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शुक्रवार, 23 मई 2025

उदर (Stomach) रोग वाली जन्मकुंडली का विश्लेषण व उपाय


 यह लगभग साढ़े चार वर्ष की एक छोटी बच्ची की जन्मकुंडली है । जिसका जन्म १० अक्टूबर २०२० को प्रातः ११ बजकर ३० मिनट पर गाजियाबाद जिले में हुआ है ।

अपनी बाल्यावस्था से ही इस बच्ची को पेट में कुछ न कुछ समस्याएं लगी रहती थीं और अभी गोचर में कुछ समय पूर्व बने पिशाच योग (राहु-शनि युति) में इस बच्ची को Appendicitis डिटेक्ट होकर Rupture हो गया (अपेंडिक्स फट जाना) । इसके पश्चात् इस बच्ची के परिवारजन इसे एक अच्छे हॉस्पिटल में लेकर गए जहां इसका फूड पाइप ब्लॉक हो गया और पेट भी फूल गया, तब यह जन्मकुण्डली मेरे पास आई । ईश्वर की कृपा से आज यह बच्ची सुरक्षित है ।

ऐसे क्या ज्योतिषीय कारण रहे होंगे जो इस छोटी बच्ची के साथ ऐसी घटना घटित हुई और ऐसी जन्मकुंडलियों में कौन से ज्योतिषीय उपचार करवाए जा सकते हैं ? आइए जानते हैं—

इस बच्ची की जन्मकुंडली का पंचम भाव (पेट का स्थान) षष्ठेश (रोगेश) मंगल के पाप प्रभाव में है जो कि वक्री भी है अर्थात् छठे भाव के अपने क्रूर फलों में भी लगभग तीन गुना वृद्धि कर चुका है ।

इसके अतिरिक्त यही मंगल, केतु अधिष्ठित राशि का स्वामी भी है अर्थात् इस मंगल की क्रूरता के पीछे स्वयं मंगल की छाया लिए हुए केतु की नकारात्मक ऊर्जा भी कार्य कर रही है ।  (१- फलित ज्योतिष में एक बहुत बड़ा सिद्धांत यह है कि किसी भी ग्रह की राशि पर यदि कोई दूसरा ग्रह भी स्थित हो तो वह पहला वाला ग्रह अपने शुभाशुभ फलों के साथ-साथ उस दूसरे ग्रह के भी फलों को भी देने लगता है, जो ग्रह उसकी राशि पर बैठा होता है )
२- राहु-केतु जिस भी ग्रह के साथ, जिस भी ग्रह की राशि में बैठते हैं, उसकी छाया ग्रहण कर लेते हैं और क्रमशः शनि-मंगल जैसे अपने पृथकतावादी प्रभावों के अतिरिक्त उस ग्रह के प्रभावों को भी देने लगते हैं ।) 

केवल इतना ही नहीं, मंगल की छाया लिए हुए यही केतु अपनी पंचम पाप दृष्टि से पंचम भाव को भी देख रहा है और इस पंचम भाव पर वर्गोत्तम शनि की तृतीय पाप दृष्टि भी है तथा पंचमेश बृहस्पति, शनि-केतु के पाप कर्तरी योग में घिरा हुआ है और पेट का कारक सूर्य, राहु की पंचम दृष्टि तथा रोगेश मंगल की सप्तम दृष्टि से ग्रसित है ।

यद्यपि यहां मंगल इस बच्ची का लग्नेश भी है तथापि उसकी मूल त्रिकोण राशि 'मेष' छठे भाव में स्थित होने से वह अपनी मूल त्रिकोण राशि का ही फल अधिक दे रहा है । अतः इस बच्ची का पंचम भाव (पेट का भाव), पंचमेश बृहस्पति (भावाधिपति) तथा पेट का कारक सूर्य—यह तीनों ही पीड़ित हैं ।

यदि भावात् भावम् सिद्धांत के अनुसार भी देखें तो पंचम से पंचम अर्थात् नवम भाव का अधिपति चंद्रमा भी अपने से द्वादश अर्थात् अष्टम् भाव (अशुभ स्थान) में स्थित है । जो कि रोगेश मंगल की चतुर्थ दृष्टि से तथा मंगल अधिष्ठित राशि के स्वामी बृहस्पति से दृष्ट है ।

एक तो इतने सारे कारण ही पर्याप्त थे इस बच्ची को बाल्यावस्था से ही पेट की इतनी गंभीर समस्या देने के लिए,  ऊपर से अभी गोचर में मीन राशि में लगभग ५० दिन के लिए बना पिशाच योग (शनि-राहु युति) जो कि १८ मई तक चला, वह भी इस बच्ची के पेट के स्थान पंचम भाव पर ही बन गया । इस बच्ची के लग्न पर गोचर लगाने पर मीन राशि इसके पंचम भाव में स्थित है, जहां १८ मई तक राहु-शनि ने संचार किया है तथा गोचर में भी भावात् भावम् सिद्धांत लगाने पर पंचम से पंचम अर्थात् नवम भाव पर षष्ठेश ( रोगेश) होकर नीच का मंगल संचार कर रहा है ।

इस सम्बन्ध में जानने के लिए मेरा पूर्व का ब्लॉग देखें—

यदि बात करें इस कुंडली में चल रही दशा-अंतर्दशा की तो वर्तमान समय में इसकी बृहस्पति की महादशा (पाप कर्तरी योग से पीड़ित पंचमेश की दशा) में चंद्रमा (अष्टम में गए हुए नवमेश) की अंतर्दशा में पेट के कारक सूर्य पर दृष्टि डालने वाले राहु (अकस्मात चिकित्सालय लेकर जाने वाला कारक ग्रह) की प्रत्यंतर दशा चल रही है ।


ऐसे में अत्यन्त अशुभ गोचर तथा अशुभ दशाओं के इस मेल ने इस बच्ची को गंभीर स्थिति में हॉस्पिटल तक पहुंचा दिया । मेरे पास जब यह जन्मकुंडली आई थी, तब तक इस बच्ची के जीवन को बचाने वाले चिकित्सकों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए थे किन्तु ईश्वर द्वारा हमें दिए गए ज्योतिष के वरदान और उनके आशीर्वाद से यह बच्ची अभी जीवित है ।

आइए बात करते हैं अब उन ज्योतिषीय उपायों की जिससे इस बच्ची के प्राणों की रक्षा हुई

सर्वप्रथम मंगल ग्रह के क्रूर प्रभावों को नष्ट करने के लिए तत्काल ही इस बच्ची के लिए ११ वेदपाठी ब्राह्मणों से ११ सुंदरकांड पाठ करवाए गए । इसके साथ ही दूसरे वेदपाठी ब्राह्मणों की टीम से इस बच्ची के मंगल, राहु, केतु जैसे पृथकतावादी ग्रहों की विधिवत् शांतियां करवाईं गईं और पंचम भाव (पेट के स्थान) के स्वामी ग्रह बृहस्पति का रत्न 'पुखराज' (बृहस्पति लग्नेश के मित्र होने तथा स्वराशि में स्थित होने से यहां द्वितीयेश होने पर भी मारक नहीं बनेंगे) तथा पेट के कारक ग्रह सूर्य का रत्न 'माणिक' इस बच्ची के गले में पेंडेंट में (रत्न उनकी उंगलियों में ही अपने पूर्ण फलों को देते हैं) धारण करवाया गया, जिससे भाव अधिपति बृहस्पति तथा कारक सूर्य दोनों ही को शक्ति प्राप्त हो सके ।

मेरे द्वारा ब्लॉग लिखे जाने तक यह बच्ची लगभग ८० प्रतिशत तक स्वस्थ हो चुकी है, इसके पूर्णतः स्वस्थ होने पर इसके लिए एक बार पुनः इन्हीं अशुभ ग्रहों की शांतियों के साथ एक महामृत्युंजय अनुष्ठान भी करवाया जाएगा, जिससे इस बच्ची को आगे इस प्रकार की कोई भी समस्या न आने पाए और यह निरोगी रहकर दीर्घायु प्राप्त कर सके क्योंकि आज जो समस्या इसके पेट में आई है, ठीक वैसी ही समस्या इसके हृदय (हार्ट) में भी आएगी, जिसका कारण यह है कि पंचम भाव केवल पेट का ही नहीं हार्ट का स्थान भी होता है तथा सूर्य केवल पेट का ही नहीं, हार्ट का भी निर्माण करता है ।
इस विषय को और अधिक सरलता से समझने के लिए चिकित्सा ज्योतिष पर आधारित मेरा यह ब्लॉग पढ़ें—

आगे चलकर इस बच्ची को हार्ट की भी समस्या आएगी, यह बात मैंने इसके परिवार में से अभी तक किसी को भी नहीं बताई है क्योंकि वह सभी पहले से ही इतना कष्ट प्राप्त करके चुके हैं, ऐसे में मैं उनको और अधिक व्यथित नहीं करना चाहता ।

आप सभी को यह जानकर बहुत प्रसन्नता होगी कि जो ज्योतिषीय उपाय इस बच्ची के पेट के लिए करवाए गए हैं, वही इसको जीवन में या तो कभी हार्ट की गंभीर समस्या उत्पन्न ही नहीं होने देंगे अथवा उस समस्या को बहुत कम कर देंगे क्योंकि जिन ग्रहों की शांतियां करवाई गई हैं, अब वह केवल पेट ही नहीं, हार्ट को भी हानि नहीं पहुंचा सकेंगे तथा जिन ग्रहों के रत्न धारण करवाए गए हैं वह इस बच्ची के पेट के साथ-साथ इसके हार्ट को भी बल प्रदान करेंगे और इस प्रकार यह छोटी बच्ची तथा इसका परिवार कभी यह जान नहीं सकेगा कि और बड़े दुःख उनके जीवन में आ सकते थे जो कि नहीं आए ।


नोट— १—इस बच्ची को आजीवन नीले, लाल तथा गहरे स्लेटी रंगों को स्वयं से दूर रखना होगा तथा गहरे पीले रंगों का प्रयोग जीवन में बढ़ाना होगा ।

२— आयु में कुछ बड़ी होने पर इस बच्ची को यही दोनों रत्नों को पेंडेंट से निकलवाकर अपने बाये हाथ की उंगलियों में धारण करने होंगे । पुखराज (तर्जनी), माणिक (अनामिका), (स्त्रियों को बाएं हाथ तथा पुरुषों को दाहिने हाथ में रत्न धारण करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं ।)

३—जीवन भर राहु, केतु तथा मंगल के दान करते रहने होंगे जिससे उनके पाप प्रभावों में और भी अधिक कमी आ सके तथा पीले रंग की वस्तुओं का कभी भी दान नहीं करना होगा अन्यथा बृहस्पति के बल में भी कमी आ जाएगी जबकि इसे अपने बृहस्पति को सदा बलवान रखना है । (पंचमेश होने के कारण)

४—भगवान् विष्णु इसके इष्टदेव हैं, कुछ बड़ी होने पर किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से इस बच्ची को इसके अधिकार की सीमा में आने वाले भगवान् नारायण (श्री हरि विष्णु, श्री राम, श्री कृष्ण) के मंत्र की दीक्षा लेकर उनके मंत्रों के जप करने चाहिए, जिससे इसके इष्टदेव की कृपा भी इस पर बनी रहेगी ।


इस ब्लॉग को लिखने के पीछे का मेरा उद्देश्य १ प्रतिशत भी प्रशंसा प्राप्त करना नहीं है । लोकेष्णा (अपने ही जैसे नाशवान प्राणियों से सम्मान प्राप्त करने की तृष्णा) से मैं जितनी घृणा करता हूँ शायद ही कोई दूसरा करता होगा ।
इस विषय पर पढ़ें मेरा ब्लॉग—

मेरा तो इस ब्लॉग को लिखने का उद्देश्य केवल यही है कि ईश्वर की कृपा से जो विद्या मुझे प्राप्त हुई है, वह मेरी मृत्यु के उपरांत कहीं मेरे साथ ही नष्ट न हो जाए तथा हो सकता है कि मेरे न रहने के पश्चात् भी मेरा यह ब्लॉग ऐसे ही कितने जातकों का जीवन बचाने में सहायक सिद्ध हो जाए । यदि ऐसा होता है तो ईश्वर अपने जिन कार्यों को करवाने के लिए हमें ज्योतिष विद्या का यह ज्ञान देकर इस संसार में भेजते हैं, उनके उन कार्यों को करके मैं परम् शांति के साथ उनके श्री चरणों में विलीन हो सकूंगा ।

"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 6 मार्च 2025

पिशाच योग (शनि-राहु युति २०२५)


शीघ्र ही गोचर में एक बहुत बड़ा दुर्योग बनने जा रहा है जिसके विषय में मैं बहुत समय पूर्व से संकेत करता आ रहा हूँ , ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका नाम है—'पिशाच योग'।

२९ मार्च को शनि द्वारा राशि परिवर्तन कर लेने के साथ ही गोचर के अन्तर्गत 'मीन राशि' में शनि-राहु की युति बन जायेगी जो कि १७ मई तक रहेगी, १८ मई को राहु-केतु द्वारा राशि परिवर्तन करने के उपरान्त ही शनि-राहु की यह युति भंग हो सकेगी । ब्रह्माण्ड में होने जा रही अत्यन्त दुर्लभ यह घटना पिशाच योग को जन्म देगी ।

शनि-राहु जैसे दो पापी ग्रहों की युति किसी भी अवस्था में शुभ नहीं कही जा सकती । अपने जीवनकाल में अब तक मैंने जितनी भी जन्म-कुंडलियों में शनि-राहु की युति पाई है, उनमें उस जातक के लिए मैंने विशेष विध्वंसात्मक तत्वों की अधिकता ही देखी है, जिनका उल्लेख करके मैं इस ब्लॉग को पढ़ने वाले जनमानस के हृदयों में भय उत्पन्न नहीं करना चाहता ।

यद्यपि गोचर में दो अत्यन्त पृथकतावादी पाप ग्रहों की होने जा रही यह युति अनेक दुर्योगों को जन्म देने वाली सिद्ध होगी तथापि राहु द्वारा १६ मार्च को शनि के नक्षत्र (उत्तराभाद्रपद) से निकलकर, बृहस्पति के नक्षत्र (पूर्वाभाद्रपद) में संचार करने के कारण राहु के स्वभाव में ज्ञान तथा अध्यात्मिक भावना आ जाएगी, जिसके कारण वह धार्मिक जातकों की उतनी हानि नहीं कर सकेंगे जितनी कि शनि के साथ होने वाली इस युति के कारण कर सकते थे ।

यह सत्य है कि गोचर में शनि-राहु की युति होना कभी भी एक उत्तम योग नहीं होता किन्तु इस योग के बनने के समय राहु द्वारा बृहस्पति के नक्षत्र में संचार करने से यह समय तंत्र साधना के लिए अत्यन्त शुभ हो जाएगा ।

राहु गूढ़ रहस्यों-रहस्यमयी विद्याओं, शनि वैराग्य तथा बृहस्पति ज्ञान व अध्यात्म के कारक ग्रह होते हैं । ऐसे में राहु द्वारा बृहस्पति की राशि तथा बृहस्पति के ही नक्षत्र में शनि के साथ युति को प्राप्त हो जाने के कारण साधकों को ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की सहायता से रहस्यमयी सिद्धियां प्राप्त करने के लिए नई ऊर्जा प्राप्त होगी, जिसके कारण तन्त्र साधनाओं के लिए यह समयकाल अत्यन्त विलक्षण हो जाएगा । इस समय साधकों की सुषुम्ना नाड़ी भी अधिक समय तक जाग्रत रहेगी, जिसके कारण उन्हें सिद्धियां प्राप्त करने में अधिक समय नहीं लगेगा ।

यदि इस युति के परिणाम से उत्पन्न दुर्योगों की बात करें तो—सभी जातकों की जन्मकुंडली में शनि जिन-जिन भावों के स्वामी और कारक होंगे, उनसे सम्बन्धित पदार्थों को राहु हानि पहुंचाएंगे तथा शनि की छाया लिए हुए राहु जहां-जहां दृष्टि डालेंगे, वहां-वहां वह दृष्टियां भी विशेष अनिष्टकारी हो जायेंगी (शनि की छाया ग्रहण कर लेने के प्रभाव से) ।

अतः बुद्धिमान मनुष्यों को इस अवधिकाल में राहु के निमित्त जो दान शास्त्रों में बताए गए हैं, शनिवार के दिन (शनि की होरा में ) उन दानों को करना चाहिए तथा नील वर्ण के वस्त्रों को धारण करने से, तम्बाकू से बने उत्पादों का सेवन करने से व अधिक पुरानी काष्ठ को अपने समीप रखने से बचना चाहिए ।

राहु, भगवती दुर्गा के परम् भक्त होते हैं इसलिए स्मार्त्त अथवा शाक्त परम्परा से दीक्षित योग्य ब्राह्मण गुरु द्वारा प्राप्त भगवती के मंत्र' का जप करने से राहु अपने नकारात्मक प्रभाव को समाप्त कर देते हैं ।

इसके अतिरिक्त जो जातक अदीक्षित हैं वह बिना प्रणव (ॐ) का उच्चारण किए देवी के विभिन्न स्त्रोतों का पाठ कर सकते हैं ।

जो जातक किसी कारणवश यह भी नहीं कर सकते वह किसी 'जाग्रत देवालय' में जाकर भगवती को नारियल व श्रृंगार की वस्तुएं भेंट करके उनसे अपने कल्याण की प्रार्थना कर सकते हैं ।

गोचर में लगभग ५० दिन के लिए बनने जा रहे शनि-राहु योग के इस अवधिकाल में भगवती की योगिनी शक्ति, शनि-राहु की सहायता से विश्व भर में भूकंप, सुनामी, चक्रवात लाकर अनेक प्राणियों को विदीर्ण करेगी । अतः लगभग ५० दिनों का यह समयकाल मौसम वैज्ञानिकों के लिए बहुत चुनौतियों से भरा हुआ रहने वाला है । इसके अतिरिक्त मार्च के महीने में पड़ने वाले चंद्रग्रहण व सूर्यग्रहण, भचक्र में एक नवीन प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का निर्माण कर देंगे, जिसके कारण यह ५० दिन विश्व भर में प्राकृतिक आपदाओं तथा दुर्घटनाओं के लिए और भी अधिक घातक हो जाएंगे ।

इधर नीच राशि में स्थित मंगल भी दुर्घटनाओं तथा अग्निकांडों की ओर संकेत कर रहा है ।  १४ मार्च को पड़ने जा रहे चंद्रग्रहण के एक दिन पूर्व से ही विश्वभर के भूगर्भ वैज्ञानिकों के लिए चुनौतियां आरम्भ हो जायेंगी, जिनका निर्वाहन करने का समय भी उनको प्राप्त न हो सकेगा । विद्वान मनुष्यों को बड़े भूकंपों से सावधान रहने की आवश्यकता है ।

यदि और अधिक सरल शब्दों में कहूं तो शनि-राहु की युति के इस अवधिकाल को ईश्वर की शरण में रहकर शान्ति के साथ निकालने की आवश्यकता है क्योंकि मीन राशि में होने जा रही इस युति के कारण अब तक वहां संचार कर रहे उच्च के शुक्र भी अपनी शुभता को खो देंगे तथा वह विभिन्न जातकों के जिस-जिस भाव के स्वामी व कारक होंगे वहां से सम्बन्धित पदार्थों की हानि करने लगेंगे ।

नोट— 

[ ] शनि के राशि परिवर्तन कर लेने के साथ ही कुछ जातकों की ढैया-साढ़े साती समाप्त, तो कुछ की आरम्भ होगी किन्तु यह इस ब्लॉग का विषय न होने से इस विषय में यहां जानकारी नहीं दे रहा हूँ । यदि संभव हुआ तो उसके लिए अलग से एक ब्लॉग लिख दूंगा । 


[ ] ज्योतिष शास्त्र में श्रद्धा रखने वाले विद्वान मनुष्यों को २९ मार्च से लेकर १८ मई तक अपने बच्चों की डिलीवरी करवाने से बचना चाहिए । यदि संभव हो सके तो २९ मार्च से पूर्व (शनि-राहु युति बनने से पूर्व) अथवा ६ जून के पश्चात् (मंगल के नीच राशि में संचार करने के कारण) ही बच्चों की डिलीवरी हो अन्यथा उनकी जन्म-कुंडली में जीवनभर के लिए शनि-राहु की युति तथा नीच राशि के मंगल की स्थिति बन जाएगी, जो कि बहुत कष्टकारी सिद्ध होगी । 

"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

राहु केतु के शुभाशुभ फल

राहु-केतु पृथकतावादी ग्रह होते हुए भी किस अवस्था में अपना शुभ फल प्रदान करते हैं तथा जन्म कुंडली में इनकी शुभ स्थिति प्राप्त होने पर भी हमें इनके रत्न क्यों धारण नहीं करने चाहिए ? आइए जानते हैं । 


इस जातक का जन्म—१५ सितम्बर सन् १९८२ को रात्रि ८ बजकर १० मिनट पर मथुरा जिले में हुआ है । इनकी जन्म कुंडली के तृतीय भाव में राहु अपनी उच्च राशि 'मिथुन' में 'आद्रा' नक्षत्र के तृतीय चरण में स्थित हैं जो कि राहु का अपना ही नक्षत्र होता है । अंशावस्था से भी यह राहु-केतु अपनी युवावस्था (१२ से लेकर १८ डिग्री के मध्य) में हैं अर्थात् यह अपना पूर्ण शुभ फल देने में सक्षम हैं । 


भावात्-भावम् सिद्धांत के अनुसार द्वितीय से द्वितीय भाव में उच्च अवस्था में स्थित राहु ने इनको सम्पन्न घराने में जन्म दिया तथा भाग्य स्थान पर स्थित उच्च के केतु ने इनका भाग्योदय भी अति शीघ्र ही करवा दिया । जैसे ही इस जातक का विवाह हुआ बृहस्पति ने भाग्येश होकर सप्तम भाव में स्थित होने का फल प्रदान करना आरंभ कर दिया और ऐसे बृहस्पति की सहायता की, उसकी राशि पर स्थित केतु ने क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि कोई भी ग्रह जन्मकुंडली के किसी भी भाव में विराजमान हो, वह जिस भाव का स्वामी होगा वहां का फल तो प्रदान करेगा ही इसके साथ ही उसकी राशि पर जो ग्रह विराजमान होता है, पीछे से वह ग्रह भी अपना फल प्रदान करता है । 


इधर उच्च के राहु ने इन्हें घोर पराक्रम तथा अपने स्वभाव के समान व्यसनी किन्तु सहयोगी मित्र प्रदान किए, जिनके सहयोग से इन्होंने विदेश से व्यापार में नवीन ऊंचाइयां प्राप्त कीं । यद्यपि विदेश स्थान पर बैठे राहु ने इनको विदेशी यात्राओं से लाभ प्रदान किया तथापि इसी राहु ने अपने मूल आसुरी स्वभाव के कारण इनको अत्यधिक व्यसनी भी बना दिया । 


तृतीय भाव के इस राहु का सूक्ष्म अध्ययन करने के पश्चात् मैं यह जान गया कि इन्होंने अपने व्यसनी मित्रों के साथ बैठकर अनेक ऐसे कार्य किए जिनका उल्लेख करने पर इनके वैवाहिक जीवन पर संकट खड़ा हो सकता था । शुक्र का सप्तमेश होकर प्रेम संबंधों के भाव में जाना भी इसी ओर संकेत कर रहा है । ये व्यक्ति जब-जब बैंकॉक आदि की विदेश यात्रा पर गए, वहाँ इन्होंने राहु के आसुरी स्वभाव को अपने कार्यों में पूर्णतः प्रदर्शित किया । 


तृतीय भाव में उच्च के राहु की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर यदि ऐसा जातक राहु का रत्न गोमेद धारण करता है तो यह रत्न तृतीय भाव के फलों में कई गुना वृद्धि कर देता है । गोमेद धारण करने के उपरान्त ऐसा जातक अपने पराक्रम से सभी वस्तुओं को प्राप्त कर लेगा, उसके छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य, आयु, मान सम्मान में वृद्धि होगी, मित्रों से और अधिक सहयोग प्राप्त होगा तथा विदेश यात्राओं से कई गुना लाभ प्राप्त होगा ।  इतने सब के उपरान्त भी मैंने इन्हें गोमेद रत्न धारण नहीं करवाया, जिसका कारण यह है कि गले की राशि और गले के भाव पर बैठा हुआ राहु और उस पर मंगल की अष्टम दृष्टि तथा गले के कारक व स्वामी 'बुध' के छ्ठे भाव में स्थित 'शनि' की युति के पाप प्रभाव में होने से एक तो पहले से ही इनको गले के कैंसर होने अथवा किसी भी कारण से गले के कट जाने का योग बन रहे हैं । उस पर दुर्भाग्य से यह जातक तम्बाकू उत्पादों का भी अधिक मात्रा में सेवन करते हैं । ऐसे में गोमेद अथवा मूंगा रत्न यदि ये धारण करते हैं तो राहु-मंगल अत्यन्त तीव्र गति से इनके गले को काटने का प्रयास करेंगे । 


इसी प्रकार से पीठ व कमर की राशि और भाव में बैठे केतु इनको पीठ व कमर की गंभीर समस्या देंगे और यदि केतु का रत्न लहसुनिया भी इनको धारण करवा दिया जाए तो वह रत्न भाग्य में तो कई गुना वृद्धि करेगा किन्तु उतनी ही तीव्रता और उग्रता से इनको पीठ और कमर के रोग भी देगा । 

मेष लग्न की कुंडलियों में यह समस्या इसलिए भी अधिक हो जाती है क्योंकि इस लग्न में राशि और भाव एक ही होने से जीवन में जितनी तीव्रता से ऊंचाइयां प्राप्त होती हैं, हानि और रोग भी उतनी ही तीव्रता से घटित होते हैं । जैसे कि अष्टम भाव में स्वराशि में स्थित मंगल पर शनि की तृतीय दृष्टि ने इनको बवासीर (Piles) का रोगी भी बना दिया क्योंकि यहां भाव और भाव का स्वामी दोनों एक साथ शनि की तृतीय दृष्टि से पीड़ित हुए । 


यहां इस कुंडली को आपके समक्ष रखने का केवल एक मात्र कारण यही समझाना था कि कोई पृथकतावादी ग्रह यदि अपनी उच्च , मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में अपने कारक स्थान में भी क्यों न हो, वह जिस राशि, नक्षत्र और भाव में होगा उन राशि, नक्षत्र और भाव से बनने वाले शारीरिक अंगों में कष्ट अवश्य देगा । इसलिए राहु, केतु, शनि, मंगल और सूर्य जैसे पृथकतावादी ग्रहों के रत्नों का चुनाव करने के लिए चिकित्सा ज्योतिष ( Medical Astrology) को समझने की बहुत आवश्यकता होती है अन्यथा हो सकता है कि जहां एक स्थान पर जातक को धन, सम्पत्ति, मान-सम्मान, पद प्रतिष्ठा, चुनावों में विजय आदि तो प्राप्त हो रही हो, वहीं दूसरे स्थान पर उसके शरीर में कोई असाध्य रोग भी प्रकट हो रहा हो । 


चिकित्सा ज्योतिष के विषय में अधिक जानकारी के लिए मेरा यह ब्लॉग पढ़े—

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html


उपचार—ऐसी कुंडली में एक पन्ना रत्न धारण करवाने से गले के रोगों से बचाव होगा क्योंकि गले के स्थान के स्वामी और कारक बुध को शक्ति प्राप्त होगी तथा इस जातक द्वारा पुखराज रत्न धारण करने से नवम भाव को ऊर्जा प्राप्त होगी, जिसके कारण पीठ व कमर के रोगों से बचाव होगा ।

यदि यहां कोई कहता है कि बृहस्पति तो १२वें भाव का स्वामी भी है ऐसे में क्या वह इनकी पत्नी को कष्ट नहीं देगा तो उनके ज्ञान वृद्धि के लिए महर्षि पराशर जी का एक सूत्र बताता हूँ जिसमें वह बताते हैं कि कोई भी ग्रह जिसकी दो राशियां हैं और उसकी मूल त्रिकोण राशि को छोड़कर कोई अन्य राशि १२वें भाव में स्थित है, ऐसे में वह ग्रह अपने १२वें भाव की राशि का फल न देकर अपनी मूल त्रिकोण राशि का फल प्रदान करता है जो कि इस लग्न में ९ वें भाव में स्थित है । अतः ऐसा बृहस्पति, पुखराज रत्न का उपयोग करने से शक्ति प्राप्त करके  नवम भाव से संबंधित फलों में वृद्धि तो करेगा ही, साथ ही इसके प्रभाव से केतु के शुभ फलों में भी वृद्धि होगी क्योंकि राहु और केतु क्रमशः अपने शनि व मंगल जैसे पृथकतावादी प्रभावों के अतिरिक्त जिन ग्रहों की राशि और जिन ग्रहों के साथ बैठते हैं उनकी  छाया लेकर उन ग्रहों जैसे प्रभाव भी देने लगते हैं । 

वर्तमान में इनकी मंगल की महादशा चल रही जो कि सितम्बर २०३० तक चलेगी तत्पश्चात् इनकी राहु की महादशा आरंभ होगी जिसमें उपरोक्त शुभाशुभ फल पूर्णतः से प्रकट होंगे, ऐसे में इनको अभी से ही तम्बाकू उत्पादों का परित्याग कर देना चाहिए तथा नीले, काले व रक्त वर्ण के वस्त्रों को धारण करने से बचना चाहिए । इसके अतिरिक्त अपने अधिकार की सीमा में विधिवत् देवी दुर्गा व हनुमान जी की आराधना उनके उच्च कोटि के मंत्रों द्वारा करनी चाहिए, जिससे राहु की आने वाली महादशा इनकी कुंडली के तृतीय भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित होने के शुभ फलों को प्रदान करे और यह निरोगी होकर दीर्घ जीवन जी सकें । 


ज्योतिष के इन उपायों द्वारा यदि इन्होंने राहु की आने वाली १८ वर्ष की महादशा बिना कोई बड़ा कष्ट प्राप्त किए काट ली, तो राहु की यह महादशा तो इनको नवीन ऊंचाइयों पर लेकर जायेगी ही, इसके पश्चात् आने वाली देव गुरु बृहस्पति की महादशा भी इनके जीवन के अंत काल में इनको देश के भीतर तीर्थ यात्राओं (बृहस्पति के नवम भावाधिपति होने के कारण) में महान पुण्य अर्जित करवाने वाली सिद्ध होगी और इन्होंने अपने जीवन काल में अब तक जितने भी अशुभ कार्य किए हैं, उस बृहस्पति की वह महादशा प्राप्त होने पर यह अपने शुभ कर्मों के प्रभाव से उन सभी पाप कर्मों को जला कर भस्मसात कर देंगे । 


"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

सूर्य के 'उच्च राशि' में प्रवेश के पश्चात भी संकट का कारण बनेगी सूर्य-राहु युति...


अपने पिछले ब्लॉग 'राहु केतु का राशि-परिवर्तन २०२२' में मैंने आप सभी को राहु के 'मेष' राशि और सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका' में प्रवेश के विषय में बताया था और उस ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए मैंने लिखा था कि समय-समय पर राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के ऊपर अलग से ब्लॉग बनाकर आपको जानकारी देने का प्रयास करूँगा ।
इस विषय पर मेरा पुराना ब्लॉग देखें -

उसी कड़ी में आज मैं आपको जानकारी देने जा रहा हूँ मेष राशि में स्थित 'राहु' के साथ होने वाली 'सूर्य' की युति की ।

'सूर्य' १४ अप्रैल २०२२ को प्रातः ८ बजकर ३३ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर मेष राशि के 'अश्वनी' नक्षत्र में प्रवेश करेंगे जहाँ वह १५ मई २०२२, प्रातः ५ बजकर २२ मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात 'वृष' राशि में प्रवेश कर जायेंगे।

सूर्य 'मेष' राशि में उच्च के हो जाते हैं तथा उसमें भी मेष राशि के १० अंश पर परम उच्च का फल देते हैं। जिस समय 'सूर्य' मेष राशि में प्रवेश करेंगे वहां उनका सामना १२ अप्रैल से संचार करते हुए 'राहु' के साथ होगा और गोचर में सूर्य-राहु की युति बन जाएगी तथा सूर्य- राहु की चपेट में आकर अपने शुभ फलों को देने में असमर्थ हो जायेंगे। 

जैसा कि मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में बता चुका हूँ कि राहु जिस भी ग्रह की राशि में स्थित होता है तथा जिस भी ग्रह से युति करता है अपने 'शनि' जैसे मारक प्रभावों के अतिरिक्त उस-उस ग्रह की छाया लेकर उनके भी प्रभाव ग्रहण कर लेता है। ऐसे में राहु- मंगल की राशि में स्थित होने तथा सूर्य की युति में आ जाने से मंगल तथा सूर्य के मारक प्रभाव भी ले लेगा और अपने अशुभ प्रभावों में कई गुना वृद्धि कर लेगा।

ऐसा राहु- सूर्य के उच्च राशि में स्थित होने पर भी उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके उच्च के सूर्य के शुभ फलों को नष्ट कर देगा तथा सूर्य से बनने वाले अवयवों (ह्रदय, पेट, दाहिना नेत्र तथा हड्डियां) को पीड़ित करके सभी जातकों को हानि पहुँचाने की चेष्ठा करेगा। जिसके कारण इस एक माह में विश्व भर में ह्रदय, पेट, दाहिने नेत्र तथा हड्डियों से सम्बंधित रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। अतः यदि कोई जातक पहले से ही इन चारों रोगों में से किसी एक रोग से पीड़ित है तो वह इस एक माह में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेता रहे।

इस एक माह के अवधिकाल में सूर्य-राहु की युति के दुष्परिणाम अंतरिक्ष में भी देखने को मिलेंगे। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चाहें तो अनुसंधान कर सकते हैं इस एक माह में सूर्य से उठने वाले वाले सौर तूफानों (Solar tsunami) में अत्यधिक वृद्धि होगी, जिससे कई देशों के सैटेलाइट नष्ट हो जायेंगे तथा इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक चक्रवात और भूकम्प आएंगे ।

सूर्य-राहु युति के इस अवधिकाल में ३० अप्रैल को सूर्यग्रहण लगेगा जिसके दुष्परिणाम आगामी ६ माह तक देखने को मिलते रहेंगे । विशेष रूप से पहले तीन माह तक इस सूर्य ग्रहण का दुष्प्रभाव बहुत अधिक रहेगा। यह सूर्यग्रहण भारत में मध्यरात्रि १२ बजकर १५ मिनट से शुरू होगा और फिर ३० अप्रैल की सुबह ४ बजकर ७ मिनट पर समाप्त होगा। भारत में यह आंशिक सूर्यग्रहण होगा और दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे भारत में यह कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह सूर्यग्रहण दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और अंटार्कटिका में ही दिखाई देगा और यहां यह ३० अप्रैल दोपहर १२:१५ बजे शुरू होकर शाम ४:०७ बजे समाप्त होगा। जिसके परिणामस्वरूप इन स्थानों पर आगामी ३माह के भीतर बड़े भूकंप और चक्रवात आयेंगे।

सूर्य-राहु की यह युति बड़े राजनेताओं व उच्च अधिकारियों के लिए भी बहुत अमंगलकारी है। इधर पहले से ही 'राहु' बड़े राजनेताओं और उच्च अधिकारियों के कारक 'सूर्य' के नक्षत्र 'कृतिका' में स्थित होने से विश्व के बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों को हानि पहुंचा रहे हैं और विश्व में कई देशों की सरकारें अस्थिर किए हुए हैं, ऊपर से 'सूर्य' के साथ युति करके उनको और अधिक हानि पहुंचाने की चेष्ठा करेंगे। अतः इस एक माह के अवधिकाल में विश्व भर में बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है, जिसका कारण अधिकांशतः हृदय घात ही होगा। इसके अतिरिक्त कई देशों में बड़े राजनेताओं को राजनैतिक अस्थिरता एवं सहयोगी मित्रों से छल की स्थिति का सामना करना पड़ेगा ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए राहु के अशुभ फलों से बचाव के उपाय-
जिन जातकों को राहु अशुभ फल दे रहे हैं वह योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से राहु की वेदोक्त अथवा तंत्रोक्त विधि से विधिवत् शांति करवा लें और स्वयं उनके बीज मंत्र का जाप करें व शनिवार के दिन राहु के निमित्त दान करें । नीला रंग धारण न करें तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा करने और इस दिशा में निवास करने से बचें । राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के उच्च कोटि के मंत्रों का रुद्राक्ष की माला से विधिवत् जाप करें। पुरानी लकड़ी व धूल घर में एकत्र न होने दें और तम्बाकू का सेवन कदापि न करें ।

राहु के निमित्त दान- नीला वस्त्र, नारियल (जटाओं वाला), शीशा (कांच), कंबल, मूली, सुरमा, सप्त धान्य, गोमेद, खड्ग, नीले पुष्प आदि । इसके अतिरिक्त कौवे को मीठी रोटी खिलाने, चींटियों को भोजन देने तथा काली बिल्ली को दूध पिलाने (बिल्ली को घर में पालना नहीं है) से भी राहु देवता प्रसन्न होकर अपने दुष्प्रभावों को अल्प अथवा समाप्त कर देते हैं

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में सूर्य पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ स्थिति में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति उतनी अशुभकारी नहीं होगी किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में सूर्य अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पहले से ही राहु, शनि, केतु के पाप प्रभाव में हुए और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 21 मार्च 2022

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2022

गोचर में 12 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 17 मिनट पर (दिल्ली समयानुसार) अपनी वक्री गति से राहु व केतु क्रमशः 'वृष व वृश्चिक' राशि से निकलकर 'मेष व तुला' राशि में प्रवेश करेंगे, जहाँ वह 30 अक्टूबर 2023 दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात क्रमशः 'मीन व कन्या' राशि में चले जायेंगे। लगभग 18 महीने के इस अवधिकाल में राहु-केतु, सवा दो-सवा दो नक्षत्रों में संचार करेंगे जिसके कारण सभी जातकों को इनके भिन्न-भिन्न परिणाम देखने को प्राप्त होंगे। 

राशि परिवर्तन के आरम्भ में राहु- सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका', तत्पश्चात शुक्र के नक्षत्र 'भरणी' और केतु के नक्षत्र 'अश्वनी' में संचार करेगा और केतु- गुरु के नक्षत्र 'विशाखा', तत्पश्चात राहु के नक्षत्र 'स्वाति' और मंगल के नक्षत्र 'चित्रा' में प्रवेश करेगा । 

राहु-केतु खगोलीय दृष्टि से कोई ग्रह भले ही ना हों किन्तु ज्योतिष शास्त्र में इनका बहुत अधिक महत्व है। यह दोनों ग्रह एक दूसरे के विपरीत बिंदुओं पर समान गति से गोचर करते हैं। अपना कोई भौतिक आकार ना होने के कारण राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है। राक्षस जाति और स्वभाव से क्रूर होने के कारण शनि के साथ-साथ इन दोनों ग्रहों को भी पापी ग्रहों की संज्ञा दी गयी है। यह दोनों ग्रह जिस राशि तथा जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, उनकी भी छाया ग्रहण कर लेते हैं और अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। यदि यह बृहस्पति जैसे शुभ ग्रह के साथ आ जाएँ तो स्वयं तो अपने स्वभाव में शुभता ले आते हैं परन्तु बृहस्पति को दूषित करके गुरु-चांडाल दोष बना देते हैं और ऐसा बृहस्पति भी अपनी दशा-अन्तर्दशा में अशुभ फल देने लगता है। 

यदि यह शनि जैसे पापी अथवा सूर्य, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के साथ बैठ जाते हैं तो उनकी छाया लेकर अपने पापत्व और क्रूरता में कई गुना वृद्धि करके जातक का जीवन नष्ट कर देते हैं। ऐसे राहु-केतु जातक की जन्म-कुंडली में जिस भी भाव पर बैठ जाते हैं, वहां के सभी शुभ फलों को पूर्णतः नष्ट कर देते हैं और वह भाव तथा उसमें स्थित राशि जिन शाररिक अंगों को बनाती है उन अंगों में भयानक रोग प्रकट कर देते हैं। 

यह दोनों पापी ग्रह जिस नक्षत्र में होते हैं वह नक्षत्र शरीर के जिस अंग को बनाता है उस अंग में बार-बार कोई समस्या आती रहती है। यही कारण है कि बहुत सारे लोगों के बार-बार एक ही अंग में चोट लगना, पीड़ा होना अथवा ऑपरेशन होने जैसी समस्या अधिकांशतः हमें देखने को मिलती रहती हैं। 

मैंने अपने ज्योतिष के Professional Career में ऐसी अनेक जन्म-कुंडलियों का विश्लेषण करके यह अनुसन्धान किया है कि राहु-केतु की युति जिन भी ग्रहों के साथ हुई है, इन दोनों पापी ग्रहों ने उन ग्रहों से निर्माण होने वाले शारिरिक अंगों में रोग, चोट, ऑपरेशन आदि करवाये हुए हैं। यही कारण है कि अनेक बार राहु-केतु के उच्च राशि अथवा शुभ स्थिति में होते हुए भी मैं जातक को इनके रत्न धारण नहीं करवाता क्यूंकि ऐसी स्थिति में जहाँ इनके रत्न जीवन को नयी ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाले सिद्ध होते हैं वहीं दूसरी ओर वह शरीर के उन अंगों को पीड़ित भी कर देते हैं जिस अंग को बनाने वाले नक्षत्र-राशि-भाव में राहु-केतु स्थित होते हैं। 

उदाहरण स्वरुप- यदि राहु-केतु की युति सूर्य के साथ हो जाये तो जातक को सूर्य से उत्पन्न अवयवों (पेट, ह्रदय, दाहिना नेत्र, हड्डियां) में कोई ना कोई समस्या अवश्य रहेगी तथा सूर्य का पिता के कारक होने से पिता को भी गंभीर रोग रहेंगें और अनेक बार उनकी मृत्यु का कारक हार्ट अटैक बनेगा। इस विषय पर आप सभी मेरा चिकित्सा ज्योतिष (Medical Astrology) पर लिखा गया ब्लॉग देख सकते हैं। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

इन सब कारणों से राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है क्यूंकि इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे- 

राहु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव- 

मेष राशि - मेष लग्न

लग्न में शत्रु राशि के राहु के संचार करने के कारण सिर की चोट से बचाव करें। सिर पर राहु के विराजमान होने से मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन बना रहेगा अतः अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें अन्यथा राहु की सप्तम दृष्टि विवाह स्थान पर होने से आपके वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकती है। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः संतान व पिता स्थान पर होने के कारण आपकी संतान और पिता के स्वास्थ्य के लिए भी यह समय कष्टकारी सिद्ध होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां विशेष सावधानी रखें, यदि आप या आपके पिता पहले से ही ह्रदय से सम्बंधित रोगों से ग्रसित हों तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

वृष राशि - वृष लग्न

आपके बड़े भाई-बहन, छोटी बुआ, चाचा की धन हानि तथा उनके दाहिने नेत्र या दांतों में और आपके बाएं नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई कष्ट उत्पन्न हो सकता है। 12वें भाव में मंगल की राशि का राहु आपकी दादी की आयु और उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। माता को पीठ व कमर की चोट से बचाव करें। आपका खर्चा हॉस्पिटल या कोर्ट केस आदि में ना हो इसके लिए राहु के दान व विधिपूर्वक उनके मन्त्रों का जाप करें तथा इस अवधिकाल में नीला रंग धारण करने से बचें। यदि आपने किसी से कोई ऋण लिया हुआ है तो उसको उतार दें अन्यथा आपका धन चिकित्सालय अथवा कोर्ट केसों में निकल जायेगा। 

मिथुन राशि - मिथुन लग्न

बड़े भाई-बहन, चाचा व छोटी बुआ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और माता की आयु की सुरक्षा करें। राहु गोचर में आपके 11वें भाव में संचार करेंगे अतः पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। राहु की सप्तम दृष्टि आपकी संतान के लिए कष्टकारी है अतः इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं विशेष सावधानी रखें। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है। इन सब नकारात्मक बातों के पश्चात भी राहु जब भरणी नक्षत्र में संचार करेंगे तो उस अवधिकाल में लाभ स्थान में होने से आपके लाभ में कई गुना वृद्धि करवायेंगे। 

कर्क राशि - कर्क लग्न

दशम भाव में शत्रु राशि का राहु आपके राजनैतिक कैरियर, आपकी नौकरी तथा आपके पिता के धन के लिये हानिकारक है। सरकारी विवाद से बचें। पिता के दांतों तथा दाहिने नेत्र तथा आपके स्वयं के घुटनों में कोई समस्या आ सकती है। अपनी सास की आयु की सुरक्षा करें। राहु की पंचम शत्रु दृष्टि आपके धन-कुटुंब के लिए अच्छी नहीं है अतः अपने ऋणों से मुक्ति प्राप्त कर लें अन्यथा आपका धन कहीं और निकल जायेगा। यदि आप सरकारी नौकरी में हैं और आपकी जन्मकुंडली में भी आपका दशम भाव-दशमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हुआ तो इस समय आपकी नौकरी जा सकती है। 

सिंह राशि - सिंह लग्न

नवम भाव में राहु का संचार आपके पिता, छोटा साला-छोटी साली के स्वास्थ्य तथा आयु के लिए अच्छा नहीं है, इसकी आपके लग्न पर शत्रु तथा संतान भाव पर नीच दृष्टि आपके व आपकी संतान के लिए भी अनिष्टकारी है। स्वयं अपने सिर, पीठ व कमर की चोट से बचाव करें तथा संतान की सुरक्षा के लिए राहु के मन्त्रों के जाप और उनके दान करें तथा पिता की आयु की सुरक्षा के लिए राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के मन्त्रों के जाप करें। इस अवधिकाल में देश में होने वाली यात्राओं को यथासंभव टालने का प्रयास करें। 

कन्या राशि - कन्या लग्न

अष्टम भाव में शत्रु राशि का राहु आपको अत्यधिक मानसिक पीड़ा और डिप्रेशन देने जा रहा है, यह आपकी आयु का स्थान भी है अतः आत्महत्या जैसे महापाप को करने के विचार से भी बचें। इस समय आपके जीवन साथी के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आ सकती है तथा उनके धन-कुटुंब के लिए भी यह समय ठीक नहीं है। आपके पिता को बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि आपके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उनको उसमें पराजय का सामना करना पड़ेगा। इस अवधिकाल में आपकी माता को पेट में भी कोई समस्या आ सकती है। इस समय आपके छोटे-मामा मौसी विदेश यात्रा ना करें और आप गहरी नदियों व समुद्री स्थानों से दूर रहें। 

तुला राशि - तुला लग्न

राहु का आपके सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए अशुभकारी है। यदि आप व्यापार में किसी के साथ पार्टनरशिप में हैं तो विवाद की स्थिति से बचें। अपनी बड़ी बुआ तथा ताऊ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। सप्तम के राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः आपके एकादश और तृतीय भाव में पड़ने से आपके भाई बहनों के लिए यह समय अशुभकारी है। पैरों तथा हाथों की चोट से सावधान रहें और यदि आप स्त्री हैं तो नीच प्रकृति के पुरुषों से दूर रहें तथा एकांत स्थान पर अकेले जाने से बचें। इस राशि-लग्न वाले जातकों की जन्मकुंडली में 'शुक्र' यदि अपनी नीच या शत्रु राशि अथवा अस्त व पाप प्रभाव में हुए तो इनके यौन अंगों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

वृश्चिक राशि - वृश्चिक  लग्न

इस डेढ़ वर्ष के अवधिकाल में आपको दुर्घटना से बचाव करने की आवश्यकता है। यदि आप पहले से ही किडनी, आंतो, पेंक्रियाज अथवा लिवर की समस्या से पीड़ित हैं तो यह समय आपके लिए बहुत कष्टकारी है । आप यदि मधुमेह के रोगी हैं तो अपनी शुगर का ध्यान रखें। इस समय आपके शत्रु आपको चोट पहुँचाने का प्रयास करेंगे, सावधान रहें। आपके जीवन साथी को अपने बायें नेत्र, एड़ी-पंजो तथा आपको अपने घुटनों की चोट से भी बचाव करना होगा। इस समय आपकी संतान की धन हानि के योग बने हुए हैं तथा उनको दांतों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके धन-कुटुंब भाव पर है अतः कर्ज लेने से बचें अन्यथा चिंता ग्रसित हो जायेंगे। कुटुंब में व्यर्थ के विवाद से बचें। बचाव के लिए योग्य वेदपाठी विद्वानों से विधिवत श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ तथा यज्ञ करवायें। 

धनु राशि - धनु लग्न

यह समय आपकी संतान के लिए शुभ नहीं है। यदि आप गर्भवती महिला हैं तो बहुत सावधानी रखें, गर्भपात हो सकता है। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको परीक्षाओं में प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होंगे। अपने पेट व ह्रदय का ध्यान रखें। राहु की पंचम दृष्टि आपके पिता के लिए हानिकारक है, यदि वह पहले से ही ह्रदय रोगी हैं तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें। अपनी माता के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आने के योग बन रहे हैं। स्वयं आप सिर,पीठ व कमर की चोट आदि से बचें। इस अवधिकाल में आपको आपके इष्ट देवता के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। राहु के मन्त्रों का जाप तथा उनके दान करें। नीले वस्त्रों को धारण करने से बचें। 

मकर राशि - मकर लग्न

शत्रु राशि के राहु के आपके चतुर्थ भाव में गोचर करने के कारण यह समय आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं। इस समय यदि आप कोई प्रॉपर्टी अथवा वाहन लेने जा रहे हैं तो बहुत विचार करके ही लें। यदि आपका आपकी किसी संपत्ति पर विवाद चल रहा है तो आगामी डेढ़ वर्ष उस विवाद को टालने का प्रयास करें। इस अवधिकाल में राहु आपके तथा अपनी पंचम दृष्टि से आपके ससुराल के सुख में भी कमी करेगा तथा आपके जीवन साथी के धन की हानि करेगा। स्वयं के वाहन द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा से बचें। हॉस्पिटल का यदि कोई खर्च रुका हुआ हो तो उसको हो जाने दें। 

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न

भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें उनके लिए यह समय अनुकूल नहीं है। स्वयं का गले-छाती के रोगों से बचाव करें। आगामी डेढ़ वर्ष तक कोई विदेश यात्रा करने तथा मित्रों से विवाद की स्थिति से बचें। इस समय आपके बड़े मामा-मौसी की धन की हानि तथा उनके दाहिने नेत्र व दांतों में पीड़ा के योग बन रहे हैं। हाथ-पैरों की चोट से बचें। इस अवधिकाल में आपके जीवन साथी को पीठ अथवा कमर में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

मीन राशि - मीन लग्न

द्वितीय भाव में शत्रु राशि में स्थित राहु आपके धन की हानि करवाता रहेगा। अतः यदि कोई ऋण हो तो उससे मुक्ति प्राप्त कर लें। इस अवधिकाल में आपके दांतों तथा दाहिने नेत्र में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह समय आपके कुटुंब के लिए बहुत विनाशकारी है। वाणी स्थान पर बैठे राहु आपसे कड़वी वाणी का उपयोग करवायेंगे जिसके कारण आप लोगों को अपने शत्रु बना लेंगे, अतः सोच समझ कर बोलें। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि आपको किडनी, आंतों, पेंक्रियाज, लिवर तथा घुटनों में कोई समस्या ना दे इसके लिए राहु के दान करें तथा उनके मन्त्रों का जाप करें। 


केतु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव-

स्वभाव से राहु के समक्ष केतु थोड़े कम पापी ग्रह माने जाते हैं परन्तु फलित करते समय यह भी राहु से कम विध्वंसकारी नहीं होते। गोचर में जब-जब केतु की युति मंगल अथवा शनि से होती है तो संसार में अग्निकांड और विषैली गैसों से होने वाली दुर्घटनायें कई गुना बढ़ जाती हैं। यदि किसी की जन्मकुंडली के किसी भाव में पहले से ही मंगल-केतु, मंगल-शनि की युति हो और उसकी दशा-अंतर्दशा भी इन्हीं ग्रहों की चल रही हो तथा गोचर में भी उसी भाव में यह युति बन जाये तो इनकी यह युति जातक के उस शारिरिक अंग के लिए बहुत कष्टकारी होती है जिसको वह भाव बनाता है और कई बार जातक का वह अंग-भंग तक हो जाता है। अतः ऐसी स्थिति में सभी को इन ग्रहों के दान व शांतियाँ अवश्य करवा लेनी चाहिए, इससे इनके अशुभ प्रभाव में बहुत कमी आ जाती है और यह अपना सम्पूर्ण अशुभ फल ना देकर छोटी-मोटी चोट, खरोंच आदि देकर आगे निकल जाते हैं। 

सभी राशि लग्नों पर केतु का फलादेश भी लगभग राहु के सामान अशुभ फल देने वाला ही होगा, ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए इसके अलग से फलादेश करने की आवश्यकता नहीं है। सभी जातक अपनी-अपनी राशि लग्नों पर इसको राहु के जैसा अशुभ फल देने वाला ही मानें। अधिक जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग स्पॉट पर केतु से सम्बंधित दिए गए अन्य ब्लॉग पढ़ें। इसमें 'महामारियों का कारण व निवारण', गोचर में मंगल-केतु युति व 'आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति' अवश्य पढ़ें। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/09/blog-post.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/03/mahamariyon-ka-kaaran-aur-nivaran.html

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/02/blog-post.html

नोट- यहाँ केवल राहु-केतु के राशि परिवर्तन से प्रकट होने वाले परिणामों का वर्णन किया गया है, किसी अन्य ग्रहों के गोचर में राशि परिवर्तन से पड़ने वाले शुभाशुभ परिणामों का नहीं। इसके अतिरिक्त विषय की विस्तारता को ध्यान में रखते हुए इन 18 महीनों में राहु-केतु के साथ ही गोचर में भ्रमण करते हुए अन्य ग्रहों की राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के परिणामों का भी उल्लेख यहाँ पर नहीं किया जा सकता है। यदि संभव हुआ तो आगामी समय में किसी अन्य ब्लॉग के माध्यम से मैं आप सभी के लिए वह फलादेश भी उपलब्ध करवा दूंगा।

राहु-केतु के क्रमशः अपने परम शत्रुओं (मंगल-शुक्र) की राशियों में संचार करने के कारण इन डेढ़ वर्षों में राहु व केतु बहुत उपद्रव मचाने जा रहे हैं जिससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा। 'मेष' राशि हमारे सिर (Head) और 'तुला' राशि हमारे यौन अंगों (Sex Organs) का निर्माण करती है, राहु-केतु का इन राशियों में संचार करना आगामी डेढ़ वर्ष तक विश्व भर में इन अंगों से सम्बंधित रोगियों की मात्रा में भारी वृद्धि करने जा रहा है। इस अवधिकाल में सड़क दुर्घटनाओं में सिर में चोट लगकर मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलेगी। अतः जो लोग सड़क यात्रा के समय मोटरसाईकिल आदि वाहनों का प्रयोग करते हैं वह हेलमेट का प्रयोग अवश्य करें। सेना-पुलिस-अर्ध सैनिक बलों के हमारे जवान भी यथासंभव सिर की चोट से बचने का प्रयास करें। 

यदि किसी जातक की जन्म-कुंडली में राहु व केतु शुभ ग्रहों की राशि में शुभ ग्रहों के साथ स्थित हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का राशि परिवर्तन उतना अनिष्टकारी नहीं होगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अपनी नीच व शत्रु राशियों में पापी अथवा क्रूर ग्रहों के साथ स्थित हुए और उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध होगा।  

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 17 मार्च 2022

देव गुरु 'बृहस्पति' का स्वराशि 'मीन' में प्रवेश

13 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 21 मिनट ('दिल्ली समयानुसार') पर देव गुरु बृहस्पति 'कुंभ' राशि से निकलकर अपनी राशि 'मीन' में प्रवेश करेंगे और यहां वह 22 अप्रैल 2023 को प्रातः 3 बजकर 32 मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात मेष राशि में प्रविष्ट हो जाएंगे। देव गुरु बृहस्पति का स्वग्रही होना देव शक्तियों के जागरण के लिये मार्ग प्रशस्त करने वाला तथा आसुरी शक्तियों को भयाक्रांत करने वाला होगा। इसलिए यह एक वर्ष सनातन धर्म के उत्थान के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रहा है।

लगभग 1 वर्ष 10 दिन का यह अवधिकाल- शिक्षा, ज्ञान, आध्यात्म और बैंक से सम्बंधित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिये अत्यंत शुभ फलदायक होगा। विद्यार्थियों तथा साधकों के लिए भी गुरु का स्वराशि में गोचर बहुत शुभ होगा।

देव गुरु 'बृहस्पति' के 'स्वराशि' में संचार करने के कारण इस एक वर्ष में लगभग 70% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह हो जायेंगे। केवल उन्हीं कन्याओं के विवाह में रुकावटें आयेंगीं जिनकी जन्म-कुंडलियों में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह का कारक 'बृहस्पति' अशुभ स्थिति में होंगे और दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली के उन्हीं अशुभ ग्रहों की चल रही होंगी जिन्होंने सप्तम भाव, सप्तमेश और बृहस्पति को अपने पाप प्रभाव से ग्रसित किया हुआ होगा।

यद्यपि सनातन धर्म की मर्यादा के अनुसार पुत्र एवं पुत्री दोनों की ही प्राप्ति एक समान सुखदायक होती है तथापि बृहस्पति के प्रभाव के कारण इस एक वर्ष में विश्व भर में जन्म लेने वाली लगभग 70% संतानें 'पुत्र' के रूप में जन्म लेंगी । यहाँ तक कि पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों में भी यही अनुपात देखने को मिलेगा।

आइए जानते हैं कि गोचर में बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ेगा।

मेष राशि - मेष लग्न
मेष राशि-मेष लग्न वाले जातकों का गुरु 12वें भाव में संचार करने के कारण जातक का धन शुभ कार्यों में खर्च होगा, दादी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, पिता को प्रॉपर्टी, वाहन का सुख तथा स्वयं को कोर्ट केस से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जो जातक अनिद्रा की समस्या से पीड़ित हैं उन्हें अनिद्रा रोग से मुक्ति मिलेगी और जिन जातकों की आयु का अंतिम पड़ाव आ चुका है और जन्म-कुंडली में भी अकेले बृहस्पति 12वें भाव में स्थित हैं, उन जातकों को मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग की प्राप्ति होगी। बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजे के रोग से सम्बंधित रोगियों को चिकित्सा से लाभ होगा। इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को धन का लाभ होगा।

वृष राशि - वृष लग्न
वृष राशि-वृष लग्न वाले जातकों का बृहस्पति 11वें भाव (लाभ स्थान) में अपनी ही राशि में संचार करने के कारण स्वयं को सभी प्रकार का लाभ होगा तथा इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को स्वास्थ्य एवं आयु का लाभ होगा और उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इन जातकों के ससुराल में प्रॉपर्टी, वाहन आने के योग बनेंगे। पिता को गले-छाती के रोगों की समस्या से तथा स्वयं को पिंडलियों की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माता यदि मरणासन्न अवस्था में हुईं तो गुरु के इस राशिपरिवर्तन के साथ ही वह चमत्कारिक ढंग से ठीक हो जाएंगी। इस राशि-लग्न वाली कन्याओं के विवाह में आ रहे अवरोध अब दूर होंगे।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
मिथुन राशि-मिथुन लग्न वाले जातकों की सरकारी नौकरी से सम्बंधित सभी बाधाएँ दूर होंगी तथा इस राशि-लग्न के जिन जातकों के सरकारी कार्य रुके हुए हैं, अब वह पूर्ण होंगे और प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे । जो लोग राजनीति में हैं वह राजनीति में उच्च पद प्राप्त करेंगे। इनके बृहस्पति के दशम भाव में संचार करने से इनके पिता को वर्ष भर धन की प्राप्ति होती रहेगी। इनके पिता के दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग दूर होंगे तथा इनके जीवन साथी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। सास की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की वृद्धि होगी पंच महापुरुष राजयोग में से एक 'हंसक' नामक राजयोग इनके गोचर से 'दशम भाव' में बनने जा रहा है जो इनको जीवन में नवीन ऊँचाइयाँ प्राप्त करवाने मे सहायक होगा।

कर्क राशि - कर्क लग्न
कर्क राशि-कर्क लग्न वाले जातकों के स्वराशि के गुरु के नवम् भाव में संचार करने के कारण इनके भाग्य में चल रहे सभी अवरोध अब दूर होंगे। इनके पिता को आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। यदि इनकी जन्मकुंडली में नवम् भाव और नवमेश की स्थिति भी शुभ हुई तो इन जातकों की अचानक से धर्म में रूचि बढ़ जाएगी और यह देश के भीतर ही धार्मिक यात्राएँ करेंगे । ईश्वर की कृपा से यह लोग अपने अगले जन्म में मिलने वाले जन्म-स्थान की यात्रा कर सकेंगे जिससे अगला जन्म पाने पर यह ऐसी अनुभूति करेंगे कि वह पहले भी इस स्थान पर आ चुके हैं । इनके ससुराल में धन की वृद्धि होगी, इनके छोटे साला-साली यदि कष्ट में हुए तो उनको उस कष्ट से मुक्ति मिलेगी तथा इनके छोटे मामा-मौसी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। इनके स्वयं के पीठ अथवा कमर की पीड़ा चमत्कारिक ढंग से दूर हो जाएगी और इनकी संतान भाव से पंचम में स्वराशि के गुरु होने से इनकी संतान को प्रतियोगी परीक्षाओं मे सफलता प्राप्त होगी। इनकी माताएँ यदि किडनी, लीवर, आंतो के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अत्यधिक सुधार होगा तथा इनके जीवन साथी के गले-छाती के रोग समाप्त होंगे।

सिंह राशि - सिंह लग्न
सिंह राशि-सिंह लग्न के जो जातक मरणासन्न अवस्था में थे, वह गुरु के इस राशि परिवर्तन वाले दिन से ही चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने आरम्भ हो जायेंगे। स्वराशि के गुरु का इनके अष्टम भाव में गोचर इनके जीवन साथी के धन की वृद्धि करने वाला होगा तथा उनके दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग अब दूर हो जायेंगे। इनकी संतान को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता के बाएं नेत्र के विकार ठीक होंगे और उनका धन शुभ कार्यों में खर्च होगा। यदि इनके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उन्हें अब उसमें विजय प्राप्त होगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माताओ को पेट के रोगों में सुधार देखने को मिलेगा।

कन्या राशि - कन्या लग्न
कन्या राशि-कन्या लग्न वाली 90% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह इस वर्ष हो जायेंगे और इस राशि लग्न वाली जिन स्त्रियों के जीवन साथी के स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहे थे अथवा संबंधों में मतभेद चल रहे थे अब वह ठीक होने लगेंगे। यहाँ तक कि इस राशि-लग्न वाले किसी जातक ने अपने जीवन साथी से तलाक (सनातन हिन्दू संस्कृति में इसके लिए कोई शब्द और स्थान ही नहीं है) के लिए कोर्ट केस किया हुआ है तो वह उसे वापस ले लेंगे। आपके बृहस्पति के कारण आपके जीवन साथी को आयु, मान-सम्मान का भी सुख प्राप्त होगा । इस राशि-लग्न के जातकों के गोचर में सप्तम भाव में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बन जाने से इनके जीवन साथी, ताऊ और बड़ी बुआ को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे तथा इनकी माता को प्रॉपर्टी और वाहन सुख की प्राप्ति के योग बनेंगे।

तुला राशि - तुला लग्न
तुला राशि-तुला लग्न वाले जातकों के गोचर में स्वराशि के गुरु के छठे भाव में संचार करने के कारण ऐसे व्यक्ति अपने पराक्रम और ज्ञान से अपने शत्रुओं को पराजित करेंगे और यदि पराजित कर सकने योग्य ना हुए तो दैवीय शक्तियों की सहायता से इनके शत्रु स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे। इस राशि-लग्न वाले जिन जातकों को किडनी, लिवर, आंतों की समस्या चल रही थी वह अब ठीक होने के योग बनेंगे। इनके छोटा मामा-छोटी मौसी में से यदि कोई मरणासन्न अवस्था में हुआ तो वह अब ठीक होने लगेगा। इनके छोटे भाई-बहनों एवं मित्रों को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि इनकी माता गले छाती के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अब सुधार होगा। इस राशि-लग्न वाले जातकों के पिता के सरकारी कार्यों की रूकावटें दूर होंगी और यदि इनके पिता सरकारी नौकरी में हैं तो उनको प्रमोशन के योग बनेंगे अथवा उन्हें सरकार से कोई सहायता प्राप्त होगी। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के लिए यह समय अत्यंत शुभ है।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न वाले जातकों के बृहस्पति उनके पंचम स्थान में गोचर करेंगे, जिसके कारण उनको संतान की प्राप्ति के प्रबल योग बनेंगे। यदि ये राजनीति में हैं तो इनको मंत्री पद की प्राप्ति के प्रबल योग हैं। इस राशि-लग्न वाले पेट-हार्ट के रोगियों के स्वास्थ्य में भी बहुत सुधार होने के योग बनेंगे। यदि यह विधार्थी हैं तो यह परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होंगे। इनकी माता को धन प्राप्ति के योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब में सुख की वृद्धि होगी। पंचमेश गुरु के अपने ही स्थान में गोचर करने से इस राशि-लग्न के जातकों के प्रेम संबंधों में मधुरता आएगी। यदि किसी की संतान उसको छोड़कर दूर चली गयी है तो उसके भी वापसी के योग बनेंगे। इस समय पर आपके पूर्व जन्म के इष्ट देवता आपको अपनी अनुभूति करवाएंगे, यदि आप साधक हैं तो उनके संकेतों को आपको समझना चाहिए। इस अवधिकाल में आपके इष्ट देवता आपका हर प्रकार से सहयोग करेंगे तथा पूर्व जन्म के परिचित लोगों से आपका मिलना होगा, जिसके कारण आपको अनुभूति होगी कि आप पहले से उन्हें जानते हैं। यदि इस राशि-लग्न में जन्म लेने वाला कोई उच्च कोटि का साधक इस एक वर्ष के अवधिकाल में अपने इष्ट देवता की साधना करेगा तो उसको सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।

धनु राशि - धनु लग्न
धनु राशि-धनु लग्न वाले जातकों के लिये उनके चतुर्थ भाव में 'हंसक'नामक पंच महापुरुष राजयोग बनेगा जो कि इनको वाहन, प्रॉपर्टी और नौकर-चाकरों का सुख प्रदान करने वाला होगा। इनके माता की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की भी वृद्धि होगी, तथा माता से इनके संबंधों में सुधार होगा। केंद्र में स्वराशि के गुरु का संचार इन्हें सभी प्रकार के सुख-संसाधनों का भोग करवाने वाला होगा। यदि इनका किसी सम्पत्ति को लेकर कोई विवाद चल रहा होगा तो उसका भी निस्तारण इसी एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहा है। पिता के स्थान 'नवम् भाव' से अष्टम (उनकी आयु भाव) में गुरु के स्वराशि में संचार होने से यदि किसी के पिता मरणासन्न अवस्था में भी हुए तो वह बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के साथ चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने लगेंगे। इस राशि-लग्न के जातकों के मित्रों और छोटे-भाई बहनों के लिए इस एक वर्ष के अवधिकाल में धन प्राप्ति के बहुत अच्छे योग बनेंगे। यदि आप जनता के बीच जाकर चुनाव लड़ना चाहते हैं तो लड़ सकते हैं, सफलता प्राप्त होने की प्रबल सम्भावना है।

मकर राशि - मकर लग्न
मकर राशि-मकर लग्न के जातकों के बृहस्पति उनके तृतीय भाव में संचार करने से इनके छोटे-भाई बहनों तथा मित्रों की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इस राशि-लग्न के जातकों के विदेश यात्रा के प्रबल योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब और बड़े मामा-बड़ी मौसी के धन की वृद्धि होगी। इनकी माता को यदि उनके बाएं नेत्र, एड़ी-पंजों में कोई समस्या रही हो तो उनको इस समय अपना उपचार करवा लेना चाहिए, लाभ होगा। इनके स्वयं के गले, सीधे हाथ और दाहिने कान में कोई समस्या रही हो तो उसका भी उपचार ये करवा सकते हैं,समस्या ठीक हो जाएगी।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न वाले जातकों के धन-कुटुंब के भाव में स्वराशि का बृहस्पति इन्हें बहुत अधिक धन प्राप्त करवाने जा रहा है, यदि किसी के कुटुंब में कलेश रहते हों तो वहां शांति स्थापित करने का यही समय है। इस एक वर्ष की अवधिकाल में आपके मुख से निकली अनेक बातें सत्य घटित होंगी। यदि आप ज्योतिष का कार्य करते हैं तो यह एक वर्ष आपके मुख से निकली हुई वाणी को सत्य घटित करवाने जा रहा है। आपको आपके बड़े मामा-बड़ी मौसी से अनेक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। आपके बड़े भाई-बहन,चाचा तथा छोटी बुआ को प्रॉपर्टी और वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि किसी की माता को पैर में पीड़ा हो तो उसका भी निवारण होने जा रहा है। किन्तु आपके छठे भाव पर बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि आपके शत्रुओं को ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाली होगी।

मीन राशि - मीन लग्न
मीन राशि-मीन लग्न वाले जातकों के लिए देव गुरु बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन उनके लग्न में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बनाने जा रहा है जिसके कारण इनकी आयु, स्वास्थ्य और मान सम्मान में वृद्धि होगी, यदि आप सरकारी नौकरी में हैं तो आपके प्रमोशन के योग बनेंगे और यदि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं तो यह समय बहुत अनुकूल है। यदि सरकारी ठेके लेते हैं अथवा सरकार से सम्बंधित कोई कार्य करते हैं तो आपको उसमें सफलता मिलेगी। आपके पिता यदि पेट-हार्ट की समस्या अथवा माता घुटनों की समस्या से ग्रसित हों तो उनको इन रोगों में स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होगा। इस राशि लग्न वाले जातकों की माता यदि सरकारी नौकरी में हों तो उन्हें प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे। मीन राशि की उन 90% कन्याओं के विवाह इस एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहे हैं जिनकी जन्मकुंडली में पहले से ही बृहस्पति शुभ स्थिति में हैं और यदि ये पहले से ही विवाहित होंगी तो इनके पति के स्वास्थ्य और उनसे इनके संबंधों में बहुत सुधार देखने को मिलेगा। बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि, पंचम भाव  पर होने से आपको पुत्र प्राप्ति के प्रबल योग हैं।


नोट- इस फलादेश का इस एक वर्ष में गुरु के साथ विभिन्न ग्रहों की युति-दृष्टि से जातकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही गोचर में होने वाले अन्य ग्रहों के राशि परिवर्तनों का। यहाँ केवल बृहस्पति के अपनी राशि 'मीन' में होने के फलादेश का वर्णन किया जा रहा है।

इसके अतिरिक्त यदि इन राशि-लग्नों में जन्म लेने वाले किसी जातक की स्वयं की जन्म-कुंडली में बृहस्पति ग्रह अपनी शत्रु राशि, नीचराशि अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव की स्थिति में होंगे तथा उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी, तो उन्हें इन सब उत्तम फलों की प्राप्ति नहीं होगी अथवा कम होगी।

इसके विपरीत जिन जातकों की जन्म-कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थानों के स्वामी होकर अपने मित्र या उच्च राशि में स्थित होकर शुभ प्रभाव में होंगे तथा उन्होंने उसका रत्न आदि धारण करके उसे शक्ति प्रदान की हुई होगी, उनके लिये बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन अत्यंत शुभ प्रदान करने वाला होगा।
'शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 16 अगस्त 2021

सूर्य का स्वराशि में प्रवेश

 
एक वर्ष के उपरान्त आज मध्य रात्रि १ बजकर १७ मिनट पर ग्रहों के राजा सूर्य का अपनी ही राशि 'सिंह' में प्रवेश होने जा रहा है, जो कि वहां १६ सितम्बर २०२१ तक रहेंगे। सिंह राशि में ग्रहों के सेनापति 'मंगल' पहले से ही विराजमान हैं ।

सिंह राशि में ग्रहों के राजा 'सूर्य' और सेनापति 'मंगल' का यह योग देश के प्रधानमंत्री और सभी सेनाओं के सेनाध्यक्षों को अत्यन्त शक्ति प्रदान करने वाला होगा। गोचर में ग्रहों का यही योग राज्यों में मुख्यमंत्रियों और उनके साथ कार्य करने वाले पुलिस के सर्वोच्च अधिकारियों को भी शक्ति प्रदान करने का कार्य करेगा। ऐसे में यदि केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो आगामी एक माह तक सभी प्रकार की राष्ट्र विरोधी शक्तियों को अत्यन्त तीक्ष्ण क्षति पहुँचा सकती हैं ।

प्राचीन काल में राजाओं के पास राज-ज्योतिषी इसी कार्य के लिए हुआ करते थे जो राजाओं को उचित मार्गदर्शन देकर राज्य की रक्षा करने में इस महान विधा का उपयोग किया करते थे। आज यदि भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित करना है तो इसमें ज्योतिष विद्या एक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए सूर्य का स्वराशि में प्रवेश निम्न फल प्रदान करने वाला होगा-
मेष राशि-मेष लग्न
सूर्य आपके पंचम भाव में गोचर करेंगे । इस राशि-लग्न के जातक यदि हृदय योगी हों और वह अपना ऑपरेशन करवाना चाहते हैं तो वह करवा सकते हैं, पढ़ने वाले छात्रों के लिए यह समय प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता लेकर आएगा । पेट में एसिड न बने इसका ध्यान रखें।

वृष राशि-वृष लग्न
प्रॉपर्टी से सम्बंधित रुकावटें दूर होंगी, माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा, नया वाहन लेने जा रहे हों तो ले सकते हैं।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
छोटे भाई-बहनों में से किसी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं चल रहा हो तो उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। स्वयं के पराक्रम में वृद्धि होगी। विदेश यात्रा की रुकावटें दूर होंगी।

कर्क राशि-कर्क लग्न
आकस्मिक धन लाभ के योग बनेंगे, वाणी स्थान पर सूर्य के आगमन के कारण आप आक्रामक वाणी का प्रयोग करेंगे, नेत्रों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है।

सिंह राशि-सिंह लग्न
आपके लग्न में ही सूर्य के आ जाने के कारण स्वास्थ्य का लाभ होगा, मान सम्मान की वृद्धि होगी किन्तु सूर्य की सप्तम शत्रु दृष्टि जीवन साथी के भाव मे पड़ने से जीवन साथी के साथ विवाद भी उत्पन्न होगा।

कन्या राशि-कन्या लग्न
12 वें भाव मे सूर्य का गोचर आपके नेत्रों के लिए कष्टकारक होगा, एड़ी से पंजों के मध्य कोई चोट लग सकती है।

तुला राशि-तुला लग्न
बड़े भाई बहनों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, आपके स्वयं के लाभ में वृद्धि होगी।

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न
सरकारी नौकरी के योग बनेंगे, इस राशि-लग्न के जो जातक ठेकेदारी का कार्य करते हैं उनको सरकारी ठेके मिलने के प्रबल योग बनेंगे, राजनीति में उच्च पद प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता से धन की प्राप्ति होगी, माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

धनु राशि-धनु लग्न
पिता के स्वास्थ्य में लाभ होगा, भाग्य से कार्यों में सफलता प्राप्त होगी, छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, विदेश यात्रा से बचें।

मकर राशि-मकर लग्न
जीवन साथी के नेत्रों में कष्ट होगा परंतु जीवन साथी को धन प्राप्ति के योग भी बनेंगे । यदि इस राशि-लग्न का कोई जातक मृत्युशैया पर हुआ तो अकस्मात् ही उसको अपने स्वास्थ्य में चमत्कारिक सुधार देखने को मिलेगा।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, जीवन साथी को मानसम्मान की प्राप्ति होगी परंतु आपका उनसे मतभेद हो सकता है।

मीन राशि-मीन लग्न
शत्रु पराजित होंगे। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति होगी परन्तु लंबी दूरी की यात्रा से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

नोट- जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा शुभ ग्रहों की चल रही हो और जन्मकुंडली में सूर्य भी अच्छी स्थिति में हुआ केवल उन्हीं जातकों को सूर्य के इस राशि परिवर्तन के शुभ फल प्राप्त होंगे और अशुभ फल भी घटित नहीं होंगे।

इसके विपरीत जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा उनकी जन्म कुंडली मे स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी और जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य भी अशुभ स्थिति में होंगे उनके लिए सूर्य का यह गोचर भी लाभकारी नहीं होगा।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 20 मई 2021

ज्योतिष का रहस्य : भाग - २


भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं वैदिक ज्योतिष के कुछ गूढ़ रहस्यों को प्रकट करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरा यह लेख ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को अनन्त काल तक दिशा प्रदान करता रहेगा। 

अपने इतने वर्षों के अध्ययन, शोध और Professional Career से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैंने यह पाया कि यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो, नीच राशि में हो और वह नीचभंगता को भी प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो वह ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर अशुभ फल ही देगा। 

यही नहीं, ऐसा ग्रह उस जातक के जन्म और चंद्र लग्न दोनों ही पर लगाए जाने वाले गोचर में यदि शुभ स्थिति में भी भ्रमण कर रहा होगा तब भी वह उस जातक को उतना शुभ फल देने में समर्थ नहीं हो सकेगा जितना किसी अन्य जातक को देगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में उस ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है।  

इसके विपरीत यदि कोई ग्रह किसी जातक की जन्मकुण्डली में शुभ स्थिति में है तो ऐसा ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर शुभ फल ही देगा। ऐसा ग्रह गोचर में यदि अशुभ स्थिति में भी भ्रमण करेगा तो भी वह ग्रह उस जातक को उतना अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होगा जितना किसी अन्य के लिए होगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में वह ग्रह शुभ स्थिति में है। 

साधारणतः ज्योतिषी इन बातों पर तो विचार कर लेते हैं कि ग्रहों का बलाबल कितना है ? नवांश कुण्डली में उनकी स्थिति कैसी है ? पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की किससे मित्रता-शत्रुता है ? ग्रह कारक-अकारक-मारक में से कौन सा है ? ग्रह को केन्द्राधिपति दोष तो नहीं है ? कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हो गया ? आदि-आदि ! 

किन्तु सूक्ष्म परीक्षण करते समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि वह ग्रह जिन राशियों के स्वामी हैं, उन राशियों में कौन -कौन से ग्रह स्थित हैं क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि यदि कोई ग्रह जिस भी राशि में होगा उस राशि के स्वामी ग्रह की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर वह ग्रह भी पीछे से अपना फल अवश्य देगा। 

उदाहरण के लिये मान लेते हैं किसी जातक की शुक्र की २० वर्ष की महादशा आरम्भ हुयी और और शुक्र की दोनों राशियों (वृष-तुला) पर राहु व शनि बैठे हैं और जन्मकुंडली में शुक्र अत्यन्त शुभ स्थिति में हैं, योगकारक भी हैं, तब भी ऐसे शुक्र की महादशा उस जातक को उतना शुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि इस पूरी शुक्र की महादशा में जब-जब शुक्र की अन्तर्दशा , प्रत्यन्तर्दशायें, सूक्ष्म दशायें और प्राणदशायें प्राप्त होंगी, तब-तब शुक्र की दोनों राशियों पर बैठे राहु- शनि भी पीछे से अपना अशुभ फल देते रहेंगे और इसे देखकर बड़े-बड़े ज्योतिषी भी अचंभित रह जायेंगे कि इतने अच्छे शुक्र की महादशा में भी जातक दुखी जीवन व्यतीत करने पर विवश है। 

यही नियम उन अशुभ ग्रहों की महादशाओं पर भी लगाया जायेगा, जिनकी राशियों पर कोई शुभ ग्रह स्थित है। तब ऐसे जातक को वह अशुभ ग्रह की महादशा भी उतना अशुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि उसकी राशियों पर स्थित शुभ ग्रह भी पीछे से अपना शुभ फल देंगे और यहाँ भी ज्योतिषी अचंभित रह जायेंगे कि इस जातक को इतने अशुभ ग्रह की दशा प्राप्त होने पर भी इसका समय इतना अच्छा कैसे व्यतीत हो रहा है। 

बात यहीं समाप्त हो जाती तो भी ठीक था परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र इतना विशाल समुद्र है कि जिसका पार पाना सबकी क्षमता की बात नहीं है, यह इसलिए क्योंकि अभी हमने नक्षत्रों की तो बात की ही नहीं। 

जब बात आती है कुण्डली के सूक्ष्म परीक्षण की तो हमें यह भी देखना होगा कि जातक की जन्मकुण्डली में सभी नवग्रह किन-किन नक्षत्रों पर स्थित हैं तथा जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही है, उस ग्रह के नक्षत्र पर कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं क्यूंकि पीछे से वह ग्रह भी उस दशा-अन्तर्दशा में अपना फल जातक को देता है जो दशापति के नक्षत्र पर स्थित होता है तथा दशापति ग्रह स्वयं उस ग्रह का भी प्रभाव लेकर कार्य करता है, जिसके नक्षत्र पर वह स्वयं स्थित होता है। 

अतः जब भी कोई जातक अपनी जन्मकुण्डली का परीक्षण करवाने हमारे पास आये तो हमें उसकी जन्मकुण्डली में इन सब बातों का ध्यान पूर्वक सूक्ष्म परीक्षण करके उसकी जन्मकुण्डली को दो भागों में विभक्त करना चाहिये। जिसमें प्रथम भाग में उसकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों को रखना चाहिये तथा द्वितीय भाग में अशुभ ग्रहों को। जिससे शुभ ग्रहों को ज्योतिषीय उपायों द्वारा और अधिक शक्ति प्रदान करके, उनके शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि की जा सके तथा अशुभ ग्रहों के दान, व्रत और उनकी विधिवत् शांति आदि करवाकर उनके अशुभ फल देने की क्षमता को न्यूनतम स्थिति में लाकर भविष्य में उस जातक के साथ घटित होने जा रही दुर्घटना-विपत्ति आदि की संभावनाओं को टाला जा सके। 

"शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava