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बुधवार, 27 अप्रैल 2022

शनि का अपनी मूलत्रिकोण राशि 'कुंभ' में प्रवेश

 

२९ अप्रैल २०२२ को प्रातः ९ बजकर ५७ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर शनि 'मकर' राशि से निकल कर अपनी मूलत्रिकोण राशि 'कुंभ' में प्रवेश करेंगे जहां वह २९ मार्च २०२५ की रात्रि १० बजकर ६ मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात् अगली राशि 'मीन' में चले जायेंगे।

शनि ५ जून २०२२ में वक्री हो जायेंगे और १२ जुलाई २०२२ को वक्री गति से ही कुछ समय के लिए अपनी पिछली गोचर राशि 'मकर' में पुनर्वापसी करेंगे और बाद में २३ अक्तूबर २०२२ से अपनी मार्गी गति को प्राप्त होकर १७ जनवरी २०२३ को पुनः 'कुंभ' राशि में प्रवेश कर जायेंगे। इस प्रकार 'मकर' राशि में शनि के गोचर की अवधि १२ जुलाई २०२२ से १७ जनवरी २०२३ तक रहेगी।

शनि क्रम संख्या में सूर्य से छ्ठे स्थान पर स्थित हैं और बृहस्पति के बाद सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह हैं। यह विभिन्न गैसों का एक विशाल भंडार रखते हैं। अतः 'यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे' के सिद्धांत के आधार पर जातक की जन्मकुंडली में शनि की अशुभकारी स्थिति होने पर उसके शरीर में गैस की अधिकता हो जाती है। वैदिक ज्योतिष में शनि को न्यायाधीश कहा जाता है तथा यह आयु, रोग और दुःख के कारक होते हैं।

प्रायः देखा जाता है कि शनि का नाम सुनकर ही लोग भयभीत हो जाते हैं क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में दुःख नहीं उठाना चाहता। किन्तु यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो शनि, जीव को दुखों के चक्र में डालकर उसके द्वारा पूर्व जन्मों में किए गए पाप कर्मों का भुगतान करवाकर उसकी आत्मा को शुद्ध करवाने का ही कार्य करते हैं जिससे जीव मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चलकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके।

कई जातकों की जन्मकुंडलियों में अशुभ स्थिति होने पर शनि अपनी दशा काल में उसको इतने दुःख देते हैं कि अनेक बार वह अपने सगे-संबंधियों के मोह से विरक्त होकर, अपना घर-परिवार छोड़कर पर्वतों, वनों आदि में साधना करने निकल जाता है और स्वयं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर लेता है। पर्वतों पर आप जितने भी साधु रहते हुए देखते हैं उनके जीवन पर कहीं न कहीं शनि का ही प्रभाव होता है जिसके कारण वह आत्मकल्याण हेतु मोक्ष की साधना कर पा रहे हैं। इस प्रकार शनि दुखों के कारक होते हुए भी अन्त में जीव के लिए कल्याणकारी ही सिद्ध होते हैं।

शनि ग्रह की एक विशेषता यह है कि उनकी अशुभ दशा-अंतर्दशा, ढैय्या, साढ़े साती प्राप्त होने पर जो जातक अपने स्वभाव में विनम्रता और जीवन में सात्विकता ले आते हैं उनको वह उतना अशुभ फल नहीं देते किन्तु जो जातक दूसरों पर अत्याचार करते हैं, पाप आचरण करते हैं, हत्या, लूट, डकैती, चोरी, बलात्कार आदि पापों में लिप्त रहते हैं तथा मांस, मदिरा आदि का सेवन करते हैं, शनि उनका समूल विनाश करके प्राणियों को उसके भय से मुक्ति दिलाने का कार्य करते हैं।

