भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों मे अपना मस्तक रखते हुये तथा 'कालीतत्व रहस्य', दुर्गातत्व तथा पदार्थदर्श (शारदातिलक की व्याख्या) के रचनाकार और वेदांत तथा आगम शास्त्र के प्रकांड पंडित 'राघवभट्ट' जी को प्रणाम करते हुए मैं तंत्र शास्त्र में वर्णित उन चार पीठिकाओं का वर्णनं करने जा रहा हूँ जिनके बिना मंत्र सिद्धि नहीं की जा सकती। दक्षिणमार्गी, मध्यममार्गी तथा वाम मार्गी तीनों ही प्रकार के साधकों के लिए उपयोगी ये चार पीठिकायें इस प्रकार हैं-
१- श्मशान पीठ, २- शव पीठ, ३- अरण्य पीठ, 4- श्यामा पीठ
(श्मशान पीठ)
जिस साधना में प्रतिदिन रात्रि काल में श्मशान भूमि में जाकर यथाशक्ति विधि से मन्त्र का जाप किया जाता है उसे 'श्मशान' पीठ कहते हैं। जितने दिन का प्रयोग होता है, उतने दिन तक मन्त्र का साधन यथाविधि किया जाता है। अधिकांशतः तंत्र साधक इसी पीठ का आश्रय लेते हैं क्यों कि यह पीठ शेष तीन पीठिकाओं के अपेक्षाकृत सरल है।
(शव पीठ)
किसी मृत कलेश्वर के ऊपर बैठकर या उसके भीतर घुसकर मन्त्रानुष्ठान संपूर्ण करना 'शव-पीठिका' है। प्रायः वाममार्गियों में इस पीठिका की प्रधानता देखी जाती है। कर्णपिशाचिनी, उच्छिष्ठ चाण्डालिनी, कर्णेश्वरी, उच्छिष्ठ गणपति
आदि उग्र शक्तियों की साधना तथा अघोर पंथियों की साधनाएं इसी पीठिका के द्वारा सम्पन्न होती हैं।
(अरण्य पीठ)
मनुष्य जाति का जहां संचार न हो, हिंसक पशुओं जैसे बाघ, सिंह, भालू, भेड़िये, विषैले सर्प आदि जहां बहुतायत में निवास करते हों, ऐसे निर्जन वन-स्थान में किसी पवित्र वृक्ष अथवा शून्य मंदिर (जहां कोई मनुष्य न आता जाता हो) का आश्रय लेकर मन्त्र-साधना करना और निर्भयतापूर्वक मन को एकाग्र रखकर तल्लीन हो जाना 'अरण्य-पीठिका' है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि इसी पीठिका का आश्रय लेकर महान सिद्धियों को प्राप्त किया करते थे।
(श्यामापीठ)
यह अत्यंत कठिन से कठिनतर पीठिका है , बहुत कम मनुष्य इस पीठिका से उत्तीर्ण हो सकते हैं। एकांत में किसी षोडशवर्षीय, नवयौवना, सुंदर कन्या को वस्त्र-रहित कर, स्वयं उसके सम्मुख बैठकर साधक मन्त्र-साधने में तत्पर हो तथा मन मे काम-वासना के विचार लाना तो दूर एक पल के लिए भी अपने मन को विचलित न होने दे और कठोर ब्रह्मचर्य में स्थित रहकर मन्त्र का साधन करे, इसे ही 'श्यामा-पीठिका' कहते हैं।
जैन-ग्रन्थ में लिखा है कि द्वैपायनपुत्र मुनीश्वर शुकदेव, स्थूलिभद्राचार्य और हेमचंद्राचार्य ने इस पीठिका का आलम्बन लेकर मन्त्र-साधना की थी तथा वह सिद्ध हुये थे।
चेतावनी-
अंतिम और सर्वाधिक कठिन पीठिका (श्यामा पीठ) का वर्णन मैंने यहां केवल ज्ञान देने के उद्देश्य की पूर्ति मात्र के लिये किया है तथा यह पीठ कंठ तक वासना में डूबे कलियुगी मनुष्यों के लिए नहीं है, जिसका कारण यह है कलियुगी मनुष्यों में इतना संयम नहीं है कि वह इस पीठिका से उत्तीर्ण हो सकें तथा यह हमारी वर्तमान न्याय-व्यवस्था द्वारा दंडनीय अपराध भी है। अतः वर्तमान न्याय-व्यवस्था का सम्मान करते हुए भी किसी भी व्यक्ति को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये। तब भी यदि कोई साधक इस पीठिका का प्रयोग सिद्धियों की प्राप्ति के लिये करता है तो वह अपने विनाशकारी कर्म के लिये स्वयं ही उत्तरदायी होगा।
''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava