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शनिवार, 27 जुलाई 2019

Kisko Na Dein Jyotish ka Gyaan किसको ना दें ज्योतिष का ज्ञान


ज्योतिष का ज्ञान किसके समक्ष प्रकट करना चाहिए और किसके समक्ष प्रकट नहीं करना चाहिये, आज मैं इस विषय प्रकाश डालते हुए 'ज्योतिष शास्त्र' को जानने वाले महान तपस्वी 'ऋषि पराशर जी' के प्राचीन ग्रंथ 'बृहत पाराशर होरा शास्त्रम् ' में 'ऋषि पराशर' और 'ऋषि मैत्रेय जी' का आपस मे संवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मैत्रेय उवाच

भगवन् ! परमं पुण्यं गुह्यं वेदाङ्गमुत्तमम्।

त्रिस्कन्धं ज्यौतिषं होरा गणितं सहिंतेति च ।।

एतेष्वपि त्रिषु श्रेष्ठा होरेति श्रूयते मुने।

त्वत्तस्तां श्रोतुमिच्छामि कृपया वद में प्रभो।

कथं सृष्टिरियं जाता जगतश्च लयः कथम्  ।

खस्थानां भूस्थितानां च सम्बन्धम वद विस्तरात् ।।

मैत्रेय जी ने कहा-
हे भगवन् ! वेदाङ्गों में सर्वोत्तम एवं परम पुण्य दायक 'ज्यौतिषशास्त्र' के 'होरा,गणित और संहिता' इस प्रकार तीन स्कंध हैं। उनमें से भी होराशास्त्र सर्वोत्तम है। उसे मैं आपसे सुनना चाहता हूँ । हे प्रभो ! मुझे सब बतला दिया जाये। इस संसार की उत्पत्ति कैसे हुई और प्रलय किस प्रकार होता है, साथ ही आकाशस्थ ग्रह-नक्षत्रों से पृथ्वी स्थित जीव-जंतुओं का क्या संबंध है ? इत्यादि सभी बातें विस्तारपूर्वक मुझे अवगत करा दें।।

पराशर उवाच
साधु पृष्टम त्वया विप्र ! लोकानुग्रहकारिणा।
अथाहं परमं ब्रह्म तच्छक्तिं भारतीं पुनः।।
सूर्यं नत्वा ग्रहपतिं जगदुत्पत्तिकारणम्।
वक्ष्यामि वेदनयनं यथा ब्रह्ममुखाच्छुतम्।।
शान्ताय गुरुभक्ताय सर्वदा सत्यवादिने।
आस्तिकाय प्रदातव्यं ततः श्रेयो ह्यवाप्स्यति।।
न देयं परशिष्याय नास्तिकाय शठाय वा।
दत्ते प्रतिदिनं दुःखं जायते नात्र संशयः ।।

पराशर जी ने कहा-
हे ब्राह्मण ! लोककल्याण-हेतु आपने उत्तम प्रश्न किया है। आज मैं परब्रह्म परमेश्वर और सरस्वती देवी को तथा जगत् को उत्पन्न करने वाले ग्रहों के अधिपति भगवान सूर्य को प्रणाम करके जिस प्रकार ब्रह्माजी के मुखारविंद से 'ज्यौतिष शास्त्र' सुना हूँ, उसी प्रकार कहता हूँ।

इस शास्त्र का उपदेश शांत, गुरुभक्त, सदैव सत्य बोलने वाले और आस्तिक को ही देना चाहिये, इसी से कल्याण प्राप्त होता है। परशिष्य, नास्तिक एवं शठजनों को इस शास्त्र का उपदेश नहीं करना चाहिये। इस प्रकार के मनुष्यों को ज्यौतिषशास्त्रोपदेश करने वाला दुःख का भागी होता है; इसमे कोई संदेह नहीं है।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

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