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बुधवार, 24 जुलाई 2019

कलियुगी सम्प्रदायों द्वारा शक्ति की आराधना निषेध करना क्या उचित है ?


श्रीमद्भागवत गीता' में भगवान श्री कृष्ण द्वारा स्वयं को ही 'पूर्णब्रह्म' घोषित करने का उदाहरण देकर,'उच्च कोटि' के अन्य 'देवी-देवताओं' को तुच्छ बताने का कुत्सिक प्रयास करने वाले 'नवीन संप्रदायों' को, योगेश्वर श्री कृष्ण द्वारा महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन को 'देवी दुर्गा' की उपासना करने का आदेश देने का प्रमाण 'महाभारत ग्रंथ' में से ही देता हूँ।

संजय उवाच
धार्तराष्ट्रबलं दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्तिथम।
अर्जुनस्य हितार्थाय कृष्णो वचनमब्रवीत्।।
संजय कहते हैं
दुर्योधन की सेना को युद्ध के लिये उपस्थित देख श्रीकृष्ण ने अर्जुन के हित की रक्षा के लिये इस प्रकार कहा।।

श्रीभगवानुवाच
शुचिर्भूत्वा महाबाहो संग्रामाभिमुखे स्तिथ:।
पराजयाय शत्रूणां दुर्गास्तोत्रमुदीरय।।
श्रीभगवान बोले
महाबाहो ! तुम युद्ध के सम्मुख खड़े हो, पवित्र होकर शत्रुओं को पराजित करने के लिये दुर्गादेवी की स्तुति करो।।

संजय उवाच
एवमुक्तोSर्जुन: संख्ये वासुदेवेन धीमता।
अवतीर्य रथात पार्थ: स्तोत्रमाह कृताञ्जलि:।।
संजय कहते हैं
परम बुद्धिमान भगवान वासुदेव के द्वारा रणक्षेत्र में इस प्रकार आदेश प्राप्त होने पर कुन्तीकुमार अर्जुन रथ से नीचे उतर कर दुर्गा देवी की स्तुति करने लगे।।

अर्जुन द्वारा अपनी स्तुति करने से प्रसन्न होकर 'देवी दुर्गा' ने स्वयं प्रकट होकर,अर्जुन को शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का आशीर्वाद किस प्रकार से दिया,यह महाभारत में ही वर्णित निम्न श्लोकों के माध्यम से देखते हैं।

संजय उवाच
ततः पार्थस्य विज्ञाय भक्तिं मानववत्सला।
अन्तरिक्षगतोवाच गोविंदस्याग्रत: स्तिथा।।
संजय कहते हैं
राजन ! अर्जुन के इस भक्ति भाव का अनुभव करके मनुष्यों पर वात्सल्य भाव रखने वाली माता दुर्गा अन्तरिक्ष में भगवान श्री कृष्ण के सामने आकर खड़ी हो गईं और इस प्रकार बोलीं।।

देव्युवाच
स्वल्पेनैव तु कालेन शत्रूञ्जेष्यसि पाण्डव।
नरस्त्वमसि दुर्धर्ष नारायणसहायवान।।
अजेयस्त्वं रणेSरीणामपि वज्रभृत: स्वयम।
देवी ने कहा
पाण्डुनंदन ! तुम थोड़े ही समय में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करोगे, दुर्धर्ष वीर ! तुम तो साक्षात नर हो , ये नारायण तुम्हारे सहायक हैं , तुम रणक्षेत्र में शत्रुओं के लिये अजेय हो, साक्षात इंद्र भी तुम्हे पराजित नहीं कर सकते।।

अतः इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि भगवान श्री कृष्ण ,जब स्वयं अर्जुन को ही देवी की उपासना करने का आदेश दे रहे हैं तो उनके नाम पर व्यापार करने वाले सम्प्रदाय किस आधार पर अन्य देवी-देवताओं की उपासनाओं को अपने अनुयायियों के लिए निषेध कर सकते हैं ।
इसके अतिरिक्त यदि आप 'रामायण' पढ़ें तो उसमें भी भगवान राम के द्वारा रावण वध के लिए 'दस महाविधाओं' में से प्रथम (काली) की उपासना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का वर्णन मिलता है, क्यों कि रावण स्वयं ही भगवान शंकर के साथ-साथ अपनी कुल देवी निकुम्भला(बगुलामुखी) की भी उपासना किया करता था, जिसके कारण वह बिना 'देवी काली' का आशीर्वाद प्राप्त किये ,भगवान राम के लिए भी अवध्य था। 

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

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