यह लगभग साढ़े चार वर्ष की एक छोटी बच्ची की जन्मकुंडली है । जिसका जन्म १० अक्टूबर २०२० को प्रातः ११ बजकर ३० मिनट पर गाजियाबाद जिले में हुआ है ।
अपनी बाल्यावस्था से ही इस बच्ची को पेट में कुछ न कुछ समस्याएं लगी रहती थीं और अभी गोचर में कुछ समय पूर्व बने पिशाच योग (राहु-शनि युति) में इस बच्ची को Appendicitis डिटेक्ट होकर Rupture हो गया (अपेंडिक्स फट जाना) । इसके पश्चात् इस बच्ची के परिवारजन इसे एक अच्छे हॉस्पिटल में लेकर गए जहां इसका फूड पाइप ब्लॉक हो गया और पेट भी फूल गया, तब यह जन्मकुण्डली मेरे पास आई । ईश्वर की कृपा से आज यह बच्ची सुरक्षित है ।
ऐसे क्या ज्योतिषीय कारण रहे होंगे जो इस छोटी बच्ची के साथ ऐसी घटना घटित हुई और ऐसी जन्मकुंडलियों में कौन से ज्योतिषीय उपचार करवाए जा सकते हैं ? आइए जानते हैं—
इस बच्ची की जन्मकुंडली का पंचम भाव (पेट का स्थान) षष्ठेश (रोगेश) मंगल के पाप प्रभाव में है जो कि वक्री भी है अर्थात् छठे भाव के अपने क्रूर फलों में भी लगभग तीन गुना वृद्धि कर चुका है ।
इसके अतिरिक्त यही मंगल, केतु अधिष्ठित राशि का स्वामी भी है अर्थात् इस मंगल की क्रूरता के पीछे स्वयं मंगल की छाया लिए हुए केतु की नकारात्मक ऊर्जा भी कार्य कर रही है । (१- फलित ज्योतिष में एक बहुत बड़ा सिद्धांत यह है कि किसी भी ग्रह की राशि पर यदि कोई दूसरा ग्रह भी स्थित हो तो वह पहला वाला ग्रह अपने शुभाशुभ फलों के साथ-साथ उस दूसरे ग्रह के भी फलों को भी देने लगता है, जो ग्रह उसकी राशि पर बैठा होता है )
२- राहु-केतु जिस भी ग्रह के साथ, जिस भी ग्रह की राशि में बैठते हैं, उसकी छाया ग्रहण कर लेते हैं और क्रमशः शनि-मंगल जैसे अपने पृथकतावादी प्रभावों के अतिरिक्त उस ग्रह के प्रभावों को भी देने लगते हैं ।)
केवल इतना ही नहीं, मंगल की छाया लिए हुए यही केतु अपनी पंचम पाप दृष्टि से पंचम भाव को भी देख रहा है और इस पंचम भाव पर वर्गोत्तम शनि की तृतीय पाप दृष्टि भी है तथा पंचमेश बृहस्पति, शनि-केतु के पाप कर्तरी योग में घिरा हुआ है और पेट का कारक सूर्य, राहु की पंचम दृष्टि तथा रोगेश मंगल की सप्तम दृष्टि से ग्रसित है ।
यद्यपि यहां मंगल इस बच्ची का लग्नेश भी है तथापि उसकी मूल त्रिकोण राशि 'मेष' छठे भाव में स्थित होने से वह अपनी मूल त्रिकोण राशि का ही फल अधिक दे रहा है । अतः इस बच्ची का पंचम भाव (पेट का भाव), पंचमेश बृहस्पति (भावाधिपति) तथा पेट का कारक सूर्य—यह तीनों ही पीड़ित हैं ।
यदि भावात् भावम् सिद्धांत के अनुसार भी देखें तो पंचम से पंचम अर्थात् नवम भाव का अधिपति चंद्रमा भी अपने से द्वादश अर्थात् अष्टम् भाव (अशुभ स्थान) में स्थित है । जो कि रोगेश मंगल की चतुर्थ दृष्टि से तथा मंगल अधिष्ठित राशि के स्वामी बृहस्पति से दृष्ट है ।
एक तो इतने सारे कारण ही पर्याप्त थे इस बच्ची को बाल्यावस्था से ही पेट की इतनी गंभीर समस्या देने के लिए, ऊपर से अभी गोचर में मीन राशि में लगभग ५० दिन के लिए बना पिशाच योग (शनि-राहु युति) जो कि १८ मई तक चला, वह भी इस बच्ची के पेट के स्थान पंचम भाव पर ही बन गया । इस बच्ची के लग्न पर गोचर लगाने पर मीन राशि इसके पंचम भाव में स्थित है, जहां १८ मई तक राहु-शनि ने संचार किया है तथा गोचर में भी भावात् भावम् सिद्धांत लगाने पर पंचम से पंचम अर्थात् नवम भाव पर षष्ठेश ( रोगेश) होकर नीच का मंगल संचार कर रहा है ।
इस सम्बन्ध में जानने के लिए मेरा पूर्व का ब्लॉग देखें—
यदि बात करें इस कुंडली में चल रही दशा-अंतर्दशा की तो वर्तमान समय में इसकी बृहस्पति की महादशा (पाप कर्तरी योग से पीड़ित पंचमेश की दशा) में चंद्रमा (अष्टम में गए हुए नवमेश) की अंतर्दशा में पेट के कारक सूर्य पर दृष्टि डालने वाले राहु (अकस्मात चिकित्सालय लेकर जाने वाला कारक ग्रह) की प्रत्यंतर दशा चल रही है ।
ऐसे में अत्यन्त अशुभ गोचर तथा अशुभ दशाओं के इस मेल ने इस बच्ची को गंभीर स्थिति में हॉस्पिटल तक पहुंचा दिया । मेरे पास जब यह जन्मकुंडली आई थी, तब तक इस बच्ची के जीवन को बचाने वाले चिकित्सकों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए थे किन्तु ईश्वर द्वारा हमें दिए गए ज्योतिष के वरदान और उनके आशीर्वाद से यह बच्ची अभी जीवित है ।
आइए बात करते हैं अब उन ज्योतिषीय उपायों की जिससे इस बच्ची के प्राणों की रक्षा हुई—
सर्वप्रथम मंगल ग्रह के क्रूर प्रभावों को नष्ट करने के लिए तत्काल ही इस बच्ची के लिए ११ वेदपाठी ब्राह्मणों से ११ सुंदरकांड पाठ करवाए गए । इसके साथ ही दूसरे वेदपाठी ब्राह्मणों की टीम से इस बच्ची के मंगल, राहु, केतु जैसे पृथकतावादी ग्रहों की विधिवत् शांतियां करवाईं गईं और पंचम भाव (पेट के स्थान) के स्वामी ग्रह बृहस्पति का रत्न 'पुखराज' (बृहस्पति लग्नेश के मित्र होने तथा स्वराशि में स्थित होने से यहां द्वितीयेश होने पर भी मारक नहीं बनेंगे) तथा पेट के कारक ग्रह सूर्य का रत्न 'माणिक' इस बच्ची के गले में पेंडेंट में (रत्न उनकी उंगलियों में ही अपने पूर्ण फलों को देते हैं) धारण करवाया गया, जिससे भाव अधिपति बृहस्पति तथा कारक सूर्य दोनों ही को शक्ति प्राप्त हो सके ।
मेरे द्वारा ब्लॉग लिखे जाने तक यह बच्ची लगभग ८० प्रतिशत तक स्वस्थ हो चुकी है, इसके पूर्णतः स्वस्थ होने पर इसके लिए एक बार पुनः इन्हीं अशुभ ग्रहों की शांतियों के साथ एक महामृत्युंजय अनुष्ठान भी करवाया जाएगा, जिससे इस बच्ची को आगे इस प्रकार की कोई भी समस्या न आने पाए और यह निरोगी रहकर दीर्घायु प्राप्त कर सके क्योंकि आज जो समस्या इसके पेट में आई है, ठीक वैसी ही समस्या इसके हृदय (हार्ट) में भी आएगी, जिसका कारण यह है कि पंचम भाव केवल पेट का ही नहीं हार्ट का स्थान भी होता है तथा सूर्य केवल पेट का ही नहीं, हार्ट का भी निर्माण करता है ।
इस विषय को और अधिक सरलता से समझने के लिए चिकित्सा ज्योतिष पर आधारित मेरा यह ब्लॉग पढ़ें—
