Translate

Hinduism लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Hinduism लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 13 अगस्त 2023

जीवन में हमारे कुलदेवी/देवता का महत्व...

पूर्व काल में हमारे ऋषि कुलों (आदि पूर्वजों) ने अपने इष्ट देवी/देवताओं को उचित स्थान देकर (मंदिर आदि बनाकर) उनका अपने कुल देवी/देवता के रूप में पूजन करना आरंभ किया जिससे एक पारलौकिक शक्ति उनके कुल के वंशजों की नकारात्मक ऊर्जाओं, ग्रह जनित बाधाओं तथा मांत्रिक शक्तियों से सदैव रक्षा करती रहे । हमारे पूर्वज इन शक्तियों से यह वचन लिया करते थे कि वह उनके कुल की यथा संभव रक्षा करेंगी जिसके कारण अपनी-अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार यह शक्तियां अपने-अपने कुलों की रक्षा किया करती थीं ।


कालान्तर में विधर्मी मलेच्छ आक्रांताओं के आक्रमणों और उनके द्वारा की जा रही हिंसा, लूट, बलात्कारों के भय से बहुत से हिन्दू परिवार अपने स्थानों से विस्थापित होने लगे, मलेच्छों द्वारा लाखों की संख्या में धर्म परायण वेदपाठी ब्राह्मणों की हत्याओं, मंदिरों के विध्वंस तथा धर्म ग्रंथ जलाए जाने के कारण से सनातन धर्म का लोप होने लगा । जीवन बचाने के लिए जिसे जहां 
जो स्थान मिला वह वहीं बसने लगा, अंतर्जातीय विवाह होने से वर्णाश्रम व्यवस्था भंग होने लगी जिसके कारण कुलीन परंपरा विलुप्त होती गई । 


इधर वर्तमान की स्थिति का अवलोकन करने के पश्चात् हमें यह ज्ञात होता है कि पाश्चात्य संस्कृति का अंध अनुसरण करने से संस्कार शून्य हुए अधिकांश सनातनी एक तो पहले से ही यह भूल चुके हैं कि उनके कुल देवी/देवता कौन हैं ? ऊपर से मलेच्छ भूमि (समुद्र पार के देश) में जाकर बस जाने से स्थिति और भी भयावह हो चुकी है । 
मलेच्छ भूमि पर बसने वाले सनातनी अपना द्विजत्व खो जाने से मलेच्छत्व को प्राप्त हो चुके हैं और विडंबना यह है कि आप उन्हें इसका ज्ञान भी नहीं करवा सकते क्योंकि धर्म ज्ञान के अभाव में अधिकांश सनातनी, विदेशी भूमि पर निवास करने के मिथ्या अहंकार से भरे होने के कारण स्वयं को श्रेष्ठ समझने के ऐसे महान भ्रमजाल में फंसे हुए हैं जिसमें से उन्हें शायद ही कभी निकाला जा सकता है ।


(याज्ञिक भूमि केवल भारतवर्ष ही है, जिसमें कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर जिसमें मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र तक सभी ७ चक्र स्थित हैं तथा इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना नाड़ियों के रूप में गंगा, यमुना, सरस्वती भी हैं जिनका संगम प्रयाग क्षेत्र अर्थात् दोनों नेत्रों के मध्य स्थित आज्ञा चक्र में होता है । इन तीनों नदियों का संगम प्रयाग क्षेत्र में ठीक उसी प्रकार से होता है जैसे सिद्ध अवस्था में एक योगी के शरीर में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का आज्ञा चक्र में होता है । शरीर की ७२ हजार नाड़ियां और कुछ नहीं इसी भारत भूमि पर बह रही असंख्य नदियां, झीलों आदि का जाल है—  यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे)

अतः भारत भूमि और कुछ नहीं एक जीती-जागती पवित्र देह है जिसमें दिव्य ऊर्जा का प्रवाह स्वतः ही स्फुरित होता रहता है । यही कारण है कि इस भूमि को माता कहा जाता है जिसके गर्भ में भगवान् जन्म (अवतार) लिया करते हैं । इस विषय पर 'विष्णु पुराण' में एक श्लोक आता है–
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे।
स्वर्गापवर्गास्पद हेतुभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात॥
अर्थात्—
देवता भी स्वर्ग में यह गान करते हैं, धन्य हैं वह लोग जो भारत-भूमि के किसी भाग में उत्पन्न हुए । वह भूमि स्वर्ग से बढ़कर है क्योंकि वहां स्वर्ग के अतिरिक्त मोक्ष की साधना भी की जा सकती है ।

यहां विषय से हटकर मलेच्छत्व के विषय को विस्तार देने का कारण यही था कि जो भी सनातनी अपना देश छोड़कर विदेशों में जाकर बस चुके हैं किन्तु भीतर से धर्मपरायण और बुद्धिमान हैं वह इस ब्लॉग को पढ़कर यह समझ सकेंगे कि धर्म पालन में भारतवर्ष की क्या भूमिका है । साथ ही वह यह भी समझेंगे कि इस ब्लॉग को लिखते समय मेरी भावना किसी भी प्रकार से अहंकार, स्वार्थ और विद्वेषपूर्ण नहीं अपितु केवल और केवल शास्त्रसम्मत थी ।

अब इस विषय को और अधिक विस्तार न देते हुए पुनः वापस लौटते हैं अपने इस ब्लॉग के विषय पर अर्थात् जीवन में कुलदेवी/देवता का महत्व—
वचनबद्ध होने के कारण हमारे कुल देवी/देवता हमारे चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाकर रखते हैं । जो मनुष्य उनकी उपेक्षा करता है, उचित समय पर उनका पूजन नहीं करता, सदैव मलेच्छों की संगति में रहता है, उनकी संगति से प्रेरित होकर मांस (विशेषकर गौ मांस) भक्षण करता है तथा उनकी पूजा करने के स्थान पर भूत-प्रेतों, कब्रों, मजारों आदि का पूजन करता है, ऐसे व्यक्तियों के ऊपर से वह अपना सुरक्षा सुरक्षा कवच हटा लेते हैं और ऐसा मनुष्य शीघ्रता से तंत्र सम्बंधी बाधाओं, अभिचार कर्मों अथवा ब्रह्मांड में अनगिनत मात्रा में विचरण कर रही नकारात्मक काली शक्तियों की चपेट में आ जाता है।

ऐसे मनुष्यों के जीवन में कोई कार्य न बनना, गृह क्लेश रहना, मानसिक समस्याओं से ग्रसित होकर आत्महत्या करने के विचार आना, कोर्ट केस आदि में फंस जाना, धनी परिवार में जन्म लेने के पश्चात् भी अत्यन्त दरिद्र हो जाना, उसके कुल की स्त्रियों का दूषित हो जाना, परिवार में आकस्मिक दुर्घटनाएं होते रहना, घर में अग्नि कांड होना, घर में दीमक लग जाना आदि अनिष्टकारी घटनाएं घटित होती रहती हैं ।

