प्रायः यह देखने मे आता है कि अपनी अज्ञानता के कारण वर्तमान का युवा राजनीति और धर्म को पृथक-पृथक देखना चाहता है। किंतु वह ये विचार नही करता कि यदि राजनीति के पीछे धर्म नहीं होगा तो राजनेता नास्तिक हो जाएंगे और नास्तिक होने के कारण किसी भी राजनेता को ईश्वरीय सत्ता का भय भी नहीं होगा,और ऐसा राजनेता समाज में पाप एवं अत्याचार को ही जन्म देगा।
यही कारण है कि त्रेता युग में श्री राम के काल से भी पहले से राजाओं को नियंत्रित करने के लिए राजगुरु हुआ करते थे जो राजाओं को धर्म और अधर्म दोनों का ज्ञान देते हुए प्रजा का पालन पोषण करने तथा राज्य चलाने में सहायता किया करते थे। वर्तमान में राजनेताओं में बढ़ रही नीचता का कारण उनके पीछे धर्म तथा धर्म गुरुओं का ना होना ही है ।
अतः युवाओं को विचार करके यह स्वयं निर्धारित करना होगा कि राजनीति और धर्म का समन्वय उचित है अथवा अनुचित, क्या धर्म विहीन राजनीति और राजनेता जनता के साथ न्याय कर पाएंगे , यदि उनके पीछे धर्म ना हुआ तो क्या वह निरंकुश नहीं हो जाएंगे ?
''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava
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