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बुधवार, 24 जुलाई 2019

भगवान शिव और श्री हरि विष्णु एक ही हैं


अहंकार, द्वेष, लोभ एवं स्वार्थ के वशीभूत होकर सनातन धर्म में कुछ 'सम्प्रदाय' केवल भगवान विष्णु की ही महिमा का गुणगान करते हैं। यहां तक तो बात ठीक है परंतु दुःख तब होता है जब उनके यहां भगवान शिव को तुच्छ देवता कहकर उनका अपमान किया जाता है, इस विषय मे वैदिक ज्योतिष का क्या मत है, आइये देखते हैं।

वैदिक ज्योतिष के महानतम ग्रंथ 'बृहत पाराशर होरा शास्त्रम' में त्रिकालज्ञ (तीनों कालों को जानने वाले) पाराशर ऋषि , मैत्रेय ऋषि से भगवान के तीनों स्वरूपों का वर्णन कुछ इस प्रकार से करते हैं-
श्रीशक्त्या सहितो विष्णु: सदा पाति जगत्त्रयम।
भूशक्त्या सृजते ब्रह्मा नीलशक्त्या शिवोSत्ति हि।।
अर्थात-
पूर्वोक्त वासुदेव श्री शक्ति के सहित विष्णुस्वरूप होकर तीनों भुवनों का पालन करते हैं, भूशक्ति से युक्त होकर ब्रह्मस्वरूप बनकर सृष्टी करते हैं तथा नील शक्ति से युक्त होकर शिव स्वरूप बनकर संहार करते हैं।)

इस श्लोक के माध्यम से यह सिद्ध होता है कि पालन करते समय भगवान की जो शक्ति 'विष्णु' नाम से जानी जाती है संहार करते समय वही शक्ति 'शिव' कहलाती है, ऐसे में शिव का अपमान करके वह सभी क्या भगवान विष्णु का अपमान नहीं कर रहे हैं?

रुद्रहृदय उपनिषद में कहा गया है —
येनमस्यन्तिगोविन्दंतेनमस्यन्ति_शंकरम् ।
येऽर्चयन्तिहरिंभक्त्यातेऽर्चयन्तिवृषध्वजम् ॥5॥
अर्थात-
जो गोविंद को नमस्कार करते हैं ,वे शंकर को ही नमस्कार करते हैं । जो लोग भक्ति से विष्णु की पूजा करते हैं, वे वृषभ ध्वज भगवान् शंकर की पूजा करते हैं ।

यद्विषन्तिविरूपाक्षंतेद्विषन्ति_जनार्दनम् ।
येरुद्रंनाभिजानन्तितेनजानन्तिकेशवम् ॥6॥
अर्थात-
जो लोग भगवान विरुपाक्ष त्रिनेत्र शंकर से द्वेष करते हैं, वे जनार्दन विष्णु से ही द्वेष करते हैं। जो लोग रूद्र को नहीं जानते ,वे लोग भगवान केशव को भी नहीं जानते।

सत्यता यह है कि भक्तिकाल में मुगल आक्रांताओं से किसी भी तरह से धर्म को बचाये रखने के लिए विद्वानों ने जब वैदिक मार्ग छोड़कर भक्तिमार्ग का आश्रय लिया तब वहीं से यह सब विकृतियां उत्पन्न हुईं क्योंकि उससे पूर्व जितना भी ज्ञान हुआ करता था उसके पीछे शास्त्रों का आधार हुआ करता था।

अतः मुगल काल के पश्चात सनातन धर्म में कुकुरमुत्तों की भांति जितने भी पंथ, सम्प्रदाय उग आये हैं (जिनमे वेदों की आड़ लेकर मूर्ति पूजा को पाखंड बताकर सनातन धर्म पर आघात करने वाले सम्प्रदाय भी सम्मलित हैं )उन सभी का विसर्जन करके उसके स्थान पर पुनः वैदिक शिक्षा की व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है नहीं तो यह लोग अपने अनुयायियों को ऐसे ही मूर्ख बनाकर अपनी दुकानें चलाते रहेंगे।

''शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

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