ऐसी अवस्था में व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकता रहता है और अनेक ज्योतिषियों, तांत्रिकों आदि के द्वारा बताए गए उपायों को करवाने के पश्चात् भी उसको अपने जीवन में कोई लाभ दृष्टिगोचर नहीं होता । यहां यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ऐसा व्यक्ति श्रापित होकर जीवन में अनेक दुःख भोगने को विवश होता है ।

मैंने अपने जीवन काल में अनेक जन्मकुंडलियों का अध्ययन करके यह पाया कि ऐसे व्यक्तियों को हमारे द्वारा बताए गए ज्योतिषीय उपाय भी उतना अधिक फलीभूत नहीं होते जितना कि उन्हें होना चाहिए किन्तु यही जातक जब अपने रुष्ट कुल देवी/देवता को प्रसन्न कर लेते हैं तो उन्हीं ज्योतिषीय उपायों से उनके जीवन में अद्भुत चमत्कार घटित होने लगते हैं । इसलिए अपने कुलदेवी/देवताओं का पूजन करना प्रत्येक सनातनी हिंदू का न केवल धर्म है, अपितु अनिवार्य कर्तव्य भी है ।

हमारे कुल देवी/देवता वह शक्तियां हैं जिनकी कृपा से हम सभी प्रकार की सफलता प्राप्त करते हुए सुखी व समृद्ध जीवन जी सकते हैं । अतः यदि किसी का घर बड़ा है और वास्तु के अनुसार बना हुआ है तथा वहां शुद्धता भी रहती है, तो उसे अपने घर के किसी वृद्ध व्यक्ति से अपने कुलदेवी/देवता के विषय में जानकारी प्राप्त करके उनको वहां उचित स्थान देना चाहिए । स्थान देते समय किसी योग्य वेदपाठी ब्राह्मण को बुलाकर अपने कुलदेवी/देवता का शास्त्र विधि अनुसार पूजन करवा लेना चाहिए तथा समय-समय पर उनका पूजन होते रहने की व्यवस्था करनी चाहिए । उस स्थान पर नित्य प्रतिदिन देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी का दीपक जलाना चाहिए । इससे उसके कुल देवी/देवता प्रसन्न होकर उसे अपने संरक्षण में ले लेंगे और उसे सभी प्रकार की सुख समृद्धि प्रदान करते हुए संसार में सदैव अपराजित रखेंगे ।

जिस व्यक्ति का घर छोटा है, घर में शुद्धि-अशुद्धि का विचार भी नहीं किया जाता, वास्तु द्वारा निर्मित भी नहीं है, घर में कुत्ता-बिल्ली-मुर्गा आदि पाले हुए हैं उसको अपने कुल देवी/देवता को घर में स्थान न देकर उसके पूर्वजों द्वारा स्थापित कुलदेवी/देवता के मंदिर में जाकर वर्ष में एक बार उनका विधि-विधान से पूजन अवश्य करना चाहिए । इसके अतिरिक्त घर में कोई शुभ कार्य होने वाला हो तब भी उस मंदिर में जाकर उनसे अनुमति और आशीर्वाद अवश्य ले लेना चाहिए जिससे बिना किसी अवरोध के उनका वह कार्य सम्पन्न हो सके तथा उसमें उन्हें आगे सफलता भी प्राप्त हो ।

यहां यह स्मरण रहे कि घर का मुखिया पुरुष होता है अतः यह कार्य किसी धर्मनिष्ठ पुरुष के द्वारा ही सम्पन्न होना चाहिए, घर की स्त्रियां उसका इस कार्य में सहयोग करें और इस धर्म कार्य में उसकी सहभागिनी बनकर श्रद्धापूर्वक अपने कुलदेवी/देवता की पूजा-अर्चना करें ।

अनेक बार देखा गया है कि जनसमुदाय अपने बच्चों के विवाह आदि शुभ अवसरों पर मनमाने ढंग से अपने कुलदेवी/देवताओं का पूजन करता है, विद्वान और धर्म परायण व्यक्तियों को इससे बचना चाहिए क्योंकि शास्त्र सम्मत आचरण करने में ही सबका कल्याण है, व्यर्थ के प्रमाद में पड़कर शास्त्र विरुद्ध आचरण करने से लाभ के स्थान पर उल्टा हानि ही उठानी पड़ती है ("यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।। १६.२३—श्रीमद् भगवद्गीता") ।

अब बात करते हैं उन व्यक्तियों की जिनके पास न तो धन है और न ही इतना सामर्थ्य है कि वह विधि-विधान से अपने कुलदेवी/देवता का पूजन कर सकें तो ऐसे व्यक्तियों को मानसिक रूप से ही अपने कुलदेवी/देवता का ध्यान करना चाहिए तथा हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वह उन्हें इन भीषण विपत्तियों से निकाल कर अपना संरक्षण प्रदान करें (निष्कपट, शुद्ध और द्वेष रहित मन से की गई प्रार्थना देवी/देवताओं तक अवश्य पहुंचती है केवल कपटी, दंभी, धूर्त, लोभी और राग द्वेष भावना से युक्त मनुष्य ही उनकी कृपा कभी प्राप्त नहीं कर सकता)  इस प्रकार से प्रत्येक सनातनी हिंदू अपने जीवन में अपने कुलदेवी/देवता की कृपा प्राप्त करके स्वयं को सुखी और समृद्ध बना सकता है ।
"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

महाशिवरात्रि का रहस्य


मानव दृष्टि और चेतना जिस-जिस स्थान तक जाती है मनुष्य वहीं-वहीं तक देख सकता है, समझ सकता है किन्तु अध्यात्म विद्या को जानने वाले मनुष्य, साधारण मनुष्यों की दृष्टि और चेतना से भी परे देख व समझ सकते हैं । साधारण मनुष्य जो देख व समझ नहीं पाता वह उसको नहीं मानता किन्तु जिसे वह देख नहीं पाता, समझ नहीं पाता, यह आवश्यक तो नहीं कि वह पदार्थ अथवा तत्व इस जगत में है ही नहीं ?


इसी प्रकार ईश्वरीय तत्व परमाणु स्वरूप में प्रत्येक स्थान पर विद्यमान है, केवल आवश्कता होती है उसे जाग्रत करने की ।

तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र की सहायता से उस ईश्वरीय तत्व को जाग्रत करके आत्मसात किया जाता है जिससे उसकी ऊर्जा से अपने तथा अन्य व्यक्तियों के जीवन की नकारात्मकता को दूर किया जा सके। इसके लिए प्राचीन ग्रंथो में कुछ सिद्ध रात्रियां बताई गई हैं जिनमें से 'महाशिवरात्रि' प्रमुख है ।

यह वह समय काल होता है जब ब्रह्माण्ड की दो महाशक्तियां  (Super Natural Powers) जिनमें से एक भगवान् शंकर और दूसरी महाकाली का मिलन होता है और इन दोनों शक्तियों का यह मिलन एक महाशक्तिशाली ऊर्जा का निर्माण करता है ।

महाशिवरात्रि के समय इन दोनों महान शक्तियों के एक हो जाने से ब्रह्माण्ड में चारों ओर अदृश्य रूप से जिस महाशक्तिशाली ऊर्जा का निर्माण होता है इसको साधारण साधक अनुभव कर सकता है और उच्च कोटि का साधक देख व अनुभव दोनों कर सकता है ।

यह ऊर्जा कल्याणकारी तथा प्रयलंकारी दोनों ही प्रकार की होती हैं, निर्भर यह करता है कि साधक किस ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित करके उसे आत्मसात कर रहा है ।

जहां एक ओर दक्षिणमार्गी साधक शिव-शक्ति के मिलन से उत्पन्न हुई इस रहस्यमयी ऊर्जा में से सात्विक और कल्याणकारी तत्व को ग्रहण करते हैं वहीं दूसरी ओर कापालिक, अघोरी और वाममार्गी साधक इस महान ऊर्जा से उत्पन्न इसके प्रलयंकारी तत्व को ग्रहण करते हैं ।

विश्व के सभी सात्विक तत्वों को भगवान् विष्णु द्वारा ग्रहण कर लेने के पश्चात् कहीं तामसी ऊर्जाएं अनियंत्रित न हो जाए इस कारण से भगवान् शंकर और देवी महाकाली ने उनको अपने अधीन कर लिया l हलाहल विष और कुछ नहीं ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऐसा भयानक विनाशकारी परमाणु विकिरण (Nuclear Radiation) था जिसके संपर्क में आने से कोई भी सुरक्षित नहीं रह सकता था इसी कारण से भगवान् शंकर ने उसे ग्रहण कर लिया। ब्रह्माण्ड की उस अद्भुत घटना के वैज्ञानिक रहस्यों पर किसी अन्य ब्लॉग में चर्चा करूंगा अभी पुनः अपने विषय पर आते हैं ।

वस्तुतः महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, साधना के माध्यम से अपनी अंतः चेतना को नवीन आयाम देने के लिए ईश्वर के द्वारा हमें दिया गया एक सिद्ध मुहूर्त है जिसके माध्यम से हम जन्मजन्मांतरों तक के लिए भगवान् शंकर और माता भवानी की भक्ति और उनका संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं । इसके लिए आवश्कता है इस साधना के रहस्य को जानकर अपनी आत्मा के स्तर से इस साधना को करने की क्योंकि प्रत्येक जन्म में हमारे साथ हमारा शरीर नहीं आत्मा जाती है। अतः साधनाओं को शरीर के स्तर पर न करके आत्मिक स्तर पर करना चाहिए, शरीर तो केवल माध्यम मात्र होना चाहिए किसी भी साधना को करने के लिए ।

साधक साधना करते समय अपने स्थूल (देह) और सूक्ष्म (मन) शरीरों के प्रति मोह, अनुराग और प्रीति को त्यागकर जब अपने कारण शरीर (आत्मा) से मंत्र जाप करता है तो वह निश्चित् ही अपने इष्ट का सानिध्य और उनकी शक्तियों का कुछ अंश प्राप्त कर लेता है। अतः साधकों को आत्मा के स्तर से मंत्र जाप करना चाहिए । यह एक अत्यन्त गुप्त रहस्य है जिसको केवल गुरु कृपा अथवा पूर्वजन्म की साधनाओं के इस जन्म में प्रकट होने पर ही जाना जा सकता है ।

इस विषय को अब और अधिक विस्तार न देते हुए अपनी बात यहीं समाप्त करता हूँ और आशा करता हूँ मेरे इस ब्लॉग की गहनता को समझते हुए इससे प्रेरणा लेकर साधक गण अनन्त काल तक केवल महाशिवरात्रि ही नहीं अपितु विभिन्न सिद्ध रात्रियों में अपने 'अधिकार की सीमा में आने वाले मन्त्रों' का जाप करके भगवान् की शरणागति प्राप्त करते रहेंगे जिससे मेरी आत्मा का मनुष्य रूप में जन्म लेने का उद्देश्य भी सार्थक सिद्ध होगा।

”शिवार्पणमस्तु”

—Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 1 अगस्त 2022

पंचदेवोपासना



प्राचीन 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धान्त' के अनुसार कौन हैं 'पंचदेव' और क्यों करते हैं 'पंचदेवों' की साधना ?

वस्तुतः परब्रह्म परमेश्वर ही पंचदेवों के रूप में व्यक्त हैं तथा सम्पूर्ण चराचर जगत में भी वही व्याप्त हैं।

वेदानुसार निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव—

परब्रह्म परमात्मा (आदि शक्ति) निराकार व अशरीरी हैं, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उनके स्वरूप का ज्ञान असंभव है इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार स्वरूप को ५ महान शक्तियों के रूप में प्रकट किया और उनकी उपासना करने का विधान निश्चित किया। निराकार परब्रह्म की यही ५ शक्तियां 'पंचदेव' कहलाती हैं

हमारे शास्त्रों में इन पंचदेवों की मान्यता पूर्ण ब्रह्म के रूप में है, जिनकी साधना से पूर्ण ब्रह्म की ही प्राप्ति होती है। इसलिये अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार इन पंचदेवों में से किसी एक को अपना इष्ट देव मानकर उनकी उपासना करने का विधान है।

यह पंचदेव हैं–गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु और सूर्य।

इनमें से गणपति के उपासक–गाणपत्य , शिव के उपासक–शैव, शक्ति के उपासक–शाक्त, विष्णु के उपासक–वैष्णव तथा सूर्य के उपासक–सौर कहे जाते हैं और जो मनुष्य इन पांचों देवी-देवताओं की उपासना करते हैं उन्हें 'स्मार्त' कहा जाता है।

अत्यन्त हास्यास्पद बात है कि निराकार परब्रह्म परमेश्वर की जो शक्तियां भिन्न होकर भी एक ही शक्ति का अंश हैं उनके नाम पर बनने वाले सम्प्रदाय आपस में एक दूसरे के देवी-देवताओं को नीचा दिखाने का कार्य करते हैं जबकि इन सम्प्रदायों के निर्माण का उद्देश्य मानव को उसकी अभिरुचि के अनुसार साधना के मार्ग पर आगे बढ़ाकर सद्गति प्राप्त करवाना था।