आगे चलकर इस बच्ची को हार्ट की भी समस्या आएगी, यह बात मैंने इसके परिवार में से अभी तक किसी को भी नहीं बताई है क्योंकि वह सभी पहले से ही इतना कष्ट प्राप्त करके चुके हैं, ऐसे में मैं उनको और अधिक व्यथित नहीं करना चाहता ।
आप सभी को यह जानकर बहुत प्रसन्नता होगी कि जो ज्योतिषीय उपाय इस बच्ची के पेट के लिए करवाए गए हैं, वही इसको जीवन में या तो कभी हार्ट की गंभीर समस्या उत्पन्न ही नहीं होने देंगे अथवा उस समस्या को बहुत कम कर देंगे क्योंकि जिन ग्रहों की शांतियां करवाई गई हैं, अब वह केवल पेट ही नहीं, हार्ट को भी हानि नहीं पहुंचा सकेंगे तथा जिन ग्रहों के रत्न धारण करवाए गए हैं वह इस बच्ची के पेट के साथ-साथ इसके हार्ट को भी बल प्रदान करेंगे और इस प्रकार यह छोटी बच्ची तथा इसका परिवार कभी यह जान नहीं सकेगा कि और बड़े दुःख उनके जीवन में आ सकते थे जो कि नहीं आए ।
नोट— १—इस बच्ची को आजीवन नीले, लाल तथा गहरे स्लेटी रंगों को स्वयं से दूर रखना होगा तथा गहरे पीले रंगों का प्रयोग जीवन में बढ़ाना होगा ।
२— आयु में कुछ बड़ी होने पर इस बच्ची को यही दोनों रत्नों को पेंडेंट से निकलवाकर अपने बाये हाथ की उंगलियों में धारण करने होंगे । पुखराज (तर्जनी), माणिक (अनामिका), (स्त्रियों को बाएं हाथ तथा पुरुषों को दाहिने हाथ में रत्न धारण करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं ।)
३—जीवन भर राहु, केतु तथा मंगल के दान करते रहने होंगे जिससे उनके पाप प्रभावों में और भी अधिक कमी आ सके तथा पीले रंग की वस्तुओं का कभी भी दान नहीं करना होगा अन्यथा बृहस्पति के बल में भी कमी आ जाएगी जबकि इसे अपने बृहस्पति को सदा बलवान रखना है । (पंचमेश होने के कारण)
४—भगवान् विष्णु इसके इष्टदेव हैं, कुछ बड़ी होने पर किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से इस बच्ची को इसके अधिकार की सीमा में आने वाले भगवान् नारायण (श्री हरि विष्णु, श्री राम, श्री कृष्ण) के मंत्र की दीक्षा लेकर उनके मंत्रों के जप करने चाहिए, जिससे इसके इष्टदेव की कृपा भी इस पर बनी रहेगी ।
इस ब्लॉग को लिखने के पीछे का मेरा उद्देश्य १ प्रतिशत भी प्रशंसा प्राप्त करना नहीं है । लोकेष्णा (अपने ही जैसे नाशवान प्राणियों से सम्मान प्राप्त करने की तृष्णा) से मैं जितनी घृणा करता हूँ शायद ही कोई दूसरा करता होगा ।
इस विषय पर पढ़ें मेरा ब्लॉग—
मेरा तो इस ब्लॉग को लिखने का उद्देश्य केवल यही है कि ईश्वर की कृपा से जो विद्या मुझे प्राप्त हुई है, वह मेरी मृत्यु के उपरांत कहीं मेरे साथ ही नष्ट न हो जाए तथा हो सकता है कि मेरे न रहने के पश्चात् भी मेरा यह ब्लॉग ऐसे ही कितने जातकों का जीवन बचाने में सहायक सिद्ध हो जाए । यदि ऐसा होता है तो ईश्वर अपने जिन कार्यों को करवाने के लिए हमें ज्योतिष विद्या का यह ज्ञान देकर इस संसार में भेजते हैं, उनके उन कार्यों को करके मैं परम् शांति के साथ उनके श्री चरणों में विलीन हो सकूंगा ।
"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava