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शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

आयुर्दाय



ज्योतिष शास्त्र के महान ऋषि 'पराशर जी' अपने दिव्य ग्रन्थ 'बृहत्पाराशर होरा शास्त्र' में ऋषि मैत्रेय जी को संबोधित करते हुए कहते हैं-

अथाS न्यदपि वक्ष्यामि द्विज ! मारकलक्षणम् ।
त्रिविधाश्चायुषो योगाः स्वलपायुर्ममध्यमोत्तमाः ।।

द्वात्रिंशत् पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततः परम् ।
चतुष्षष्टयाः पुरस्तात्तु  ततो दीर्घमुदाहृतम् ।।

उत्तमायुः शतादूर्ध्वं ज्ञातव्यं द्विजसत्तम ! ।
जनैर्विंशतिवर्षान्तमायुर्ज्ञातुं न शक्यते ।।

जप - होम - चिकित्साधैर्बालरक्षां हि कारयेत् ।
म्रियन्ते पितृदोषैश्च केचिन्मातृग्रहैरपि ।।

केचित् स्वारिष्टयोगाच्च त्रिविधा बालमृत्यवः ।
ततः परं नृणामायुर्गणयेद् द्विजसत्तम ! ।।


हे द्विज ! और भी मारक ग्रह के लक्षण कहता हूँ ।
पूर्व में जो अल्पायु, मध्यमायु और पूर्णायु - यह तीन प्रकार का आयुर्दाय बताया गया है, उसमें ३२ वर्ष से पूर्व अल्पायु, तदन्तर ६४ वर्ष पर्यन्त मध्यमायु और उसके बाद १०० वर्ष तक दीर्घायु तथा १०० वर्ष से ऊपर उत्तमायु जानना चाहिये ।

२० वर्ष तक जातकों के आयुर्दाय का निर्धारण करना कठिन होता है । अतः जन्म से २० वर्ष तक पापग्रहों से रक्षा हेतु जप-होम-चिकित्सादि द्वारा जातक की रक्षा करनी चाहिये ।

२० वर्ष तक कोई पिता के दोष से, कोई माता के दोष से, कोई अपने पूर्वार्जित कुकर्म से उत्पन्न अरिष्ट योगों से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । अतः बाल्यावस्था में मरण के तीन कारण होते हैं । इसलिये २० वर्ष के बाद ही आयुर्दाय का गणित करके आयु का निर्धारण करना चाहिये ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

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