शनि की गति सभी ग्रहों में सबसे अधिक धीमी है जिसके कारण यह एक राशि से निकलने में लगभग ढाई वर्ष का समय लगा देते हैं। इसी ढाई वर्ष के समय काल को शनि की ढैय्या के नाम से जाना जाता है। यह तुला, मकर और कुम्भ राशियों, सप्तम भाव (पश्चिम दिशा), दक्षिणायन, स्वद्रेष्काण में रहने पर तथा रात्रि में बली होते हैं और यह कुम्भ राशि के प्रथम २० अंश तक मूलत्रिकोण तथा २१ से ३० अंश तक स्वराशि का फल देते हैं। यह वायु तत्व प्रधान एक नपुंसक ग्रह हैं जो कि शिशिर ऋतु के स्वामी होते हैं तथा रोग, दुःख, विपत्ति, नौकरी (सेवक), न्याय व्यवस्था, शराब, लोहा, काले वस्त्र, पेट्रो कैमिकल्स, कोयला, गैस, तंत्रिका तंत्र (Nervous System), गठिया, वायु विकार, लकवा, श्रम, दरिद्रता, मजदूरी, ऋण आदि के कारक होते हैं।

फलदीपिका में शनि के विषय में इस प्रकार कहा गया है...

वातश्लेष्मविकारपादविहतिं चापत्तितन्द्राश्रमान् भ्रान्तीं कुक्षिरुगन्तरुष्णभृतकध्वंसं च पार्श्वहतिम्।
भार्यापुत्रविपत्तिमङ्ग्विहर्तिं हृत्तापमर्कत्मजो वृक्षाश्मक्षतिमाह कश्मलगणैः पीडां पिशाचादिभिः॥
अर्थात् -
शनि के दूषित होने से वात-कफज विकार, पादक्षति, विपत्ति, श्रमजनित थकान, मानसिक विभ्रम, कुक्षिरोग, हृद् रोग, भृत्यों की क्षति, पसली में चोट, स्त्री-पुत्रादि को कष्ट, अंग-भंग, हृत् ताप, वृक्ष अथवा पत्थर से चोट, पिशाचादि से पीड़ा आदि फल होते हैं ।

फलदीपिका में यह भी कहा गया है...

दारिद्रयदोषनिजकर्मपिशाचचौरै: क्लेशं करोति रविजः सह सन्धिरोगैः।
अर्थात्
दरिद्रता, दूषित कर्म, पिशाच और चौर भय तथा इनके द्वारा कष्ट, सन्धियों में रोग आदि दूषित शनि के प्रभाव से होते हैं।

वैदिक ज्योतिष में शनि को आयु का कारक माना जाता है, यदि लग्नेश, अष्टमेश और शनि बलवान हों तो मनुष्य दीर्घायु होता है। शनि का रंग काला होता है और यदि यह किसी जातक के लग्न-लग्नेश, चन्द्र लग्न-चन्द्र लग्नेश, सूर्य लग्न-सूर्य लग्नेश तथा द्वितीय भाव-द्वितीयेश पर अपना प्रभाव डालें तो उस जातक का रंग काला होता है।

शनि की ढैय्या एवं साढ़े साती विचार-
गोचर में शनि जब किसी जातक के चन्द्र लग्न (जन्म राशि) से चतुर्थ अथवा अष्टम् भाव में संचार करना प्रारम्भ करते हैं तब उसके ऊपर शनि की ढैय्या का आगमन होता है और जब यह चन्द्र लग्न से द्वादश, प्रथम और द्वितीय भावों में स्थित राशियों में ढाई-ढाई वर्ष संचार करते हैं तो इसको ही शनि की साढ़े साती कहा जाता है।

शनि के इस राशि परिवर्तन के कारण 'धनु राशि' पर से शनि की साढ़े साती तथा 'मिथुन व तुला' से शनि की ढैय्या समाप्त हो जायेगी और 'मीन राशि' पर साढ़े साती तथा 'कर्क व वृश्चिक' पर ढैय्या का आगमन होगा। इस प्रकार 'मकर, कुम्भ व मीन' पर शनि की साढ़े साती तथा 'कर्क व वृश्चिक' राशियों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव रहेगा। जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि १२ जुलाई से शनि पुनः 'मकर' राशि में गोचर करने लगेंगे जिसके कारण जो राशियां २९ अप्रैल को शनि ढैय्या व साढ़े साती से मुक्त हो चुकी होंगी वह एक बार पुनः इसकी चपेट में आ जायेंगी और १७ जनवरी २०२३ तक इसी स्थिति में रहेंगी। इस तरह से देखा जाए तो मिथुन और तुला राशि वालों को शनि की ढैय्या और धनु राशि को शनि की साढ़े साती से पूर्ण रूप से मुक्ति १७ जनवरी २०२३ को ही मिल सकेगी।

आइए अब जानते हैं कि विभिन्न राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर शनि के इस राशि परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा?

शनि के 'कुम्भ' राशि में प्रवेश से विभिन्न राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन में पड़ने वाले प्रभाव-

मेष राशि - मेष लग्न
आपके एकादश भाव में शनि का संचार आपको सरकार से विभिन्न प्रकार के लाभ कराने वाला होगा। यदि आप किसी सरकारी पद पर हैं तो आपके प्रमोशन के योग बनेंगे। यदि आप सरकारी ठेकेदारी का कार्य करते हैं तो आपको उससे बहुत अधिक लाभ प्राप्त होगा और यदि आप राजनीति में हैं तो आपको उसमें भी सफलता मिलेगी किन्तु शनि की तीसरी नीच दृष्टि आपके सिर, सप्तम शत्रु दृष्टि आपके पेट, हृदय, संतान तथा पढ़ाई के लिए अशुभ है तथा इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके ससुराल के लिए अमंगलकारी है। इस राशि-लग्न वाले जातक सिर की चोट से स्वयं का बचाव करें। हनुमान जी की आराधना से आपको विशेष लाभ होगा।

वृष राशि - वृष लग्न
आपके दशम भाव में शनि का संचार आपके पिता के स्वास्थ्य, उनकी आयु तथा उनकी आर्थिक उन्नति के लिए विशेष लाभकारी है। यदि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है तो उसमें आपको सफलता मिलेगी किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी दादी के स्वास्थ्य, आपकी एड़ी-पंजों तथा आपके बाएं नेत्र के लिए विशेष हानिकारक है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपकी माता, वाहन, भवन-भूमि तथा आपके सेवकों के लिए अशुभ है तथा इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन और पार्टनरशिप के लिए अमंगलकारी है। इस अवधिकाल में आपको वाहन चलाने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा कोई दुर्घटना घटित हो सकती है। रुद्राक्ष की माला से भगवान् शंकर के उच्च कोटि के मंत्रों का विधिवत् जाप करें।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
आपके नवम भाव में शनि का संचार आपके भाग्य के लिए बहुत उत्तम फल प्रदान करने वाला होगा। नवम भाव में शनि आपको देश में ही पर्वतीय स्थानों की यात्रा करवा सकता है जिससे आपके जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का नवीन संचार होगा। यदि आपके भाग्य के कारण आपके कोई कार्य रुके हुए थे तो वह अब पूर्ण होंगे किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी पिंडलियों तथा आपके बड़े भाई-बहन, चाचा और छोटी बुआ के लिए विशेष हानिकारक है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों, आपके गले और दाहिने हाथ के लिए अशुभ है। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपके छ्ठे भाव में होने के कारण इस समय आपको कर्ज लेने से बचना चाहिए तथा अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। यह समय आपके दादा के स्वास्थ्य के लिए भी अशुभ है। यदि पहले से ही आप छ्ठे भाव से सम्बंधित अंगों के किसी रोग से पीड़ित है तो अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रुद्राक्ष की माला से भगवती दुर्गा के उच्च कोटि के मन्त्रों का जाप करने से सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होगा।

कर्क राशि - कर्क लग्न
आपके अष्टम् भाव में शनि का संचार आपकी आयु तथा आपके जीवन साथी के धन के लिए अत्यन्त शुभ है। यदि इस राशि-लग्न का कोई जातक मृत्यु शैय्या पर होगा तो वह अष्टम् भाव में पहले से ही संचार कर रहे मंगल के 'मीन राशि' में प्रवेश करने के साथ ही शनि के प्रभाव से ठीक होने लगेगा क्योंकि तब इनके अष्टम् भाव में आयुकारक शनि के अकेले संचार करने से वह इनकी आयु में वृद्धि कर देगा। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पिता के धन, सास के स्वास्थ्य तथा आपके घुटनों की लिए ठीक नहीं है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके धन, कुटुंब तथा मुख के लिए अशुभ है और इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके पेट, हृदय, पढ़ाई तथा आपकी संतान के लिए अमंगलकारी है। अपने इष्टदेवता के मंत्रों का विधिपूर्वक जाप करें।

सिंह राशि - सिंह लग्न
यद्यपि शनि का सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है तथापि यह आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य और उनके मानसम्मान में वृद्धि करवाने वाला होगा। यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि शुभ स्थिति में हैं और आप उसी से सम्बंधित वस्तुओं का व्यापार करते हैं तो यह समय आपके व्यापार के लिए उत्तम है। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पिता तथा आपके भाग्य के लिए अशुभ है तथा यह आपको धर्म से भी विमुख करेगी। पीठ और कमर की चोट से स्वयं का बचाव करें। इस अवधिकाल में आपको अपने नगर से दूर होने वाली व्यर्थ की यात्राओं को टाल देना चाहिए अन्यथा यात्रा में हानि उठानी पड़ सकती है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके सिर में कोई चोट अथवा पीड़ा दे सकती है, अतः बचाव करें। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी माता, भवन-भूमि, वाहन और सेवकों के लिए अमंगलकारी है। हनुमान जी की उपासना,पीपल की पूजा करने तथा काले रंग की देशी गाय को रात्रि के समय भोजन करवाने से शनि जनित पीड़ाओं का शमन होगा। शनि के मंत्रों का विधिवत् जाप करने से भी जीवन में सुख-शान्ति का आगमन होगा।

कन्या राशि - कन्या लग्न
शनि का आपके छठे भाव में संचार आपको कर्जों से मुक्ति प्रदान करने तथा आपके शत्रुओं का विनाश करने वाला सिद्ध होगा किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके ससुराल तथा आपके जीवन साथी के धन एवं उनके दाहिने नेत्र व मुख के लिए अशुभ है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके धन का व्यय चिकित्सालय, औषधियों अथवा न्यायालय में करवाएगी, अतः यदि आपके परिवार में किसी को चिकित्सा की आवश्यकता है तो अपने धन का उपयोग उसकी चिकित्सा में करें अन्यथा आपका धन न्यायालय में किसी अभियोग आदि में व्यय हो सकता है। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों, आपके दाहिने हाथ एवं गले के लिए कष्टकारी है। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। किसी योग्य वेदपाठी ब्राह्मण के सानिध्य में देवी बगुलामुखी और हनुमान जी की उपासना करें।

तुला राशि - तुला लग्न
यद्यपि शनि का आपके पंचम भाव पर संचार आपके पेट में गैस की वृद्धि करने, आपकी बुद्धि को दूषित करने, आपके प्रेम संबंधों में बाधा डालने तथा आपकी संतान को कष्ट देने वाला होगा तथापि यदि आपकी जन्मकुंडली में आपका पंचम भाव एवं पंचमेश शुभ स्थिति में हुआ तो यह समय आपको अक्समात् ही जुआ, लॉटरी , सट्टा, शेयर मार्केट आदि से धन प्राप्त करवाने वाला तथा राजनीति में आपको उच्च पद प्राप्त करवाने वाला सिद्ध होगा। यह समय आपके माता के धन एवं उनके कुटुम्ब की वृद्धि करने वाला होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां इस समय अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें। शनि की तीसरी नीच दृष्टि आपके सप्तम भाव पर पड़ने से आपके दाम्पत्य जीवन में कलह, विवाद उत्पन्न होना, आपके जीवन साथी की आयु-स्वास्थ्य पर संकट आने जैसे अशुभ फल घटित होंगे। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके बड़े भाई-बड़ी बहन, चाचा और छोटी बुआ के लिए शुभ नहीं है। पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपके द्वितीय भाव पर होने से आपके मुख और दाहिने नेत्र में कोई रोग उत्पन्न हो सकता है। यह दृष्टि आपके धन-कुटुम्ब के लिए भी अमंगलकारी है। भैरव सहित हनुमान जी की उपासना से शनि जनित पीड़ाओं का शमन होगा।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
शनि का आपके चतुर्थ भाव में संचार आपकी माता के स्वास्थ्य, उनकी आयु और मान-सम्मान, आपके भवन-भूमि-वाहन तथा आपके सेवकों आदि के लिए शुभ फल प्रदान करने वाला होगा। यदि आपकी जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव-चतुर्थेश, द्वितीय भाव-द्वितीयेश और शनि शुभ स्थिति में हैं तो इस समय आप कोई चुनाव जीत सकते हैं, कोई बड़ी संपत्ति को प्राप्त कर सकते हैं किन्तु इसकी तृतीय नीच दृष्टि आपको शत्रुओं से पीड़ा अवश्य देगी तथा जन्मकुंडली में छ्ठे भाव से उत्पन्न रोगों में वृद्धि करवाएगी। किसी भी प्रकार का कर्ज लेने से आपको बचना चाहिए। यह समय आपके छोटे मामा-छोटी मौसी तथा आपके दादा की आयु के लिए अत्यन्त अमंगलकारी है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपकी सास के लिए शुभ नहीं है। घुटनों की चोट से स्वयं को बचाएं। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके लग्न में पड़ने से आपको अपने सिर की चोट व पीड़ा से भी बचाव करना होगा। हनुमान जी की उपासना करने, पीपल पर सरसों के तेल का दीपक जलाने व शनि के मंत्रों का जाप करने से शनि जनित कष्टों का निवारण होगा।

धनु राशि - धनु लग्न
शनि का आपके तृतीय भाव में संचार आपके छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य और उनके मान सम्मान में तथा आपके पराक्रम में वृद्धि करवाने वाला होगा। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्राओं से लाभ प्राप्त होगा। इस राशि-लग्न का कोई जातक यदि बहुत समय से विदेश जाने के लिए प्रयासरत था तो अब वह जा सकेगा किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पेट, हृदय, संतान, पढ़ाई आदि के लिए ठीक नहीं है। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियों को विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके पिता के लिए अशुभ है। अपनी पीठ, कमर की चोट व पीड़ा का ध्यान रखें। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी दादी के स्वास्थ्य के लिए अशुभ है। यह आपको बाएं नेत्र, एड़ी व पंजों में कोई कष्ट दे सकती है। परिवार में किसी को चिकित्सा की आवश्यकता हो तो अपने खर्चे से करवा दें। संतान की सुरक्षा के लिए भगवान् विष्णु के मंत्रों का जाप करें तथा हनुमान जी की आराधना करें।

मकर राशि - मकर लग्न
शनि का आपके द्वितीय भाव में अपनी मूल त्रिकोण राशि में संचार आपके धन की वृद्धि करवाने वाला होगा। यदि आपका कोई पुराना धन किसी के पास रुका हुआ है तो उसके वापसी के योग बनेंगे। यदि दीर्घ काल से आप अपने कुटुम्ब से पृथक रहते हैं तो आपके अपने कुटुम्ब में वापसी के योग बनेंगे किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी माता, भवन-भूमि, वाहन, सेवक आदि के लिए अशुभ है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके ससुराल तथा पत्नी के मुख और इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके बड़े भाई-बहनों, चाचा और छोटी बुआ के लिए अमंगलकारी है। पैरों और छाती की चोट से स्वयं का बचाव करें। वाहन चलाने में भी सावधानी रखें। मिथ्या वचन बोलने से बचें तथा भवानी सहित भगवान् शंकर का पूजन करें।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
शनि का आपके लग्न में संचार करना आपकी आयु, स्वास्थ्य, मान-सम्मान के लिए अत्यन्त शुभ है। यदि दीर्घ काल से आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है तो अब उसमें सुधार देखने को मिलेंगे। आपके सिर के स्थान पर शनि के संचार करने के कारण आपके सिर में भारीपन रहने की समस्या बन सकती है। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों के लिए अशुभ है। अपने हाथ की चोट व गले की समस्या से स्वयं का बचाव करें। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य और उनकी आयु पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले इसके लिए उनको उनका जीवन रत्न धारण करवाकर रखें। साथ ही योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से उनके लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप अनुष्ठान करवा लें। यह समय आपके ताऊ तथा बड़ी बुआ के लिए भी शुभ नहीं है। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी सास के लिए अमंगलकारी है। घुटनों की चोट से बचें। आपके पिता की धन हानि तथा उनके मुख में पीड़ा के योग बनेंगे।

मीन राशि - मीन लग्न
इस राशि-लग्न का कोई जातक यदि किसी अभियोग में कारावास में बन्दी है तो अब उसको उस अभियोग से मुक्ति मिलने के योग बन रहे हैं। यदि आप विदेश में प्रवास करने के लिए प्रयासरत थे तो आपको उसमें सफलता मिलेगी। आपके बड़े भाई-बहनों की आर्थिक उन्नति के लिए भी यह समय शुभ है किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके धन की हानि अन्य स्थानों पर करवाती रहेगी तथा आपके नेत्रों और मुख में कोई कष्ट देगी। यह आपके कुटुम्ब में भी क्लेश-विवाद की स्थिति बनाए रखेगी। अपनी वाणी पर संयम रखें अन्यथा शत्रु प्रबल होंगे। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके छ्ठे भाव पर पड़ने से आपके साथ कोई हिंसा अथवा दुर्घटना के योग बना रही है अतः सावधान रहें। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके भाग्य व पिता के स्वास्थ्य के लिए अमंगलकारी है। शनि के अनिष्ट फलों को समाप्त करने के लिए हनुमान जी की आराधना करें, पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं व उसकी परिक्रमा करें, शनि के मंत्रों का जाप व उनके निमित्त दान करें, काले रंग के वस्त्रों को धारण करने से बचें।


नोट- शनि के कुम्भ राशि में संचार करने के इस अवधिकाल में शनि के साथ होने वाली विभिन्न ग्रहों की युति-दृष्टि से जातकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से इस फलादेश का कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही गोचर में होने वाले अन्य ग्रहों के राशि परिवर्तनों का। यहाँ केवल शनि के अपनी मूल त्रिकोण राशि 'कुम्भ' में होने के शुभाशुभ परिणामों का वर्णन किया जा रहा है। आगे यदि संभव हुआ तो मैं शनि के 'कुम्भ राशि' में संचार करने के इस अवधिकाल के अन्तर्गत् शनि के साथ होने वाले अन्य ग्रहों की युतियों के फलस्वरूप घटित होने वाले परिणामों के विषय में अलग से ब्लॉग बनाकर आप सभी को उसकी जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास करूंगा।

इसके अतिरिक्त इन राशि-लग्नों में जन्म लेने वाले किसी जातक की स्वयं की जन्म-कुंडली में शनि यदि अपनी शत्रु राशि, नीच राशि अथवा किसी पाप या शत्रु ग्रह के प्रभाव में हुए और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी, तो उन्हें इस फलादेश में बताए गए उत्तम फलों की प्राप्ति तो अल्पमात्रा में होगी किन्तु अशुभ फलों की प्राप्ति अधिक होगी। इसके विपरीत जिन जातकों की जन्म-कुंडली में शनि शुभ स्थानों के स्वामी होकर अपने मित्र या उच्च राशि में स्थित होकर शुभ प्रभाव में हुए तथा उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिये शनि यह राशि परिवर्तन अत्यन्त शुभ फल प्रदान करने वाला होगा।

'शिवार्पणमस्तु'
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

सूर्य के 'उच्च राशि' में प्रवेश के पश्चात भी संकट का कारण बनेगी सूर्य-राहु युति...


अपने पिछले ब्लॉग 'राहु केतु का राशि-परिवर्तन २०२२' में मैंने आप सभी को राहु के 'मेष' राशि और सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका' में प्रवेश के विषय में बताया था और उस ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए मैंने लिखा था कि समय-समय पर राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के ऊपर अलग से ब्लॉग बनाकर आपको जानकारी देने का प्रयास करूँगा ।
इस विषय पर मेरा पुराना ब्लॉग देखें -

उसी कड़ी में आज मैं आपको जानकारी देने जा रहा हूँ मेष राशि में स्थित 'राहु' के साथ होने वाली 'सूर्य' की युति की ।

'सूर्य' १४ अप्रैल २०२२ को प्रातः ८ बजकर ३३ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर मेष राशि के 'अश्वनी' नक्षत्र में प्रवेश करेंगे जहाँ वह १५ मई २०२२, प्रातः ५ बजकर २२ मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात 'वृष' राशि में प्रवेश कर जायेंगे।

सूर्य 'मेष' राशि में उच्च के हो जाते हैं तथा उसमें भी मेष राशि के १० अंश पर परम उच्च का फल देते हैं। जिस समय 'सूर्य' मेष राशि में प्रवेश करेंगे वहां उनका सामना १२ अप्रैल से संचार करते हुए 'राहु' के साथ होगा और गोचर में सूर्य-राहु की युति बन जाएगी तथा सूर्य- राहु की चपेट में आकर अपने शुभ फलों को देने में असमर्थ हो जायेंगे। 

जैसा कि मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में बता चुका हूँ कि राहु जिस भी ग्रह की राशि में स्थित होता है तथा जिस भी ग्रह से युति करता है अपने 'शनि' जैसे मारक प्रभावों के अतिरिक्त उस-उस ग्रह की छाया लेकर उनके भी प्रभाव ग्रहण कर लेता है। ऐसे में राहु- मंगल की राशि में स्थित होने तथा सूर्य की युति में आ जाने से मंगल तथा सूर्य के मारक प्रभाव भी ले लेगा और अपने अशुभ प्रभावों में कई गुना वृद्धि कर लेगा।

ऐसा राहु- सूर्य के उच्च राशि में स्थित होने पर भी उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके उच्च के सूर्य के शुभ फलों को नष्ट कर देगा तथा सूर्य से बनने वाले अवयवों (ह्रदय, पेट, दाहिना नेत्र तथा हड्डियां) को पीड़ित करके सभी जातकों को हानि पहुँचाने की चेष्ठा करेगा। जिसके कारण इस एक माह में विश्व भर में ह्रदय, पेट, दाहिने नेत्र तथा हड्डियों से सम्बंधित रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। अतः यदि कोई जातक पहले से ही इन चारों रोगों में से किसी एक रोग से पीड़ित है तो वह इस एक माह में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेता रहे।

इस एक माह के अवधिकाल में सूर्य-राहु की युति के दुष्परिणाम अंतरिक्ष में भी देखने को मिलेंगे। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चाहें तो अनुसंधान कर सकते हैं इस एक माह में सूर्य से उठने वाले वाले सौर तूफानों (Solar tsunami) में अत्यधिक वृद्धि होगी, जिससे कई देशों के सैटेलाइट नष्ट हो जायेंगे तथा इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक चक्रवात और भूकम्प आएंगे ।

सूर्य-राहु युति के इस अवधिकाल में ३० अप्रैल को सूर्यग्रहण लगेगा जिसके दुष्परिणाम आगामी ६ माह तक देखने को मिलते रहेंगे । विशेष रूप से पहले तीन माह तक इस सूर्य ग्रहण का दुष्प्रभाव बहुत अधिक रहेगा। यह सूर्यग्रहण भारत में मध्यरात्रि १२ बजकर १५ मिनट से शुरू होगा और फिर ३० अप्रैल की सुबह ४ बजकर ७ मिनट पर समाप्त होगा। भारत में यह आंशिक सूर्यग्रहण होगा और दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे भारत में यह कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह सूर्यग्रहण दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और अंटार्कटिका में ही दिखाई देगा और यहां यह ३० अप्रैल दोपहर १२:१५ बजे शुरू होकर शाम ४:०७ बजे समाप्त होगा। जिसके परिणामस्वरूप इन स्थानों पर आगामी ३माह के भीतर बड़े भूकंप और चक्रवात आयेंगे।

सूर्य-राहु की यह युति बड़े राजनेताओं व उच्च अधिकारियों के लिए भी बहुत अमंगलकारी है। इधर पहले से ही 'राहु' बड़े राजनेताओं और उच्च अधिकारियों के कारक 'सूर्य' के नक्षत्र 'कृतिका' में स्थित होने से विश्व के बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों को हानि पहुंचा रहे हैं और विश्व में कई देशों की सरकारें अस्थिर किए हुए हैं, ऊपर से 'सूर्य' के साथ युति करके उनको और अधिक हानि पहुंचाने की चेष्ठा करेंगे। अतः इस एक माह के अवधिकाल में विश्व भर में बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है, जिसका कारण अधिकांशतः हृदय घात ही होगा। इसके अतिरिक्त कई देशों में बड़े राजनेताओं को राजनैतिक अस्थिरता एवं सहयोगी मित्रों से छल की स्थिति का सामना करना पड़ेगा ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए राहु के अशुभ फलों से बचाव के उपाय-
जिन जातकों को राहु अशुभ फल दे रहे हैं वह योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से राहु की वेदोक्त अथवा तंत्रोक्त विधि से विधिवत् शांति करवा लें और स्वयं उनके बीज मंत्र का जाप करें व शनिवार के दिन राहु के निमित्त दान करें । नीला रंग धारण न करें तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा करने और इस दिशा में निवास करने से बचें । राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के उच्च कोटि के मंत्रों का रुद्राक्ष की माला से विधिवत् जाप करें। पुरानी लकड़ी व धूल घर में एकत्र न होने दें और तम्बाकू का सेवन कदापि न करें ।

राहु के निमित्त दान- नीला वस्त्र, नारियल (जटाओं वाला), शीशा (कांच), कंबल, मूली, सुरमा, सप्त धान्य, गोमेद, खड्ग, नीले पुष्प आदि । इसके अतिरिक्त कौवे को मीठी रोटी खिलाने, चींटियों को भोजन देने तथा काली बिल्ली को दूध पिलाने (बिल्ली को घर में पालना नहीं है) से भी राहु देवता प्रसन्न होकर अपने दुष्प्रभावों को अल्प अथवा समाप्त कर देते हैं

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में सूर्य पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ स्थिति में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति उतनी अशुभकारी नहीं होगी किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में सूर्य अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पहले से ही राहु, शनि, केतु के पाप प्रभाव में हुए और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava