Translate

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

पशुओं के अकारण रोने का रहस्य...

 प्रायः देखने में आता है जब कभी हमारे घर के आसपास कोई कुत्ता,बिल्ली आदि पशु यदि असमय ही विलाप करने लगते हैं तो हमारे घर के बड़े बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि कोई अशुभ घटना घटित होने वाली है, क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि का रोना शुभ नहीं माना जाता।


मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति से प्राप्त शिक्षा के कारण हिन्दू युवा पीढ़ी उनकी इन बातों को अंधविश्वास का नाम देकर उनका उपहास उड़ाती है। ऐसे में क्या इन जानवरों के रोने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार छुपा हुआ है या हमारे बड़े बुजुर्ग अंधविश्वासी हैं ? आइये जानते हैं...

मनुष्य अपने नेत्रों से वैज्ञानिकों द्वारा ज्ञात Electromagnetic Spectrum के एक छोटे से अंश को ही देख पाता है । इस Visible light Spectrum की सीमा 380 नैनोमीटर से लेकर 750 नैनोमीटर तक ही होती है, जिसमें 7 रंगों का समावेश होता है, जिसका संयुक्त स्वरूप हमें श्वेत रंग के रूप में प्राप्त होता है।


जबकि बहुत सारे पशु-पक्षी और यहां तक कि मछलियां तक इस सीमा से पार भी देख पाते हैं, ऐसे में वह उन शक्तियों को देख लेते हैं जिनको मनुष्य अपने नग्न नेत्रों से नहीं देख पाता और वह पशु-पक्षी भयभीत या विचलित होकर असामान्य सा व्यवहार करने लगते हैं।

जब भी किसी स्थान पर निकट भविष्य में किसी की मृत्यु होने वाली होती है अथवा भयानक आपदा आने वाली होती है तो वहां के वातावरण में एक प्रकार की खिन्नता छा जाती है, जिसका कारण है कि वह स्थान उसके मृत सगे सम्बन्धियों, मृत शुभचिंतकों एवं मित्रों की आत्माओं से भर जाता है और वह आत्माएं उसे अपने साथ ले जाने के लिए वहीं एकत्र हो जाती हैं।


जिसके कारण अनेक बार मरणासन्न व्यक्ति मूर्छा की अवस्था में अपने परिवारजनों को यह बताये हुए देखा जाता है कि मुझे लेने मेरे मरे हुए मित्र या सगे सम्बन्धी आये हुए हैं और मुझे बुला रहे हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार मृत व्यक्तियों को लेने के लिए हमें यमदूतों के आने का भी विवरण प्राप्त होता है। ऐसे में यह दृश्य देखकर कुत्ते, बिल्ली आदि पशु रोने तथा विचित्र प्रकार का क्रंदन करने लगते हैं।

अनेक बार जब मौसम वैज्ञानिकों ने ऐसे जीवों के व्यवहार का अध्ययन किया तो यहां तक पाया कि जब भी कोई भूकम्प, सूनामी या चक्रवात आदि आने वाले होते हैं जो अनेक जीव पहले से ही असामान्य व्यवहार करने लगते हैं जिसका कारण उनके Sensors का हमारे Sensors से अधिक Active (जाग्रत) होना होता है। उदाहरण स्वरूप- वर्षा आने से पूर्व चींटियों का अपने अंडे लेकर उस स्थान को छोड़ देना ।

बहुत सारे अज्ञानी मनुष्य जो आत्माओं पर विश्वास नहीं करते उनको यह अवश्य जान लेना चाहिए कि Energy (ऊर्जा) कभी समाप्त नहीं होती, बस वह एक स्वरूप (Form) से दूसरे स्वरूप में परिवर्तित हो जाती है और आत्मा भी एक Energy ही है, जो कभी नष्ट नहीं होती, बस शरीर बदलती रहती है। इसलिए श्रीमद्भागवत् गीता में आत्मा के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि...


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
    तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
अर्थात-
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
           न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।2.23।।
अर्थात-
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है ; जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।

अब अपने विषय पर पुनः लौटते हुए बात करते हैं उन पशुओं की जिनके व्यवहार में हम अचानक से ऐसे परिवर्तन देखते हैं।

ऐसे पशुओं के व्यवहार में अचानक से आये इन परिवर्तनों का कारण यदि उनका चोटिल हो जाना, उनके बच्चे आदि की मृत्यु हो जाना हो तब तो यह सामान्य बात है परंतु यदि यह कारण नहीं है तो समझ लेना चाहिये कि कुछ ही समय में कोई विपत्ति आने वाली है।

ऐसे में उन पशुओं को वहां से भगाने के स्थान पर अपनी तथा घर की Aura (आभामंडल) को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए तथा पहले से ही जिनके आधीन ब्रह्मांड की समस्त नकारात्मक शक्तियां रहती हैं ऐसे कालों के भी काल, भगवान शंकर का भवानी सहित ध्यान करके उनसे विपत्ति को टालने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 18 अप्रैल 2021

जीवन में नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव एवं उपाय

 भगवान शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं उस रहस्य को प्रकट करने जा रहा हूँ जिसके कारण करोड़ों मनुष्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं।


आपने अनेक बार देखा होगा कि जब भी कभी आप कोई शुभ कार्य करने का विचार मन में लायें और उसमें अनेक प्रकार के व्यवधान आयें तो हो सकता है कि कोई अदृश्य ऊर्जा आपको उसे क्रियान्वित करने से रोक रही है, तो ऐसी स्थिति में समझ लेना चाहिए कि आप किसी नकारात्मक ऊर्जा की चपेट में आ चुके हैं।


वह ऊर्जा आपके रुष्ट पूर्वजों के रूप में हो सकती है, ब्रह्मांड में विचरण करती हुई कोई अत्यन्त क्रोधी अतृप्त आत्मा हो सकती है अथवा आपके शत्रु द्वारा आपके ऊपर किये गए षट्कर्म (मारण, सम्मोहन,वशीकरण,विद्वेषण,स्तंभन और उच्चाटन) में से कोई एक अभिचारिक प्रयोग के फलस्वरुप उत्पन्न कोई ऐसी घोरतम ऊर्जा हो सकती है जो केवल आपके विनाश के लिए ही भेजी गई हो।


यदि ऐसा है तो आपकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों के योग भी अपनी दशा आने पर आपकी रक्षा कर सकने में समर्थ नहीं होते और व्यक्ति यह विचार करने पर विवश हो जाता है कि ज्योतिषी के द्वारा वर्णित किया गया मेरी जन्म-कुंडली का उत्तम फलादेश क्या केवल मिथ्या मात्र है ?

ऐसी स्थिति में सर्वप्रथम आवश्यक है उस ऊर्जा का परिज्ञान किया जाए जो जातकों के Subconscious Mind (अवचेतन मन) को अपने नियंत्रण में लेकर उसके जीवन का सर्वनाश कर रही है।

वर्तमान में यह शक्तियां इसलिये भी अत्यन्त प्रबल हो चुकी हैं क्यों कि मनुष्य मदिरा और मांसाहार का प्रयोग करके स्वयं तमोगुणी होकर अत्यंत घोर तमोगुणी ऊर्जा (Negative Energy) को अपनी ओर आकर्षित करके अपनी सकारात्मक ऊर्जा ( Positive Energy) को नष्ट कर रहे हैं। ऐसे मनुष्यों को दीर्घ काल तक यह ज्ञात ही नहीं हो पाता कि वो दैवीय ऊर्जा के नियंत्रण से बाहर निकलकर किसी और ही ऊर्जा के द्वारा कब और कैसे संचालित होने लगे।


ऐसे जातक जिनके जीवन या तो नष्ट हो चुके हैं अथवा नष्ट होने की स्थिति में है, जब मैंने उनकी जन्म-कुंडलियों का निरीक्षण किया तो यह पाया कि ऐसी नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित जातकों की उस समय राहु अथवा केतु की महादशा-अन्तर्दशा चल रही थीं क्योंकि राहु-केतु की दशा-अन्तर्दशा में मनुष्य बड़ी सरलता से इन नकारात्मक ऊर्जाओं की चपेट में आ जाता है।

यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब ऐसे व्यक्ति का सूर्य-चंद्रमा भी अशुभ स्थिति में हों क्योंकि सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा कारक तथा चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है, ऐसे में यदि यह दोनों ग्रह भी जन्म-कुंडली में पाप प्रभाव में अथवा अशुभ स्थिति में आ जाएं तो व्यक्ति अपनी आत्मा तथा मन पर नियंत्रण न होने से नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में घिरकर जीवन भर घोर दुःख उठाता रहता है ।

ऐसे में इस तमोगुणी ऊर्जा से अपने जीवन को नष्ट होने से बचाने के लिए मैं कुछ उपाय बताने जा रहा हूँ, जिससे मेरी यह देह भगवान शंकर के चरणों में विलीन होने के उपरांत भी इस ज्ञान का उपयोग करके मनुष्य अनन्त काल तक अपने जीवन को सुखमय बनाते रहें...

1- किसी योग्य ज्योतिषी से अपनी जन्मकुंडली का परीक्षण करवाकर उन ग्रहों के रत्न धारण करें जो ग्रह आपकी कुंडली में शुभ हों तथा उन ग्रहों की विधिवत शांति करवा लें जो आपकी कुंडली में अशुभ स्थिति में हों।


2- अपनी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों के रंगों का प्रयोग न करें, न ही उनकी दिशाओं में निवास करें । यदि शनि-राहु की स्थिति जन्मकुंडली में शुभ भी हो तो भी काले-नीले रंगों का प्रयोग न करें।

3- भवन निर्माण के समय भूमि तथा उसके वास्तु का ध्यान रखें। अनेक वास्तु दोषों से युक्त भवन को अति शीघ्र ही त्याग दें।

4- घर में पुरानी लकड़ी, अधिक लोहा न रखें तथा धूल और दूषित जल एकत्र न होने दें।

5- मांस-मदिरा का सेवन न करें।

6- घर में सीलन न आने दें तथा घर की नालियों में बहने वाले जल प्रवाह को जाम न होने दें।

7- ऐसी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं जो आपके उपयोग में नहीं आ रहीं उन्हें तत्काल घर से बाहर कर दें, उनसे निकलने वाला विकिरण न केवल नकारात्मक ऊर्जा को आप तक लाता है, आपके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।

8- घोर मानसिक अशांति उत्पन्न करने वाले टीवी प्रोग्राम ( उदाहरणार्थ-बिगबॉस एवं अश्लील भौंडे नाच गाने वाले) जिसको देख कर आपके मस्तिष्क में नकारात्मक रसायन प्रवाहमान होते हों , उन्हें तिलांजलि दे दें।

9- संभव हो तो देशी गाय के गोबर से घर के फर्श को लीपें और यदि पक्के फर्श हों तो उन पर नित्य सेंधा नमक मिश्रित जल से पोंछा लगाएं।

10- घर में पवित्र मंत्रों, शंख व घण्टों की ध्वनि होते रहने की व्यवस्था करें।

11- गुग्गल, संब्रानी, कपूर आदि का धुआँ दें तथा देव मूर्तियों की आरती करके उस आरती को स्वयं लेकर अपना आभामंडल (Aura) ठीक करें ।


12- घर में तुलसी एवं अशोक जैसे वृक्ष लगाएं ।

13- वर्ष भर में आने वाले सिद्ध मुहूर्तों का समय उच्च कोटि की साधना में दें ।

14- रात्रि के समय खुले आकाश के नीचे शयन न करें और न ही मीठा दूध आदि पीकर खुले अन्तरिक्ष के नीचे जाएं क्योंकि आप नहीं जानते वहां उस समय कौन सी शक्तियां विचरण कर रही हों।

15- चौराहों से निकलने के समय ध्यान दें किसी ऐसी वस्तु पर पैर न पड़ जाएं जो श्रापित हो अथवा किसी के द्वारा अपना उतारा करके रखी गयी हो।

15- एक क्षण भी अपवित्र न रहें, प्रतिदिन स्नान करें, सम्भव हो तो जल में पवित्र औषधियां मिला लें।

16- बाहर से आने वाले जूते-चप्पल घर से बाहर ही रखें, घर में प्रवेश करने से पूर्व पैरों को जल से धो लें।

17- दिन ढलने के उपरान्त देशी गाय के घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाएं जो रात्रि भर जलता रहे।

18- दूसरों की सुख समृद्धि से द्वेष तथा लोभी आचरण करके अपनी Aura में अपने लिए नकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रवेश स्थान न दें क्योंकि दूसरों से द्वेष रखने वाले तथा लोभी मनुष्य के सभी जप, तप, पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं।

19- योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में स्फटिक, रुद्राक्ष और Black Tourmaline का उपयोग करें।

20- अपने उन सभी पूर्वजों को प्रतिदिन प्रणाम करें जो अपने अन्त काल तक ज्ञान वृद्ध रहे हों।


21- भगवान शंकर और देवी महामाया महाकाली की उच्च कोटि के मंत्रों से आराधना करें, क्योंकि समस्त तमोगुणी शक्तियां और यह चराचर जगत उन्हीं के तो अधीन हैं ।

''शिवार्पणमस्तु''

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

बुध का अपनी नीच राशि मीन में प्रवेश

 


बुध ग्रह 1 अप्रैल 2021 से लेकर 16 अप्रैल 2021 तक अपनी नीच राशि 'मीन' में स्थित रहेंगे, जिसमें वह वहीं पहले से संचार कर रहे 'उच्च के शुक्र' से युति करके कुछ राशियों के लिए नीचभंग राजयोग तो बनाएंगे परंतु अपने से सम्बंधित रोग भी देंगे।


बुध का यह 16 दिनों का अपनी नीच राशि में गोचर जीवों में गले, श्वांस, त्वचा और मस्तिष्क से सम्बंधित रोगों में वृद्धि तथा वाणी से सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न करेगा।

अतः जो व्यक्ति पहले से ही इनसे सम्बंधित रोगों से ग्रसित हैं वह अपने चिकित्सकों से परामर्श करके अपनी जांच करवा लें, जिससे समय पर उनको सही उपचार मिल सके।

{बुध के मीन राशि में संचार का 12 लग्नों एवं राशियों पर पड़ने वाला प्रभाव}

(मेष लग्न-मेष राशि)
आपके लिए बुध का यह गोचर आपके छोटे भाई बहनों के लिए अशुभ रहेगा, आप गले की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं।

(वृष लग्न-वृष राशि)
बुध का यह गोचर आपको अकस्मात धन लाभ दे सकता है परंतु पेट तथा संतान के लिए शुभ नहीं है, अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें।

(मिथुन लग्न-मिथुन राशि)
यदि संभव हो तो इन 16 दिनों के लिए अपने सरकारी कार्यों को टाल दें तथा भूमि, वाहन का क्रय-विक्रय करने से बचें।

(कर्क लग्न-कर्क राशि)
विदेश यात्रा से बचें तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

(सिंह लग्न-सिंह राशि)
ससुराल पक्ष से विवाद करने की स्थिति से बचें तथा बड़े भाई- बहन के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(कन्या लग्न-कन्या राशि)
जीवन साथी तथा नौकरी से अकस्मात लाभ हो सकता है परंतु जीवन साथी के स्वास्थ्य के लिए यह समय शुभ नहीं है।

(तुला लग्न-तुला राशि)
पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(वृश्चिक लग्न-वृश्चिक राशि)
शेयर मार्केट से अकस्मात ही धन की प्राप्ति हो सकती है परंतु अपने उदर तथा संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(धनु लग्न-धनु राशि)
जीवन साथी से भूमि तथा वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे परंतु माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(मकर लग्न-मकर राशि)
यद्द्पि इस लग्न-राशि के निर्यातकों को इस अवधि काल में विदेशों में कर्ज देने से बचना चाहिए तथापि उनका विदेशों से भाग्योदय होगा।

(कुम्भ लग्न- कुम्भ राशि)
इस लग्न-राशि के जातकों की संतान को धन लाभ होने की प्रबल संभावना रहेगी परंतु कुटुंब में किसी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है। इस लग्न-राशि के जातकों को इस 16 दिन की अवधि काल में मुख से सम्बंधित कोई रोग प्रकट हो सकता है।

(मीन लग्न-मीन राशि)
विदेश यात्रा से धन लाभ होगा परंतु स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

विशेष-
जिन जातकों की जन्मकुंडली में बुध शुभ स्थिति में है और उन्होंने किसी 'ज्योतिष और रत्न विशेषज्ञ' के परामर्श से 'पन्ना रत्न' धारण किया हुआ है उनको चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, उनके लिए बुध का यह गोचर अन्य की अपेक्षाकृत कम समस्याएं लेकर आएगा।

जो जातक अपनी जन्म-कुंडली में बुध की अशुभ स्थिति में होने के कारण पन्ना धारण नहीं कर सकते, वह बुध ग्रह के दान करें, हरे वस्त्रों का प्रयोग न करें तथा श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ एवम गणेश जी की आराधना करें।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 29 मार्च 2021

श्रीमद्भागवत् गीता के नाम पर चल रहे मिथ्या प्रचार का निराकरण...

 



क्या आप जानते हैं गीता में यह लिखा है, वह लिखा है, ऐसे जितने भी लेख आपको देखने को मिलते हैं उनमें से 99% वाक्य गीता में लिखे ही नहीं होते।

 कृपया हिन्दू समाज अपने ग्रंथों को बिना पढ़े कुछ भी शेयर करने की प्रवृत्ति को त्यागे और साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि उन्हें जब भी ऐसी कोई पोस्ट दिखाई दे तो वह उस व्यक्ति से उस पोस्ट का स्रोत अवश्य पूछें कि यदि गीता में यह लिखा है तो वह कौन से अध्याय के कौन से नम्बर श्लोक में लिखा है।


धर्म का आलम्बन लेकर अपना जीवन यापन करने वाले निष्ठावान साधक, श्रीमद्भागवत् गीता ही नहीं अपने अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करके स्वयं भी जाग्रत हों और दूसरों को भी जाग्रत करें, जिससे धर्म की रक्षा की जा सके, क्योंकि...

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्

अर्थात-

मरा हुआ धर्म,मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म, रक्षक की रक्षा करता है,इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।

 "शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 27 मार्च 2021

फिल्मी कलाकारों का भगवान के रूप में पूजन : उचित अथवा अनुचित ?

 


प्रायः देखने मे यह आ रहा है कि सामान्य जनमानस उन फिल्मी कलाकारों को ही अपने इष्ट देव के रूप में ध्यान करके पूजने लगता है जो फिल्मों अथवा टीवी सीरियलों में देवी-देवताओं का रोल करते हैं । सनातनियों में यह एक ऐसी बुराई है जिस ओर कोई धर्म गुरु ध्यान नहीं दे रहा है।

 

ये सभी कलाकार यदि मांसाहारी न भी हों तो भी अधिकांशतः उन होटलों में भोजन ग्रहण अवश्य करते हैं जिनमें मांस पकाया जाता है तथा जहां शुद्धि-अशुद्धि का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। यही नहीं, शराब पीना तो इन कलाकारों की दिनचर्या का अभिन्न अंग होता है, जिसके बिना तो इनकी कोई भी पार्टी अधूरी होती है ।


अधिकांशतः इन कलाकारों का जीवन फिल्मों के अश्लील वातावरण में ही व्यतीत होने से इनमें नकारात्मक ऊर्जा की मात्रा सामान्य मनुष्यों से भी कई गुना अधिक होती है।

 

आकर्षण का सिद्धांत यह कहता है कि आप जिस चीज का भी ध्यान करते हो वह आपसे आकर्षित होकर आपके पास आने लगती है, ऐसे में यदि जो मनुष्य इन फिल्मी कलाकारों को अपने इष्ट के रूप में ध्यान करता है तो उन मनुष्यों में ईश्वरीय गुणों के स्थान पर इन फिल्मी कलाकारों की नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर जाती है और मनुष्य अपना पतन स्वयं ही कर बैठता है ।


यदि हम यह भी मान लेते हैं कि कोई टीवी कलाकार किसी धार्मिक सीरियल अथवा फिल्म को करने के पश्चात सात्विक आचरण करके अपनी दिनचर्या व्यतीत कर रहा है तब भी वह भगवान के समान ऊर्जा वाला तो नहीं हो सकता न। ऐसे में उस टीवी कलाकार का ध्यान करने में साधक की आध्यात्मिक ऊर्जा दिशाहीन ही कही जाएगी क्योंकि उसे उसी निम्न स्तर की ऊर्जा की ही प्राप्ति होगी जिसका वह ध्यान कर रहा है।

 

अतः सनातनियो में व्याप्त इस भयानक रोग को अब नष्ट करने का समय आ गया है, अन्यथा इन फिल्मी कलाकारों को ईश्वर के रूप में पूजने से मोक्ष मिलना तो दूर उल्टा आपका विनाश ही होगा ।

''शिवार्पणमस्तु"


-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

आत्महत्याओं का कारण बनेगी चंद्र-केतु युति

 


अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मैं अपने सभी ज्योतिषी बंधुओं का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा-

आप सभी जानते हैं कि जब-जब गोचर में चंद्र-केतु, चंद्र-राहु, चंद्र-शनि का योग बनता है अथवा अमावस्या (क्षीण चंद्र) के आसपास का समय होता है, तब-तब जातकों को घोर मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यदि जातकों की दशा-अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की चल रही होती है अथवा वह शनि की अशुभ ढैया-साढ़े साती के प्रभाव में होते हैं तो उनके मन में आत्महत्या करने तक के विचार आने लगते हैं।

अब से डेढ़ वर्ष पूर्व जब राहु, चंद्रमा की राशि कर्क में स्थित थे तब हम सभी ने देखा कि कर्क राशि में राहु के संचार के उन 18 महीनों में गोचर में जब-जब चंद्र-राहु का योग बना तब-तब विश्व भर में कितनी आत्महत्या हुईं।

आज वही समस्या फिर हमारे समक्ष उत्पन्न होने जा रही है जब 23 सितम्बर को राहु-केतु राशि परिवर्तन कर लेंगे। राहु वृष तथा केतु चंद्रमा की नीच राशि वृश्चिक में प्रवेश हो जाएंगे। ऐसे में, गोचर में चंद्रमा 12 अप्रैल 2022 तक, जब-जब अपनी नीच राशि वृश्चिक में प्रवेश करेगा वहां वह पहले से ही स्थित केतु के पाप प्रभाव की चपेट में भी आ जायेगा।

जरा विचार करिये ऐसे में उन सवा दो दिनों में जातक के मन की स्थिति क्या होगी ? ऐसे में जिन जातकों की जन्म-कुण्डली में पहले से ही चंद्रमा नीच राशि में अथवा पाप ग्रहों के प्रभाव में हुआ और उनकी दशा-अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की चल रही हुई तो क्या वह जातक उन सवा दो दिनों में आत्म-हत्या का प्रयास नहीं करेंगे ?

अतः आगामी डेढ़ वर्ष सभी ज्योतिषियों को यह ध्यान रखना होगा कि ऐसे जातकों को वह किस प्रकार से डिप्रेशन की स्थिति से बाहर निकाल सकते हैं और उनका जीवन बचा सकते हैं ।

यहां मैं सभी पाठकों को और विशेषकर मानसिक रोगियों के लिये आत्म-हत्या की इच्छा से बचने के लिए कुछ उपायों को बताने जा रहा हूँ, ज्ञानीजन कृपया गहनता से संदेश को समझें...

1- जन्म-कुंडली में मन का कारक चंद्रमा यदि शुभ स्थानों का स्वामी हो अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो उत्तम प्रकार का 'सच्चा मोती' और चांदी धारण कर लें तथा जिन पाप ग्रहों ने चतुर्थ भाव, चतुर्थेश एवं चद्रमा को पीड़ित किया हुआ हो उनकी शांति करवा लें।

2- किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास जाकर अपनी चिकित्सा करवा लें तथा उनके द्वारा दी गयी औषधियों का सेवन करें।

3- किसी आध्यात्मिक धर्म गुरु की शरण में चले जायें और उनके सानिध्य में योग-ध्यान करें।


4- कभी भी अकेले न रहें, हमेशा मित्रों, बन्धु-बांधवों के साथ भीड़ में रहें और स्वयं को व्यस्त रखने के लिए हमेशा कुछ न कुछ करते रहें।

5- नशीली वस्तुओं के प्रयोग से स्वयं को दूर रखें। 

6- भगवान शंकर के मंत्रों के जाप से अपने 'सोम चक्र' को जाग्रत कर लें, जिसमें अमृत छुपा हुआ है।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 19 सितंबर 2020

राहु-केतु का राशि परिवर्तन 2020



२३ सितम्बर २०२० को राहु व केतु क्रमशः मिथुन व धनु राशि से निकलकर वृष व वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। जहाँ वह १२ अप्रैल २०२२ तक रहेंगे। वैदिक ज्योतिष में राहु-केतु को पापी ग्रह माना गया है जिसमे विशेषकर राहु साक्षात् काल का स्वरुप माना जाता है। 

राहु व केतु एक राशि में लगभग १८ माह तक रहते हैं तथा जिस राशि में रहते हैं एवं जिस ग्रह के साथ स्थित होते हैं, अपने मारक प्रभावों के अतिरिक्त उनके जैसा प्रभाव भी देने लगते हैं। अतः राहु-केतु के राशि परिवर्तन को एक बड़ी ज्योतिषीय घटना माना जाता है और इसके शुभाशुभ प्रभाव से कोई भी जीव बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकता।  

आइये जानते हैं राहु व केतु के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि व लग्नों वाले जातकों के जीवन में क्या प्रभाव पड़ेगा -

राहु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव

मेष राशि- मेष लग्न 

मेष राशि- मेष लग्न वाले जातकों को इस अवधि काल में दाहिने नेत्र, मुख एवं दांतों में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।  कुटुंब में क्लेश व तनाव की स्थिति बनेंगी परन्तु अचानक से धन प्राप्ति होने के योग भी बनेंगे। 

वृष राशि- वृष लग्न 

इन जातकों के सिर पर राहु आ जाने के कारण मानसिक तनाव तथा सिर में चोट लगने की संभावना बढ़ जाएगी। राहु की नवम दृष्टि पिता के सुख से वंचित कर सकती है अतः पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

 मिथुन राशि- मिथुन लग्न 

राहु के बारहवें भाव में गोचर करने के कारण बाएं नेत्र में कष्ट, अनावश्यक धन हानि तथा पुलिस केस मुकदमों एवं चिकित्सा आदि पर धन- व्यय होने के योग बनेंगे। 

कर्क राशि- कर्क लग्न 

राहु के एकादश भाव में गोचर करने के कारण बड़े भाई-बहिनों, छोटी बुआ व चाचा को कष्ट, स्वयं की पिंडलियों में दर्द व चोट लगने के योग बनेंगे किन्तु आकस्मिक धन-लाभ की भी स्थिति रहेगी। 

सिंह राशि-सिंह लग्न 

यदि किसी की जन्म-कुंडली में दशम भाव एवं दशमेश की स्थिति अच्छी बनी हुई है तो राहु का दशम भाव में गोचर उसे सरकार से उच्च पद की प्राप्ति कराएगा किन्तु घुटनों में चोट-दुर्घटना की सम्भावना भी बनी रहेगी। 

कन्या राशि- कन्या लग्न 

राहु के नवम भाव में गोचर करने के कारण इस अवधि काल में इन जातकों के पिता कष्ट का अनुभव करेंगे तथा ये स्वयं कमर व पीठ की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं एवं धर्म में अरुचि हो जायगी। ऐसे व्यक्ति देश के अंदर लम्बी यात्राओं से बचें, अचानक भाग्योदय का योग बनेगा।

तुला राशि- तुला लग्न 

राहु के अष्टम में गोचर करने के कारण इस राशि- लग्न के जातक मानसिक तनाव व डिप्रेशन का अनुभव करेंगे। ससुराल पक्ष में कष्ट रहेगा तथा जीवनसाथी के दांतों में कोई रोग प्रकट होने की सम्भावना होगी। ऐसे जातक इस अवधि काल में समुद्र की यात्राओं से बचें। 

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न 

राहु के सप्तम भाव में गोचर करने के कारण इन जातकों के वैवाहिक जीवन में कष्ट आएंगे।  जीवनसाथी के स्वास्थ्य में गिरावट अथवा किसी पार्टनर से धोखा एवं उसकी हानि हो सकती है अतः पार्टनरशिप में सावधानी रखें। 

धनु राशि- धनु लग्न 

राहु के छठें भाव में गोचर करने के कारण चोट-दुर्घटना एवं पुलिस केस मुकदमेबाज़ी का भय रहेगा। इस राशि-लग्न के जिन जातकों को पहले से ही किडनी, लिवर,आंतें, पैंक्रियास आदि की समस्याएं हैं, वह बढ़ जाएँगी परन्तु शत्रुओं का नाश होगा। 

मकर राशि- मकर लग्न 

इस राशि-लग्न वाले जातकों के राहु उनके पंचम भाव में गोचर करेंगे। ऐसे में विद्यार्थियों को पढाई में कष्ट तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे। इस लग्न व राशि के जातकों के पेट की समस्याएं बढ़ेंगी तथा संतान कष्ट होगा एवं गर्भवती महिलाओं को संतान-हानि के योग बनेंगे किन्तु शेयर बाज़ार से अचानक धन प्राप्त हो सकता है। 

कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न 

इस राशि व लग्न के जातक नया वाहन लेने तथा भूमि के क्रय-विक्रय से बचें, यदि उनकी जन्म-कुंडली में चतुर्थ भाव व चतुर्थेश की स्थिति भी अशुभ हुई एवं दशा-अंतरदशा भी अशुभ ग्रहों की चल रहीं हो तो ऐसे में वाहन दुर्घटना के योग बन जायेंगे। 

मीन राशि- मीन लग्न  

इस राशि- लग्न के जातकों को अपने छोटे भाई-बहिनों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।  जन्म-कुंडली में तृतीय भाव व तृतीयेश की स्थिति भी अशुभ हुई तो इस लग्न-राशि के जातकों को इस अवधि काल में विदेश यात्रा से बचना चाहिए। 

केतु का विभिन्न राशि- लग्नों पर पड़ने वाला प्रभाव

मेष राशि- मेष लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों को मानसिक तनाव, मानसिक पीड़ा, ससुराल में कष्ट एवं जीवनसाथी के एक आँख तथा दांतों में कष्ट के योग बनेंगे। समुद्र की यात्राओं से बचें। 

वृष राशि- वृष लग्न 

जीवनसाथी को कष्ट व वैवाहिक जीवन में अलगाव व तनाव की स्थिति बनेगी, किसी पार्टनर की दुर्घटना का समाचार प्राप्त हो सकता है। 

मिथुन राशि- मिथुन लग्न 

चोट- दुर्घटना से बचाव करें, व्यर्थ के विवाद में पड़ने से बचें अन्यथा कोर्ट केस होने की सम्भावना रहेगी। 

कर्क राशि- कर्क लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के पेट में एसिड एवं गैस की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।  जिनकी जन्म कुंडली में पहले से ही पंचम भाव तथा पंचमेश अशुभ प्रभाव में हैं, उनके पेट के ऑपरेशन के योग बनेंगे तथा गर्भवती महिलाओं को गर्भ हानि का भय रहेगा। 

सिंह राशि- सिंह लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों की माता को कष्ट एवं स्वयं के सुख में कमी रहेगी, अपने निजी वाहन के द्वारा लम्बी यात्रा करने से बचें। 

कन्या राशि- कन्या लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के छोटे भाई-बहिनों को कष्ट, स्वयं के गले तथा कान में समस्याओं के योग बनेंगे। मित्रों से अलगाव की स्थिति प्राप्त होगी। 

तुला राशि- तुला लग्न 

इस राशि व लग्न के जातकों के कुटुंब में क्लेश व तनाव, स्वयं के दाहिने नेत्र एवं दांतों में पीड़ा की सम्भावना रहेगी तथा मुख पर फोड़े- फुंसी आदि होने की सम्भावना रहेगी। 

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न 

सिर में चोट- दुर्घटना का भय बना रहेगा, अनावश्यक क्रोध करने की स्थिति से बचें। नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण आप अपना तथा अपने परिवार का जीवन संकट में डाल सकते हैं, अतः नशीली वस्तुओं के सेवन से बचें। 

धनु राशि- धनु लग्न 

बाएं नेत्र में कष्ट की सम्भावना रहेगी, व्यर्थ के खर्चे बढ़ाने की प्रवृति से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 

मकर राशि- मकर लग्न 

इस राशि व इस लग्न के जातकों के बड़े भाई- बहिनों को लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचना चाहिए। 

कुम्भ राशि- कुम्भ लग्न 

इस राशि व इस लग्न के वह जातक जो सरकारी नौकरियों में हैं, उनके लिए यह समय कष्टकारी होगा, ऐसे लोग अपने उच्च अधिकारियों से विवाद की स्थिति उत्पन्न करने से बचें तथा जिन लोगों के सरकारी कार्य अब तक सफलता पूर्वक चल रहे थे, अब उनमे रुकावटें आना आरम्भ होंगी। 

मीन राशि- मीन लग्न  

मीन राशि व मीन लग्न के जातकों के पिता निजी वाहनों के द्वारा लम्बी दूरी की यात्रा पर जाने से बचें तथा इस राशि व इस लग्न के जातक स्वयं भारी सामान आदि को उठाने की प्रवृति से बचें, अन्यथा उनकी कमर व पीठ में समस्या आने का योग बनेगा। 


इन सभी राशि व लग्नों वाले जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु यदि शुभ प्रभाव में हुए तथा उनकी दशा-अन्तर्दशा भी शुभ चल रही हों तो उन जातकों को राहु-केतु का परिवर्तन अशुभ फल न देकर शुभ फल ही प्रदान करेगा किन्तु जिन जातकों की जन्म-कुंडली में राहु व केतु अशुभ प्रभाव में हुए एवं दशा-अन्तर्दशा भी अशुभ चल रही होगी, उनके लिए राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन अत्यंत विनाशकारी होगा। 

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava




मंगलवार, 25 अगस्त 2020

जीवांश-परमात्मांश रहस्य


 भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुए तथा पराशर ऋषि को प्रणाम करते हुए मैं उन्ही के शब्दों में जीवांश एवं परमात्मांश तत्व का रहस्य प्रकट करने जा रहा हूँ।


मैत्रेय उवाच
रामकृष्णादयो ये ये ह्यवतारा रमापतेः ।
तेSपि जीवांशसंयुक्ताः किं वा ब्रूहि मुनीश्वर !।।
मैत्रेय जी ने कहा- हे मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! राम, कृष्ण आदि जो परमात्मा के अवतार हैं, क्या वे भी जीवांश से युक्त हैं ?


पराशर उवाच
रामः कृष्णश्च भो विप्र ! नृसिंहः सूकरस्तथा ।
एते पूर्णावताराश्च ह्यन्ये जीवांशकान्विताः ।।
महर्षि पराशर जी ने कहा- हे विप्र ! राम, कृष्ण, नृसिंह तथा वराह-- ये चार पूर्ण अवतार हैं और इससे भिन्न जो अवतार हैं, वे सभी जीवांश से युक्त होते हैं ।


अवताराण्यनेकानि ह्यजस्य परमात्मनः ।
जीवानां कर्मफलदो ग्रहरूपी जनार्दनः ।।
दैत्यानां बलनाशाय देवानां बलवृद्धये ।
धर्मसंस्थापनार्थाय ग्रहाज्जाताः शुभाः क्रमात् ।।
अजन्मा परमेश्वर के अनेक अवतार हैं और उनमें से जीवों के लिए स्वकर्मानुसार फलदायक के रूप में ग्रहस्वरूप जनार्दननामक अवतार है । दैत्यों के बल- नाशार्थ, देवों के बल- वृद्धयर्थ और धर्म स्थापन के लिए उक्त सूर्यादि ग्रहों से ही शुभप्रद अवतार हुए हैं।


यथा--
रामोSवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः ।
नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च ।।
वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च ।
कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः ।।
केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेSपि खेटजाः।
परात्मांशोSधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधाः ।
जैसे -- सूर्य से श्रीराम का, चंद्रमा से श्रीकृष्ण का, मंगल से श्रीनृसिंह का, बुध से बुद्ध का, गुरु से वामन का, शुक्र से भार्गव परशुराम जी का, शनि से कूर्म का, राहु से वराह और केतु से मत्स्य अवतार हुआ है । इसके अतिरिक्त जितने भी अवतार हैं वे भी ग्रहों से ही अवतीर्ण हुए हैं । उनमें से जिसमे परमात्मांश अधिक है, वे खेचर अर्थात् देवता कहलाते हैं ।


जीवांशो ह्यधिको येषु जीवास्ते वै प्रकीर्तिताः ।
सूर्यादिभ्यो ग्रहेभ्यश्च परमात्मांशनिः सृताः ।।
रामकृष्णादयः सर्वे ह्यवतारा भवन्ति वै ।
तत्रैव ते विलीयन्ते पुनः कार्योत्तरे सदा ।।
जीवांशनिः सृतास्तेषां तेभ्यो जाता नरादयः ।
तेSपि तत्रैव लीयन्ते तेSव्यक्ते समयन्ति हि ।।
इदं ते कथितं विप्र ! सर्वं यस्मिन् भवेदिति ।
भूतान्यपि भविष्यन्ति तत्तज्जानन्ति तद्विदः ।।
विना तज्जयौतिषं नान्यो ज्ञातुं शक्नोति कर्हिचित् ।
तस्मादवश्यमध्येयं ब्रह्माणैश्च विशेषतः ।।
यो नरः शास्त्रमज्ञात्वा ज्यौतिषं खलु निन्दति ।
रौरवं नरकं भुक्त्वा चान्धत्वं चान्यजन्मनि ।।
जिनमें अधिक जीवांश है, वे जीव कहलाते हैं । सूर्यादि ग्रहों से अधिक परमात्मांश निकलकर राम, कृष्ण आदि अवतार होते हैं । फिर वे अपने-अपने कार्य को सुसम्पन्न करके सूर्यादि ग्रहों में ही लीन हो जाते हैं । साथ ही सूर्यादि ग्रहों से ही जीवांश निकलकर मनुष्यादि जीवों में प्रवेश करता है, जो जीवांश कहलाता है । वे भी अपने शुभाशुभ कर्मों को भोग कर अन्त में उन्हीं ग्रहों में लीन हो जाते हैं । प्रलयकाल के समय में वे सूर्यादि ग्रह भी अव्यक्त परमात्मा में ही लीन हो जाते हैं । इस प्रकार सृष्टि और प्रलय जिन-जिन समयों में होता है अथवा होने वाला होता है , उन सबको वे ही अच्छी प्रकार जान सकते हैं । यह समस्त ज्ञान ज्योतिषशास्त्र के बिना कोई जान नहीं सकता । इसलिये सभी को विशेषकर विप्रों को ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए ।
जो मानव ज्योतिषशास्त्र को अच्छी प्रकार न समझकर उसकी निंदा करता है, वह रौरव नामक नरक में वास करके अन्धा होकर जन्म ग्रहण करता है।।

"शिवार्पणमस्तु "

-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

आयुर्दाय



ज्योतिष शास्त्र के महान ऋषि 'पराशर जी' अपने दिव्य ग्रन्थ 'बृहत्पाराशर होरा शास्त्र' में ऋषि मैत्रेय जी को संबोधित करते हुए कहते हैं-

अथाS न्यदपि वक्ष्यामि द्विज ! मारकलक्षणम् ।
त्रिविधाश्चायुषो योगाः स्वलपायुर्ममध्यमोत्तमाः ।।

द्वात्रिंशत् पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततः परम् ।
चतुष्षष्टयाः पुरस्तात्तु  ततो दीर्घमुदाहृतम् ।।

उत्तमायुः शतादूर्ध्वं ज्ञातव्यं द्विजसत्तम ! ।
जनैर्विंशतिवर्षान्तमायुर्ज्ञातुं न शक्यते ।।

जप - होम - चिकित्साधैर्बालरक्षां हि कारयेत् ।
म्रियन्ते पितृदोषैश्च केचिन्मातृग्रहैरपि ।।

केचित् स्वारिष्टयोगाच्च त्रिविधा बालमृत्यवः ।
ततः परं नृणामायुर्गणयेद् द्विजसत्तम ! ।।


हे द्विज ! और भी मारक ग्रह के लक्षण कहता हूँ ।
पूर्व में जो अल्पायु, मध्यमायु और पूर्णायु - यह तीन प्रकार का आयुर्दाय बताया गया है, उसमें ३२ वर्ष से पूर्व अल्पायु, तदन्तर ६४ वर्ष पर्यन्त मध्यमायु और उसके बाद १०० वर्ष तक दीर्घायु तथा १०० वर्ष से ऊपर उत्तमायु जानना चाहिये ।

२० वर्ष तक जातकों के आयुर्दाय का निर्धारण करना कठिन होता है । अतः जन्म से २० वर्ष तक पापग्रहों से रक्षा हेतु जप-होम-चिकित्सादि द्वारा जातक की रक्षा करनी चाहिये ।

२० वर्ष तक कोई पिता के दोष से, कोई माता के दोष से, कोई अपने पूर्वार्जित कुकर्म से उत्पन्न अरिष्ट योगों से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । अतः बाल्यावस्था में मरण के तीन कारण होते हैं । इसलिये २० वर्ष के बाद ही आयुर्दाय का गणित करके आयु का निर्धारण करना चाहिये ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 5 अगस्त 2020

महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र


सनातन धर्म में एक महान् धार्मिक ग्रन्थ श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है  जिसका नाम है 'महाभारत'। इस दिव्य ग्रन्थ के रचयिता हैं ज्योतिष शास्त्र के महान ज्ञाता 'ऋषि पाराशर' के पुत्र 'महर्षि वेदव्यास'।

महर्षि वेदव्यास जी भगवान विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। उनका जन्म द्वीप में हुआ था, अत: उनका नाम द्वैपायन पड़ा। उनका शरीर श्याम वर्ण का था, इसलिए वह कृष्ण द्वैपायन भी कहलाये । वेदों के विभाग करने के कारण उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा। बद्रीवन में निवास करने के कारण बादरायण भी कहलाये । वे महामुनि 'पराशर' के पुत्र थे और उनकी माता का नाम 'सत्यवती' था।

वेदव्यास जी ने ब्रह्मसूत्र की रचना के साथ-साथ 18 पुराण तथा उपपुराणों की रचना भी की है । परन्तु मैं यहां उनके द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र का वर्णन करने जा रहा हूँ, जिसके विधिवत् पाठ करने से निकलने वाली ध्वनि तरंगों की ऊर्जा से सभी ग्रहों से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।


|| नवग्रह स्तोत्र ||

श्री गणेशाय नमः
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् |
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् || १ ||

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् |
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् || २ ||

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् |
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् || ३ ||

प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् |
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् || ४ ||

देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् |
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् || ५ ||

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् |
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् || ६ ||

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् || ७ ||

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् |
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् || ८ ||

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् |
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् || ९ ||

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः |
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति || १० ||

नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् |
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् || ११ ||

ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः |
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः || १२ ||

|| इति श्री वेद व्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ||


जो जपापुष्प के समान अरुणिम आभावाले , महान् तेज से सम्पन्न , अन्धकार के विनाशक , सभी पापों को दूर करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं , उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो दधि , शंख तथा हिम के समान आभा वाले , क्षीर समुद्र से प्रादुर्भूत , भगवान् शंकर के शिरोभूषण तथा अमृतस्वरूप हैं , उन चन्द्रमा को मैं नमस्कार करता हूँ।

जो पृथ्वी देवी से उद्भूत, विद्युत् की कान्तिके समान प्रभा वाले, कुमारावस्था वाले तथा हाथ में शक्ति लिये हुए हैं , उन मंगल को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो प्रियंगु लता की कली के समान गहरे हरित वर्ण वाले, अतुलनीय सौन्दर्य वाले तथा सौम्यगुण से सम्पन्न हैं , उन चन्द्रमा के पुत्र बुध को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं , स्वर्णिम आभा वाले हैं, ज्ञानसे सम्पन्न हैं तथा तीनों लोकों के स्वामी हैं, उन बृहस्पति को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो हिम, कुन्दपुष्प तथा कमलनाल के तन्तु के समान श्वेत आभा वाले, दैत्यों के परम गुरु, सभी शास्त्रों के उपदेष्टा तथा महर्षि भृगु के पुत्र हैं, उन शुक्र को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो नीले कज्जलके समान आभा वाले , सूर्य के पुत्र , यमराज के ज्येष्ठ भ्राता तथा सूर्य पत्नी छाया तथा मार्तण्ड ( सूर्य ) – से उत्पन्न हैं , उन शनैश्चर को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो आधे शरीरवाले हैं , महान् पराक्रम से सम्पन्न हैं , सूर्य तथा चन्द्र को ग्रसने वाले हैं तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं , उन राहु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

पलाशपुष्पके समान जिनकी आभा हैं , जो रुद्रस्वभाव वाले और रुद्र के पुत्र हैं , भयंकर हैं , तारकादि ग्रहों में प्रधान हैं , उन केतु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

भगवान् वेदव्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति का जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित्त होकर पाठ करता है , उसके समस्त विघ्न शान्त हो जाते हैं ।

स्त्री – पुरुष और राजाओंके दुःस्वप्नोंका नाश हो जाता है । पाठ करने वालों को अतुलनीय ऐश्वर्य और आरोग्य प्राप्त होता है तथा उनके पुष्टि की वृद्धि होती है ।

किसी भी ग्रह, नक्षत्र, चोर तथा अग्नि से जनित पीड़ायें शान्त हो जाती हैं. इस प्रकार स्वयं व्यास जी कहते हैं, इसलिए इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये।

इस प्रकार महर्षि व्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava