सामान्यतः यह कहा जाता है कि जिस समय जातक का जन्म होता है उसी समय उसकी मृत्यु का समय और कारण भी निर्धारित हो जाता है तथा वह अपने जीवन काल में किन-किन रोगों से ग्रसित होगा और उसका समय काल क्या होगा, उस जातक की जन्म पत्रिका में यह सब लिख दिया जाता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या उस जातक के जीवनकाल में उत्पन्न होने वाले रोगों को बढ़ने से रोका जा सकता है अथवा उसकी आयु बढ़ाई जा सकती है ? ऐसे में वैदिक ज्योतिष हमें वह प्रकाश दिखाता है जिसके माध्यम से हम उस जातक के असाध्य रोगों को कम अथवा नगण्य कर सकते हैं तथा उसकी आयु वृद्धि भी कर सकते हैं।
जातक की जन्मकुंडली में बारह भाव उसकी शारीरिक संरचना को दर्शाते हैं जिसमें प्रथम भाव - जातक का सिर (Head) , द्वितीय भाव - मुख (Mouth & Face), तृतीय भाव - गर्दन और दाहिना कान (Throat & Right Ear), चतुर्थ भाव - छाती (Chest), पंचम भाव - उदर व हृदय (Stomach & Heart), षष्टम भाव - यकृत, आंतें, अग्नाशय एवं गुर्दा (Liver, Intestines, Pancreas & Kidney), सप्तम भाव - यौन अंग (Sex Organs), अष्टम भाव - गुदा (Anus), नवम भाव - नितम्ब, पीठ व कमर (Hips, Back & Waist), दशम भाव - जांघ और घुटना (Thighs & Knees), एकादश भाव - पिंडलियाँ एवं बांया कान (Calf & Left Ear) तथा द्वादश भाव - एड़ी से लेकर पंजो तक एवं बायें नेत्र (Heel to Toe & Left Eye) का माना जाता है।
यही नियम इनकी 12 राशियों, 27 नक्षत्रों एवं नवग्रहों पर भी प्रयुक्त होता है।
राशियां
१. मेष- सिर, २. वृष- मुख (Mouth & Face) ३. मिथुन - गर्दन और दाहिना कान (Throat & Right Ear) ४. कर्क -छाती (Chest) ५. सिंह -उदर व हृदय (Stomach & Heart) ६. कन्या- यकृत, आंतें, अग्नाशय एवं गुर्दा (Liver, Intestines, Pancreas & Kidney)७. तुला-यौन अंग (Sex Organs) ८. वृश्चिक -गुदा (Anus) ९. धनु- नितम्ब, पीठ व कमर (Hips, Back & Waist) १०. मकर- जांघ और घुटना (Thighs & Knees) ११. कुम्भ- पिंडलियाँ एवं बांया कान (Calf & Left Ear) १२. मीन-एड़ी से लेकर पंजो तक एवं बायें नेत्र (Heel to Toe & Left Eye)
ग्रह
सूर्य- मानव शरीर में हड्डियों, दाहिना नेत्र, हृदय और उदर से संबंधित रोगों का कारक होता है।
चंद्रमा- वाम नेत्र, श्वेत रक्त कणिकायें (White Blood Cells), फेंफड़े, कैल्शियम तथा मानसिक रोगों का कारक होता है।
मंगल- गुर्दें, रक्तचाप ( Blood Pressure), ज्वर (Fever) आदि रोगों तथा वाहन, अग्नि, शस्त्र आदि से मृत्यु का कारक होता है।
बुध- त्वचा, गूंगापन, हकलाहट, दमा रोग, जीभ तथा वाणी, मस्तिष्क और बुद्धि से संबंधित रोगों का कारक होता है।
गुरु- यकृत (Liver), चर्बी, मोटापा, दाहिना कान आदि से संबंधित रोगों का कारक होता है।
शुक्र- यौन अंग (Sex-Organs), पथरी, गर्भाशय तथा मूत्र संबंधित रोगों का कारक होता है।
शनि- बायां कान, घुटने, पिंडली, स्नायु तंत्र, लकवा, पक्षघात, गैस संबंधित समस्या एवं कैंसर जैसे रोगों का कारक होता है।
राहु- भूत-प्रेत जनित समस्याओं, विषाक्त पदार्थों के सेवन से होने वाली मृत्यु, मानसिक उत्तेजना एवं अकस्मात होने वाली मृत्यु का कारक होता है।
केतु- कुष्ठ रोग, फोड़े फुंसी, चेचक, विस्फोटक पदार्थों से होने वाली मृत्यु एवं महामारी का कारक होता है।
नक्षत्र
१. कृतिका - सिर, २. रोहिणी- माथा, ३. मृगशिरा- भौहें, ४. आद्रा- नेत्र, ५. पुनर्वसु- नाक, ६. पुष्य- मुख व होंठ , ७. आश्लेषा- कान, ८. मघा- ठोढ़ी, ९. पूर्वाफाल्गुनी- दाहिना कान, १०. उत्तराफाल्गुनी- बायां कान, ११. हस्त- अंगुलियां, १२. चित्रा- गला, १३. स्वाति- छाती, १४. विशाखा- ह्रदय, १५. अनुराधा- यकृत, १६. ज्येष्ठा- आमाशय, १७. मूल- कांख, १८. पूर्वाषाढ़ा- पीठ, १९. उत्तराषाढ़ा- रीढ़ की हड्डी, २०. श्रवण- नितम्ब, २१. धनिष्ठा- गुदाद्वार, २२. शतभिषा- दायीं जांघ, २३. पूर्वाभाद्रपद- बायीं जांघ, २४. उत्तराभाद्रपद- पिंडलियाँ, २५. रेवती- टखने, २६. अश्वनी- पाँव का ऊपरी भाग, २७. भरणी- तलवे।
ऐसे में एक कुशल ज्योतिषी को चाहिये कि वह जातक की जन्म कुंडली में 12 भावों, 12 राशियों पर स्थित ग्रहों तथा उन पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रभावों तथा 27 नक्षत्रों पर स्थित ग्रहों का सूक्ष्म अध्ययन करके एवं रोगों के कारक ग्रहों की स्थिति को ध्यान में रखकर फलादेश करे व उपाय बताये।
अब बात करते हैं आयु वृद्धि के उपायों की-
ज्योतिष शास्त्र में लग्न-लग्नेश, तृतीय-तृतीयेश, अष्टम-अष्टमेश एवम शनि यह सातों आयु के कारक माने गये हैं।
इन सातों का विचार करते हुए तथा रोग एवं मारकेश की स्थिति आदि का विचार करके उचित रत्नों, दान तथा मंत्रो का प्रयोग करके जातक की आयु 120 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
"शिवार्पणमस्तु"
Astrologer Manu Bhargava
સહમત
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