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शुक्रवार, 23 मई 2025

उदर (Stomach) रोग वाली जन्मकुंडली का विश्लेषण व उपाय


 यह लगभग साढ़े चार वर्ष की एक छोटी बच्ची की जन्मकुंडली है । जिसका जन्म १० अक्टूबर २०२० को प्रातः ११ बजकर ३० मिनट पर गाजियाबाद जिले में हुआ है ।

अपनी बाल्यावस्था से ही इस बच्ची को पेट में कुछ न कुछ समस्याएं लगी रहती थीं और अभी गोचर में कुछ समय पूर्व बने पिशाच योग (राहु-शनि युति) में इस बच्ची को Appendicitis डिटेक्ट होकर Rupture हो गया (अपेंडिक्स फट जाना) । इसके पश्चात् इस बच्ची के परिवारजन इसे एक अच्छे हॉस्पिटल में लेकर गए जहां इसका फूड पाइप ब्लॉक हो गया और पेट भी फूल गया, तब यह जन्मकुण्डली मेरे पास आई । ईश्वर की कृपा से आज यह बच्ची सुरक्षित है ।

ऐसे क्या ज्योतिषीय कारण रहे होंगे जो इस छोटी बच्ची के साथ ऐसी घटना घटित हुई और ऐसी जन्मकुंडलियों में कौन से ज्योतिषीय उपचार करवाए जा सकते हैं ? आइए जानते हैं—

इस बच्ची की जन्मकुंडली का पंचम भाव (पेट का स्थान) षष्ठेश (रोगेश) मंगल के पाप प्रभाव में है जो कि वक्री भी है अर्थात् छठे भाव के अपने क्रूर फलों में भी लगभग तीन गुना वृद्धि कर चुका है ।

इसके अतिरिक्त यही मंगल, केतु अधिष्ठित राशि का स्वामी भी है अर्थात् इस मंगल की क्रूरता के पीछे स्वयं मंगल की छाया लिए हुए केतु की नकारात्मक ऊर्जा भी कार्य कर रही है ।  (१- फलित ज्योतिष में एक बहुत बड़ा सिद्धांत यह है कि किसी भी ग्रह की राशि पर यदि कोई दूसरा ग्रह भी स्थित हो तो वह पहला वाला ग्रह अपने शुभाशुभ फलों के साथ-साथ उस दूसरे ग्रह के भी फलों को भी देने लगता है, जो ग्रह उसकी राशि पर बैठा होता है )
२- राहु-केतु जिस भी ग्रह के साथ, जिस भी ग्रह की राशि में बैठते हैं, उसकी छाया ग्रहण कर लेते हैं और क्रमशः शनि-मंगल जैसे अपने पृथकतावादी प्रभावों के अतिरिक्त उस ग्रह के प्रभावों को भी देने लगते हैं ।) 

केवल इतना ही नहीं, मंगल की छाया लिए हुए यही केतु अपनी पंचम पाप दृष्टि से पंचम भाव को भी देख रहा है और इस पंचम भाव पर वर्गोत्तम शनि की तृतीय पाप दृष्टि भी है तथा पंचमेश बृहस्पति, शनि-केतु के पाप कर्तरी योग में घिरा हुआ है और पेट का कारक सूर्य, राहु की पंचम दृष्टि तथा रोगेश मंगल की सप्तम दृष्टि से ग्रसित है ।

यद्यपि यहां मंगल इस बच्ची का लग्नेश भी है तथापि उसकी मूल त्रिकोण राशि 'मेष' छठे भाव में स्थित होने से वह अपनी मूल त्रिकोण राशि का ही फल अधिक दे रहा है । अतः इस बच्ची का पंचम भाव (पेट का भाव), पंचमेश बृहस्पति (भावाधिपति) तथा पेट का कारक सूर्य—यह तीनों ही पीड़ित हैं ।

यदि भावात् भावम् सिद्धांत के अनुसार भी देखें तो पंचम से पंचम अर्थात् नवम भाव का अधिपति चंद्रमा भी अपने से द्वादश अर्थात् अष्टम् भाव (अशुभ स्थान) में स्थित है । जो कि रोगेश मंगल की चतुर्थ दृष्टि से तथा मंगल अधिष्ठित राशि के स्वामी बृहस्पति से दृष्ट है ।

एक तो इतने सारे कारण ही पर्याप्त थे इस बच्ची को बाल्यावस्था से ही पेट की इतनी गंभीर समस्या देने के लिए,  ऊपर से अभी गोचर में मीन राशि में लगभग ५० दिन के लिए बना पिशाच योग (शनि-राहु युति) जो कि १८ मई तक चला, वह भी इस बच्ची के पेट के स्थान पंचम भाव पर ही बन गया । इस बच्ची के लग्न पर गोचर लगाने पर मीन राशि इसके पंचम भाव में स्थित है, जहां १८ मई तक राहु-शनि ने संचार किया है तथा गोचर में भी भावात् भावम् सिद्धांत लगाने पर पंचम से पंचम अर्थात् नवम भाव पर षष्ठेश ( रोगेश) होकर नीच का मंगल संचार कर रहा है ।

इस सम्बन्ध में जानने के लिए मेरा पूर्व का ब्लॉग देखें—

यदि बात करें इस कुंडली में चल रही दशा-अंतर्दशा की तो वर्तमान समय में इसकी बृहस्पति की महादशा (पाप कर्तरी योग से पीड़ित पंचमेश की दशा) में चंद्रमा (अष्टम में गए हुए नवमेश) की अंतर्दशा में पेट के कारक सूर्य पर दृष्टि डालने वाले राहु (अकस्मात चिकित्सालय लेकर जाने वाला कारक ग्रह) की प्रत्यंतर दशा चल रही है ।


ऐसे में अत्यन्त अशुभ गोचर तथा अशुभ दशाओं के इस मेल ने इस बच्ची को गंभीर स्थिति में हॉस्पिटल तक पहुंचा दिया । मेरे पास जब यह जन्मकुंडली आई थी, तब तक इस बच्ची के जीवन को बचाने वाले चिकित्सकों ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए थे किन्तु ईश्वर द्वारा हमें दिए गए ज्योतिष के वरदान और उनके आशीर्वाद से यह बच्ची अभी जीवित है ।

आइए बात करते हैं अब उन ज्योतिषीय उपायों की जिससे इस बच्ची के प्राणों की रक्षा हुई

सर्वप्रथम मंगल ग्रह के क्रूर प्रभावों को नष्ट करने के लिए तत्काल ही इस बच्ची के लिए ११ वेदपाठी ब्राह्मणों से ११ सुंदरकांड पाठ करवाए गए । इसके साथ ही दूसरे वेदपाठी ब्राह्मणों की टीम से इस बच्ची के मंगल, राहु, केतु जैसे पृथकतावादी ग्रहों की विधिवत् शांतियां करवाईं गईं और पंचम भाव (पेट के स्थान) के स्वामी ग्रह बृहस्पति का रत्न 'पुखराज' (बृहस्पति लग्नेश के मित्र होने तथा स्वराशि में स्थित होने से यहां द्वितीयेश होने पर भी मारक नहीं बनेंगे) तथा पेट के कारक ग्रह सूर्य का रत्न 'माणिक' इस बच्ची के गले में पेंडेंट में (रत्न उनकी उंगलियों में ही अपने पूर्ण फलों को देते हैं) धारण करवाया गया, जिससे भाव अधिपति बृहस्पति तथा कारक सूर्य दोनों ही को शक्ति प्राप्त हो सके ।

मेरे द्वारा ब्लॉग लिखे जाने तक यह बच्ची लगभग ८० प्रतिशत तक स्वस्थ हो चुकी है, इसके पूर्णतः स्वस्थ होने पर इसके लिए एक बार पुनः इन्हीं अशुभ ग्रहों की शांतियों के साथ एक महामृत्युंजय अनुष्ठान भी करवाया जाएगा, जिससे इस बच्ची को आगे इस प्रकार की कोई भी समस्या न आने पाए और यह निरोगी रहकर दीर्घायु प्राप्त कर सके क्योंकि आज जो समस्या इसके पेट में आई है, ठीक वैसी ही समस्या इसके हृदय (हार्ट) में भी आएगी, जिसका कारण यह है कि पंचम भाव केवल पेट का ही नहीं हार्ट का स्थान भी होता है तथा सूर्य केवल पेट का ही नहीं, हार्ट का भी निर्माण करता है ।
इस विषय को और अधिक सरलता से समझने के लिए चिकित्सा ज्योतिष पर आधारित मेरा यह ब्लॉग पढ़ें—

आगे चलकर इस बच्ची को हार्ट की भी समस्या आएगी, यह बात मैंने इसके परिवार में से अभी तक किसी को भी नहीं बताई है क्योंकि वह सभी पहले से ही इतना कष्ट प्राप्त करके चुके हैं, ऐसे में मैं उनको और अधिक व्यथित नहीं करना चाहता ।

आप सभी को यह जानकर बहुत प्रसन्नता होगी कि जो ज्योतिषीय उपाय इस बच्ची के पेट के लिए करवाए गए हैं, वही इसको जीवन में या तो कभी हार्ट की गंभीर समस्या उत्पन्न ही नहीं होने देंगे अथवा उस समस्या को बहुत कम कर देंगे क्योंकि जिन ग्रहों की शांतियां करवाई गई हैं, अब वह केवल पेट ही नहीं, हार्ट को भी हानि नहीं पहुंचा सकेंगे तथा जिन ग्रहों के रत्न धारण करवाए गए हैं वह इस बच्ची के पेट के साथ-साथ इसके हार्ट को भी बल प्रदान करेंगे और इस प्रकार यह छोटी बच्ची तथा इसका परिवार कभी यह जान नहीं सकेगा कि और बड़े दुःख उनके जीवन में आ सकते थे जो कि नहीं आए ।


नोट— १—इस बच्ची को आजीवन नीले, लाल तथा गहरे स्लेटी रंगों को स्वयं से दूर रखना होगा तथा गहरे पीले रंगों का प्रयोग जीवन में बढ़ाना होगा ।

२— आयु में कुछ बड़ी होने पर इस बच्ची को यही दोनों रत्नों को पेंडेंट से निकलवाकर अपने बाये हाथ की उंगलियों में धारण करने होंगे । पुखराज (तर्जनी), माणिक (अनामिका), (स्त्रियों को बाएं हाथ तथा पुरुषों को दाहिने हाथ में रत्न धारण करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं ।)

३—जीवन भर राहु, केतु तथा मंगल के दान करते रहने होंगे जिससे उनके पाप प्रभावों में और भी अधिक कमी आ सके तथा पीले रंग की वस्तुओं का कभी भी दान नहीं करना होगा अन्यथा बृहस्पति के बल में भी कमी आ जाएगी जबकि इसे अपने बृहस्पति को सदा बलवान रखना है । (पंचमेश होने के कारण)

४—भगवान् विष्णु इसके इष्टदेव हैं, कुछ बड़ी होने पर किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से इस बच्ची को इसके अधिकार की सीमा में आने वाले भगवान् नारायण (श्री हरि विष्णु, श्री राम, श्री कृष्ण) के मंत्र की दीक्षा लेकर उनके मंत्रों के जप करने चाहिए, जिससे इसके इष्टदेव की कृपा भी इस पर बनी रहेगी ।


इस ब्लॉग को लिखने के पीछे का मेरा उद्देश्य १ प्रतिशत भी प्रशंसा प्राप्त करना नहीं है । लोकेष्णा (अपने ही जैसे नाशवान प्राणियों से सम्मान प्राप्त करने की तृष्णा) से मैं जितनी घृणा करता हूँ शायद ही कोई दूसरा करता होगा ।
इस विषय पर पढ़ें मेरा ब्लॉग—

मेरा तो इस ब्लॉग को लिखने का उद्देश्य केवल यही है कि ईश्वर की कृपा से जो विद्या मुझे प्राप्त हुई है, वह मेरी मृत्यु के उपरांत कहीं मेरे साथ ही नष्ट न हो जाए तथा हो सकता है कि मेरे न रहने के पश्चात् भी मेरा यह ब्लॉग ऐसे ही कितने जातकों का जीवन बचाने में सहायक सिद्ध हो जाए । यदि ऐसा होता है तो ईश्वर अपने जिन कार्यों को करवाने के लिए हमें ज्योतिष विद्या का यह ज्ञान देकर इस संसार में भेजते हैं, उनके उन कार्यों को करके मैं परम् शांति के साथ उनके श्री चरणों में विलीन हो सकूंगा ।

"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 13 अगस्त 2023

जीवन में हमारे कुलदेवी/देवता का महत्व...

पूर्व काल में हमारे ऋषि कुलों (आदि पूर्वजों) ने अपने इष्ट देवी/देवताओं को उचित स्थान देकर (मंदिर आदि बनाकर) उनका अपने कुल देवी/देवता के रूप में पूजन करना आरंभ किया जिससे एक पारलौकिक शक्ति उनके कुल के वंशजों की नकारात्मक ऊर्जाओं, ग्रह जनित बाधाओं तथा मांत्रिक शक्तियों से सदैव रक्षा करती रहे । हमारे पूर्वज इन शक्तियों से यह वचन लिया करते थे कि वह उनके कुल की यथा संभव रक्षा करेंगी जिसके कारण अपनी-अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार यह शक्तियां अपने-अपने कुलों की रक्षा किया करती थीं ।


कालान्तर में विधर्मी मलेच्छ आक्रांताओं के आक्रमणों और उनके द्वारा की जा रही हिंसा, लूट, बलात्कारों के भय से बहुत से हिन्दू परिवार अपने स्थानों से विस्थापित होने लगे, मलेच्छों द्वारा लाखों की संख्या में धर्म परायण वेदपाठी ब्राह्मणों की हत्याओं, मंदिरों के विध्वंस तथा धर्म ग्रंथ जलाए जाने के कारण से सनातन धर्म का लोप होने लगा । जीवन बचाने के लिए जिसे जहां 
जो स्थान मिला वह वहीं बसने लगा, अंतर्जातीय विवाह होने से वर्णाश्रम व्यवस्था भंग होने लगी जिसके कारण कुलीन परंपरा विलुप्त होती गई । 


इधर वर्तमान की स्थिति का अवलोकन करने के पश्चात् हमें यह ज्ञात होता है कि पाश्चात्य संस्कृति का अंध अनुसरण करने से संस्कार शून्य हुए अधिकांश सनातनी एक तो पहले से ही यह भूल चुके हैं कि उनके कुल देवी/देवता कौन हैं ? ऊपर से मलेच्छ भूमि (समुद्र पार के देश) में जाकर बस जाने से स्थिति और भी भयावह हो चुकी है । 
मलेच्छ भूमि पर बसने वाले सनातनी अपना द्विजत्व खो जाने से मलेच्छत्व को प्राप्त हो चुके हैं और विडंबना यह है कि आप उन्हें इसका ज्ञान भी नहीं करवा सकते क्योंकि धर्म ज्ञान के अभाव में अधिकांश सनातनी, विदेशी भूमि पर निवास करने के मिथ्या अहंकार से भरे होने के कारण स्वयं को श्रेष्ठ समझने के ऐसे महान भ्रमजाल में फंसे हुए हैं जिसमें से उन्हें शायद ही कभी निकाला जा सकता है ।


(याज्ञिक भूमि केवल भारतवर्ष ही है, जिसमें कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर जिसमें मूलाधार चक्र से लेकर सहस्त्रार चक्र तक सभी ७ चक्र स्थित हैं तथा इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना नाड़ियों के रूप में गंगा, यमुना, सरस्वती भी हैं जिनका संगम प्रयाग क्षेत्र अर्थात् दोनों नेत्रों के मध्य स्थित आज्ञा चक्र में होता है । इन तीनों नदियों का संगम प्रयाग क्षेत्र में ठीक उसी प्रकार से होता है जैसे सिद्ध अवस्था में एक योगी के शरीर में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों का आज्ञा चक्र में होता है । शरीर की ७२ हजार नाड़ियां और कुछ नहीं इसी भारत भूमि पर बह रही असंख्य नदियां, झीलों आदि का जाल है—  यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे)

अतः भारत भूमि और कुछ नहीं एक जीती-जागती पवित्र देह है जिसमें दिव्य ऊर्जा का प्रवाह स्वतः ही स्फुरित होता रहता है । यही कारण है कि इस भूमि को माता कहा जाता है जिसके गर्भ में भगवान् जन्म (अवतार) लिया करते हैं । इस विषय पर 'विष्णु पुराण' में एक श्लोक आता है–
गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे।
स्वर्गापवर्गास्पद हेतुभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात॥
अर्थात्—
देवता भी स्वर्ग में यह गान करते हैं, धन्य हैं वह लोग जो भारत-भूमि के किसी भाग में उत्पन्न हुए । वह भूमि स्वर्ग से बढ़कर है क्योंकि वहां स्वर्ग के अतिरिक्त मोक्ष की साधना भी की जा सकती है ।

यहां विषय से हटकर मलेच्छत्व के विषय को विस्तार देने का कारण यही था कि जो भी सनातनी अपना देश छोड़कर विदेशों में जाकर बस चुके हैं किन्तु भीतर से धर्मपरायण और बुद्धिमान हैं वह इस ब्लॉग को पढ़कर यह समझ सकेंगे कि धर्म पालन में भारतवर्ष की क्या भूमिका है । साथ ही वह यह भी समझेंगे कि इस ब्लॉग को लिखते समय मेरी भावना किसी भी प्रकार से अहंकार, स्वार्थ और विद्वेषपूर्ण नहीं अपितु केवल और केवल शास्त्रसम्मत थी ।

अब इस विषय को और अधिक विस्तार न देते हुए पुनः वापस लौटते हैं अपने इस ब्लॉग के विषय पर अर्थात् जीवन में कुलदेवी/देवता का महत्व—
वचनबद्ध होने के कारण हमारे कुल देवी/देवता हमारे चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाकर रखते हैं । जो मनुष्य उनकी उपेक्षा करता है, उचित समय पर उनका पूजन नहीं करता, सदैव मलेच्छों की संगति में रहता है, उनकी संगति से प्रेरित होकर मांस (विशेषकर गौ मांस) भक्षण करता है तथा उनकी पूजा करने के स्थान पर भूत-प्रेतों, कब्रों, मजारों आदि का पूजन करता है, ऐसे व्यक्तियों के ऊपर से वह अपना सुरक्षा सुरक्षा कवच हटा लेते हैं और ऐसा मनुष्य शीघ्रता से तंत्र सम्बंधी बाधाओं, अभिचार कर्मों अथवा ब्रह्मांड में अनगिनत मात्रा में विचरण कर रही नकारात्मक काली शक्तियों की चपेट में आ जाता है।

ऐसे मनुष्यों के जीवन में कोई कार्य न बनना, गृह क्लेश रहना, मानसिक समस्याओं से ग्रसित होकर आत्महत्या करने के विचार आना, कोर्ट केस आदि में फंस जाना, धनी परिवार में जन्म लेने के पश्चात् भी अत्यन्त दरिद्र हो जाना, उसके कुल की स्त्रियों का दूषित हो जाना, परिवार में आकस्मिक दुर्घटनाएं होते रहना, घर में अग्नि कांड होना, घर में दीमक लग जाना आदि अनिष्टकारी घटनाएं घटित होती रहती हैं ।

ऐसी अवस्था में व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकता रहता है और अनेक ज्योतिषियों, तांत्रिकों आदि के द्वारा बताए गए उपायों को करवाने के पश्चात् भी उसको अपने जीवन में कोई लाभ दृष्टिगोचर नहीं होता । यहां यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ऐसा व्यक्ति श्रापित होकर जीवन में अनेक दुःख भोगने को विवश होता है ।

मैंने अपने जीवन काल में अनेक जन्मकुंडलियों का अध्ययन करके यह पाया कि ऐसे व्यक्तियों को हमारे द्वारा बताए गए ज्योतिषीय उपाय भी उतना अधिक फलीभूत नहीं होते जितना कि उन्हें होना चाहिए किन्तु यही जातक जब अपने रुष्ट कुल देवी/देवता को प्रसन्न कर लेते हैं तो उन्हीं ज्योतिषीय उपायों से उनके जीवन में अद्भुत चमत्कार घटित होने लगते हैं । इसलिए अपने कुलदेवी/देवताओं का पूजन करना प्रत्येक सनातनी हिंदू का न केवल धर्म है, अपितु अनिवार्य कर्तव्य भी है ।

हमारे कुल देवी/देवता वह शक्तियां हैं जिनकी कृपा से हम सभी प्रकार की सफलता प्राप्त करते हुए सुखी व समृद्ध जीवन जी सकते हैं । अतः यदि किसी का घर बड़ा है और वास्तु के अनुसार बना हुआ है तथा वहां शुद्धता भी रहती है, तो उसे अपने घर के किसी वृद्ध व्यक्ति से अपने कुलदेवी/देवता के विषय में जानकारी प्राप्त करके उनको वहां उचित स्थान देना चाहिए । स्थान देते समय किसी योग्य वेदपाठी ब्राह्मण को बुलाकर अपने कुलदेवी/देवता का शास्त्र विधि अनुसार पूजन करवा लेना चाहिए तथा समय-समय पर उनका पूजन होते रहने की व्यवस्था करनी चाहिए । उस स्थान पर नित्य प्रतिदिन देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी का दीपक जलाना चाहिए । इससे उसके कुल देवी/देवता प्रसन्न होकर उसे अपने संरक्षण में ले लेंगे और उसे सभी प्रकार की सुख समृद्धि प्रदान करते हुए संसार में सदैव अपराजित रखेंगे ।

जिस व्यक्ति का घर छोटा है, घर में शुद्धि-अशुद्धि का विचार भी नहीं किया जाता, वास्तु द्वारा निर्मित भी नहीं है, घर में कुत्ता-बिल्ली-मुर्गा आदि पाले हुए हैं उसको अपने कुल देवी/देवता को घर में स्थान न देकर उसके पूर्वजों द्वारा स्थापित कुलदेवी/देवता के मंदिर में जाकर वर्ष में एक बार उनका विधि-विधान से पूजन अवश्य करना चाहिए । इसके अतिरिक्त घर में कोई शुभ कार्य होने वाला हो तब भी उस मंदिर में जाकर उनसे अनुमति और आशीर्वाद अवश्य ले लेना चाहिए जिससे बिना किसी अवरोध के उनका वह कार्य सम्पन्न हो सके तथा उसमें उन्हें आगे सफलता भी प्राप्त हो ।

यहां यह स्मरण रहे कि घर का मुखिया पुरुष होता है अतः यह कार्य किसी धर्मनिष्ठ पुरुष के द्वारा ही सम्पन्न होना चाहिए, घर की स्त्रियां उसका इस कार्य में सहयोग करें और इस धर्म कार्य में उसकी सहभागिनी बनकर श्रद्धापूर्वक अपने कुलदेवी/देवता की पूजा-अर्चना करें ।

अनेक बार देखा गया है कि जनसमुदाय अपने बच्चों के विवाह आदि शुभ अवसरों पर मनमाने ढंग से अपने कुलदेवी/देवताओं का पूजन करता है, विद्वान और धर्म परायण व्यक्तियों को इससे बचना चाहिए क्योंकि शास्त्र सम्मत आचरण करने में ही सबका कल्याण है, व्यर्थ के प्रमाद में पड़कर शास्त्र विरुद्ध आचरण करने से लाभ के स्थान पर उल्टा हानि ही उठानी पड़ती है ("यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।। १६.२३—श्रीमद् भगवद्गीता") ।

अब बात करते हैं उन व्यक्तियों की जिनके पास न तो धन है और न ही इतना सामर्थ्य है कि वह विधि-विधान से अपने कुलदेवी/देवता का पूजन कर सकें तो ऐसे व्यक्तियों को मानसिक रूप से ही अपने कुलदेवी/देवता का ध्यान करना चाहिए तथा हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वह उन्हें इन भीषण विपत्तियों से निकाल कर अपना संरक्षण प्रदान करें (निष्कपट, शुद्ध और द्वेष रहित मन से की गई प्रार्थना देवी/देवताओं तक अवश्य पहुंचती है केवल कपटी, दंभी, धूर्त, लोभी और राग द्वेष भावना से युक्त मनुष्य ही उनकी कृपा कभी प्राप्त नहीं कर सकता)  इस प्रकार से प्रत्येक सनातनी हिंदू अपने जीवन में अपने कुलदेवी/देवता की कृपा प्राप्त करके स्वयं को सुखी और समृद्ध बना सकता है ।
"शिवार्पणमस्तु"

—Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 16 मई 2021

शार्ली एब्दो के हिन्दू विरोधी कार्टून का उत्तर

भारत में कोविड-19 महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन संकट के लिए भारतीयों, विशेष रूप से हिंदुओं का उपहास उड़ाने वाला एक कार्टून बनाया गया है । इस कार्टून में भारतीयों को पृथ्वी पर लेटे, ऑक्सीजन के लिए छटपटाते हुए दिखाया गया है।

इस कार्टून को फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका 'शार्ली एब्दो' द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिसमें हिंदू देवताओं पर कटाक्ष करते हुए पूछा गया है कि वह कोविड की दूसरी लहर में अपने धर्म के लोगों की सहायता क्यों नहीं कर सके।

 शार्ली एब्दो के कार्टून के साथ एक लाइन भी है जिसमें लिखा है, ”भारत में 33 करोड़ देवता और एक भी ऑक्सीजन पैदा करने में सक्षम नहीं ।”

शार्ली एब्दो पत्रिका को हम उन लोगों की भांति उत्तर नहीं देंगे, जिन्होंने अपने पैगम्बर का कार्टून बनाये जाने पर, जनवरी 2015 में फ्रांस के सबसे प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों सहित 17 व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया था।

ऐसी प्रतिक्रिया देना हम हिंदुओं के संस्कारों में इसलिये नहीं है क्योंकि हमारे यहां तो अनादि काल से ही शास्त्रार्थ की परंपरा रही है, जिसमें यह व्यवस्था की हुई है कि हमारे मत का विरोधी व्यक्ति भी आकर हमारे धर्म ग्रन्थों पर हमें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे सकता है।

हम उस धर्म का पालन करने वाले मनुष्य हैं जहां भगवान विष्णु की छाती में लात मारकर उन्हें अपमानित करने के पश्चात भी उनके स्नेह का पात्र बन जाने वाले भृगु जैसे ऋषि भी हुए हैं तो अपने फरसे के प्रहार से गणेश जी का दंत तोड़ने वाले भगवान परशुराम जी भी।

अपने भगवान का निरादर करने वाले किसी मनुष्य के साथ हम इस कारण से भी हिंसा नहीं करते कि इस मनुष्य में एक दिन ईश्वरीय चेतना जाग्रत होगी और यह धर्म के मार्ग पर आ जायेगा ।

किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें सनातन धर्म की मर्यादा के अनुरूप किसी विधर्मी को उत्तर देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः ईश्वर की प्रेरणा से मैं शार्ली एब्दो को अपने धर्म की मर्यादा के अनुरुप उत्तर देने जा रहा हूँ।

तो सुनो ! हे "शार्ली एब्दो" के कार्टूनिस्टों- सर्वप्रथम तो यह जान लो कि वर्तमान में हम भारतीय जिस मानव निर्मित संविधान से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, वह सनातन धर्म के बनाये गए नियमों से नहीं चलता ।

सनातन धर्म ने हमारे लिए जो संविधान बनाया था वह हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों और शास्त्रों के सम्मिश्रण से बना है, जिसका पालन करने पर न तो वायु ही दूषित होती, न ही जल ! क्योंकि उस संविधान के अनुसार तो हम हर उस प्राकृतिक वस्तु का संरक्षण करते आये थे जो मानव जाति ही नही समस्त जीवों के लिए हितकारी हैं।

हे "शार्ली एब्दो"- यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो यहां न नदियां दूषित होतीं, न ही ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों का कटान होता, न ही अपनी जिव्हा के क्षणिक स्वाद के लिए पशुओं का वध होता और इसके विपरीत हर घर मे यज्ञ में आहुतियों के रूप में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का प्रयोग होता, जिससे कोरोना वायरस तो छोड़िए उसके पिताजी भी इस वायुमंडल में जीवित न रहते।

हे शार्ली एब्दो - यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो आज देशी गाय के गोबर की खाद से खेती हो रही होती और उससे उत्पन्न होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता ऐसी होती कि हम न केवल दीर्घायु होते, हमारी संताने भी निरोगी होतीं।

यह देश यदि वैदिक संविधान से चलता तो यज्ञों में पड़ने वाले 'देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी' की आहुतियों से हमारे समस्त देवी-देवता प्रसन्न होते और प्रसन्न होकर भारत ही नहीं तुम्हारे फ्रांस को भी निरोगी होने का आशीर्वाद देते और केवल हमें ही नहीं आपको भी कभी आक्सीजन की कमी से मरने न देते।  

तो हे 'शार्ली एब्दो', यह भारत देश 'ईश्वर और देवी देवताओं' के बनाये गए संविधान से चल कहाँ रहा है जो वह हिंदुओं की सहायता करने आएं और आकर हमारे लिए ऑक्सीजन का निर्माण करें ।

वैसे आपको मैं यह बात बता दूं कि हमारे देवी-देवताओं का कार्य ऑक्सीजन का निर्माण करना नहीं है, उसके लिए उन्होंने वृक्ष बनाये हैं, जिनका संरक्षण न कर पाना हमारी भयानक भूल है, जिसके लिए हम अपने देवी-देवताओं को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। 

अतः आप हम हिंदुओं को व्यर्थ का ज्ञान न दें और अपनी ऊर्जा का व्यय फ्रांस को आने वाले संकटों से बचाने में करें तथा जिस चीन ने अपने पालतू और बिके हुए वैश्विक संगठनो के साथ मिलकर कोरोना वायरस को पूरे विश्व में वायरल करके उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नष्ट करने का कुचक्र रचा है, यदि हो सके तो उसके विरुद्ध अपनी चोंच खोलने का प्रयास करें, जिससे फ्रांस की जनता भी आप पर गर्व कर सके ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava