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शनिवार, 16 मई 2020

अग्नि पुराण में वर्णित शुभाशुभ स्वप्न



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं अग्नि पुराण में वर्णित शुभाशुभ स्वप्नों का वर्णन करने जा रहा हूँ।

अग्नि पुराण के दो सौ उनतीसवें अध्याय में पुष्कर जी, भगवान् परशुराम जी से कहते हैं-

हे भार्गव परशुराम जी !
नाभि के सिवा शरीर के अंगों में तृण और वृक्षों का उगना, कांस के बर्तनों का मस्तक पर रखकर फोड़ा जाना, माथा मुड़ना, नग्न होना, मैले कपड़े पहनना, तेल लगना, तेल में नहाना, कीचड़ लपेटना, ऊंचाई से गिरना, विवाह होना, गीत सुनना, वीणा आदि के बाजे सुनकर मन बहलाना, हिंडोले पर चढ़ना, पद्म और लोहों का उपार्जन, सर्पों को मारना, लाल फूल से भरे वृक्षों तथा चाण्डाल को देखना, सूअर, कुत्ते, गधे और ऊंटों पर चढ़ना, चिड़ियों के मांस का भक्षण करना, तेल पीना, खिचड़ी खाना, माता के गर्भ में प्रवेश करना, चिता पर चढ़ना, इंद्र के उपलक्ष्य में खड़ी की हुई ध्वजा पर टूट पड़ना, सूर्य और चंद्रमा का गिरना, दिव्य, अंतरिक्ष और भू लोक में होने वाले उत्पातों का दिखाई देना, देवता, ब्राह्मण, राजा और गुरुओं का कुपित होते हुए दिखाई देना, नाचना, हंसना,गीत गाना,वीणा के सिवाय अन्य प्रकार के बाजों का स्वयं बजना, नदी में डूबकर नीचे जाना, गोबर , कीचड़ तथा स्याही मिलाये हुए जल से स्नान करना, कुमारी कन्याओं का आलिंगन, पुरुषों का एक दूसरे के साथ मैथुन, दक्षिण दिशा की ओर जाना, अपने अंगों की हानि, वमन और विरेचन करना, रोग से पीड़ित होना, फलों को हानि, धातुओं का भेदन करना, घरों का गिरना, घरों में झाड़ू देना, पिशाचों, राक्षसों, वानरों तथा चण्डालों आदि के साथ खेलना, शत्रु से अपमानित होना, शत्रु की ओर से संकट प्राप्त होना, गेरुआ वस्त्र धारण करना तथा गेरुए वस्त्रों से खेलना, लाल फूलों की माला पहनना ये सब बुरे स्वप्न हैं। इन्हें दूसरों पर प्रकट न करना अच्छा है ऐसे स्वप्न देखकर पुनः सो जाना चाहिये।

आगे पुष्कर जी कहते हैं-
हे भार्गव परशुराम जी !

यदि पृथ्वी पर या आकाश में श्वेत पुष्पों से भरे हुये वृक्षों का दर्शन हो, अपनी नाभि से वृक्ष अथवा तिनका उत्पन्न हो, अपनी अधिक भुजायें और अधिक मस्तक दिखाई दें, सिर के बाल पके हुये दिखायी दें तो उसका फल उत्तम होता है।

श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत वस्त्र धारण करना, चंद्रमा , सूर्य और तारों को पकड़ना, परिमार्जन करना, इंद्र की ध्वजा का आलिंगन करना, ध्वजा को ऊंचे उठाना, पृथ्वी पर पड़ती जल धाराओं को अपने ऊपर रोकना, शत्रुओं की बुरी दशा देखना, वाद-विवाद, जुआ तथा संग्राम में अपनी विजय देखना, खीर खाना, रक्त से स्नान करना, रक्त का देखना, सुरा, मद्य अथवा दूध पीना, अस्त्रों से घायल होकर छटपटाना, आकाश का स्वच्छ होना तथा गाय, भैंस, सिंहनी, हथिनी और घोड़ी को मुंह से दुहना ये सब उत्तम स्वप्न हैं।

देवता, ब्राह्मण और गुरुओं की प्रसन्नता, गायों के सींग अथवा चंद्रमा से गिरे हुये जल के द्वारा अभिषेक होना, अपना राज्याभिषेक होना, अपने मस्तक का काटा जाना, आग में पड़ना, मृत्यु को प्राप्त होना, राज्यचिह्नों का प्राप्त होना, अपने हाथ से वीणा बजाना ये स्वप्न उत्तम फल प्रदान करने वाले हैं, ऐसा समझना चाहिये।

जो स्वप्न के अंतिम भाग में राजा, हाथी, घोड़ा, स्वर्ण, बैल तथा गाय को देखता है उसका कुटुम्ब बढ़ता है। बैल, हाथी, महल की छत, पर्वत शिखर तथा वृक्ष पर चढ़ना, रोना, शरीर में घी, विष्ठा का लग जाना तथा अगम्या स्त्री के साथ समागम करते हुए देखना यह सब शुभ स्वप्न हैं।

रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे हुए स्वप्न एक वर्ष तक फल देने वाले होते हैं, दूसरे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न छः माह में, तीसरे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न 3 माह में, चौथे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न 15 दिनों में तथा अरुणोदय की वेला में देखे जाने वाले स्वप्न 10 दिनों में ही अपना फल प्रकट कर देते हैं।

यदि एक ही रात्रि में शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के स्वप्न दिखाई पड़ें तो उनमें जिसका दर्शन बाद में हो उसी का फल घटित होता है। अतः अशुभ फल देखने के पश्चात सो जाना चाहिये तथा शुभ स्वप्न देखने के पश्चात सोना अच्छा नहीं होता।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

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