Translate

गुरुवार, 17 मार्च 2022

देव गुरु 'बृहस्पति' का स्वराशि 'मीन' में प्रवेश

13 अप्रैल 2022 को प्रातः 11 बजकर 21 मिनट ('दिल्ली समयानुसार') पर देव गुरु बृहस्पति 'कुंभ' राशि से निकलकर अपनी राशि 'मीन' में प्रवेश करेंगे और यहां वह 22 अप्रैल 2023 को प्रातः 3 बजकर 32 मिनट तक रहेंगे तत्पश्चात मेष राशि में प्रविष्ट हो जाएंगे। देव गुरु बृहस्पति का स्वग्रही होना देव शक्तियों के जागरण के लिये मार्ग प्रशस्त करने वाला तथा आसुरी शक्तियों को भयाक्रांत करने वाला होगा। इसलिए यह एक वर्ष सनातन धर्म के उत्थान के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रहा है।

लगभग 1 वर्ष 10 दिन का यह अवधिकाल- शिक्षा, ज्ञान, आध्यात्म और बैंक से सम्बंधित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिये अत्यंत शुभ फलदायक होगा। विद्यार्थियों तथा साधकों के लिए भी गुरु का स्वराशि में गोचर बहुत शुभ होगा।

देव गुरु 'बृहस्पति' के 'स्वराशि' में संचार करने के कारण इस एक वर्ष में लगभग 70% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह हो जायेंगे। केवल उन्हीं कन्याओं के विवाह में रुकावटें आयेंगीं जिनकी जन्म-कुंडलियों में सप्तम भाव, सप्तमेश और विवाह का कारक 'बृहस्पति' अशुभ स्थिति में होंगे और दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्म-कुंडली के उन्हीं अशुभ ग्रहों की चल रही होंगी जिन्होंने सप्तम भाव, सप्तमेश और बृहस्पति को अपने पाप प्रभाव से ग्रसित किया हुआ होगा।

यद्यपि सनातन धर्म की मर्यादा के अनुसार पुत्र एवं पुत्री दोनों की ही प्राप्ति एक समान सुखदायक होती है तथापि बृहस्पति के प्रभाव के कारण इस एक वर्ष में विश्व भर में जन्म लेने वाली लगभग 70% संतानें 'पुत्र' के रूप में जन्म लेंगी । यहाँ तक कि पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों में भी यही अनुपात देखने को मिलेगा।

आइए जानते हैं कि गोचर में बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ेगा।

मेष राशि - मेष लग्न
मेष राशि-मेष लग्न वाले जातकों का गुरु 12वें भाव में संचार करने के कारण जातक का धन शुभ कार्यों में खर्च होगा, दादी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, पिता को प्रॉपर्टी, वाहन का सुख तथा स्वयं को कोर्ट केस से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जो जातक अनिद्रा की समस्या से पीड़ित हैं उन्हें अनिद्रा रोग से मुक्ति मिलेगी और जिन जातकों की आयु का अंतिम पड़ाव आ चुका है और जन्म-कुंडली में भी अकेले बृहस्पति 12वें भाव में स्थित हैं, उन जातकों को मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग की प्राप्ति होगी। बाएँ नेत्र तथा एड़ी-पंजे के रोग से सम्बंधित रोगियों को चिकित्सा से लाभ होगा। इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को धन का लाभ होगा।

वृष राशि - वृष लग्न
वृष राशि-वृष लग्न वाले जातकों का बृहस्पति 11वें भाव (लाभ स्थान) में अपनी ही राशि में संचार करने के कारण स्वयं को सभी प्रकार का लाभ होगा तथा इनके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को स्वास्थ्य एवं आयु का लाभ होगा और उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इन जातकों के ससुराल में प्रॉपर्टी, वाहन आने के योग बनेंगे। पिता को गले-छाती के रोगों की समस्या से तथा स्वयं को पिंडलियों की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माता यदि मरणासन्न अवस्था में हुईं तो गुरु के इस राशिपरिवर्तन के साथ ही वह चमत्कारिक ढंग से ठीक हो जाएंगी। इस राशि-लग्न वाली कन्याओं के विवाह में आ रहे अवरोध अब दूर होंगे।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
मिथुन राशि-मिथुन लग्न वाले जातकों की सरकारी नौकरी से सम्बंधित सभी बाधाएँ दूर होंगी तथा इस राशि-लग्न के जिन जातकों के सरकारी कार्य रुके हुए हैं, अब वह पूर्ण होंगे और प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे । जो लोग राजनीति में हैं वह राजनीति में उच्च पद प्राप्त करेंगे। इनके बृहस्पति के दशम भाव में संचार करने से इनके पिता को वर्ष भर धन की प्राप्ति होती रहेगी। इनके पिता के दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग दूर होंगे तथा इनके जीवन साथी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। सास की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की वृद्धि होगी पंच महापुरुष राजयोग में से एक 'हंसक' नामक राजयोग इनके गोचर से 'दशम भाव' में बनने जा रहा है जो इनको जीवन में नवीन ऊँचाइयाँ प्राप्त करवाने मे सहायक होगा।

कर्क राशि - कर्क लग्न
कर्क राशि-कर्क लग्न वाले जातकों के स्वराशि के गुरु के नवम् भाव में संचार करने के कारण इनके भाग्य में चल रहे सभी अवरोध अब दूर होंगे। इनके पिता को आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। यदि इनकी जन्मकुंडली में नवम् भाव और नवमेश की स्थिति भी शुभ हुई तो इन जातकों की अचानक से धर्म में रूचि बढ़ जाएगी और यह देश के भीतर ही धार्मिक यात्राएँ करेंगे । ईश्वर की कृपा से यह लोग अपने अगले जन्म में मिलने वाले जन्म-स्थान की यात्रा कर सकेंगे जिससे अगला जन्म पाने पर यह ऐसी अनुभूति करेंगे कि वह पहले भी इस स्थान पर आ चुके हैं । इनके ससुराल में धन की वृद्धि होगी, इनके छोटे साला-साली यदि कष्ट में हुए तो उनको उस कष्ट से मुक्ति मिलेगी तथा इनके छोटे मामा-मौसी को प्रॉपर्टी और वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे। इनके स्वयं के पीठ अथवा कमर की पीड़ा चमत्कारिक ढंग से दूर हो जाएगी और इनकी संतान भाव से पंचम में स्वराशि के गुरु होने से इनकी संतान को प्रतियोगी परीक्षाओं मे सफलता प्राप्त होगी। इनकी माताएँ यदि किडनी, लीवर, आंतो के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अत्यधिक सुधार होगा तथा इनके जीवन साथी के गले-छाती के रोग समाप्त होंगे।

सिंह राशि - सिंह लग्न
सिंह राशि-सिंह लग्न के जो जातक मरणासन्न अवस्था में थे, वह गुरु के इस राशि परिवर्तन वाले दिन से ही चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने आरम्भ हो जायेंगे। स्वराशि के गुरु का इनके अष्टम भाव में गोचर इनके जीवन साथी के धन की वृद्धि करने वाला होगा तथा उनके दाहिने नेत्र तथा मुख के रोग अब दूर हो जायेंगे। इनकी संतान को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता के बाएं नेत्र के विकार ठीक होंगे और उनका धन शुभ कार्यों में खर्च होगा। यदि इनके पिता पर कोई कोर्ट केस हुआ तो उन्हें अब उसमें विजय प्राप्त होगी। इस राशि-लग्न वाले जातकों की माताओ को पेट के रोगों में सुधार देखने को मिलेगा।

कन्या राशि - कन्या लग्न
कन्या राशि-कन्या लग्न वाली 90% विवाह योग्य कन्याओं के विवाह इस वर्ष हो जायेंगे और इस राशि लग्न वाली जिन स्त्रियों के जीवन साथी के स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहे थे अथवा संबंधों में मतभेद चल रहे थे अब वह ठीक होने लगेंगे। यहाँ तक कि इस राशि-लग्न वाले किसी जातक ने अपने जीवन साथी से तलाक (सनातन हिन्दू संस्कृति में इसके लिए कोई शब्द और स्थान ही नहीं है) के लिए कोर्ट केस किया हुआ है तो वह उसे वापस ले लेंगे। आपके बृहस्पति के कारण आपके जीवन साथी को आयु, मान-सम्मान का भी सुख प्राप्त होगा । इस राशि-लग्न के जातकों के गोचर में सप्तम भाव में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बन जाने से इनके जीवन साथी, ताऊ और बड़ी बुआ को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे तथा इनकी माता को प्रॉपर्टी और वाहन सुख की प्राप्ति के योग बनेंगे।

तुला राशि - तुला लग्न
तुला राशि-तुला लग्न वाले जातकों के गोचर में स्वराशि के गुरु के छठे भाव में संचार करने के कारण ऐसे व्यक्ति अपने पराक्रम और ज्ञान से अपने शत्रुओं को पराजित करेंगे और यदि पराजित कर सकने योग्य ना हुए तो दैवीय शक्तियों की सहायता से इनके शत्रु स्वयं ही नष्ट हो जायेंगे। इस राशि-लग्न वाले जिन जातकों को किडनी, लिवर, आंतों की समस्या चल रही थी वह अब ठीक होने के योग बनेंगे। इनके छोटा मामा-छोटी मौसी में से यदि कोई मरणासन्न अवस्था में हुआ तो वह अब ठीक होने लगेगा। इनके छोटे भाई-बहनों एवं मित्रों को प्रॉपर्टी तथा वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि इनकी माता गले छाती के रोगों से ग्रसित हुईं तो उनके स्वास्थ्य में अब सुधार होगा। इस राशि-लग्न वाले जातकों के पिता के सरकारी कार्यों की रूकावटें दूर होंगी और यदि इनके पिता सरकारी नौकरी में हैं तो उनको प्रमोशन के योग बनेंगे अथवा उन्हें सरकार से कोई सहायता प्राप्त होगी। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के लिए यह समय अत्यंत शुभ है।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न वाले जातकों के बृहस्पति उनके पंचम स्थान में गोचर करेंगे, जिसके कारण उनको संतान की प्राप्ति के प्रबल योग बनेंगे। यदि ये राजनीति में हैं तो इनको मंत्री पद की प्राप्ति के प्रबल योग हैं। इस राशि-लग्न वाले पेट-हार्ट के रोगियों के स्वास्थ्य में भी बहुत सुधार होने के योग बनेंगे। यदि यह विधार्थी हैं तो यह परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होंगे। इनकी माता को धन प्राप्ति के योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब में सुख की वृद्धि होगी। पंचमेश गुरु के अपने ही स्थान में गोचर करने से इस राशि-लग्न के जातकों के प्रेम संबंधों में मधुरता आएगी। यदि किसी की संतान उसको छोड़कर दूर चली गयी है तो उसके भी वापसी के योग बनेंगे। इस समय पर आपके पूर्व जन्म के इष्ट देवता आपको अपनी अनुभूति करवाएंगे, यदि आप साधक हैं तो उनके संकेतों को आपको समझना चाहिए। इस अवधिकाल में आपके इष्ट देवता आपका हर प्रकार से सहयोग करेंगे तथा पूर्व जन्म के परिचित लोगों से आपका मिलना होगा, जिसके कारण आपको अनुभूति होगी कि आप पहले से उन्हें जानते हैं। यदि इस राशि-लग्न में जन्म लेने वाला कोई उच्च कोटि का साधक इस एक वर्ष के अवधिकाल में अपने इष्ट देवता की साधना करेगा तो उसको सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी।

धनु राशि - धनु लग्न
धनु राशि-धनु लग्न वाले जातकों के लिये उनके चतुर्थ भाव में 'हंसक'नामक पंच महापुरुष राजयोग बनेगा जो कि इनको वाहन, प्रॉपर्टी और नौकर-चाकरों का सुख प्रदान करने वाला होगा। इनके माता की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की भी वृद्धि होगी, तथा माता से इनके संबंधों में सुधार होगा। केंद्र में स्वराशि के गुरु का संचार इन्हें सभी प्रकार के सुख-संसाधनों का भोग करवाने वाला होगा। यदि इनका किसी सम्पत्ति को लेकर कोई विवाद चल रहा होगा तो उसका भी निस्तारण इसी एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहा है। पिता के स्थान 'नवम् भाव' से अष्टम (उनकी आयु भाव) में गुरु के स्वराशि में संचार होने से यदि किसी के पिता मरणासन्न अवस्था में भी हुए तो वह बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के साथ चमत्कारिक रूप से स्वस्थ होने लगेंगे। इस राशि-लग्न के जातकों के मित्रों और छोटे-भाई बहनों के लिए इस एक वर्ष के अवधिकाल में धन प्राप्ति के बहुत अच्छे योग बनेंगे। यदि आप जनता के बीच जाकर चुनाव लड़ना चाहते हैं तो लड़ सकते हैं, सफलता प्राप्त होने की प्रबल सम्भावना है।

मकर राशि - मकर लग्न
मकर राशि-मकर लग्न के जातकों के बृहस्पति उनके तृतीय भाव में संचार करने से इनके छोटे-भाई बहनों तथा मित्रों की आयु, स्वास्थ्य और मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इस राशि-लग्न के जातकों के विदेश यात्रा के प्रबल योग बनेंगे तथा इनके कुटुंब और बड़े मामा-बड़ी मौसी के धन की वृद्धि होगी। इनकी माता को यदि उनके बाएं नेत्र, एड़ी-पंजों में कोई समस्या रही हो तो उनको इस समय अपना उपचार करवा लेना चाहिए, लाभ होगा। इनके स्वयं के गले, सीधे हाथ और दाहिने कान में कोई समस्या रही हो तो उसका भी उपचार ये करवा सकते हैं,समस्या ठीक हो जाएगी।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न वाले जातकों के धन-कुटुंब के भाव में स्वराशि का बृहस्पति इन्हें बहुत अधिक धन प्राप्त करवाने जा रहा है, यदि किसी के कुटुंब में कलेश रहते हों तो वहां शांति स्थापित करने का यही समय है। इस एक वर्ष की अवधिकाल में आपके मुख से निकली अनेक बातें सत्य घटित होंगी। यदि आप ज्योतिष का कार्य करते हैं तो यह एक वर्ष आपके मुख से निकली हुई वाणी को सत्य घटित करवाने जा रहा है। आपको आपके बड़े मामा-बड़ी मौसी से अनेक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। आपके बड़े भाई-बहन,चाचा तथा छोटी बुआ को प्रॉपर्टी और वाहन प्राप्ति के योग बनेंगे। यदि किसी की माता को पैर में पीड़ा हो तो उसका भी निवारण होने जा रहा है। किन्तु आपके छठे भाव पर बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि आपके शत्रुओं को ऊँचाइयाँ प्रदान करने वाली होगी।

मीन राशि - मीन लग्न
मीन राशि-मीन लग्न वाले जातकों के लिए देव गुरु बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन उनके लग्न में 'हंसक' नामक पंच महापुरुष राजयोग बनाने जा रहा है जिसके कारण इनकी आयु, स्वास्थ्य और मान सम्मान में वृद्धि होगी, यदि आप सरकारी नौकरी में हैं तो आपके प्रमोशन के योग बनेंगे और यदि आप सरकारी नौकरी प्राप्त करना चाहते हैं तो यह समय बहुत अनुकूल है। यदि सरकारी ठेके लेते हैं अथवा सरकार से सम्बंधित कोई कार्य करते हैं तो आपको उसमें सफलता मिलेगी। आपके पिता यदि पेट-हार्ट की समस्या अथवा माता घुटनों की समस्या से ग्रसित हों तो उनको इन रोगों में स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त होगा। इस राशि लग्न वाले जातकों की माता यदि सरकारी नौकरी में हों तो उन्हें प्रमोशन मिलने के योग बनेंगे। मीन राशि की उन 90% कन्याओं के विवाह इस एक वर्ष के अवधिकाल में होने जा रहे हैं जिनकी जन्मकुंडली में पहले से ही बृहस्पति शुभ स्थिति में हैं और यदि ये पहले से ही विवाहित होंगी तो इनके पति के स्वास्थ्य और उनसे इनके संबंधों में बहुत सुधार देखने को मिलेगा। बृहस्पति की पंचम उच्च दृष्टि, पंचम भाव  पर होने से आपको पुत्र प्राप्ति के प्रबल योग हैं।


नोट- इस फलादेश का इस एक वर्ष में गुरु के साथ विभिन्न ग्रहों की युति-दृष्टि से जातकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही गोचर में होने वाले अन्य ग्रहों के राशि परिवर्तनों का। यहाँ केवल बृहस्पति के अपनी राशि 'मीन' में होने के फलादेश का वर्णन किया जा रहा है।

इसके अतिरिक्त यदि इन राशि-लग्नों में जन्म लेने वाले किसी जातक की स्वयं की जन्म-कुंडली में बृहस्पति ग्रह अपनी शत्रु राशि, नीचराशि अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव की स्थिति में होंगे तथा उनकी दशा-अंतर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी, तो उन्हें इन सब उत्तम फलों की प्राप्ति नहीं होगी अथवा कम होगी।

इसके विपरीत जिन जातकों की जन्म-कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थानों के स्वामी होकर अपने मित्र या उच्च राशि में स्थित होकर शुभ प्रभाव में होंगे तथा उन्होंने उसका रत्न आदि धारण करके उसे शक्ति प्रदान की हुई होगी, उनके लिये बृहस्पति का यह राशि परिवर्तन अत्यंत शुभ प्रदान करने वाला होगा।
'शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

सूर्य का अपनी नीच राशि 'तुला' में प्रवेश



१७ अक्टूबर को दोपहर के १ बजकर १२ मिनट पर सूर्य अपनी मित्र राशि 'कन्या' से अपनी नीच राशि 'तुला' में प्रवेश कर जाएंगे और १६ नवम्बर दोपहर १ बजकर ०२ मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात अपनी मित्र राशि 'वृश्चिक' में चले जायेंगे ।

सूर्य का अपनी नीच राशि में प्रवेश सभी जातकों के लिए अशुभ फल प्रदान करने वाला होगा । विशेषकर उच्च अधिकारी तथा विश्व के बड़े राजनेता इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे क्योंकि सूर्य उनका कारक होता है तथा केवल वही जातक सूर्य के इस अशुभ गोचर से प्रभावित नहीं होंगे जिनकी जन्म-कुण्डलियों में सूर्य शुभ स्थिति में होंगे तथा जिनकी दशा-अन्तर्दशा भी शुभ ग्रहों की चल रही होगी ।

इसके विपरीत यदि विचार करें तो जिन जातकों की जन्म-कुण्डलियों में सूर्य पहले से ही नीच राशि में स्थित होंगे अथवा अत्यधिक पाप प्रभाव में होंगे, उनके लिए सूर्य का यह गोचर-काल अत्यन्त कष्टकारी सिद्ध होगा ।

चिकित्सा ज्योतिष के अनुसार यदि विचार करें तो सूर्य; मनुष्य के शरीर में "हृदय, उदर (Stomach), हड्डियां और दाहिना नेत्र" इन ४ अंगों का निर्माण करता है । अतः इस अवधिकाल में विश्व भर में इन चारों अंगों से सम्बंधित रोगियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होगी और इनसे सम्बंधित Operations में सफलता की संभावना भी कम रहेगी ।

वैज्ञानिक दृष्टि से यदि देखें तो सूर्य का अपनी नीच राशि तुला में प्रवेश सूर्य से उत्पन्न होने वाली सौर सुनामियों ( Solar Tsunami) में वृद्धि करेगा जिसके दुष्प्रभाव के कारण पृथ्वी पर भी भयानक भूकम्प और चक्रवात आने की संभावना बढ़ जाएगी ।

आध्यात्मिक दृष्टि से यदि विचार करें तो गोचर में 'आत्मा के कारक' सूर्य के अपनी नीच राशि में संचार करने से इस अवधिकाल में मनुष्यों की आत्मिक ऊर्जा कमजोर हो जाएगी और जिसके कारण उनमें पाप-पुण्य का बोध कम हो जाएगा। ऐसे में केवल धर्म के मर्म को समझने वाले आध्यात्मिक मनुष्य ही पाप कर्मों में लिप्त होने से बच सकेंगे और ऐसे महान मनुष्य ही अपनी आत्मिक ऊर्जा को बनाये रखने के लिए यत्न कर सकेंगे ।

सभी राशियों - लग्नों के जातकों पर सूर्य के इस राशि परिवर्तन का निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा-
मेष राशि - मेष लग्न
इस राशि-लग्न के जातकों का सूर्य पंचम भाव का स्वामी होकर सप्तम भाव में नीच का होने से आपकी सन्तान को गले-छाती की समस्या तथा आपके जीवन साथी, ताऊ अथवा बड़ी बुआ के सिर में चोट एवं पीड़ा दे सकता है । इस राशि-लग्न वाले जातक स्वयं के पेट का ध्यान रखें । मेष राशि-लग्न वाली गर्भवती स्त्रियों को इस अवधिकाल में यत्न पूर्वक अपनी सन्तान की सुरक्षा करनी चाहिए । प्रतियोगी परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों के लिए भी यह समय शुभ नहीं है।

वृष राशि - वृष लग्न
सूर्य के आपके चतुर्थ भाव के स्वामी होकर छठे भाव में नीच राशि में गोचर करने के कारण आपकी माता को गले-छाती की समस्या तथा उनके चोटिल होने के योग बनते हैं  और यह समय काल आपके स्वयं के वाहन से यात्रा के लिए भी शुभ नहीं है। इस अवधिकाल में प्रॉपर्टी के लेनदेन से बचें ।

मिथुन राशि - मिथुन लग्न
इस अवधिकाल में आपके छोटे भाई - बहनों को गले-छाती की समस्या हो सकती है । स्वयं के पेट व संतान का ध्यान रखें । इस राशि- लग्नों वाली गर्भवती स्त्रियां खानपान का विशेष ध्यान रखें अन्यथा संतान हानि हो सकती है। मिथुन राशि-लग्न वाले हृदय रोगी इस अवधिकाल में अपने चिकित्सकों से परामर्श लेते रहें । प्रेम संबंधों में विवाद की स्थिति से बचें ।

कर्क राशि - कर्क लग्न
इस अवधिकाल में आप लंबी दूरी की यात्रा करने से बचें, आपके बड़े मामा-बड़ी मौसी के लिए यह समय संकट का है। कुटुम्ब में संपत्ति को लेकर कोई विवाद हो सकता है ।

सिंह राशि - सिंह लग्न
आपके छोटे भाई-बहनों के लिए यह समय ठीक नहीं है उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखें तथा इस अवधिकाल में स्वयं विदेश यात्रा न करें । किसी मित्र से आपका विवाद हो सकता है, जिसके कारण आपको मान-सम्मान की हानि हो सकती है ।

कन्या राशि - कन्या लग्न
सूर्य १२वें भाव का स्वामी होकर आपके द्वितीय भाव में नीच का होने के कारण आपकी धन हानि के योग बनेंगे तथा हॉस्पीटल एवं रोगों पर होने पर आपके धन का व्यय होगा । इस अवधिकाल में आपके नेत्रों अथवा दांतों में कोई समस्या आ सकती है । कृपया अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा कुटुम्ब में व्यर्थ का विवाद उत्पन्न होगा ।

तुला राशि - तुला लग्न
इस अवधिकाल में आपके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को गले छाती की कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपके सिर में चोट लगने अथवा पीड़ा होने के योग बनेंगे। इस समय आपके क्रोध में अत्यन्त वृद्धि होगी जिस पर आपको नियंत्रण रखना होगा अन्यथा जीवन साथी से विवाद हो जाएगा ।

वृश्चिक राशि - वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-लग्न वाले जो जातक सरकारी या प्राइवेट नौकरी करते हैं उनके लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। यदि आप सरकारी ठेके लेते हैं तो यह समय आपके लिए बहुत अशुभ है । इस राशि-लग्न के जो जातक सरकारी अधिकारी हैं अथवा बड़े राजनेता हैं उनको सरकार अथवा न्यायालय के कारण कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । कृपया अपनी सास के स्वास्थ्य का ध्यान रखें तथा स्वयं अपने घुटनों की चोट से बचें । आपके पिता के धन की कोई हानि हो सकती है ।

धनु राशि - धनु लग्न
इस अवधिकाल में आपके पिता को गले-छाती तथा आपको आपकी पीठ या कमर में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है । आपके भाग्य के लिए यह समय शुभ नहीं है । आपके बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ के लिए भी यह समय अशुभ है ।

मकर राशि - मकर लग्न
इस राशि-लग्न के जातकों की नौकरी जाने के योग बनेंगे अतः इस अवधिकाल में अपने कार्य स्थल पर कोई विवाद न होने दें । अष्टमेश होकर सूर्य अपनी नीच राशि में आपके दशम भाव में संचार करने के कारण आपको अपने घुटनों की चोट से बचाव करना चाहिये। कृपया अपनी अपनी सास के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

कुम्भ राशि - कुम्भ लग्न
आपके जीवन साथी को गले-छाती की कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है तथा उनका आपके पिता या अपने छोटे भाई-बहनों से कोई विवाद हो सकता है । यदि आपके जीवन साथी इस अवधिकाल में कोई विदेश यात्रा पर जा रहें हों तो उनके लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। आपको स्वयं अपनी पीठ और कमर में कोई पीड़ा उत्पन्न हो सकती है कृपया उसका ध्यान रखें । यह समय आपके भाग्य के लिए भी ठीक नहीं है।

मीन राशि - मीन लग्न
अपने छोटे मामा- छोटी मौसी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें उनको मृत्यु तुल्य कष्ट उत्पन्न हो सकता है । यदि पहले से ही वह आयु के अंतिम पड़ाव पर हुए तो इस अवधिकाल में उनके प्राणों पर भारी संकट रहेगा । यदि आपका कोई कोर्ट केस चल रहा है तो उसमें आपको कठिनाई उत्पन्न हो सकती है । अष्टम भाव जन्मकुंडली में सर्वाधिक गहरा समुद्र है और नीच के सूर्य का संचार आपके अष्टम भाव में ही है, अतः इस समय आप समुद्री यात्रा करने से बचें ।

नोट- यहां केवल सूर्य के गोचर में राशि परिवर्तन से होने वाले शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है, अन्य ८ ग्रहों के गोचर में शुभाशुभ फल का नहीं । अतः अपने-अपने राशि-लग्नों पर केवल सूर्य की स्थिति का ही विचार करें ।
"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 22 अगस्त 2021

बुध का अपनी उच्च राशि 'कन्या' में प्रवेश



26 अगस्त को दिन के 11 बजकर 19 मिनट पर ग्रहों के राजकुमार 'बुध' अपनी मित्र राशि 'सिंह' से अपनी उच्च राशि 'कन्या' में प्रवेश कर जाएंगे और 22 सितम्बर प्रातः 8 बजकर 9 मिनट तक वहीं संचार करेंगे तत्पश्चात अपनी मित्र राशि 'तुला' में चले जायेंगे।

बुध का अपनी उच्च राशि में प्रवेश उन सभी जातकों के लिए अत्यन्त शुभ फल प्रदान करने वाला होगा, जिनकी जन्म-कुंडलियों में बुध शुभ स्थिति में होगा और जिनकी दशा-अन्तर्दशा भी उनकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों की ही चल रही होगी।

इस अवधिकाल में बुध 1 से 15 अंश तक होने पर अपनी उच्च राशि का फल , 15 अंश से 20 अंश तक मूलत्रिकोण का फल तथा 20 से 30 अंश तक स्वराशि का फल प्रदान करेगा। अतः इस विषय में किसी को भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है ।

उन व्यापारियों, वक्ताओं, बैंक में कार्यरत कर्मचारियों, कंसल्टेंसी देकर धन कमाने वालों, वकीलों, शिक्षकों, अकाउंट्स और प्रकाशन से सम्बंधित कार्य करने वालों तथा लेखकों के लिए यह समय अत्यन्त शुभफल प्रदान करने वाला होगा जिनकी जन्म-कुंडली में बुध ग्रह पहले से ही अच्छी स्थिति में है ।

गले, त्वचा, वाणी, मिर्गी, मस्तिष्क और अस्थमा से सम्बंधित रोगों से ग्रसित रोगियों के लिए यह समय-काल उनके स्वास्थ्य में अत्यन्त लाभ प्रदान करने वाला होगा ।

सभी राशियों-लग्नों वाले जातकों पर बुध के इस राशि परिवर्तन का निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा-

मेष राशि-मेष लग्न
आपके छोटे मामा-मौसी को स्वास्थ्य का लाभ होगा, उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी तथा आपके शत्रु शान्त होंगे।

वृष राशि-वृष लग्न
आपकी संतान को स्वास्थ्य का लाभ होगा तथा आपको अपने इष्ट देवता की कृपा प्राप्ति से अकस्मात् धन लाभ और शेयर मार्केट से धन की प्राप्ति होगी । प्रेम संबंधों में चल रहे विवाद समाप्त होंगे ।

मिथुन राशि-मिथुन लग्न
नया वाहन अथवा कोई प्रॉपर्टी लेने जा रहे हैं तो ले सकते हैं, माता को स्वास्थ्य का लाभ होगा। स्वयं को सुख की प्राप्ति होगी तथा मान-सम्मान में वृद्धि होगी । लंबी दूरी की यात्रा के लिए यह समय शुभ है।

कर्क राशि-कर्क लग्न
आपके छोटे भाई-बहनों को स्वास्थ्य का लाभ होगा तथा उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी । विदेश यात्रा के लिए यह समय अनुकूल रहेगा।

सिंह राशि-सिंह लग्न
इस राशि-लग्न के जातकों को इस अवधिकाल में अत्यधिक धन लाभ होगा, मधुर वाणी के प्रयोग से सभी कार्य बनेंगें । आपके बड़े भाई-बहनों को स्वास्थ्य तथा धन का लाभ होगा । कुटुम्ब में शांति स्थापित होगी । दाहिने नेत्र के रोगियों को भी लाभ की प्राप्ति होगी ।

कन्या राशि-कन्या लग्न
लग्न में ही बुध के आ जाने से स्वयं को स्वास्थ्य का लाभ तथा मान-सम्मान की वृद्धि होगी। सरकारी नौकरी के योग बनेंगे। जो पहले से ही सरकारी कर्मचारी हैं उनको प्रमोशन के योग बनेंगे । आपकी ताई अथवा फूफाजी में से किसी का स्वास्थ्य खराब चल रहा होगा तो उनको स्वास्थ्य का लाभ होगा। यदि आपका बुध आपकी जन्म-कुंडली में वर्गोत्तम हुआ और आपकी राशि तथा लग्न दोनों ही 'कन्या' हुए तो इस समय आप साक्षात् काल के मुख से भी बाहर निकल आयेंगे अर्थात् काल भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा ।

तुला राशि-तुला लग्न
बाएं नेत्र रोगियों को लाभ होगा, शुभ कार्यों में धन का खर्चा होगा, बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को धन की प्राप्ति होगी तथा दादी के स्वास्थ्य में सुधार होगा ।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
बड़े भाई-बहनों, चाचा तथा छोटी बुआ को स्वास्थ्य का लाभ होगा तथा उनके मान सम्मान में वृद्धि होगी। यदि किसी जातक की माता मरणासन्न अवस्था में हुईं तो चमत्कारिक रूप से वह ठीक होने लगेंगी।

धनु राशि-धनु लग्न
आपके जीवन साथी को सुख की प्राप्ति होगी तथा आपके सभी सरकारी कार्य बनेंगे । आपको सरकारी नौकरी की प्राप्ति के योग बनेंगे तथा जो लोग राजनीति में सक्रिय हैं उनको अपनी पार्टी में उच्च पद की प्राप्ति होगी।

मकर राशि-मकर लग्न
आपके पिता को स्वास्थ्य तथा मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। आपके भाग्य में जो रुकावटें आ रही थीं वह अब दूर होंगी । देश में ही यात्राओं के योग बनेंगे । यदि जन्मकुंडली में देव गुरु बृहस्पति भी शुभ स्थिति में हुए तो इस अवधि काल में आपके धार्मिक कार्य सम्पन्न होंगे।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
आपके जीवनसाथी को धन की प्राप्ति के योग बनेंगे। इस राशि-लग्न के जातक यदि मरणासन्न अवस्था में हुए तो चमत्कारी रूप से उनको स्वास्थ्य का लाभ होगा। आपके बड़े मौसा-बड़ी मामी के भी स्वास्थ्य तथा मान-सम्मान में वृद्धि होगी ।

मीन राशि-मीन लग्न
आपके जीवनसाथी, आपकी बड़ी बुआ तथा ताऊ को स्वास्थ्य लाभ तथा उनके मान-सम्मान में वृद्धि होगी । आपके अपने जीवनसाथी के साथ संबंधों में मधुरता आएगी। आपको अपने व्यापार तथा पार्टनरशिप से लाभ होगा तथा आपकी माता को सुख की प्राप्ति होगी ।

नोट- यहां केवल बुध के गोचर में राशि परिवर्तन से होने वाले शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है, अन्य 8 ग्रहों के गोचर में शुभाशुभ फल का नहीं । अतः अपने-अपने राशि-लग्नों पर केवल बुध की स्थिति का ही विचार करें ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 16 अगस्त 2021

सूर्य का स्वराशि में प्रवेश

 
एक वर्ष के उपरान्त आज मध्य रात्रि १ बजकर १७ मिनट पर ग्रहों के राजा सूर्य का अपनी ही राशि 'सिंह' में प्रवेश होने जा रहा है, जो कि वहां १६ सितम्बर २०२१ तक रहेंगे। सिंह राशि में ग्रहों के सेनापति 'मंगल' पहले से ही विराजमान हैं ।

सिंह राशि में ग्रहों के राजा 'सूर्य' और सेनापति 'मंगल' का यह योग देश के प्रधानमंत्री और सभी सेनाओं के सेनाध्यक्षों को अत्यन्त शक्ति प्रदान करने वाला होगा। गोचर में ग्रहों का यही योग राज्यों में मुख्यमंत्रियों और उनके साथ कार्य करने वाले पुलिस के सर्वोच्च अधिकारियों को भी शक्ति प्रदान करने का कार्य करेगा। ऐसे में यदि केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो आगामी एक माह तक सभी प्रकार की राष्ट्र विरोधी शक्तियों को अत्यन्त तीक्ष्ण क्षति पहुँचा सकती हैं ।

प्राचीन काल में राजाओं के पास राज-ज्योतिषी इसी कार्य के लिए हुआ करते थे जो राजाओं को उचित मार्गदर्शन देकर राज्य की रक्षा करने में इस महान विधा का उपयोग किया करते थे। आज यदि भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित करना है तो इसमें ज्योतिष विद्या एक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए सूर्य का स्वराशि में प्रवेश निम्न फल प्रदान करने वाला होगा-
मेष राशि-मेष लग्न
सूर्य आपके पंचम भाव में गोचर करेंगे । इस राशि-लग्न के जातक यदि हृदय योगी हों और वह अपना ऑपरेशन करवाना चाहते हैं तो वह करवा सकते हैं, पढ़ने वाले छात्रों के लिए यह समय प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता लेकर आएगा । पेट में एसिड न बने इसका ध्यान रखें।

वृष राशि-वृष लग्न
प्रॉपर्टी से सम्बंधित रुकावटें दूर होंगी, माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा, नया वाहन लेने जा रहे हों तो ले सकते हैं।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
छोटे भाई-बहनों में से किसी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं चल रहा हो तो उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। स्वयं के पराक्रम में वृद्धि होगी। विदेश यात्रा की रुकावटें दूर होंगी।

कर्क राशि-कर्क लग्न
आकस्मिक धन लाभ के योग बनेंगे, वाणी स्थान पर सूर्य के आगमन के कारण आप आक्रामक वाणी का प्रयोग करेंगे, नेत्रों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है।

सिंह राशि-सिंह लग्न
आपके लग्न में ही सूर्य के आ जाने के कारण स्वास्थ्य का लाभ होगा, मान सम्मान की वृद्धि होगी किन्तु सूर्य की सप्तम शत्रु दृष्टि जीवन साथी के भाव मे पड़ने से जीवन साथी के साथ विवाद भी उत्पन्न होगा।

कन्या राशि-कन्या लग्न
12 वें भाव मे सूर्य का गोचर आपके नेत्रों के लिए कष्टकारक होगा, एड़ी से पंजों के मध्य कोई चोट लग सकती है।

तुला राशि-तुला लग्न
बड़े भाई बहनों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, आपके स्वयं के लाभ में वृद्धि होगी।

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न
सरकारी नौकरी के योग बनेंगे, इस राशि-लग्न के जो जातक ठेकेदारी का कार्य करते हैं उनको सरकारी ठेके मिलने के प्रबल योग बनेंगे, राजनीति में उच्च पद प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता से धन की प्राप्ति होगी, माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

धनु राशि-धनु लग्न
पिता के स्वास्थ्य में लाभ होगा, भाग्य से कार्यों में सफलता प्राप्त होगी, छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, विदेश यात्रा से बचें।

मकर राशि-मकर लग्न
जीवन साथी के नेत्रों में कष्ट होगा परंतु जीवन साथी को धन प्राप्ति के योग भी बनेंगे । यदि इस राशि-लग्न का कोई जातक मृत्युशैया पर हुआ तो अकस्मात् ही उसको अपने स्वास्थ्य में चमत्कारिक सुधार देखने को मिलेगा।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, जीवन साथी को मानसम्मान की प्राप्ति होगी परंतु आपका उनसे मतभेद हो सकता है।

मीन राशि-मीन लग्न
शत्रु पराजित होंगे। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति होगी परन्तु लंबी दूरी की यात्रा से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

नोट- जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा शुभ ग्रहों की चल रही हो और जन्मकुंडली में सूर्य भी अच्छी स्थिति में हुआ केवल उन्हीं जातकों को सूर्य के इस राशि परिवर्तन के शुभ फल प्राप्त होंगे और अशुभ फल भी घटित नहीं होंगे।

इसके विपरीत जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा उनकी जन्म कुंडली मे स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी और जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य भी अशुभ स्थिति में होंगे उनके लिए सूर्य का यह गोचर भी लाभकारी नहीं होगा।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 20 मई 2021

ज्योतिष का रहस्य : भाग - २


भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं वैदिक ज्योतिष के कुछ गूढ़ रहस्यों को प्रकट करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरा यह लेख ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को अनन्त काल तक दिशा प्रदान करता रहेगा। 

अपने इतने वर्षों के अध्ययन, शोध और Professional Career से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैंने यह पाया कि यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो, नीच राशि में हो और वह नीचभंगता को भी प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो वह ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर अशुभ फल ही देगा। 

यही नहीं, ऐसा ग्रह उस जातक के जन्म और चंद्र लग्न दोनों ही पर लगाए जाने वाले गोचर में यदि शुभ स्थिति में भी भ्रमण कर रहा होगा तब भी वह उस जातक को उतना शुभ फल देने में समर्थ नहीं हो सकेगा जितना किसी अन्य जातक को देगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में उस ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है।  

इसके विपरीत यदि कोई ग्रह किसी जातक की जन्मकुण्डली में शुभ स्थिति में है तो ऐसा ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर शुभ फल ही देगा। ऐसा ग्रह गोचर में यदि अशुभ स्थिति में भी भ्रमण करेगा तो भी वह ग्रह उस जातक को उतना अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होगा जितना किसी अन्य के लिए होगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में वह ग्रह शुभ स्थिति में है। 

साधारणतः ज्योतिषी इन बातों पर तो विचार कर लेते हैं कि ग्रहों का बलाबल कितना है ? नवांश कुण्डली में उनकी स्थिति कैसी है ? पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की किससे मित्रता-शत्रुता है ? ग्रह कारक-अकारक-मारक में से कौन सा है ? ग्रह को केन्द्राधिपति दोष तो नहीं है ? कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हो गया ? आदि-आदि ! 

किन्तु सूक्ष्म परीक्षण करते समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि वह ग्रह जिन राशियों के स्वामी हैं, उन राशियों में कौन -कौन से ग्रह स्थित हैं क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि यदि कोई ग्रह जिस भी राशि में होगा उस राशि के स्वामी ग्रह की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर वह ग्रह भी पीछे से अपना फल अवश्य देगा। 

उदाहरण के लिये मान लेते हैं किसी जातक की शुक्र की २० वर्ष की महादशा आरम्भ हुयी और और शुक्र की दोनों राशियों (वृष-तुला) पर राहु व शनि बैठे हैं और जन्मकुंडली में शुक्र अत्यन्त शुभ स्थिति में हैं, योगकारक भी हैं, तब भी ऐसे शुक्र की महादशा उस जातक को उतना शुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि इस पूरी शुक्र की महादशा में जब-जब शुक्र की अन्तर्दशा , प्रत्यन्तर्दशायें, सूक्ष्म दशायें और प्राणदशायें प्राप्त होंगी, तब-तब शुक्र की दोनों राशियों पर बैठे राहु- शनि भी पीछे से अपना अशुभ फल देते रहेंगे और इसे देखकर बड़े-बड़े ज्योतिषी भी अचंभित रह जायेंगे कि इतने अच्छे शुक्र की महादशा में भी जातक दुखी जीवन व्यतीत करने पर विवश है। 

यही नियम उन अशुभ ग्रहों की महादशाओं पर भी लगाया जायेगा, जिनकी राशियों पर कोई शुभ ग्रह स्थित है। तब ऐसे जातक को वह अशुभ ग्रह की महादशा भी उतना अशुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि उसकी राशियों पर स्थित शुभ ग्रह भी पीछे से अपना शुभ फल देंगे और यहाँ भी ज्योतिषी अचंभित रह जायेंगे कि इस जातक को इतने अशुभ ग्रह की दशा प्राप्त होने पर भी इसका समय इतना अच्छा कैसे व्यतीत हो रहा है। 

बात यहीं समाप्त हो जाती तो भी ठीक था परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र इतना विशाल समुद्र है कि जिसका पार पाना सबकी क्षमता की बात नहीं है, यह इसलिए क्योंकि अभी हमने नक्षत्रों की तो बात की ही नहीं। 

जब बात आती है कुण्डली के सूक्ष्म परीक्षण की तो हमें यह भी देखना होगा कि जातक की जन्मकुण्डली में सभी नवग्रह किन-किन नक्षत्रों पर स्थित हैं तथा जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही है, उस ग्रह के नक्षत्र पर कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं क्यूंकि पीछे से वह ग्रह भी उस दशा-अन्तर्दशा में अपना फल जातक को देता है जो दशापति के नक्षत्र पर स्थित होता है तथा दशापति ग्रह स्वयं उस ग्रह का भी प्रभाव लेकर कार्य करता है, जिसके नक्षत्र पर वह स्वयं स्थित होता है। 

अतः जब भी कोई जातक अपनी जन्मकुण्डली का परीक्षण करवाने हमारे पास आये तो हमें उसकी जन्मकुण्डली में इन सब बातों का ध्यान पूर्वक सूक्ष्म परीक्षण करके उसकी जन्मकुण्डली को दो भागों में विभक्त करना चाहिये। जिसमें प्रथम भाग में उसकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों को रखना चाहिये तथा द्वितीय भाग में अशुभ ग्रहों को। जिससे शुभ ग्रहों को ज्योतिषीय उपायों द्वारा और अधिक शक्ति प्रदान करके, उनके शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि की जा सके तथा अशुभ ग्रहों के दान, व्रत और उनकी विधिवत् शांति आदि करवाकर उनके अशुभ फल देने की क्षमता को न्यूनतम स्थिति में लाकर भविष्य में उस जातक के साथ घटित होने जा रही दुर्घटना-विपत्ति आदि की संभावनाओं को टाला जा सके। 

"शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 16 मई 2021

शार्ली एब्दो के हिन्दू विरोधी कार्टून का उत्तर

भारत में कोविड-19 महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन संकट के लिए भारतीयों, विशेष रूप से हिंदुओं का उपहास उड़ाने वाला एक कार्टून बनाया गया है । इस कार्टून में भारतीयों को पृथ्वी पर लेटे, ऑक्सीजन के लिए छटपटाते हुए दिखाया गया है।

इस कार्टून को फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका 'शार्ली एब्दो' द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिसमें हिंदू देवताओं पर कटाक्ष करते हुए पूछा गया है कि वह कोविड की दूसरी लहर में अपने धर्म के लोगों की सहायता क्यों नहीं कर सके।

 शार्ली एब्दो के कार्टून के साथ एक लाइन भी है जिसमें लिखा है, ”भारत में 33 करोड़ देवता और एक भी ऑक्सीजन पैदा करने में सक्षम नहीं ।”

शार्ली एब्दो पत्रिका को हम उन लोगों की भांति उत्तर नहीं देंगे, जिन्होंने अपने पैगम्बर का कार्टून बनाये जाने पर, जनवरी 2015 में फ्रांस के सबसे प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों सहित 17 व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया था।

ऐसी प्रतिक्रिया देना हम हिंदुओं के संस्कारों में इसलिये नहीं है क्योंकि हमारे यहां तो अनादि काल से ही शास्त्रार्थ की परंपरा रही है, जिसमें यह व्यवस्था की हुई है कि हमारे मत का विरोधी व्यक्ति भी आकर हमारे धर्म ग्रन्थों पर हमें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे सकता है।

हम उस धर्म का पालन करने वाले मनुष्य हैं जहां भगवान विष्णु की छाती में लात मारकर उन्हें अपमानित करने के पश्चात भी उनके स्नेह का पात्र बन जाने वाले भृगु जैसे ऋषि भी हुए हैं तो अपने फरसे के प्रहार से गणेश जी का दंत तोड़ने वाले भगवान परशुराम जी भी।

अपने भगवान का निरादर करने वाले किसी मनुष्य के साथ हम इस कारण से भी हिंसा नहीं करते कि इस मनुष्य में एक दिन ईश्वरीय चेतना जाग्रत होगी और यह धर्म के मार्ग पर आ जायेगा ।

किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें सनातन धर्म की मर्यादा के अनुरूप किसी विधर्मी को उत्तर देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः ईश्वर की प्रेरणा से मैं शार्ली एब्दो को अपने धर्म की मर्यादा के अनुरुप उत्तर देने जा रहा हूँ।

तो सुनो ! हे "शार्ली एब्दो" के कार्टूनिस्टों- सर्वप्रथम तो यह जान लो कि वर्तमान में हम भारतीय जिस मानव निर्मित संविधान से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, वह सनातन धर्म के बनाये गए नियमों से नहीं चलता ।

सनातन धर्म ने हमारे लिए जो संविधान बनाया था वह हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों और शास्त्रों के सम्मिश्रण से बना है, जिसका पालन करने पर न तो वायु ही दूषित होती, न ही जल ! क्योंकि उस संविधान के अनुसार तो हम हर उस प्राकृतिक वस्तु का संरक्षण करते आये थे जो मानव जाति ही नही समस्त जीवों के लिए हितकारी हैं।

हे "शार्ली एब्दो"- यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो यहां न नदियां दूषित होतीं, न ही ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों का कटान होता, न ही अपनी जिव्हा के क्षणिक स्वाद के लिए पशुओं का वध होता और इसके विपरीत हर घर मे यज्ञ में आहुतियों के रूप में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का प्रयोग होता, जिससे कोरोना वायरस तो छोड़िए उसके पिताजी भी इस वायुमंडल में जीवित न रहते।

हे शार्ली एब्दो - यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो आज देशी गाय के गोबर की खाद से खेती हो रही होती और उससे उत्पन्न होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता ऐसी होती कि हम न केवल दीर्घायु होते, हमारी संताने भी निरोगी होतीं।

यह देश यदि वैदिक संविधान से चलता तो यज्ञों में पड़ने वाले 'देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी' की आहुतियों से हमारे समस्त देवी-देवता प्रसन्न होते और प्रसन्न होकर भारत ही नहीं तुम्हारे फ्रांस को भी निरोगी होने का आशीर्वाद देते और केवल हमें ही नहीं आपको भी कभी आक्सीजन की कमी से मरने न देते।  

तो हे 'शार्ली एब्दो', यह भारत देश 'ईश्वर और देवी देवताओं' के बनाये गए संविधान से चल कहाँ रहा है जो वह हिंदुओं की सहायता करने आएं और आकर हमारे लिए ऑक्सीजन का निर्माण करें ।

वैसे आपको मैं यह बात बता दूं कि हमारे देवी-देवताओं का कार्य ऑक्सीजन का निर्माण करना नहीं है, उसके लिए उन्होंने वृक्ष बनाये हैं, जिनका संरक्षण न कर पाना हमारी भयानक भूल है, जिसके लिए हम अपने देवी-देवताओं को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। 

अतः आप हम हिंदुओं को व्यर्थ का ज्ञान न दें और अपनी ऊर्जा का व्यय फ्रांस को आने वाले संकटों से बचाने में करें तथा जिस चीन ने अपने पालतू और बिके हुए वैश्विक संगठनो के साथ मिलकर कोरोना वायरस को पूरे विश्व में वायरल करके उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नष्ट करने का कुचक्र रचा है, यदि हो सके तो उसके विरुद्ध अपनी चोंच खोलने का प्रयास करें, जिससे फ्रांस की जनता भी आप पर गर्व कर सके ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 4 मई 2021

जब भगवान् श्रीकृष्ण ने तोड़ी अपनी प्रतिज्ञा

महाभारत के युद्ध में एक ऐसा क्षण भी आया था जब स्वयं भगवान् श्री कृष्ण को भी धर्म की रक्षा के लिए, इस युद्ध में शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ी थी। भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं, पवित्र महाभारत ग्रन्थ के "भीष्म पर्व" में वर्णित इस अद्भुत प्रसंग का वर्णन करने जा रहा हूँ_


महाभारत के युद्ध का तीसरे दिन था, आज पितामह भीष्म पांडव सेना के लिए साक्षात काल बन चुके थे, उनके पराक्रम से पांडव सेना त्राहि-त्राहि कर रही थी और अर्जुन पितामह के प्रेम के मोहपाश में बंधकर उनकी ओर अपने भयानक बाण नहीं चला रहे थे। महाधनुर्धर "सात्यकि" ही एक ऐसे थे जो पितामह के बाणों से बचने के लिए इधर-उधर भाग रही पांडव सेना को एकजुट करने में लगे थे, ऐसे में धर्म की रक्षा के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने वाले योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण का धैर्य टूट गया और उन्होंने क्रोध में भरकर कहा_

 ये यान्ति ते यान्तु शिनिप्रवीर येऽपि स्थिताः सात्वत तेऽपि यान्तु। भीष्मं रथात् पश्य निपात्यमानं द्रोणं च सङ्ख्ये सगणं  मयाऽद्य।।
शिनिवंश के प्रमुख वीर ! सात्वत रत्न ! जो भाग रहे हैं, वे भाग जाएँ।  जो खड़े हैं, वह भी चले जाएँ। तुम देखो, मैं अभी इस संग्राम भूमि में सहायकगणों के साथ भीष्म और द्रोण को रथ से मार गिराता हूँ।

 

न मे रथी सात्वत कौरवाणां क्रुद्धस्य मुच्येत रणेऽद्य कश्चित्। तस्मादहं गृह्य रथाङ्गमुग्रं प्राणं हरिष्यामि महाव्रतस्य।।

सात्वत वीर ! आज कौरव सेना का कोई भी रथी क्रोध में भरे हुए मुझ कृष्ण के हाथों जीवित नहीं छूट सकता । मैं अपना भयानक चक्र लेकर महान् व्रतधारी भीष्म के प्राण हर लूंगा।

 

निहत्य भीष्मं सगणं  तथाऽऽजौ द्रोणं च शैनेय रथप्रवीरौ। प्रीतिं करिष्यामि धनंजयस्य राज्ञश्च भीमस्य  तथाश्विनोश्च।।

सात्यके ! सहायकगणों सहित भीष्म और द्रोण, इन दोनों वीर महारथियों को युद्ध में मारकर मैं अर्जुन, राजा युधिष्ठिर, भीमसेन तथा नकुल-सहदेव को प्रसन्न करूँगा।

 

निहत्य सर्वान्धृतराष्ट्रपुत्रां- स्तत्पक्षिणो ये च नरेन्द्रमुख्याः। राज्येन राजानमजातशत्रुं संपादयिष्याम्यहमद्य  हृष्टः॥ 

धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों तथा उसके पक्ष में आये हुए सभी श्रेष्ठ नरेशों को मारकर मैं प्रसन्नतापूर्वक आज अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर को राज्य से सम्पन्न कर दूंगा।

 

इतीदमुक्त्वा स महानुभावः सस्मार चक्रं निशितं पुराणम्। सुदर्शनं चिन्तितमात्रमेव तस्याग्रहस्तं स्वयमारुरोह॥

ऐसा कहकर महानुभाव श्रीकृष्ण ने अपने पुरातन एवं तीक्ष्ण आयुध सुदर्शन चक्र का स्मरण किया।  उनके चिंतन मात्रा करने से ही वह स्वयं उनके हाथ के अग्रभाग में प्रस्तुत हो गया।


तमात्तचक्रं  प्रणदन्तमुच्चैः क्रुद्धं  महेन्द्रावरजं समीक्ष्य।सर्वाणि भूतानि भृशं विनेदुः क्षयं कुरूणामिव चिन्तयित्वा।।

महेंद्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण कुपित हो हाथ में चक्र उठाये बड़े जोर से गरज रहे थे। उन्हें उस रूप में देखकर कौरवों के संहार का विचार करके सभी प्राणी हाहाकार करने लगे।

 

स  वासुदेवः प्रगृहीतचक्रः संवर्तयिष्यन्निव सर्वलोकम्। अभ्युत्पतँल्लोकगुरुर्बभासे भूतानि धक्ष्यन्निव धूमकेतुः॥

वे जगद्गुरु वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण हाथ में चक्र ले मानो सम्पूर्ण जगत का संहार करने के लिए उद्यत थे और समस्त प्राणियों को जलाकर भस्म कर डालने के लिए उठी हुई प्रलयाग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे।

 

तमाद्रवन्तं प्रगृहीतचक्रं दृष्ट्वा देवं शान्तनवस्तदानीम्। असंभ्रमं तद्विचकर्ष दोर्भ्यां महाधनुर्गाण्डिवतुल्यघोषम्।।

भगवान् को चक्र लिए अपनी ओर वेगपूर्वक आते देख शान्तनुनन्दन भीष्म उस समय तनिक भी भय अथवा घबराहट का अनुभव न करते हुए दोनों हाथों से गांडीव धनुष के समान गंभीर घोष करने वाले अपने महान धनुष को खींचने लगे। 


उवाच भीष्मस्तमनन्तपौरुषं गोविन्दमाजावविमूढचेताः ॥ एह्येहि देवेश जगन्निवास नमोस्तु ते माधव चक्रपाणे। प्रसह्य मां पातय लोकनाथ रथोत्तमात्सर्वशरण्य सङ्ख्ये ॥

उस समय युद्ध स्थल में भीष्म के चित्त में तनिक भी मोह नहीं था।  वे अनन्त पुरुषार्थशाली भगवान् श्रीकृष्ण का आवाहन करते हुए बोले- आइये-आइये देवेश्वर ! आपको नमस्कार है।  हाथ में चक्र लिए आये हुए माधव ! सबको शरण देने वाले लोकनाथ ! आज युद्धभूमि में बलपूर्वक इस उत्तम रथ से मुझे मार गिराइये। 

त्वया हतस्यापि ममाऽद्य कृष्ण श्रेयः परिस्मिन्निह चैव लोके। संभावितोऽस्म्यन्धकवृष्णिनाथ लोकैस्त्रिभिर्वीर तवाभियानात् ॥

श्रीकृष्ण ! आज आपके हाथ से यदि मैं मारा जाऊँगा तो इहलोक और परलोक में भी मेरा कल्याण होगा। अन्धक और वृष्णिकुल की रक्षा करने वाले वीर ! आपके इस आक्रमण से तीनों लोकों में मेरा गौरव बढ़ गया है। 

 

रथादवप्लुत्य ततस्त्वरावान् पार्थोऽप्यनुद्रुत्य यदुप्रवीरम्। जग्राह पीनोत्तमलम्बबाहुं बाह्वोर्हरिं व्यायतपीनबाहुः॥

मोटी, लम्बी और उत्तम भुजाओं वाले यदुकुल के श्रेष्ठ वीर भगवान् श्रीकृष्ण को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी बड़ी उतावली के साथ रथ से कूदकर उनके पीछे दौड़े और निकट जाकर भगवान् की दोनों बाहें पकड़ लीं। अर्जुन की भुजाएं भी मोटी और विशाल थीं।

 

निगृह्यमणाश्च तदाऽऽदिदेवो भृशं सरोषः किल चात्मयोगी । आदाय वेगेन जगाम विष्णु- र्जिष्णुं महावात इवैकवृक्षम् ॥ 

आदिदेव आत्मयोगी भगवान् श्रीकृष्ण बहुत रोष में भरे हुए थे।  वे अर्जुन के पकड़ने से भी रुक न सके। जैसे आंधी किसी वृक्ष को खींचे लिए जाये, उसी प्रकार वे भगवान् विष्णु (कृष्ण), अर्जुन को लिए हुए ही बड़े वेग से आगे बढ़ने लगे।

पार्थस्तु विष्टभ्य बलेन पादौ भीष्मान्तिकं तूर्णमभिद्रवन्तम्। बलान्निजग्राह हरिं किरीटी पदेऽथ राजन् दशमे कथंचित् ॥

राजन ! तब किरीटधारी अर्जुन ने भीष्म के निकट बड़े वेग से जाते हुए श्रीहरि के चरणों को बलपूर्वक पकड़ लिया और किसी प्रकार दसवें कदम पर पहुंचते-पहुंचते उन्हें रोका।

 

अवस्थितं च प्रणिपत्य कृष्णं प्रीतोऽर्जुनः काञ्चनचित्रमाली। उवाच कोपं प्रतिसंहरेति गतिर्भवान् केशव पाण्डवानाम् ॥

जब श्रीकृष्ण भगवान् खड़े हो गये, तब सुवर्ण का विचित्र हार पहने हुए अर्जुन ने अत्यन्त प्रसन्न हो उनके चरणों में प्रणाम करते हुए कहा- केशव ! आप अपना क्रोध रोकिये। प्रभो ! आप ही पांडवों के आश्रय हैं।

 

न हास्यते कर्म यथाप्रतिज्ञं पुत्रैः शपे केशव सोदरैश्च । अन्तं करिष्यामि यथा कुरूणां त्वयाहमिन्द्रानुज संप्रयुक्तः ॥

केशव ! अब मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार कर्तव्य का पालन करूँगा, उसका कभी त्याग नहीं करूँगा। यह बात मैं अपने पुत्रों और भाइयों की शपथ खाकर कहता हूँ।  उपेंद्र ! आपकी आज्ञा मिलने पर मैं समस्त कौरवों का अंत कर डालूंगा।  

 

ततः प्रतिज्ञां समयं च तस्य जनार्दनः प्रीतमना निशम्य। स्थितः  प्रिये कौरवसत्तमस्य रथं सचक्रः पुनरारुरोह ॥

अर्जुन की यह प्रतिज्ञा और कर्तव्य पालन का यह निश्चय सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण का मन प्रसन्न हो गया। वे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन का प्रिय करने के लिये उद्यत हो पुनः चक्र लिए रथ पर जा बैठे।

 

इस प्रकार महाभारत के तीसरे दिन, भीष्म और द्रोण सहित सम्पूर्ण कौरव सेना भगवान् श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से संहार होने से बच सकी थी।

 "शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava



गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

पशुओं के अकारण रोने का रहस्य...

 प्रायः देखने में आता है जब कभी हमारे घर के आसपास कोई कुत्ता,बिल्ली आदि पशु यदि असमय ही विलाप करने लगते हैं तो हमारे घर के बड़े बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि कोई अशुभ घटना घटित होने वाली है, क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि का रोना शुभ नहीं माना जाता।


मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति से प्राप्त शिक्षा के कारण हिन्दू युवा पीढ़ी उनकी इन बातों को अंधविश्वास का नाम देकर उनका उपहास उड़ाती है। ऐसे में क्या इन जानवरों के रोने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार छुपा हुआ है या हमारे बड़े बुजुर्ग अंधविश्वासी हैं ? आइये जानते हैं...

मनुष्य अपने नेत्रों से वैज्ञानिकों द्वारा ज्ञात Electromagnetic Spectrum के एक छोटे से अंश को ही देख पाता है । इस Visible light Spectrum की सीमा 380 नैनोमीटर से लेकर 750 नैनोमीटर तक ही होती है, जिसमें 7 रंगों का समावेश होता है, जिसका संयुक्त स्वरूप हमें श्वेत रंग के रूप में प्राप्त होता है।


जबकि बहुत सारे पशु-पक्षी और यहां तक कि मछलियां तक इस सीमा से पार भी देख पाते हैं, ऐसे में वह उन शक्तियों को देख लेते हैं जिनको मनुष्य अपने नग्न नेत्रों से नहीं देख पाता और वह पशु-पक्षी भयभीत या विचलित होकर असामान्य सा व्यवहार करने लगते हैं।

जब भी किसी स्थान पर निकट भविष्य में किसी की मृत्यु होने वाली होती है अथवा भयानक आपदा आने वाली होती है तो वहां के वातावरण में एक प्रकार की खिन्नता छा जाती है, जिसका कारण है कि वह स्थान उसके मृत सगे सम्बन्धियों, मृत शुभचिंतकों एवं मित्रों की आत्माओं से भर जाता है और वह आत्माएं उसे अपने साथ ले जाने के लिए वहीं एकत्र हो जाती हैं।


जिसके कारण अनेक बार मरणासन्न व्यक्ति मूर्छा की अवस्था में अपने परिवारजनों को यह बताये हुए देखा जाता है कि मुझे लेने मेरे मरे हुए मित्र या सगे सम्बन्धी आये हुए हैं और मुझे बुला रहे हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार मृत व्यक्तियों को लेने के लिए हमें यमदूतों के आने का भी विवरण प्राप्त होता है। ऐसे में यह दृश्य देखकर कुत्ते, बिल्ली आदि पशु रोने तथा विचित्र प्रकार का क्रंदन करने लगते हैं।

अनेक बार जब मौसम वैज्ञानिकों ने ऐसे जीवों के व्यवहार का अध्ययन किया तो यहां तक पाया कि जब भी कोई भूकम्प, सूनामी या चक्रवात आदि आने वाले होते हैं जो अनेक जीव पहले से ही असामान्य व्यवहार करने लगते हैं जिसका कारण उनके Sensors का हमारे Sensors से अधिक Active (जाग्रत) होना होता है। उदाहरण स्वरूप- वर्षा आने से पूर्व चींटियों का अपने अंडे लेकर उस स्थान को छोड़ देना ।

बहुत सारे अज्ञानी मनुष्य जो आत्माओं पर विश्वास नहीं करते उनको यह अवश्य जान लेना चाहिए कि Energy (ऊर्जा) कभी समाप्त नहीं होती, बस वह एक स्वरूप (Form) से दूसरे स्वरूप में परिवर्तित हो जाती है और आत्मा भी एक Energy ही है, जो कभी नष्ट नहीं होती, बस शरीर बदलती रहती है। इसलिए श्रीमद्भागवत् गीता में आत्मा के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि...


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
    तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
अर्थात-
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
           न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।2.23।।
अर्थात-
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है ; जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।

अब अपने विषय पर पुनः लौटते हुए बात करते हैं उन पशुओं की जिनके व्यवहार में हम अचानक से ऐसे परिवर्तन देखते हैं।

ऐसे पशुओं के व्यवहार में अचानक से आये इन परिवर्तनों का कारण यदि उनका चोटिल हो जाना, उनके बच्चे आदि की मृत्यु हो जाना हो तब तो यह सामान्य बात है परंतु यदि यह कारण नहीं है तो समझ लेना चाहिये कि कुछ ही समय में कोई विपत्ति आने वाली है।

ऐसे में उन पशुओं को वहां से भगाने के स्थान पर अपनी तथा घर की Aura (आभामंडल) को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए तथा पहले से ही जिनके आधीन ब्रह्मांड की समस्त नकारात्मक शक्तियां रहती हैं ऐसे कालों के भी काल, भगवान शंकर का भवानी सहित ध्यान करके उनसे विपत्ति को टालने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava