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बुधवार, 24 जुलाई 2019

Jyotish Ka Rahasya ज्योतिष का रहस्य : भाग - 1


आज मैं ज्योतिष में श्रद्धा रखने वाले सज्जनों की सभी शंकाओं का निवारण करने जा रहा हूँ कृपया ध्यान पूर्वक पढ़ें-

प्रायः देखने में आता है कि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में दशा -अंतर्दशा बहुत शुभ चल रही होती है परंतु फिर भी उस पर अचानक से विपत्ति आ जाती है, तथा दशा-अंतर्दशा अशुभ होने पर भी उन्हें अचानक से धन आदि की प्राप्ति हो जाती है।
तो ये सब क्या है ? क्या ज्योतिष के सिद्धांत मिथ्या हैं ?

मित्रों ज्योतिष के जो भी सिद्धांत पूर्व के ऋषियों ने हमें दिये हैं वह मिथ्या नहीं है , सत्यता यह है कि जन्म कुंडली में दशा-अंतर्दशा के अतिरिक्त प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा, प्राण दशा एवं गोचर का फल भी जातक को मिलता है।

अनेक बार गोचर (तात्कालिक रूप से राशियों, नक्षत्रों पर घूमने वाले ग्रहों की स्थिति) में ग्रहों का फल इतना शुभ हो जाता है कि ग्रह ,जातक को अपने अवधिकाल मे शुभ फल प्रदान करके अगली राशि में चला जाता है भले ही जातक की दशा-अंतर दशा अशुभ चल रही हो । इसी प्रकार से अनेक बार शुभ दशा-अंतर्दशा के चलने पर भी यदि गोचर में ग्रहों की स्थिति अशुभ हो जाए तो जातक को बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं।

ठीक इसी प्रकार शुभ गोचर और शुभ दशा-अंतर दशा के चलने पर भी यदि प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा, प्राण दशाएं अशुभ चल रही हों तो भी जातक कष्ट प्राप्त कर जाता है तथा इसके विपरीत गोचर एवं दशा-अंतर दशाओं के अशुभ स्थिति में होने पर भी यदि प्रत्यंतर, सूक्ष्म और प्राण दशाएं शुभ चल रही हों तो भी जातक को अचानक से शुभ फल की प्राप्ति हो जाती है।

अतः मनुष्य चाहे कितना भी चतुर हो जाये ईश्वर ने उसके सभी बटन अपने हाथों में ले रखे हैं जिसे दबाने पर मनुष्य कठपुतलियों की भांति नृत्य करने पर विवश है ,ईश्वर की इस क्रीड़ा को या तो कोई सिद्ध पुरुष समझ सकता है अथवा कोई ज्योतिषाचार्य।

अतः एक अच्छे ज्योतिषी को चाहिये कि यदि उनके पास कोई जातक अपनी जन्म कुण्डली लेकर आये तो वह उसकी कुंडली में दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा , प्राण दशा तथा गोचर की स्थिति को देखकर ही कोई निर्णय दें व उपाय बताएं ।

इसके अतिरिक्त जातकों को चाहिए कि वह ज्योतिषीय उपायों को करने के साथ-साथ सत्कर्मो को करते हुए स्वयं भी उन उच्च कोटि के देवी-देवताओं की आराधना करते रहें जिन्होंने मनुष्यों को उनके पाप पुण्यों के भुगतान कराने के लिए यह ग्रह-नक्षत्रों का पूरा सैटअप बनाया है।

अंत में एक और बात यह कि ज्योतिष यहीं समाप्त नहीं हो जाता, कुंडली में ग्रहों के बलाबल, दृष्टि-युति संबंध, मारक, कारक, अकारक ग्रह, मुख्य कुण्डली में कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हुआ अथवा अंशो में (डिग्रिकली) कम शक्तिशाली तो नहीं है, अष्टक वर्ग में बिंदुओं की स्थिति, वर्गोत्तम ग्रह ,पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों पर शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ने वाले प्रभाव आदि इन सूक्ष्म बातों की विवेचना के आधार पर ही सूक्ष्म निर्णय दिये जा सकते हैं।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

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