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रविवार, 22 अगस्त 2021

बुध का अपनी उच्च राशि 'कन्या' में प्रवेश



26 अगस्त को दिन के 11 बजकर 19 मिनट पर ग्रहों के राजकुमार 'बुध' अपनी मित्र राशि 'सिंह' से अपनी उच्च राशि 'कन्या' में प्रवेश कर जाएंगे और 22 सितम्बर प्रातः 8 बजकर 9 मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात अपनी मित्र राशि 'तुला' में चले जायेंगे।

बुध का अपनी उच्च राशि में प्रवेश उन सभी जातकों के लिए अत्यन्त शुभ फल प्रदान करने वाला होगा, जिनकी जन्म-कुंडलियों में बुध शुभ स्थिति में होगा और जिनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी।

इस अवधिकाल में बुध 1 से 15 अंश तक होने पर अपनी उच्च राशि का फल , 15 अंश से 20 अंश तक मूलत्रिकोण का फल तथा 20 से 30 अंश तक स्वराशि का फल प्रदान करेगा। अतः इस विषय में किसी को भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है ।

उन व्यापारियों, वक्ताओं, बैंक में कार्यरत कर्मचारियों, कंसल्टेंसी देकर धन कमाने वालों, वकीलों, शिक्षकों, अकाउंट्स और प्रकाशन से सम्बंधित कार्य करने वालों तथा लेखकों के लिए यह समय अत्यन्त शुभफल प्रदान करने वाला होगा जिनकी जन्म-कुंडली में बुध ग्रह पहले से ही अच्छी स्थिति में है ।

गले, त्वचा, वाणी, मिर्गी, मस्तिष्क और अस्थमा से सम्बंधित रोगों से ग्रसित रोगियों के लिए यह समय-काल उनके स्वास्थ्य में अत्यन्त लाभ प्रदान करने वाला होगा ।

सभी राशियों-लग्नों वाले जातकों पर बुध के इस राशि परिवर्तन का निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा-

मेष राशि-मेष लग्न
आपके छोटे मामा-मौसी को स्वास्थ्य का लाभ होगा, उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी तथा आपके शत्रु शान्त होंगे।

वृष राशि-वृष लग्न
आपकी संतान को स्वास्थ्य का लाभ होगा तथा आपको अपने इष्ट देवता की कृपा प्राप्ति से अकस्मात् धन लाभ और शेयर मार्केट से धन की प्राप्ति होगी । प्रेम संबंधों में चल रहे विवाद समाप्त होंगे ।

मिथुन राशि-मिथुन लग्न
नया वाहन अथवा कोई प्रॉपर्टी लेने जा रहे हैं तो ले सकते हैं, माता को स्वास्थ्य का लाभ होगा। स्वयं को सुख की प्राप्ति होगी तथा मान-सम्मान में वृद्धि होगी । लंबी दूरी की यात्रा के लिए यह समय शुभ है।

कर्क राशि-कर्क लग्न
आपके छोटे भाई-बहनों को स्वास्थ्य का लाभ होगा तथा उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी । विदेश यात्रा के लिए यह समय अनुकूल रहेगा।

सिंह राशि-सिंह लग्न
इस राशि-लग्न के जातकों को इस अवधिकाल में अत्यधिक धन लाभ होगा, मधुर वाणी के प्रयोग से सभी कार्य बनेंगें । आपके बड़े भाई-बहनों को स्वास्थ्य तथा धन का लाभ होगा । कुटुम्ब में शांति स्थापित होगी । दाहिने नेत्र के रोगियों को भी लाभ की प्राप्ति होगी ।

कन्या राशि-कन्या लग्न
लग्न में ही बुध के आ जाने से स्वयं को स्वास्थ्य का लाभ तथा मान-सम्मान की वृद्धि होगी। सरकारी नौकरी के योग बनेंगे। जो पहले से ही सरकारी कर्मचारी हैं उनको प्रमोशन के योग बनेंगे । आपकी ताई अथवा फूफाजी में से किसी का स्वास्थ्य खराब चल रहा होगा तो उनको स्वास्थ्य का लाभ होगा। यदि आपका बुध आपकी जन्म-कुंडली में वर्गोत्तम हुआ और आपकी राशि तथा लग्न दोनों ही 'कन्या' हुए तो इस समय आप साक्षात् काल के मुख से भी बाहर निकल आयेंगे अर्थात् काल भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा ।

तुला राशि-तुला लग्न
बाएं नेत्र रोगियों को लाभ होगा, शुभ कार्यों में धन का खर्चा होगा, बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को धन की प्राप्ति होगी तथा दादी के स्वास्थ्य में सुधार होगा ।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को स्वास्थ्य का लाभ होगा तथा उनके मान सम्मान में वृद्धि होगी। यदि किसी जातक की माता मरणासन्न अवस्था में हुईं तो चमत्कारिक रूप से वह ठीक होने लगेंगी।

धनु राशि-धनु लग्न
आपके जीवन साथी को सुख की प्राप्ति होगी तथा आपके सभी सरकारी कार्य बनेंगे । आपको सरकारी नौकरी की प्राप्ति के योग बनेंगे तथा जो लोग राजनीति में सक्रिय हैं उनको अपनी पार्टी में उच्च पद की प्राप्ति होगी।

मकर राशि-मकर लग्न
आपके पिता को स्वास्थ्य तथा मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। आपके भाग्य में जो रुकावटें आ रही थीं वह अब दूर होंगी । देश में ही यात्राओं के योग बनेंगे । यदि जन्मकुंडली में देव गुरु बृहस्पति भी शुभ स्थिति में हुए तो इस अवधि काल में आपके धार्मिक कार्य सम्पन्न होंगे।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
आपके जीवनसाथी को धन की प्राप्ति के योग बनेंगे। इस राशि-लग्न के जातक यदि मरणासन्न अवस्था में हुए तो चमत्कारी रूप से उनको स्वास्थ्य का लाभ होगा। आपके बड़े मौसा-बड़ी मामी के भी स्वास्थ्य तथा मान-सम्मान में वृद्धि होगी ।

मीन राशि-मीन लग्न
आपके जीवनसाथी, आपकी बड़ी बुआ तथा ताऊ को स्वास्थ्य लाभ तथा उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी । आपके अपने जीवनसाथी के साथ संबंधों में मधुरता आएगी। आपको अपने व्यापार तथा पार्टनरशिप से लाभ होगा तथा आपकी माता को सुख की प्राप्ति होगी ।

नोट- यहां केवल बुध के गोचर में राशि परिवर्तन से होने वाले शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है, अन्य 8 ग्रहों के गोचर में शुभाशुभ फल का नहीं । अतः अपने-अपने राशि-लग्नों पर केवल बुध की स्थिति का ही विचार करें ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 16 अगस्त 2021

सूर्य का स्वराशि में प्रवेश

 
एक वर्ष के उपरान्त आज मध्य रात्रि १ बजकर १७ मिनट पर ग्रहों के राजा सूर्य का अपनी ही राशि 'सिंह' में प्रवेश होने जा रहा है, जो कि वहां १६ सितम्बर २०२१ तक रहेंगे। सिंह राशि में ग्रहों के सेनापति 'मंगल' पहले से ही विराजमान हैं ।

सिंह राशि में ग्रहों के राजा 'सूर्य' और सेनापति 'मंगल' का यह योग देश के प्रधानमंत्री और सभी सेनाओं के सेनाध्यक्षों को अत्यन्त शक्ति प्रदान करने वाला होगा। गोचर में ग्रहों का यही योग राज्यों में मुख्यमंत्रियों और उनके साथ कार्य करने वाले पुलिस के सर्वोच्च अधिकारियों को भी शक्ति प्रदान करने का कार्य करेगा। ऐसे में यदि केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो आगामी एक माह तक सभी प्रकार की राष्ट्र विरोधी शक्तियों को अत्यन्त तीक्ष्ण क्षति पहुँचा सकती हैं ।

प्राचीन काल में राजाओं के पास राज-ज्योतिषी इसी कार्य के लिए हुआ करते थे जो राजाओं को उचित मार्गदर्शन देकर राज्य की रक्षा करने में इस महान विधा का उपयोग किया करते थे। आज यदि भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित करना है तो इसमें ज्योतिष विद्या एक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए सूर्य का स्वराशि में प्रवेश निम्न फल प्रदान करने वाला होगा-
मेष राशि-मेष लग्न
सूर्य आपके पंचम भाव में गोचर करेंगे । इस राशि-लग्न के जातक यदि हृदय योगी हों और वह अपना ऑपरेशन करवाना चाहते हैं तो वह करवा सकते हैं, पढ़ने वाले छात्रों के लिए यह समय प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता लेकर आएगा । पेट में एसिड न बने इसका ध्यान रखें।

वृष राशि-वृष लग्न
प्रॉपर्टी से सम्बंधित रुकावटें दूर होंगी, माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा, नया वाहन लेने जा रहे हों तो ले सकते हैं।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
छोटे भाई-बहनों में से किसी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं चल रहा हो तो उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। स्वयं के पराक्रम में वृद्धि होगी। विदेश यात्रा की रुकावटें दूर होंगी।

कर्क राशि-कर्क लग्न
आकस्मिक धन लाभ के योग बनेंगे, वाणी स्थान पर सूर्य के आगमन के कारण आप आक्रामक वाणी का प्रयोग करेंगे, नेत्रों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है।

सिंह राशि-सिंह लग्न
आपके लग्न में ही सूर्य के आ जाने के कारण स्वास्थ्य का लाभ होगा, मान सम्मान की वृद्धि होगी किन्तु सूर्य की सप्तम शत्रु दृष्टि जीवन साथी के भाव मे पड़ने से जीवन साथी के साथ विवाद भी उत्पन्न होगा।

कन्या राशि-कन्या लग्न
12 वें भाव मे सूर्य का गोचर आपके नेत्रों के लिए कष्टकारक होगा, एड़ी से पंजों के मध्य कोई चोट लग सकती है।

तुला राशि-तुला लग्न
बड़े भाई बहनों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, आपके स्वयं के लाभ में वृद्धि होगी।

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न
सरकारी नौकरी के योग बनेंगे, इस राशि-लग्न के जो जातक ठेकेदारी का कार्य करते हैं उनको सरकारी ठेके मिलने के प्रबल योग बनेंगे, राजनीति में उच्च पद प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता से धन की प्राप्ति होगी, माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

धनु राशि-धनु लग्न
पिता के स्वास्थ्य में लाभ होगा, भाग्य से कार्यों में सफलता प्राप्त होगी, छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, विदेश यात्रा से बचें।

मकर राशि-मकर लग्न
जीवन साथी के नेत्रों में कष्ट होगा परंतु जीवन साथी को धन प्राप्ति के योग भी बनेंगे । यदि इस राशि-लग्न का कोई जातक मृत्युशैया पर हुआ तो अकस्मात् ही उसको अपने स्वास्थ्य में चमत्कारिक सुधार देखने को मिलेगा।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, जीवन साथी को मानसम्मान की प्राप्ति होगी परंतु आपका उनसे मतभेद हो सकता है।

मीन राशि-मीन लग्न
शत्रु पराजित होंगे। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति होगी परन्तु लंबी दूरी की यात्रा से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

नोट- जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा शुभ ग्रहों की चल रही हो और जन्मकुंडली में सूर्य भी अच्छी स्थिति में हुआ केवल उन्हीं जातकों को सूर्य के इस राशि परिवर्तन के शुभ फल प्राप्त होंगे और अशुभ फल भी घटित नहीं होंगे।

इसके विपरीत जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा उनकी जन्म कुंडली मे स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी और जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य भी अशुभ स्थिति में होंगे उनके लिए सूर्य का यह गोचर भी लाभकारी नहीं होगा।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 20 मई 2021

ज्योतिष का रहस्य : भाग - २


भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं वैदिक ज्योतिष के कुछ गूढ़ रहस्यों को प्रकट करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरा यह लेख ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को अनन्त काल तक दिशा प्रदान करता रहेगा। 

अपने इतने वर्षों के अध्ययन, शोध और Professional Career से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैंने यह पाया कि यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो, नीच राशि में हो और वह नीचभंगता को भी प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो वह ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर अशुभ फल ही देगा। 

यही नहीं, ऐसा ग्रह उस जातक के जन्म और चंद्र लग्न दोनों ही पर लगाए जाने वाले गोचर में यदि शुभ स्थिति में भी भ्रमण कर रहा होगा तब भी वह उस जातक को उतना शुभ फल देने में समर्थ नहीं हो सकेगा जितना किसी अन्य जातक को देगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में उस ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है।  

इसके विपरीत यदि कोई ग्रह किसी जातक की जन्मकुण्डली में शुभ स्थिति में है तो ऐसा ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर शुभ फल ही देगा। ऐसा ग्रह गोचर में यदि अशुभ स्थिति में भी भ्रमण करेगा तो भी वह ग्रह उस जातक को उतना अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होगा जितना किसी अन्य के लिए होगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में वह ग्रह शुभ स्थिति में है। 

साधारणतः ज्योतिषी इन बातों पर तो विचार कर लेते हैं कि ग्रहों का बलाबल कितना है ? नवांश कुण्डली में उनकी स्थिति कैसी है ? पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की किससे मित्रता-शत्रुता है ? ग्रह कारक-अकारक-मारक में से कौन सा है ? ग्रह को केन्द्राधिपति दोष तो नहीं है ? कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हो गया ? आदि-आदि ! 

किन्तु सूक्ष्म परीक्षण करते समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि वह ग्रह जिन राशियों के स्वामी हैं, उन राशियों में कौन -कौन से ग्रह स्थित हैं क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि यदि कोई ग्रह जिस भी राशि में होगा उस राशि के स्वामी ग्रह की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर वह ग्रह भी पीछे से अपना फल अवश्य देगा। 

उदाहरण के लिये मान लेते हैं किसी जातक की शुक्र की २० वर्ष की महादशा आरम्भ हुयी और और शुक्र की दोनों राशियों (वृष-तुला) पर राहु व शनि बैठे हैं और जन्मकुंडली में शुक्र अत्यन्त शुभ स्थिति में हैं, योगकारक भी हैं, तब भी ऐसे शुक्र की महादशा उस जातक को उतना शुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि इस पूरी शुक्र की महादशा में जब-जब शुक्र की अन्तर्दशा , प्रत्यन्तर्दशायें, सूक्ष्म दशायें और प्राणदशायें प्राप्त होंगी, तब-तब शुक्र की दोनों राशियों पर बैठे राहु- शनि भी पीछे से अपना अशुभ फल देते रहेंगे और इसे देखकर बड़े-बड़े ज्योतिषी भी अचंभित रह जायेंगे कि इतने अच्छे शुक्र की महादशा में भी जातक दुखी जीवन व्यतीत करने पर विवश है। 

यही नियम उन अशुभ ग्रहों की महादशाओं पर भी लगाया जायेगा, जिनकी राशियों पर कोई शुभ ग्रह स्थित है। तब ऐसे जातक को वह अशुभ ग्रह की महादशा भी उतना अशुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि उसकी राशियों पर स्थित शुभ ग्रह भी पीछे से अपना शुभ फल देंगे और यहाँ भी ज्योतिषी अचंभित रह जायेंगे कि इस जातक को इतने अशुभ ग्रह की दशा प्राप्त होने पर भी इसका समय इतना अच्छा कैसे व्यतीत हो रहा है। 

बात यहीं समाप्त हो जाती तो भी ठीक था परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र इतना विशाल समुद्र है कि जिसका पार पाना सबकी क्षमता की बात नहीं है, यह इसलिए क्योंकि अभी हमने नक्षत्रों की तो बात की ही नहीं। 

जब बात आती है कुण्डली के सूक्ष्म परीक्षण की तो हमें यह भी देखना होगा कि जातक की जन्मकुण्डली में सभी नवग्रह किन-किन नक्षत्रों पर स्थित हैं तथा जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही है, उस ग्रह के नक्षत्र पर कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं क्यूंकि पीछे से वह ग्रह भी उस दशा-अन्तर्दशा में अपना फल जातक को देता है जो दशापति के नक्षत्र पर स्थित होता है तथा दशापति ग्रह स्वयं उस ग्रह का भी प्रभाव लेकर कार्य करता है, जिसके नक्षत्र पर वह स्वयं स्थित होता है। 

अतः जब भी कोई जातक अपनी जन्मकुण्डली का परीक्षण करवाने हमारे पास आये तो हमें उसकी जन्मकुण्डली में इन सब बातों का ध्यान पूर्वक सूक्ष्म परीक्षण करके उसकी जन्मकुण्डली को दो भागों में विभक्त करना चाहिये। जिसमें प्रथम भाग में उसकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों को रखना चाहिये तथा द्वितीय भाग में अशुभ ग्रहों को। जिससे शुभ ग्रहों को ज्योतिषीय उपायों द्वारा और अधिक शक्ति प्रदान करके, उनके शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि की जा सके तथा अशुभ ग्रहों के दान, व्रत और उनकी विधिवत् शांति आदि करवाकर उनके अशुभ फल देने की क्षमता को न्यूनतम स्थिति में लाकर भविष्य में उस जातक के साथ घटित होने जा रही दुर्घटना-विपत्ति आदि की संभावनाओं को टाला जा सके। 

"शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 18 अप्रैल 2021

जीवन में नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव एवं उपाय

 भगवान शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं उस रहस्य को प्रकट करने जा रहा हूँ जिसके कारण करोड़ों मनुष्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं।


आपने अनेक बार देखा होगा कि जब भी कभी आप कोई शुभ कार्य करने का विचार मन में लायें और उसमें अनेक प्रकार के व्यवधान आयें तो हो सकता है कि कोई अदृश्य ऊर्जा आपको उसे क्रियान्वित करने से रोक रही है, तो ऐसी स्थिति में समझ लेना चाहिए कि आप किसी नकारात्मक ऊर्जा की चपेट में आ चुके हैं।


वह ऊर्जा आपके रुष्ट पूर्वजों के रूप में हो सकती है, ब्रह्मांड में विचरण करती हुई कोई अत्यन्त क्रोधी अतृप्त आत्मा हो सकती है अथवा आपके शत्रु द्वारा आपके ऊपर किये गए षट्कर्म (मारण, सम्मोहन,वशीकरण,विद्वेषण,स्तंभन और उच्चाटन) में से कोई एक अभिचारिक प्रयोग के फलस्वरुप उत्पन्न कोई ऐसी घोरतम ऊर्जा हो सकती है जो केवल आपके विनाश के लिए ही भेजी गई हो।


यदि ऐसा है तो आपकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों के योग भी अपनी दशा आने पर आपकी रक्षा कर सकने में समर्थ नहीं होते और व्यक्ति यह विचार करने पर विवश हो जाता है कि ज्योतिषी के द्वारा वर्णित किया गया मेरी जन्म-कुंडली का उत्तम फलादेश क्या केवल मिथ्या मात्र है ?

ऐसी स्थिति में सर्वप्रथम आवश्यक है उस ऊर्जा का परिज्ञान किया जाए जो जातकों के Subconscious Mind (अवचेतन मन) को अपने नियंत्रण में लेकर उसके जीवन का सर्वनाश कर रही है।

वर्तमान में यह शक्तियां इसलिये भी अत्यन्त प्रबल हो चुकी हैं क्यों कि मनुष्य मदिरा और मांसाहार का प्रयोग करके स्वयं तमोगुणी होकर अत्यंत घोर तमोगुणी ऊर्जा (Negative Energy) को अपनी ओर आकर्षित करके अपनी सकारात्मक ऊर्जा ( Positive Energy) को नष्ट कर रहे हैं। ऐसे मनुष्यों को दीर्घ काल तक यह ज्ञात ही नहीं हो पाता कि वो दैवीय ऊर्जा के नियंत्रण से बाहर निकलकर किसी और ही ऊर्जा के द्वारा कब और कैसे संचालित होने लगे।


ऐसे जातक जिनके जीवन या तो नष्ट हो चुके हैं अथवा नष्ट होने की स्थिति में है, जब मैंने उनकी जन्म-कुंडलियों का निरीक्षण किया तो यह पाया कि ऐसी नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित जातकों की उस समय राहु अथवा केतु की महादशा-अन्तर्दशा चल रही थीं क्योंकि राहु-केतु की दशा-अन्तर्दशा में मनुष्य बड़ी सरलता से इन नकारात्मक ऊर्जाओं की चपेट में आ जाता है।

यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब ऐसे व्यक्ति का सूर्य-चंद्रमा भी अशुभ स्थिति में हों क्योंकि सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा कारक तथा चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है, ऐसे में यदि यह दोनों ग्रह भी जन्म-कुंडली में पाप प्रभाव में अथवा अशुभ स्थिति में आ जाएं तो व्यक्ति अपनी आत्मा तथा मन पर नियंत्रण न होने से नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में घिरकर जीवन भर घोर दुःख उठाता रहता है ।

ऐसे में इस तमोगुणी ऊर्जा से अपने जीवन को नष्ट होने से बचाने के लिए मैं कुछ उपाय बताने जा रहा हूँ, जिससे मेरी यह देह भगवान शंकर के चरणों में विलीन होने के उपरांत भी इस ज्ञान का उपयोग करके मनुष्य अनन्त काल तक अपने जीवन को सुखमय बनाते रहें...

1- किसी योग्य ज्योतिषी से अपनी जन्मकुंडली का परीक्षण करवाकर उन ग्रहों के रत्न धारण करें जो ग्रह आपकी कुंडली में शुभ हों तथा उन ग्रहों की विधिवत शांति करवा लें जो आपकी कुंडली में अशुभ स्थिति में हों।


2- अपनी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों के रंगों का प्रयोग न करें, न ही उनकी दिशाओं में निवास करें । यदि शनि-राहु की स्थिति जन्मकुंडली में शुभ भी हो तो भी काले-नीले रंगों का प्रयोग न करें।

3- भवन निर्माण के समय भूमि तथा उसके वास्तु का ध्यान रखें। अनेक वास्तु दोषों से युक्त भवन को अति शीघ्र ही त्याग दें।

4- घर में पुरानी लकड़ी, अधिक लोहा न रखें तथा धूल और दूषित जल एकत्र न होने दें।

5- मांस-मदिरा का सेवन न करें।

6- घर में सीलन न आने दें तथा घर की नालियों में बहने वाले जल प्रवाह को जाम न होने दें।

7- ऐसी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं जो आपके उपयोग में नहीं आ रहीं उन्हें तत्काल घर से बाहर कर दें, उनसे निकलने वाला विकिरण न केवल नकारात्मक ऊर्जा को आप तक लाता है, आपके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।

8- घोर मानसिक अशांति उत्पन्न करने वाले टीवी प्रोग्राम ( उदाहरणार्थ-बिगबॉस एवं अश्लील भौंडे नाच गाने वाले) जिसको देख कर आपके मस्तिष्क में नकारात्मक रसायन प्रवाहमान होते हों , उन्हें तिलांजलि दे दें।

9- संभव हो तो देशी गाय के गोबर से घर के फर्श को लीपें और यदि पक्के फर्श हों तो उन पर नित्य सेंधा नमक मिश्रित जल से पोंछा लगाएं।

10- घर में पवित्र मंत्रों, शंख व घण्टों की ध्वनि होते रहने की व्यवस्था करें।

11- गुग्गल, संब्रानी, कपूर आदि का धुआँ दें तथा देव मूर्तियों की आरती करके उस आरती को स्वयं लेकर अपना आभामंडल (Aura) ठीक करें ।


12- घर में तुलसी एवं अशोक जैसे वृक्ष लगाएं ।

13- वर्ष भर में आने वाले सिद्ध मुहूर्तों का समय उच्च कोटि की साधना में दें ।

14- रात्रि के समय खुले आकाश के नीचे शयन न करें और न ही मीठा दूध आदि पीकर खुले अन्तरिक्ष के नीचे जाएं क्योंकि आप नहीं जानते वहां उस समय कौन सी शक्तियां विचरण कर रही हों।

15- चौराहों से निकलने के समय ध्यान दें किसी ऐसी वस्तु पर पैर न पड़ जाएं जो श्रापित हो अथवा किसी के द्वारा अपना उतारा करके रखी गयी हो।

15- एक क्षण भी अपवित्र न रहें, प्रतिदिन स्नान करें, सम्भव हो तो जल में पवित्र औषधियां मिला लें।

16- बाहर से आने वाले जूते-चप्पल घर से बाहर ही रखें, घर में प्रवेश करने से पूर्व पैरों को जल से धो लें।

17- दिन ढलने के उपरान्त देशी गाय के घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाएं जो रात्रि भर जलता रहे।

18- दूसरों की सुख समृद्धि से द्वेष तथा लोभी आचरण करके अपनी Aura में अपने लिए नकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रवेश स्थान न दें क्योंकि दूसरों से द्वेष रखने वाले तथा लोभी मनुष्य के सभी जप, तप, पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं।

19- योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में स्फटिक, रुद्राक्ष और Black Tourmaline का उपयोग करें।

20- अपने उन सभी पूर्वजों को प्रतिदिन प्रणाम करें जो अपने अन्त काल तक ज्ञान वृद्ध रहे हों।


21- भगवान शंकर और देवी महामाया महाकाली की उच्च कोटि के मंत्रों से आराधना करें, क्योंकि समस्त तमोगुणी शक्तियां और यह चराचर जगत उन्हीं के तो अधीन हैं ।

''शिवार्पणमस्तु''

-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति

 


अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपने सभी ज्योतिषी बंधुओं का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा-

आप सभी जानते हैं कि जब-जब गोचर में चंद्र-केतु, चंद्र-राहु, चंद्र-शनि का योग बनता है अथवा अमावस्या (क्षीण चंद्र) के आसपास का समय होता है, तब-तब जातकों को घोर मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यदि जातकों की दशा-अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की चल रही होती है अथवा वह शनि की अशुभ ढैया-साढ़े साती के प्रभाव में होते हैं तो उनके मन में आत्महत्या करने तक के विचार आने लगते हैं।

अब से डेढ़ वर्ष पूर्व जब राहु, चंद्रमा की राशि कर्क में स्थित थे तब हम सभी ने देखा कि कर्क राशि में राहु के संचार के उन 18 महीनों में गोचर में जब-जब चंद्र-राहु का योग बना तब-तब विश्व भर में कितनी आत्महत्या हुईं।

आज वही समस्या फिर हमारे समक्ष उत्पन्न होने जा रही है जब 23 सितम्बर को राहु-केतु राशि परिवर्तन कर लेंगे। राहु वृष तथा केतु चंद्रमा की नीच राशि वृश्चिक में प्रवेश हो जाएंगे। ऐसे में, गोचर में चंद्रमा 12 अप्रैल 2022 तक, जब-जब अपनी नीच राशि वृश्चिक में प्रवेश करेगा वहां वह पहले से ही स्थित केतु के पाप प्रभाव की चपेट में भी आ जायेगा।

जरा विचार करिये ऐसे में उन सवा दो दिनों में जातक के मन की स्थिति क्या होगी ? ऐसे में जिन जातकों की जन्म-कुण्डली में पहले से ही चंद्रमा नीच राशि में अथवा पाप ग्रहों के प्रभाव में हुआ और उनकी दशा-अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की चल रही हुई तो क्या वह जातक उन सवा दो दिनों में आत्म-हत्या का प्रयास नहीं करेंगे ?

अतः आगामी डेढ़ वर्ष सभी ज्योतिषियों को यह ध्यान रखना होगा कि ऐसे जातकों को वह किस प्रकार से डिप्रेशन की स्थिति से बाहर निकाल सकते हैं और उनका जीवन बचा सकते हैं ।

यहां मैं सभी पाठकों को और विशेषकर मानसिक रोगियों के लिये आत्म-हत्या की इच्छा से बचने के लिए कुछ उपायों को बताने जा रहा हूँ, ज्ञानीजन कृपया गहनता से संदेश को समझें...

1- जन्म-कुंडली में मन का कारक चंद्रमा यदि शुभ स्थानों का स्वामी हो अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो उत्तम प्रकार का 'सच्चा मोती' और चांदी धारण कर लें तथा जिन पाप ग्रहों ने चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं चद्रमा को पीड़ित किया हुआ हो उनकी शांति करवा लें।

2- किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास जाकर अपनी चिकित्सा करवा लें तथा उनके द्वारा दी गयी औषधियों का सेवन करें।

3- किसी आध्यात्मिक धर्म गुरु की शरण में चले जायें और उनके सानिध्य में योग-ध्यान करें।


4- कभी भी अकेले न रहें, हमेशा मित्रों, बन्धु-बांधवों के साथ भीड़ में रहें और स्वयं को व्यस्त रखने के लिए हमेशा कुछ न कुछ करते रहें।

5- नशीली वस्तुओं के प्रयोग से स्वयं को दूर रखें। 

6- भगवान शंकर के मंत्रों के जाप से अपने 'सोम चक्र' को जाग्रत कर लें, जिसमें अमृत छुपा हुआ है।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 19 सितंबर 2020

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2020



२३ सितम्बर २०२० को राहु व केतु क्रमशः मिथुन व धनु राशि से निकलकर वृष व वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। जहाँ वह १२ अप्रैल २०२२ तक रहेंगे। वैदिक ज्योतिष में राहु-केतु को पापी ग्रह माना गया है जिसमे विशेषकर राहु साक्षात् काल का स्वरुप माना जाता है। 

राहु व केतु एक राशि में लगभग १८ माह तक रहते हैं तथा जिस राशि में रहते हैं एवं जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। अतः राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है और इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता।  

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि व लग्नों वाले जातकों के जीवन में क्या प्रभाव पड़ेगा -

राहु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव

मेष राशि- मेष लग्न 

मेष राशि- मेष लग्न वाले जातकों को इस अवधि काल में दाहिने नेत्र, मुख एवं दांतों में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।  कुटुंब में क्लेश व तनाव की स्थिति बनेंगी परन्तु अचानक से धन प्राप्ति होने के योग भी बनेंगे। 

वृष राशि- वृष लग्न 

इन जातकों के सिर पर राहु आ जाने के कारण मानसिक तनाव तथा सिर में चोट लगने की संभावना बढ़ जाएगी। राहु की नवम दृष्टि पिता के सुख से वंचित कर सकती है अतः पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

 मिथुन राशि- मिथुन लग्न 

राहु के बारहवें भाव में गोचर करने के कारण बाएं नेत्र में कष्ट, अनावश्यक धन हानि तथा पुलिस केस मुकदमों एवं चिकित्सा आदि पर धन- व्यय होने के योग बनेंगे। 

कर्क राशि- कर्क लग्न 

राहु के एकादश भाव में गोचर करने के कारण बड़े भाई-बहिनों, छोटी बुआ व चाचा को कष्ट, स्वयं की पिंडलियों में दर्द व चोट लगने के योग बनेंगे किन्तु आकस्मिक धन-लाभ की भी स्थिति रहेगी। 

सिंह राशि-सिंह लग्न 

यदि किसी की जन्म-कुंडली में दशम भाव एवं दशमेश की स्थिति अच्छी बनी हुई है तो राहु का दशम भाव में गोचर उसे सरकार से उच्च पद की प्राप्ति कराएगा किन्तु घुटनों में चोट-दुर्घटना की सम्भावना भी बनी रहेगी। 

कन्या राशि- कन्या लग्न 

राहु के नवम भाव में गोचर करने के कारण इस अवधि काल में इन जातकों के पिता कष्ट का अनुभव करेंगे तथा ये स्वयं कमर व पीठ की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं एवं धर्म में अरुचि हो जायगी। ऐसे व्यक्ति देश के अंदर लम्बी यात्राओं से बचें, अचानक भाग्योदय का योग बनेगा।

तुला राशि- तुला लग्न 

राहु के अष्टम में गोचर करने के कारण इस राशि- लग्न के जातक मानसिक तनाव व डिप्रेशन का अनुभव करेंगे। ससुराल पक्ष में कष्ट रहेगा तथा जीवनसाथी के दांतों में कोई रोग प्रकट होने की सम्भावना होगी। ऐसे जातक इस अवधि काल में समुद्र की यात्राओं से बचें। 

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न 

राहु के सप्तम भाव में गोचर करने के कारण इन जातकों के वैवाहिक जीवन में कष्ट आएंगे।  जीवनसाथी के स्वास्थ्य में गिरावट अथवा किसी पार्टनर से धोखा एवं उसकी हानि हो सकती है अतः पार्टनरशिप में सावधानी रखें। 

धनु राशि- धनु लग्न 

राहु के छठें भाव में गोचर करने के कारण चोट-दुर्घटना एवं पुलिस केस मुकदमेबाज़ी का भय रहेगा। इस राशि-लग्न के जिन जातकों को पहले से ही किडनी, लिवर,आंतें, पैंक्रियास आदि की समस्याएं हैं, वह बढ़ जाएँगी परन्तु शत्रुओं का नाश होगा। 

मकर राशि- मकर लग्न 

इस राशि-लग्न वाले जातकों के राहु उनके पंचम भाव में गोचर करेंगे। ऐसे में विद्यार्थियों को पढाई में कष्ट तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे। इस लग्न व राशि के जातकों के पेट की समस्याएं बढ़ेंगी तथा संतान कष्ट होगा एवं गर्भवती महिलाओं को संतान-हानि के योग बनेंगे किन्तु शेयर बाज़ार से अचानक धन प्राप्त हो सकता है। 

कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न 

इस राशि व लग्न के जातक नया वाहन लेने तथा भूमि के क्रय-विक्रय से बचें, यदि उनकी जन्म-कुंडली में चतुर्थ भाव व चतुर्थेश की स्थिति भी अशुभ हुई एवं दशा-अंतरदशा भी अशुभ ग्रहों की चल रहीं हो तो ऐसे में वाहन दुर्घटना के योग बन जायेंगे। 

मीन राशि- मीन लग्न  

इस राशि- लग्न के जातकों को अपने छोटे भाई-बहिनों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।  जन्म-कुंडली में तृतीय भाव व तृतीयेश की स्थिति भी अशुभ हुई तो इस लग्न-राशि के जातकों को इस अवधि काल में विदेश यात्रा से बचना चाहिए। 

केतु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव

मेष राशि- मेष लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों को मानसिक तनाव, मानसिक पीड़ा, ससुराल में कष्ट एवं जीवनसाथी के एक आँख तथा दांतों में कष्ट के योग बनेंगे। समुद्र की यात्राओं से बचें। 

वृष राशि- वृष लग्न 

जीवनसाथी को कष्ट व वैवाहिक जीवन में अलगाव व तनाव की स्थिति बनेगी, किसी पार्टनर की दुर्घटना का समाचार प्राप्त हो सकता है। 

मिथुन राशि- मिथुन लग्न 

चोट- दुर्घटना से बचाव करें, व्यर्थ के विवाद में पड़ने से बचें अन्यथा कोर्ट केस होने की सम्भावना रहेगी। 

कर्क राशि- कर्क लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के पेट में एसिड एवं गैस की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।  जिनकी जन्म कुंडली में पहले से ही पंचम भाव तथा पंचमेश अशुभ प्रभाव में हैं, उनके पेट के ऑपरेशन के योग बनेंगे तथा गर्भवती महिलाओं को गर्भ हानि का भय रहेगा। 

सिंह राशि- सिंह लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों की माता को कष्ट एवं स्वयं के सुख में कमी रहेगी, अपने निजी वाहन के द्वारा लम्बी यात्रा करने से बचें। 

कन्या राशि- कन्या लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के छोटे भाई-बहिनों को कष्ट, स्वयं के गले तथा कान में समस्याओं के योग बनेंगे। मित्रों से अलगाव की स्थिति प्राप्त होगी। 

तुला राशि- तुला लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के कुटुंब में क्लेश व तनाव, स्वयं के दाहिने नेत्र एवं दांतों में पीड़ा की सम्भावना रहेगी तथा मुख पर फोड़े- फुंसी आदि होने की सम्भावना रहेगी। 

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न 

सिर में चोट- दुर्घटना का भय बना रहेगा, अनावश्यक क्रोध करने की स्थिति से बचें। नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण आप अपना तथा अपने परिवार का जीवन संकट में डाल सकते हैं, अतः नशीली वस्तुओं के सेवन से बचें। 

धनु राशि- धनु लग्न 

बाएं नेत्र में कष्ट की सम्भावना रहेगी, व्यर्थ के खर्चे बढ़ाने की प्रवृति से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 

मकर राशि- मकर लग्न 

इस राशि व इस लग्न के जातकों के बड़े भाई- बहिनों को लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचना चाहिए। 

कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न 

इस राशि व इस लग्न के वह जातक जो सरकारी नौकरियों में हैं, उनके लिए यह समय कष्टकारी होगा, ऐसे लोग अपने उच्च अधिकारियों से विवाद की स्थिति उत्पन्न करने से बचें तथा जिन लोगों के सरकारी कार्य अब तक सफलता पूर्वक चल रहे थे, अब उनमे रुकावटें आना आरम्भ होंगी। 

मीन राशि- मीन लग्न  

मीन राशि व मीन लग्न के जातकों के पिता निजी वाहनों के द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचें तथा इस राशि व इस लग्न के जातक स्वयं भारी सामान आदि को उठाने की प्रवृति से बचें, अन्यथा उनकी कमर व पीठ में समस्या आने का योग बनेगा। 


इन सभी राशि व लग्नों वाले जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु यदि शुभ प्रभाव में हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी शुभ चल रही हों तो उन जातकों को राहु-केतु का परिवर्तन अशुभ फल न देकर शुभ फल ही प्रदान करेगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अशुभ प्रभाव में हुए एवं दशा-अन्तर्दशा भी अशुभ चल रही होगी, उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यंत विनाशकारी होगा। 

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava




मंगलवार, 25 अगस्त 2020

जीवांश-परमात्मांश रहस्य


 भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुए तथा पराशर ऋषि को प्रणाम करते हुए मैं उन्ही के शब्दों में जीवांश एवं परमात्मांश तत्व का रहस्य प्रकट करने जा रहा हूँ।


मैत्रेय उवाच
रामकृष्णादयो ये ये ह्यवतारा रमापतेः ।
तेSपि जीवांशसंयुक्ताः किं वा ब्रूहि मुनीश्वर !।।
मैत्रेय जी ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! राम, कृष्ण आदि जो परमात्मा के अवतार हैं, क्या वे भी जीवांश से युक्त हैं ?


पराशर उवाच
रामः कृष्णश्च भो विप्र ! नृसिंहः सूकरस्तथा ।
एते पूर्णावताराश्च ह्यन्ये जीवांशकान्विताः ।।
महर्षि पराशर जी ने कहा- हे विप्र ! राम, कृष्ण, नृसिंह तथा वराह-- ये चार पूर्ण अवतार हैं और इससे भिन्न जो अवतार हैं, वे सभी जीवांश से युक्त होते हैं ।


अवताराण्यनेकानि ह्यजस्य परमात्मनः ।
जीवानां कर्मफलदो ग्रहरूपी जनार्दनः ।।
दैत्यानां बलनाशाय देवानां बलवृद्धये ।
धर्मसंस्थापनार्थाय ग्रहाज्जाताः शुभाः क्रमात् ।।
अजन्मा परमेश्वर के अनेक अवतार हैं और उनमें से जीवों के लिए स्वकर्मानुसार फलदायक के रूप में ग्रहस्वरूप जनार्दननामक अवतार है । दैत्यों के बल- नाशार्थ, देवों के बल- वृद्धयर्थ और धर्म स्थापन के लिए उक्त सूर्यादि ग्रहों से ही शुभप्रद अवतार हुए हैं।


यथा--
रामोSवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः ।
नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च ।।
वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च ।
कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः ।।
केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेSपि खेटजाः।
परात्मांशोSधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधाः ।
जैसे -- सूर्य से श्रीराम का, चंद्रमा से श्रीकृष्ण का, मंगल से श्रीनृसिंह का, बुध से बुद्ध का, गुरु से वामन का, शुक्र से भार्गव परशुराम जी का, शनि से कूर्म का, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुआ है । इसके अतिरिक्त जितने भी अवतार हैं वे भी ग्रहों से ही अवतीर्ण हुए हैं । उनमें से जिसमे परमात्मांश अधिक है, वे खेचर अर्थात् देवता कहलाते हैं ।


जीवांशो ह्यधिको येषु जीवास्ते वै प्रकीर्तिताः ।
सूर्यादिभ्यो ग्रहेभ्यश्च परमात्मांशनिः सृताः ।।
रामकृष्णादयः सर्वे ह्यवतारा भवन्ति वै ।
तत्रैव ते विलीयन्ते पुनः कार्योत्तरे सदा ।।
जीवांशनिः सृतास्तेषां तेभ्यो जाता नरादयः ।
तेSपि तत्रैव लीयन्ते तेSव्यक्ते समयन्ति हि ।।
इदं ते कथितं विप्र ! सर्वं यस्मिन् भवेदिति ।
भूतान्यपि भविष्यन्ति तत्तज्जानन्ति तद्विदः ।।
विना तज्जयौतिषं नान्यो ज्ञातुं शक्नोति कर्हिचित् ।
तस्मादवश्यमध्येयं ब्रह्माणैश्च विशेषतः ।।
यो नरः शास्त्रमज्ञात्वा ज्यौतिषं खलु निन्दति ।
रौरवं नरकं भुक्त्वा चान्धत्वं चान्यजन्मनि ।।
जिनमें अधिक जीवांश है, वे जीव कहलाते हैं । सूर्यादि ग्रहों से अधिक परमात्मांश निकलकर राम, कृष्ण आदि अवतार होते हैं । फिर वे अपने-अपने कार्य को सुसम्पन्न करके सूर्यादि ग्रहों में ही लीन हो जाते हैं । साथ ही सूर्यादि ग्रहों से ही जीवांश निकलकर मनुष्यादि जीवों में प्रवेश करता है, जो जीवांश कहलाता है । वे भी अपने शुभाशुभ कर्मों को भोग कर अन्त में उन्हीं ग्रहों में लीन हो जाते हैं । प्रलयकाल के समय में वे सूर्यादि ग्रह भी अव्यक्त परमात्मा में ही लीन हो जाते हैं । इस प्रकार सृष्टि और प्रलय जिन-जिन समयों में होता है अथवा होने वाला होता है , उन सबको वे ही अच्छी प्रकार जान सकते हैं । यह समस्त ज्ञान ज्योतिषशास्त्र के बिना कोई जान नहीं सकता । इसलिये सभी को विशेषकर विप्रों को ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए ।
जो मानव ज्योतिषशास्त्र को अच्छी प्रकार न समझकर उसकी निंदा करता है, वह रौरव नामक नरक में वास करके अन्धा होकर जन्म ग्रहण करता है।।

"शिवार्पणमस्तु "

-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

आयुर्दाय



ज्योतिष शास्त्र के महान ऋषि 'पराशर जी' अपने दिव्य ग्रन्थ 'बृहत्पाराशर होरा शास्त्र' में ऋषि मैत्रेय जी को संबोधित करते हुए कहते हैं-

अथाS न्यदपि वक्ष्यामि द्विज ! मारकलक्षणम् ।
त्रिविधाश्चायुषो योगाः स्वलपायुर्ममध्यमोत्तमाः ।।

द्वात्रिंशत् पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततः परम् ।
चतुष्षष्टयाः पुरस्तात्तु  ततो दीर्घमुदाहृतम् ।।

उत्तमायुः शतादूर्ध्वं ज्ञातव्यं द्विजसत्तम ! ।
जनैर्विंशतिवर्षान्तमायुर्ज्ञातुं न शक्यते ।।

जप - होम - चिकित्साधैर्बालरक्षां हि कारयेत् ।
म्रियन्ते पितृदोषैश्च केचिन्मातृग्रहैरपि ।।

केचित् स्वारिष्टयोगाच्च त्रिविधा बालमृत्यवः ।
ततः परं नृणामायुर्गणयेद् द्विजसत्तम ! ।।


हे द्विज ! और भी मारक ग्रह के लक्षण कहता हूँ ।
पूर्व में जो अल्पायु, मध्यमायु और पूर्णायु - यह तीन प्रकार का आयुर्दाय बताया गया है, उसमें ३२ वर्ष से पूर्व अल्पायु, तदन्तर ६४ वर्ष पर्यन्त मध्यमायु और उसके बाद १०० वर्ष तक दीर्घायु तथा १०० वर्ष से ऊपर उत्तमायु जानना चाहिये ।

२० वर्ष तक जातकों के आयुर्दाय का निर्धारण करना कठिन होता है । अतः जन्म से २० वर्ष तक पापग्रहों से रक्षा हेतु जप-होम-चिकित्सादि द्वारा जातक की रक्षा करनी चाहिये ।

२० वर्ष तक कोई पिता के दोष से, कोई माता के दोष से, कोई अपने पूर्वार्जित कुकर्म से उत्पन्न अरिष्ट योगों से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । अतः बाल्यावस्था में मरण के तीन कारण होते हैं । इसलिये २० वर्ष के बाद ही आयुर्दाय का गणित करके आयु का निर्धारण करना चाहिये ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 5 अगस्त 2020

महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र


सनातन धर्म में एक महान् धार्मिक ग्रन्थ श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है  जिसका नाम है 'महाभारत'। इस दिव्य ग्रन्थ के रचयिता हैं ज्योतिष शास्त्र के महान ज्ञाता 'ऋषि पाराशर' के पुत्र 'महर्षि वेदव्यास'।

महर्षि वेदव्यास जी भगवान विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। उनका जन्म द्वीप में हुआ था, अत: उनका नाम द्वैपायन पड़ा। उनका शरीर श्याम वर्ण का था, इसलिए वह कृष्ण द्वैपायन भी कहलाये । वेदों के विभाग करने के कारण उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा। बद्रीवन में निवास करने के कारण बादरायण भी कहलाये । वे महामुनि 'पराशर' के पुत्र थे और उनकी माता का नाम 'सत्यवती' था।

वेदव्यास जी ने ब्रह्मसूत्र की रचना के साथ-साथ 18 पुराण तथा उपपुराणों की रचना भी की है । परन्तु मैं यहां उनके द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र का वर्णन करने जा रहा हूँ, जिसके विधिवत् पाठ करने से निकलने वाली ध्वनि तरंगों की ऊर्जा से सभी ग्रहों से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।


|| नवग्रह स्तोत्र ||

श्री गणेशाय नमः
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् |
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् || १ ||

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् |
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् || २ ||

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् |
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् || ३ ||

प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् |
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् || ४ ||

देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् |
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् || ५ ||

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् |
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् || ६ ||

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् || ७ ||

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् |
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् || ८ ||

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् |
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् || ९ ||

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः |
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति || १० ||

नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् |
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् || ११ ||

ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः |
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः || १२ ||

|| इति श्री वेद व्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ||


जो जपापुष्प के समान अरुणिम आभावाले , महान् तेज से सम्पन्न , अन्धकार के विनाशक , सभी पापों को दूर करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं , उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो दधि , शंख तथा हिम के समान आभा वाले , क्षीर समुद्र से प्रादुर्भूत , भगवान् शंकर के शिरोभूषण तथा अमृतस्वरूप हैं , उन चन्द्रमा को मैं नमस्कार करता हूँ।

जो पृथ्वी देवी से उद्भूत, विद्युत् की कान्तिके समान प्रभा वाले, कुमारावस्था वाले तथा हाथ में शक्ति लिये हुए हैं , उन मंगल को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो प्रियंगु लता की कली के समान गहरे हरित वर्ण वाले, अतुलनीय सौन्दर्य वाले तथा सौम्यगुण से सम्पन्न हैं , उन चन्द्रमा के पुत्र बुध को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं , स्वर्णिम आभा वाले हैं, ज्ञानसे सम्पन्न हैं तथा तीनों लोकों के स्वामी हैं, उन बृहस्पति को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो हिम, कुन्दपुष्प तथा कमलनाल के तन्तु के समान श्वेत आभा वाले, दैत्यों के परम गुरु, सभी शास्त्रों के उपदेष्टा तथा महर्षि भृगु के पुत्र हैं, उन शुक्र को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो नीले कज्जलके समान आभा वाले , सूर्य के पुत्र , यमराज के ज्येष्ठ भ्राता तथा सूर्य पत्नी छाया तथा मार्तण्ड ( सूर्य ) – से उत्पन्न हैं , उन शनैश्चर को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो आधे शरीरवाले हैं , महान् पराक्रम से सम्पन्न हैं , सूर्य तथा चन्द्र को ग्रसने वाले हैं तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं , उन राहु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

पलाशपुष्पके समान जिनकी आभा हैं , जो रुद्रस्वभाव वाले और रुद्र के पुत्र हैं , भयंकर हैं , तारकादि ग्रहों में प्रधान हैं , उन केतु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

भगवान् वेदव्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति का जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित्त होकर पाठ करता है , उसके समस्त विघ्न शान्त हो जाते हैं ।

स्त्री – पुरुष और राजाओंके दुःस्वप्नोंका नाश हो जाता है । पाठ करने वालों को अतुलनीय ऐश्वर्य और आरोग्य प्राप्त होता है तथा उनके पुष्टि की वृद्धि होती है ।

किसी भी ग्रह, नक्षत्र, चोर तथा अग्नि से जनित पीड़ायें शान्त हो जाती हैं. इस प्रकार स्वयं व्यास जी कहते हैं, इसलिए इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये।

इस प्रकार महर्षि व्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 26 जून 2020

बृहस्पति का स्वराशि में प्रवेश


30 जून 2020 को बृहस्पति वक्री गति से भ्रमण करते हुए नीच राशि से निकलकर अपनी स्वराशि में प्रवेश करेंगे और वहां 20 नवम्बर 2020 तक रहेंगे।जिसके परिणाम स्वरूप ज्ञान, आध्यात्म और बैंक से संबंधित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिये शुभ समय का आरंभ होगा। विद्यार्थियों के लिए भी आने वाले 5 माह का समय शुभ होगा।

आइए जानते हैं बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ेगा।

मेष राशि- मेष लग्न
मेष राशि-मेष लग्न वाले जातकों के भाग्य में अब तक जो रुकावटें आ रही थीं वह दूर होंगी तथा धर्म में रुचि बढ़ेगी, एवं देश में ही यात्राओं के योग बनेंगे।

वृष राशि-वृष लग्न
वृष राशि-वृष लग्न वाले जिन जातकों के पिता के स्वास्थ्य में समस्याएं चल रही थीं वह ठीक होंगी, ससुराल पक्ष से संबंधों में सुधार होगा तथा जीवन साथी को धन की प्राप्ति के योग बनेंगे।

'मिथुन राशि- मिथुन लग्न'
मिथुन राशि-मिथुन लग्न वाली जिन कन्याओं का विवाह संबंध टूट गया है, वह संबध पुनः वापस आयेगा। स्त्रियों की जन्म कुंडली मे बृहस्पति पति का कारक होता है, ऐसे में उसके स्वराशि में प्रवेश कर लेने से स्त्रियों के वैवाहिक संबंधों में अप्रत्याशित सुधार देखने को मिलेंगे। सभी जातकों को इस पांच महीने पार्टनरशिप तथा सरकारी नौकरी से लाभ मिलेगा।

कर्क राशि-कर्क लग्न
कर्क राशि-कर्क लग्न वाले जातकों के जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, शत्रु पक्ष शांत होंगे तथा कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के योग बढ जाएंगे।

सिंह राशि-सिंह लग्न
सिंह राशि-सिंह लग्न के जो छात्र प्रतियोगी प्ररीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, यदि उनकी जन्म कुंडली में भी बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित हुए तो वह आगामी पांच माह तक अपने सभी परीक्षा परिणामों में सफलता प्राप्त करेंगे।

कन्या राशि-कन्या लग्न
कन्या राशि-कन्या लग्न वाले जिन जातकों के भूमि-भवन से संबंधित कार्य रुके हुए थे अब वह पूर्ण होंगे तथा जिनकी माता को शारिरिक कष्ट चल रहे थे उनकी माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
नये वाहन का सुख प्राप्त होगा तथा सेवकों से संबंध मधुर होंगे।

तुला राशि-तुला लग्न
तुला राशि-तुला लग्न वाले जिन एक्सपोर्टरों का विदेश में धन रुका हुआ था अब वह आना आरम्भ हो जायेगा, तथा मित्रों एवं छोटे भाई-बहनों से संबंध मधुर होंगे।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न वाले जातकों के लिये गुरु का स्वराशि में प्रवेश अत्यंत शुभ फल दायक है। क्यों कि गुरु इनकी कुण्डली में धनेश होकर धन भाव में गोचर करने के कारण एक तो वैसे ही धन देंगे तथा  धन के कारक होने से इस पांच माह में अत्यधिक धन वर्षा करेंगे एवं संतान प्राप्ति भी करवाएंगे।

धनु राशि-धनु लग्न
धनु राशि-धनु लग्न वाले जातकों को गुरु लग्न में ही आ जाने के कारण से उत्तम स्वास्थ्य, मान-सम्मान, माता, भूमि, वाहन आदि का सुख देंगे।

मकर राशि-मकर लग्न
मकर राशि-मकर लग्न वाले जातकों का चिकित्सा के ऊपर खर्चा बन्द करवाकर देव गुरु बृहस्पति अब धार्मिक अनुष्ठानों एवं शुभ कार्यों में धन खर्च करवाएंगे, तथा कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के योग बढ़ जायेंगे।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न वाले जातकों को देव गुरु बृहस्पति अत्यधिक धन लाभ देंगे तथा इनके चाचा, छोटी बुआ एवं बड़े भाई-बहनों को मान-सम्मान और स्वास्थ्य का लाभ होगा।

मीन राशि- मीन लग्न
मीन राशि-मीन लग्न वाले जातकों को स्वास्थ्य, मान-सम्मान प्राप्त होगा तथा रुके हुये सरकारी कार्य पूर्ण होंगे, तथा इस राशि-लग्न वाले सरकारी अधिकारी व राजनेता अब तक जिन कठिनाइयों का सामना कर रहे थे वह उनसे मुक्त होंगे।

यदि इनमें से किसी की जन्म कुंडली में बृहस्पति अशुभ स्थिति अथवा अत्यधिक प्राप प्रभाव में हैं और उनकी दशा अंतर्दशा भी अशुभ चल रही है तो उन्हें इन सब उत्तम फलों की प्राप्ति नहीं होगी अथवा कम होगी।

परंतु जिन लोगों की जन्म कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थानों के स्वामी होकर शुभ स्थिति, शुभ प्रभाव में हैं और उन्होंने  उसका रत्न आदि धारण करके उसे शक्ति प्रदान की हुई है, उनके लिये यह समय अत्यंत शुभ फलप्रद होगा।

'शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 16 मई 2020

अग्नि पुराण में वर्णित शुभाशुभ स्वप्न



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं अग्नि पुराण में वर्णित शुभाशुभ स्वप्नों का वर्णन करने जा रहा हूँ।

अग्नि पुराण के दो सौ उनतीसवें अध्याय में पुष्कर जी, भगवान् परशुराम जी से कहते हैं-

हे भार्गव परशुराम जी !
नाभि के सिवा शरीर के अंगों में तृण और वृक्षों का उगना, कांस के बर्तनों का मस्तक पर रखकर फोड़ा जाना, माथा मुड़ना, नग्न होना, मैले कपड़े पहनना, तेल लगना, तेल में नहाना, कीचड़ लपेटना, ऊंचाई से गिरना, विवाह होना, गीत सुनना, वीणा आदि के बाजे सुनकर मन बहलाना, हिंडोले पर चढ़ना, पद्म और लोहों का उपार्जन, सर्पों को मारना, लाल फूल से भरे वृक्षों तथा चाण्डाल को देखना, सूअर, कुत्ते, गधे और ऊंटों पर चढ़ना, चिड़ियों के मांस का भक्षण करना, तेल पीना, खिचड़ी खाना, माता के गर्भ में प्रवेश करना, चिता पर चढ़ना, इंद्र के उपलक्ष्य में खड़ी की हुई ध्वजा पर टूट पड़ना, सूर्य और चंद्रमा का गिरना, दिव्य, अंतरिक्ष और भू लोक में होने वाले उत्पातों का दिखाई देना, देवता, ब्राह्मण, राजा और गुरुओं का कुपित होते हुए दिखाई देना, नाचना, हंसना,गीत गाना,वीणा के सिवाय अन्य प्रकार के बाजों का स्वयं बजना, नदी में डूबकर नीचे जाना, गोबर , कीचड़ तथा स्याही मिलाये हुए जल से स्नान करना, कुमारी कन्याओं का आलिंगन, पुरुषों का एक दूसरे के साथ मैथुन, दक्षिण दिशा की ओर जाना, अपने अंगों की हानि, वमन और विरेचन करना, रोग से पीड़ित होना, फलों को हानि, धातुओं का भेदन करना, घरों का गिरना, घरों में झाड़ू देना, पिशाचों, राक्षसों, वानरों तथा चण्डालों आदि के साथ खेलना, शत्रु से अपमानित होना, शत्रु की ओर से संकट प्राप्त होना, गेरुआ वस्त्र धारण करना तथा गेरुए वस्त्रों से खेलना, लाल फूलों की माला पहनना ये सब बुरे स्वप्न हैं। इन्हें दूसरों पर प्रकट न करना अच्छा है ऐसे स्वप्न देखकर पुनः सो जाना चाहिये।

आगे पुष्कर जी कहते हैं-
हे भार्गव परशुराम जी !

यदि पृथ्वी पर या आकाश में श्वेत पुष्पों से भरे हुये वृक्षों का दर्शन हो, अपनी नाभि से वृक्ष अथवा तिनका उत्पन्न हो, अपनी अधिक भुजायें और अधिक मस्तक दिखाई दें, सिर के बाल पके हुये दिखायी दें तो उसका फल उत्तम होता है।

श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत वस्त्र धारण करना, चंद्रमा , सूर्य और तारों को पकड़ना, परिमार्जन करना, इंद्र की ध्वजा का आलिंगन करना, ध्वजा को ऊंचे उठाना, पृथ्वी पर पड़ती जल धाराओं को अपने ऊपर रोकना, शत्रुओं की बुरी दशा देखना, वाद-विवाद, जुआ तथा संग्राम में अपनी विजय देखना, खीर खाना, रक्त से स्नान करना, रक्त का देखना, सुरा, मद्य अथवा दूध पीना, अस्त्रों से घायल होकर छटपटाना, आकाश का स्वच्छ होना तथा गाय, भैंस, सिंहनी, हथिनी और घोड़ी को मुंह से दुहना ये सब उत्तम स्वप्न हैं।

देवता, ब्राह्मण और गुरुओं की प्रसन्नता, गायों के सींग अथवा चंद्रमा से गिरे हुये जल के द्वारा अभिषेक होना, अपना राज्याभिषेक होना, अपने मस्तक का काटा जाना, आग में पड़ना, मृत्यु को प्राप्त होना, राज्यचिह्नों का प्राप्त होना, अपने हाथ से वीणा बजाना ये स्वप्न उत्तम फल प्रदान करने वाले हैं, ऐसा समझना चाहिये।

जो स्वप्न के अंतिम भाग में राजा, हाथी, घोड़ा, स्वर्ण, बैल तथा गाय को देखता है उसका कुटुम्ब बढ़ता है। बैल, हाथी, महल की छत, पर्वत शिखर तथा वृक्ष पर चढ़ना, रोना, शरीर में घी, विष्ठा का लग जाना तथा अगम्या स्त्री के साथ समागम करते हुए देखना यह सब शुभ स्वप्न हैं।

रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे हुए स्वप्न एक वर्ष तक फल देने वाले होते हैं, दूसरे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न छः माह में, तीसरे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न 3 माह में, चौथे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न 15 दिनों में तथा अरुणोदय की वेला में देखे जाने वाले स्वप्न 10 दिनों में ही अपना फल प्रकट कर देते हैं।

यदि एक ही रात्रि में शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के स्वप्न दिखाई पड़ें तो उनमें जिसका दर्शन बाद में हो उसी का फल घटित होता है। अतः अशुभ फल देखने के पश्चात सो जाना चाहिये तथा शुभ स्वप्न देखने के पश्चात सोना अच्छा नहीं होता।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava