शनि के साथ यह षडाष्टक योग बन जाने से इस अवधिकाल में विश्व भर में हिंसा, आगजनी जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी और विश्व भर से ट्रेन पलटना, प्लेन क्रैश होना तथा गैस पाइप लाइन में आग लग जाना जैसी अशुभ सूचनाएं प्राप्त होंगी इसके अतिरिक्त सामान्य से कहीं अधिक सड़क दुर्घटनाएं होने के आंकड़े भी प्राप्त होंगे। अतः विद्वान मनुष्यों को इस अवधिकाल में निजी वाहनों से लंबी दूरी की यात्राओं से यथा संभव बचना चाहिए, घरेलू महिलाओं को गैस सिलेण्डर का उपयोग करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए तथा आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को विशेष प्रबन्ध करने चाहिए।
राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर अपनी नीच राशि में रहने के कारण मंगल के दुष्प्रभावों में एक विशेष विध्वंसकारी शक्ति आ गई है जिसके फलस्वरूप ऐसा मंगल गोचर में जातकों की जन्मकुंडलियों के जिस-जिस भावों का स्वामी होकर जिन-जिन भावों में जाएगा और यह सभी भाव शरीर के जिन अंगों, कारक तत्वों तथा सगे-संबंधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन सभी के लिए हानिकारक सिद्ध होगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति होने से जातक को जो रोग, चोट, दुर्घटनाएं प्राप्त होती हैं, इस अवधिकाल में उसमें अधिकता देखी जाएगी । जन्मकुंडली में १२ भावों तथा मंगल से होने वाले रोगों के विषय में जानने के लिए मेरा यह ब्लॉग देखें
https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html
राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर 'मन की राशि' में संचार करते हुए मंगल की मारक क्षमता के प्रभाव से जीवों के मन में हिंसा की भावना जन्म लेगी जिससे इस अवधिकाल में एक दूसरे के प्रति हिंसा में अत्यधिक वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप विश्व भर में हिंसा-रक्तपात और यहां न लिख सकने वाली अनेक अशुभ घटनाएं घटित होंगी ।
मंगल शल्य चिकित्सा का कारक ग्रह है जब यह अशुभ स्थिति में होता है तब विश्व भर में ऑपरेशन होने की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होती है अतः चिकित्सकों के लिए यह समय व्यस्ततापूर्ण रहेगा ।
ब्लॉग का विस्तार न हो यह देखते हुए तथा समय के अभाव में सभी राशि-लग्नों वाले जातकों का भविष्यफल इस ब्लॉग में बताना संभव नहीं है अतः मंगल के इस विनाशकारी गोचर से सभी जातकों के बचाव के लिए कुछ उपायों का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूँ ।
- हनुमान जी की उपासना करें ।
- रक्त वर्ण की देशी गाय की सेवा करें तथा उसे गुड़ का सेवन करवाएं ।
- मंगल के उस मंत्र का जाप करें जिसके लिए आप अधिकृत हैं ।
- गुड़, घी, लाल मसूर की दाल, तांबे का पात्र, अनार, गेंहू, लाल वस्त्र आदि वस्तुओं का दान किसी ऐसे मंदिर में करें जिसमें शास्त्र मर्यादा का पालन करने वाले वेदपाठी ब्राह्मण विद्वानों की नियुक्ति की गई हो ।
- अपने छोटे भाइयों को उनकी प्रिय वस्तु भेंट करें (ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 'मंगल' छोटे भाई का कारक होता है) ।
- स्वयं रक्त वर्ण के वस्त्र धारण करने से बचें।
"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava