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शुक्रवार, 6 मार्च 2020

Mahamariyon Ka Kaaran Aur Nivaran महामारियों का कारण और निवारण



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये आज मैं संसार में महामारियों के कारक ग्रह केतु के विषय में विस्तार पूर्वक बताने जा रहा हूँ-

ज्योतिष शास्त्र में सभी प्रकार की महामारियों का कारक ग्रह 'केतु' को माना गया है । केतु एक धूम्र वर्ण का छाया ग्रह है जो कि अकस्मात शुभाशुभ फल देने के लिये प्रसिद्ध है। यह 'मंगल' के समान फल देता है, जिस ग्रह और जिस राशि में बैठा होता है उसकी भी छाया ले लेता है तथा अचानक से दुर्घटना, आगजनी, बम विस्फोट, नृशंस हत्याओं के लिये उत्तरदायी होता है।

विषाणु(Virus) जनित भयानक महामारियां जैसे (पोलियो, कोढ़, चेचक(Pox), प्लेग, स्वाइन फ्लू (H1N1), इबोला, जीका, कोरोना (Covid-19)आदि जो पूर्व में प्रकट हो चुकी हैं अथवा जितनी भी महामारियां भविष्य में प्रकट होने वाली हैं इन सभी का कारक केतु ही होता है। फोड़ें -फुंसी, सफेद दाग आदि भी जन्म कुंडली मे केतु की अशुभ स्थिति के कारण ही होते हैं।

कोढ़ी व्यक्ति, कुत्तों, भेड़ियों, लोमड़ियों तथा लकड़बग्घों में इसकी नकारात्मक ऊर्जा सर्वाधिक मानी जाती हैं यही कारण है कि शास्त्रों के अनुसार घरों में कुत्ता पालन निषेध किया गया है तथा कुत्ते के स्पर्श होने पर वस्त्र सहित स्नान करने का विधान निश्चित किया गया है जिससे केतु जनित रोगों से बचा जा सके।

ज्योतिष के ग्रंथों में केतु की अशुभ दशा प्राप्त होने पर कोढ़ी व्यक्तियों तथा कुत्तों को प्रसन्न करने का उल्लेख मिलने का भी यही कारण है कि इन दोनों को प्रसन्न करके स्वयं के लिए घातक केतु की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को कम किया जा सके।

यह तो बात हुई कारण की अब बात करते हैं निवारण की, तो देखिये संसार में जितने भी प्रकार के विषैले और हानिकारक तत्व हैं अथवा परमाणु विकिरण( Nuclear Radiation) हैं उन सभी को ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व, 'शिवलिंग' के माध्यम से निरन्तर अपने अंदर अवशोषित करता रहता है, जिसके कारण संसार के प्राणी इन विषैले तत्वों की भयानक ऊर्जा से बचे रहते हैं । यही कारण है कि हम वैदिक मंत्रों के द्वारा निरंतर शिवलिंग को जल, दुग्ध, घी, शहद आदि से शांत करने का प्रयास करते रहते हैं जिससे कि उस परम कल्याणमयी शिवलिंग के द्वारा हम विषैले तत्वों की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बचे रहें।

चूंकि केतु की ऊर्जा के कारण इन विषैले तत्वों को फैलने का माध्यम मिलता है अतः केतु की नकारात्मकता को रोकने का सामर्थ्य केवल भगवान् 'शिव' और उनकी 'शक्ति' में ही है अतः शिव-शक्ति की उच्च कोटि की साधनाओं के द्वारा केतु की उग्रता को समाप्त किया जा सकता है ।

प्राचीन काल में राजा-महाराजा इन महामारियों तथा अन्य अनिष्टकारी घटनाओं से अपनी तथा अपनी प्रजा की रक्षा के लिये समय-समय पर अपने कुल गुरुओं की आज्ञा से वैदिक तथा तांत्रिक विद्वानों की सहायता से बड़े-बड़े यज्ञ अनुष्ठान आदि करवाया करते थे, वर्तमान में न तो वह शासक ही धर्म के पथ पर चलने वाले रहे और न साधक ही।

ऐसे समय में अच्छे वेदपाठी तथा तांत्रिक विद्वान ढूंढना ही दुष्कर कार्य है तथा वह मिल भी जायें तो भारत के अधर्मी, विधर्मी तत्व ऐसे यज्ञों-अनुष्ठानों को क्रियान्वित नहीं होने देंगे जिनकी सहायता से कोरोना वायरस जैसी महामारियों का पूर्णतः विनाश किया जा सकता है।

ऐसे में भारत सरकार यदि उच्च कोटि के विद्वानों द्वारा प्रत्येक जिले में 1-1 'कोटि चंडी' अनुष्ठान, वेदपाठियों द्वारा सामूहिक रुद्राभिषेक तथा उच्च कोटि के तांत्रिक विद्वानों द्वारा दस महाविद्याओं के यज्ञों के आयोजन करवाये तो आगामी 10 वर्षों तक कोरोना वायरस ही नहीं अनेक प्रकार की दुष्ट शक्तियों से भारत तथा भारतवासियों की रक्षा हो सकेगी, साथ ही 'भगवती चंडी' के आशीर्वाद से राष्ट्र में रहकर राष्ट्र को क्षीण करने वाले 'दानव दलों' का सर्वनाश होगा तथा 'महाकाली' के आशीर्वाद के कवच से राष्ट्र की सीमायें भी सुरक्षित होंगी जिससे सनातन धर्म का भगवा ध्वज सम्पूर्ण दिशाओं में अपना परचम लहरायेगा तथा हिंदुत्व के शंखनाद से दसों दिशाओं में व्याप्त पैशाचिक शक्तियों का विनाश किया जा सकेगा।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

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