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बुधवार, 16 नवंबर 2022

सनातन धर्म की आन्तरिक चुनौतियां भाग—२

 



भाग—१ पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर जाएं... https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post_28.html

कलियुग में पाखंड अपनी चरमावस्था में है। अनाधिकृत लोग धर्म गुरु की पदवी धारण किए बैठे हैं, अपने शास्त्रों से विमुख सनातनियों द्वारा राजनेताओं और अभिनेताओं के मंदिर बनाए जा रहे हैं। लाखों-करोड़ों लोग साधारण मनुष्यों को भगवान् बनाकर (जिसमें एक मलेक्ष भी सम्मिलित है) मंदिरों में प्रतिष्ठित कर उनकी पूजा करके स्वयं से दरिद्रता, भय, दैवीय प्रकोप एवं अकाल मृत्यु को निमंत्रण दे रहे हैं । 

यज्ञों में अनाधिकृत तत्व, यज्ञ का उचित विधि-विधान जाने बिना ही बड़ी-बड़ी यज्ञशालाएं बनाकर जर्सी गाय-भैंस के घी द्वारा उन मन्त्रों से देवी-देवताओं को आहुतियां दे रहे हैं जिनका उनके लिए विशेष निषेध (उन्हीं के कल्याण हेतु) किया गया था और अपने धर्म से अनभिज्ञ सनातनी समाज उनको अपना धर्म गुरु मानकर, उनका अनुसरण करके अपने लिए नर्क का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। 

वाल्मीकि रामायण में कहा गया है– 

विधिहीनस्य यज्ञस्य सद्यः कर्ता विनश्यति ।

तद्यथा विधिपूर्वं मे क्रतुरेष समाप्यते ॥१-८-१८॥

{श्रीमद्वाल्मीकियरामायणे बालकाण्डे अष्टमः सर्गः} 


इसी प्रकार क्या सनातनी किसी को भी अपना भगवान् बनाकर उसकी पूजा कर सकते हैं ? आइए जानते हैं इस विषय पर हमारे धर्म ग्रन्थ क्या कहते हैं— 

अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते। त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्रयं मरणं भयम् ।।

अर्थात्—

"जहाँ अपूज्य की पूजा होती है और पूजनीय की पूजा नहीं होती, वहां दरिद्रता, मृत्यु एवं भय ये तीनों अवश्य होते हैं"। 

[श्रीशिवमहापुराण, रूद्रसंहिता, सतीखंड, अध्याय ३५, श्लोक संख्या ९] 


श्रीशिवमहापुराण के रूद्रसंहिता सतीखंड में ३५वें अध्याय में कहा गया है कि— 

"ईश्वरावज्ञया सर्वं कार्यं भवति सर्वथा। 

विफलं केवलं नैव विपत्तिश्च पदे पदे।।" 

अर्थात्— 

"ईश्वर की अवहेलना से सारा कार्य ना केवल सर्वथा निष्फल हो जाता है, अपितु पग-पग पर विपत्ति भी आती है"। 

जब व्यक्ति शास्त्रों में बताए गये कार्य के विपरीत कार्य करता है या शास्त्रों में बताई गयी मर्यादा का उल्लंघन करता है तब ईश्वर की आज्ञा की अवहेलना ही होती है। 


श्रीमद्भागवत पुराण के छठे स्कन्ध के पहले अध्याय में भी कहा गया है कि...

"वेदप्रणिहितो धर्मो ह्यधर्मस्तद्विपर्यय: ।"

अर्थात्— 

वेदों में विहित बताए गये कर्मो को करना धर्म है और उसके विपरीत (वेदों में निषिद्ध) कार्यों को करना अधर्म है। 


श्रीमद् भगवद्गीता में श्री कृष्ण भगवान् अर्जुन से कहते हैं...

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।

न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।

अर्थात्—

जो मनुष्य शास्त्रविधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को, न सुख को और न परमगति को ही प्राप्त होता है।१६.२३

तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।

ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।

अर्थात् —

अतः तेरे लिए कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था (निर्णय) में शास्त्र ही प्रमाण है, शास्त्रोक्त विधान को जानकर तुझे अपने कर्म करने चाहिए।।१६.२४।। 


इस विषय में शिव पुराण में कहा गया है– 

यो वैदिकमनावृत्य कर्म स्मार्तमथापि वा ।

अन्यत् समाचरेन्मर्त्यो न संकल्पफलं लभेत् ॥

अर्थात् —

जो मनुष्य वेदों तथा स्मृतियों में कहे हुए सत्कर्मों की अवहेलना करके दूसरे कर्म को करने लगता है, उसका मनोरथ कभी सिद्ध नहीं होता।

(शिव पुराण विद्येश्वर संहिता २१। ४४)


अतः वेदादि शास्त्रों में जिन देवी-देवताओं के पूजन का विधान है, सनातनियों को केवल उन्हीं की पूजा करनी चाहिये और कलियुगी पाखंडी गुरुओं के प्रपंचों में पड़ने के स्थान पर प्राचीन 'सनातन वैदिक आर्य हिंदू' संस्कृति द्वारा निर्देशित परम्परा प्राप्त धर्म गुरुओं तथा अपने प्राचीन धर्म ग्रंथो ही अनुसरण करना चाहिए। 

"शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 1 अगस्त 2022

पंचदेवोपासना



प्राचीन 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धान्त' के अनुसार कौन हैं 'पंचदेव' और क्यों करते हैं 'पंचदेवों' की साधना ?

वस्तुतः परब्रह्म परमेश्वर ही पंचदेवों के रूप में व्यक्त हैं तथा सम्पूर्ण चराचर जगत में भी वही व्याप्त हैं।

वेदानुसार निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव—

परब्रह्म परमात्मा (आदि शक्ति) निराकार व अशरीरी हैं, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उनके स्वरूप का ज्ञान असंभव है इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार स्वरूप को ५ महान शक्तियों के रूप में प्रकट किया और उनकी उपासना करने का विधान निश्चित किया। निराकार परब्रह्म की यही ५ शक्तियां 'पंचदेव' कहलाती हैं

हमारे शास्त्रों में इन पंचदेवों की मान्यता पूर्ण ब्रह्म के रूप में है, जिनकी साधना से पूर्ण ब्रह्म की ही प्राप्ति होती है। इसलिये अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार इन पंचदेवों में से किसी एक को अपना इष्ट देव मानकर उनकी उपासना करने का विधान है।

यह पंचदेव हैं–गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु और सूर्य।

इनमें से गणपति के उपासक–गाणपत्य , शिव के उपासक–शैव, शक्ति के उपासक–शाक्त, विष्णु के उपासक–वैष्णव तथा सूर्य के उपासक–सौर कहे जाते हैं और जो मनुष्य इन पांचों देवी-देवताओं की उपासना करते हैं उन्हें 'स्मार्त' कहा जाता है।

अत्यन्त हास्यास्पद बात है कि निराकार परब्रह्म परमेश्वर की जो शक्तियां भिन्न होकर भी एक ही शक्ति का अंश हैं उनके नाम पर बनने वाले सम्प्रदाय आपस में एक दूसरे के देवी-देवताओं को नीचा दिखाने का कार्य करते हैं जबकि इन सम्प्रदायों के निर्माण का उद्देश्य मानव को उसकी अभिरुचि के अनुसार साधना के मार्ग पर आगे बढ़ाकर सद्गति प्राप्त करवाना था।

अति तो तब हो गई जब इन पंचदेवों की शक्तिशाली ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले 'अवतारों' के नाम पर भी नए-नए सम्प्रदाय अस्तित्व में आ गए, जिसमें से कुछ तो प्राचीन ज्ञान परम्परा का अनुसरण करते हैं किन्तु अधिकांश का प्राचीन सनातन ज्ञान परम्परा से कोई लेना-देना ही नहीं है और इनका उद्देश्य केवल अपने चेलों की संख्या बढ़ाकर अपने-अपने 'Cult' के महान गुरु की पदवी प्राप्त करके सनातनी जनता से धन ऐंठना मात्र है।

वस्तुतः कलियुगी व्यक्ति-विशेषों द्वारा बनाए गए इन 'Cults' को सम्प्रदायों की श्रेणी में रखना भी इन पंचदेवों की साधना के लिए बनाए गए प्राचीन सम्प्रदायों का अपमान करना ही है। इस विषय पर मेरे यह ब्लॉग देखें—

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post_28.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2019/07/dharm-yudh.html


इस प्रकार यहां मैंने पंचदेवों और उनकी साधना के विषय में वर्णन किया जिससे सभी सनातनी भाई-बहन विभिन्न Cults के प्रपंच में पड़ने के स्थान पर अपने मूल 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत' का अनुसरण करके मुक्ति प्राप्त कर सकें।

 (शिवार्पणमस्तु)

-Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 27 अप्रैल 2022

शनि का अपनी मूलत्रिकोण राशि 'कुंभ' में प्रवेश

 

२९ अप्रैल २०२२ को प्रातः ९ बजकर ५७ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर शनि 'मकर' राशि से निकल कर अपनी मूलत्रिकोण राशि 'कुंभ' में प्रवेश करेंगे जहां वह २९ मार्च २०२५ की रात्रि १० बजकर ६ मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात् अगली राशि 'मीन' में चले जायेंगे।

शनि ५ जून २०२२ में वक्री हो जायेंगे और १२ जुलाई २०२२ को वक्री गति से ही कुछ समय के लिए अपनी पिछली गोचर राशि 'मकर' में पुनर्वापसी करेंगे और बाद में २३ अक्तूबर २०२२ से अपनी मार्गी गति को प्राप्त होकर १७ जनवरी २०२३ को पुनः 'कुंभ' राशि में प्रवेश कर जायेंगे। इस प्रकार 'मकर' राशि में शनि के गोचर की अवधि १२ जुलाई २०२२ से १७ जनवरी २०२३ तक रहेगी।

शनि क्रम संख्या में सूर्य से छ्ठे स्थान पर स्थित हैं और बृहस्पति के बाद सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह हैं। यह विभिन्न गैसों का एक विशाल भंडार रखते हैं। अतः 'यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे' के सिद्धांत के आधार पर जातक की जन्मकुंडली में शनि की अशुभकारी स्थिति होने पर उसके शरीर में गैस की अधिकता हो जाती है। वैदिक ज्योतिष में शनि को न्यायाधीश कहा जाता है तथा यह आयु, रोग और दुःख के कारक होते हैं।

प्रायः देखा जाता है कि शनि का नाम सुनकर ही लोग भयभीत हो जाते हैं क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में दुःख नहीं उठाना चाहता। किन्तु यदि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो शनि, जीव को दुखों के चक्र में डालकर उसके द्वारा पूर्व जन्मों में किए गए पाप कर्मों का भुगतान करवाकर उसकी आत्मा को शुद्ध करवाने का ही कार्य करते हैं जिससे जीव मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चलकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके।

कई जातकों की जन्मकुंडलियों में अशुभ स्थिति होने पर शनि अपनी दशा काल में उसको इतने दुःख देते हैं कि अनेक बार वह अपने सगे-संबंधियों के मोह से विरक्त होकर, अपना घर-परिवार छोड़कर पर्वतों, वनों आदि में साधना करने निकल जाता है और स्वयं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर लेता है। पर्वतों पर आप जितने भी साधु रहते हुए देखते हैं उनके जीवन पर कहीं न कहीं शनि का ही प्रभाव होता है जिसके कारण वह आत्मकल्याण हेतु मोक्ष की साधना कर पा रहे हैं। इस प्रकार शनि दुखों के कारक होते हुए भी अन्त में जीव के लिए कल्याणकारी ही सिद्ध होते हैं।

शनि ग्रह की एक विशेषता यह है कि उनकी अशुभ दशा-अंतर्दशा, ढैय्या, साढ़े साती प्राप्त होने पर जो जातक अपने स्वभाव में विनम्रता और जीवन में सात्विकता ले आते हैं उनको वह उतना अशुभ फल नहीं देते किन्तु जो जातक दूसरों पर अत्याचार करते हैं, पाप आचरण करते हैं, हत्या, लूट, डकैती, चोरी, बलात्कार आदि पापों में लिप्त रहते हैं तथा मांस, मदिरा आदि का सेवन करते हैं, शनि उनका समूल विनाश करके प्राणियों को उसके भय से मुक्ति दिलाने का कार्य करते हैं।

शनि की गति सभी ग्रहों में सबसे अधिक धीमी है जिसके कारण यह एक राशि से निकलने में लगभग ढाई वर्ष का समय लगा देते हैं। इसी ढाई वर्ष के समय काल को शनि की ढैय्या के नाम से जाना जाता है। यह तुला, मकर और कुम्भ राशियों, सप्तम भाव (पश्चिम दिशा), दक्षिणायन, स्वद्रेष्काण में रहने पर तथा रात्रि में बली होते हैं और यह कुम्भ राशि के प्रथम २० अंश तक मूलत्रिकोण तथा २१ से ३० अंश तक स्वराशि का फल देते हैं। यह वायु तत्व प्रधान एक नपुंसक ग्रह हैं जो कि शिशिर ऋतु के स्वामी होते हैं तथा रोग, दुःख, विपत्ति, नौकरी (सेवक), न्याय व्यवस्था, शराब, लोहा, काले वस्त्र, पेट्रो कैमिकल्स, कोयला, गैस, तंत्रिका तंत्र (Nervous System), गठिया, वायु विकार, लकवा, श्रम, दरिद्रता, मजदूरी, ऋण आदि के कारक होते हैं।

फलदीपिका में शनि के विषय में इस प्रकार कहा गया है...

वातश्लेष्मविकारपादविहतिं चापत्तितन्द्राश्रमान् भ्रान्तीं कुक्षिरुगन्तरुष्णभृतकध्वंसं च पार्श्वहतिम्।
भार्यापुत्रविपत्तिमङ्ग्विहर्तिं हृत्तापमर्कत्मजो वृक्षाश्मक्षतिमाह कश्मलगणैः पीडां पिशाचादिभिः॥
अर्थात् -
शनि के दूषित होने से वात-कफज विकार, पादक्षति, विपत्ति, श्रमजनित थकान, मानसिक विभ्रम, कुक्षिरोग, हृद् रोग, भृत्यों की क्षति, पसली में चोट, स्त्री-पुत्रादि को कष्ट, अंग-भंग, हृत् ताप, वृक्ष अथवा पत्थर से चोट, पिशाचादि से पीड़ा आदि फल होते हैं ।

फलदीपिका में यह भी कहा गया है...

दारिद्रयदोषनिजकर्मपिशाचचौरै: क्लेशं करोति रविजः सह सन्धिरोगैः।
अर्थात्
दरिद्रता, दूषित कर्म, पिशाच और चौर भय तथा इनके द्वारा कष्ट, सन्धियों में रोग आदि दूषित शनि के प्रभाव से होते हैं।

वैदिक ज्योतिष में शनि को आयु का कारक माना जाता है, यदि लग्नेश, अष्टमेश और शनि बलवान हों तो मनुष्य दीर्घायु होता है। शनि का रंग काला होता है और यदि यह किसी जातक के लग्न-लग्नेश, चन्द्र लग्न-चन्द्र लग्नेश, सूर्य लग्न-सूर्य लग्नेश तथा द्वितीय भाव-द्वितीयेश पर अपना प्रभाव डालें तो उस जातक का रंग काला होता है।

शनि की ढैय्या एवं साढ़े साती विचार-
गोचर में शनि जब किसी जातक के चन्द्र लग्न (जन्म राशि) से चतुर्थ अथवा अष्टम् भाव में संचार करना प्रारम्भ करते हैं तब उसके ऊपर शनि की ढैय्या का आगमन होता है और जब यह चन्द्र लग्न से द्वादश, प्रथम और द्वितीय भावों में स्थित राशियों में ढाई-ढाई वर्ष संचार करते हैं तो इसको ही शनि की साढ़े साती कहा जाता है।

शनि के इस राशि परिवर्तन के कारण 'धनु राशि' पर से शनि की साढ़े साती तथा 'मिथुन व तुला' से शनि की ढैय्या समाप्त हो जायेगी और 'मीन राशि' पर साढ़े साती तथा 'कर्क व वृश्चिक' पर ढैय्या का आगमन होगा। इस प्रकार 'मकर, कुम्भ व मीन' पर शनि की साढ़े साती तथा 'कर्क व वृश्चिक' राशियों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव रहेगा। जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि १२ जुलाई से शनि पुनः 'मकर' राशि में गोचर करने लगेंगे जिसके कारण जो राशियां २९ अप्रैल को शनि ढैय्या व साढ़े साती से मुक्त हो चुकी होंगी वह एक बार पुनः इसकी चपेट में आ जायेंगी और १७ जनवरी २०२३ तक इसी स्थिति में रहेंगी। इस तरह से देखा जाए तो मिथुन और तुला राशि वालों को शनि की ढैय्या और धनु राशि को शनि की साढ़े साती से पूर्ण रूप से मुक्ति १७ जनवरी २०२३ को ही मिल सकेगी।

आइए अब जानते हैं कि विभिन्न राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर शनि के इस राशि परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा?

शनि के 'कुम्भ' राशि में प्रवेश से विभिन्न राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन में पड़ने वाले प्रभाव-

मेष राशि - मेष लग्न
आपके एकादश भाव में शनि का संचार आपको सरकार से विभिन्न प्रकार के लाभ कराने वाला होगा। यदि आप किसी सरकारी पद पर हैं तो आपके प्रमोशन के योग बनेंगे। यदि आप सरकारी ठेकेदारी का कार्य करते हैं तो आपको उससे बहुत अधिक लाभ प्राप्त होगा और यदि आप राजनीति में हैं तो आपको उसमें भी सफलता मिलेगी किन्तु शनि की तीसरी नीच दृष्टि आपके सिर, सप्तम शत्रु दृष्टि आपके पेट, हृदय, संतान तथा पढ़ाई के लिए अशुभ है तथा इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके ससुराल के लिए अमंगलकारी है। इस राशि-लग्न वाले जातक सिर की चोट से स्वयं का बचाव करें। हनुमान जी की आराधना से आपको विशेष लाभ होगा।

वृष राशि - वृष लग्न
आपके दशम भाव में शनि का संचार आपके पिता के स्वास्थ्य, उनकी आयु तथा उनकी आर्थिक उन्नति के लिए विशेष लाभकारी है। यदि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है तो उसमें आपको सफलता मिलेगी किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी दादी के स्वास्थ्य, आपकी एड़ी-पंजों तथा आपके बाएं नेत्र के लिए विशेष हानिकारक है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपकी माता, वाहन, भवन-भूमि तथा आपके सेवकों के लिए अशुभ है तथा इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन और पार्टनरशिप के लिए अमंगलकारी है। इस अवधिकाल में आपको वाहन चलाने में सावधानी रखनी चाहिए अन्यथा कोई दुर्घटना घटित हो सकती है। रुद्राक्ष की माला से भगवान् शंकर के उच्च कोटि के मंत्रों का विधिवत् जाप करें।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
आपके नवम भाव में शनि का संचार आपके भाग्य के लिए बहुत उत्तम फल प्रदान करने वाला होगा। नवम भाव में शनि आपको देश में ही पर्वतीय स्थानों की यात्रा करवा सकता है जिससे आपके जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का नवीन संचार होगा। यदि आपके भाग्य के कारण आपके कोई कार्य रुके हुए थे तो वह अब पूर्ण होंगे किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी पिंडलियों तथा आपके बड़े भाई-बहन, चाचा और छोटी बुआ के लिए विशेष हानिकारक है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों, आपके गले और दाहिने हाथ के लिए अशुभ है। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपके छ्ठे भाव में होने के कारण इस समय आपको कर्ज लेने से बचना चाहिए तथा अपने शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए। यह समय आपके दादा के स्वास्थ्य के लिए भी अशुभ है। यदि पहले से ही आप छ्ठे भाव से सम्बंधित अंगों के किसी रोग से पीड़ित है तो अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रुद्राक्ष की माला से भगवती दुर्गा के उच्च कोटि के मन्त्रों का जाप करने से सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होगा।

कर्क राशि - कर्क लग्न
आपके अष्टम् भाव में शनि का संचार आपकी आयु तथा आपके जीवन साथी के धन के लिए अत्यन्त शुभ है। यदि इस राशि-लग्न का कोई जातक मृत्यु शैय्या पर होगा तो वह अष्टम् भाव में पहले से ही संचार कर रहे मंगल के 'मीन राशि' में प्रवेश करने के साथ ही शनि के प्रभाव से ठीक होने लगेगा क्योंकि तब इनके अष्टम् भाव में आयुकारक शनि के अकेले संचार करने से वह इनकी आयु में वृद्धि कर देगा। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पिता के धन, सास के स्वास्थ्य तथा आपके घुटनों की लिए ठीक नहीं है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके धन, कुटुंब तथा मुख के लिए अशुभ है और इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके पेट, हृदय, पढ़ाई तथा आपकी संतान के लिए अमंगलकारी है। अपने इष्टदेवता के मंत्रों का विधिपूर्वक जाप करें।

सिंह राशि - सिंह लग्न
यद्यपि शनि का सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है तथापि यह आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य और उनके मानसम्मान में वृद्धि करवाने वाला होगा। यदि आपकी जन्मकुंडली में शनि शुभ स्थिति में हैं और आप उसी से सम्बंधित वस्तुओं का व्यापार करते हैं तो यह समय आपके व्यापार के लिए उत्तम है। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पिता तथा आपके भाग्य के लिए अशुभ है तथा यह आपको धर्म से भी विमुख करेगी। पीठ और कमर की चोट से स्वयं का बचाव करें। इस अवधिकाल में आपको अपने नगर से दूर होने वाली व्यर्थ की यात्राओं को टाल देना चाहिए अन्यथा यात्रा में हानि उठानी पड़ सकती है। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके सिर में कोई चोट अथवा पीड़ा दे सकती है, अतः बचाव करें। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी माता, भवन-भूमि, वाहन और सेवकों के लिए अमंगलकारी है। हनुमान जी की उपासना,पीपल की पूजा करने तथा काले रंग की देशी गाय को रात्रि के समय भोजन करवाने से शनि जनित पीड़ाओं का शमन होगा। शनि के मंत्रों का विधिवत् जाप करने से भी जीवन में सुख-शान्ति का आगमन होगा।

कन्या राशि - कन्या लग्न
शनि का आपके छठे भाव में संचार आपको कर्जों से मुक्ति प्रदान करने तथा आपके शत्रुओं का विनाश करने वाला सिद्ध होगा किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके ससुराल तथा आपके जीवन साथी के धन एवं उनके दाहिने नेत्र व मुख के लिए अशुभ है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके धन का व्यय चिकित्सालय, औषधियों अथवा न्यायालय में करवाएगी, अतः यदि आपके परिवार में किसी को चिकित्सा की आवश्यकता है तो अपने धन का उपयोग उसकी चिकित्सा में करें अन्यथा आपका धन न्यायालय में किसी अभियोग आदि में व्यय हो सकता है। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों, आपके दाहिने हाथ एवं गले के लिए कष्टकारी है। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। किसी योग्य वेदपाठी ब्राह्मण के सानिध्य में देवी बगुलामुखी और हनुमान जी की उपासना करें।

तुला राशि - तुला लग्न
यद्यपि शनि का आपके पंचम भाव पर संचार आपके पेट में गैस की वृद्धि करने, आपकी बुद्धि को दूषित करने, आपके प्रेम संबंधों में बाधा डालने तथा आपकी संतान को कष्ट देने वाला होगा तथापि यदि आपकी जन्मकुंडली में आपका पंचम भाव एवं पंचमेश शुभ स्थिति में हुआ तो यह समय आपको अक्समात् ही जुआ, लॉटरी , सट्टा, शेयर मार्केट आदि से धन प्राप्त करवाने वाला तथा राजनीति में आपको उच्च पद प्राप्त करवाने वाला सिद्ध होगा। यह समय आपके माता के धन एवं उनके कुटुम्ब की वृद्धि करने वाला होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां इस समय अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें। शनि की तीसरी नीच दृष्टि आपके सप्तम भाव पर पड़ने से आपके दाम्पत्य जीवन में कलह, विवाद उत्पन्न होना, आपके जीवन साथी की आयु-स्वास्थ्य पर संकट आने जैसे अशुभ फल घटित होंगे। इसकी सप्तम शत्रु दृष्टि आपके बड़े भाई-बड़ी बहन, चाचा और छोटी बुआ के लिए शुभ नहीं है। पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपके द्वितीय भाव पर होने से आपके मुख और दाहिने नेत्र में कोई रोग उत्पन्न हो सकता है। यह दृष्टि आपके धन-कुटुम्ब के लिए भी अमंगलकारी है। भैरव सहित हनुमान जी की उपासना से शनि जनित पीड़ाओं का शमन होगा।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
शनि का आपके चतुर्थ भाव में संचार आपकी माता के स्वास्थ्य, उनकी आयु और मान-सम्मान, आपके भवन-भूमि-वाहन तथा आपके सेवकों आदि के लिए शुभ फल प्रदान करने वाला होगा। यदि आपकी जन्मकुंडली में चतुर्थ भाव-चतुर्थेश, द्वितीय भाव-द्वितीयेश और शनि शुभ स्थिति में हैं तो इस समय आप कोई चुनाव जीत सकते हैं, कोई बड़ी संपत्ति को प्राप्त कर सकते हैं किन्तु इसकी तृतीय नीच दृष्टि आपको शत्रुओं से पीड़ा अवश्य देगी तथा जन्मकुंडली में छ्ठे भाव से उत्पन्न रोगों में वृद्धि करवाएगी। किसी भी प्रकार का कर्ज लेने से आपको बचना चाहिए। यह समय आपके छोटे मामा-छोटी मौसी तथा आपके दादा की आयु के लिए अत्यन्त अमंगलकारी है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपकी सास के लिए शुभ नहीं है। घुटनों की चोट से स्वयं को बचाएं। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके लग्न में पड़ने से आपको अपने सिर की चोट व पीड़ा से भी बचाव करना होगा। हनुमान जी की उपासना करने, पीपल पर सरसों के तेल का दीपक जलाने व शनि के मंत्रों का जाप करने से शनि जनित कष्टों का निवारण होगा।

धनु राशि - धनु लग्न
शनि का आपके तृतीय भाव में संचार आपके छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य और उनके मान सम्मान में तथा आपके पराक्रम में वृद्धि करवाने वाला होगा। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्राओं से लाभ प्राप्त होगा। इस राशि-लग्न का कोई जातक यदि बहुत समय से विदेश जाने के लिए प्रयासरत था तो अब वह जा सकेगा किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके पेट, हृदय, संतान, पढ़ाई आदि के लिए ठीक नहीं है। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियों को विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके पिता के लिए अशुभ है। अपनी पीठ, कमर की चोट व पीड़ा का ध्यान रखें। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी दादी के स्वास्थ्य के लिए अशुभ है। यह आपको बाएं नेत्र, एड़ी व पंजों में कोई कष्ट दे सकती है। परिवार में किसी को चिकित्सा की आवश्यकता हो तो अपने खर्चे से करवा दें। संतान की सुरक्षा के लिए भगवान् विष्णु के मंत्रों का जाप करें तथा हनुमान जी की आराधना करें।

मकर राशि - मकर लग्न
शनि का आपके द्वितीय भाव में अपनी मूल त्रिकोण राशि में संचार आपके धन की वृद्धि करवाने वाला होगा। यदि आपका कोई पुराना धन किसी के पास रुका हुआ है तो उसके वापसी के योग बनेंगे। यदि दीर्घ काल से आप अपने कुटुम्ब से पृथक रहते हैं तो आपके अपने कुटुम्ब में वापसी के योग बनेंगे किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपकी माता, भवन-भूमि, वाहन, सेवक आदि के लिए अशुभ है। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके ससुराल तथा पत्नी के मुख और इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके बड़े भाई-बहनों, चाचा और छोटी बुआ के लिए अमंगलकारी है। पैरों और छाती की चोट से स्वयं का बचाव करें। वाहन चलाने में भी सावधानी रखें। मिथ्या वचन बोलने से बचें तथा भवानी सहित भगवान् शंकर का पूजन करें।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
शनि का आपके लग्न में संचार करना आपकी आयु, स्वास्थ्य, मान-सम्मान के लिए अत्यन्त शुभ है। यदि दीर्घ काल से आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा है तो अब उसमें सुधार देखने को मिलेंगे। आपके सिर के स्थान पर शनि के संचार करने के कारण आपके सिर में भारीपन रहने की समस्या बन सकती है। शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके छोटे भाई-बहनों के लिए अशुभ है। अपने हाथ की चोट व गले की समस्या से स्वयं का बचाव करें। इस अवधिकाल में आपको विदेश यात्रा करने से बचना चाहिए। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके जीवन साथी के स्वास्थ्य और उनकी आयु पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले इसके लिए उनको उनका जीवन रत्न धारण करवाकर रखें। साथ ही योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से उनके लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप अनुष्ठान करवा लें। यह समय आपके ताऊ तथा बड़ी बुआ के लिए भी शुभ नहीं है। शनि की दशम शत्रु दृष्टि आपकी सास के लिए अमंगलकारी है। घुटनों की चोट से बचें। आपके पिता की धन हानि तथा उनके मुख में पीड़ा के योग बनेंगे।

मीन राशि - मीन लग्न
इस राशि-लग्न का कोई जातक यदि किसी अभियोग में कारावास में बन्दी है तो अब उसको उस अभियोग से मुक्ति मिलने के योग बन रहे हैं। यदि आप विदेश में प्रवास करने के लिए प्रयासरत थे तो आपको उसमें सफलता मिलेगी। आपके बड़े भाई-बहनों की आर्थिक उन्नति के लिए भी यह समय शुभ है किन्तु शनि की तृतीय नीच दृष्टि आपके धन की हानि अन्य स्थानों पर करवाती रहेगी तथा आपके नेत्रों और मुख में कोई कष्ट देगी। यह आपके कुटुम्ब में भी क्लेश-विवाद की स्थिति बनाए रखेगी। अपनी वाणी पर संयम रखें अन्यथा शत्रु प्रबल होंगे। शनि की सप्तम शत्रु दृष्टि आपके छ्ठे भाव पर पड़ने से आपके साथ कोई हिंसा अथवा दुर्घटना के योग बना रही है अतः सावधान रहें। इसकी दशम शत्रु दृष्टि आपके भाग्य व पिता के स्वास्थ्य के लिए अमंगलकारी है। शनि के अनिष्ट फलों को समाप्त करने के लिए हनुमान जी की आराधना करें, पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं व उसकी परिक्रमा करें, शनि के मंत्रों का जाप व उनके निमित्त दान करें, काले रंग के वस्त्रों को धारण करने से बचें।


नोट- शनि के कुम्भ राशि में संचार करने के इस अवधिकाल में शनि के साथ होने वाली विभिन्न ग्रहों की युति-दृष्टि से जातकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से इस फलादेश का कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही गोचर में होने वाले अन्य ग्रहों के राशि परिवर्तनों का। यहाँ केवल शनि के अपनी मूल त्रिकोण राशि 'कुम्भ' में होने के शुभाशुभ परिणामों का वर्णन किया जा रहा है। आगे यदि संभव हुआ तो मैं शनि के 'कुम्भ राशि' में संचार करने के इस अवधिकाल के अन्तर्गत् शनि के साथ होने वाले अन्य ग्रहों की युतियों के फलस्वरूप घटित होने वाले परिणामों के विषय में अलग से ब्लॉग बनाकर आप सभी को उसकी जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास करूंगा।

इसके अतिरिक्त इन राशि-लग्नों में जन्म लेने वाले किसी जातक की स्वयं की जन्म-कुंडली में शनि यदि अपनी शत्रु राशि, नीच राशि अथवा किसी पाप या शत्रु ग्रह के प्रभाव में हुए और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी, तो उन्हें इस फलादेश में बताए गए उत्तम फलों की प्राप्ति तो अल्पमात्रा में होगी किन्तु अशुभ फलों की प्राप्ति अधिक होगी। इसके विपरीत जिन जातकों की जन्म-कुंडली में शनि शुभ स्थानों के स्वामी होकर अपने मित्र या उच्च राशि में स्थित होकर शुभ प्रभाव में हुए तथा उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिये शनि यह राशि परिवर्तन अत्यन्त शुभ फल प्रदान करने वाला होगा।

'शिवार्पणमस्तु'
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

सूर्य के 'उच्च राशि' में प्रवेश के पश्चात भी संकट का कारण बनेगी सूर्य-राहु युति...


अपने पिछले ब्लॉग 'राहु केतु का राशि-परिवर्तन २०२२' में मैंने आप सभी को राहु के 'मेष' राशि और सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका' में प्रवेश के विषय में बताया था और उस ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए मैंने लिखा था कि समय-समय पर राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के ऊपर अलग से ब्लॉग बनाकर आपको जानकारी देने का प्रयास करूँगा ।
इस विषय पर मेरा पुराना ब्लॉग देखें -

उसी कड़ी में आज मैं आपको जानकारी देने जा रहा हूँ मेष राशि में स्थित 'राहु' के साथ होने वाली 'सूर्य' की युति की ।

'सूर्य' १४ अप्रैल २०२२ को प्रातः ८ बजकर ३३ मिनट (दिल्ली समयानुसार) पर मेष राशि के 'अश्वनी' नक्षत्र में प्रवेश करेंगे जहाँ वह १५ मई २०२२, प्रातः ५ बजकर २२ मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात 'वृष' राशि में प्रवेश कर जायेंगे।

सूर्य 'मेष' राशि में उच्च के हो जाते हैं तथा उसमें भी मेष राशि के १० अंश पर परम उच्च का फल देते हैं। जिस समय 'सूर्य' मेष राशि में प्रवेश करेंगे वहां उनका सामना १२ अप्रैल से संचार करते हुए 'राहु' के साथ होगा और गोचर में सूर्य-राहु की युति बन जाएगी तथा सूर्य- राहु की चपेट में आकर अपने शुभ फलों को देने में असमर्थ हो जायेंगे। 

जैसा कि मैं अपने पूर्व के ब्लॉग में बता चुका हूँ कि राहु जिस भी ग्रह की राशि में स्थित होता है तथा जिस भी ग्रह से युति करता है अपने 'शनि' जैसे मारक प्रभावों के अतिरिक्त उस-उस ग्रह की छाया लेकर उनके भी प्रभाव ग्रहण कर लेता है। ऐसे में राहु- मंगल की राशि में स्थित होने तथा सूर्य की युति में आ जाने से मंगल तथा सूर्य के मारक प्रभाव भी ले लेगा और अपने अशुभ प्रभावों में कई गुना वृद्धि कर लेगा।

ऐसा राहु- सूर्य के उच्च राशि में स्थित होने पर भी उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करके उच्च के सूर्य के शुभ फलों को नष्ट कर देगा तथा सूर्य से बनने वाले अवयवों (ह्रदय, पेट, दाहिना नेत्र तथा हड्डियां) को पीड़ित करके सभी जातकों को हानि पहुँचाने की चेष्ठा करेगा। जिसके कारण इस एक माह में विश्व भर में ह्रदय, पेट, दाहिने नेत्र तथा हड्डियों से सम्बंधित रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में तीव्र वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं। अतः यदि कोई जातक पहले से ही इन चारों रोगों में से किसी एक रोग से पीड़ित है तो वह इस एक माह में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेता रहे।

इस एक माह के अवधिकाल में सूर्य-राहु की युति के दुष्परिणाम अंतरिक्ष में भी देखने को मिलेंगे। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक चाहें तो अनुसंधान कर सकते हैं इस एक माह में सूर्य से उठने वाले वाले सौर तूफानों (Solar tsunami) में अत्यधिक वृद्धि होगी, जिससे कई देशों के सैटेलाइट नष्ट हो जायेंगे तथा इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक चक्रवात और भूकम्प आएंगे ।

सूर्य-राहु युति के इस अवधिकाल में ३० अप्रैल को सूर्यग्रहण लगेगा जिसके दुष्परिणाम आगामी ६ माह तक देखने को मिलते रहेंगे । विशेष रूप से पहले तीन माह तक इस सूर्य ग्रहण का दुष्प्रभाव बहुत अधिक रहेगा। यह सूर्यग्रहण भारत में मध्यरात्रि १२ बजकर १५ मिनट से शुरू होगा और फिर ३० अप्रैल की सुबह ४ बजकर ७ मिनट पर समाप्त होगा। भारत में यह आंशिक सूर्यग्रहण होगा और दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे भारत में यह कहीं भी नहीं दिखाई देगा। यह सूर्यग्रहण दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी पश्चिमी भाग, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और अंटार्कटिका में ही दिखाई देगा और यहां यह ३० अप्रैल दोपहर १२:१५ बजे शुरू होकर शाम ४:०७ बजे समाप्त होगा। जिसके परिणामस्वरूप इन स्थानों पर आगामी ३माह के भीतर बड़े भूकंप और चक्रवात आयेंगे।

सूर्य-राहु की यह युति बड़े राजनेताओं व उच्च अधिकारियों के लिए भी बहुत अमंगलकारी है। इधर पहले से ही 'राहु' बड़े राजनेताओं और उच्च अधिकारियों के कारक 'सूर्य' के नक्षत्र 'कृतिका' में स्थित होने से विश्व के बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों को हानि पहुंचा रहे हैं और विश्व में कई देशों की सरकारें अस्थिर किए हुए हैं, ऊपर से 'सूर्य' के साथ युति करके उनको और अधिक हानि पहुंचाने की चेष्ठा करेंगे। अतः इस एक माह के अवधिकाल में विश्व भर में बड़े राजनेताओं तथा उच्च अधिकारियों की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है, जिसका कारण अधिकांशतः हृदय घात ही होगा। इसके अतिरिक्त कई देशों में बड़े राजनेताओं को राजनैतिक अस्थिरता एवं सहयोगी मित्रों से छल की स्थिति का सामना करना पड़ेगा ।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए राहु के अशुभ फलों से बचाव के उपाय-
जिन जातकों को राहु अशुभ फल दे रहे हैं वह योग्य वेदपाठी ब्राह्मणों से राहु की वेदोक्त अथवा तंत्रोक्त विधि से विधिवत् शांति करवा लें और स्वयं उनके बीज मंत्र का जाप करें व शनिवार के दिन राहु के निमित्त दान करें । नीला रंग धारण न करें तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा की यात्रा करने और इस दिशा में निवास करने से बचें । राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के उच्च कोटि के मंत्रों का रुद्राक्ष की माला से विधिवत् जाप करें। पुरानी लकड़ी व धूल घर में एकत्र न होने दें और तम्बाकू का सेवन कदापि न करें ।

राहु के निमित्त दान- नीला वस्त्र, नारियल (जटाओं वाला), शीशा (कांच), कंबल, मूली, सुरमा, सप्त धान्य, गोमेद, खड्ग, नीले पुष्प आदि । इसके अतिरिक्त कौवे को मीठी रोटी खिलाने, चींटियों को भोजन देने तथा काली बिल्ली को दूध पिलाने (बिल्ली को घर में पालना नहीं है) से भी राहु देवता प्रसन्न होकर अपने दुष्प्रभावों को अल्प अथवा समाप्त कर देते हैं

Note- जिन जातकों की जन्म-कुंडलियों में सूर्य पहले से ही अपनी उच्च, मूल त्रिकोण तथा स्वराशि के होकर शुभ स्थिति में हैं और उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति उतनी अशुभकारी नहीं होगी किन्तु जिनकी जन्म-कुंडलियों में सूर्य अपनी नीच राशि, शत्रु राशि के होकर पहले से ही राहु, शनि, केतु के पाप प्रभाव में हुए और उनकी दशा अंतर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडलियों में स्थित अशुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए सूर्य-राहु की यह युति बहुत ही कष्टकारी सिद्ध होगी।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 21 मार्च 2022

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2022

गोचर में 12 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 17 मिनट पर (दिल्ली समयानुसार) अपनी वक्री गति से राहु व केतु क्रमशः 'वृष व वृश्चिक' राशि से निकलकर 'मेष व तुला' राशि में प्रवेश करेंगे, जहाँ वह 30 अक्टूबर 2023 दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक संचार करेंगे तत्पश्चात क्रमशः 'मीन व कन्या' राशि में चले जायेंगे। लगभग 18 महीने के इस अवधिकाल में राहु-केतु, सवा दो-सवा दो नक्षत्रों में संचार करेंगे जिसके कारण सभी जातकों को इनके भिन्न-भिन्न परिणाम देखने को प्राप्त होंगे। 

राशि परिवर्तन के आरम्भ में राहु- सूर्य के नक्षत्र 'कृतिका', तत्पश्चात शुक्र के नक्षत्र 'भरणी' और केतु के नक्षत्र 'अश्वनी' में संचार करेगा और केतु- गुरु के नक्षत्र 'विशाखा', तत्पश्चात राहु के नक्षत्र 'स्वाति' और मंगल के नक्षत्र 'चित्रा' में प्रवेश करेगा । 

राहु-केतु खगोलीय दृष्टि से कोई ग्रह भले ही ना हों किन्तु ज्योतिष शास्त्र में इनका बहुत अधिक महत्व है। यह दोनों ग्रह एक दूसरे के विपरीत बिंदुओं पर समान गति से गोचर करते हैं। अपना कोई भौतिक आकार ना होने के कारण राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है। राक्षस जाति और स्वभाव से क्रूर होने के कारण शनि के साथ-साथ इन दोनों ग्रहों को भी पापी ग्रहों की संज्ञा दी गयी है। यह दोनों ग्रह जिस राशि तथा जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, उनकी भी छाया ग्रहण कर लेते हैं और अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। यदि यह बृहस्पति जैसे शुभ ग्रह के साथ आ जाएँ तो स्वयं तो अपने स्वभाव में शुभता ले आते हैं परन्तु बृहस्पति को दूषित करके गुरु-चांडाल दोष बना देते हैं और ऐसा बृहस्पति भी अपनी दशा-अन्तर्दशा में अशुभ फल देने लगता है। 

यदि यह शनि जैसे पापी अथवा सूर्य, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों के साथ बैठ जाते हैं तो उनकी छाया लेकर अपने पापत्व और क्रूरता में कई गुना वृद्धि करके जातक का जीवन नष्ट कर देते हैं। ऐसे राहु-केतु जातक की जन्म-कुंडली में जिस भी भाव पर बैठ जाते हैं, वहां के सभी शुभ फलों को पूर्णतः नष्ट कर देते हैं और वह भाव तथा उसमें स्थित राशि जिन शाररिक अंगों को बनाती है उन अंगों में भयानक रोग प्रकट कर देते हैं। 

यह दोनों पापी ग्रह जिस नक्षत्र में होते हैं वह नक्षत्र शरीर के जिस अंग को बनाता है उस अंग में बार-बार कोई समस्या आती रहती है। यही कारण है कि बहुत सारे लोगों के बार-बार एक ही अंग में चोट लगना, पीड़ा होना अथवा ऑपरेशन होने जैसी समस्या अधिकांशतः हमें देखने को मिलती रहती हैं। 

मैंने अपने ज्योतिष के Professional Career में ऐसी अनेक जन्म-कुंडलियों का विश्लेषण करके यह अनुसन्धान किया है कि राहु-केतु की युति जिन भी ग्रहों के साथ हुई है, इन दोनों पापी ग्रहों ने उन ग्रहों से निर्माण होने वाले शारिरिक अंगों में रोग, चोट, ऑपरेशन आदि करवाये हुए हैं। यही कारण है कि अनेक बार राहु-केतु के उच्च राशि अथवा शुभ स्थिति में होते हुए भी मैं जातक को इनके रत्न धारण नहीं करवाता क्यूंकि ऐसी स्थिति में जहाँ इनके रत्न जीवन को नयी ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाले सिद्ध होते हैं वहीं दूसरी ओर वह शरीर के उन अंगों को पीड़ित भी कर देते हैं जिस अंग को बनाने वाले नक्षत्र-राशि-भाव में राहु-केतु स्थित होते हैं। 

उदाहरण स्वरुप- यदि राहु-केतु की युति सूर्य के साथ हो जाये तो जातक को सूर्य से उत्पन्न अवयवों (पेट, ह्रदय, दाहिना नेत्र, हड्डियां) में कोई ना कोई समस्या अवश्य रहेगी तथा सूर्य का पिता के कारक होने से पिता को भी गंभीर रोग रहेंगें और अनेक बार उनकी मृत्यु का कारक हार्ट अटैक बनेगा। इस विषय पर आप सभी मेरा चिकित्सा ज्योतिष (Medical Astrology) पर लिखा गया ब्लॉग देख सकते हैं। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html

इन सब कारणों से राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है क्यूंकि इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ेंगे- 

राहु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव- 

मेष राशि - मेष लग्न

लग्न में शत्रु राशि के राहु के संचार करने के कारण सिर की चोट से बचाव करें। सिर पर राहु के विराजमान होने से मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन बना रहेगा अतः अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें अन्यथा राहु की सप्तम दृष्टि विवाह स्थान पर होने से आपके वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकती है। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः संतान व पिता स्थान पर होने के कारण आपकी संतान और पिता के स्वास्थ्य के लिए भी यह समय कष्टकारी सिद्ध होगा। इस राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियां विशेष सावधानी रखें, यदि आप या आपके पिता पहले से ही ह्रदय से सम्बंधित रोगों से ग्रसित हों तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें।

वृष राशि - वृष लग्न

आपके बड़े भाई-बहन, छोटी बुआ, चाचा की धन हानि तथा उनके दाहिने नेत्र या दांतों में और आपके बाएं नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई कष्ट उत्पन्न हो सकता है। 12वें भाव में मंगल की राशि का राहु आपकी दादी की आयु और उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। माता को पीठ व कमर की चोट से बचाव करें। आपका खर्चा हॉस्पिटल या कोर्ट केस आदि में ना हो इसके लिए राहु के दान व विधिपूर्वक उनके मन्त्रों का जाप करें तथा इस अवधिकाल में नीला रंग धारण करने से बचें। यदि आपने किसी से कोई ऋण लिया हुआ है तो उसको उतार दें अन्यथा आपका धन चिकित्सालय अथवा कोर्ट केसों में निकल जायेगा। 

मिथुन राशि - मिथुन लग्न

बड़े भाई-बहन, चाचा व छोटी बुआ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और माता की आयु की सुरक्षा करें। राहु गोचर में आपके 11वें भाव में संचार करेंगे अतः पिंडलियों की चोट से स्वयं को बचाएं। राहु की सप्तम दृष्टि आपकी संतान के लिए कष्टकारी है अतः इस राशि-लग्न वाली गर्भवती महिलाएं विशेष सावधानी रखें। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके वैवाहिक जीवन के लिए ठीक नहीं है। इन सब नकारात्मक बातों के पश्चात भी राहु जब भरणी नक्षत्र में संचार करेंगे तो उस अवधिकाल में लाभ स्थान में होने से आपके लाभ में कई गुना वृद्धि करवायेंगे। 

कर्क राशि - कर्क लग्न

दशम भाव में शत्रु राशि का राहु आपके राजनैतिक कैरियर, आपकी नौकरी तथा आपके पिता के धन के लिये हानिकारक है। सरकारी विवाद से बचें। पिता के दांतों तथा दाहिने नेत्र तथा आपके स्वयं के घुटनों में कोई समस्या आ सकती है। अपनी सास की आयु की सुरक्षा करें। राहु की पंचम शत्रु दृष्टि आपके धन-कुटुंब के लिए अच्छी नहीं है अतः अपने ऋणों से मुक्ति प्राप्त कर लें अन्यथा आपका धन कहीं और निकल जायेगा। यदि आप सरकारी नौकरी में हैं और आपकी जन्मकुंडली में भी आपका दशम भाव-दशमेश अत्यधिक पाप प्रभाव में हुआ तो इस समय आपकी नौकरी जा सकती है। 

सिंह राशि - सिंह लग्न

नवम भाव में राहु का संचार आपके पिता, छोटा साला-छोटी साली के स्वास्थ्य तथा आयु के लिए अच्छा नहीं है, इसकी आपके लग्न पर शत्रु तथा संतान भाव पर नीच दृष्टि आपके व आपकी संतान के लिए भी अनिष्टकारी है। स्वयं अपने सिर, पीठ व कमर की चोट से बचाव करें तथा संतान की सुरक्षा के लिए राहु के मन्त्रों के जाप और उनके दान करें तथा पिता की आयु की सुरक्षा के लिए राहु की अधिष्ठात्री देवी 'भगवती दुर्गा' के मन्त्रों के जाप करें। इस अवधिकाल में देश में होने वाली यात्राओं को यथासंभव टालने का प्रयास करें। 

कन्या राशि - कन्या लग्न

अष्टम भाव में शत्रु राशि का राहु आपको अत्यधिक मानसिक पीड़ा और डिप्रेशन देने जा रहा है, यह आपकी आयु का स्थान भी है अतः आत्महत्या जैसे महापाप को करने के विचार से भी बचें। इस समय आपके जीवन साथी के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आ सकती है तथा उनके धन-कुटुंब के लिए भी यह समय ठीक नहीं है। आपके पिता को बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजो में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि आपके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उनको उसमें पराजय का सामना करना पड़ेगा। इस अवधिकाल में आपकी माता को पेट में भी कोई समस्या आ सकती है। इस समय आपके छोटे-मामा मौसी विदेश यात्रा ना करें और आप गहरी नदियों व समुद्री स्थानों से दूर रहें। 

तुला राशि - तुला लग्न

राहु का आपके सप्तम भाव में संचार आपके वैवाहिक जीवन के लिए अशुभकारी है। यदि आप व्यापार में किसी के साथ पार्टनरशिप में हैं तो विवाद की स्थिति से बचें। अपनी बड़ी बुआ तथा ताऊ के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। सप्तम के राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि क्रमशः आपके एकादश और तृतीय भाव में पड़ने से आपके भाई बहनों के लिए यह समय अशुभकारी है। पैरों तथा हाथों की चोट से सावधान रहें और यदि आप स्त्री हैं तो नीच प्रकृति के पुरुषों से दूर रहें तथा एकांत स्थान पर अकेले जाने से बचें। इस राशि-लग्न वाले जातकों की जन्मकुंडली में 'शुक्र' यदि अपनी नीच या शत्रु राशि अथवा अस्त व पाप प्रभाव में हुए तो इनके यौन अंगों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

वृश्चिक राशि - वृश्चिक  लग्न

इस डेढ़ वर्ष के अवधिकाल में आपको दुर्घटना से बचाव करने की आवश्यकता है। यदि आप पहले से ही किडनी, आंतो, पेंक्रियाज अथवा लिवर की समस्या से पीड़ित हैं तो यह समय आपके लिए बहुत कष्टकारी है । आप यदि मधुमेह के रोगी हैं तो अपनी शुगर का ध्यान रखें। इस समय आपके शत्रु आपको चोट पहुँचाने का प्रयास करेंगे, सावधान रहें। आपके जीवन साथी को अपने बायें नेत्र, एड़ी-पंजो तथा आपको अपने घुटनों की चोट से भी बचाव करना होगा। इस समय आपकी संतान की धन हानि के योग बने हुए हैं तथा उनको दांतों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। राहु की नवम नीच दृष्टि आपके धन-कुटुंब भाव पर है अतः कर्ज लेने से बचें अन्यथा चिंता ग्रसित हो जायेंगे। कुटुंब में व्यर्थ के विवाद से बचें। बचाव के लिए योग्य वेदपाठी विद्वानों से विधिवत श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ तथा यज्ञ करवायें। 

धनु राशि - धनु लग्न

यह समय आपकी संतान के लिए शुभ नहीं है। यदि आप गर्भवती महिला हैं तो बहुत सावधानी रखें, गर्भपात हो सकता है। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको परीक्षाओं में प्रतिकूल परिणाम प्राप्त होंगे। अपने पेट व ह्रदय का ध्यान रखें। राहु की पंचम दृष्टि आपके पिता के लिए हानिकारक है, यदि वह पहले से ही ह्रदय रोगी हैं तो अपने चिकित्सक से परामर्श लेते रहें। अपनी माता के दाहिने नेत्र तथा दांतों में कोई समस्या आने के योग बन रहे हैं। स्वयं आप सिर,पीठ व कमर की चोट आदि से बचें। इस अवधिकाल में आपको आपके इष्ट देवता के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है। राहु के मन्त्रों का जाप तथा उनके दान करें। नीले वस्त्रों को धारण करने से बचें। 

मकर राशि - मकर लग्न

शत्रु राशि के राहु के आपके चतुर्थ भाव में गोचर करने के कारण यह समय आपकी माता के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं। इस समय यदि आप कोई प्रॉपर्टी अथवा वाहन लेने जा रहे हैं तो बहुत विचार करके ही लें। यदि आपका आपकी किसी संपत्ति पर विवाद चल रहा है तो आगामी डेढ़ वर्ष उस विवाद को टालने का प्रयास करें। इस अवधिकाल में राहु आपके तथा अपनी पंचम दृष्टि से आपके ससुराल के सुख में भी कमी करेगा तथा आपके जीवन साथी के धन की हानि करेगा। स्वयं के वाहन द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा से बचें। हॉस्पिटल का यदि कोई खर्च रुका हुआ हो तो उसको हो जाने दें। 

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न

भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें उनके लिए यह समय अनुकूल नहीं है। स्वयं का गले-छाती के रोगों से बचाव करें। आगामी डेढ़ वर्ष तक कोई विदेश यात्रा करने तथा मित्रों से विवाद की स्थिति से बचें। इस समय आपके बड़े मामा-मौसी की धन की हानि तथा उनके दाहिने नेत्र व दांतों में पीड़ा के योग बन रहे हैं। हाथ-पैरों की चोट से बचें। इस अवधिकाल में आपके जीवन साथी को पीठ अथवा कमर में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। 

मीन राशि - मीन लग्न

द्वितीय भाव में शत्रु राशि में स्थित राहु आपके धन की हानि करवाता रहेगा। अतः यदि कोई ऋण हो तो उससे मुक्ति प्राप्त कर लें। इस अवधिकाल में आपके दांतों तथा दाहिने नेत्र में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यह समय आपके कुटुंब के लिए बहुत विनाशकारी है। वाणी स्थान पर बैठे राहु आपसे कड़वी वाणी का उपयोग करवायेंगे जिसके कारण आप लोगों को अपने शत्रु बना लेंगे, अतः सोच समझ कर बोलें। राहु की पंचम शत्रु तथा नवम नीच दृष्टि आपको किडनी, आंतों, पेंक्रियाज, लिवर तथा घुटनों में कोई समस्या ना दे इसके लिए राहु के दान करें तथा उनके मन्त्रों का जाप करें। 


केतु का विभिन्न राशि - लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव-

स्वभाव से राहु के समक्ष केतु थोड़े कम पापी ग्रह माने जाते हैं परन्तु फलित करते समय यह भी राहु से कम विध्वंसकारी नहीं होते। गोचर में जब-जब केतु की युति मंगल अथवा शनि से होती है तो संसार में अग्निकांड और विषैली गैसों से होने वाली दुर्घटनायें कई गुना बढ़ जाती हैं। यदि किसी की जन्मकुंडली के किसी भाव में पहले से ही मंगल-केतु, मंगल-शनि की युति हो और उसकी दशा-अंतर्दशा भी इन्हीं ग्रहों की चल रही हो तथा गोचर में भी उसी भाव में यह युति बन जाये तो इनकी यह युति जातक के उस शारिरिक अंग के लिए बहुत कष्टकारी होती है जिसको वह भाव बनाता है और कई बार जातक का वह अंग-भंग तक हो जाता है। अतः ऐसी स्थिति में सभी को इन ग्रहों के दान व शांतियाँ अवश्य करवा लेनी चाहिए, इससे इनके अशुभ प्रभाव में बहुत कमी आ जाती है और यह अपना सम्पूर्ण अशुभ फल ना देकर छोटी-मोटी चोट, खरोंच आदि देकर आगे निकल जाते हैं। 

सभी राशि लग्नों पर केतु का फलादेश भी लगभग राहु के सामान अशुभ फल देने वाला ही होगा, ब्लॉग की विस्तारता को देखते हुए इसके अलग से फलादेश करने की आवश्यकता नहीं है। सभी जातक अपनी-अपनी राशि लग्नों पर इसको राहु के जैसा अशुभ फल देने वाला ही मानें। अधिक जानकारी के लिए मेरे ब्लॉग स्पॉट पर केतु से सम्बंधित दिए गए अन्य ब्लॉग पढ़ें। इसमें 'महामारियों का कारण व निवारण', गोचर में मंगल-केतु युति व 'आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति' अवश्य पढ़ें। 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/09/blog-post.html 

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/03/mahamariyon-ka-kaaran-aur-nivaran.html

https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/02/blog-post.html

नोट- यहाँ केवल राहु-केतु के राशि परिवर्तन से प्रकट होने वाले परिणामों का वर्णन किया गया है, किसी अन्य ग्रहों के गोचर में राशि परिवर्तन से पड़ने वाले शुभाशुभ परिणामों का नहीं। इसके अतिरिक्त विषय की विस्तारता को ध्यान में रखते हुए इन 18 महीनों में राहु-केतु के साथ ही गोचर में भ्रमण करते हुए अन्य ग्रहों की राहु-केतु के साथ होने वाली युति-दृष्टि के परिणामों का भी उल्लेख यहाँ पर नहीं किया जा सकता है। यदि संभव हुआ तो आगामी समय में किसी अन्य ब्लॉग के माध्यम से मैं आप सभी के लिए वह फलादेश भी उपलब्ध करवा दूंगा।

राहु-केतु के क्रमशः अपने परम शत्रुओं (मंगल-शुक्र) की राशियों में संचार करने के कारण इन डेढ़ वर्षों में राहु व केतु बहुत उपद्रव मचाने जा रहे हैं जिससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा। 'मेष' राशि हमारे सिर (Head) और 'तुला' राशि हमारे यौन अंगों (Sex Organs) का निर्माण करती है, राहु-केतु का इन राशियों में संचार करना आगामी डेढ़ वर्ष तक विश्व भर में इन अंगों से सम्बंधित रोगियों की मात्रा में भारी वृद्धि करने जा रहा है। इस अवधिकाल में सड़क दुर्घटनाओं में सिर में चोट लगकर मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलेगी। अतः जो लोग सड़क यात्रा के समय मोटरसाईकिल आदि वाहनों का प्रयोग करते हैं वह हेलमेट का प्रयोग अवश्य करें। सेना-पुलिस-अर्ध सैनिक बलों के हमारे जवान भी यथासंभव सिर की चोट से बचने का प्रयास करें। 

यदि किसी जातक की जन्म-कुंडली में राहु व केतु शुभ ग्रहों की राशि में शुभ ग्रहों के साथ स्थित हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का राशि परिवर्तन उतना अनिष्टकारी नहीं होगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अपनी नीच व शत्रु राशियों में पापी अथवा क्रूर ग्रहों के साथ स्थित हुए और उनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी तो उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध होगा।  

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 17 मार्च 2022

देव गुरु 'बृहस्पति' का स्वराशि 'मीन' में प्रवेश

13 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 21 मिनट ('दिल्ली समयानुसार') पर देव गुरु बृहस्पति 'कुंभ' राशि से निकलकर अपनी राशि 'मीन' में प्रवेश करेंगे और यहां वह 22 अप्रैल 2023 को प्रातः 3 बजकर 32 मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात मेष राशि में प्रविष्ट हो जाएंगे। देव गुरु बृहस्पति का स्वग्रही होना देव शक्तियों के जागरण के लिये मार्ग प्रशस्त करने वाला तथा आसुरी शक्तियों को भयाक्रांत करने वाला होगा। इसलिए यह एक वर्ष सनातन धर्म के उत्थान के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रहा है।

लगभग 1 वर्ष 10 दिन का यह अवधिकाल- शिक्षा, ज्ञान, आध्यात्म और बैंक से सम्बंधित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिये अत्यंत शुभ फलदायक होगा। विद्यार्थियों तथा साधकों के लिए भी गुरु का स्वराशि में गोचर बहुत शुभ होगा।

देव गुरु 'बृहस्पति' के 'स्वराशि' में संचार करने के कारण इस एक वर्ष में लगभग 70% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह हो जायेंगे। केवल उन्हीं कन्याओं के विवाह में रुकावटें आयेंगीं जिनकी जन्म-कुंडलियों में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह का कारक 'बृहस्पति' अशुभ स्थिति में होंगे और दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली के उन्हीं अशुभ ग्रहों की चल रही होंगी जिन्होंने सप्तम भाव, सप्तमेश और बृहस्पति को अपने पाप प्रभाव से ग्रसित किया हुआ होगा।

यद्यपि सनातन धर्म की मर्यादा के अनुसार पुत्र एवं पुत्री दोनों की ही प्राप्ति एक समान सुखदायक होती है तथापि बृहस्पति के प्रभाव के कारण इस एक वर्ष में विश्व भर में जन्म लेने वाली लगभग 70% संतानें 'पुत्र' के रूप में जन्म लेंगी । यहाँ तक कि पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों में भी यही अनुपात देखने को मिलेगा।

आइए जानते हैं कि गोचर में बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ेगा।

मेष राशि - मेष लग्न
मेष राशि-मेष लग्न वाले जातकों का गुरु 12वें भाव में संचार करने के कारण जातक का धन शुभ कार्यों में खर्च होगा, दादी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, पिता को प्रॉपर्टी, वाहन का सुख तथा स्वयं को कोर्ट केस से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जो जातक अनिद्रा की समस्या से पीड़ित हैं उन्हें अनिद्रा रोग से मुक्ति मिलेगी और जिन जातकों की आयु का अंतिम पड़ाव आ चुका है और जन्म-कुंडली में भी अकेले बृहस्पति 12वें भाव में स्थित हैं, उन जातकों को मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग की प्राप्ति होगी। बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजे के रोग से सम्बंधित रोगियों को चिकित्सा से लाभ होगा। इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को धन का लाभ होगा।

वृष राशि - वृष लग्न
वृष राशि-वृष लग्न वाले जातकों का बृहस्पति 11वें भाव (लाभ स्थान) में अपनी ही राशि में संचार करने के कारण स्वयं को सभी प्रकार का लाभ होगा तथा इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को स्वास्थ्य एवं आयु का लाभ होगा और उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इन जातकों के ससुराल में प्रॉपर्टी, वाहन आने के योग बनेंगे। पिता को गले-छाती के रोगों की समस्या से तथा स्वयं को पिंडलियों की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माता यदि मरणासन्न अवस्था में हुईं तो गुरु के इस राशिपरिवर्तन के साथ ही वह चमत्कारिक ढंग से ठीक हो जाएंगी। इस राशि-लग्न वाली कन्याओं के विवाह में आ रहे अवरोध अब दूर होंगे।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
मिथुन राशि-मिथुन लग्न वाले जातकों की सरकारी नौकरी से सम्बंधित सभी बाधाएँ दूर होंगी तथा इस राशि-लग्न के जिन जातकों के सरकारी कार्य रुके हुए हैं, अब वह पूर्ण होंगे और प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे । जो लोग राजनीति में हैं वह राजनीति में उच्च पद प्राप्त करेंगे। इनके बृहस्पति के दशम भाव में संचार करने से इनके पिता को वर्ष भर धन की प्राप्ति होती रहेगी। इनके पिता के दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग दूर होंगे तथा इनके जीवन साथी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। सास की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की वृद्धि होगी पंच महापुरुष राजयोग में से एक 'हंसक' नामक राजयोग इनके गोचर से 'दशम भाव' में बनने जा रहा है जो इनको जीवन में नवीन ऊँचाइयाँ प्राप्त करवाने मे सहायक होगा।

कर्क राशि - कर्क लग्न
कर्क राशि-कर्क लग्न वाले जातकों के स्वराशि के गुरु के नवम् भाव में संचार करने के कारण इनके भाग्य में चल रहे सभी अवरोध अब दूर होंगे। इनके पिता को आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। यदि इनकी जन्मकुंडली में नवम् भाव और नवमेश की स्थिति भी शुभ हुई तो इन जातकों की अचानक से धर्म में रूचि बढ़ जाएगी और यह देश के भीतर ही धार्मिक यात्राएँ करेंगे । ईश्वर की कृपा से यह लोग अपने अगले जन्म में मिलने वाले जन्म-स्थान की यात्रा कर सकेंगे जिससे अगला जन्म पाने पर यह ऐसी अनुभूति करेंगे कि वह पहले भी इस स्थान पर आ चुके हैं । इनके ससुराल में धन की वृद्धि होगी, इनके छोटे साला-साली यदि कष्ट में हुए तो उनको उस कष्ट से मुक्ति मिलेगी तथा इनके छोटे मामा-मौसी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। इनके स्वयं के पीठ अथवा कमर की पीड़ा चमत्कारिक ढंग से दूर हो जाएगी और इनकी संतान भाव से पंचम में स्वराशि के गुरु होने से इनकी संतान को प्रतियोगी परीक्षाओं मे सफलता प्राप्त होगी। इनकी माताएँ यदि किडनी, लीवर, आंतो के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अत्यधिक सुधार होगा तथा इनके जीवन साथी के गले-छाती के रोग समाप्त होंगे।

सिंह राशि - सिंह लग्न
सिंह राशि-सिंह लग्न के जो जातक मरणासन्न अवस्था में थे, वह गुरु के इस राशि परिवर्तन वाले दिन से ही चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने आरम्भ हो जायेंगे। स्वराशि के गुरु का इनके अष्टम भाव में गोचर इनके जीवन साथी के धन की वृद्धि करने वाला होगा तथा उनके दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग अब दूर हो जायेंगे। इनकी संतान को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता के बाएं नेत्र के विकार ठीक होंगे और उनका धन शुभ कार्यों में खर्च होगा। यदि इनके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उन्हें अब उसमें विजय प्राप्त होगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माताओ को पेट के रोगों में सुधार देखने को मिलेगा।

कन्या राशि - कन्या लग्न
कन्या राशि-कन्या लग्न वाली 90% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह इस वर्ष हो जायेंगे और इस राशि लग्न वाली जिन स्त्रियों के जीवन साथी के स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहे थे अथवा संबंधों में मतभेद चल रहे थे अब वह ठीक होने लगेंगे। यहाँ तक कि इस राशि-लग्न वाले किसी जातक ने अपने जीवन साथी से तलाक (सनातन हिन्दू संस्कृति में इसके लिए कोई शब्द और स्थान ही नहीं है) के लिए कोर्ट केस किया हुआ है तो वह उसे वापस ले लेंगे। आपके बृहस्पति के कारण आपके जीवन साथी को आयु, मान-सम्मान का भी सुख प्राप्त होगा । इस राशि-लग्न के जातकों के गोचर में सप्तम भाव में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बन जाने से इनके जीवन साथी, ताऊ और बड़ी बुआ को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे तथा इनकी माता को प्रॉपर्टी और वाहन सुख की प्राप्ति के योग बनेंगे।

तुला राशि - तुला लग्न
तुला राशि-तुला लग्न वाले जातकों के गोचर में स्वराशि के गुरु के छठे भाव में संचार करने के कारण ऐसे व्यक्ति अपने पराक्रम और ज्ञान से अपने शत्रुओं को पराजित करेंगे और यदि पराजित कर सकने योग्य ना हुए तो दैवीय शक्तियों की सहायता से इनके शत्रु स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे। इस राशि-लग्न वाले जिन जातकों को किडनी, लिवर, आंतों की समस्या चल रही थी वह अब ठीक होने के योग बनेंगे। इनके छोटा मामा-छोटी मौसी में से यदि कोई मरणासन्न अवस्था में हुआ तो वह अब ठीक होने लगेगा। इनके छोटे भाई-बहनों एवं मित्रों को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि इनकी माता गले छाती के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अब सुधार होगा। इस राशि-लग्न वाले जातकों के पिता के सरकारी कार्यों की रूकावटें दूर होंगी और यदि इनके पिता सरकारी नौकरी में हैं तो उनको प्रमोशन के योग बनेंगे अथवा उन्हें सरकार से कोई सहायता प्राप्त होगी। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के लिए यह समय अत्यंत शुभ है।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न वाले जातकों के बृहस्पति उनके पंचम स्थान में गोचर करेंगे, जिसके कारण उनको संतान की प्राप्ति के प्रबल योग बनेंगे। यदि ये राजनीति में हैं तो इनको मंत्री पद की प्राप्ति के प्रबल योग हैं। इस राशि-लग्न वाले पेट-हार्ट के रोगियों के स्वास्थ्य में भी बहुत सुधार होने के योग बनेंगे। यदि यह विधार्थी हैं तो यह परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होंगे। इनकी माता को धन प्राप्ति के योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब में सुख की वृद्धि होगी। पंचमेश गुरु के अपने ही स्थान में गोचर करने से इस राशि-लग्न के जातकों के प्रेम संबंधों में मधुरता आएगी। यदि किसी की संतान उसको छोड़कर दूर चली गयी है तो उसके भी वापसी के योग बनेंगे। इस समय पर आपके पूर्व जन्म के इष्ट देवता आपको अपनी अनुभूति करवाएंगे, यदि आप साधक हैं तो उनके संकेतों को आपको समझना चाहिए। इस अवधिकाल में आपके इष्ट देवता आपका हर प्रकार से सहयोग करेंगे तथा पूर्व जन्म के परिचित लोगों से आपका मिलना होगा, जिसके कारण आपको अनुभूति होगी कि आप पहले से उन्हें जानते हैं। यदि इस राशि-लग्न में जन्म लेने वाला कोई उच्च कोटि का साधक इस एक वर्ष के अवधिकाल में अपने इष्ट देवता की साधना करेगा तो उसको सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।

धनु राशि - धनु लग्न
धनु राशि-धनु लग्न वाले जातकों के लिये उनके चतुर्थ भाव में 'हंसक'नामक पंच महापुरुष राजयोग बनेगा जो कि इनको वाहन, प्रॉपर्टी और नौकर-चाकरों का सुख प्रदान करने वाला होगा। इनके माता की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की भी वृद्धि होगी, तथा माता से इनके संबंधों में सुधार होगा। केंद्र में स्वराशि के गुरु का संचार इन्हें सभी प्रकार के सुख-संसाधनों का भोग करवाने वाला होगा। यदि इनका किसी सम्पत्ति को लेकर कोई विवाद चल रहा होगा तो उसका भी निस्तारण इसी एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहा है। पिता के स्थान 'नवम् भाव' से अष्टम (उनकी आयु भाव) में गुरु के स्वराशि में संचार होने से यदि किसी के पिता मरणासन्न अवस्था में भी हुए तो वह बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के साथ चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने लगेंगे। इस राशि-लग्न के जातकों के मित्रों और छोटे-भाई बहनों के लिए इस एक वर्ष के अवधिकाल में धन प्राप्ति के बहुत अच्छे योग बनेंगे। यदि आप जनता के बीच जाकर चुनाव लड़ना चाहते हैं तो लड़ सकते हैं, सफलता प्राप्त होने की प्रबल सम्भावना है।

मकर राशि - मकर लग्न
मकर राशि-मकर लग्न के जातकों के बृहस्पति उनके तृतीय भाव में संचार करने से इनके छोटे-भाई बहनों तथा मित्रों की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इस राशि-लग्न के जातकों के विदेश यात्रा के प्रबल योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब और बड़े मामा-बड़ी मौसी के धन की वृद्धि होगी। इनकी माता को यदि उनके बाएं नेत्र, एड़ी-पंजों में कोई समस्या रही हो तो उनको इस समय अपना उपचार करवा लेना चाहिए, लाभ होगा। इनके स्वयं के गले, सीधे हाथ और दाहिने कान में कोई समस्या रही हो तो उसका भी उपचार ये करवा सकते हैं,समस्या ठीक हो जाएगी।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न वाले जातकों के धन-कुटुंब के भाव में स्वराशि का बृहस्पति इन्हें बहुत अधिक धन प्राप्त करवाने जा रहा है, यदि किसी के कुटुंब में कलेश रहते हों तो वहां शांति स्थापित करने का यही समय है। इस एक वर्ष की अवधिकाल में आपके मुख से निकली अनेक बातें सत्य घटित होंगी। यदि आप ज्योतिष का कार्य करते हैं तो यह एक वर्ष आपके मुख से निकली हुई वाणी को सत्य घटित करवाने जा रहा है। आपको आपके बड़े मामा-बड़ी मौसी से अनेक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। आपके बड़े भाई-बहन,चाचा तथा छोटी बुआ को प्रॉपर्टी और वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि किसी की माता को पैर में पीड़ा हो तो उसका भी निवारण होने जा रहा है। किन्तु आपके छठे भाव पर बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि आपके शत्रुओं को ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाली होगी।

मीन राशि - मीन लग्न
मीन राशि-मीन लग्न वाले जातकों के लिए देव गुरु बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन उनके लग्न में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बनाने जा रहा है जिसके कारण इनकी आयु, स्वास्थ्य और मान सम्मान में वृद्धि होगी, यदि आप सरकारी नौकरी में हैं तो आपके प्रमोशन के योग बनेंगे और यदि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं तो यह समय बहुत अनुकूल है। यदि सरकारी ठेके लेते हैं अथवा सरकार से सम्बंधित कोई कार्य करते हैं तो आपको उसमें सफलता मिलेगी। आपके पिता यदि पेट-हार्ट की समस्या अथवा माता घुटनों की समस्या से ग्रसित हों तो उनको इन रोगों में स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होगा। इस राशि लग्न वाले जातकों की माता यदि सरकारी नौकरी में हों तो उन्हें प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे। मीन राशि की उन 90% कन्याओं के विवाह इस एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहे हैं जिनकी जन्मकुंडली में पहले से ही बृहस्पति शुभ स्थिति में हैं और यदि ये पहले से ही विवाहित होंगी तो इनके पति के स्वास्थ्य और उनसे इनके संबंधों में बहुत सुधार देखने को मिलेगा। बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि, पंचम भाव  पर होने से आपको पुत्र प्राप्ति के प्रबल योग हैं।


नोट- इस फलादेश का इस एक वर्ष में गुरु के साथ विभिन्न ग्रहों की युति-दृष्टि से जातकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही गोचर में होने वाले अन्य ग्रहों के राशि परिवर्तनों का। यहाँ केवल बृहस्पति के अपनी राशि 'मीन' में होने के फलादेश का वर्णन किया जा रहा है।

इसके अतिरिक्त यदि इन राशि-लग्नों में जन्म लेने वाले किसी जातक की स्वयं की जन्म-कुंडली में बृहस्पति ग्रह अपनी शत्रु राशि, नीचराशि अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव की स्थिति में होंगे तथा उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी, तो उन्हें इन सब उत्तम फलों की प्राप्ति नहीं होगी अथवा कम होगी।

इसके विपरीत जिन जातकों की जन्म-कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थानों के स्वामी होकर अपने मित्र या उच्च राशि में स्थित होकर शुभ प्रभाव में होंगे तथा उन्होंने उसका रत्न आदि धारण करके उसे शक्ति प्रदान की हुई होगी, उनके लिये बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन अत्यंत शुभ प्रदान करने वाला होगा।
'शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava