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मंगलवार, 25 अगस्त 2020

जीवांश-परमात्मांश रहस्य


 भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुए तथा पराशर ऋषि को प्रणाम करते हुए मैं उन्ही के शब्दों में जीवांश एवं परमात्मांश तत्व का रहस्य प्रकट करने जा रहा हूँ।


मैत्रेय उवाच
रामकृष्णादयो ये ये ह्यवतारा रमापतेः ।
तेSपि जीवांशसंयुक्ताः किं वा ब्रूहि मुनीश्वर !।।
मैत्रेय जी ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! राम, कृष्ण आदि जो परमात्मा के अवतार हैं, क्या वे भी जीवांश से युक्त हैं ?


पराशर उवाच
रामः कृष्णश्च भो विप्र ! नृसिंहः सूकरस्तथा ।
एते पूर्णावताराश्च ह्यन्ये जीवांशकान्विताः ।।
महर्षि पराशर जी ने कहा- हे विप्र ! राम, कृष्ण, नृसिंह तथा वराह-- ये चार पूर्ण अवतार हैं और इससे भिन्न जो अवतार हैं, वे सभी जीवांश से युक्त होते हैं ।


अवताराण्यनेकानि ह्यजस्य परमात्मनः ।
जीवानां कर्मफलदो ग्रहरूपी जनार्दनः ।।
दैत्यानां बलनाशाय देवानां बलवृद्धये ।
धर्मसंस्थापनार्थाय ग्रहाज्जाताः शुभाः क्रमात् ।।
अजन्मा परमेश्वर के अनेक अवतार हैं और उनमें से जीवों के लिए स्वकर्मानुसार फलदायक के रूप में ग्रहस्वरूप जनार्दननामक अवतार है । दैत्यों के बल- नाशार्थ, देवों के बल- वृद्धयर्थ और धर्म स्थापन के लिए उक्त सूर्यादि ग्रहों से ही शुभप्रद अवतार हुए हैं।


यथा--
रामोSवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः ।
नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च ।।
वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च ।
कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः ।।
केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेSपि खेटजाः।
परात्मांशोSधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधाः ।
जैसे -- सूर्य से श्रीराम का, चंद्रमा से श्रीकृष्ण का, मंगल से श्रीनृसिंह का, बुध से बुद्ध का, गुरु से वामन का, शुक्र से भार्गव परशुराम जी का, शनि से कूर्म का, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुआ है । इसके अतिरिक्त जितने भी अवतार हैं वे भी ग्रहों से ही अवतीर्ण हुए हैं । उनमें से जिसमे परमात्मांश अधिक है, वे खेचर अर्थात् देवता कहलाते हैं ।


जीवांशो ह्यधिको येषु जीवास्ते वै प्रकीर्तिताः ।
सूर्यादिभ्यो ग्रहेभ्यश्च परमात्मांशनिः सृताः ।।
रामकृष्णादयः सर्वे ह्यवतारा भवन्ति वै ।
तत्रैव ते विलीयन्ते पुनः कार्योत्तरे सदा ।।
जीवांशनिः सृतास्तेषां तेभ्यो जाता नरादयः ।
तेSपि तत्रैव लीयन्ते तेSव्यक्ते समयन्ति हि ।।
इदं ते कथितं विप्र ! सर्वं यस्मिन् भवेदिति ।
भूतान्यपि भविष्यन्ति तत्तज्जानन्ति तद्विदः ।।
विना तज्जयौतिषं नान्यो ज्ञातुं शक्नोति कर्हिचित् ।
तस्मादवश्यमध्येयं ब्रह्माणैश्च विशेषतः ।।
यो नरः शास्त्रमज्ञात्वा ज्यौतिषं खलु निन्दति ।
रौरवं नरकं भुक्त्वा चान्धत्वं चान्यजन्मनि ।।
जिनमें अधिक जीवांश है, वे जीव कहलाते हैं । सूर्यादि ग्रहों से अधिक परमात्मांश निकलकर राम, कृष्ण आदि अवतार होते हैं । फिर वे अपने-अपने कार्य को सुसम्पन्न करके सूर्यादि ग्रहों में ही लीन हो जाते हैं । साथ ही सूर्यादि ग्रहों से ही जीवांश निकलकर मनुष्यादि जीवों में प्रवेश करता है, जो जीवांश कहलाता है । वे भी अपने शुभाशुभ कर्मों को भोग कर अन्त में उन्हीं ग्रहों में लीन हो जाते हैं । प्रलयकाल के समय में वे सूर्यादि ग्रह भी अव्यक्त परमात्मा में ही लीन हो जाते हैं । इस प्रकार सृष्टि और प्रलय जिन-जिन समयों में होता है अथवा होने वाला होता है , उन सबको वे ही अच्छी प्रकार जान सकते हैं । यह समस्त ज्ञान ज्योतिषशास्त्र के बिना कोई जान नहीं सकता । इसलिये सभी को विशेषकर विप्रों को ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए ।
जो मानव ज्योतिषशास्त्र को अच्छी प्रकार न समझकर उसकी निंदा करता है, वह रौरव नामक नरक में वास करके अन्धा होकर जन्म ग्रहण करता है।।

"शिवार्पणमस्तु "

-Astrologer Manu Bhargava

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