अति तो तब हो गई जब इन पंचदेवों की शक्तिशाली ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले 'अवतारों' के नाम पर भी नए-नए सम्प्रदाय अस्तित्व में आ गए, जिसमें से कुछ तो प्राचीन ज्ञान परम्परा का अनुसरण करते हैं किन्तु अधिकांश का प्राचीन सनातन ज्ञान परम्परा से कोई लेना-देना ही नहीं है और इनका उद्देश्य केवल अपने चेलों की संख्या बढ़ाकर अपने-अपने 'Cult' के महान गुरु की पदवी प्राप्त करके सनातनी जनता से धन ऐंठना मात्र है।

वस्तुतः कलियुगी व्यक्ति-विशेषों द्वारा बनाए गए इन 'Cults' को सम्प्रदायों की श्रेणी में रखना भी इन पंचदेवों की साधना के लिए बनाए गए प्राचीन सम्प्रदायों का अपमान करना ही है। इस विषय पर मेरे यह ब्लॉग देखें—

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post_28.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2019/07/dharm-yudh.html


इस प्रकार यहां मैंने पंचदेवों और उनकी साधना के विषय में वर्णन किया जिससे सभी सनातनी भाई-बहन विभिन्न Cults के प्रपंच में पड़ने के स्थान पर अपने मूल 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत' का अनुसरण करके मुक्ति प्राप्त कर सकें।

 (शिवार्पणमस्तु)

-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

सूर्य के 'उच्च राशि' में प्रवेश के पश्चात भी संकट का कारण बनेगी सूर्य-राहु युति...


अपने पिछले ब्लॉग 'राहु केतु का राशि-परिवर्तन २०२२' में मैंने आप सभी को राहु के 'मेष' राशि और सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका' में प्रवेश के विषय में बताया था और उस ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए मैंने लिखा था कि समय-समय पर राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के ऊपर अलग से ब्लॉग बनाकर आपको जानकारी देने का प्रयास करूँगा ।
इस विषय पर मेरा पुराना ब्लॉग देखें -

उसी कड़ी में आज मैं आपको जानकारी देने जा रहा हूँ मेष राशि में स्थित 'राहु' के साथ होने वाली 'सूर्य' की युति की ।

'सूर्य' १४ अप्रैल २०२२ को प्रातः ८ बजकर ३३ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर मेष राशि के 'अश्वनी' नक्षत्र में प्रवेश करेंगे जहाँ वह १५ मई २०२२, प्रातः ५ बजकर २२ मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात 'वृष' राशि में प्रवेश कर जायेंगे।

सूर्य 'मेष' राशि में उच्च के हो जाते हैं तथा उसमें भी मेष राशि के १० अंश पर परम उच्च का फल देते हैं। जिस समय 'सूर्य' मेष राशि में प्रवेश करेंगे वहां उनका सामना १२ अप्रैल से संचार करते हुए 'राहु' के साथ होगा और गोचर में सूर्य-राहु की युति बन जाएगी तथा सूर्य- राहु की चपेट में आकर अपने शुभ फलों को देने में असमर्थ हो जायेंगे। 

जैसा कि मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में बता चुका हूँ कि राहु जिस भी ग्रह की राशि में स्थित होता है तथा जिस भी ग्रह से युति करता है अपने 'शनि' जैसे मारक प्रभावों के अतिरिक्त उस-उस ग्रह की छाया लेकर उनके भी प्रभाव ग्रहण कर लेता है। ऐसे में राहु- मंगल की राशि में स्थित होने तथा सूर्य की युति में आ जाने से मंगल तथा सूर्य के मारक प्रभाव भी ले लेगा और अपने अशुभ प्रभावों में कई गुना वृद्धि कर लेगा।

ऐसा राहु- सूर्य के उच्च राशि में स्थित होने पर भी उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके उच्च के सूर्य के शुभ फलों को नष्ट कर देगा तथा सूर्य से बनने वाले अवयवों (ह्रदय, पेट, दाहिना नेत्र तथा हड्डियां) को पीड़ित करके सभी जातकों को हानि पहुँचाने की चेष्ठा करेगा। जिसके कारण इस एक माह में विश्व भर में ह्रदय, पेट, दाहिने नेत्र तथा हड्डियों से सम्बंधित रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। अतः यदि कोई जातक पहले से ही इन चारों रोगों में से किसी एक रोग से पीड़ित है तो वह इस एक माह में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेता रहे।

इस एक माह के अवधिकाल में सूर्य-राहु की युति के दुष्परिणाम अंतरिक्ष में भी देखने को मिलेंगे। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चाहें तो अनुसंधान कर सकते हैं इस एक माह में सूर्य से उठने वाले वाले सौर तूफानों (Solar tsunami) में अत्यधिक वृद्धि होगी, जिससे कई देशों के सैटेलाइट नष्ट हो जायेंगे तथा इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक चक्रवात और भूकम्प आएंगे ।

सूर्य-राहु युति के इस अवधिकाल में ३० अप्रैल को सूर्यग्रहण लगेगा जिसके दुष्परिणाम आगामी ६ माह तक देखने को मिलते रहेंगे । विशेष रूप से पहले तीन माह तक इस सूर्य ग्रहण का दुष्प्रभाव बहुत अधिक रहेगा। यह सूर्यग्रहण भारत में मध्यरात्रि १२ बजकर १५ मिनट से शुरू होगा और फिर ३० अप्रैल की सुबह ४ बजकर ७ मिनट पर समाप्त होगा। भारत में यह आंशिक सूर्यग्रहण होगा और दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे भारत में यह कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह सूर्यग्रहण दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और अंटार्कटिका में ही दिखाई देगा और यहां यह ३० अप्रैल दोपहर १२:१५ बजे शुरू होकर शाम ४:०७ बजे समाप्त होगा। जिसके परिणामस्वरूप इन स्थानों पर आगामी ३माह के भीतर बड़े भूकंप और चक्रवात आयेंगे।

सूर्य-राहु की यह युति बड़े राजनेताओं व उच्च अधिकारियों के लिए भी बहुत अमंगलकारी है। इधर पहले से ही 'राहु' बड़े राजनेताओं और उच्च अधिकारियों के कारक 'सूर्य' के नक्षत्र 'कृतिका' में स्थित होने से विश्व के बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों को हानि पहुंचा रहे हैं और विश्व में कई देशों की सरकारें अस्थिर किए हुए हैं, ऊपर से 'सूर्य' के साथ युति करके उनको और अधिक हानि पहुंचाने की चेष्ठा करेंगे। अतः इस एक माह के अवधिकाल में विश्व भर में बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है, जिसका कारण अधिकांशतः हृदय घात ही होगा। इसके अतिरिक्त कई देशों में बड़े राजनेताओं को राजनैतिक अस्थिरता एवं सहयोगी मित्रों से छल की स्थिति का सामना करना पड़ेगा ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए राहु के अशुभ फलों से बचाव के उपाय-
जिन जातकों को राहु अशुभ फल दे रहे हैं वह योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से राहु की वेदोक्त अथवा तंत्रोक्त विधि से विधिवत् शांति करवा लें और स्वयं उनके बीज मंत्र का जाप करें व शनिवार के दिन राहु के निमित्त दान करें । नीला रंग धारण न करें तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा करने और इस दिशा में निवास करने से बचें । राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के उच्च कोटि के मंत्रों का रुद्राक्ष की माला से विधिवत् जाप करें। पुरानी लकड़ी व धूल घर में एकत्र न होने दें और तम्बाकू का सेवन कदापि न करें ।

