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गुरुवार, 20 मई 2021

ज्योतिष का रहस्य : भाग - २


भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं वैदिक ज्योतिष के कुछ गूढ़ रहस्यों को प्रकट करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरा यह लेख ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को अनन्त काल तक दिशा प्रदान करता रहेगा। 

अपने इतने वर्षों के अध्ययन, शोध और Professional Career से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैंने यह पाया कि यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो, नीच राशि में हो और वह नीचभंगता को भी प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो वह ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर अशुभ फल ही देगा। 

यही नहीं, ऐसा ग्रह उस जातक के जन्म और चंद्र लग्न दोनों ही पर लगाए जाने वाले गोचर में यदि शुभ स्थिति में भी भ्रमण कर रहा होगा तब भी वह उस जातक को उतना शुभ फल देने में समर्थ नहीं हो सकेगा जितना किसी अन्य जातक को देगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में उस ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है।  

इसके विपरीत यदि कोई ग्रह किसी जातक की जन्मकुण्डली में शुभ स्थिति में है तो ऐसा ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर शुभ फल ही देगा। ऐसा ग्रह गोचर में यदि अशुभ स्थिति में भी भ्रमण करेगा तो भी वह ग्रह उस जातक को उतना अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होगा जितना किसी अन्य के लिए होगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में वह ग्रह शुभ स्थिति में है। 

साधारणतः ज्योतिषी इन बातों पर तो विचार कर लेते हैं कि ग्रहों का बलाबल कितना है ? नवांश कुण्डली में उनकी स्थिति कैसी है ? पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की किससे मित्रता-शत्रुता है ? ग्रह कारक-अकारक-मारक में से कौन सा है ? ग्रह को केन्द्राधिपति दोष तो नहीं है ? कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हो गया ? आदि-आदि ! 

किन्तु सूक्ष्म परीक्षण करते समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि वह ग्रह जिन राशियों के स्वामी हैं, उन राशियों में कौन -कौन से ग्रह स्थित हैं क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि यदि कोई ग्रह जिस भी राशि में होगा उस राशि के स्वामी ग्रह की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर वह ग्रह भी पीछे से अपना फल अवश्य देगा। 

उदाहरण के लिये मान लेते हैं किसी जातक की शुक्र की २० वर्ष की महादशा आरम्भ हुयी और और शुक्र की दोनों राशियों (वृष-तुला) पर राहु व शनि बैठे हैं और जन्मकुंडली में शुक्र अत्यन्त शुभ स्थिति में हैं, योगकारक भी हैं, तब भी ऐसे शुक्र की महादशा उस जातक को उतना शुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि इस पूरी शुक्र की महादशा में जब-जब शुक्र की अन्तर्दशा , प्रत्यन्तर्दशायें, सूक्ष्म दशायें और प्राणदशायें प्राप्त होंगी, तब-तब शुक्र की दोनों राशियों पर बैठे राहु- शनि भी पीछे से अपना अशुभ फल देते रहेंगे और इसे देखकर बड़े-बड़े ज्योतिषी भी अचंभित रह जायेंगे कि इतने अच्छे शुक्र की महादशा में भी जातक दुखी जीवन व्यतीत करने पर विवश है। 

यही नियम उन अशुभ ग्रहों की महादशाओं पर भी लगाया जायेगा, जिनकी राशियों पर कोई शुभ ग्रह स्थित है। तब ऐसे जातक को वह अशुभ ग्रह की महादशा भी उतना अशुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि उसकी राशियों पर स्थित शुभ ग्रह भी पीछे से अपना शुभ फल देंगे और यहाँ भी ज्योतिषी अचंभित रह जायेंगे कि इस जातक को इतने अशुभ ग्रह की दशा प्राप्त होने पर भी इसका समय इतना अच्छा कैसे व्यतीत हो रहा है। 

बात यहीं समाप्त हो जाती तो भी ठीक था परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र इतना विशाल समुद्र है कि जिसका पार पाना सबकी क्षमता की बात नहीं है, यह इसलिए क्योंकि अभी हमने नक्षत्रों की तो बात की ही नहीं। 

जब बात आती है कुण्डली के सूक्ष्म परीक्षण की तो हमें यह भी देखना होगा कि जातक की जन्मकुण्डली में सभी नवग्रह किन-किन नक्षत्रों पर स्थित हैं तथा जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही है, उस ग्रह के नक्षत्र पर कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं क्यूंकि पीछे से वह ग्रह भी उस दशा-अन्तर्दशा में अपना फल जातक को देता है जो दशापति के नक्षत्र पर स्थित होता है तथा दशापति ग्रह स्वयं उस ग्रह का भी प्रभाव लेकर कार्य करता है, जिसके नक्षत्र पर वह स्वयं स्थित होता है। 

अतः जब भी कोई जातक अपनी जन्मकुण्डली का परीक्षण करवाने हमारे पास आये तो हमें उसकी जन्मकुण्डली में इन सब बातों का ध्यान पूर्वक सूक्ष्म परीक्षण करके उसकी जन्मकुण्डली को दो भागों में विभक्त करना चाहिये। जिसमें प्रथम भाग में उसकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों को रखना चाहिये तथा द्वितीय भाग में अशुभ ग्रहों को। जिससे शुभ ग्रहों को ज्योतिषीय उपायों द्वारा और अधिक शक्ति प्रदान करके, उनके शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि की जा सके तथा अशुभ ग्रहों के दान, व्रत और उनकी विधिवत् शांति आदि करवाकर उनके अशुभ फल देने की क्षमता को न्यूनतम स्थिति में लाकर भविष्य में उस जातक के साथ घटित होने जा रही दुर्घटना-विपत्ति आदि की संभावनाओं को टाला जा सके। 

"शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 16 मई 2021

शार्ली एब्दो के हिन्दू विरोधी कार्टून का उत्तर

भारत में कोविड-19 महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन संकट के लिए भारतीयों, विशेष रूप से हिंदुओं का उपहास उड़ाने वाला एक कार्टून बनाया गया है । इस कार्टून में भारतीयों को पृथ्वी पर लेटे, ऑक्सीजन के लिए छटपटाते हुए दिखाया गया है।

इस कार्टून को फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका 'शार्ली एब्दो' द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिसमें हिंदू देवताओं पर कटाक्ष करते हुए पूछा गया है कि वह कोविड की दूसरी लहर में अपने धर्म के लोगों की सहायता क्यों नहीं कर सके।

 शार्ली एब्दो के कार्टून के साथ एक लाइन भी है जिसमें लिखा है, ”भारत में 33 करोड़ देवता और एक भी ऑक्सीजन पैदा करने में सक्षम नहीं ।”

शार्ली एब्दो पत्रिका को हम उन लोगों की भांति उत्तर नहीं देंगे, जिन्होंने अपने पैगम्बर का कार्टून बनाये जाने पर, जनवरी 2015 में फ्रांस के सबसे प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों सहित 17 व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया था।

ऐसी प्रतिक्रिया देना हम हिंदुओं के संस्कारों में इसलिये नहीं है क्योंकि हमारे यहां तो अनादि काल से ही शास्त्रार्थ की परंपरा रही है, जिसमें यह व्यवस्था की हुई है कि हमारे मत का विरोधी व्यक्ति भी आकर हमारे धर्म ग्रन्थों पर हमें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे सकता है।

हम उस धर्म का पालन करने वाले मनुष्य हैं जहां भगवान विष्णु की छाती में लात मारकर उन्हें अपमानित करने के पश्चात भी उनके स्नेह का पात्र बन जाने वाले भृगु जैसे ऋषि भी हुए हैं तो अपने फरसे के प्रहार से गणेश जी का दंत तोड़ने वाले भगवान परशुराम जी भी।

अपने भगवान का निरादर करने वाले किसी मनुष्य के साथ हम इस कारण से भी हिंसा नहीं करते कि इस मनुष्य में एक दिन ईश्वरीय चेतना जाग्रत होगी और यह धर्म के मार्ग पर आ जायेगा ।

किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें सनातन धर्म की मर्यादा के अनुरूप किसी विधर्मी को उत्तर देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः ईश्वर की प्रेरणा से मैं शार्ली एब्दो को अपने धर्म की मर्यादा के अनुरुप उत्तर देने जा रहा हूँ।

तो सुनो ! हे "शार्ली एब्दो" के कार्टूनिस्टों- सर्वप्रथम तो यह जान लो कि वर्तमान में हम भारतीय जिस मानव निर्मित संविधान से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, वह सनातन धर्म के बनाये गए नियमों से नहीं चलता ।

सनातन धर्म ने हमारे लिए जो संविधान बनाया था वह हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों और शास्त्रों के सम्मिश्रण से बना है, जिसका पालन करने पर न तो वायु ही दूषित होती, न ही जल ! क्योंकि उस संविधान के अनुसार तो हम हर उस प्राकृतिक वस्तु का संरक्षण करते आये थे जो मानव जाति ही नही समस्त जीवों के लिए हितकारी हैं।

हे "शार्ली एब्दो"- यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो यहां न नदियां दूषित होतीं, न ही ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों का कटान होता, न ही अपनी जिव्हा के क्षणिक स्वाद के लिए पशुओं का वध होता और इसके विपरीत हर घर मे यज्ञ में आहुतियों के रूप में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का प्रयोग होता, जिससे कोरोना वायरस तो छोड़िए उसके पिताजी भी इस वायुमंडल में जीवित न रहते।

हे शार्ली एब्दो - यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो आज देशी गाय के गोबर की खाद से खेती हो रही होती और उससे उत्पन्न होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता ऐसी होती कि हम न केवल दीर्घायु होते, हमारी संताने भी निरोगी होतीं।

यह देश यदि वैदिक संविधान से चलता तो यज्ञों में पड़ने वाले 'देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी' की आहुतियों से हमारे समस्त देवी-देवता प्रसन्न होते और प्रसन्न होकर भारत ही नहीं तुम्हारे फ्रांस को भी निरोगी होने का आशीर्वाद देते और केवल हमें ही नहीं आपको भी कभी आक्सीजन की कमी से मरने न देते।  

तो हे 'शार्ली एब्दो', यह भारत देश 'ईश्वर और देवी देवताओं' के बनाये गए संविधान से चल कहाँ रहा है जो वह हिंदुओं की सहायता करने आएं और आकर हमारे लिए ऑक्सीजन का निर्माण करें ।

वैसे आपको मैं यह बात बता दूं कि हमारे देवी-देवताओं का कार्य ऑक्सीजन का निर्माण करना नहीं है, उसके लिए उन्होंने वृक्ष बनाये हैं, जिनका संरक्षण न कर पाना हमारी भयानक भूल है, जिसके लिए हम अपने देवी-देवताओं को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। 

अतः आप हम हिंदुओं को व्यर्थ का ज्ञान न दें और अपनी ऊर्जा का व्यय फ्रांस को आने वाले संकटों से बचाने में करें तथा जिस चीन ने अपने पालतू और बिके हुए वैश्विक संगठनो के साथ मिलकर कोरोना वायरस को पूरे विश्व में वायरल करके उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नष्ट करने का कुचक्र रचा है, यदि हो सके तो उसके विरुद्ध अपनी चोंच खोलने का प्रयास करें, जिससे फ्रांस की जनता भी आप पर गर्व कर सके ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 4 मई 2021

जब भगवान् श्रीकृष्ण ने तोड़ी अपनी प्रतिज्ञा

महाभारत के युद्ध में एक ऐसा क्षण भी आया था जब स्वयं भगवान् श्री कृष्ण को भी धर्म की रक्षा के लिए, इस युद्ध में शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ी थी। भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं, पवित्र महाभारत ग्रन्थ के "भीष्म पर्व" में वर्णित इस अद्भुत प्रसंग का वर्णन करने जा रहा हूँ_


महाभारत के युद्ध का तीसरे दिन था, आज पितामह भीष्म पांडव सेना के लिए साक्षात काल बन चुके थे, उनके पराक्रम से पांडव सेना त्राहि-त्राहि कर रही थी और अर्जुन पितामह के प्रेम के मोहपाश में बंधकर उनकी ओर अपने भयानक बाण नहीं चला रहे थे। महाधनुर्धर "सात्यकि" ही एक ऐसे थे जो पितामह के बाणों से बचने के लिए इधर-उधर भाग रही पांडव सेना को एकजुट करने में लगे थे, ऐसे में धर्म की रक्षा के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने वाले योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण का धैर्य टूट गया और उन्होंने क्रोध में भरकर कहा_

 ये यान्ति ते यान्तु शिनिप्रवीर येऽपि स्थिताः सात्वत तेऽपि यान्तु। भीष्मं रथात् पश्य निपात्यमानं द्रोणं च सङ्ख्ये सगणं  मयाऽद्य।।
शिनिवंश के प्रमुख वीर ! सात्वत रत्न ! जो भाग रहे हैं, वे भाग जाएँ।  जो खड़े हैं, वह भी चले जाएँ। तुम देखो, मैं अभी इस संग्राम भूमि में सहायकगणों के साथ भीष्म और द्रोण को रथ से मार गिराता हूँ।

 

न मे रथी सात्वत कौरवाणां क्रुद्धस्य मुच्येत रणेऽद्य कश्चित्। तस्मादहं गृह्य रथाङ्गमुग्रं प्राणं हरिष्यामि महाव्रतस्य।।

सात्वत वीर ! आज कौरव सेना का कोई भी रथी क्रोध में भरे हुए मुझ कृष्ण के हाथों जीवित नहीं छूट सकता । मैं अपना भयानक चक्र लेकर महान् व्रतधारी भीष्म के प्राण हर लूंगा।

 

निहत्य भीष्मं सगणं  तथाऽऽजौ द्रोणं च शैनेय रथप्रवीरौ। प्रीतिं करिष्यामि धनंजयस्य राज्ञश्च भीमस्य  तथाश्विनोश्च।।

सात्यके ! सहायकगणों सहित भीष्म और द्रोण, इन दोनों वीर महारथियों को युद्ध में मारकर मैं अर्जुन, राजा युधिष्ठिर, भीमसेन तथा नकुल-सहदेव को प्रसन्न करूँगा।

 

निहत्य सर्वान्धृतराष्ट्रपुत्रां- स्तत्पक्षिणो ये च नरेन्द्रमुख्याः। राज्येन राजानमजातशत्रुं संपादयिष्याम्यहमद्य  हृष्टः॥ 

धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों तथा उसके पक्ष में आये हुए सभी श्रेष्ठ नरेशों को मारकर मैं प्रसन्नतापूर्वक आज अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर को राज्य से सम्पन्न कर दूंगा।

 

इतीदमुक्त्वा स महानुभावः सस्मार चक्रं निशितं पुराणम्। सुदर्शनं चिन्तितमात्रमेव तस्याग्रहस्तं स्वयमारुरोह॥

ऐसा कहकर महानुभाव श्रीकृष्ण ने अपने पुरातन एवं तीक्ष्ण आयुध सुदर्शन चक्र का स्मरण किया।  उनके चिंतन मात्रा करने से ही वह स्वयं उनके हाथ के अग्रभाग में प्रस्तुत हो गया।


तमात्तचक्रं  प्रणदन्तमुच्चैः क्रुद्धं  महेन्द्रावरजं समीक्ष्य।सर्वाणि भूतानि भृशं विनेदुः क्षयं कुरूणामिव चिन्तयित्वा।।

महेंद्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण कुपित हो हाथ में चक्र उठाये बड़े जोर से गरज रहे थे। उन्हें उस रूप में देखकर कौरवों के संहार का विचार करके सभी प्राणी हाहाकार करने लगे।

 

स  वासुदेवः प्रगृहीतचक्रः संवर्तयिष्यन्निव सर्वलोकम्। अभ्युत्पतँल्लोकगुरुर्बभासे भूतानि धक्ष्यन्निव धूमकेतुः॥

वे जगद्गुरु वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण हाथ में चक्र ले मानो सम्पूर्ण जगत का संहार करने के लिए उद्यत थे और समस्त प्राणियों को जलाकर भस्म कर डालने के लिए उठी हुई प्रलयाग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे।

 

तमाद्रवन्तं प्रगृहीतचक्रं दृष्ट्वा देवं शान्तनवस्तदानीम्। असंभ्रमं तद्विचकर्ष दोर्भ्यां महाधनुर्गाण्डिवतुल्यघोषम्।।

भगवान् को चक्र लिए अपनी ओर वेगपूर्वक आते देख शान्तनुनन्दन भीष्म उस समय तनिक भी भय अथवा घबराहट का अनुभव न करते हुए दोनों हाथों से गांडीव धनुष के समान गंभीर घोष करने वाले अपने महान धनुष को खींचने लगे। 


उवाच भीष्मस्तमनन्तपौरुषं गोविन्दमाजावविमूढचेताः ॥ एह्येहि देवेश जगन्निवास नमोस्तु ते माधव चक्रपाणे। प्रसह्य मां पातय लोकनाथ रथोत्तमात्सर्वशरण्य सङ्ख्ये ॥

उस समय युद्ध स्थल में भीष्म के चित्त में तनिक भी मोह नहीं था।  वे अनन्त पुरुषार्थशाली भगवान् श्रीकृष्ण का आवाहन करते हुए बोले- आइये-आइये देवेश्वर ! आपको नमस्कार है।  हाथ में चक्र लिए आये हुए माधव ! सबको शरण देने वाले लोकनाथ ! आज युद्धभूमि में बलपूर्वक इस उत्तम रथ से मुझे मार गिराइये। 

त्वया हतस्यापि ममाऽद्य कृष्ण श्रेयः परिस्मिन्निह चैव लोके। संभावितोऽस्म्यन्धकवृष्णिनाथ लोकैस्त्रिभिर्वीर तवाभियानात् ॥

श्रीकृष्ण ! आज आपके हाथ से यदि मैं मारा जाऊँगा तो इहलोक और परलोक में भी मेरा कल्याण होगा। अन्धक और वृष्णिकुल की रक्षा करने वाले वीर ! आपके इस आक्रमण से तीनों लोकों में मेरा गौरव बढ़ गया है। 

 

रथादवप्लुत्य ततस्त्वरावान् पार्थोऽप्यनुद्रुत्य यदुप्रवीरम्। जग्राह पीनोत्तमलम्बबाहुं बाह्वोर्हरिं व्यायतपीनबाहुः॥

मोटी, लम्बी और उत्तम भुजाओं वाले यदुकुल के श्रेष्ठ वीर भगवान् श्रीकृष्ण को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी बड़ी उतावली के साथ रथ से कूदकर उनके पीछे दौड़े और निकट जाकर भगवान् की दोनों बाहें पकड़ लीं। अर्जुन की भुजाएं भी मोटी और विशाल थीं।

 

निगृह्यमणाश्च तदाऽऽदिदेवो भृशं सरोषः किल चात्मयोगी । आदाय वेगेन जगाम विष्णु- र्जिष्णुं महावात इवैकवृक्षम् ॥ 

आदिदेव आत्मयोगी भगवान् श्रीकृष्ण बहुत रोष में भरे हुए थे।  वे अर्जुन के पकड़ने से भी रुक न सके। जैसे आंधी किसी वृक्ष को खींचे लिए जाये, उसी प्रकार वे भगवान् विष्णु (कृष्ण), अर्जुन को लिए हुए ही बड़े वेग से आगे बढ़ने लगे।

पार्थस्तु विष्टभ्य बलेन पादौ भीष्मान्तिकं तूर्णमभिद्रवन्तम्। बलान्निजग्राह हरिं किरीटी पदेऽथ राजन् दशमे कथंचित् ॥

राजन ! तब किरीटधारी अर्जुन ने भीष्म के निकट बड़े वेग से जाते हुए श्रीहरि के चरणों को बलपूर्वक पकड़ लिया और किसी प्रकार दसवें कदम पर पहुंचते-पहुंचते उन्हें रोका।

 

अवस्थितं च प्रणिपत्य कृष्णं प्रीतोऽर्जुनः काञ्चनचित्रमाली। उवाच कोपं प्रतिसंहरेति गतिर्भवान् केशव पाण्डवानाम् ॥

जब श्रीकृष्ण भगवान् खड़े हो गये, तब सुवर्ण का विचित्र हार पहने हुए अर्जुन ने अत्यन्त प्रसन्न हो उनके चरणों में प्रणाम करते हुए कहा- केशव ! आप अपना क्रोध रोकिये। प्रभो ! आप ही पांडवों के आश्रय हैं।

 

न हास्यते कर्म यथाप्रतिज्ञं पुत्रैः शपे केशव सोदरैश्च । अन्तं करिष्यामि यथा कुरूणां त्वयाहमिन्द्रानुज संप्रयुक्तः ॥

केशव ! अब मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार कर्तव्य का पालन करूँगा, उसका कभी त्याग नहीं करूँगा। यह बात मैं अपने पुत्रों और भाइयों की शपथ खाकर कहता हूँ।  उपेंद्र ! आपकी आज्ञा मिलने पर मैं समस्त कौरवों का अंत कर डालूंगा।  

 

ततः प्रतिज्ञां समयं च तस्य जनार्दनः प्रीतमना निशम्य। स्थितः  प्रिये कौरवसत्तमस्य रथं सचक्रः पुनरारुरोह ॥

अर्जुन की यह प्रतिज्ञा और कर्तव्य पालन का यह निश्चय सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण का मन प्रसन्न हो गया। वे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन का प्रिय करने के लिये उद्यत हो पुनः चक्र लिए रथ पर जा बैठे।

 

इस प्रकार महाभारत के तीसरे दिन, भीष्म और द्रोण सहित सम्पूर्ण कौरव सेना भगवान् श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से संहार होने से बच सकी थी।

 "शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava