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बुधवार, 27 सितंबर 2023
मंगल-केतु युति २०२३
गुरुवार, 24 अगस्त 2023
प्रेम-वियोग और अध्यात्म
अपने Professional Astrology के कैरियर में अब तक मेरे पास हजारों ऐसी जन्मकुंडलियां आ चुकी हैं जिसमें प्रेम संबंधों में वियोग हो जाने से सच्चा प्रेम करने वाले स्त्री-पुरुष आन्तरिक रूप से इतना टूट जाते हैं कि अपने जीवन जीने की समस्त इच्छा ही समाप्त कर लेते हैं । यदि प्रेम दोनों ही ओर से हो तब तो ठीक है किन्तु यदि एक व्यक्ति प्रेम करता है और दूसरा उसके साथ प्रेम करने का अभिनय कर रहा है तो ऐसे में सच्चा प्रेम करने वाला व्यक्ति अपने साथ हुए इस छल को सह नहीं पाता और स्वयं को चारों ओर से घोर मानसिक दुःख से घेर लेता है । उसे किसी से बात करना, मिलना-जुलना नहीं भाता क्योंकि उसे लगता है कि कोई भी दूसरा उसके विरह के दुःख को समझ नहीं पा रहा है (अपने प्रेमी-प्रेमिका के साथ बिताए गए अच्छे पलों के बार-बार स्मरण होने तथा भविष्य में कभी उन पलों को पुनः न जी सकने का दुःख) ।
रविवार, 13 अगस्त 2023
जीवन में हमारे कुलदेवी/देवता का महत्व...
शुक्रवार, 4 अगस्त 2023
भगवान् श्री कृष्ण की शिव भक्ति...
भगवान् शंकर और मां भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं कलियुग के दक्ष बन चुके एक शिव-शक्ति निंदक अधर्मी Cult के मिथ्या प्रचार का अंत करने जा रहा हूँ जो भगवान् श्री कृष्ण को सर्वशक्तिमान परमेश्वर बताकर और उनकी आड़ लेकर भगवान् शंकर और माता भवानी का निरन्तर अपमान करता रहता है ।
सोमवार, 8 मई 2023
मंगल का अपनी नीच राशि 'कर्क 'में प्रवेश (२०२३)—
१० मई २०२३ दोपहर १ बजकर ३९ मिनट पर गोचर में मंगल अपनी नीच राशि 'कर्क' में प्रवेश करने जा रहे हैं और वह १ जुलाई २०२३ प्रातः २ बजकर १६ मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात् अपनी मित्र राशि 'सिंह' में प्रवेश करेंगे ।
अपने इस राशि परिवर्तन के साथ ही मंगल स्वयं राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर राहु के ही केंद्रीय प्रभाव में आ जाएंगे और शनि के साथ षडाष्टक योग भी बना लेंगे । मंगल-शनि का यह षडाष्टक योग संसार के लिए विशेष पीड़ादायक होता है अतः इस योग का दुष्प्रभाव सभी जातकों के ऊपर पड़ेगा ।
मंगल के नीच राशि में गोचर करने तथा शनि के साथ यह षडाष्टक योग बन जाने से इस अवधिकाल में विश्व भर में हिंसा, आगजनी जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी और विश्व भर से ट्रेन पलटना, प्लेन क्रैश होना तथा गैस पाइप लाइन में आग लग जाना जैसी अशुभ सूचनाएं प्राप्त होंगी इसके अतिरिक्त सामान्य से कहीं अधिक सड़क दुर्घटनाएं होने के आंकड़े भी प्राप्त होंगे। अतः विद्वान मनुष्यों को इस अवधिकाल में निजी वाहनों से लंबी दूरी की यात्राओं से यथा संभव बचना चाहिए, घरेलू महिलाओं को गैस सिलेण्डर का उपयोग करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए तथा आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को विशेष प्रबन्ध करने चाहिए।
राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर अपनी नीच राशि में रहने के कारण मंगल के दुष्प्रभावों में एक विशेष विध्वंसकारी शक्ति आ गई है जिसके फलस्वरूप ऐसा मंगल गोचर में जातकों की जन्मकुंडलियों के जिस-जिस भावों का स्वामी होकर जिन-जिन भावों में जाएगा और यह सभी भाव शरीर के जिन अंगों, कारक तत्वों तथा सगे-संबंधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन सभी के लिए हानिकारक सिद्ध होगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति होने से जातक को जो रोग, चोट, दुर्घटनाएं प्राप्त होती हैं, इस अवधिकाल में उसमें अधिकता देखी जाएगी । जन्मकुंडली में १२ भावों तथा मंगल से होने वाले रोगों के विषय में जानने के लिए मेरा यह ब्लॉग देखें
https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post.html
राहु अधिष्ठित राशि के स्वामी होकर 'मन की राशि' में संचार करते हुए मंगल की मारक क्षमता के प्रभाव से जीवों के मन में हिंसा की भावना जन्म लेगी जिससे इस अवधिकाल में एक दूसरे के प्रति हिंसा में अत्यधिक वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप विश्व भर में हिंसा-रक्तपात और यहां न लिख सकने वाली अनेक अशुभ घटनाएं घटित होंगी ।
मंगल शल्य चिकित्सा का कारक ग्रह है जब यह अशुभ स्थिति में होता है तब विश्व भर में ऑपरेशन होने की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होती है अतः चिकित्सकों के लिए यह समय व्यस्ततापूर्ण रहेगा ।
ब्लॉग का विस्तार न हो यह देखते हुए तथा समय के अभाव में सभी राशि-लग्नों वाले जातकों का भविष्यफल इस ब्लॉग में बताना संभव नहीं है अतः मंगल के इस विनाशकारी गोचर से सभी जातकों के बचाव के लिए कुछ उपायों का मैं यहां उल्लेख कर रहा हूँ ।
- हनुमान जी की उपासना करें ।
- रक्त वर्ण की देशी गाय की सेवा करें तथा उसे गुड़ का सेवन करवाएं ।
- मंगल के उस मंत्र का जाप करें जिसके लिए आप अधिकृत हैं ।
- गुड़, घी, लाल मसूर की दाल, तांबे का पात्र, अनार, गेंहू, लाल वस्त्र आदि वस्तुओं का दान किसी ऐसे मंदिर में करें जिसमें शास्त्र मर्यादा का पालन करने वाले वेदपाठी ब्राह्मण विद्वानों की नियुक्ति की गई हो ।
- अपने छोटे भाइयों को उनकी प्रिय वस्तु भेंट करें (ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 'मंगल' छोटे भाई का कारक होता है) ।
- स्वयं रक्त वर्ण के वस्त्र धारण करने से बचें।
"शिवार्पणमस्तु"
—Astrologer Manu Bhargava
शनिवार, 18 फ़रवरी 2023
महाशिवरात्रि का रहस्य
बुधवार, 16 नवंबर 2022
सनातन धर्म की आन्तरिक चुनौतियां भाग—२
कलियुग में पाखंड अपनी चरमावस्था में है। अनाधिकृत लोग धर्म गुरु की पदवी धारण किए बैठे हैं, अपने शास्त्रों से विमुख सनातनियों द्वारा राजनेताओं और अभिनेताओं के मंदिर बनाए जा रहे हैं। लाखों-करोड़ों लोग साधारण मनुष्यों को भगवान् बनाकर (जिसमें एक मलेक्ष भी सम्मिलित है) मंदिरों में प्रतिष्ठित कर उनकी पूजा करके स्वयं से दरिद्रता, भय, दैवीय प्रकोप एवं अकाल मृत्यु को निमंत्रण दे रहे हैं ।
यज्ञों में अनाधिकृत तत्व, यज्ञ का उचित विधि-विधान जाने बिना ही बड़ी-बड़ी यज्ञशालाएं बनाकर जर्सी गाय-भैंस के घी द्वारा उन मन्त्रों से देवी-देवताओं को आहुतियां दे रहे हैं जिनका उनके लिए विशेष निषेध (उन्हीं के कल्याण हेतु) किया गया था और अपने धर्म से अनभिज्ञ सनातनी समाज उनको अपना धर्म गुरु मानकर, उनका अनुसरण करके अपने लिए नर्क का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है–
विधिहीनस्य यज्ञस्य सद्यः कर्ता विनश्यति ।
तद्यथा विधिपूर्वं मे क्रतुरेष समाप्यते ॥१-८-१८॥
{श्रीमद्वाल्मीकियरामायणे बालकाण्डे अष्टमः सर्गः}
इसी प्रकार क्या सनातनी किसी को भी अपना भगवान् बनाकर उसकी पूजा कर सकते हैं ? आइए जानते हैं इस विषय पर हमारे धर्म ग्रन्थ क्या कहते हैं—
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूजनीयो न पूज्यते। त्रीणि तत्र भविष्यन्ति दारिद्रयं मरणं भयम् ।।
अर्थात्—
"जहाँ अपूज्य की पूजा होती है और पूजनीय की पूजा नहीं होती, वहां दरिद्रता, मृत्यु एवं भय ये तीनों अवश्य होते हैं"।
[श्रीशिवमहापुराण, रूद्रसंहिता, सतीखंड, अध्याय ३५, श्लोक संख्या ९]
श्रीशिवमहापुराण के रूद्रसंहिता सतीखंड में ३५वें अध्याय में कहा गया है कि—
"ईश्वरावज्ञया सर्वं कार्यं भवति सर्वथा।
विफलं केवलं नैव विपत्तिश्च पदे पदे।।"
अर्थात्—
"ईश्वर की अवहेलना से सारा कार्य ना केवल सर्वथा निष्फल हो जाता है, अपितु पग-पग पर विपत्ति भी आती है"।
जब व्यक्ति शास्त्रों में बताए गये कार्य के विपरीत कार्य करता है या शास्त्रों में बताई गयी मर्यादा का उल्लंघन करता है तब ईश्वर की आज्ञा की अवहेलना ही होती है।
श्रीमद्भागवत पुराण के छठे स्कन्ध के पहले अध्याय में भी कहा गया है कि...
"वेदप्रणिहितो धर्मो ह्यधर्मस्तद्विपर्यय: ।"
अर्थात्—
वेदों में विहित बताए गये कर्मो को करना धर्म है और उसके विपरीत (वेदों में निषिद्ध) कार्यों को करना अधर्म है।
श्रीमद् भगवद्गीता में श्री कृष्ण भगवान् अर्जुन से कहते हैं...
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
अर्थात्—
जो मनुष्य शास्त्रविधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को, न सुख को और न परमगति को ही प्राप्त होता है।।१६.२३।।
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।
अर्थात् —
अतः तेरे लिए कर्तव्य और अकर्तव्य की व्यवस्था (निर्णय) में शास्त्र ही प्रमाण है, शास्त्रोक्त विधान को जानकर तुझे अपने कर्म करने चाहिए।।१६.२४।।
इस विषय में शिव पुराण में कहा गया है–
यो वैदिकमनावृत्य कर्म स्मार्तमथापि वा ।
अन्यत् समाचरेन्मर्त्यो न संकल्पफलं लभेत् ॥
अर्थात् —
जो मनुष्य वेदों तथा स्मृतियों में कहे हुए सत्कर्मों की अवहेलना करके दूसरे कर्म को करने लगता है, उसका मनोरथ कभी सिद्ध नहीं होता।
(शिव पुराण विद्येश्वर संहिता २१। ४४)
अतः वेदादि शास्त्रों में जिन देवी-देवताओं के पूजन का विधान है, सनातनियों को केवल उन्हीं की पूजा करनी चाहिये और कलियुगी पाखंडी गुरुओं के प्रपंचों में पड़ने के स्थान पर प्राचीन 'सनातन वैदिक आर्य हिंदू' संस्कृति द्वारा निर्देशित परम्परा प्राप्त धर्म गुरुओं तथा अपने प्राचीन धर्म ग्रंथो ही अनुसरण करना चाहिए।
"शिवार्पणमस्तु"
- Astrologer Manu Bhargava
सोमवार, 1 अगस्त 2022
पंचदेवोपासना
प्राचीन 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धान्त' के अनुसार कौन हैं 'पंचदेव' और क्यों करते हैं 'पंचदेवों' की साधना ?
वस्तुतः परब्रह्म परमेश्वर ही पंचदेवों के रूप में व्यक्त हैं तथा सम्पूर्ण चराचर जगत में भी वही व्याप्त हैं।
वेदानुसार निराकार ब्रह्म के साकार रूप हैं पंचदेव—
परब्रह्म परमात्मा (आदि शक्ति) निराकार व अशरीरी हैं, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उनके स्वरूप का ज्ञान असंभव है इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार स्वरूप को ५ महान शक्तियों के रूप में प्रकट किया और उनकी उपासना करने का विधान निश्चित किया। निराकार परब्रह्म की यही ५ शक्तियां 'पंचदेव' कहलाती हैं।
हमारे शास्त्रों में इन पंचदेवों की मान्यता पूर्ण ब्रह्म के रूप में है, जिनकी साधना से पूर्ण ब्रह्म की ही प्राप्ति होती है। इसलिये अपनी-अपनी अभिरुचि के अनुसार इन पंचदेवों में से किसी एक को अपना इष्ट देव मानकर उनकी उपासना करने का विधान है।
यह पंचदेव हैं–गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु और सूर्य।
इनमें से गणपति के उपासक–गाणपत्य , शिव के उपासक–शैव, शक्ति के उपासक–शाक्त, विष्णु के उपासक–वैष्णव तथा सूर्य के उपासक–सौर कहे जाते हैं और जो मनुष्य इन पांचों देवी-देवताओं की उपासना करते हैं उन्हें 'स्मार्त' कहा जाता है।
अत्यन्त हास्यास्पद बात है कि निराकार परब्रह्म परमेश्वर की जो शक्तियां भिन्न होकर भी एक ही शक्ति का अंश हैं उनके नाम पर बनने वाले सम्प्रदाय आपस में एक दूसरे के देवी-देवताओं को नीचा दिखाने का कार्य करते हैं जबकि इन सम्प्रदायों के निर्माण का उद्देश्य मानव को उसकी अभिरुचि के अनुसार साधना के मार्ग पर आगे बढ़ाकर सद्गति प्राप्त करवाना था।
अति तो तब हो गई जब इन पंचदेवों की शक्तिशाली ऊर्जा से उत्पन्न होने वाले 'अवतारों' के नाम पर भी नए-नए सम्प्रदाय अस्तित्व में आ गए, जिसमें से कुछ तो प्राचीन ज्ञान परम्परा का अनुसरण करते हैं किन्तु अधिकांश का प्राचीन सनातन ज्ञान परम्परा से कोई लेना-देना ही नहीं है और इनका उद्देश्य केवल अपने चेलों की संख्या बढ़ाकर अपने-अपने 'Cult' के महान गुरु की पदवी प्राप्त करके सनातनी जनता से धन ऐंठना मात्र है।
वस्तुतः कलियुगी व्यक्ति-विशेषों द्वारा बनाए गए इन 'Cults' को सम्प्रदायों की श्रेणी में रखना भी इन पंचदेवों की साधना के लिए बनाए गए प्राचीन सम्प्रदायों का अपमान करना ही है। इस विषय पर मेरे यह ब्लॉग देखें—
https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2020/04/blog-post_28.html
https://astrologermanubhargav.blogspot.com/2019/07/dharm-yudh.html
इस प्रकार यहां मैंने पंचदेवों और उनकी साधना के विषय में वर्णन किया जिससे सभी सनातनी भाई-बहन विभिन्न Cults के प्रपंच में पड़ने के स्थान पर अपने मूल 'सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत' का अनुसरण करके मुक्ति प्राप्त कर सकें।
(शिवार्पणमस्तु)
-Astrologer Manu Bhargava