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शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

राहु केतु के शुभाशुभ फल

राहु-केतु पृथकतावादी ग्रह होते हुए भी किस अवस्था में अपना शुभ फल प्रदान करते हैं तथा जन्म कुंडली में इनकी शुभ स्थिति प्राप्त होने पर भी हमें इनके रत्न क्यों धारण नहीं करने चाहिए ? आइए जानते हैं । 


इस जातक का जन्म—१५ सितम्बर सन् १९८२ को रात्रि ८ बजकर १० मिनट पर मथुरा जिले में हुआ है । इनकी जन्म कुंडली के तृतीय भाव में राहु अपनी उच्च राशि 'मिथुन' में 'आद्रा' नक्षत्र के तृतीय चरण में स्थित हैं जो कि राहु का अपना ही नक्षत्र होता है । अंशावस्था से भी यह राहु-केतु अपनी युवावस्था (१२ से लेकर १८ डिग्री के मध्य) में हैं अर्थात् यह अपना पूर्ण शुभ फल देने में सक्षम हैं । 


भावात्-भावम् सिद्धांत के अनुसार द्वितीय से द्वितीय भाव में उच्च अवस्था में स्थित राहु ने इनको सम्पन्न घराने में जन्म दिया तथा भाग्य स्थान पर स्थित उच्च के केतु ने इनका भाग्योदय भी अति शीघ्र ही करवा दिया । जैसे ही इस जातक का विवाह हुआ बृहस्पति ने भाग्येश होकर सप्तम भाव में स्थित होने का फल प्रदान करना आरंभ कर दिया और ऐसे बृहस्पति की सहायता की, उसकी राशि पर स्थित केतु ने क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि कोई भी ग्रह जन्मकुंडली के किसी भी भाव में विराजमान हो, वह जिस भाव का स्वामी होगा वहां का फल तो प्रदान करेगा ही इसके साथ ही उसकी राशि पर जो ग्रह विराजमान होता है, पीछे से वह ग्रह भी अपना फल प्रदान करता है । 


इधर उच्च के राहु ने इन्हें घोर पराक्रम तथा अपने स्वभाव के समान व्यसनी किन्तु सहयोगी मित्र प्रदान किए, जिनके सहयोग से इन्होंने विदेश से व्यापार में नवीन ऊंचाइयां प्राप्त कीं । यद्यपि विदेश स्थान पर बैठे राहु ने इनको विदेशी यात्राओं से लाभ प्रदान किया तथापि इसी राहु ने अपने मूल आसुरी स्वभाव के कारण इनको अत्यधिक व्यसनी भी बना दिया । 


तृतीय भाव के इस राहु का सूक्ष्म अध्ययन करने के पश्चात् मैं यह जान गया कि इन्होंने अपने व्यसनी मित्रों के साथ बैठकर अनेक ऐसे कार्य किए जिनका उल्लेख करने पर इनके वैवाहिक जीवन पर संकट खड़ा हो सकता था । शुक्र का सप्तमेश होकर प्रेम संबंधों के भाव में जाना भी इसी ओर संकेत कर रहा है । ये व्यक्ति जब-जब बैंकॉक आदि की विदेश यात्रा पर गए, वहाँ इन्होंने राहु के आसुरी स्वभाव को अपने कार्यों में पूर्णतः प्रदर्शित किया । 


तृतीय भाव में उच्च के राहु की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर यदि ऐसा जातक राहु का रत्न गोमेद धारण करता है तो यह रत्न तृतीय भाव के फलों में कई गुना वृद्धि कर देता है । गोमेद धारण करने के उपरान्त ऐसा जातक अपने पराक्रम से सभी वस्तुओं को प्राप्त कर लेगा, उसके छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य, आयु, मान सम्मान में वृद्धि होगी, मित्रों से और अधिक सहयोग प्राप्त होगा तथा विदेश यात्राओं से कई गुना लाभ प्राप्त होगा ।  इतने सब के उपरान्त भी मैंने इन्हें गोमेद रत्न धारण नहीं करवाया, जिसका कारण यह है कि गले की राशि और गले के भाव पर बैठा हुआ राहु और उस पर मंगल की अष्टम दृष्टि तथा गले के कारक व स्वामी 'बुध' के छ्ठे भाव में स्थित 'शनि' की युति के पाप प्रभाव में होने से एक तो पहले से ही इनको गले के कैंसर होने अथवा किसी भी कारण से गले के कट जाने का योग बन रहे हैं । उस पर दुर्भाग्य से यह जातक तम्बाकू उत्पादों का भी अधिक मात्रा में सेवन करते हैं । ऐसे में गोमेद अथवा मूंगा रत्न यदि ये धारण करते हैं तो राहु-मंगल अत्यन्त तीव्र गति से इनके गले को काटने का प्रयास करेंगे । 


इसी प्रकार से पीठ व कमर की राशि और भाव में बैठे केतु इनको पीठ व कमर की गंभीर समस्या देंगे और यदि केतु का रत्न लहसुनिया भी इनको धारण करवा दिया जाए तो वह रत्न भाग्य में तो कई गुना वृद्धि करेगा किन्तु उतनी ही तीव्रता और उग्रता से इनको पीठ और कमर के रोग भी देगा । 

मेष लग्न की कुंडलियों में यह समस्या इसलिए भी अधिक हो जाती है क्योंकि इस लग्न में राशि और भाव एक ही होने से जीवन में जितनी तीव्रता से ऊंचाइयां प्राप्त होती हैं, हानि और रोग भी उतनी ही तीव्रता से घटित होते हैं । जैसे कि अष्टम भाव में स्वराशि में स्थित मंगल पर शनि की तृतीय दृष्टि ने इनको बवासीर (Piles) का रोगी भी बना दिया क्योंकि यहां भाव और भाव का स्वामी दोनों एक साथ शनि की तृतीय दृष्टि से पीड़ित हुए । 


यहां इस कुंडली को आपके समक्ष रखने का केवल एक मात्र कारण यही समझाना था कि कोई पृथकतावादी ग्रह यदि अपनी उच्च , मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में अपने कारक स्थान में भी क्यों न हो, वह जिस राशि, नक्षत्र और भाव में होगा उन राशि, नक्षत्र और भाव से बनने वाले शारीरिक अंगों में कष्ट अवश्य देगा । इसलिए राहु, केतु, शनि, मंगल और सूर्य जैसे पृथकतावादी ग्रहों के रत्नों का चुनाव करने के लिए चिकित्सा ज्योतिष ( Medical Astrology) को समझने की बहुत आवश्यकता होती है अन्यथा हो सकता है कि जहां एक स्थान पर जातक को धन, सम्पत्ति, मान-सम्मान, पद प्रतिष्ठा, चुनावों में विजय आदि तो प्राप्त हो रही हो, वहीं दूसरे स्थान पर उसके शरीर में कोई असाध्य रोग भी प्रकट हो रहा हो । 


चिकित्सा ज्योतिष के विषय में अधिक जानकारी के लिए मेरा यह ब्लॉग पढ़े—

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html


उपचार—ऐसी कुंडली में एक पन्ना रत्न धारण करवाने से गले के रोगों से बचाव होगा क्योंकि गले के स्थान के स्वामी और कारक बुध को शक्ति प्राप्त होगी तथा इस जातक द्वारा पुखराज रत्न धारण करने से नवम भाव को ऊर्जा प्राप्त होगी, जिसके कारण पीठ व कमर के रोगों से बचाव होगा ।

यदि यहां कोई कहता है कि बृहस्पति तो १२वें भाव का स्वामी भी है ऐसे में क्या वह इनकी पत्नी को कष्ट नहीं देगा तो उनके ज्ञान वृद्धि के लिए महर्षि पराशर जी का एक सूत्र बताता हूँ जिसमें वह बताते हैं कि कोई भी ग्रह जिसकी दो राशियां हैं और उसकी मूल त्रिकोण राशि को छोड़कर कोई अन्य राशि १२वें भाव में स्थित है, ऐसे में वह ग्रह अपने १२वें भाव की राशि का फल न देकर अपनी मूल त्रिकोण राशि का फल प्रदान करता है जो कि इस लग्न में ९ वें भाव में स्थित है । अतः ऐसा बृहस्पति, पुखराज रत्न का उपयोग करने से शक्ति प्राप्त करके  नवम भाव से संबंधित फलों में वृद्धि तो करेगा ही, साथ ही इसके प्रभाव से केतु के शुभ फलों में भी वृद्धि होगी क्योंकि राहु और केतु क्रमशः अपने शनि व मंगल जैसे पृथकतावादी प्रभावों के अतिरिक्त जिन ग्रहों की राशि और जिन ग्रहों के साथ बैठते हैं उनकी  छाया लेकर उन ग्रहों जैसे प्रभाव भी देने लगते हैं । 

वर्तमान में इनकी मंगल की महादशा चल रही जो कि सितम्बर २०३० तक चलेगी तत्पश्चात् इनकी राहु की महादशा आरंभ होगी जिसमें उपरोक्त शुभाशुभ फल पूर्णतः से प्रकट होंगे, ऐसे में इनको अभी से ही तम्बाकू उत्पादों का परित्याग कर देना चाहिए तथा नीले, काले व रक्त वर्ण के वस्त्रों को धारण करने से बचना चाहिए । इसके अतिरिक्त अपने अधिकार की सीमा में विधिवत् देवी दुर्गा व हनुमान जी की आराधना उनके उच्च कोटि के मंत्रों द्वारा करनी चाहिए, जिससे राहु की आने वाली महादशा इनकी कुंडली के तृतीय भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित होने के शुभ फलों को प्रदान करे और यह निरोगी होकर दीर्घ जीवन जी सकें । 


ज्योतिष के इन उपायों द्वारा यदि इन्होंने राहु की आने वाली १८ वर्ष की महादशा बिना कोई बड़ा कष्ट प्राप्त किए काट ली, तो राहु की यह महादशा तो इनको नवीन ऊंचाइयों पर लेकर जायेगी ही, इसके पश्चात् आने वाली देव गुरु बृहस्पति की महादशा भी इनके जीवन के अंत काल में इनको देश के भीतर तीर्थ यात्राओं (बृहस्पति के नवम भावाधिपति होने के कारण) में महान पुण्य अर्जित करवाने वाली सिद्ध होगी और इन्होंने अपने जीवन काल में अब तक जितने भी अशुभ कार्य किए हैं, उस बृहस्पति की वह महादशा प्राप्त होने पर यह अपने शुभ कर्मों के प्रभाव से उन सभी पाप कर्मों को जला कर भस्मसात कर देंगे । 


"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

ग्रहों का राशि परिवर्तन और चन्द्र ग्रहण २०२३



 ब्रह्माण्ड में शीघ्र ही कुछ बड़े परिवर्तन होने जा रहे हैं—

३० अक्टूबर को राहु-केतु के राशि परिवर्तन के साथ ही देव गुरु बृहस्पति पर अब तक बना हुआ चांडाल योग भंग हो जाएगा ।

अति विध्वंसकारी मंगल-केतु योग जिसकी जानकारी मैंने आपको अपने पिछले ब्लॉग के माध्यम से उपलब्ध करवाई थी, यह विध्वंसकारी योग भी केतु के राशि परिवर्तन करने के साथ ही समाप्त हो जाएगा ।

४ नवंबर को शनि भी वक्री अवस्था छोड़ कर मार्गी अवस्था प्राप्त कर लेंगे और १७ नवम्बर को सूर्य भी अपनी नीच राशि से निकलकर अपने सेनापति मंगल की राशि में संचार करने लगेंगे जिससे विश्व और अधिकांश जनमानस को उनके कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी ।

यद्यपि ३ नवम्बर को शुक्र अपनी नीच राशि में संचार करने लगेंगे जिसके कारण विश्व भर में स्त्रियों को कुछ कष्ट अवश्य होगा किन्तु शुक्र के इस राशि परिवर्तन की अवधि अत्यन्त अल्पकाल की होने के कारण वह उतनी हानि नहीं कर सकेंगे ।

२८–२९ अक्तूबर, शरद पूर्णिमा की रात्रि में खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण होगा जो कि सम्पूर्ण भारत में दृश्य होगा अतः सभी स्थानों पर सूतक भी मान्य होंगे । भारत में इसका स्पर्श– रात्रि १ बजकर ५ मिनट पर, मध्य– १ बजकर ४४ मिनट पर तथा समाप्त–२ बजकर २२ मिनट पर होगा । इस प्रकार से इसका पर्व काल १ घंटा १७ मिनट का होगा । चन्द्र ग्रहण में ९ घंटे पूर्व से सूतक लगते हैं, भारत के जिस नगर में जिस समय चन्द्र ग्रहण दिखाई देगा वहां उसके सूतक भी उसके ९ घंटे पूर्व से ही मान्य होंगे ।

यह ग्रहण 'मेष राशि के अश्वनी' नक्षत्र में लगेगा जो कि 'केतु' का नक्षत्र होता है । केतु तन्त्र साधक को उसकी साधना में गहराई तक ले जाने वाला ग्रह होता है अतः इस चन्द्र ग्रहण में १ घंटा १७ मिनट का यह पर्वकाल तन्त्र साधकों को विशेष सिद्धि प्राप्त करवाने वाला होगा । चन्द्र ग्रहण के इस विशेष अवसर पर जो साधक जिस साधना में अधिकृत है उसको उसके अधिकार की सीमा में आने वाले मंत्र को अवश्य सिद्ध कर लेना चाहिए क्योंकि चन्द्र ग्रहण में मंत्र, दान, यज्ञ आदि करने का प्रभाव सामान्य से ९०० गुना अधिक होता है जिससे कोई भी मंत्र ग्रहण के समय अल्पकाल में ही सिद्ध हो जाता है, एक बार मंत्र सिद्ध हो जाने पर प्रतिदिन उस मंत्र का जप करते रहने से उस मंत्र की सिद्धि का प्रभाव जीवन पर्यन्त उस साधक के साथ बना रहता है ।

यह चंद्र ग्रहण एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, नॉर्थ अमेरिका, साउथ अमेरिका के अधिकतर भाग तथा हिन्द महासागर, प्रशान्त महासगर, अटलांटिक, आर्कटिक अंटार्कटिका में दिखाई देगा । ईरान, अफगानिस्तान, तुर्की, चीन, पाकिस्तान, भारत, नेपाल, अमेरिका के अलास्का,कोडरिंगटन, एंटीगुआ बारबुडा तथा कैलिफोर्निया की जनता को आगामी तीन माह तक भूकंप के प्रति सावधान रहना चाहिए ।

शरद पूर्णिमा पर पड़ने वाला यह चन्द्र ग्रहण अपने गुरूत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) के अनियंत्रित हो जाने से समुद्र से घिरे स्थानों में आगामी तीन माह तक सुनामी, चक्रवात और भूकम्प आदि लाकर बहुत अधिक विनाश करने वाला है । 

चन्द्र ग्रहण के इन अमंगलकारी परिणामों के पश्चात् भी विश्व के लिए सबसे अधिक शान्ति देने वाली बात यह है कि पिछले डेढ़ वर्ष से 'मेष' राशि में संचार कर रहे 'राहु' ने विश्व भर में जितना तांडव मचाया है ३० अक्टूबर के पश्चात् उसमें अब भारी कमी आयेगी क्योंकि ३० अक्टूबर से राहु द्वारा देव गुरु बृहस्पति की राशि 'मीन' में संचार करने से राहु के भीतर देव गुरु बृहस्पति के तत्व भी जाग्रत होने लगेंगे जिससे राहु की चांडाल प्रवृत्ति में आगामी डेढ़ वर्षों के लिए बहुत अधिक विनम्रता आयेगी (राहु-केतु जिस ग्रह के साथ बैठते हैं तथा जिस ग्रह की राशि में बैठते हैं, उसकी छाया ग्रहण करके उसके जैसे फल भी देने लगते हैं) ।

राहु द्वारा गुरु की शुभता प्राप्त कर लेने के पश्चात् भी मैं जिस बात को यहां लिखने जा रहा हूँ हो सकता है वह कुछ व्यक्तियों को अटपटी लगे क्योंकि विश्व में आज से पूर्व किसी भी ज्योतिष के विद्वान ने प्रकट रूप से यह बात नहीं कही होगी परन्तु सत्य जैसा भी हो वह तो मुझे लिखना ही होगा ।

राहु द्वारा जलीय राशि 'मीन' में संचार करने से आगामी डेढ़ वर्ष तक समुद्र तल के नीचे पाताल लोक में निवास करने वाले पातालवासी (असुर,दैत्य,नाग आदि) राहु की शक्ति से नवीन ऊर्जा प्राप्त कर लेंगे । ईश्वरीय नियम में बंधे होने के कारण वह भले ही पृथ्वी लोक पर विचरण करने न आएं किन्तु जल में डूबकर मृत्यु को प्राप्त होने वाले मनुष्यों को जल-प्रेत बनाने का कार्य वह अवश्य करेंगे और पाताल लोक के इन असुरों द्वारा शक्ति प्राप्त करके मनुष्य से जल-प्रेत बने यह लोग आगामी डेढ़ वर्षों तक दूसरे मनुष्यों को जल में डुबोकर मारने का प्रयास करेंगे जिसके कारण आगामी डेढ़ वर्षों में विश्व भर में जल में डूबकर मरने वालों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखी जाएगी तथा समुद्र और नदियों में विचरण करने वाले विषैले सर्प डेढ़ वर्ष के इस अवधिकाल में बहुत से जीवों की मृत्यु का कारण बनेंगे ।
कलौ चंडी 'विनायकौ' के सिद्धांत को समझते हुए भगवती दुर्गा और जल तत्व के देवता भगवान् श्री गणेश की उच्च कोटि की साधना के प्रभाव से मनुष्यों के सभी कष्टों का निवारण होगा ।
"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 27 सितंबर 2023

मंगल-केतु युति २०२३



३ अक्टूबर २०२३ को मंगल द्वारा चित्रा नक्षत्र के तृतीय चरण में प्रवेश के साथ ही 'तुला राशि' में मंगल–केतु का योग बनने जा रहा है जो कि लगभग २८ दिनों का होगा । इस अवधिकाल में विश्वभर में अनेक अमंगलकारी घटनाएं घटित होंगी ।

मंगल ग्रहों का सेनापति होता है, जब भी यह गोचर में पापी ग्रहों की युति अथवा दृष्टि से पीड़ित होता है तो विश्वभर में सेना तथा सेनापतियों को हानि उठानी पड़ती है ।

इधर १७–१८ अक्टूबर की मध्य रात्रि को ग्रहों के राजा सूर्य भी अपनी नीच राशि 'तुला' में संचार करने लगेंगे और वह वहां पहले से ही स्थित केतु की युति तथा राहु की दृष्टि में आ जाएंगे अर्थात् ग्रहों का सेनापति और राजा दोनों ही पाप प्रभाव में आकर पीड़ित होने से शासन तंत्रों के विरुद्ध अराजक तत्वों का उदय होगा, जिसके कारण विश्व भर में अशांति व्याप्त होगी और शासकों तथा सेना के लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण रहेगा ।

भारत के संदर्भ में यह समय और भी चुनौतीपूर्ण इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यहां पहले से ही अनेक अराजक और देशद्रोही तत्वों का जमावड़ा बना रहता है जो निरन्तर विदेशी पैशाचिक शक्तियों के सहयोग से सनातन धर्म को हानि पहुंचाने की चेष्टा करते रहते हैं तथा पिछले ९ वर्षों में राष्ट्रवादी सरकार द्वारा खाद-पानी न दिए जाने के कारण अपने बिलों से बाहर निकलने के लिए कुलबुला रहे हैं अतः २८ दिन के इस अवधिकाल में हमारी सेना, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिस प्रशासन से जुड़े लोगों को विशेष सावधानी रखनी चाहिए, जिससे कोई भी अराजक तत्व भारत में किसी भी प्रकार का उपद्रव न मचा सके ।

विद्वान मनुष्यों को २८ दिन के इस अवधिकाल में अपनी कोई शल्य चिकित्सा (Operation) करवाने, छोटे वाहनों से लंबी दूरी की यात्रा करने अथवा अपने बच्चे का जन्म (Delivery) करवाने से 'यथासंभव' बचना चाहिए ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों को गोचर में २८ दिनों के लिए बनने वाली इस मंगल-केतु युति से निम्नलिखित फल प्राप्त हो सकते हैं ।

मेष राशि- मेष लग्न
आपकी जन्म कुंडली के सप्तम भाव में बनने जा रहे इस योग से आपके वैवाहिक जीवन में कोई नई समस्या उत्पन्न हो सकती है अतः विवाद की स्थिति से बचें, व्यापार से जुड़े हुए जातक अपने व्यापार तथा पार्टनरशिप में सावधानी रखें । सिर की चोट से बचें ।

वृष राशि-वृष लग्न
२८ दिन के इस अवधिकाल में यथासंभव लंबी दूरी की यात्रा करने से बचें । गुप्त शत्रुओं से आपको सावधान रहने की आवश्यकता है । अपने जीवन साथी के साथ इन २८ दिनों में कोई यात्रा न करें तथा उनके स्वास्थ्य का ध्यान 
रखें ।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
आपको अपनी संतानों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए,पेट तथा हृदय रोगी अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें तथा इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं इन २८ दिनों में विशेष सावधानी रखें । अपने बड़े भाई-बहनों को अनावश्यक यात्रा (विशेषकर उत्तर-पश्चिम दिशा की) न करने दें ।

कर्क राशि- कर्क लग्न
आपकी जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में मंगल-केतु का योग आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए विपरीत फल देने वाला हो सकता है l यदि आप कोई नया भवन, भूमि, वाहन लेने जा रहे हैं तो आपको इन २८ दिनों के व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए । आपके सेवकों को कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपको तथा आपकी संतान को वाहन चलाते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्कता है, आपकी संतान इस अवधिकाल में उत्तर दिशा की यात्रा भूलकर भी न करें ।

सिंह राशि- सिंह लग्न
छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंधों में मधुरता रहे इसका ध्यान रखें । कान और गले के रोगी  इस समय अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें । यह समय पराक्रम दिखाने का नहीं है अतः व्यर्थ के विवाद टाल दें । आपके माता-पिता को इस समय लंबी दूरी की यात्रा (विशेषकर उत्तर-पूर्व दिशा की) नहीं करनी चाहिए ।

कन्या राशि-कन्या लग्न
इन २८ दिनों में अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा अपनी वाणी के कारण विवाद में पड़ जाएंगे । अपने कुटुंब में  क्लेश की स्थिति उत्पन्न न होने दें ।  यदि आपके दांतों का कोई उपचार चल रहा है तो सावधानी से उपचार करवाएं । इन २८ दिनों में अनावश्यक लेन-देन से बचें अन्यथा कोई धन हानि हो सकती है । अपने दक्षिण नेत्र को 
शुद्ध जल से धोते रहें ।

तुला राशि-तुला लग्न
मंगल-केतु का यह योग आपके सिर के स्थान पर बनने से व्यर्थ की चिंताएं आपको घेर सकती हैं, यथासंभव आपको सिर की चोट आदि से बचना चाहिए । क्रोध में अपना आवेश न खोएं, जीवन साथी से विवाद की स्थिति को इन २८ दिनों के लिए टाल दें ।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
चिकित्सालय अथवा न्यायालय में आपका धन का व्यय न हो इसके लिए मंगल-केतु के मंत्रों का जाप करें, आपकी दादी के लिए ये समय कष्टकारी है । व्यर्थ के विवाद को अधिक न बढ़ाएं अन्यथा न्यायालय द्वारा दंडित किए जा सकते हैं । अपने वाम नेत्र को शुद्ध जल से धोते रहें । पैरों के नाखूनों को अच्छे से काट कर रखें अन्यथा उसमें चोट लगने की संभावना है।

धनु राशि-धनु लग्न
बड़े भाई-बहनों का स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंध मधुर बने रहें इसका ध्यान रखें । हृदय तथा पेट के रोगी अपने चिकित्सकों से परामर्श करते रहें तथा संतान के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें । इन २८ दिनों में अपने छोटे बच्चों को वाहन आदि देने से आपको बचना चाहिए ।

मकर राशि-मकर लग्न
इस राशि-लग्न वाले जो जातक शासन तंत्र के आधीन कार्यरत हैं उन्हें विशेष सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा किसी विवाद में पड़ने से मानसिक चिंताएं बढ़ सकती हैं ।जो लोग सरकारी ठेके आदि लेते हैं उनके लिए भी २८ दिन का यह समय उत्तम नहीं है । घुटने तथा छाती की चोट आदि समस्या से आपको बचना चाहिए । माता तथा बड़े भाई- बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । अपनी माता तथा अपने बड़े भाई-बहनों को दक्षिण दिशा की यात्रा न करने दें ।

कुंभ राशि-कुंभ लग्न
आपको तथा आपके छोटे भाई-बहनों को इन २८ दिनों में  अनावश्यक यात्राओं( विशेषकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की) से बचना चाहिए । पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । पढ़ते-लिखते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधे करके उचित अवस्था में बैठें । २८ दिन का यह समय काल आपके भाग्य के लिए अच्छा नहीं है अतः कोई नवीन कार्य करने के लिए इस समय के निकलने की प्रतीक्षा करें ।

मीन राशि-मीन लग्न
धन के अपव्यय से बचें तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, आपको भी अपनी पीठ तथा कटिबंध स्थान का ध्यान रखना चाहिए । भारी वस्तुएं उठाने से बचें तथा अपने पिता को किसी भी परिस्थिति में दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा न करने दें । इन २८ दिनों में आपके पिता को घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में निवास करने से बचना चाहिए ।

मंगल-केतु की युति के विषय में पूर्व में मेरा एक ब्लॉग आ चुका है और उसमें तब मैने जो भी Prediction की थीं वह सभी सत्य घटित हुई थीं । ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन कर रहे विद्वान मेरे पुराने ब्लॉग को पढ़कर इन २८ दिनों में घटित होने जा रही घटनाओं का पूर्व अनुमान लगा सकते हैं। मंगल-केतु युति के ऊपर मेरे पुराने ब्लॉग का लिंक—

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में मंगल व केतु पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ प्रभाव में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति इतनी अमंगलकारी नहीं होगी जितना कि उपरोक्त फलादेश में बताया गया है किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में मंगल और केतु पहले से ही अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पाप अथवा क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हुए तथा उन पर किसी भी प्रकार की शुभ दृष्टि न हुई और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी । ऐसे जातकों को अपने-अपने अधिकार की सीमा में भगवान् शंकर तथा हनुमान जी की उपासना करने से किसी भी प्रकार की कोई भी हानि नहीं होगी ।

"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 24 अगस्त 2023

प्रेम-वियोग और अध्यात्म


अपने Professional Astrology के कैरियर में अब तक मेरे पास हजारों ऐसी जन्मकुंडलियां आ चुकी हैं जिसमें प्रेम संबंधों में वियोग हो जाने से सच्चा प्रेम करने वाले स्त्री-पुरुष आन्तरिक रूप से इतना टूट जाते हैं कि अपने जीवन जीने की समस्त इच्छा ही समाप्त कर लेते हैं । यदि प्रेम दोनों ही ओर से हो तब तो ठीक है किन्तु यदि एक व्यक्ति प्रेम करता है और दूसरा उसके साथ प्रेम करने का अभिनय कर रहा है तो ऐसे में सच्चा प्रेम करने वाला व्यक्ति अपने साथ हुए इस छल को सह नहीं पाता और स्वयं को चारों ओर से घोर मानसिक दुःख से घेर लेता है । उसे किसी से बात करना, मिलना-जुलना नहीं भाता क्योंकि उसे लगता है कि कोई भी दूसरा उसके विरह के दुःख को समझ नहीं पा रहा है (अपने प्रेमी-प्रेमिका के साथ बिताए गए अच्छे पलों के बार-बार स्मरण होने तथा भविष्य में कभी उन पलों को पुनः न जी सकने का दुःख) ।


प्रेम-वियोग जैसे महान 'सांसारिक दुःख' में डूबकर प्रतिदिन स्वयं तथा अपने परिवारजनों को घोर कष्ट दे रहे ऐसे स्त्री-पुरुषों, जिन पर कोई धर्म गुरु ध्यान नहीं देता, ऐसे उन भाई-बहनों को उनके उस दुःख से बाहर निकालने के लिए मैं यह ब्लॉग लिखने जा रहा हूँ । यद्यपि मैं यह जानता हूँ कि विरह की अग्नि से बड़े-बड़े ऋषि मुनि और राजा-महाराजा तो क्या स्वयं भगवान् (लीलावश) भी नहीं बच सकें हैं तथापि अपने आराध्य भगवान् शंकर से मैं यह प्रार्थना करता हूँ कि वह मेरे इस ब्लॉग को यह आशीर्वाद प्रदान करें कि इस ब्लॉग को पढ़ने वाले मेरे सनातनी भाई-बहन न केवल प्रेम-वियोग की पीड़ा से बाहर निकलें अपितु वह सदा धर्म युक्त आचरण करने वाले धर्म-परायण सनातनी बनें ।

किसी भी जातक की जन्म कुंडली का 'पंचम भाव, 'पंचम भाव का अधिपति' (पंचमेश)' और प्रेम संबंधों का कारक ग्रह 'शुक्र' (भाव,स्वामी,कारक) उसके जीवन में बनने वाले प्रेम संबंधों को प्रदर्शित करते हैं तथा 'पंचम से पंचम' होने से 'नवम भाव' (भावात् भावम्) भी इस विषय में महत्वपूर्ण भाव हो जाता है।

ऐसे में यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में पंचम भाव, पंचमेश, नवम भाव, नवमेश तथा कारक शुक्र शुभ स्थिति में हैं तो उस व्यक्ति के जीवन में कभी प्रेम की कमी नहीं रहती । इसके विपरीत यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में यह सभी अथवा इनमें से कुछ एक-दो पीड़ित हैं, पाप प्रभाव में हैं, अपनी नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित हैं तो ऐसा जातक जीवन भर अपना प्रेम प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता रहता है । वह किसी को कितना ही प्रभावित करने का प्रयास कर ले किन्तु कोई उसकी ओर ध्यान नहीं देता ।

इधर यदि किसी जातक की कुंडली में पंचम भाव, पंचमेश, नवम भाव, नवमेश और कारक शुक्र शुभ स्थिति में हों और गोचर में उसकी जन्म कुंडली का पंचमेश ६,८,१२ भाव में चला जाए अथवा गोचर में पंचम भाव पर राहु, केतु, शनि, सूर्य, मंगल जैसे पृथकतावादी ग्रहों का संचार हो जाए तथा गोचर में ही प्रेम संबंधों का कारक शुक्र अपनी नीच अथवा शत्रु राशि में चला जाए या पाप ग्रहों के प्रभाव से पीड़ित अथवा सूर्य से अस्त हो जाए तब भी कुछ समय के लिए उसके प्रेम संबंधों में कड़वाहट आ जाती है जो कि अनेक बार इतनी अधिक हो जाती है कि वह स्वयं को अपने प्रेम संबंध से पृथक कर लेता है भले ही उसको इससे कितनी ही पीड़ा और दुःख उठाना पड़े ।

इस प्रकार यदि ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो किसी भी जातक के जीवन में प्रेम संबंधों में सदैव मधुरता रह पाना संभव नहीं है । कभी न कभी तो यह पृथकतावादी प्रभाव उसके प्रेम संबंधों पर पड़ेगा ही । यही वह संक्रमण काल होता है जिसमें स्त्री-पुरुष स्वयं ही अपने प्रेम संबंधों को विच्छेद कर किसी दूसरे व्यक्ति से प्रेम प्राप्ति की अभिलाषा लिए आगे बढ़ जाते हैं और पीछे छोड़ जाते हैं अपने प्रेम के वियोग में डूबी हुई अपनी ही जैसी एक दूसरी जीवात्मा को, जिसकी अश्रुधाराओं से बनता है वह 'संचित कर्म' जिससे उत्पन्न 'प्रारब्ध' को भोगने के लिए उन्हें पुनर्जन्म लेना पड़ता है और पुनर्जन्म लेकर उनको भी अपने अगले जन्म में प्रेम-वियोग का वही दुःख सहन करना पड़ता है जो वह अपने इस जन्म में किसी और को दे रहा है क्योंकि संचित कर्म से उत्पन्न हुए प्रारब्ध का फल तो भोगना ही पड़ता है, यही ईश्वरीय विधान है ।

'संचित' का अर्थ होता है संचय (एकत्रित) किया हुआ, अतएव हमारे अनेक पूर्व जन्मों से लेकर वर्तमान में किए गए कर्मों के संचय को 'संचित कर्म' कहते हैं । इस प्रकार से संचित कर्म हमारे द्वारा अनेक जन्मों में किए गए पाप-पुण्यों का संग्रह है । इन्हीं संचित कर्मों में से कुछ अंश-मात्र कर्मों के फल को जो हमें इस जन्म में भोगना है उसे हमारा 'प्रारब्ध' कहा जाता है, दूसरे शब्दों में इसे हमारा 'भाग्य' भी कहते हैं अर्थात् यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो जो कुछ भी शुभ-अशुभ घटनाएं हमारे जीवन में घटित होती हैं और जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता उसी को हमारा 'प्रारब्ध' कहते हैं ।

अनेक बार दुःख प्राप्त होने पर हम ईश्वर को कोसने लगते हैं और कहते हैं कि भगवान् ! हमने तो अपने इस जन्म में ऐसा कोई पाप नहीं किया जो हमें यह दुःख उठाना पड़ रहा है किन्तु ऐसा कहते समय हम यह भूल जाते हैं कि हम केवल अपने इस जन्म को देख रहे होते हैं किन्तु इस चराचर जगत को बनाने वाले सर्वशक्तिमान ईश्वर हमारे अनेक जन्मों को भी जानते हैं ।

श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण, परम् धर्मात्मा अर्जुन को पुनर्जन्म के विषय में संकेत देते हुए यह कहते हैं—
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।४.५।।
अर्थात्
हे परन्तप अर्जुन ! मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं। उन सबको मैं जानता हूँ, पर तू नहीं जानता ।

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।४.९।।
अर्थात्
हे अर्जुन ! मेरा जन्म और कर्म दिव्य है,  इस प्रकार जो पुरुष तत्व से जान लेता है, वह शरीर को त्यागकर फिर जन्म को नहीं प्राप्त होता;  वह मुझे ही प्राप्त होता है ।।

अपने संचित कर्मों को नष्ट करके हमें किस प्रकार से प्रारब्ध शून्य बनना है यह समझाते हुए आगे के श्लोक में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं—
यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा।।४.३७।।
अर्थात्
जैसे प्रज्जवलित अग्नि ईन्धन को भस्मसात् कर देती है,  वैसे ही, हे अर्जुन ! ज्ञानरूपी अग्नि सम्पूर्ण कर्मों को भस्मसात् कर देती है।।

अतः मेरा उन सभी सनातनी भाई-बहनों से विनम्र निवेदन है कि वह इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इस बात को समझें कि प्रेम वियोग रूपी जो दुःख वह आज भोग रहे हैं संभवतः वह उनके द्वारा पूर्व जन्म में किए गए किसी पाप कर्म का कोई फल है जो उन्हें यह भयानक मानसिक पीड़ा और दुःख देकर अंततः उनकी आत्मा को शुद्ध करने में सहायता ही कर रहा है तथा आप सभी इस बात को जानकर भी अपने मन की पीड़ा और क्रोध को शान्त कर सकते हैं कि इस जन्म में आपके साथ जो छल करके स्वयं को अत्यधिक चतुर समझ रहा है उसको भी पुनर्जन्म लेकर अपने संचित कर्मों का भुगतान तो करना ही पड़ेगा । यही नहीं, अनेक बार तो प्रारब्ध की स्थिति इतनी विकट होती है कि उसको इसी जन्म में निकट भविष्य में ही अपने द्वारा किए गए इस पाप कर्म का भुगतान करना पड़ जाता है । अतः इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भी आप में से किसी को अपने लिए शोक नहीं करना चाहिए ।

किसी के वियोग में शोक न करने का यह अत्यन्त तुच्छ और सांसारिक कारण है जो कि यहां लिखना इसलिए आवश्यक था क्योंकि मैं जानता हूँ कि प्रत्येक मनुष्य की चेतना शक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है, जिसमें से उच्च स्तर की चेतना शक्ति वाले मनुष्य प्रेम में स्वयं से छल करने वाले दूसरे मनुष्यों को स्वयं के पाप कर्मों के फलों का भुगतान करवाने वाला एक निमित्त मात्र मानकर क्षमा कर देते हैं तो कुछ मध्यम व निम्न स्तर की चेतना शक्ति वाले मनुष्य इस छल को सह नहीं पाते और निरन्तर उसके विनाश की कामना करते रहते हैं, इनमें से सभी अपने-अपने स्थानों पर सही हैं क्योंकि जिसके साथ छल किया जाता है उसकी पीड़ा बस वही समझ सकता है, हम यहां बैठकर उसका आंकलन भी नहीं कर सकते हैं ।

अब बात करते हैं कि प्रेम वियोग रूपी इस दुःख को मिटाने में अध्यात्म की क्या भूमिका है ?
तो जीव के अज्ञान का कारण उसकी देहात्मबुद्धि है । यह देह भौतिक है और मैं आत्म स्वरूप हूं जिसने यह देह धारण की हुई है, इसी समझ का नाम ही आत्म-ज्ञान है । दुर्भाग्यवश सांसारिक मोहवश जो जीव अज्ञान में रहता है, वह देह को ही आत्मा मान लेता है । उसे जीवन भर यह ज्ञात ही नहीं हो पाता कि देह पदार्थ-स्वरूप है । ये देहें बालू के छोटे-छोटे कणों के समान एक दूसरे के निकट आती और पुन: कालवेग से पृथक् हो जाती हैं जीव व्यर्थ ही संयोग या वियोग के लिए शोक करते हैं । इस विषय पर श्रीमद् भागवत का यह श्लोक देखिए...
यथा प्रयान्ति संयान्ति स्रोतोवेगेन बालुका: ।
संयुज्यन्ते वियुज्यन्ते तथा कालेन देहिन: ॥ ६.१५.३॥
अर्थात्—
जिस प्रकार बालू के छोटे-छोटे कण लहरों के वेग से कभी एक दूसरे के निकट आते हैं और कभी विलग हो जाते हैं, उसी प्रकार से देहधारी जीवात्माएँ काल के वेग से कभी मिलती हैं, तो कभी बिछुड़ जाती हैं । 

अतः इस उच्च कोटि के आध्यात्मिक ज्ञान को जानने के पश्चात् भी यदि कोई प्रेम वियोग से शोकाकुल है तो उसके लिए मैं यहां एक ही बात कहूंगा कि आपमें से कोई भी प्रेम संबंधों में विफलता के लिए इसलिए भी शोक न करे क्योंकि आपके साथ यदि कोई छल करके गया है अथवा ग्रहों और काल के प्रभाव से पृथक हो गया है तो वह आपके प्रेम रूपी ऋण को उतारने के लिए पुनः जीव देह धारण करके आपके सम्मुख आने के लिए विवश किया जाएगा। यही ईश्वरीय विधान है और न्याय भी। अतः आपको कभी भी किसी के लिए भी शोक नहीं करना चाहिए और सदैव धर्म की ही शरण में रहना चाहिए क्योंकि सदा धर्म की शरण में रहने वालों का कभी नाश नहीं होता ।
"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 8 मई 2023

मंगल का अपनी नीच राशि 'कर्क 'में प्रवेश (२०२३)—


 
१० मई २०२३ दोपहर १ बजकर ३९ मिनट पर गोचर में मंगल अपनी नीच राशि 'कर्क' में प्रवेश करने जा रहे हैं और वह १ जुलाई २०२३ प्रातः २ बजकर १६ मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात् अपनी मित्र राशि 'सिंह' में प्रवेश करेंगे ।

अपने इस राशि परिवर्तन के साथ ही मंगल स्वयं राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर राहु के ही केंद्रीय प्रभाव में आ जाएंगे और शनि के साथ षडाष्टक योग भी बना लेंगे । मंगल-शनि का यह षडाष्टक योग संसार के लिए विशेष पीड़ादायक होता है अतः इस योग का दुष्प्रभाव सभी जातकों के ऊपर पड़ेगा ।

मंगल के नीच राशि में गोचर करने तथा शनि के साथ यह षडाष्टक योग बन जाने से इस अवधिकाल में विश्व भर में हिंसा, आगजनी जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी और विश्व भर से ट्रेन पलटना, प्लेन क्रैश होना तथा गैस पाइप लाइन में आग लग जाना जैसी अशुभ सूचनाएं प्राप्त होंगी इसके अतिरिक्त सामान्य से कहीं अधिक सड़क दुर्घटनाएं होने के आंकड़े भी प्राप्त होंगे। अतः विद्वान मनुष्यों को इस अवधिकाल में निजी वाहनों से लंबी दूरी की यात्राओं से यथा संभव बचना चाहिए, घरेलू महिलाओं को गैस सिलेण्डर का उपयोग करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए तथा आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को विशेष प्रबन्ध करने चाहिए।

राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर अपनी नीच राशि में रहने के कारण मंगल के दुष्प्रभावों में एक विशेष विध्वंसकारी शक्ति आ गई है जिसके फलस्वरूप ऐसा मंगल गोचर में जातकों की जन्मकुंडलियों के जिस-जिस भावों का स्वामी होकर जिन-जिन भावों में जाएगा और यह सभी भाव शरीर के जिन अंगों, कारक तत्वों तथा सगे-संबंधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन सभी के लिए हानिकारक सिद्ध होगा।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति होने से जातक को जो रोग, चोट, दुर्घटनाएं प्राप्त होती हैं, इस अवधिकाल में उसमें अधिकता देखी जाएगी । जन्मकुंडली में १२ भावों तथा मंगल से होने वाले रोगों के विषय में जानने के लिए मेरा यह ब्लॉग देखें

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर 'मन की राशि' में संचार करते हुए मंगल की मारक क्षमता के प्रभाव से जीवों के मन में हिंसा की भावना जन्म लेगी जिससे इस अवधिकाल में एक दूसरे के प्रति हिंसा में अत्यधिक वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप विश्व भर में हिंसा-रक्तपात और यहां न लिख सकने वाली अनेक अशुभ घटनाएं घटित होंगी । 

मंगल शल्य चिकित्सा का कारक ग्रह है जब यह अशुभ स्थिति में होता है तब विश्व भर में ऑपरेशन होने की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होती है अतः चिकित्सकों के लिए यह समय व्यस्ततापूर्ण रहेगा ।

ब्लॉग का विस्तार न हो यह देखते हुए तथा समय के अभाव में सभी राशि-लग्नों वाले जातकों का भविष्यफल इस ब्लॉग में बताना संभव नहीं है अतः मंगल के इस विनाशकारी गोचर से सभी जातकों के बचाव के लिए कुछ उपायों का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूँ ।

  •  हनुमान जी की उपासना करें ।
  •  रक्त वर्ण की देशी गाय की सेवा करें तथा उसे गुड़ का सेवन करवाएं ।
  •  मंगल के उस मंत्र का जाप करें जिसके लिए आप अधिकृत हैं ।
  •  गुड़, घी, लाल मसूर की दाल, तांबे का पात्र, अनार, गेंहू, लाल वस्त्र आदि वस्तुओं का दान किसी ऐसे मंदिर में करें जिसमें शास्त्र मर्यादा का पालन करने वाले वेदपाठी ब्राह्मण विद्वानों की नियुक्ति की गई हो 
  • अपने छोटे भाइयों को उनकी प्रिय वस्तु भेंट करें (ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 'मंगल' छोटे भाई का कारक होता है) ।
  • स्वयं रक्त वर्ण के वस्त्र धारण करने से बचें।

नोट—
मंगल का यह अशुभ गोचर उन जातकों के लिए उतना हानिकारक नहीं होगा जिनकी जन्मकुंडलियों में मंगल शुभ स्थिति में होंगे तथा उनकी दशा–अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ योगकारक ग्रहों की चल रही होगी किन्तु जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में मंगल अशुभ स्थिति में हुए और उनकी दशा–अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की हुई, उनके लिए मंगल का यह गोचर अत्यन्त हानिकारक सिद्ध होगा ।

 

"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 27 अप्रैल 2022

शनि का अपनी मूलत्रिकोण राशि 'कुंभ' में प्रवेश

 

२९ अप्रैल २०२२ को प्रातः ९ बजकर ५७ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर शनि 'मकर' राशि से निकल कर अपनी मूलत्रिकोण राशि 'कुंभ' में प्रवेश करेंगे जहां वह २९ मार्च २०२५ की रात्रि १० बजकर ६ मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात् अगली राशि 'मीन' में चले जायेंगे।

शनि ५ जून २०२२ में वक्री हो जायेंगे और १२ जुलाई २०२२ को वक्री गति से ही कुछ समय के लिए अपनी पिछली गोचर राशि 'मकर' में पुनर्वापसी करेंगे और बाद में २३ अक्तूबर २०२२ से अपनी मार्गी गति को प्राप्त होकर १७ जनवरी २०२३ को पुनः 'कुंभ' राशि में प्रवेश कर जायेंगे। इस प्रकार 'मकर' राशि में शनि के गोचर की अवधि १२ जुलाई २०२२ से १७ जनवरी २०२३ तक रहेगी।

शनि क्रम संख्या में सूर्य से छ्ठे स्थान पर स्थित हैं और बृहस्पति के बाद सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह हैं। यह विभिन्न गैसों का एक विशाल भंडार रखते हैं। अतः 'यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे' के सिद्धांत के आधार पर जातक की जन्मकुंडली में शनि की अशुभकारी स्थिति होने पर उसके शरीर में गैस की अधिकता हो जाती है। वैदिक ज्योतिष में शनि को न्यायाधीश कहा जाता है तथा यह आयु, रोग और दुःख के कारक होते हैं।

प्रायः देखा जाता है कि शनि का नाम सुनकर ही लोग भयभीत हो जाते हैं क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में दुःख नहीं उठाना चाहता। किन्तु यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो शनि, जीव को दुखों के चक्र में डालकर उसके द्वारा पूर्व जन्मों में किए गए पाप कर्मों का भुगतान करवाकर उसकी आत्मा को शुद्ध करवाने का ही कार्य करते हैं जिससे जीव मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चलकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके।

कई जातकों की जन्मकुंडलियों में अशुभ स्थिति होने पर शनि अपनी दशा काल में उसको इतने दुःख देते हैं कि अनेक बार वह अपने सगे-संबंधियों के मोह से विरक्त होकर, अपना घर-परिवार छोड़कर पर्वतों, वनों आदि में साधना करने निकल जाता है और स्वयं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर लेता है। पर्वतों पर आप जितने भी साधु रहते हुए देखते हैं उनके जीवन पर कहीं न कहीं शनि का ही प्रभाव होता है जिसके कारण वह आत्मकल्याण हेतु मोक्ष की साधना कर पा रहे हैं। इस प्रकार शनि दुखों के कारक होते हुए भी अन्त में जीव के लिए कल्याणकारी ही सिद्ध होते हैं।

शनि ग्रह की एक विशेषता यह है कि उनकी अशुभ दशा-अंतर्दशा, ढैय्या, साढ़े साती प्राप्त होने पर जो जातक अपने स्वभाव में विनम्रता और जीवन में सात्विकता ले आते हैं उनको वह उतना अशुभ फल नहीं देते किन्तु जो जातक दूसरों पर अत्याचार करते हैं, पाप आचरण करते हैं, हत्या, लूट, डकैती, चोरी, बलात्कार आदि पापों में लिप्त रहते हैं तथा मांस, मदिरा आदि का सेवन करते हैं, शनि उनका समूल विनाश करके प्राणियों को उसके भय से मुक्ति दिलाने का कार्य करते हैं।

शनि की गति सभी ग्रहों में सबसे अधिक धीमी है जिसके कारण यह एक राशि से निकलने में लगभग ढाई वर्ष का समय लगा देते हैं। इसी ढाई वर्ष के समय काल को शनि की ढैय्या के नाम से जाना जाता है। यह तुला, मकर और कुम्भ राशियों, सप्तम भाव (पश्चिम दिशा), दक्षिणायन, स्वद्रेष्काण में रहने पर तथा रात्रि में बली होते हैं और यह कुम्भ राशि के प्रथम २० अंश तक मूलत्रिकोण तथा २१ से ३० अंश तक स्वराशि का फल देते हैं। यह वायु तत्व प्रधान एक नपुंसक ग्रह हैं जो कि शिशिर ऋतु के स्वामी होते हैं तथा रोग, दुःख, विपत्ति, नौकरी (सेवक), न्याय व्यवस्था, शराब, लोहा, काले वस्त्र, पेट्रो कैमिकल्स, कोयला, गैस, तंत्रिका तंत्र (Nervous System), गठिया, वायु विकार, लकवा, श्रम, दरिद्रता, मजदूरी, ऋण आदि के कारक होते हैं।

फलदीपिका में शनि के विषय में इस प्रकार कहा गया है...

वातश्लेष्मविकारपादविहतिं चापत्तितन्द्राश्रमान् भ्रान्तीं कुक्षिरुगन्तरुष्णभृतकध्वंसं च पार्श्वहतिम्।
भार्यापुत्रविपत्तिमङ्ग्विहर्तिं हृत्तापमर्कत्मजो वृक्षाश्मक्षतिमाह कश्मलगणैः पीडां पिशाचादिभिः॥
अर्थात् -
शनि के दूषित होने से वात-कफज विकार, पादक्षति, विपत्ति, श्रमजनित थकान, मानसिक विभ्रम, कुक्षिरोग, हृद् रोग, भृत्यों की क्षति, पसली में चोट, स्त्री-पुत्रादि को कष्ट, अंग-भंग, हृत् ताप, वृक्ष अथवा पत्थर से चोट, पिशाचादि से पीड़ा आदि फल होते हैं ।

फलदीपिका में यह भी कहा गया है...

दारिद्रयदोषनिजकर्मपिशाचचौरै: क्लेशं करोति रविजः सह सन्धिरोगैः।
अर्थात्
दरिद्रता, दूषित कर्म, पिशाच और चौर भय तथा इनके द्वारा कष्ट, सन्धियों में रोग आदि दूषित शनि के प्रभाव से होते हैं।

वैदिक ज्योतिष में शनि को आयु का कारक माना जाता है, यदि लग्नेश, अष्टमेश और शनि बलवान हों तो मनुष्य दीर्घायु होता है। शनि का रंग काला होता है और यदि यह किसी जातक के लग्न-लग्नेश, चन्द्र लग्न-चन्द्र लग्नेश, सूर्य लग्न-सूर्य लग्नेश तथा द्वितीय भाव-द्वितीयेश पर अपना प्रभाव डालें तो उस जातक का रंग काला होता है।

शनि की ढैय्या एवं साढ़े साती विचार-
गोचर में शनि जब किसी जातक के चन्द्र लग्न (जन्म राशि) से चतुर्थ अथवा अष्टम् भाव में संचार करना प्रारम्भ करते हैं तब उसके ऊपर शनि की ढैय्या का आगमन होता है और जब यह चन्द्र लग्न से द्वादश, प्रथम और द्वितीय भावों में स्थित राशियों में ढाई-ढाई वर्ष संचार करते हैं तो इसको ही शनि की साढ़े साती कहा जाता है।

शनि के इस राशि परिवर्तन के कारण 'धनु राशि' पर से शनि की साढ़े साती तथा 'मिथुन व तुला' से शनि की ढैय्या समाप्त हो जायेगी और 'मीन राशि' पर साढ़े साती तथा 'कर्क व वृश्चिक' पर ढैय्या का आगमन होगा। इस प्रकार 'मकर, कुम्भ व मीन' पर शनि की साढ़े साती तथा 'कर्क व वृश्चिक' राशियों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव रहेगा। जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि १२ जुलाई से शनि पुनः 'मकर' राशि में गोचर करने लगेंगे जिसके कारण जो राशियां २९ अप्रैल को शनि ढैय्या व साढ़े साती से मुक्त हो चुकी होंगी वह एक बार पुनः इसकी चपेट में आ जायेंगी और १७ जनवरी २०२३ तक इसी स्थिति में रहेंगी। इस तरह से देखा जाए तो मिथुन और तुला राशि वालों को शनि की ढैय्या और धनु राशि को शनि की साढ़े साती से पूर्ण रूप से मुक्ति १७ जनवरी २०२३ को ही मिल सकेगी।

आइए अब जानते हैं कि विभिन्न राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर शनि के इस राशि परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा?

शनि के 'कुम्भ' राशि में प्रवेश से विभिन्न राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन में पड़ने वाले प्रभाव-

मेष राशि - मेष लग्न
आपके एकादश भाव में शनि का संचार आपको सरकार से विभिन्न प्रकार के लाभ कराने वाला होगा। यदि आप किसी सरकारी पद पर हैं तो आपके प्रमोशन के योग बनेंगे। यदि आप सरकारी ठेकेदारी का कार्य करते हैं तो आपको उससे बहुत अधिक लाभ प्राप्त होगा और यदि आप राजनीति में हैं तो आपको उसमें भी सफलता मिलेगी किन्तु शनि की तीसरी नीच दृष्टि आपके सिर, सप्तम शत्रु दृष्टि आपके पेट, हृदय, संतान तथा पढ़ाई के लिए अशुभ है तथा इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके ससुराल के लिए अमंगलकारी है। इस राशि-लग्न वाले जातक सिर की चोट से स्वयं का बचाव करें। हनुमान जी की आराधना से आपको विशेष लाभ होगा।

वृष राशि - वृष लग्न
आपके दशम भाव में शनि का संचार आपके पिता के स्वास्थ्य, उनकी आयु तथा उनकी आर्थिक उन्नति के लिए विशेष लाभकारी है। यदि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है तो उसमें आपको सफलता मिलेगी किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी दादी के स्वास्थ्य, आपकी एड़ी-पंजों तथा आपके बाएं नेत्र के लिए विशेष हानिकारक है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपकी माता, वाहन, भवन-भूमि तथा आपके सेवकों के लिए अशुभ है तथा इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन और पार्टनरशिप के लिए अमंगलकारी है। इस अवधिकाल में आपको वाहन चलाने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा कोई दुर्घटना घटित हो सकती है। रुद्राक्ष की माला से भगवान् शंकर के उच्च कोटि के मंत्रों का विधिवत् जाप करें।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
आपके नवम भाव में शनि का संचार आपके भाग्य के लिए बहुत उत्तम फल प्रदान करने वाला होगा। नवम भाव में शनि आपको देश में ही पर्वतीय स्थानों की यात्रा करवा सकता है जिससे आपके जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का नवीन संचार होगा। यदि आपके भाग्य के कारण आपके कोई कार्य रुके हुए थे तो वह अब पूर्ण होंगे किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी पिंडलियों तथा आपके बड़े भाई-बहन, चाचा और छोटी बुआ के लिए विशेष हानिकारक है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों, आपके गले और दाहिने हाथ के लिए अशुभ है। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपके छ्ठे भाव में होने के कारण इस समय आपको कर्ज लेने से बचना चाहिए तथा अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। यह समय आपके दादा के स्वास्थ्य के लिए भी अशुभ है। यदि पहले से ही आप छ्ठे भाव से सम्बंधित अंगों के किसी रोग से पीड़ित है तो अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रुद्राक्ष की माला से भगवती दुर्गा के उच्च कोटि के मन्त्रों का जाप करने से सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होगा।

कर्क राशि - कर्क लग्न
आपके अष्टम् भाव में शनि का संचार आपकी आयु तथा आपके जीवन साथी के धन के लिए अत्यन्त शुभ है। यदि इस राशि-लग्न का कोई जातक मृत्यु शैय्या पर होगा तो वह अष्टम् भाव में पहले से ही संचार कर रहे मंगल के 'मीन राशि' में प्रवेश करने के साथ ही शनि के प्रभाव से ठीक होने लगेगा क्योंकि तब इनके अष्टम् भाव में आयुकारक शनि के अकेले संचार करने से वह इनकी आयु में वृद्धि कर देगा। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पिता के धन, सास के स्वास्थ्य तथा आपके घुटनों की लिए ठीक नहीं है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके धन, कुटुंब तथा मुख के लिए अशुभ है और इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके पेट, हृदय, पढ़ाई तथा आपकी संतान के लिए अमंगलकारी है। अपने इष्टदेवता के मंत्रों का विधिपूर्वक जाप करें।

सिंह राशि - सिंह लग्न
यद्यपि शनि का सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है तथापि यह आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य और उनके मानसम्मान में वृद्धि करवाने वाला होगा। यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि शुभ स्थिति में हैं और आप उसी से सम्बंधित वस्तुओं का व्यापार करते हैं तो यह समय आपके व्यापार के लिए उत्तम है। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पिता तथा आपके भाग्य के लिए अशुभ है तथा यह आपको धर्म से भी विमुख करेगी। पीठ और कमर की चोट से स्वयं का बचाव करें। इस अवधिकाल में आपको अपने नगर से दूर होने वाली व्यर्थ की यात्राओं को टाल देना चाहिए अन्यथा यात्रा में हानि उठानी पड़ सकती है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके सिर में कोई चोट अथवा पीड़ा दे सकती है, अतः बचाव करें। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी माता, भवन-भूमि, वाहन और सेवकों के लिए अमंगलकारी है। हनुमान जी की उपासना,पीपल की पूजा करने तथा काले रंग की देशी गाय को रात्रि के समय भोजन करवाने से शनि जनित पीड़ाओं का शमन होगा। शनि के मंत्रों का विधिवत् जाप करने से भी जीवन में सुख-शान्ति का आगमन होगा।

कन्या राशि - कन्या लग्न
शनि का आपके छठे भाव में संचार आपको कर्जों से मुक्ति प्रदान करने तथा आपके शत्रुओं का विनाश करने वाला सिद्ध होगा किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके ससुराल तथा आपके जीवन साथी के धन एवं उनके दाहिने नेत्र व मुख के लिए अशुभ है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके धन का व्यय चिकित्सालय, औषधियों अथवा न्यायालय में करवाएगी, अतः यदि आपके परिवार में किसी को चिकित्सा की आवश्यकता है तो अपने धन का उपयोग उसकी चिकित्सा में करें अन्यथा आपका धन न्यायालय में किसी अभियोग आदि में व्यय हो सकता है। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों, आपके दाहिने हाथ एवं गले के लिए कष्टकारी है। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। किसी योग्य वेदपाठी ब्राह्मण के सानिध्य में देवी बगुलामुखी और हनुमान जी की उपासना करें।

तुला राशि - तुला लग्न
यद्यपि शनि का आपके पंचम भाव पर संचार आपके पेट में गैस की वृद्धि करने, आपकी बुद्धि को दूषित करने, आपके प्रेम संबंधों में बाधा डालने तथा आपकी संतान को कष्ट देने वाला होगा तथापि यदि आपकी जन्मकुंडली में आपका पंचम भाव एवं पंचमेश शुभ स्थिति में हुआ तो यह समय आपको अक्समात् ही जुआ, लॉटरी , सट्टा, शेयर मार्केट आदि से धन प्राप्त करवाने वाला तथा राजनीति में आपको उच्च पद प्राप्त करवाने वाला सिद्ध होगा। यह समय आपके माता के धन एवं उनके कुटुम्ब की वृद्धि करने वाला होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां इस समय अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें। शनि की तीसरी नीच दृष्टि आपके सप्तम भाव पर पड़ने से आपके दाम्पत्य जीवन में कलह, विवाद उत्पन्न होना, आपके जीवन साथी की आयु-स्वास्थ्य पर संकट आने जैसे अशुभ फल घटित होंगे। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके बड़े भाई-बड़ी बहन, चाचा और छोटी बुआ के लिए शुभ नहीं है। पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपके द्वितीय भाव पर होने से आपके मुख और दाहिने नेत्र में कोई रोग उत्पन्न हो सकता है। यह दृष्टि आपके धन-कुटुम्ब के लिए भी अमंगलकारी है। भैरव सहित हनुमान जी की उपासना से शनि जनित पीड़ाओं का शमन होगा।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
शनि का आपके चतुर्थ भाव में संचार आपकी माता के स्वास्थ्य, उनकी आयु और मान-सम्मान, आपके भवन-भूमि-वाहन तथा आपके सेवकों आदि के लिए शुभ फल प्रदान करने वाला होगा। यदि आपकी जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव-चतुर्थेश, द्वितीय भाव-द्वितीयेश और शनि शुभ स्थिति में हैं तो इस समय आप कोई चुनाव जीत सकते हैं, कोई बड़ी संपत्ति को प्राप्त कर सकते हैं किन्तु इसकी तृतीय नीच दृष्टि आपको शत्रुओं से पीड़ा अवश्य देगी तथा जन्मकुंडली में छ्ठे भाव से उत्पन्न रोगों में वृद्धि करवाएगी। किसी भी प्रकार का कर्ज लेने से आपको बचना चाहिए। यह समय आपके छोटे मामा-छोटी मौसी तथा आपके दादा की आयु के लिए अत्यन्त अमंगलकारी है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपकी सास के लिए शुभ नहीं है। घुटनों की चोट से स्वयं को बचाएं। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके लग्न में पड़ने से आपको अपने सिर की चोट व पीड़ा से भी बचाव करना होगा। हनुमान जी की उपासना करने, पीपल पर सरसों के तेल का दीपक जलाने व शनि के मंत्रों का जाप करने से शनि जनित कष्टों का निवारण होगा।

धनु राशि - धनु लग्न
शनि का आपके तृतीय भाव में संचार आपके छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य और उनके मान सम्मान में तथा आपके पराक्रम में वृद्धि करवाने वाला होगा। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्राओं से लाभ प्राप्त होगा। इस राशि-लग्न का कोई जातक यदि बहुत समय से विदेश जाने के लिए प्रयासरत था तो अब वह जा सकेगा किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पेट, हृदय, संतान, पढ़ाई आदि के लिए ठीक नहीं है। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियों को विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके पिता के लिए अशुभ है। अपनी पीठ, कमर की चोट व पीड़ा का ध्यान रखें। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी दादी के स्वास्थ्य के लिए अशुभ है। यह आपको बाएं नेत्र, एड़ी व पंजों में कोई कष्ट दे सकती है। परिवार में किसी को चिकित्सा की आवश्यकता हो तो अपने खर्चे से करवा दें। संतान की सुरक्षा के लिए भगवान् विष्णु के मंत्रों का जाप करें तथा हनुमान जी की आराधना करें।

मकर राशि - मकर लग्न
शनि का आपके द्वितीय भाव में अपनी मूल त्रिकोण राशि में संचार आपके धन की वृद्धि करवाने वाला होगा। यदि आपका कोई पुराना धन किसी के पास रुका हुआ है तो उसके वापसी के योग बनेंगे। यदि दीर्घ काल से आप अपने कुटुम्ब से पृथक रहते हैं तो आपके अपने कुटुम्ब में वापसी के योग बनेंगे किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी माता, भवन-भूमि, वाहन, सेवक आदि के लिए अशुभ है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके ससुराल तथा पत्नी के मुख और इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके बड़े भाई-बहनों, चाचा और छोटी बुआ के लिए अमंगलकारी है। पैरों और छाती की चोट से स्वयं का बचाव करें। वाहन चलाने में भी सावधानी रखें। मिथ्या वचन बोलने से बचें तथा भवानी सहित भगवान् शंकर का पूजन करें।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
शनि का आपके लग्न में संचार करना आपकी आयु, स्वास्थ्य, मान-सम्मान के लिए अत्यन्त शुभ है। यदि दीर्घ काल से आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है तो अब उसमें सुधार देखने को मिलेंगे। आपके सिर के स्थान पर शनि के संचार करने के कारण आपके सिर में भारीपन रहने की समस्या बन सकती है। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों के लिए अशुभ है। अपने हाथ की चोट व गले की समस्या से स्वयं का बचाव करें। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य और उनकी आयु पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले इसके लिए उनको उनका जीवन रत्न धारण करवाकर रखें। साथ ही योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से उनके लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप अनुष्ठान करवा लें। यह समय आपके ताऊ तथा बड़ी बुआ के लिए भी शुभ नहीं है। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी सास के लिए अमंगलकारी है। घुटनों की चोट से बचें। आपके पिता की धन हानि तथा उनके मुख में पीड़ा के योग बनेंगे।

मीन राशि - मीन लग्न
इस राशि-लग्न का कोई जातक यदि किसी अभियोग में कारावास में बन्दी है तो अब उसको उस अभियोग से मुक्ति मिलने के योग बन रहे हैं। यदि आप विदेश में प्रवास करने के लिए प्रयासरत थे तो आपको उसमें सफलता मिलेगी। आपके बड़े भाई-बहनों की आर्थिक उन्नति के लिए भी यह समय शुभ है किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके धन की हानि अन्य स्थानों पर करवाती रहेगी तथा आपके नेत्रों और मुख में कोई कष्ट देगी। यह आपके कुटुम्ब में भी क्लेश-विवाद की स्थिति बनाए रखेगी। अपनी वाणी पर संयम रखें अन्यथा शत्रु प्रबल होंगे। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके छ्ठे भाव पर पड़ने से आपके साथ कोई हिंसा अथवा दुर्घटना के योग बना रही है अतः सावधान रहें। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके भाग्य व पिता के स्वास्थ्य के लिए अमंगलकारी है। शनि के अनिष्ट फलों को समाप्त करने के लिए हनुमान जी की आराधना करें, पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं व उसकी परिक्रमा करें, शनि के मंत्रों का जाप व उनके निमित्त दान करें, काले रंग के वस्त्रों को धारण करने से बचें।


नोट- शनि के कुम्भ राशि में संचार करने के इस अवधिकाल में शनि के साथ होने वाली विभिन्न ग्रहों की युति-दृष्टि से जातकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से इस फलादेश का कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही गोचर में होने वाले अन्य ग्रहों के राशि परिवर्तनों का। यहाँ केवल शनि के अपनी मूल त्रिकोण राशि 'कुम्भ' में होने के शुभाशुभ परिणामों का वर्णन किया जा रहा है। आगे यदि संभव हुआ तो मैं शनि के 'कुम्भ राशि' में संचार करने के इस अवधिकाल के अन्तर्गत् शनि के साथ होने वाले अन्य ग्रहों की युतियों के फलस्वरूप घटित होने वाले परिणामों के विषय में अलग से ब्लॉग बनाकर आप सभी को उसकी जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास करूंगा।

इसके अतिरिक्त इन राशि-लग्नों में जन्म लेने वाले किसी जातक की स्वयं की जन्म-कुंडली में शनि यदि अपनी शत्रु राशि, नीच राशि अथवा किसी पाप या शत्रु ग्रह के प्रभाव में हुए और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी, तो उन्हें इस फलादेश में बताए गए उत्तम फलों की प्राप्ति तो अल्पमात्रा में होगी किन्तु अशुभ फलों की प्राप्ति अधिक होगी। इसके विपरीत जिन जातकों की जन्म-कुंडली में शनि शुभ स्थानों के स्वामी होकर अपने मित्र या उच्च राशि में स्थित होकर शुभ प्रभाव में हुए तथा उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिये शनि यह राशि परिवर्तन अत्यन्त शुभ फल प्रदान करने वाला होगा।

'शिवार्पणमस्तु'
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

सूर्य के 'उच्च राशि' में प्रवेश के पश्चात भी संकट का कारण बनेगी सूर्य-राहु युति...


अपने पिछले ब्लॉग 'राहु केतु का राशि-परिवर्तन २०२२' में मैंने आप सभी को राहु के 'मेष' राशि और सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका' में प्रवेश के विषय में बताया था और उस ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए मैंने लिखा था कि समय-समय पर राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के ऊपर अलग से ब्लॉग बनाकर आपको जानकारी देने का प्रयास करूँगा ।
इस विषय पर मेरा पुराना ब्लॉग देखें -

उसी कड़ी में आज मैं आपको जानकारी देने जा रहा हूँ मेष राशि में स्थित 'राहु' के साथ होने वाली 'सूर्य' की युति की ।

'सूर्य' १४ अप्रैल २०२२ को प्रातः ८ बजकर ३३ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर मेष राशि के 'अश्वनी' नक्षत्र में प्रवेश करेंगे जहाँ वह १५ मई २०२२, प्रातः ५ बजकर २२ मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात 'वृष' राशि में प्रवेश कर जायेंगे।

सूर्य 'मेष' राशि में उच्च के हो जाते हैं तथा उसमें भी मेष राशि के १० अंश पर परम उच्च का फल देते हैं। जिस समय 'सूर्य' मेष राशि में प्रवेश करेंगे वहां उनका सामना १२ अप्रैल से संचार करते हुए 'राहु' के साथ होगा और गोचर में सूर्य-राहु की युति बन जाएगी तथा सूर्य- राहु की चपेट में आकर अपने शुभ फलों को देने में असमर्थ हो जायेंगे। 

जैसा कि मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में बता चुका हूँ कि राहु जिस भी ग्रह की राशि में स्थित होता है तथा जिस भी ग्रह से युति करता है अपने 'शनि' जैसे मारक प्रभावों के अतिरिक्त उस-उस ग्रह की छाया लेकर उनके भी प्रभाव ग्रहण कर लेता है। ऐसे में राहु- मंगल की राशि में स्थित होने तथा सूर्य की युति में आ जाने से मंगल तथा सूर्य के मारक प्रभाव भी ले लेगा और अपने अशुभ प्रभावों में कई गुना वृद्धि कर लेगा।

ऐसा राहु- सूर्य के उच्च राशि में स्थित होने पर भी उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके उच्च के सूर्य के शुभ फलों को नष्ट कर देगा तथा सूर्य से बनने वाले अवयवों (ह्रदय, पेट, दाहिना नेत्र तथा हड्डियां) को पीड़ित करके सभी जातकों को हानि पहुँचाने की चेष्ठा करेगा। जिसके कारण इस एक माह में विश्व भर में ह्रदय, पेट, दाहिने नेत्र तथा हड्डियों से सम्बंधित रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। अतः यदि कोई जातक पहले से ही इन चारों रोगों में से किसी एक रोग से पीड़ित है तो वह इस एक माह में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेता रहे।

इस एक माह के अवधिकाल में सूर्य-राहु की युति के दुष्परिणाम अंतरिक्ष में भी देखने को मिलेंगे। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चाहें तो अनुसंधान कर सकते हैं इस एक माह में सूर्य से उठने वाले वाले सौर तूफानों (Solar tsunami) में अत्यधिक वृद्धि होगी, जिससे कई देशों के सैटेलाइट नष्ट हो जायेंगे तथा इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक चक्रवात और भूकम्प आएंगे ।

सूर्य-राहु युति के इस अवधिकाल में ३० अप्रैल को सूर्यग्रहण लगेगा जिसके दुष्परिणाम आगामी ६ माह तक देखने को मिलते रहेंगे । विशेष रूप से पहले तीन माह तक इस सूर्य ग्रहण का दुष्प्रभाव बहुत अधिक रहेगा। यह सूर्यग्रहण भारत में मध्यरात्रि १२ बजकर १५ मिनट से शुरू होगा और फिर ३० अप्रैल की सुबह ४ बजकर ७ मिनट पर समाप्त होगा। भारत में यह आंशिक सूर्यग्रहण होगा और दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे भारत में यह कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह सूर्यग्रहण दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और अंटार्कटिका में ही दिखाई देगा और यहां यह ३० अप्रैल दोपहर १२:१५ बजे शुरू होकर शाम ४:०७ बजे समाप्त होगा। जिसके परिणामस्वरूप इन स्थानों पर आगामी ३माह के भीतर बड़े भूकंप और चक्रवात आयेंगे।

सूर्य-राहु की यह युति बड़े राजनेताओं व उच्च अधिकारियों के लिए भी बहुत अमंगलकारी है। इधर पहले से ही 'राहु' बड़े राजनेताओं और उच्च अधिकारियों के कारक 'सूर्य' के नक्षत्र 'कृतिका' में स्थित होने से विश्व के बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों को हानि पहुंचा रहे हैं और विश्व में कई देशों की सरकारें अस्थिर किए हुए हैं, ऊपर से 'सूर्य' के साथ युति करके उनको और अधिक हानि पहुंचाने की चेष्ठा करेंगे। अतः इस एक माह के अवधिकाल में विश्व भर में बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है, जिसका कारण अधिकांशतः हृदय घात ही होगा। इसके अतिरिक्त कई देशों में बड़े राजनेताओं को राजनैतिक अस्थिरता एवं सहयोगी मित्रों से छल की स्थिति का सामना करना पड़ेगा ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए राहु के अशुभ फलों से बचाव के उपाय-
जिन जातकों को राहु अशुभ फल दे रहे हैं वह योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से राहु की वेदोक्त अथवा तंत्रोक्त विधि से विधिवत् शांति करवा लें और स्वयं उनके बीज मंत्र का जाप करें व शनिवार के दिन राहु के निमित्त दान करें । नीला रंग धारण न करें तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा करने और इस दिशा में निवास करने से बचें । राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के उच्च कोटि के मंत्रों का रुद्राक्ष की माला से विधिवत् जाप करें। पुरानी लकड़ी व धूल घर में एकत्र न होने दें और तम्बाकू का सेवन कदापि न करें ।

राहु के निमित्त दान- नीला वस्त्र, नारियल (जटाओं वाला), शीशा (कांच), कंबल, मूली, सुरमा, सप्त धान्य, गोमेद, खड्ग, नीले पुष्प आदि । इसके अतिरिक्त कौवे को मीठी रोटी खिलाने, चींटियों को भोजन देने तथा काली बिल्ली को दूध पिलाने (बिल्ली को घर में पालना नहीं है) से भी राहु देवता प्रसन्न होकर अपने दुष्प्रभावों को अल्प अथवा समाप्त कर देते हैं

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में सूर्य पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ स्थिति में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति उतनी अशुभकारी नहीं होगी किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में सूर्य अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पहले से ही राहु, शनि, केतु के पाप प्रभाव में हुए और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 21 मार्च 2022

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2022

गोचर में 12 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 17 मिनट पर (दिल्ली समयानुसार) अपनी वक्री गति से राहु व केतु क्रमशः 'वृष व वृश्चिक' राशि से निकलकर 'मेष व तुला' राशि में प्रवेश करेंगे, जहाँ वह 30 अक्टूबर 2023 दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात क्रमशः 'मीन व कन्या' राशि में चले जायेंगे। लगभग 18 महीने के इस अवधिकाल में राहु-केतु, सवा दो-सवा दो नक्षत्रों में संचार करेंगे जिसके कारण सभी जातकों को इनके भिन्न-भिन्न परिणाम देखने को प्राप्त होंगे। 

राशि परिवर्तन के आरम्भ में राहु- सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका', तत्पश्चात शुक्र के नक्षत्र 'भरणी' और केतु के नक्षत्र 'अश्वनी' में संचार करेगा और केतु- गुरु के नक्षत्र 'विशाखा', तत्पश्चात राहु के नक्षत्र 'स्वाति' और मंगल के नक्षत्र 'चित्रा' में प्रवेश करेगा । 

राहु-केतु खगोलीय दृष्टि से कोई ग्रह भले ही ना हों किन्तु ज्योतिष शास्त्र में इनका बहुत अधिक महत्व है। यह दोनों ग्रह एक दूसरे के विपरीत बिंदुओं पर समान गति से गोचर करते हैं। अपना कोई भौतिक आकार ना होने के कारण राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है। राक्षस जाति और स्वभाव से क्रूर होने के कारण शनि के साथ-साथ इन दोनों ग्रहों को भी पापी ग्रहों की संज्ञा दी गयी है। यह दोनों ग्रह जिस राशि तथा जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, उनकी भी छाया ग्रहण कर लेते हैं और अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। यदि यह बृहस्पति जैसे शुभ ग्रह के साथ आ जाएँ तो स्वयं तो अपने स्वभाव में शुभता ले आते हैं परन्तु बृहस्पति को दूषित करके गुरु-चांडाल दोष बना देते हैं और ऐसा बृहस्पति भी अपनी दशा-अन्तर्दशा में अशुभ फल देने लगता है। 

यदि यह शनि जैसे पापी अथवा सूर्य, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के साथ बैठ जाते हैं तो उनकी छाया लेकर अपने पापत्व और क्रूरता में कई गुना वृद्धि करके जातक का जीवन नष्ट कर देते हैं। ऐसे राहु-केतु जातक की जन्म-कुंडली में जिस भी भाव पर बैठ जाते हैं, वहां के सभी शुभ फलों को पूर्णतः नष्ट कर देते हैं और वह भाव तथा उसमें स्थित राशि जिन शाररिक अंगों को बनाती है उन अंगों में भयानक रोग प्रकट कर देते हैं। 

यह दोनों पापी ग्रह जिस नक्षत्र में होते हैं वह नक्षत्र शरीर के जिस अंग को बनाता है उस अंग में बार-बार कोई समस्या आती रहती है। यही कारण है कि बहुत सारे लोगों के बार-बार एक ही अंग में चोट लगना, पीड़ा होना अथवा ऑपरेशन होने जैसी समस्या अधिकांशतः हमें देखने को मिलती रहती हैं। 

मैंने अपने ज्योतिष के Professional Career में ऐसी अनेक जन्म-कुंडलियों का विश्लेषण करके यह अनुसन्धान किया है कि राहु-केतु की युति जिन भी ग्रहों के साथ हुई है, इन दोनों पापी ग्रहों ने उन ग्रहों से निर्माण होने वाले शारिरिक अंगों में रोग, चोट, ऑपरेशन आदि करवाये हुए हैं। यही कारण है कि अनेक बार राहु-केतु के उच्च राशि अथवा शुभ स्थिति में होते हुए भी मैं जातक को इनके रत्न धारण नहीं करवाता क्यूंकि ऐसी स्थिति में जहाँ इनके रत्न जीवन को नयी ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाले सिद्ध होते हैं वहीं दूसरी ओर वह शरीर के उन अंगों को पीड़ित भी कर देते हैं जिस अंग को बनाने वाले नक्षत्र-राशि-भाव में राहु-केतु स्थित होते हैं। 

उदाहरण स्वरुप- यदि राहु-केतु की युति सूर्य के साथ हो जाये तो जातक को सूर्य से उत्पन्न अवयवों (पेट, ह्रदय, दाहिना नेत्र, हड्डियां) में कोई ना कोई समस्या अवश्य रहेगी तथा सूर्य का पिता के कारक होने से पिता को भी गंभीर रोग रहेंगें और अनेक बार उनकी मृत्यु का कारक हार्ट अटैक बनेगा। इस विषय पर आप सभी मेरा चिकित्सा ज्योतिष (Medical Astrology) पर लिखा गया ब्लॉग देख सकते हैं। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

इन सब कारणों से राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है क्यूंकि इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे- 

राहु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव- 

मेष राशि - मेष लग्न

लग्न में शत्रु राशि के राहु के संचार करने के कारण सिर की चोट से बचाव करें। सिर पर राहु के विराजमान होने से मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन बना रहेगा अतः अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें अन्यथा राहु की सप्तम दृष्टि विवाह स्थान पर होने से आपके वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकती है। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः संतान व पिता स्थान पर होने के कारण आपकी संतान और पिता के स्वास्थ्य के लिए भी यह समय कष्टकारी सिद्ध होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां विशेष सावधानी रखें, यदि आप या आपके पिता पहले से ही ह्रदय से सम्बंधित रोगों से ग्रसित हों तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

वृष राशि - वृष लग्न

आपके बड़े भाई-बहन, छोटी बुआ, चाचा की धन हानि तथा उनके दाहिने नेत्र या दांतों में और आपके बाएं नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई कष्ट उत्पन्न हो सकता है। 12वें भाव में मंगल की राशि का राहु आपकी दादी की आयु और उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। माता को पीठ व कमर की चोट से बचाव करें। आपका खर्चा हॉस्पिटल या कोर्ट केस आदि में ना हो इसके लिए राहु के दान व विधिपूर्वक उनके मन्त्रों का जाप करें तथा इस अवधिकाल में नीला रंग धारण करने से बचें। यदि आपने किसी से कोई ऋण लिया हुआ है तो उसको उतार दें अन्यथा आपका धन चिकित्सालय अथवा कोर्ट केसों में निकल जायेगा। 

मिथुन राशि - मिथुन लग्न

बड़े भाई-बहन, चाचा व छोटी बुआ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और माता की आयु की सुरक्षा करें। राहु गोचर में आपके 11वें भाव में संचार करेंगे अतः पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। राहु की सप्तम दृष्टि आपकी संतान के लिए कष्टकारी है अतः इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं विशेष सावधानी रखें। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है। इन सब नकारात्मक बातों के पश्चात भी राहु जब भरणी नक्षत्र में संचार करेंगे तो उस अवधिकाल में लाभ स्थान में होने से आपके लाभ में कई गुना वृद्धि करवायेंगे। 

कर्क राशि - कर्क लग्न

दशम भाव में शत्रु राशि का राहु आपके राजनैतिक कैरियर, आपकी नौकरी तथा आपके पिता के धन के लिये हानिकारक है। सरकारी विवाद से बचें। पिता के दांतों तथा दाहिने नेत्र तथा आपके स्वयं के घुटनों में कोई समस्या आ सकती है। अपनी सास की आयु की सुरक्षा करें। राहु की पंचम शत्रु दृष्टि आपके धन-कुटुंब के लिए अच्छी नहीं है अतः अपने ऋणों से मुक्ति प्राप्त कर लें अन्यथा आपका धन कहीं और निकल जायेगा। यदि आप सरकारी नौकरी में हैं और आपकी जन्मकुंडली में भी आपका दशम भाव-दशमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हुआ तो इस समय आपकी नौकरी जा सकती है। 

सिंह राशि - सिंह लग्न

नवम भाव में राहु का संचार आपके पिता, छोटा साला-छोटी साली के स्वास्थ्य तथा आयु के लिए अच्छा नहीं है, इसकी आपके लग्न पर शत्रु तथा संतान भाव पर नीच दृष्टि आपके व आपकी संतान के लिए भी अनिष्टकारी है। स्वयं अपने सिर, पीठ व कमर की चोट से बचाव करें तथा संतान की सुरक्षा के लिए राहु के मन्त्रों के जाप और उनके दान करें तथा पिता की आयु की सुरक्षा के लिए राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के मन्त्रों के जाप करें। इस अवधिकाल में देश में होने वाली यात्राओं को यथासंभव टालने का प्रयास करें। 

कन्या राशि - कन्या लग्न

अष्टम भाव में शत्रु राशि का राहु आपको अत्यधिक मानसिक पीड़ा और डिप्रेशन देने जा रहा है, यह आपकी आयु का स्थान भी है अतः आत्महत्या जैसे महापाप को करने के विचार से भी बचें। इस समय आपके जीवन साथी के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आ सकती है तथा उनके धन-कुटुंब के लिए भी यह समय ठीक नहीं है। आपके पिता को बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि आपके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उनको उसमें पराजय का सामना करना पड़ेगा। इस अवधिकाल में आपकी माता को पेट में भी कोई समस्या आ सकती है। इस समय आपके छोटे-मामा मौसी विदेश यात्रा ना करें और आप गहरी नदियों व समुद्री स्थानों से दूर रहें। 

तुला राशि - तुला लग्न

राहु का आपके सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए अशुभकारी है। यदि आप व्यापार में किसी के साथ पार्टनरशिप में हैं तो विवाद की स्थिति से बचें। अपनी बड़ी बुआ तथा ताऊ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। सप्तम के राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः आपके एकादश और तृतीय भाव में पड़ने से आपके भाई बहनों के लिए यह समय अशुभकारी है। पैरों तथा हाथों की चोट से सावधान रहें और यदि आप स्त्री हैं तो नीच प्रकृति के पुरुषों से दूर रहें तथा एकांत स्थान पर अकेले जाने से बचें। इस राशि-लग्न वाले जातकों की जन्मकुंडली में 'शुक्र' यदि अपनी नीच या शत्रु राशि अथवा अस्त व पाप प्रभाव में हुए तो इनके यौन अंगों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

वृश्चिक राशि - वृश्चिक  लग्न

इस डेढ़ वर्ष के अवधिकाल में आपको दुर्घटना से बचाव करने की आवश्यकता है। यदि आप पहले से ही किडनी, आंतो, पेंक्रियाज अथवा लिवर की समस्या से पीड़ित हैं तो यह समय आपके लिए बहुत कष्टकारी है । आप यदि मधुमेह के रोगी हैं तो अपनी शुगर का ध्यान रखें। इस समय आपके शत्रु आपको चोट पहुँचाने का प्रयास करेंगे, सावधान रहें। आपके जीवन साथी को अपने बायें नेत्र, एड़ी-पंजो तथा आपको अपने घुटनों की चोट से भी बचाव करना होगा। इस समय आपकी संतान की धन हानि के योग बने हुए हैं तथा उनको दांतों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके धन-कुटुंब भाव पर है अतः कर्ज लेने से बचें अन्यथा चिंता ग्रसित हो जायेंगे। कुटुंब में व्यर्थ के विवाद से बचें। बचाव के लिए योग्य वेदपाठी विद्वानों से विधिवत श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ तथा यज्ञ करवायें। 

धनु राशि - धनु लग्न

यह समय आपकी संतान के लिए शुभ नहीं है। यदि आप गर्भवती महिला हैं तो बहुत सावधानी रखें, गर्भपात हो सकता है। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको परीक्षाओं में प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होंगे। अपने पेट व ह्रदय का ध्यान रखें। राहु की पंचम दृष्टि आपके पिता के लिए हानिकारक है, यदि वह पहले से ही ह्रदय रोगी हैं तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें। अपनी माता के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आने के योग बन रहे हैं। स्वयं आप सिर,पीठ व कमर की चोट आदि से बचें। इस अवधिकाल में आपको आपके इष्ट देवता के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। राहु के मन्त्रों का जाप तथा उनके दान करें। नीले वस्त्रों को धारण करने से बचें। 

मकर राशि - मकर लग्न

शत्रु राशि के राहु के आपके चतुर्थ भाव में गोचर करने के कारण यह समय आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं। इस समय यदि आप कोई प्रॉपर्टी अथवा वाहन लेने जा रहे हैं तो बहुत विचार करके ही लें। यदि आपका आपकी किसी संपत्ति पर विवाद चल रहा है तो आगामी डेढ़ वर्ष उस विवाद को टालने का प्रयास करें। इस अवधिकाल में राहु आपके तथा अपनी पंचम दृष्टि से आपके ससुराल के सुख में भी कमी करेगा तथा आपके जीवन साथी के धन की हानि करेगा। स्वयं के वाहन द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा से बचें। हॉस्पिटल का यदि कोई खर्च रुका हुआ हो तो उसको हो जाने दें। 

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न

भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें उनके लिए यह समय अनुकूल नहीं है। स्वयं का गले-छाती के रोगों से बचाव करें। आगामी डेढ़ वर्ष तक कोई विदेश यात्रा करने तथा मित्रों से विवाद की स्थिति से बचें। इस समय आपके बड़े मामा-मौसी की धन की हानि तथा उनके दाहिने नेत्र व दांतों में पीड़ा के योग बन रहे हैं। हाथ-पैरों की चोट से बचें। इस अवधिकाल में आपके जीवन साथी को पीठ अथवा कमर में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

मीन राशि - मीन लग्न

द्वितीय भाव में शत्रु राशि में स्थित राहु आपके धन की हानि करवाता रहेगा। अतः यदि कोई ऋण हो तो उससे मुक्ति प्राप्त कर लें। इस अवधिकाल में आपके दांतों तथा दाहिने नेत्र में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह समय आपके कुटुंब के लिए बहुत विनाशकारी है। वाणी स्थान पर बैठे राहु आपसे कड़वी वाणी का उपयोग करवायेंगे जिसके कारण आप लोगों को अपने शत्रु बना लेंगे, अतः सोच समझ कर बोलें। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि आपको किडनी, आंतों, पेंक्रियाज, लिवर तथा घुटनों में कोई समस्या ना दे इसके लिए राहु के दान करें तथा उनके मन्त्रों का जाप करें। 


केतु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव-

स्वभाव से राहु के समक्ष केतु थोड़े कम पापी ग्रह माने जाते हैं परन्तु फलित करते समय यह भी राहु से कम विध्वंसकारी नहीं होते। गोचर में जब-जब केतु की युति मंगल अथवा शनि से होती है तो संसार में अग्निकांड और विषैली गैसों से होने वाली दुर्घटनायें कई गुना बढ़ जाती हैं। यदि किसी की जन्मकुंडली के किसी भाव में पहले से ही मंगल-केतु, मंगल-शनि की युति हो और उसकी दशा-अंतर्दशा भी इन्हीं ग्रहों की चल रही हो तथा गोचर में भी उसी भाव में यह युति बन जाये तो इनकी यह युति जातक के उस शारिरिक अंग के लिए बहुत कष्टकारी होती है जिसको वह भाव बनाता है और कई बार जातक का वह अंग-भंग तक हो जाता है। अतः ऐसी स्थिति में सभी को इन ग्रहों के दान व शांतियाँ अवश्य करवा लेनी चाहिए, इससे इनके अशुभ प्रभाव में बहुत कमी आ जाती है और यह अपना सम्पूर्ण अशुभ फल ना देकर छोटी-मोटी चोट, खरोंच आदि देकर आगे निकल जाते हैं। 

सभी राशि लग्नों पर केतु का फलादेश भी लगभग राहु के सामान अशुभ फल देने वाला ही होगा, ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए इसके अलग से फलादेश करने की आवश्यकता नहीं है। सभी जातक अपनी-अपनी राशि लग्नों पर इसको राहु के जैसा अशुभ फल देने वाला ही मानें। अधिक जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग स्पॉट पर केतु से सम्बंधित दिए गए अन्य ब्लॉग पढ़ें। इसमें 'महामारियों का कारण व निवारण', गोचर में मंगल-केतु युति व 'आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति' अवश्य पढ़ें। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/09/blog-post.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/03/mahamariyon-ka-kaaran-aur-nivaran.html

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/02/blog-post.html

नोट- यहाँ केवल राहु-केतु के राशि परिवर्तन से प्रकट होने वाले परिणामों का वर्णन किया गया है, किसी अन्य ग्रहों के गोचर में राशि परिवर्तन से पड़ने वाले शुभाशुभ परिणामों का नहीं। इसके अतिरिक्त विषय की विस्तारता को ध्यान में रखते हुए इन 18 महीनों में राहु-केतु के साथ ही गोचर में भ्रमण करते हुए अन्य ग्रहों की राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के परिणामों का भी उल्लेख यहाँ पर नहीं किया जा सकता है। यदि संभव हुआ तो आगामी समय में किसी अन्य ब्लॉग के माध्यम से मैं आप सभी के लिए वह फलादेश भी उपलब्ध करवा दूंगा।

राहु-केतु के क्रमशः अपने परम शत्रुओं (मंगल-शुक्र) की राशियों में संचार करने के कारण इन डेढ़ वर्षों में राहु व केतु बहुत उपद्रव मचाने जा रहे हैं जिससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा। 'मेष' राशि हमारे सिर (Head) और 'तुला' राशि हमारे यौन अंगों (Sex Organs) का निर्माण करती है, राहु-केतु का इन राशियों में संचार करना आगामी डेढ़ वर्ष तक विश्व भर में इन अंगों से सम्बंधित रोगियों की मात्रा में भारी वृद्धि करने जा रहा है। इस अवधिकाल में सड़क दुर्घटनाओं में सिर में चोट लगकर मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलेगी। अतः जो लोग सड़क यात्रा के समय मोटरसाईकिल आदि वाहनों का प्रयोग करते हैं वह हेलमेट का प्रयोग अवश्य करें। सेना-पुलिस-अर्ध सैनिक बलों के हमारे जवान भी यथासंभव सिर की चोट से बचने का प्रयास करें। 

यदि किसी जातक की जन्म-कुंडली में राहु व केतु शुभ ग्रहों की राशि में शुभ ग्रहों के साथ स्थित हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का राशि परिवर्तन उतना अनिष्टकारी नहीं होगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अपनी नीच व शत्रु राशियों में पापी अथवा क्रूर ग्रहों के साथ स्थित हुए और उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध होगा।  

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava