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रविवार, 22 अगस्त 2021
बुध का अपनी उच्च राशि 'कन्या' में प्रवेश
सोमवार, 16 अगस्त 2021
सूर्य का स्वराशि में प्रवेश
गुरुवार, 20 मई 2021
ज्योतिष का रहस्य : भाग - २
अपने इतने वर्षों के अध्ययन, शोध और Professional Career से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैंने यह पाया कि यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो, नीच राशि में हो और वह नीचभंगता को भी प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो वह ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर अशुभ फल ही देगा।
यही नहीं, ऐसा ग्रह उस जातक के जन्म और चंद्र लग्न दोनों ही पर लगाए जाने वाले गोचर में यदि शुभ स्थिति में भी भ्रमण कर रहा होगा तब भी वह उस जातक को उतना शुभ फल देने में समर्थ नहीं हो सकेगा जितना किसी अन्य जातक को देगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में उस ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है।
इसके विपरीत यदि कोई ग्रह किसी जातक की जन्मकुण्डली में शुभ स्थिति में है तो ऐसा ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर शुभ फल ही देगा। ऐसा ग्रह गोचर में यदि अशुभ स्थिति में भी भ्रमण करेगा तो भी वह ग्रह उस जातक को उतना अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होगा जितना किसी अन्य के लिए होगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में वह ग्रह शुभ स्थिति में है।
साधारणतः ज्योतिषी इन बातों पर तो विचार कर लेते हैं कि ग्रहों का बलाबल कितना है ? नवांश कुण्डली में उनकी स्थिति कैसी है ? पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की किससे मित्रता-शत्रुता है ? ग्रह कारक-अकारक-मारक में से कौन सा है ? ग्रह को केन्द्राधिपति दोष तो नहीं है ? कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हो गया ? आदि-आदि !
किन्तु सूक्ष्म परीक्षण करते समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि वह ग्रह जिन राशियों के स्वामी हैं, उन राशियों में कौन -कौन से ग्रह स्थित हैं क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि यदि कोई ग्रह जिस भी राशि में होगा उस राशि के स्वामी ग्रह की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर वह ग्रह भी पीछे से अपना फल अवश्य देगा।
उदाहरण के लिये मान लेते हैं किसी जातक की शुक्र की २० वर्ष की महादशा आरम्भ हुयी और और शुक्र की दोनों राशियों (वृष-तुला) पर राहु व शनि बैठे हैं और जन्मकुंडली में शुक्र अत्यन्त शुभ स्थिति में हैं, योगकारक भी हैं, तब भी ऐसे शुक्र की महादशा उस जातक को उतना शुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि इस पूरी शुक्र की महादशा में जब-जब शुक्र की अन्तर्दशा , प्रत्यन्तर्दशायें, सूक्ष्म दशायें और प्राणदशायें प्राप्त होंगी, तब-तब शुक्र की दोनों राशियों पर बैठे राहु- शनि भी पीछे से अपना अशुभ फल देते रहेंगे और इसे देखकर बड़े-बड़े ज्योतिषी भी अचंभित रह जायेंगे कि इतने अच्छे शुक्र की महादशा में भी जातक दुखी जीवन व्यतीत करने पर विवश है।
यही नियम उन अशुभ ग्रहों की महादशाओं पर भी लगाया जायेगा, जिनकी राशियों पर कोई शुभ ग्रह स्थित है। तब ऐसे जातक को वह अशुभ ग्रह की महादशा भी उतना अशुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि उसकी राशियों पर स्थित शुभ ग्रह भी पीछे से अपना शुभ फल देंगे और यहाँ भी ज्योतिषी अचंभित रह जायेंगे कि इस जातक को इतने अशुभ ग्रह की दशा प्राप्त होने पर भी इसका समय इतना अच्छा कैसे व्यतीत हो रहा है।
बात यहीं समाप्त हो जाती तो भी ठीक था परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र इतना विशाल समुद्र है कि जिसका पार पाना सबकी क्षमता की बात नहीं है, यह इसलिए क्योंकि अभी हमने नक्षत्रों की तो बात की ही नहीं।
जब बात आती है कुण्डली के सूक्ष्म परीक्षण की तो हमें यह भी देखना होगा कि जातक की जन्मकुण्डली में सभी नवग्रह किन-किन नक्षत्रों पर स्थित हैं तथा जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही है, उस ग्रह के नक्षत्र पर कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं क्यूंकि पीछे से वह ग्रह भी उस दशा-अन्तर्दशा में अपना फल जातक को देता है जो दशापति के नक्षत्र पर स्थित होता है तथा दशापति ग्रह स्वयं उस ग्रह का भी प्रभाव लेकर कार्य करता है, जिसके नक्षत्र पर वह स्वयं स्थित होता है।
अतः जब भी कोई जातक अपनी जन्मकुण्डली का परीक्षण करवाने हमारे पास आये तो हमें उसकी जन्मकुण्डली में इन सब बातों का ध्यान पूर्वक सूक्ष्म परीक्षण करके उसकी जन्मकुण्डली को दो भागों में विभक्त करना चाहिये। जिसमें प्रथम भाग में उसकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों को रखना चाहिये तथा द्वितीय भाग में अशुभ ग्रहों को। जिससे शुभ ग्रहों को ज्योतिषीय उपायों द्वारा और अधिक शक्ति प्रदान करके, उनके शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि की जा सके तथा अशुभ ग्रहों के दान, व्रत और उनकी विधिवत् शांति आदि करवाकर उनके अशुभ फल देने की क्षमता को न्यूनतम स्थिति में लाकर भविष्य में उस जातक के साथ घटित होने जा रही दुर्घटना-विपत्ति आदि की संभावनाओं को टाला जा सके।
"शिवार्पणमस्तु"
- Astrologer Manu Bhargava
रविवार, 18 अप्रैल 2021
जीवन में नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव एवं उपाय
भगवान शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं उस रहस्य को प्रकट करने जा रहा हूँ जिसके कारण करोड़ों मनुष्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं।
मंगलवार, 22 सितंबर 2020
आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति
अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपने सभी ज्योतिषी बंधुओं का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा-
शनिवार, 19 सितंबर 2020
राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2020
आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि व लग्नों वाले जातकों के जीवन में क्या प्रभाव पड़ेगा -
राहु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव
मेष राशि- मेष लग्न
मेष राशि- मेष लग्न वाले जातकों को इस अवधि काल में दाहिने नेत्र, मुख एवं दांतों में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। कुटुंब में क्लेश व तनाव की स्थिति बनेंगी परन्तु अचानक से धन प्राप्ति होने के योग भी बनेंगे।
वृष राशि- वृष लग्न
इन जातकों के सिर पर राहु आ जाने के कारण मानसिक तनाव तथा सिर में चोट लगने की संभावना बढ़ जाएगी। राहु की नवम दृष्टि पिता के सुख से वंचित कर सकती है अतः पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
मिथुन राशि- मिथुन लग्न
राहु के बारहवें भाव में गोचर करने के कारण बाएं नेत्र में कष्ट, अनावश्यक धन हानि तथा पुलिस केस मुकदमों एवं चिकित्सा आदि पर धन- व्यय होने के योग बनेंगे।
कर्क राशि- कर्क लग्न
राहु के एकादश भाव में गोचर करने के कारण बड़े भाई-बहिनों, छोटी बुआ व चाचा को कष्ट, स्वयं की पिंडलियों में दर्द व चोट लगने के योग बनेंगे किन्तु आकस्मिक धन-लाभ की भी स्थिति रहेगी।
सिंह राशि-सिंह लग्न
यदि किसी की जन्म-कुंडली में दशम भाव एवं दशमेश की स्थिति अच्छी बनी हुई है तो राहु का दशम भाव में गोचर उसे सरकार से उच्च पद की प्राप्ति कराएगा किन्तु घुटनों में चोट-दुर्घटना की सम्भावना भी बनी रहेगी।
कन्या राशि- कन्या लग्न
राहु के नवम भाव में गोचर करने के कारण इस अवधि काल में इन जातकों के पिता कष्ट का अनुभव करेंगे तथा ये स्वयं कमर व पीठ की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं एवं धर्म में अरुचि हो जायगी। ऐसे व्यक्ति देश के अंदर लम्बी यात्राओं से बचें, अचानक भाग्योदय का योग बनेगा।
तुला राशि- तुला लग्न
राहु के अष्टम में गोचर करने के कारण इस राशि- लग्न के जातक मानसिक तनाव व डिप्रेशन का अनुभव करेंगे। ससुराल पक्ष में कष्ट रहेगा तथा जीवनसाथी के दांतों में कोई रोग प्रकट होने की सम्भावना होगी। ऐसे जातक इस अवधि काल में समुद्र की यात्राओं से बचें।
वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न
राहु के सप्तम भाव में गोचर करने के कारण इन जातकों के वैवाहिक जीवन में कष्ट आएंगे। जीवनसाथी के स्वास्थ्य में गिरावट अथवा किसी पार्टनर से धोखा एवं उसकी हानि हो सकती है अतः पार्टनरशिप में सावधानी रखें।
धनु राशि- धनु लग्न
राहु के छठें भाव में गोचर करने के कारण चोट-दुर्घटना एवं पुलिस केस मुकदमेबाज़ी का भय रहेगा। इस राशि-लग्न के जिन जातकों को पहले से ही किडनी, लिवर,आंतें, पैंक्रियास आदि की समस्याएं हैं, वह बढ़ जाएँगी परन्तु शत्रुओं का नाश होगा।
मकर राशि- मकर लग्न
इस राशि-लग्न वाले जातकों के राहु उनके पंचम भाव में गोचर करेंगे। ऐसे में विद्यार्थियों को पढाई में कष्ट तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे। इस लग्न व राशि के जातकों के पेट की समस्याएं बढ़ेंगी तथा संतान कष्ट होगा एवं गर्भवती महिलाओं को संतान-हानि के योग बनेंगे किन्तु शेयर बाज़ार से अचानक धन प्राप्त हो सकता है।
कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न
इस राशि व लग्न के जातक नया वाहन लेने तथा भूमि के क्रय-विक्रय से बचें, यदि उनकी जन्म-कुंडली में चतुर्थ भाव व चतुर्थेश की स्थिति भी अशुभ हुई एवं दशा-अंतरदशा भी अशुभ ग्रहों की चल रहीं हो तो ऐसे में वाहन दुर्घटना के योग बन जायेंगे।
मीन राशि- मीन लग्न
इस राशि- लग्न के जातकों को अपने छोटे भाई-बहिनों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा। जन्म-कुंडली में तृतीय भाव व तृतीयेश की स्थिति भी अशुभ हुई तो इस लग्न-राशि के जातकों को इस अवधि काल में विदेश यात्रा से बचना चाहिए।
केतु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव
मेष राशि- मेष लग्न
इस राशि व लग्न के जातकों को मानसिक तनाव, मानसिक पीड़ा, ससुराल में कष्ट एवं जीवनसाथी के एक आँख तथा दांतों में कष्ट के योग बनेंगे। समुद्र की यात्राओं से बचें।
वृष राशि- वृष लग्न
जीवनसाथी को कष्ट व वैवाहिक जीवन में अलगाव व तनाव की स्थिति बनेगी, किसी पार्टनर की दुर्घटना का समाचार प्राप्त हो सकता है।
मिथुन राशि- मिथुन लग्न
चोट- दुर्घटना से बचाव करें, व्यर्थ के विवाद में पड़ने से बचें अन्यथा कोर्ट केस होने की सम्भावना रहेगी।
कर्क राशि- कर्क लग्न
इस राशि व लग्न के जातकों के पेट में एसिड एवं गैस की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। जिनकी जन्म कुंडली में पहले से ही पंचम भाव तथा पंचमेश अशुभ प्रभाव में हैं, उनके पेट के ऑपरेशन के योग बनेंगे तथा गर्भवती महिलाओं को गर्भ हानि का भय रहेगा।
सिंह राशि- सिंह लग्न
इस राशि व लग्न के जातकों की माता को कष्ट एवं स्वयं के सुख में कमी रहेगी, अपने निजी वाहन के द्वारा लम्बी यात्रा करने से बचें।
कन्या राशि- कन्या लग्न
इस राशि व लग्न के जातकों के छोटे भाई-बहिनों को कष्ट, स्वयं के गले तथा कान में समस्याओं के योग बनेंगे। मित्रों से अलगाव की स्थिति प्राप्त होगी।
तुला राशि- तुला लग्न
इस राशि व लग्न के जातकों के कुटुंब में क्लेश व तनाव, स्वयं के दाहिने नेत्र एवं दांतों में पीड़ा की सम्भावना रहेगी तथा मुख पर फोड़े- फुंसी आदि होने की सम्भावना रहेगी।
वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न
सिर में चोट- दुर्घटना का भय बना रहेगा, अनावश्यक क्रोध करने की स्थिति से बचें। नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण आप अपना तथा अपने परिवार का जीवन संकट में डाल सकते हैं, अतः नशीली वस्तुओं के सेवन से बचें।
धनु राशि- धनु लग्न
बाएं नेत्र में कष्ट की सम्भावना रहेगी, व्यर्थ के खर्चे बढ़ाने की प्रवृति से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
मकर राशि- मकर लग्न
इस राशि व इस लग्न के जातकों के बड़े भाई- बहिनों को लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचना चाहिए।
कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न
इस राशि व इस लग्न के वह जातक जो सरकारी नौकरियों में हैं, उनके लिए यह समय कष्टकारी होगा, ऐसे लोग अपने उच्च अधिकारियों से विवाद की स्थिति उत्पन्न करने से बचें तथा जिन लोगों के सरकारी कार्य अब तक सफलता पूर्वक चल रहे थे, अब उनमे रुकावटें आना आरम्भ होंगी।
मीन राशि- मीन लग्न
मीन राशि व मीन लग्न के जातकों के पिता निजी वाहनों के द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचें तथा इस राशि व इस लग्न के जातक स्वयं भारी सामान आदि को उठाने की प्रवृति से बचें, अन्यथा उनकी कमर व पीठ में समस्या आने का योग बनेगा।
इन सभी राशि व लग्नों वाले जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु यदि शुभ प्रभाव में हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी शुभ चल रही हों तो उन जातकों को राहु-केतु का परिवर्तन अशुभ फल न देकर शुभ फल ही प्रदान करेगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अशुभ प्रभाव में हुए एवं दशा-अन्तर्दशा भी अशुभ चल रही होगी, उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यंत विनाशकारी होगा।
"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava
मंगलवार, 25 अगस्त 2020
जीवांश-परमात्मांश रहस्य
भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुए तथा पराशर ऋषि को प्रणाम करते हुए मैं उन्ही के शब्दों में जीवांश एवं परमात्मांश तत्व का रहस्य प्रकट करने जा रहा हूँ।