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सोमवार, 23 मार्च 2020

Devaasur Sangraam देवासुर संग्राम



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये मैं आने वाले समय में आसुरी शक्तियों के उदय एवं देव शक्तियों की पराजय के अति दुर्लभ योग का वर्णन करने जा रहा हूँ ।

अंततः वह समय आ ही गया जब 3 माह के लिये आसुरी शक्तियां जीवों के अवचेतन मन (Subconscious Mind)
को अपने नियंत्रण में ले लेंगी। यही वह समय होगा जब चारों ओर शुक्र का वासनात्मक प्रभाव होगा और जिसके कारण सात्विक से सात्विक उपासना करने वाले साधक भी शुक्र के इस प्रभाव से बच नहीं पायेंगे।

यही वह समय होगा जब बड़े-बड़े मठाधीश और धर्म उपदेशक भी जो अब तक अपने तात्कालिक लाभ के लिये ग्रहों की शक्तियों को नकारते रहे हैं, वह भी भोगों में लिप्त होकर अपनी साधनाओं से पृथक हो जायेंगे।

तीन माह के इस अवधिकाल में जब तक देव गुरु बृहस्पति की शक्तियां क्षीण रहेंगी तब तक भूत-प्रेतों को सिद्ध करने वाले 'वाममार्गी' तथा काले जादू (Black Magic) से दूसरों का जीवन नष्ट करने वाले 'तामसी साधक' अपने कार्यों में सफल होंगे तथा पैशाचिक साधनाओं के जानकार 'शमशान जागरण' जैसी प्राण घातक क्रियाओं में भी विजय प्राप्त करेंगे।

अंधकार और वनों में छुपकर निवास करने वाली पिशाचनियाँ एवं चुड़ैलें नर बलि देकर महाभयानक शक्तियां प्राप्त करेंगी। भीम पुत्र घटोत्कच के द्वारा बसाई गयी 'मायोंग' नगरी की मायावी शक्तियां पुनः जाग्रत हो उठेंगी।

28 मार्च 2020 को दैत्य गुरु शुक्र के 4 माह के लिये स्वराशि में प्रवेश करने के कारण उसके बलवान होने तथा 30 मार्च को 3 माह के लिये देव गुरु बृहस्पति के अपने नीच राशि में प्रवेश करने से उसके क्षीण होने के कारण विश्व में आध्यात्मिक और देव शक्तियां पराजित होने लगेंगी तथा संसार में दुष्ट एवं पैशाचिक शक्तियों का प्रादुर्भाव होगा।

यह ऐसा समय काल होता है जिसमें वाममार्गी, कापालिक साधकों के द्वारा की जाने वाली वाममार्गी साधनायें शीघ्रता से फल देती हैं तथा दक्षिण मार्गी और सात्विक साधकों को असफलता प्राप्त होती है।

ऐसे में जो साधक 'वाममार्गी' एवं 'कर्ण पिशाचनी' जैसी घोर तमोगुणी साधनाओं को करना चाहते हैं उनके लिये यह काल अमृत के समान सिद्ध होगा।

किंतु जो साधक इस समय का उपयोग "काले जादू (Black Magic)" के माध्यम से दूसरों के जीवन में "नकारात्मक ऊर्जा (Negative Energy)" को भेजने में करना चाहते हैं उन सभी को मेरी चेतावनी है कि ऐसा भूलकर भी न करें क्यों कि 3 माह के पश्चात बृहस्पति के वक्री गति से स्वराशि में प्रवेश करते ही देव शक्तियां बलवान होने लगेंगी जो उनके स्वयं का सर्वनाश कर देगीं।

यद्दपि इस 4 माह के अवधि काल में शुक्र के स्वराशि में रहने से सांसारिक सुखों को ही सर्वस्व मानने वाले भोगी मनुष्यो के सुखों में महान वृद्धि होगी तथापि मनुष्यों को नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से स्वयं को रक्षित तो करना ही होगा।

ऐसे में जो मनुष्य इन दुष्ट शक्तियों एवं तामसी साधकों द्वारा भेजी गई मूठ, कृत्या जैसी शक्तियों से बचना चाहते हैं वह सभी आगामी नवरात्रि में, अग्नि पराभूत करने वाले 'अर्जुन' के 12 नामों को भोजपत्र पर, अष्टगंध की स्याही से अनार की कलम द्वारा लिखकर, लाल वस्त्र में, अपनी दाहिनी भुजा में बांध लें, बांधते समय मन ही मन भगवती दुर्गा के मंत्रों का जाप करते रहें।

उच्च कोटि के विद्वान एवं दक्षिण मार्गी तंत्र साधक, देवताओं के लिये भी दुर्लभ और हर प्रकार की कृत्या को नष्ट करने की क्षमता रखने वाली महाविद्या 'विपरीत प्रत्यंगिरा' शक्ति का आवाह्न करें जिससे आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त की जा सके।

अर्जुन के 12 नाम इस प्रकार से हैं-

  1. धनञ्जय - राजसूय यज्ञ के समय बहुत से राजाओं को जीतने के कारण अर्जुन का यह नाम पड़ा।
  2. कपिध्वज - महावीर हनुमान अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहते थे, अतः इनका नाम कपिध्वज पड़ा।
  3. गुडाकेश - 'गुडा' कहते हैं निद्रा को। अर्जुन ने निद्रा को जीत लिया था, इसी से उनका यह नाम पड़ा था।
  4. पार्थ - अर्जुन की माता कुंती का दूसरा नाम 'पृथा' था, इसीलिए वे पार्थ कहलाये।
  5. परन्तप - जो अपने शत्रुओं को ताप पहुँचाने वाला हो, उसे परन्तप कहते हैं।
  6. कौन्तेय - कुंती के नाम पर ही अर्जुन कौन्तेय कहे जाते हैं।
  7. पुरुषर्षभ - 'ऋषभ' श्रेष्ठता का वाचक है। पुरुषों में जो श्रेष्ठ हो, उसे पुरुषर्षभ कहते हैं।
  8. भारत - भरतवंश में जन्म लेने के कारण ही अर्जुन का भारत नाम हुआ।
  9. किरीटी - प्राचीन काल में दानवों पर विजय प्राप्त करने पर इन्द्र ने इन्हें किरीट (मुकुट) पहनाया था, इसीलिए अर्जुन किरीटी कहे गये।
  10. महाबाहो - आजानुबाहु होने के कारण अर्जुन महाबाहो कहलाये।
  11. फाल्गुन - फाल्गुन का महीना एवं फल्गुनः इन्द्र का नामान्तर भी है। अर्जुन इन्द्र के पुत्र हैं। अतः उन्हें फाल्गुन भी कहा जाता है।
  12. सव्यसाची - 'महाभारत' में अर्जुन के इस नाम की व्याख्या इस प्रकार है-
उभौ ये दक्षिणौ पाणी गांडीवस्य विकर्षणे। तेन देव मनुष्येषु सव्यसाचीति माँ विदुः।।
अर्थात् -
जो दोनों हाथों से धनुष का संधान कर सके, वह देव मनुष्य सव्यसाची कहा जाता है।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

Mahamariyon Ka Kaaran Aur Nivaran महामारियों का कारण और निवारण



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये आज मैं संसार में महामारियों के कारक ग्रह केतु के विषय में विस्तार पूर्वक बताने जा रहा हूँ-

ज्योतिष शास्त्र में सभी प्रकार की महामारियों का कारक ग्रह 'केतु' को माना गया है । केतु एक धूम्र वर्ण का छाया ग्रह है जो कि अकस्मात शुभाशुभ फल देने के लिये प्रसिद्ध है। यह 'मंगल' के समान फल देता है, जिस ग्रह और जिस राशि में बैठा होता है उसकी भी छाया ले लेता है तथा अचानक से दुर्घटना, आगजनी, बम विस्फोट, नृशंस हत्याओं के लिये उत्तरदायी होता है।

विषाणु(Virus) जनित भयानक महामारियां जैसे (पोलियो, कोढ़, चेचक(Pox), प्लेग, स्वाइन फ्लू (H1N1), इबोला, जीका, कोरोना (Covid-19)आदि जो पूर्व में प्रकट हो चुकी हैं अथवा जितनी भी महामारियां भविष्य में प्रकट होने वाली हैं इन सभी का कारक केतु ही होता है। फोड़ें -फुंसी, सफेद दाग आदि भी जन्म कुंडली मे केतु की अशुभ स्थिति के कारण ही होते हैं।

कोढ़ी व्यक्ति, कुत्तों, भेड़ियों, लोमड़ियों तथा लकड़बग्घों में इसकी नकारात्मक ऊर्जा सर्वाधिक मानी जाती हैं यही कारण है कि शास्त्रों के अनुसार घरों में कुत्ता पालन निषेध किया गया है तथा कुत्ते के स्पर्श होने पर वस्त्र सहित स्नान करने का विधान निश्चित किया गया है जिससे केतु जनित रोगों से बचा जा सके।

ज्योतिष के ग्रंथों में केतु की अशुभ दशा प्राप्त होने पर कोढ़ी व्यक्तियों तथा कुत्तों को प्रसन्न करने का उल्लेख मिलने का भी यही कारण है कि इन दोनों को प्रसन्न करके स्वयं के लिए घातक केतु की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को कम किया जा सके।

यह तो बात हुई कारण की अब बात करते हैं निवारण की, तो देखिये संसार में जितने भी प्रकार के विषैले और हानिकारक तत्व हैं अथवा परमाणु विकिरण( Nuclear Radiation) हैं उन सभी को ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व, 'शिवलिंग' के माध्यम से निरन्तर अपने अंदर अवशोषित करता रहता है, जिसके कारण संसार के प्राणी इन विषैले तत्वों की भयानक ऊर्जा से बचे रहते हैं । यही कारण है कि हम वैदिक मंत्रों के द्वारा निरंतर शिवलिंग को जल, दुग्ध, घी, शहद आदि से शांत करने का प्रयास करते रहते हैं जिससे कि उस परम कल्याणमयी शिवलिंग के द्वारा हम विषैले तत्वों की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बचे रहें।

चूंकि केतु की ऊर्जा के कारण इन विषैले तत्वों को फैलने का माध्यम मिलता है अतः केतु की नकारात्मकता को रोकने का सामर्थ्य केवल भगवान् 'शिव' और उनकी 'शक्ति' में ही है अतः शिव-शक्ति की उच्च कोटि की साधनाओं के द्वारा केतु की उग्रता को समाप्त किया जा सकता है ।

प्राचीन काल में राजा-महाराजा इन महामारियों तथा अन्य अनिष्टकारी घटनाओं से अपनी तथा अपनी प्रजा की रक्षा के लिये समय-समय पर अपने कुल गुरुओं की आज्ञा से वैदिक तथा तांत्रिक विद्वानों की सहायता से बड़े-बड़े यज्ञ अनुष्ठान आदि करवाया करते थे, वर्तमान में न तो वह शासक ही धर्म के पथ पर चलने वाले रहे और न साधक ही।

ऐसे समय में अच्छे वेदपाठी तथा तांत्रिक विद्वान ढूंढना ही दुष्कर कार्य है तथा वह मिल भी जायें तो भारत के अधर्मी, विधर्मी तत्व ऐसे यज्ञों-अनुष्ठानों को क्रियान्वित नहीं होने देंगे जिनकी सहायता से कोरोना वायरस जैसी महामारियों का पूर्णतः विनाश किया जा सकता है।

ऐसे में भारत सरकार यदि उच्च कोटि के विद्वानों द्वारा प्रत्येक जिले में 1-1 'कोटि चंडी' अनुष्ठान, वेदपाठियों द्वारा सामूहिक रुद्राभिषेक तथा उच्च कोटि के तांत्रिक विद्वानों द्वारा दस महाविद्याओं के यज्ञों के आयोजन करवाये तो आगामी 10 वर्षों तक कोरोना वायरस ही नहीं अनेक प्रकार की दुष्ट शक्तियों से भारत तथा भारतवासियों की रक्षा हो सकेगी, साथ ही 'भगवती चंडी' के आशीर्वाद से राष्ट्र में रहकर राष्ट्र को क्षीण करने वाले 'दानव दलों' का सर्वनाश होगा तथा 'महाकाली' के आशीर्वाद के कवच से राष्ट्र की सीमायें भी सुरक्षित होंगी जिससे सनातन धर्म का भगवा ध्वज सम्पूर्ण दिशाओं में अपना परचम लहरायेगा तथा हिंदुत्व के शंखनाद से दसों दिशाओं में व्याप्त पैशाचिक शक्तियों का विनाश किया जा सकेगा।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava