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शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

राहु केतु के शुभाशुभ फल

राहु-केतु पृथकतावादी ग्रह होते हुए भी किस अवस्था में अपना शुभ फल प्रदान करते हैं तथा जन्म कुंडली में इनकी शुभ स्थिति प्राप्त होने पर भी हमें इनके रत्न क्यों धारण नहीं करने चाहिए ? आइए जानते हैं । 


इस जातक का जन्म—१५ सितम्बर सन् १९८२ को रात्रि ८ बजकर १० मिनट पर मथुरा जिले में हुआ है । इनकी जन्म कुंडली के तृतीय भाव में राहु अपनी उच्च राशि 'मिथुन' में 'आद्रा' नक्षत्र के तृतीय चरण में स्थित हैं जो कि राहु का अपना ही नक्षत्र होता है । अंशावस्था से भी यह राहु-केतु अपनी युवावस्था (१२ से लेकर १८ डिग्री के मध्य) में हैं अर्थात् यह अपना पूर्ण शुभ फल देने में सक्षम हैं । 


भावात्-भावम् सिद्धांत के अनुसार द्वितीय से द्वितीय भाव में उच्च अवस्था में स्थित राहु ने इनको सम्पन्न घराने में जन्म दिया तथा भाग्य स्थान पर स्थित उच्च के केतु ने इनका भाग्योदय भी अति शीघ्र ही करवा दिया । जैसे ही इस जातक का विवाह हुआ बृहस्पति ने भाग्येश होकर सप्तम भाव में स्थित होने का फल प्रदान करना आरंभ कर दिया और ऐसे बृहस्पति की सहायता की, उसकी राशि पर स्थित केतु ने क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि कोई भी ग्रह जन्मकुंडली के किसी भी भाव में विराजमान हो, वह जिस भाव का स्वामी होगा वहां का फल तो प्रदान करेगा ही इसके साथ ही उसकी राशि पर जो ग्रह विराजमान होता है, पीछे से वह ग्रह भी अपना फल प्रदान करता है । 


इधर उच्च के राहु ने इन्हें घोर पराक्रम तथा अपने स्वभाव के समान व्यसनी किन्तु सहयोगी मित्र प्रदान किए, जिनके सहयोग से इन्होंने विदेश से व्यापार में नवीन ऊंचाइयां प्राप्त कीं । यद्यपि विदेश स्थान पर बैठे राहु ने इनको विदेशी यात्राओं से लाभ प्रदान किया तथापि इसी राहु ने अपने मूल आसुरी स्वभाव के कारण इनको अत्यधिक व्यसनी भी बना दिया । 


तृतीय भाव के इस राहु का सूक्ष्म अध्ययन करने के पश्चात् मैं यह जान गया कि इन्होंने अपने व्यसनी मित्रों के साथ बैठकर अनेक ऐसे कार्य किए जिनका उल्लेख करने पर इनके वैवाहिक जीवन पर संकट खड़ा हो सकता था । शुक्र का सप्तमेश होकर प्रेम संबंधों के भाव में जाना भी इसी ओर संकेत कर रहा है । ये व्यक्ति जब-जब बैंकॉक आदि की विदेश यात्रा पर गए, वहाँ इन्होंने राहु के आसुरी स्वभाव को अपने कार्यों में पूर्णतः प्रदर्शित किया । 


तृतीय भाव में उच्च के राहु की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर यदि ऐसा जातक राहु का रत्न गोमेद धारण करता है तो यह रत्न तृतीय भाव के फलों में कई गुना वृद्धि कर देता है । गोमेद धारण करने के उपरान्त ऐसा जातक अपने पराक्रम से सभी वस्तुओं को प्राप्त कर लेगा, उसके छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य, आयु, मान सम्मान में वृद्धि होगी, मित्रों से और अधिक सहयोग प्राप्त होगा तथा विदेश यात्राओं से कई गुना लाभ प्राप्त होगा ।  इतने सब के उपरान्त भी मैंने इन्हें गोमेद रत्न धारण नहीं करवाया, जिसका कारण यह है कि गले की राशि और गले के भाव पर बैठा हुआ राहु और उस पर मंगल की अष्टम दृष्टि तथा गले के कारक व स्वामी 'बुध' के छ्ठे भाव में स्थित 'शनि' की युति के पाप प्रभाव में होने से एक तो पहले से ही इनको गले के कैंसर होने अथवा किसी भी कारण से गले के कट जाने का योग बन रहे हैं । उस पर दुर्भाग्य से यह जातक तम्बाकू उत्पादों का भी अधिक मात्रा में सेवन करते हैं । ऐसे में गोमेद अथवा मूंगा रत्न यदि ये धारण करते हैं तो राहु-मंगल अत्यन्त तीव्र गति से इनके गले को काटने का प्रयास करेंगे । 


इसी प्रकार से पीठ व कमर की राशि और भाव में बैठे केतु इनको पीठ व कमर की गंभीर समस्या देंगे और यदि केतु का रत्न लहसुनिया भी इनको धारण करवा दिया जाए तो वह रत्न भाग्य में तो कई गुना वृद्धि करेगा किन्तु उतनी ही तीव्रता और उग्रता से इनको पीठ और कमर के रोग भी देगा । 

मेष लग्न की कुंडलियों में यह समस्या इसलिए भी अधिक हो जाती है क्योंकि इस लग्न में राशि और भाव एक ही होने से जीवन में जितनी तीव्रता से ऊंचाइयां प्राप्त होती हैं, हानि और रोग भी उतनी ही तीव्रता से घटित होते हैं । जैसे कि अष्टम भाव में स्वराशि में स्थित मंगल पर शनि की तृतीय दृष्टि ने इनको बवासीर (Piles) का रोगी भी बना दिया क्योंकि यहां भाव और भाव का स्वामी दोनों एक साथ शनि की तृतीय दृष्टि से पीड़ित हुए । 


यहां इस कुंडली को आपके समक्ष रखने का केवल एक मात्र कारण यही समझाना था कि कोई पृथकतावादी ग्रह यदि अपनी उच्च , मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि में अपने कारक स्थान में भी क्यों न हो, वह जिस राशि, नक्षत्र और भाव में होगा उन राशि, नक्षत्र और भाव से बनने वाले शारीरिक अंगों में कष्ट अवश्य देगा । इसलिए राहु, केतु, शनि, मंगल और सूर्य जैसे पृथकतावादी ग्रहों के रत्नों का चुनाव करने के लिए चिकित्सा ज्योतिष ( Medical Astrology) को समझने की बहुत आवश्यकता होती है अन्यथा हो सकता है कि जहां एक स्थान पर जातक को धन, सम्पत्ति, मान-सम्मान, पद प्रतिष्ठा, चुनावों में विजय आदि तो प्राप्त हो रही हो, वहीं दूसरे स्थान पर उसके शरीर में कोई असाध्य रोग भी प्रकट हो रहा हो । 


चिकित्सा ज्योतिष के विषय में अधिक जानकारी के लिए मेरा यह ब्लॉग पढ़े—

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html


उपचार—ऐसी कुंडली में एक पन्ना रत्न धारण करवाने से गले के रोगों से बचाव होगा क्योंकि गले के स्थान के स्वामी और कारक बुध को शक्ति प्राप्त होगी तथा इस जातक द्वारा पुखराज रत्न धारण करने से नवम भाव को ऊर्जा प्राप्त होगी, जिसके कारण पीठ व कमर के रोगों से बचाव होगा ।

यदि यहां कोई कहता है कि बृहस्पति तो १२वें भाव का स्वामी भी है ऐसे में क्या वह इनकी पत्नी को कष्ट नहीं देगा तो उनके ज्ञान वृद्धि के लिए महर्षि पराशर जी का एक सूत्र बताता हूँ जिसमें वह बताते हैं कि कोई भी ग्रह जिसकी दो राशियां हैं और उसकी मूल त्रिकोण राशि को छोड़कर कोई अन्य राशि १२वें भाव में स्थित है, ऐसे में वह ग्रह अपने १२वें भाव की राशि का फल न देकर अपनी मूल त्रिकोण राशि का फल प्रदान करता है जो कि इस लग्न में ९ वें भाव में स्थित है । अतः ऐसा बृहस्पति, पुखराज रत्न का उपयोग करने से शक्ति प्राप्त करके  नवम भाव से संबंधित फलों में वृद्धि तो करेगा ही, साथ ही इसके प्रभाव से केतु के शुभ फलों में भी वृद्धि होगी क्योंकि राहु और केतु क्रमशः अपने शनि व मंगल जैसे पृथकतावादी प्रभावों के अतिरिक्त जिन ग्रहों की राशि और जिन ग्रहों के साथ बैठते हैं उनकी  छाया लेकर उन ग्रहों जैसे प्रभाव भी देने लगते हैं । 

वर्तमान में इनकी मंगल की महादशा चल रही जो कि सितम्बर २०३० तक चलेगी तत्पश्चात् इनकी राहु की महादशा आरंभ होगी जिसमें उपरोक्त शुभाशुभ फल पूर्णतः से प्रकट होंगे, ऐसे में इनको अभी से ही तम्बाकू उत्पादों का परित्याग कर देना चाहिए तथा नीले, काले व रक्त वर्ण के वस्त्रों को धारण करने से बचना चाहिए । इसके अतिरिक्त अपने अधिकार की सीमा में विधिवत् देवी दुर्गा व हनुमान जी की आराधना उनके उच्च कोटि के मंत्रों द्वारा करनी चाहिए, जिससे राहु की आने वाली महादशा इनकी कुंडली के तृतीय भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित होने के शुभ फलों को प्रदान करे और यह निरोगी होकर दीर्घ जीवन जी सकें । 


ज्योतिष के इन उपायों द्वारा यदि इन्होंने राहु की आने वाली १८ वर्ष की महादशा बिना कोई बड़ा कष्ट प्राप्त किए काट ली, तो राहु की यह महादशा तो इनको नवीन ऊंचाइयों पर लेकर जायेगी ही, इसके पश्चात् आने वाली देव गुरु बृहस्पति की महादशा भी इनके जीवन के अंत काल में इनको देश के भीतर तीर्थ यात्राओं (बृहस्पति के नवम भावाधिपति होने के कारण) में महान पुण्य अर्जित करवाने वाली सिद्ध होगी और इन्होंने अपने जीवन काल में अब तक जितने भी अशुभ कार्य किए हैं, उस बृहस्पति की वह महादशा प्राप्त होने पर यह अपने शुभ कर्मों के प्रभाव से उन सभी पाप कर्मों को जला कर भस्मसात कर देंगे । 


"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 27 सितंबर 2023

मंगल-केतु युति २०२३



३ अक्टूबर २०२३ को मंगल द्वारा चित्रा नक्षत्र के तृतीय चरण में प्रवेश के साथ ही 'तुला राशि' में मंगल–केतु का योग बनने जा रहा है जो कि लगभग २८ दिनों का होगा । इस अवधिकाल में विश्वभर में अनेक अमंगलकारी घटनाएं घटित होंगी ।

मंगल ग्रहों का सेनापति होता है, जब भी यह गोचर में पापी ग्रहों की युति अथवा दृष्टि से पीड़ित होता है तो विश्वभर में सेना तथा सेनापतियों को हानि उठानी पड़ती है ।

इधर १७–१८ अक्टूबर की मध्य रात्रि को ग्रहों के राजा सूर्य भी अपनी नीच राशि 'तुला' में संचार करने लगेंगे और वह वहां पहले से ही स्थित केतु की युति तथा राहु की दृष्टि में आ जाएंगे अर्थात् ग्रहों का सेनापति और राजा दोनों ही पाप प्रभाव में आकर पीड़ित होने से शासन तंत्रों के विरुद्ध अराजक तत्वों का उदय होगा, जिसके कारण विश्व भर में अशांति व्याप्त होगी और शासकों तथा सेना के लिए यह समय बहुत चुनौतीपूर्ण रहेगा ।

भारत के संदर्भ में यह समय और भी चुनौतीपूर्ण इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यहां पहले से ही अनेक अराजक और देशद्रोही तत्वों का जमावड़ा बना रहता है जो निरन्तर विदेशी पैशाचिक शक्तियों के सहयोग से सनातन धर्म को हानि पहुंचाने की चेष्टा करते रहते हैं तथा पिछले ९ वर्षों में राष्ट्रवादी सरकार द्वारा खाद-पानी न दिए जाने के कारण अपने बिलों से बाहर निकलने के लिए कुलबुला रहे हैं अतः २८ दिन के इस अवधिकाल में हमारी सेना, अर्धसैनिक बलों तथा पुलिस प्रशासन से जुड़े लोगों को विशेष सावधानी रखनी चाहिए, जिससे कोई भी अराजक तत्व भारत में किसी भी प्रकार का उपद्रव न मचा सके ।

विद्वान मनुष्यों को २८ दिन के इस अवधिकाल में अपनी कोई शल्य चिकित्सा (Operation) करवाने, छोटे वाहनों से लंबी दूरी की यात्रा करने अथवा अपने बच्चे का जन्म (Delivery) करवाने से 'यथासंभव' बचना चाहिए ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों को गोचर में २८ दिनों के लिए बनने वाली इस मंगल-केतु युति से निम्नलिखित फल प्राप्त हो सकते हैं ।

मेष राशि- मेष लग्न
आपकी जन्म कुंडली के सप्तम भाव में बनने जा रहे इस योग से आपके वैवाहिक जीवन में कोई नई समस्या उत्पन्न हो सकती है अतः विवाद की स्थिति से बचें, व्यापार से जुड़े हुए जातक अपने व्यापार तथा पार्टनरशिप में सावधानी रखें । सिर की चोट से बचें ।

वृष राशि-वृष लग्न
२८ दिन के इस अवधिकाल में यथासंभव लंबी दूरी की यात्रा करने से बचें । गुप्त शत्रुओं से आपको सावधान रहने की आवश्यकता है । अपने जीवन साथी के साथ इन २८ दिनों में कोई यात्रा न करें तथा उनके स्वास्थ्य का ध्यान 
रखें ।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
आपको अपनी संतानों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए,पेट तथा हृदय रोगी अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें तथा इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं इन २८ दिनों में विशेष सावधानी रखें । अपने बड़े भाई-बहनों को अनावश्यक यात्रा (विशेषकर उत्तर-पश्चिम दिशा की) न करने दें ।

कर्क राशि- कर्क लग्न
आपकी जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में मंगल-केतु का योग आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए विपरीत फल देने वाला हो सकता है l यदि आप कोई नया भवन, भूमि, वाहन लेने जा रहे हैं तो आपको इन २८ दिनों के व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए । आपके सेवकों को कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपको तथा आपकी संतान को वाहन चलाते समय विशेष सावधानी रखने की आवश्कता है, आपकी संतान इस अवधिकाल में उत्तर दिशा की यात्रा भूलकर भी न करें ।

सिंह राशि- सिंह लग्न
छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंधों में मधुरता रहे इसका ध्यान रखें । कान और गले के रोगी  इस समय अपने चिकित्सकों के परामर्श से चलें । यह समय पराक्रम दिखाने का नहीं है अतः व्यर्थ के विवाद टाल दें । आपके माता-पिता को इस समय लंबी दूरी की यात्रा (विशेषकर उत्तर-पूर्व दिशा की) नहीं करनी चाहिए ।

कन्या राशि-कन्या लग्न
इन २८ दिनों में अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा अपनी वाणी के कारण विवाद में पड़ जाएंगे । अपने कुटुंब में  क्लेश की स्थिति उत्पन्न न होने दें ।  यदि आपके दांतों का कोई उपचार चल रहा है तो सावधानी से उपचार करवाएं । इन २८ दिनों में अनावश्यक लेन-देन से बचें अन्यथा कोई धन हानि हो सकती है । अपने दक्षिण नेत्र को 
शुद्ध जल से धोते रहें ।

तुला राशि-तुला लग्न
मंगल-केतु का यह योग आपके सिर के स्थान पर बनने से व्यर्थ की चिंताएं आपको घेर सकती हैं, यथासंभव आपको सिर की चोट आदि से बचना चाहिए । क्रोध में अपना आवेश न खोएं, जीवन साथी से विवाद की स्थिति को इन २८ दिनों के लिए टाल दें ।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
चिकित्सालय अथवा न्यायालय में आपका धन का व्यय न हो इसके लिए मंगल-केतु के मंत्रों का जाप करें, आपकी दादी के लिए ये समय कष्टकारी है । व्यर्थ के विवाद को अधिक न बढ़ाएं अन्यथा न्यायालय द्वारा दंडित किए जा सकते हैं । अपने वाम नेत्र को शुद्ध जल से धोते रहें । पैरों के नाखूनों को अच्छे से काट कर रखें अन्यथा उसमें चोट लगने की संभावना है।

धनु राशि-धनु लग्न
बड़े भाई-बहनों का स्वास्थ्य तथा उनसे आपके संबंध मधुर बने रहें इसका ध्यान रखें । हृदय तथा पेट के रोगी अपने चिकित्सकों से परामर्श करते रहें तथा संतान के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें । इन २८ दिनों में अपने छोटे बच्चों को वाहन आदि देने से आपको बचना चाहिए ।

मकर राशि-मकर लग्न
इस राशि-लग्न वाले जो जातक शासन तंत्र के आधीन कार्यरत हैं उन्हें विशेष सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा किसी विवाद में पड़ने से मानसिक चिंताएं बढ़ सकती हैं ।जो लोग सरकारी ठेके आदि लेते हैं उनके लिए भी २८ दिन का यह समय उत्तम नहीं है । घुटने तथा छाती की चोट आदि समस्या से आपको बचना चाहिए । माता तथा बड़े भाई- बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । अपनी माता तथा अपने बड़े भाई-बहनों को दक्षिण दिशा की यात्रा न करने दें ।

कुंभ राशि-कुंभ लग्न
आपको तथा आपके छोटे भाई-बहनों को इन २८ दिनों में  अनावश्यक यात्राओं( विशेषकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की) से बचना चाहिए । पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें । पढ़ते-लिखते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधे करके उचित अवस्था में बैठें । २८ दिन का यह समय काल आपके भाग्य के लिए अच्छा नहीं है अतः कोई नवीन कार्य करने के लिए इस समय के निकलने की प्रतीक्षा करें ।

मीन राशि-मीन लग्न
धन के अपव्यय से बचें तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, आपको भी अपनी पीठ तथा कटिबंध स्थान का ध्यान रखना चाहिए । भारी वस्तुएं उठाने से बचें तथा अपने पिता को किसी भी परिस्थिति में दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा न करने दें । इन २८ दिनों में आपके पिता को घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में निवास करने से बचना चाहिए ।

मंगल-केतु की युति के विषय में पूर्व में मेरा एक ब्लॉग आ चुका है और उसमें तब मैने जो भी Prediction की थीं वह सभी सत्य घटित हुई थीं । ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन कर रहे विद्वान मेरे पुराने ब्लॉग को पढ़कर इन २८ दिनों में घटित होने जा रही घटनाओं का पूर्व अनुमान लगा सकते हैं। मंगल-केतु युति के ऊपर मेरे पुराने ब्लॉग का लिंक—

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में मंगल व केतु पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ प्रभाव में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति इतनी अमंगलकारी नहीं होगी जितना कि उपरोक्त फलादेश में बताया गया है किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में मंगल और केतु पहले से ही अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पाप अथवा क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हुए तथा उन पर किसी भी प्रकार की शुभ दृष्टि न हुई और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए मंगल-केतु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी । ऐसे जातकों को अपने-अपने अधिकार की सीमा में भगवान् शंकर तथा हनुमान जी की उपासना करने से किसी भी प्रकार की कोई भी हानि नहीं होगी ।

"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

सूर्य के 'उच्च राशि' में प्रवेश के पश्चात भी संकट का कारण बनेगी सूर्य-राहु युति...


अपने पिछले ब्लॉग 'राहु केतु का राशि-परिवर्तन २०२२' में मैंने आप सभी को राहु के 'मेष' राशि और सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका' में प्रवेश के विषय में बताया था और उस ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए मैंने लिखा था कि समय-समय पर राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के ऊपर अलग से ब्लॉग बनाकर आपको जानकारी देने का प्रयास करूँगा ।
इस विषय पर मेरा पुराना ब्लॉग देखें -

उसी कड़ी में आज मैं आपको जानकारी देने जा रहा हूँ मेष राशि में स्थित 'राहु' के साथ होने वाली 'सूर्य' की युति की ।

'सूर्य' १४ अप्रैल २०२२ को प्रातः ८ बजकर ३३ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर मेष राशि के 'अश्वनी' नक्षत्र में प्रवेश करेंगे जहाँ वह १५ मई २०२२, प्रातः ५ बजकर २२ मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात 'वृष' राशि में प्रवेश कर जायेंगे।

सूर्य 'मेष' राशि में उच्च के हो जाते हैं तथा उसमें भी मेष राशि के १० अंश पर परम उच्च का फल देते हैं। जिस समय 'सूर्य' मेष राशि में प्रवेश करेंगे वहां उनका सामना १२ अप्रैल से संचार करते हुए 'राहु' के साथ होगा और गोचर में सूर्य-राहु की युति बन जाएगी तथा सूर्य- राहु की चपेट में आकर अपने शुभ फलों को देने में असमर्थ हो जायेंगे। 

जैसा कि मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में बता चुका हूँ कि राहु जिस भी ग्रह की राशि में स्थित होता है तथा जिस भी ग्रह से युति करता है अपने 'शनि' जैसे मारक प्रभावों के अतिरिक्त उस-उस ग्रह की छाया लेकर उनके भी प्रभाव ग्रहण कर लेता है। ऐसे में राहु- मंगल की राशि में स्थित होने तथा सूर्य की युति में आ जाने से मंगल तथा सूर्य के मारक प्रभाव भी ले लेगा और अपने अशुभ प्रभावों में कई गुना वृद्धि कर लेगा।

ऐसा राहु- सूर्य के उच्च राशि में स्थित होने पर भी उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके उच्च के सूर्य के शुभ फलों को नष्ट कर देगा तथा सूर्य से बनने वाले अवयवों (ह्रदय, पेट, दाहिना नेत्र तथा हड्डियां) को पीड़ित करके सभी जातकों को हानि पहुँचाने की चेष्ठा करेगा। जिसके कारण इस एक माह में विश्व भर में ह्रदय, पेट, दाहिने नेत्र तथा हड्डियों से सम्बंधित रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। अतः यदि कोई जातक पहले से ही इन चारों रोगों में से किसी एक रोग से पीड़ित है तो वह इस एक माह में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेता रहे।

इस एक माह के अवधिकाल में सूर्य-राहु की युति के दुष्परिणाम अंतरिक्ष में भी देखने को मिलेंगे। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चाहें तो अनुसंधान कर सकते हैं इस एक माह में सूर्य से उठने वाले वाले सौर तूफानों (Solar tsunami) में अत्यधिक वृद्धि होगी, जिससे कई देशों के सैटेलाइट नष्ट हो जायेंगे तथा इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक चक्रवात और भूकम्प आएंगे ।

सूर्य-राहु युति के इस अवधिकाल में ३० अप्रैल को सूर्यग्रहण लगेगा जिसके दुष्परिणाम आगामी ६ माह तक देखने को मिलते रहेंगे । विशेष रूप से पहले तीन माह तक इस सूर्य ग्रहण का दुष्प्रभाव बहुत अधिक रहेगा। यह सूर्यग्रहण भारत में मध्यरात्रि १२ बजकर १५ मिनट से शुरू होगा और फिर ३० अप्रैल की सुबह ४ बजकर ७ मिनट पर समाप्त होगा। भारत में यह आंशिक सूर्यग्रहण होगा और दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे भारत में यह कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह सूर्यग्रहण दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और अंटार्कटिका में ही दिखाई देगा और यहां यह ३० अप्रैल दोपहर १२:१५ बजे शुरू होकर शाम ४:०७ बजे समाप्त होगा। जिसके परिणामस्वरूप इन स्थानों पर आगामी ३माह के भीतर बड़े भूकंप और चक्रवात आयेंगे।

सूर्य-राहु की यह युति बड़े राजनेताओं व उच्च अधिकारियों के लिए भी बहुत अमंगलकारी है। इधर पहले से ही 'राहु' बड़े राजनेताओं और उच्च अधिकारियों के कारक 'सूर्य' के नक्षत्र 'कृतिका' में स्थित होने से विश्व के बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों को हानि पहुंचा रहे हैं और विश्व में कई देशों की सरकारें अस्थिर किए हुए हैं, ऊपर से 'सूर्य' के साथ युति करके उनको और अधिक हानि पहुंचाने की चेष्ठा करेंगे। अतः इस एक माह के अवधिकाल में विश्व भर में बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है, जिसका कारण अधिकांशतः हृदय घात ही होगा। इसके अतिरिक्त कई देशों में बड़े राजनेताओं को राजनैतिक अस्थिरता एवं सहयोगी मित्रों से छल की स्थिति का सामना करना पड़ेगा ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए राहु के अशुभ फलों से बचाव के उपाय-
जिन जातकों को राहु अशुभ फल दे रहे हैं वह योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से राहु की वेदोक्त अथवा तंत्रोक्त विधि से विधिवत् शांति करवा लें और स्वयं उनके बीज मंत्र का जाप करें व शनिवार के दिन राहु के निमित्त दान करें । नीला रंग धारण न करें तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा करने और इस दिशा में निवास करने से बचें । राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के उच्च कोटि के मंत्रों का रुद्राक्ष की माला से विधिवत् जाप करें। पुरानी लकड़ी व धूल घर में एकत्र न होने दें और तम्बाकू का सेवन कदापि न करें ।

राहु के निमित्त दान- नीला वस्त्र, नारियल (जटाओं वाला), शीशा (कांच), कंबल, मूली, सुरमा, सप्त धान्य, गोमेद, खड्ग, नीले पुष्प आदि । इसके अतिरिक्त कौवे को मीठी रोटी खिलाने, चींटियों को भोजन देने तथा काली बिल्ली को दूध पिलाने (बिल्ली को घर में पालना नहीं है) से भी राहु देवता प्रसन्न होकर अपने दुष्प्रभावों को अल्प अथवा समाप्त कर देते हैं

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में सूर्य पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ स्थिति में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति उतनी अशुभकारी नहीं होगी किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में सूर्य अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पहले से ही राहु, शनि, केतु के पाप प्रभाव में हुए और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 21 मार्च 2022

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2022

गोचर में 12 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 17 मिनट पर (दिल्ली समयानुसार) अपनी वक्री गति से राहु व केतु क्रमशः 'वृष व वृश्चिक' राशि से निकलकर 'मेष व तुला' राशि में प्रवेश करेंगे, जहाँ वह 30 अक्टूबर 2023 दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात क्रमशः 'मीन व कन्या' राशि में चले जायेंगे। लगभग 18 महीने के इस अवधिकाल में राहु-केतु, सवा दो-सवा दो नक्षत्रों में संचार करेंगे जिसके कारण सभी जातकों को इनके भिन्न-भिन्न परिणाम देखने को प्राप्त होंगे। 

राशि परिवर्तन के आरम्भ में राहु- सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका', तत्पश्चात शुक्र के नक्षत्र 'भरणी' और केतु के नक्षत्र 'अश्वनी' में संचार करेगा और केतु- गुरु के नक्षत्र 'विशाखा', तत्पश्चात राहु के नक्षत्र 'स्वाति' और मंगल के नक्षत्र 'चित्रा' में प्रवेश करेगा । 

राहु-केतु खगोलीय दृष्टि से कोई ग्रह भले ही ना हों किन्तु ज्योतिष शास्त्र में इनका बहुत अधिक महत्व है। यह दोनों ग्रह एक दूसरे के विपरीत बिंदुओं पर समान गति से गोचर करते हैं। अपना कोई भौतिक आकार ना होने के कारण राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है। राक्षस जाति और स्वभाव से क्रूर होने के कारण शनि के साथ-साथ इन दोनों ग्रहों को भी पापी ग्रहों की संज्ञा दी गयी है। यह दोनों ग्रह जिस राशि तथा जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, उनकी भी छाया ग्रहण कर लेते हैं और अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। यदि यह बृहस्पति जैसे शुभ ग्रह के साथ आ जाएँ तो स्वयं तो अपने स्वभाव में शुभता ले आते हैं परन्तु बृहस्पति को दूषित करके गुरु-चांडाल दोष बना देते हैं और ऐसा बृहस्पति भी अपनी दशा-अन्तर्दशा में अशुभ फल देने लगता है। 

यदि यह शनि जैसे पापी अथवा सूर्य, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के साथ बैठ जाते हैं तो उनकी छाया लेकर अपने पापत्व और क्रूरता में कई गुना वृद्धि करके जातक का जीवन नष्ट कर देते हैं। ऐसे राहु-केतु जातक की जन्म-कुंडली में जिस भी भाव पर बैठ जाते हैं, वहां के सभी शुभ फलों को पूर्णतः नष्ट कर देते हैं और वह भाव तथा उसमें स्थित राशि जिन शाररिक अंगों को बनाती है उन अंगों में भयानक रोग प्रकट कर देते हैं। 

यह दोनों पापी ग्रह जिस नक्षत्र में होते हैं वह नक्षत्र शरीर के जिस अंग को बनाता है उस अंग में बार-बार कोई समस्या आती रहती है। यही कारण है कि बहुत सारे लोगों के बार-बार एक ही अंग में चोट लगना, पीड़ा होना अथवा ऑपरेशन होने जैसी समस्या अधिकांशतः हमें देखने को मिलती रहती हैं। 

मैंने अपने ज्योतिष के Professional Career में ऐसी अनेक जन्म-कुंडलियों का विश्लेषण करके यह अनुसन्धान किया है कि राहु-केतु की युति जिन भी ग्रहों के साथ हुई है, इन दोनों पापी ग्रहों ने उन ग्रहों से निर्माण होने वाले शारिरिक अंगों में रोग, चोट, ऑपरेशन आदि करवाये हुए हैं। यही कारण है कि अनेक बार राहु-केतु के उच्च राशि अथवा शुभ स्थिति में होते हुए भी मैं जातक को इनके रत्न धारण नहीं करवाता क्यूंकि ऐसी स्थिति में जहाँ इनके रत्न जीवन को नयी ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाले सिद्ध होते हैं वहीं दूसरी ओर वह शरीर के उन अंगों को पीड़ित भी कर देते हैं जिस अंग को बनाने वाले नक्षत्र-राशि-भाव में राहु-केतु स्थित होते हैं। 

उदाहरण स्वरुप- यदि राहु-केतु की युति सूर्य के साथ हो जाये तो जातक को सूर्य से उत्पन्न अवयवों (पेट, ह्रदय, दाहिना नेत्र, हड्डियां) में कोई ना कोई समस्या अवश्य रहेगी तथा सूर्य का पिता के कारक होने से पिता को भी गंभीर रोग रहेंगें और अनेक बार उनकी मृत्यु का कारक हार्ट अटैक बनेगा। इस विषय पर आप सभी मेरा चिकित्सा ज्योतिष (Medical Astrology) पर लिखा गया ब्लॉग देख सकते हैं। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

इन सब कारणों से राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है क्यूंकि इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे- 

राहु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव- 

मेष राशि - मेष लग्न

लग्न में शत्रु राशि के राहु के संचार करने के कारण सिर की चोट से बचाव करें। सिर पर राहु के विराजमान होने से मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन बना रहेगा अतः अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें अन्यथा राहु की सप्तम दृष्टि विवाह स्थान पर होने से आपके वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकती है। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः संतान व पिता स्थान पर होने के कारण आपकी संतान और पिता के स्वास्थ्य के लिए भी यह समय कष्टकारी सिद्ध होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां विशेष सावधानी रखें, यदि आप या आपके पिता पहले से ही ह्रदय से सम्बंधित रोगों से ग्रसित हों तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

वृष राशि - वृष लग्न

आपके बड़े भाई-बहन, छोटी बुआ, चाचा की धन हानि तथा उनके दाहिने नेत्र या दांतों में और आपके बाएं नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई कष्ट उत्पन्न हो सकता है। 12वें भाव में मंगल की राशि का राहु आपकी दादी की आयु और उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। माता को पीठ व कमर की चोट से बचाव करें। आपका खर्चा हॉस्पिटल या कोर्ट केस आदि में ना हो इसके लिए राहु के दान व विधिपूर्वक उनके मन्त्रों का जाप करें तथा इस अवधिकाल में नीला रंग धारण करने से बचें। यदि आपने किसी से कोई ऋण लिया हुआ है तो उसको उतार दें अन्यथा आपका धन चिकित्सालय अथवा कोर्ट केसों में निकल जायेगा। 

मिथुन राशि - मिथुन लग्न

बड़े भाई-बहन, चाचा व छोटी बुआ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और माता की आयु की सुरक्षा करें। राहु गोचर में आपके 11वें भाव में संचार करेंगे अतः पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। राहु की सप्तम दृष्टि आपकी संतान के लिए कष्टकारी है अतः इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं विशेष सावधानी रखें। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है। इन सब नकारात्मक बातों के पश्चात भी राहु जब भरणी नक्षत्र में संचार करेंगे तो उस अवधिकाल में लाभ स्थान में होने से आपके लाभ में कई गुना वृद्धि करवायेंगे। 

कर्क राशि - कर्क लग्न

दशम भाव में शत्रु राशि का राहु आपके राजनैतिक कैरियर, आपकी नौकरी तथा आपके पिता के धन के लिये हानिकारक है। सरकारी विवाद से बचें। पिता के दांतों तथा दाहिने नेत्र तथा आपके स्वयं के घुटनों में कोई समस्या आ सकती है। अपनी सास की आयु की सुरक्षा करें। राहु की पंचम शत्रु दृष्टि आपके धन-कुटुंब के लिए अच्छी नहीं है अतः अपने ऋणों से मुक्ति प्राप्त कर लें अन्यथा आपका धन कहीं और निकल जायेगा। यदि आप सरकारी नौकरी में हैं और आपकी जन्मकुंडली में भी आपका दशम भाव-दशमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हुआ तो इस समय आपकी नौकरी जा सकती है। 

सिंह राशि - सिंह लग्न

नवम भाव में राहु का संचार आपके पिता, छोटा साला-छोटी साली के स्वास्थ्य तथा आयु के लिए अच्छा नहीं है, इसकी आपके लग्न पर शत्रु तथा संतान भाव पर नीच दृष्टि आपके व आपकी संतान के लिए भी अनिष्टकारी है। स्वयं अपने सिर, पीठ व कमर की चोट से बचाव करें तथा संतान की सुरक्षा के लिए राहु के मन्त्रों के जाप और उनके दान करें तथा पिता की आयु की सुरक्षा के लिए राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के मन्त्रों के जाप करें। इस अवधिकाल में देश में होने वाली यात्राओं को यथासंभव टालने का प्रयास करें। 

कन्या राशि - कन्या लग्न

अष्टम भाव में शत्रु राशि का राहु आपको अत्यधिक मानसिक पीड़ा और डिप्रेशन देने जा रहा है, यह आपकी आयु का स्थान भी है अतः आत्महत्या जैसे महापाप को करने के विचार से भी बचें। इस समय आपके जीवन साथी के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आ सकती है तथा उनके धन-कुटुंब के लिए भी यह समय ठीक नहीं है। आपके पिता को बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि आपके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उनको उसमें पराजय का सामना करना पड़ेगा। इस अवधिकाल में आपकी माता को पेट में भी कोई समस्या आ सकती है। इस समय आपके छोटे-मामा मौसी विदेश यात्रा ना करें और आप गहरी नदियों व समुद्री स्थानों से दूर रहें। 

तुला राशि - तुला लग्न

राहु का आपके सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए अशुभकारी है। यदि आप व्यापार में किसी के साथ पार्टनरशिप में हैं तो विवाद की स्थिति से बचें। अपनी बड़ी बुआ तथा ताऊ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। सप्तम के राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः आपके एकादश और तृतीय भाव में पड़ने से आपके भाई बहनों के लिए यह समय अशुभकारी है। पैरों तथा हाथों की चोट से सावधान रहें और यदि आप स्त्री हैं तो नीच प्रकृति के पुरुषों से दूर रहें तथा एकांत स्थान पर अकेले जाने से बचें। इस राशि-लग्न वाले जातकों की जन्मकुंडली में 'शुक्र' यदि अपनी नीच या शत्रु राशि अथवा अस्त व पाप प्रभाव में हुए तो इनके यौन अंगों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

वृश्चिक राशि - वृश्चिक  लग्न

इस डेढ़ वर्ष के अवधिकाल में आपको दुर्घटना से बचाव करने की आवश्यकता है। यदि आप पहले से ही किडनी, आंतो, पेंक्रियाज अथवा लिवर की समस्या से पीड़ित हैं तो यह समय आपके लिए बहुत कष्टकारी है । आप यदि मधुमेह के रोगी हैं तो अपनी शुगर का ध्यान रखें। इस समय आपके शत्रु आपको चोट पहुँचाने का प्रयास करेंगे, सावधान रहें। आपके जीवन साथी को अपने बायें नेत्र, एड़ी-पंजो तथा आपको अपने घुटनों की चोट से भी बचाव करना होगा। इस समय आपकी संतान की धन हानि के योग बने हुए हैं तथा उनको दांतों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके धन-कुटुंब भाव पर है अतः कर्ज लेने से बचें अन्यथा चिंता ग्रसित हो जायेंगे। कुटुंब में व्यर्थ के विवाद से बचें। बचाव के लिए योग्य वेदपाठी विद्वानों से विधिवत श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ तथा यज्ञ करवायें। 

धनु राशि - धनु लग्न

यह समय आपकी संतान के लिए शुभ नहीं है। यदि आप गर्भवती महिला हैं तो बहुत सावधानी रखें, गर्भपात हो सकता है। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको परीक्षाओं में प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होंगे। अपने पेट व ह्रदय का ध्यान रखें। राहु की पंचम दृष्टि आपके पिता के लिए हानिकारक है, यदि वह पहले से ही ह्रदय रोगी हैं तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें। अपनी माता के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आने के योग बन रहे हैं। स्वयं आप सिर,पीठ व कमर की चोट आदि से बचें। इस अवधिकाल में आपको आपके इष्ट देवता के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। राहु के मन्त्रों का जाप तथा उनके दान करें। नीले वस्त्रों को धारण करने से बचें। 

मकर राशि - मकर लग्न

शत्रु राशि के राहु के आपके चतुर्थ भाव में गोचर करने के कारण यह समय आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं। इस समय यदि आप कोई प्रॉपर्टी अथवा वाहन लेने जा रहे हैं तो बहुत विचार करके ही लें। यदि आपका आपकी किसी संपत्ति पर विवाद चल रहा है तो आगामी डेढ़ वर्ष उस विवाद को टालने का प्रयास करें। इस अवधिकाल में राहु आपके तथा अपनी पंचम दृष्टि से आपके ससुराल के सुख में भी कमी करेगा तथा आपके जीवन साथी के धन की हानि करेगा। स्वयं के वाहन द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा से बचें। हॉस्पिटल का यदि कोई खर्च रुका हुआ हो तो उसको हो जाने दें। 

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न

भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें उनके लिए यह समय अनुकूल नहीं है। स्वयं का गले-छाती के रोगों से बचाव करें। आगामी डेढ़ वर्ष तक कोई विदेश यात्रा करने तथा मित्रों से विवाद की स्थिति से बचें। इस समय आपके बड़े मामा-मौसी की धन की हानि तथा उनके दाहिने नेत्र व दांतों में पीड़ा के योग बन रहे हैं। हाथ-पैरों की चोट से बचें। इस अवधिकाल में आपके जीवन साथी को पीठ अथवा कमर में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

मीन राशि - मीन लग्न

द्वितीय भाव में शत्रु राशि में स्थित राहु आपके धन की हानि करवाता रहेगा। अतः यदि कोई ऋण हो तो उससे मुक्ति प्राप्त कर लें। इस अवधिकाल में आपके दांतों तथा दाहिने नेत्र में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह समय आपके कुटुंब के लिए बहुत विनाशकारी है। वाणी स्थान पर बैठे राहु आपसे कड़वी वाणी का उपयोग करवायेंगे जिसके कारण आप लोगों को अपने शत्रु बना लेंगे, अतः सोच समझ कर बोलें। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि आपको किडनी, आंतों, पेंक्रियाज, लिवर तथा घुटनों में कोई समस्या ना दे इसके लिए राहु के दान करें तथा उनके मन्त्रों का जाप करें। 


केतु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव-

स्वभाव से राहु के समक्ष केतु थोड़े कम पापी ग्रह माने जाते हैं परन्तु फलित करते समय यह भी राहु से कम विध्वंसकारी नहीं होते। गोचर में जब-जब केतु की युति मंगल अथवा शनि से होती है तो संसार में अग्निकांड और विषैली गैसों से होने वाली दुर्घटनायें कई गुना बढ़ जाती हैं। यदि किसी की जन्मकुंडली के किसी भाव में पहले से ही मंगल-केतु, मंगल-शनि की युति हो और उसकी दशा-अंतर्दशा भी इन्हीं ग्रहों की चल रही हो तथा गोचर में भी उसी भाव में यह युति बन जाये तो इनकी यह युति जातक के उस शारिरिक अंग के लिए बहुत कष्टकारी होती है जिसको वह भाव बनाता है और कई बार जातक का वह अंग-भंग तक हो जाता है। अतः ऐसी स्थिति में सभी को इन ग्रहों के दान व शांतियाँ अवश्य करवा लेनी चाहिए, इससे इनके अशुभ प्रभाव में बहुत कमी आ जाती है और यह अपना सम्पूर्ण अशुभ फल ना देकर छोटी-मोटी चोट, खरोंच आदि देकर आगे निकल जाते हैं। 

सभी राशि लग्नों पर केतु का फलादेश भी लगभग राहु के सामान अशुभ फल देने वाला ही होगा, ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए इसके अलग से फलादेश करने की आवश्यकता नहीं है। सभी जातक अपनी-अपनी राशि लग्नों पर इसको राहु के जैसा अशुभ फल देने वाला ही मानें। अधिक जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग स्पॉट पर केतु से सम्बंधित दिए गए अन्य ब्लॉग पढ़ें। इसमें 'महामारियों का कारण व निवारण', गोचर में मंगल-केतु युति व 'आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति' अवश्य पढ़ें। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/09/blog-post.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/03/mahamariyon-ka-kaaran-aur-nivaran.html

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/02/blog-post.html

नोट- यहाँ केवल राहु-केतु के राशि परिवर्तन से प्रकट होने वाले परिणामों का वर्णन किया गया है, किसी अन्य ग्रहों के गोचर में राशि परिवर्तन से पड़ने वाले शुभाशुभ परिणामों का नहीं। इसके अतिरिक्त विषय की विस्तारता को ध्यान में रखते हुए इन 18 महीनों में राहु-केतु के साथ ही गोचर में भ्रमण करते हुए अन्य ग्रहों की राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के परिणामों का भी उल्लेख यहाँ पर नहीं किया जा सकता है। यदि संभव हुआ तो आगामी समय में किसी अन्य ब्लॉग के माध्यम से मैं आप सभी के लिए वह फलादेश भी उपलब्ध करवा दूंगा।

राहु-केतु के क्रमशः अपने परम शत्रुओं (मंगल-शुक्र) की राशियों में संचार करने के कारण इन डेढ़ वर्षों में राहु व केतु बहुत उपद्रव मचाने जा रहे हैं जिससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा। 'मेष' राशि हमारे सिर (Head) और 'तुला' राशि हमारे यौन अंगों (Sex Organs) का निर्माण करती है, राहु-केतु का इन राशियों में संचार करना आगामी डेढ़ वर्ष तक विश्व भर में इन अंगों से सम्बंधित रोगियों की मात्रा में भारी वृद्धि करने जा रहा है। इस अवधिकाल में सड़क दुर्घटनाओं में सिर में चोट लगकर मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलेगी। अतः जो लोग सड़क यात्रा के समय मोटरसाईकिल आदि वाहनों का प्रयोग करते हैं वह हेलमेट का प्रयोग अवश्य करें। सेना-पुलिस-अर्ध सैनिक बलों के हमारे जवान भी यथासंभव सिर की चोट से बचने का प्रयास करें। 

यदि किसी जातक की जन्म-कुंडली में राहु व केतु शुभ ग्रहों की राशि में शुभ ग्रहों के साथ स्थित हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का राशि परिवर्तन उतना अनिष्टकारी नहीं होगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अपनी नीच व शत्रु राशियों में पापी अथवा क्रूर ग्रहों के साथ स्थित हुए और उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध होगा।  

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 20 मई 2021

ज्योतिष का रहस्य : भाग - २


भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं वैदिक ज्योतिष के कुछ गूढ़ रहस्यों को प्रकट करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरा यह लेख ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को अनन्त काल तक दिशा प्रदान करता रहेगा। 

अपने इतने वर्षों के अध्ययन, शोध और Professional Career से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैंने यह पाया कि यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो, नीच राशि में हो और वह नीचभंगता को भी प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो वह ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर अशुभ फल ही देगा। 

यही नहीं, ऐसा ग्रह उस जातक के जन्म और चंद्र लग्न दोनों ही पर लगाए जाने वाले गोचर में यदि शुभ स्थिति में भी भ्रमण कर रहा होगा तब भी वह उस जातक को उतना शुभ फल देने में समर्थ नहीं हो सकेगा जितना किसी अन्य जातक को देगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में उस ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है।  

इसके विपरीत यदि कोई ग्रह किसी जातक की जन्मकुण्डली में शुभ स्थिति में है तो ऐसा ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर शुभ फल ही देगा। ऐसा ग्रह गोचर में यदि अशुभ स्थिति में भी भ्रमण करेगा तो भी वह ग्रह उस जातक को उतना अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होगा जितना किसी अन्य के लिए होगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में वह ग्रह शुभ स्थिति में है। 

साधारणतः ज्योतिषी इन बातों पर तो विचार कर लेते हैं कि ग्रहों का बलाबल कितना है ? नवांश कुण्डली में उनकी स्थिति कैसी है ? पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की किससे मित्रता-शत्रुता है ? ग्रह कारक-अकारक-मारक में से कौन सा है ? ग्रह को केन्द्राधिपति दोष तो नहीं है ? कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हो गया ? आदि-आदि ! 

किन्तु सूक्ष्म परीक्षण करते समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि वह ग्रह जिन राशियों के स्वामी हैं, उन राशियों में कौन -कौन से ग्रह स्थित हैं क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि यदि कोई ग्रह जिस भी राशि में होगा उस राशि के स्वामी ग्रह की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर वह ग्रह भी पीछे से अपना फल अवश्य देगा। 

उदाहरण के लिये मान लेते हैं किसी जातक की शुक्र की २० वर्ष की महादशा आरम्भ हुयी और और शुक्र की दोनों राशियों (वृष-तुला) पर राहु व शनि बैठे हैं और जन्मकुंडली में शुक्र अत्यन्त शुभ स्थिति में हैं, योगकारक भी हैं, तब भी ऐसे शुक्र की महादशा उस जातक को उतना शुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि इस पूरी शुक्र की महादशा में जब-जब शुक्र की अन्तर्दशा , प्रत्यन्तर्दशायें, सूक्ष्म दशायें और प्राणदशायें प्राप्त होंगी, तब-तब शुक्र की दोनों राशियों पर बैठे राहु- शनि भी पीछे से अपना अशुभ फल देते रहेंगे और इसे देखकर बड़े-बड़े ज्योतिषी भी अचंभित रह जायेंगे कि इतने अच्छे शुक्र की महादशा में भी जातक दुखी जीवन व्यतीत करने पर विवश है। 

यही नियम उन अशुभ ग्रहों की महादशाओं पर भी लगाया जायेगा, जिनकी राशियों पर कोई शुभ ग्रह स्थित है। तब ऐसे जातक को वह अशुभ ग्रह की महादशा भी उतना अशुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि उसकी राशियों पर स्थित शुभ ग्रह भी पीछे से अपना शुभ फल देंगे और यहाँ भी ज्योतिषी अचंभित रह जायेंगे कि इस जातक को इतने अशुभ ग्रह की दशा प्राप्त होने पर भी इसका समय इतना अच्छा कैसे व्यतीत हो रहा है। 

बात यहीं समाप्त हो जाती तो भी ठीक था परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र इतना विशाल समुद्र है कि जिसका पार पाना सबकी क्षमता की बात नहीं है, यह इसलिए क्योंकि अभी हमने नक्षत्रों की तो बात की ही नहीं। 

जब बात आती है कुण्डली के सूक्ष्म परीक्षण की तो हमें यह भी देखना होगा कि जातक की जन्मकुण्डली में सभी नवग्रह किन-किन नक्षत्रों पर स्थित हैं तथा जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही है, उस ग्रह के नक्षत्र पर कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं क्यूंकि पीछे से वह ग्रह भी उस दशा-अन्तर्दशा में अपना फल जातक को देता है जो दशापति के नक्षत्र पर स्थित होता है तथा दशापति ग्रह स्वयं उस ग्रह का भी प्रभाव लेकर कार्य करता है, जिसके नक्षत्र पर वह स्वयं स्थित होता है। 

अतः जब भी कोई जातक अपनी जन्मकुण्डली का परीक्षण करवाने हमारे पास आये तो हमें उसकी जन्मकुण्डली में इन सब बातों का ध्यान पूर्वक सूक्ष्म परीक्षण करके उसकी जन्मकुण्डली को दो भागों में विभक्त करना चाहिये। जिसमें प्रथम भाग में उसकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों को रखना चाहिये तथा द्वितीय भाग में अशुभ ग्रहों को। जिससे शुभ ग्रहों को ज्योतिषीय उपायों द्वारा और अधिक शक्ति प्रदान करके, उनके शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि की जा सके तथा अशुभ ग्रहों के दान, व्रत और उनकी विधिवत् शांति आदि करवाकर उनके अशुभ फल देने की क्षमता को न्यूनतम स्थिति में लाकर भविष्य में उस जातक के साथ घटित होने जा रही दुर्घटना-विपत्ति आदि की संभावनाओं को टाला जा सके। 

"शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 18 अप्रैल 2021

जीवन में नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव एवं उपाय

 भगवान शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं उस रहस्य को प्रकट करने जा रहा हूँ जिसके कारण करोड़ों मनुष्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं।


आपने अनेक बार देखा होगा कि जब भी कभी आप कोई शुभ कार्य करने का विचार मन में लायें और उसमें अनेक प्रकार के व्यवधान आयें तो हो सकता है कि कोई अदृश्य ऊर्जा आपको उसे क्रियान्वित करने से रोक रही है, तो ऐसी स्थिति में समझ लेना चाहिए कि आप किसी नकारात्मक ऊर्जा की चपेट में आ चुके हैं।


वह ऊर्जा आपके रुष्ट पूर्वजों के रूप में हो सकती है, ब्रह्मांड में विचरण करती हुई कोई अत्यन्त क्रोधी अतृप्त आत्मा हो सकती है अथवा आपके शत्रु द्वारा आपके ऊपर किये गए षट्कर्म (मारण, सम्मोहन,वशीकरण,विद्वेषण,स्तंभन और उच्चाटन) में से कोई एक अभिचारिक प्रयोग के फलस्वरुप उत्पन्न कोई ऐसी घोरतम ऊर्जा हो सकती है जो केवल आपके विनाश के लिए ही भेजी गई हो।


यदि ऐसा है तो आपकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों के योग भी अपनी दशा आने पर आपकी रक्षा कर सकने में समर्थ नहीं होते और व्यक्ति यह विचार करने पर विवश हो जाता है कि ज्योतिषी के द्वारा वर्णित किया गया मेरी जन्म-कुंडली का उत्तम फलादेश क्या केवल मिथ्या मात्र है ?

ऐसी स्थिति में सर्वप्रथम आवश्यक है उस ऊर्जा का परिज्ञान किया जाए जो जातकों के Subconscious Mind (अवचेतन मन) को अपने नियंत्रण में लेकर उसके जीवन का सर्वनाश कर रही है।

वर्तमान में यह शक्तियां इसलिये भी अत्यन्त प्रबल हो चुकी हैं क्यों कि मनुष्य मदिरा और मांसाहार का प्रयोग करके स्वयं तमोगुणी होकर अत्यंत घोर तमोगुणी ऊर्जा (Negative Energy) को अपनी ओर आकर्षित करके अपनी सकारात्मक ऊर्जा ( Positive Energy) को नष्ट कर रहे हैं। ऐसे मनुष्यों को दीर्घ काल तक यह ज्ञात ही नहीं हो पाता कि वो दैवीय ऊर्जा के नियंत्रण से बाहर निकलकर किसी और ही ऊर्जा के द्वारा कब और कैसे संचालित होने लगे।


ऐसे जातक जिनके जीवन या तो नष्ट हो चुके हैं अथवा नष्ट होने की स्थिति में है, जब मैंने उनकी जन्म-कुंडलियों का निरीक्षण किया तो यह पाया कि ऐसी नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित जातकों की उस समय राहु अथवा केतु की महादशा-अन्तर्दशा चल रही थीं क्योंकि राहु-केतु की दशा-अन्तर्दशा में मनुष्य बड़ी सरलता से इन नकारात्मक ऊर्जाओं की चपेट में आ जाता है।

यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब ऐसे व्यक्ति का सूर्य-चंद्रमा भी अशुभ स्थिति में हों क्योंकि सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा कारक तथा चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है, ऐसे में यदि यह दोनों ग्रह भी जन्म-कुंडली में पाप प्रभाव में अथवा अशुभ स्थिति में आ जाएं तो व्यक्ति अपनी आत्मा तथा मन पर नियंत्रण न होने से नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में घिरकर जीवन भर घोर दुःख उठाता रहता है ।

ऐसे में इस तमोगुणी ऊर्जा से अपने जीवन को नष्ट होने से बचाने के लिए मैं कुछ उपाय बताने जा रहा हूँ, जिससे मेरी यह देह भगवान शंकर के चरणों में विलीन होने के उपरांत भी इस ज्ञान का उपयोग करके मनुष्य अनन्त काल तक अपने जीवन को सुखमय बनाते रहें...

1- किसी योग्य ज्योतिषी से अपनी जन्मकुंडली का परीक्षण करवाकर उन ग्रहों के रत्न धारण करें जो ग्रह आपकी कुंडली में शुभ हों तथा उन ग्रहों की विधिवत शांति करवा लें जो आपकी कुंडली में अशुभ स्थिति में हों।


2- अपनी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों के रंगों का प्रयोग न करें, न ही उनकी दिशाओं में निवास करें । यदि शनि-राहु की स्थिति जन्मकुंडली में शुभ भी हो तो भी काले-नीले रंगों का प्रयोग न करें।

3- भवन निर्माण के समय भूमि तथा उसके वास्तु का ध्यान रखें। अनेक वास्तु दोषों से युक्त भवन को अति शीघ्र ही त्याग दें।

4- घर में पुरानी लकड़ी, अधिक लोहा न रखें तथा धूल और दूषित जल एकत्र न होने दें।

5- मांस-मदिरा का सेवन न करें।

6- घर में सीलन न आने दें तथा घर की नालियों में बहने वाले जल प्रवाह को जाम न होने दें।

7- ऐसी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं जो आपके उपयोग में नहीं आ रहीं उन्हें तत्काल घर से बाहर कर दें, उनसे निकलने वाला विकिरण न केवल नकारात्मक ऊर्जा को आप तक लाता है, आपके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।

8- घोर मानसिक अशांति उत्पन्न करने वाले टीवी प्रोग्राम ( उदाहरणार्थ-बिगबॉस एवं अश्लील भौंडे नाच गाने वाले) जिसको देख कर आपके मस्तिष्क में नकारात्मक रसायन प्रवाहमान होते हों , उन्हें तिलांजलि दे दें।

9- संभव हो तो देशी गाय के गोबर से घर के फर्श को लीपें और यदि पक्के फर्श हों तो उन पर नित्य सेंधा नमक मिश्रित जल से पोंछा लगाएं।

10- घर में पवित्र मंत्रों, शंख व घण्टों की ध्वनि होते रहने की व्यवस्था करें।

11- गुग्गल, संब्रानी, कपूर आदि का धुआँ दें तथा देव मूर्तियों की आरती करके उस आरती को स्वयं लेकर अपना आभामंडल (Aura) ठीक करें ।


12- घर में तुलसी एवं अशोक जैसे वृक्ष लगाएं ।

13- वर्ष भर में आने वाले सिद्ध मुहूर्तों का समय उच्च कोटि की साधना में दें ।

14- रात्रि के समय खुले आकाश के नीचे शयन न करें और न ही मीठा दूध आदि पीकर खुले अन्तरिक्ष के नीचे जाएं क्योंकि आप नहीं जानते वहां उस समय कौन सी शक्तियां विचरण कर रही हों।

15- चौराहों से निकलने के समय ध्यान दें किसी ऐसी वस्तु पर पैर न पड़ जाएं जो श्रापित हो अथवा किसी के द्वारा अपना उतारा करके रखी गयी हो।

15- एक क्षण भी अपवित्र न रहें, प्रतिदिन स्नान करें, सम्भव हो तो जल में पवित्र औषधियां मिला लें।

16- बाहर से आने वाले जूते-चप्पल घर से बाहर ही रखें, घर में प्रवेश करने से पूर्व पैरों को जल से धो लें।

17- दिन ढलने के उपरान्त देशी गाय के घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाएं जो रात्रि भर जलता रहे।

18- दूसरों की सुख समृद्धि से द्वेष तथा लोभी आचरण करके अपनी Aura में अपने लिए नकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रवेश स्थान न दें क्योंकि दूसरों से द्वेष रखने वाले तथा लोभी मनुष्य के सभी जप, तप, पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं।

19- योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में स्फटिक, रुद्राक्ष और Black Tourmaline का उपयोग करें।

20- अपने उन सभी पूर्वजों को प्रतिदिन प्रणाम करें जो अपने अन्त काल तक ज्ञान वृद्ध रहे हों।


21- भगवान शंकर और देवी महामाया महाकाली की उच्च कोटि के मंत्रों से आराधना करें, क्योंकि समस्त तमोगुणी शक्तियां और यह चराचर जगत उन्हीं के तो अधीन हैं ।

''शिवार्पणमस्तु''

-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति

 


अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपने सभी ज्योतिषी बंधुओं का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा-

आप सभी जानते हैं कि जब-जब गोचर में चंद्र-केतु, चंद्र-राहु, चंद्र-शनि का योग बनता है अथवा अमावस्या (क्षीण चंद्र) के आसपास का समय होता है, तब-तब जातकों को घोर मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यदि जातकों की दशा-अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की चल रही होती है अथवा वह शनि की अशुभ ढैया-साढ़े साती के प्रभाव में होते हैं तो उनके मन में आत्महत्या करने तक के विचार आने लगते हैं।

अब से डेढ़ वर्ष पूर्व जब राहु, चंद्रमा की राशि कर्क में स्थित थे तब हम सभी ने देखा कि कर्क राशि में राहु के संचार के उन 18 महीनों में गोचर में जब-जब चंद्र-राहु का योग बना तब-तब विश्व भर में कितनी आत्महत्या हुईं।

आज वही समस्या फिर हमारे समक्ष उत्पन्न होने जा रही है जब 23 सितम्बर को राहु-केतु राशि परिवर्तन कर लेंगे। राहु वृष तथा केतु चंद्रमा की नीच राशि वृश्चिक में प्रवेश हो जाएंगे। ऐसे में, गोचर में चंद्रमा 12 अप्रैल 2022 तक, जब-जब अपनी नीच राशि वृश्चिक में प्रवेश करेगा वहां वह पहले से ही स्थित केतु के पाप प्रभाव की चपेट में भी आ जायेगा।

जरा विचार करिये ऐसे में उन सवा दो दिनों में जातक के मन की स्थिति क्या होगी ? ऐसे में जिन जातकों की जन्म-कुण्डली में पहले से ही चंद्रमा नीच राशि में अथवा पाप ग्रहों के प्रभाव में हुआ और उनकी दशा-अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की चल रही हुई तो क्या वह जातक उन सवा दो दिनों में आत्म-हत्या का प्रयास नहीं करेंगे ?

अतः आगामी डेढ़ वर्ष सभी ज्योतिषियों को यह ध्यान रखना होगा कि ऐसे जातकों को वह किस प्रकार से डिप्रेशन की स्थिति से बाहर निकाल सकते हैं और उनका जीवन बचा सकते हैं ।

यहां मैं सभी पाठकों को और विशेषकर मानसिक रोगियों के लिये आत्म-हत्या की इच्छा से बचने के लिए कुछ उपायों को बताने जा रहा हूँ, ज्ञानीजन कृपया गहनता से संदेश को समझें...

1- जन्म-कुंडली में मन का कारक चंद्रमा यदि शुभ स्थानों का स्वामी हो अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो उत्तम प्रकार का 'सच्चा मोती' और चांदी धारण कर लें तथा जिन पाप ग्रहों ने चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं चद्रमा को पीड़ित किया हुआ हो उनकी शांति करवा लें।

2- किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास जाकर अपनी चिकित्सा करवा लें तथा उनके द्वारा दी गयी औषधियों का सेवन करें।

3- किसी आध्यात्मिक धर्म गुरु की शरण में चले जायें और उनके सानिध्य में योग-ध्यान करें।


4- कभी भी अकेले न रहें, हमेशा मित्रों, बन्धु-बांधवों के साथ भीड़ में रहें और स्वयं को व्यस्त रखने के लिए हमेशा कुछ न कुछ करते रहें।

5- नशीली वस्तुओं के प्रयोग से स्वयं को दूर रखें। 

6- भगवान शंकर के मंत्रों के जाप से अपने 'सोम चक्र' को जाग्रत कर लें, जिसमें अमृत छुपा हुआ है।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 19 सितंबर 2020

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2020



२३ सितम्बर २०२० को राहु व केतु क्रमशः मिथुन व धनु राशि से निकलकर वृष व वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। जहाँ वह १२ अप्रैल २०२२ तक रहेंगे। वैदिक ज्योतिष में राहु-केतु को पापी ग्रह माना गया है जिसमे विशेषकर राहु साक्षात् काल का स्वरुप माना जाता है। 

राहु व केतु एक राशि में लगभग १८ माह तक रहते हैं तथा जिस राशि में रहते हैं एवं जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। अतः राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है और इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता।  

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि व लग्नों वाले जातकों के जीवन में क्या प्रभाव पड़ेगा -

राहु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव

मेष राशि- मेष लग्न 

मेष राशि- मेष लग्न वाले जातकों को इस अवधि काल में दाहिने नेत्र, मुख एवं दांतों में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।  कुटुंब में क्लेश व तनाव की स्थिति बनेंगी परन्तु अचानक से धन प्राप्ति होने के योग भी बनेंगे। 

वृष राशि- वृष लग्न 

इन जातकों के सिर पर राहु आ जाने के कारण मानसिक तनाव तथा सिर में चोट लगने की संभावना बढ़ जाएगी। राहु की नवम दृष्टि पिता के सुख से वंचित कर सकती है अतः पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

 मिथुन राशि- मिथुन लग्न 

राहु के बारहवें भाव में गोचर करने के कारण बाएं नेत्र में कष्ट, अनावश्यक धन हानि तथा पुलिस केस मुकदमों एवं चिकित्सा आदि पर धन- व्यय होने के योग बनेंगे। 

कर्क राशि- कर्क लग्न 

राहु के एकादश भाव में गोचर करने के कारण बड़े भाई-बहिनों, छोटी बुआ व चाचा को कष्ट, स्वयं की पिंडलियों में दर्द व चोट लगने के योग बनेंगे किन्तु आकस्मिक धन-लाभ की भी स्थिति रहेगी। 

सिंह राशि-सिंह लग्न 

यदि किसी की जन्म-कुंडली में दशम भाव एवं दशमेश की स्थिति अच्छी बनी हुई है तो राहु का दशम भाव में गोचर उसे सरकार से उच्च पद की प्राप्ति कराएगा किन्तु घुटनों में चोट-दुर्घटना की सम्भावना भी बनी रहेगी। 

कन्या राशि- कन्या लग्न 

राहु के नवम भाव में गोचर करने के कारण इस अवधि काल में इन जातकों के पिता कष्ट का अनुभव करेंगे तथा ये स्वयं कमर व पीठ की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं एवं धर्म में अरुचि हो जायगी। ऐसे व्यक्ति देश के अंदर लम्बी यात्राओं से बचें, अचानक भाग्योदय का योग बनेगा।

तुला राशि- तुला लग्न 

राहु के अष्टम में गोचर करने के कारण इस राशि- लग्न के जातक मानसिक तनाव व डिप्रेशन का अनुभव करेंगे। ससुराल पक्ष में कष्ट रहेगा तथा जीवनसाथी के दांतों में कोई रोग प्रकट होने की सम्भावना होगी। ऐसे जातक इस अवधि काल में समुद्र की यात्राओं से बचें। 

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न 

राहु के सप्तम भाव में गोचर करने के कारण इन जातकों के वैवाहिक जीवन में कष्ट आएंगे।  जीवनसाथी के स्वास्थ्य में गिरावट अथवा किसी पार्टनर से धोखा एवं उसकी हानि हो सकती है अतः पार्टनरशिप में सावधानी रखें। 

धनु राशि- धनु लग्न 

राहु के छठें भाव में गोचर करने के कारण चोट-दुर्घटना एवं पुलिस केस मुकदमेबाज़ी का भय रहेगा। इस राशि-लग्न के जिन जातकों को पहले से ही किडनी, लिवर,आंतें, पैंक्रियास आदि की समस्याएं हैं, वह बढ़ जाएँगी परन्तु शत्रुओं का नाश होगा। 

मकर राशि- मकर लग्न 

इस राशि-लग्न वाले जातकों के राहु उनके पंचम भाव में गोचर करेंगे। ऐसे में विद्यार्थियों को पढाई में कष्ट तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे। इस लग्न व राशि के जातकों के पेट की समस्याएं बढ़ेंगी तथा संतान कष्ट होगा एवं गर्भवती महिलाओं को संतान-हानि के योग बनेंगे किन्तु शेयर बाज़ार से अचानक धन प्राप्त हो सकता है। 

कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न 

इस राशि व लग्न के जातक नया वाहन लेने तथा भूमि के क्रय-विक्रय से बचें, यदि उनकी जन्म-कुंडली में चतुर्थ भाव व चतुर्थेश की स्थिति भी अशुभ हुई एवं दशा-अंतरदशा भी अशुभ ग्रहों की चल रहीं हो तो ऐसे में वाहन दुर्घटना के योग बन जायेंगे। 

मीन राशि- मीन लग्न  

इस राशि- लग्न के जातकों को अपने छोटे भाई-बहिनों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।  जन्म-कुंडली में तृतीय भाव व तृतीयेश की स्थिति भी अशुभ हुई तो इस लग्न-राशि के जातकों को इस अवधि काल में विदेश यात्रा से बचना चाहिए। 

केतु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव

मेष राशि- मेष लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों को मानसिक तनाव, मानसिक पीड़ा, ससुराल में कष्ट एवं जीवनसाथी के एक आँख तथा दांतों में कष्ट के योग बनेंगे। समुद्र की यात्राओं से बचें। 

वृष राशि- वृष लग्न 

जीवनसाथी को कष्ट व वैवाहिक जीवन में अलगाव व तनाव की स्थिति बनेगी, किसी पार्टनर की दुर्घटना का समाचार प्राप्त हो सकता है। 

मिथुन राशि- मिथुन लग्न 

चोट- दुर्घटना से बचाव करें, व्यर्थ के विवाद में पड़ने से बचें अन्यथा कोर्ट केस होने की सम्भावना रहेगी। 

कर्क राशि- कर्क लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के पेट में एसिड एवं गैस की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।  जिनकी जन्म कुंडली में पहले से ही पंचम भाव तथा पंचमेश अशुभ प्रभाव में हैं, उनके पेट के ऑपरेशन के योग बनेंगे तथा गर्भवती महिलाओं को गर्भ हानि का भय रहेगा। 

सिंह राशि- सिंह लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों की माता को कष्ट एवं स्वयं के सुख में कमी रहेगी, अपने निजी वाहन के द्वारा लम्बी यात्रा करने से बचें। 

कन्या राशि- कन्या लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के छोटे भाई-बहिनों को कष्ट, स्वयं के गले तथा कान में समस्याओं के योग बनेंगे। मित्रों से अलगाव की स्थिति प्राप्त होगी। 

तुला राशि- तुला लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के कुटुंब में क्लेश व तनाव, स्वयं के दाहिने नेत्र एवं दांतों में पीड़ा की सम्भावना रहेगी तथा मुख पर फोड़े- फुंसी आदि होने की सम्भावना रहेगी। 

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न 

सिर में चोट- दुर्घटना का भय बना रहेगा, अनावश्यक क्रोध करने की स्थिति से बचें। नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण आप अपना तथा अपने परिवार का जीवन संकट में डाल सकते हैं, अतः नशीली वस्तुओं के सेवन से बचें। 

धनु राशि- धनु लग्न 

बाएं नेत्र में कष्ट की सम्भावना रहेगी, व्यर्थ के खर्चे बढ़ाने की प्रवृति से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 

मकर राशि- मकर लग्न 

इस राशि व इस लग्न के जातकों के बड़े भाई- बहिनों को लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचना चाहिए। 

कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न 

इस राशि व इस लग्न के वह जातक जो सरकारी नौकरियों में हैं, उनके लिए यह समय कष्टकारी होगा, ऐसे लोग अपने उच्च अधिकारियों से विवाद की स्थिति उत्पन्न करने से बचें तथा जिन लोगों के सरकारी कार्य अब तक सफलता पूर्वक चल रहे थे, अब उनमे रुकावटें आना आरम्भ होंगी। 

मीन राशि- मीन लग्न  

मीन राशि व मीन लग्न के जातकों के पिता निजी वाहनों के द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचें तथा इस राशि व इस लग्न के जातक स्वयं भारी सामान आदि को उठाने की प्रवृति से बचें, अन्यथा उनकी कमर व पीठ में समस्या आने का योग बनेगा। 


इन सभी राशि व लग्नों वाले जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु यदि शुभ प्रभाव में हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी शुभ चल रही हों तो उन जातकों को राहु-केतु का परिवर्तन अशुभ फल न देकर शुभ फल ही प्रदान करेगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अशुभ प्रभाव में हुए एवं दशा-अन्तर्दशा भी अशुभ चल रही होगी, उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यंत विनाशकारी होगा। 

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava




बुधवार, 24 जुलाई 2019

Ratan Dhaaran Rahasay रत्न धारण रहस्य


यह सृष्टि का नियम है कि कोई भी जीव अपने शत्रुओं तथा अपना अनिष्ट करने वालों को कभी भी शक्ति प्रदान नहीं करना चाहता, फिर भी ज्ञान के अभाव में 90% व्यक्ति उन ग्रहों का रत्न धारण किये हुए होते हैं जो उनकी जन्म कुंडली में उनका अनिष्ट कर रहे होते हैं ।

इसके पीछे उनका यह तर्क होता है कि रत्न धारण करने से उस ग्रह का अनिष्ट प्रभाव कम हो जाएगा, जबकि सत्य यह है कि रत्न किसी भी ग्रह की शुभ-अशुभ फल देने की क्षमता को कई गुना बढ़ाने का कार्य करते हैं। ऐसे में केवल किसी ग्रह की महादशा-अंतर्दशा आ जाने पर उस ग्रह का रत्न धारण कर लेना कहाँ तक उचित है जबकि वह जन्म कुंडली में अशुभ फल कर रहा हो।

ऐसे ही शनि की ढैया अथवा साढ़े साती लग जाने पर अधिकांश व्यक्ति शनि की धातु माने जाने वाले लोहे का छल्ला धारण करके शनि के दुष्प्रभावों को कम करने का प्रयास करते हैं जबकि उन्हें उस समय शनि की वस्तुओं तथा दिशा से दूर रहना चाहिये।
अनेक बार देखा गया कि जातक स्वयं से ही नवरत्न जड़ित अंगूठी धारण कर लेता है जबकि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में 9 के 9 ग्रह शुभ नहीं हो सकते, ऐसे में जो ग्रह उसकी जन्मकुंडली में अशुभ फल दे रहे होते हैं उनका रत्न धारण करते ही उनकी अनिष्ट करने की क्षमता भी कई गुना अधिक बढ़ जाती है।

ऐसे में यह ही कहा जा सकता है कि भला हो बाजार में मिलने वाले नकली और TREATMENT किये हुए रत्नों का जो यदि जातक को कोई लाभ नहीं दे रहे, तो उसकी हानि भी नहीं करते। ऐसे रत्न यदि गलत उंगली में भी धारण किये जायें तो भी वह हानि नहीं कर पाते क्यों कि HEATING और TREATMENT होने के कारण उनमें इतनी शक्ति नहीं रह जाती कि वह किसी को अपना शुभाशुभ फल दे सकें।

ज्योतिष विज्ञान का अध्ययन करने वाले संस्कृत के विद्वानों तथा कर्मकांडी आचार्यों को भी जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति, युति एवम दृष्टि कहीं किसी भाव या ग्रह का अनिष्ट तो नही कर रही है, इन सूक्ष्म बातों का विचार कर लेने के पश्चात ही रत्न धारण कराना चाहिये अन्यथा उनके यजमानों का अनिष्ट भी हो सकता है।

वर्तमान में समाचार पत्रों तथा टीवी चैनलों द्वारा जन्म तथा प्रचलित नाम राशि के आधार पर रत्न धारण करवाने का नया प्रचलन चल पड़ा है जबकि हो सकता है कि किसी व्यक्ति का राशि रत्न वाला ग्रह जन्म कुंडली में उस व्यक्ति का बहुत अनिष्ट कर रहा हो,अतः व्यक्ति को किसी योग्य विद्वान से जन्म कुंडली की सूक्ष्म विवेचना करवा लेने के पश्चात ही कोई रत्न धारण करना चाहिए ,केवल जन्म राशि के आधार पर नहीं, और बोलते हुए नाम के आधार पर तो कदापि नहीं ।

जन्म कुंडली ना होने पर कृपया करके कोई भी रत्न धारण ना करें उसके स्थान पर मानसिक, वाचिक, दैहिक पापों से बचते हुए तथा सात्विक आहार ग्रहण करते हुए किसी योग्य 'वेदपाठी अथवा तंत्र विद्या में निपुण ब्राह्मण गुरुओं' से प्राप्त मंत्रो द्वारा पंच देवोपासना अर्थात "गणेश, दुर्गा, सूर्य, विष्णु तथा शिव" जैसे उच्च कोटि के देवी-देवताओं की उपासना करें, उसी से आपका कल्याण होगा।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu bhargava