राहु के निमित्त दान- नीला वस्त्र, नारियल (जटाओं वाला), शीशा (कांच), कंबल, मूली, सुरमा, सप्त धान्य, गोमेद, खड्ग, नीले पुष्प आदि । इसके अतिरिक्त कौवे को मीठी रोटी खिलाने, चींटियों को भोजन देने तथा काली बिल्ली को दूध पिलाने (बिल्ली को घर में पालना नहीं है) से भी राहु देवता प्रसन्न होकर अपने दुष्प्रभावों को अल्प अथवा समाप्त कर देते हैं

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में सूर्य पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ स्थिति में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति उतनी अशुभकारी नहीं होगी किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में सूर्य अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पहले से ही राहु, शनि, केतु के पाप प्रभाव में हुए और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

सूर्य का अपनी नीच राशि 'तुला' में प्रवेश



१७ अक्टूबर को दोपहर के १ बजकर १२ मिनट पर सूर्य अपनी मित्र राशि 'कन्या' से अपनी नीच राशि 'तुला' में प्रवेश कर जाएंगे और १६ नवम्बर दोपहर १ बजकर ०२ मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात अपनी मित्र राशि 'वृश्चिक' में चले जायेंगे ।

सूर्य का अपनी नीच राशि में प्रवेश सभी जातकों के लिए अशुभ फल प्रदान करने वाला होगा । विशेषकर उच्च अधिकारी तथा विश्व के बड़े राजनेता इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे क्योंकि सूर्य उनका कारक होता है तथा केवल वही जातक सूर्य के इस अशुभ गोचर से प्रभावित नहीं होंगे जिनकी जन्म-कुण्डलियों में सूर्य शुभ स्थिति में होंगे तथा जिनकी दशा-अन्तर्दशा भी शुभ ग्रहों की चल रही होगी ।

इसके विपरीत यदि विचार करें तो जिन जातकों की जन्म-कुण्डलियों में सूर्य पहले से ही नीच राशि में स्थित होंगे अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव में होंगे, उनके लिए सूर्य का यह गोचर-काल अत्यन्त कष्टकारी सिद्ध होगा ।

चिकित्सा ज्योतिष के अनुसार यदि विचार करें तो सूर्य; मनुष्य के शरीर में "हृदय, उदर (Stomach), हड्डियां और दाहिना नेत्र" इन ४ अंगों का निर्माण करता है । अतः इस अवधिकाल में विश्व भर में इन चारों अंगों से सम्बंधित रोगियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होगी और इनसे सम्बंधित Operations में सफलता की संभावना भी कम रहेगी ।

वैज्ञानिक दृष्टि से यदि देखें तो सूर्य का अपनी नीच राशि तुला में प्रवेश सूर्य से उत्पन्न होने वाली सौर सुनामियों ( Solar Tsunami) में वृद्धि करेगा जिसके दुष्प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक भूकम्प और चक्रवात आने की संभावना बढ़ जाएगी ।

आध्यात्मिक दृष्टि से यदि विचार करें तो गोचर में 'आत्मा के कारक' सूर्य के अपनी नीच राशि में संचार करने से इस अवधिकाल में मनुष्यों की आत्मिक ऊर्जा कमजोर हो जाएगी और जिसके कारण उनमें पाप-पुण्य का बोध कम हो जाएगा। ऐसे में केवल धर्म के मर्म को समझने वाले आध्यात्मिक मनुष्य ही पाप कर्मों में लिप्त होने से बच सकेंगे और ऐसे महान मनुष्य ही अपनी आत्मिक ऊर्जा को बनाये रखने के लिए यत्न कर सकेंगे ।

सभी राशियों - लग्नों के जातकों पर सूर्य के इस राशि परिवर्तन का निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा-
मेष राशि - मेष लग्न
इस राशि-लग्न के जातकों का सूर्य पंचम भाव का स्वामी होकर सप्तम भाव में नीच का होने से आपकी सन्तान को गले-छाती की समस्या तथा आपके जीवन साथी, ताऊ अथवा बड़ी बुआ के सिर में चोट एवं पीड़ा दे सकता है । इस राशि-लग्न वाले जातक स्वयं के पेट का ध्यान रखें । मेष राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियों को इस अवधिकाल में यत्न पूर्वक अपनी सन्तान की सुरक्षा करनी चाहिए । प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी यह समय शुभ नहीं है।

वृष राशि - वृष लग्न
सूर्य के आपके चतुर्थ भाव के स्वामी होकर छठे भाव में नीच राशि में गोचर करने के कारण आपकी माता को गले-छाती की समस्या तथा उनके चोटिल होने के योग बनते हैं  और यह समय काल आपके स्वयं के वाहन से यात्रा के लिए भी शुभ नहीं है। इस अवधिकाल में प्रॉपर्टी के लेनदेन से बचें ।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
इस अवधिकाल में आपके छोटे भाई - बहनों को गले-छाती की समस्या हो सकती है । स्वयं के पेट व संतान का ध्यान रखें । इस राशि- लग्नों वाली गर्भवती स्त्रियां खानपान का विशेष ध्यान रखें अन्यथा संतान हानि हो सकती है। मिथुन राशि-लग्न वाले हृदय रोगी इस अवधिकाल में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेते रहें । प्रेम संबंधों में विवाद की स्थिति से बचें ।

कर्क राशि - कर्क लग्न
इस अवधिकाल में आप लंबी दूरी की यात्रा करने से बचें, आपके बड़े मामा-बड़ी मौसी के लिए यह समय संकट का है। कुटुम्ब में संपत्ति को लेकर कोई विवाद हो सकता है ।

सिंह राशि - सिंह लग्न
आपके छोटे भाई-बहनों के लिए यह समय ठीक नहीं है उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखें तथा इस अवधिकाल में स्वयं विदेश यात्रा न करें । किसी मित्र से आपका विवाद हो सकता है, जिसके कारण आपको मान-सम्मान की हानि हो सकती है ।

कन्या राशि - कन्या लग्न
सूर्य १२वें भाव का स्वामी होकर आपके द्वितीय भाव में नीच का होने के कारण आपकी धन हानि के योग बनेंगे तथा हॉस्पीटल एवं रोगों पर होने पर आपके धन का व्यय होगा । इस अवधिकाल में आपके नेत्रों अथवा दांतों में कोई समस्या आ सकती है । कृपया अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा कुटुम्ब में व्यर्थ का विवाद उत्पन्न होगा ।

तुला राशि - तुला लग्न
इस अवधिकाल में आपके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को गले छाती की कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपके सिर में चोट लगने अथवा पीड़ा होने के योग बनेंगे। इस समय आपके क्रोध में अत्यन्त वृद्धि होगी जिस पर आपको नियंत्रण रखना होगा अन्यथा जीवन साथी से विवाद हो जाएगा ।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-लग्न वाले जो जातक सरकारी या प्राइवेट नौकरी करते हैं उनके लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। यदि आप सरकारी ठेके लेते हैं तो यह समय आपके लिए बहुत अशुभ है । इस राशि-लग्न के जो जातक सरकारी अधिकारी हैं अथवा बड़े राजनेता हैं उनको सरकार अथवा न्यायालय के कारण कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । कृपया अपनी सास के स्वास्थ्य का ध्यान रखें तथा स्वयं अपने घुटनों की चोट से बचें । आपके पिता के धन की कोई हानि हो सकती है ।

धनु राशि - धनु लग्न
इस अवधिकाल में आपके पिता को गले-छाती तथा आपको आपकी पीठ या कमर में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपके भाग्य के लिए यह समय शुभ नहीं है । आपके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ के लिए भी यह समय अशुभ है ।

मकर राशि - मकर लग्न
इस राशि-लग्न के जातकों की नौकरी जाने के योग बनेंगे अतः इस अवधिकाल में अपने कार्य स्थल पर कोई विवाद न होने दें । अष्टमेश होकर सूर्य अपनी नीच राशि में आपके दशम भाव में संचार करने के कारण आपको अपने घुटनों की चोट से बचाव करना चाहिये। कृपया अपनी अपनी सास के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
आपके जीवन साथी को गले-छाती की कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है तथा उनका आपके पिता या अपने छोटे भाई-बहनों से कोई विवाद हो सकता है । यदि आपके जीवन साथी इस अवधिकाल में कोई विदेश यात्रा पर जा रहें हों तो उनके लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। आपको स्वयं अपनी पीठ और कमर में कोई पीड़ा उत्पन्न हो सकती है कृपया उसका ध्यान रखें । यह समय आपके भाग्य के लिए भी ठीक नहीं है।

मीन राशि - मीन लग्न
अपने छोटे मामा- छोटी मौसी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें उनको मृत्यु तुल्य कष्ट उत्पन्न हो सकता है । यदि पहले से ही वह आयु के अंतिम पड़ाव पर हुए तो इस अवधिकाल में उनके प्राणों पर भारी संकट रहेगा । यदि आपका कोई कोर्ट केस चल रहा है तो उसमें आपको कठिनाई उत्पन्न हो सकती है । अष्टम भाव जन्मकुंडली में सर्वाधिक गहरा समुद्र है और नीच के सूर्य का संचार आपके अष्टम भाव में ही है, अतः इस समय आप समुद्री यात्रा करने से बचें ।

नोट- यहां केवल सूर्य के गोचर में राशि परिवर्तन से होने वाले शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है, अन्य ८ ग्रहों के गोचर में शुभाशुभ फल का नहीं । अतः अपने-अपने राशि-लग्नों पर केवल सूर्य की स्थिति का ही विचार करें ।
"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 16 मई 2021

शार्ली एब्दो के हिन्दू विरोधी कार्टून का उत्तर

भारत में कोविड-19 महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन संकट के लिए भारतीयों, विशेष रूप से हिंदुओं का उपहास उड़ाने वाला एक कार्टून बनाया गया है । इस कार्टून में भारतीयों को पृथ्वी पर लेटे, ऑक्सीजन के लिए छटपटाते हुए दिखाया गया है।

इस कार्टून को फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका 'शार्ली एब्दो' द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिसमें हिंदू देवताओं पर कटाक्ष करते हुए पूछा गया है कि वह कोविड की दूसरी लहर में अपने धर्म के लोगों की सहायता क्यों नहीं कर सके।

 शार्ली एब्दो के कार्टून के साथ एक लाइन भी है जिसमें लिखा है, ”भारत में 33 करोड़ देवता और एक भी ऑक्सीजन पैदा करने में सक्षम नहीं ।”

शार्ली एब्दो पत्रिका को हम उन लोगों की भांति उत्तर नहीं देंगे, जिन्होंने अपने पैगम्बर का कार्टून बनाये जाने पर, जनवरी 2015 में फ्रांस के सबसे प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों सहित 17 व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया था।

ऐसी प्रतिक्रिया देना हम हिंदुओं के संस्कारों में इसलिये नहीं है क्योंकि हमारे यहां तो अनादि काल से ही शास्त्रार्थ की परंपरा रही है, जिसमें यह व्यवस्था की हुई है कि हमारे मत का विरोधी व्यक्ति भी आकर हमारे धर्म ग्रन्थों पर हमें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे सकता है।

हम उस धर्म का पालन करने वाले मनुष्य हैं जहां भगवान विष्णु की छाती में लात मारकर उन्हें अपमानित करने के पश्चात भी उनके स्नेह का पात्र बन जाने वाले भृगु जैसे ऋषि भी हुए हैं तो अपने फरसे के प्रहार से गणेश जी का दंत तोड़ने वाले भगवान परशुराम जी भी।

अपने भगवान का निरादर करने वाले किसी मनुष्य के साथ हम इस कारण से भी हिंसा नहीं करते कि इस मनुष्य में एक दिन ईश्वरीय चेतना जाग्रत होगी और यह धर्म के मार्ग पर आ जायेगा ।

किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें सनातन धर्म की मर्यादा के अनुरूप किसी विधर्मी को उत्तर देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः ईश्वर की प्रेरणा से मैं शार्ली एब्दो को अपने धर्म की मर्यादा के अनुरुप उत्तर देने जा रहा हूँ।

तो सुनो ! हे "शार्ली एब्दो" के कार्टूनिस्टों- सर्वप्रथम तो यह जान लो कि वर्तमान में हम भारतीय जिस मानव निर्मित संविधान से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, वह सनातन धर्म के बनाये गए नियमों से नहीं चलता ।

सनातन धर्म ने हमारे लिए जो संविधान बनाया था वह हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों और शास्त्रों के सम्मिश्रण से बना है, जिसका पालन करने पर न तो वायु ही दूषित होती, न ही जल ! क्योंकि उस संविधान के अनुसार तो हम हर उस प्राकृतिक वस्तु का संरक्षण करते आये थे जो मानव जाति ही नही समस्त जीवों के लिए हितकारी हैं।

हे "शार्ली एब्दो"- यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो यहां न नदियां दूषित होतीं, न ही ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों का कटान होता, न ही अपनी जिव्हा के क्षणिक स्वाद के लिए पशुओं का वध होता और इसके विपरीत हर घर मे यज्ञ में आहुतियों के रूप में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का प्रयोग होता, जिससे कोरोना वायरस तो छोड़िए उसके पिताजी भी इस वायुमंडल में जीवित न रहते।

हे शार्ली एब्दो - यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो आज देशी गाय के गोबर की खाद से खेती हो रही होती और उससे उत्पन्न होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता ऐसी होती कि हम न केवल दीर्घायु होते, हमारी संताने भी निरोगी होतीं।

यह देश यदि वैदिक संविधान से चलता तो यज्ञों में पड़ने वाले 'देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी' की आहुतियों से हमारे समस्त देवी-देवता प्रसन्न होते और प्रसन्न होकर भारत ही नहीं तुम्हारे फ्रांस को भी निरोगी होने का आशीर्वाद देते और केवल हमें ही नहीं आपको भी कभी आक्सीजन की कमी से मरने न देते।  

तो हे 'शार्ली एब्दो', यह भारत देश 'ईश्वर और देवी देवताओं' के बनाये गए संविधान से चल कहाँ रहा है जो वह हिंदुओं की सहायता करने आएं और आकर हमारे लिए ऑक्सीजन का निर्माण करें ।

वैसे आपको मैं यह बात बता दूं कि हमारे देवी-देवताओं का कार्य ऑक्सीजन का निर्माण करना नहीं है, उसके लिए उन्होंने वृक्ष बनाये हैं, जिनका संरक्षण न कर पाना हमारी भयानक भूल है, जिसके लिए हम अपने देवी-देवताओं को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। 

अतः आप हम हिंदुओं को व्यर्थ का ज्ञान न दें और अपनी ऊर्जा का व्यय फ्रांस को आने वाले संकटों से बचाने में करें तथा जिस चीन ने अपने पालतू और बिके हुए वैश्विक संगठनो के साथ मिलकर कोरोना वायरस को पूरे विश्व में वायरल करके उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नष्ट करने का कुचक्र रचा है, यदि हो सके तो उसके विरुद्ध अपनी चोंच खोलने का प्रयास करें, जिससे फ्रांस की जनता भी आप पर गर्व कर सके ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 2 मई 2020

उच्च के ग्रहों की नीच दृष्टि



जन्म कुंडली में उच्च के ग्रहों का होना भी कितना घातक हो सकता है, यह सब आप बड़े-बड़े राजनेताओं, तानाशाहों, उच्च अधिकारियों, उद्योगपतियों तथा फिल्मी कलाकारों की जन्म कुंडलियों पर शोध करके देख सकते हैं।

जातक की जन्म कुण्डली में 'उच्च का ग्रह' जो उसे भौतिक ऊंचाइयां प्रदान कर रहा होता है, उसी 'उच्च के ग्रह' की ठीक अपने से 'सप्तम भाव' पर पड़ने वाली 'नीच दृष्टि', उसे उस शारीरिक अंग व सगे-संबंधी के सुख से वंचित कर रही होती है, जिस शारीरिक अंग व सगे-संबंधी का वह भाव होता है।

यही कारण है कि जो व्यक्ति जितनी अधिक ऊंचाई पर होता है उसका रोग तथा दुख भी उतना ही बड़ा होता है तथा उसे जीवन में किसी एक निकटतम संबंधी का सुख नहीं होता। और यह नियम केवल मनुष्य पर ही नहीं मनुष्य रूप में जन्म लेने वाले ईश्वर पर भी कार्य करता है।

यद्द्पि ईश्वर अपनी योग माया से स्वयं को साकार रूप में प्रकट करके अवतार धारण किया करते हैं तथापि 'पंचमहाभूतों' से व्याप्त देह में जन्म लेने के कारण स्वयं ईश्वर भी अपने ही द्वारा निर्मित ग्रहों के आधीन होने को विवश हैं, क्यों कि वह अपनी ही बनाई गई मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकते।

उदाहरण के लिये -
भगवान् श्री राम को कभी पत्नी तथा सन्तान का सुख प्राप्त नहीं हुआ एवं उनका सम्पूर्ण जीवन राक्षसों से युद्ध करते हुए बीत गया, अपना राजपाट छोड़कर वनवास जाना पड़ा, जिसके वियोग में उनके पिता भी चल बसे।

भगवान् श्री कृष्ण के जन्म के समय उनके माता-पिता कारावास में बंद रहकर घोर यातनाएं सहन कर रहे थे, कंस द्वारा उनके 7 भाइयों का वध कर दिया गया था। बाल्यकाल में ही कंस द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों से उन्हें युद्ध करना पड़ा। कंस वध के उपरांत जरासंध से बार-बार युद्ध करना पड़ा। बाद में महाभारत जैसे विध्वंसकारी युद्ध में पांडवों की सहायता करने के कारण गांधारी का श्राप सहन करना पड़ा, यहां तक कि उनको 'स्यमंतक मणि' चोरी का आरोप तक सहन करना पड़ा।


भगवान् परशुराम को अपनी ही माता तथा सगे भाइयों का सर काटना पड़ा। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में 21 बार अत्याचारी क्षत्रियों से युद्ध करके उनके अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त करवाकर अंत में उस पाप से मुक्त होने के लिए सैंकड़ों वर्षों तक तप करना पड़ा।

अब बात करते हैं तानाशाहों की-
युगांडा का तानाशाह ईडी अमीन जो कि नरभक्षण के लिए कुख्यात था ,उसे भी युगांडा-तंज़ानिया युद्ध के पश्चात लीबिया तथा सउदी अरब में निर्वासितों का जीवन जीना पड़ा।

एडोल्फ हिटलर जो संसार को दूसरे विश्व युद्ध में झोंकने तथा 6 करोड़ लोगों की हत्याओं के लिये उत्तरदायी माना जाता है और जिसके कारण भारत ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त हो सका, उस हिटलर को भी अंत में अपने बंकर में छुपकर आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ा।

इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी, इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन और लीबिया के तानाशाह मुअम्मर अल-गद्दाफी जैसों का अंत कैसे हुआ वह किसी से छुपा नहीं है।

आधे विश्व को रौंदकर भारत भूमि पर विजय प्राप्ति का दुःस्वप्न अपने हृदय में लिया हुआ विश्व विजेता सिकन्दर, हिन्दू राजा पोरस की सेना के हाथों बुरी तरह रगड़ दिया गया, और कभी यूनान की धरती पर वापस प्रवेश न कर सका।

अब बात करते हैं राजनेताओं की-
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को वाशिंगटन के ‘फोर्ड थियटर’ में गोली मार दी गयी जिसके कारण अगले दिन उनकी मृत्यु हो गयी। उसी प्रकार अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन केनेडी को भी टेक्सास के डलास में गोली मार दी गयी । भारत के विभाजन के कारण हिंदुओं की जो दुर्दशा हुई उसे देखकर हिन्दू क्रांतिकारियों द्वारा गांधी को गोली मार दी गयी ।


लाल बहादुर शास्त्री की रूस में विष देकर हत्या कर दी गयी, सुभाष चंद्र बोस के साथ कितने षड्यंत्र किये गए सबको ज्ञात है। सिखों से शत्रुता मोल लेने के कारण इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई । श्रीलंका की आंतरिक समस्या में हस्तक्षेप करने के कारण राजीव गांधी की हत्या कर दी गयी। पाकिस्तान में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गयी।

वर्तमान समय में देखा जाए तो भारतीय राजनीति के इतिहास पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से लेकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी, मायावती जी , ममता बनर्जी जैसे बड़े-बड़े राजनेताओं को भी जीवन साथी तथा संतान का सुख नहीं है। अनेक राजनेता विभिन्न गंभीर रोगों से ग्रसित हैं जिसके कारण उन्हें विदेश जाकर अपनी चिकित्सा करवानी पड़ रही है।

ऐसे अनगिनत राजनेताओं, फिल्मी कलाकारों ,उद्योगपतियों आदि की बात की जाये तो विषय बहुत अधिक खिंच जायेगा, अतः यहां केवल समझाने के उद्देश्य से कुछ उदाहरण मात्र दिए गए हैं कि जो व्यक्ति जितनी ऊंचाई पर होता है उसके साथ दुख भी उतने ही बड़े होते हैं और यह सब होता है उनकी जन्म कुंडली में स्थित उच्च के ग्रहों की नीच दृष्टि के कारण। नहीं तो स्टीफन विलियम हॉकिंग जैसे वैज्ञानिकों को 'मोटर न्यूरॉन डिजीज' जैसे रोग से ग्रसित होकर एक कुर्सी पर अपना जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता।


अतः उच्च के ग्रहों में संतान का जन्म होना भी कभी-कभी अत्यंत दुखदाई हो जाता है, क्यों कि वह उच्च का ग्रह आपको जितना अधिक देता है, किसी और स्थान पर अपने से सप्तम भाव पर पड़ने वाली अपनी नीच दृष्टि से उतना ही अधिक छीन भी लेता है।

इसलिये विद्वान व्यक्तियों को अपनी संतानों का जन्म का वह समय-काल निर्धारित करना चाहिये जब ग्रह अपनी उच्च राशि में होने के स्थान पर अपनी मूल-त्रिकोण, स्वराशि अथवा मित्र ग्रह की राशि में स्थित हों।
"शिवार्पणमस्तु "
-Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 24 जुलाई 2019

भगवान शिव और श्री हरि विष्णु एक ही हैं


अहंकार, द्वेष, लोभ एवं स्वार्थ के वशीभूत होकर सनातन धर्म में कुछ 'सम्प्रदाय' केवल भगवान विष्णु की ही महिमा का गुणगान करते हैं। यहां तक तो बात ठीक है परंतु दुःख तब होता है जब उनके यहां भगवान शिव को तुच्छ देवता कहकर उनका अपमान किया जाता है, इस विषय मे वैदिक ज्योतिष का क्या मत है, आइये देखते हैं।

वैदिक ज्योतिष के महानतम ग्रंथ 'बृहत पाराशर होरा शास्त्रम' में त्रिकालज्ञ (तीनों कालों को जानने वाले) पाराशर ऋषि , मैत्रेय ऋषि से भगवान के तीनों स्वरूपों का वर्णन कुछ इस प्रकार से करते हैं-
श्रीशक्त्या सहितो विष्णु: सदा पाति जगत्त्रयम।
भूशक्त्या सृजते ब्रह्मा नीलशक्त्या शिवोSत्ति हि।।
अर्थात-
पूर्वोक्त वासुदेव श्री शक्ति के सहित विष्णुस्वरूप होकर तीनों भुवनों का पालन करते हैं, भूशक्ति से युक्त होकर ब्रह्मस्वरूप बनकर सृष्टी करते हैं तथा नील शक्ति से युक्त होकर शिव स्वरूप बनकर संहार करते हैं।)

इस श्लोक के माध्यम से यह सिद्ध होता है कि पालन करते समय भगवान की जो शक्ति 'विष्णु' नाम से जानी जाती है संहार करते समय वही शक्ति 'शिव' कहलाती है, ऐसे में शिव का अपमान करके वह सभी क्या भगवान विष्णु का अपमान नहीं कर रहे हैं?

रुद्रहृदय उपनिषद में कहा गया है —
येनमस्यन्तिगोविन्दंतेनमस्यन्ति_शंकरम् ।
येऽर्चयन्तिहरिंभक्त्यातेऽर्चयन्तिवृषध्वजम् ॥5॥
अर्थात-
जो गोविंद को नमस्कार करते हैं ,वे शंकर को ही नमस्कार करते हैं । जो लोग भक्ति से विष्णु की पूजा करते हैं, वे वृषभ ध्वज भगवान् शंकर की पूजा करते हैं ।

यद्विषन्तिविरूपाक्षंतेद्विषन्ति_जनार्दनम् ।
येरुद्रंनाभिजानन्तितेनजानन्तिकेशवम् ॥6॥
अर्थात-
जो लोग भगवान विरुपाक्ष त्रिनेत्र शंकर से द्वेष करते हैं, वे जनार्दन विष्णु से ही द्वेष करते हैं। जो लोग रूद्र को नहीं जानते ,वे लोग भगवान केशव को भी नहीं जानते।

सत्यता यह है कि भक्तिकाल में मुगल आक्रांताओं से किसी भी तरह से धर्म को बचाये रखने के लिए विद्वानों ने जब वैदिक मार्ग छोड़कर भक्तिमार्ग का आश्रय लिया तब वहीं से यह सब विकृतियां उत्पन्न हुईं क्योंकि उससे पूर्व जितना भी ज्ञान हुआ करता था उसके पीछे शास्त्रों का आधार हुआ करता था।

अतः मुगल काल के पश्चात सनातन धर्म में कुकुरमुत्तों की भांति जितने भी पंथ, सम्प्रदाय उग आये हैं (जिनमे वेदों की आड़ लेकर मूर्ति पूजा को पाखंड बताकर सनातन धर्म पर आघात करने वाले सम्प्रदाय भी सम्मलित हैं )उन सभी का विसर्जन करके उसके स्थान पर पुनः वैदिक शिक्षा की व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है नहीं तो यह लोग अपने अनुयायियों को ऐसे ही मूर्ख बनाकर अपनी दुकानें चलाते रहेंगे।

''शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava