कुल नाश योग-
पापकर्तरिके लग्ने चन्द्रे जाता च कन्यका।
समस्तं पितृवंशं च पतिवंशं निहन्ति सा।।
अर्थात- जिस कन्या के जन्म समय में लग्न तथा चन्द्रमा पापकर्तरी योग में हों तो वह स्त्री पितृ-कुल तथा पति-कुल दोनों का नाश करने वाली होती है।अधिक गुणयोग-
लग्ने चन्द्रज्ञशुक्रेषु बहुसौख्यगुणान्विता।
जीवे तत्रातिसम्पन्ना पुत्रवित्तसुखान्विता।।
अर्थात-लग्न में चंद्रमा, बुध, शुक्र हों तो ऐसी स्त्री अधिक गुण तथा सौख्य से युत रहती है एवं उसमें गुरु भी हो जाये तो अधिक पुत्र, धन और सुख से भी परिपूर्ण होती है।
विषकन्या योग-
१- स- सरपाग्निजलेशर्क्षे भानुमन्दारवासरे।
भद्रातिथौ जनुर्यस्या: सा विशाख्या कुमारिका।।
अर्थात-अश्लेषा-कृतिका-शतभिषा नक्षत्र , रवि-शनि-मंगलवार, भद्रा(२,७,१२) तिथि; इन तीनों के योग में जिस कन्या का जन्म होता है वह विषकन्या कही जाती है।
२- सपापश्च शुभो लग्ने द्वौ पापौ शत्रुभस्थितौ।
यस्या जनुषि सा कन्या विषाख्या परिकीर्तिता।।
अर्थात-जिसके जन्म समय में लग्न में एक पाप ग्रह तथा एक शुभ ग्रह हो और दो पाप ग्रह अपने शत्रुराशि में बैठे हों ऐसे योग में जन्मी कन्या विषकन्या कही जाती है।
सन्यास योग-
क्रूरे सप्तमगे कश्चित् खेचरो नवमे यदि।
सा प्रव्रज्यां तदाप्नोति पापखेचरसम्भवाम्।।
अर्थात-सप्तम में क्रूर ग्रह हो और नवम में कोई भी ग्रह हो तो पाप ग्रह से संबंधित होने के कारण वह स्त्री प्रव्रज्या धारण कर लेती है, अर्थात सन्यासिनी हो जाती है।
पति के समक्ष मृत्युयोग-
विलग्नादष्टमे सौम्ये पापदृग्योगवर्जिते।
मृत्यु: प्रागेव विज्ञेयस्तस्या मृत्युर्न संशयः।।
अर्थात-जिस स्त्री के लग्न से अष्टम में शुभ ग्रह हो उस पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो, और योग भी न हो तो उस स्त्री का पति के समक्ष ही मरण होता है।
पति के साथ मरण योग-
अष्टमे शुभपापौ चेत् स्यातां तुल्यबलौ यदा।
सह भर्ता तदा मृत्युं प्राप्त्वा स्वर्याति निश्चियात्।।
अर्थात-यदि अष्टम भाव में तुल्यसंज्ञक पाप और शुभ ग्रह हों , पाप और शुभ ग्रह के बल भी तुल्य हों तो वह स्त्री पति के साथ ही मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्ग को प्राप्त होती है।
''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava
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