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शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

आयुर्दाय



ज्योतिष शास्त्र के महान ऋषि 'पराशर जी' अपने दिव्य ग्रन्थ 'बृहत्पाराशर होरा शास्त्र' में ऋषि मैत्रेय जी को संबोधित करते हुए कहते हैं-

अथाS न्यदपि वक्ष्यामि द्विज ! मारकलक्षणम् ।
त्रिविधाश्चायुषो योगाः स्वलपायुर्ममध्यमोत्तमाः ।।

द्वात्रिंशत् पूर्वमल्पायुर्मध्यमायुस्ततः परम् ।
चतुष्षष्टयाः पुरस्तात्तु  ततो दीर्घमुदाहृतम् ।।

उत्तमायुः शतादूर्ध्वं ज्ञातव्यं द्विजसत्तम ! ।
जनैर्विंशतिवर्षान्तमायुर्ज्ञातुं न शक्यते ।।

जप - होम - चिकित्साधैर्बालरक्षां हि कारयेत् ।
म्रियन्ते पितृदोषैश्च केचिन्मातृग्रहैरपि ।।

केचित् स्वारिष्टयोगाच्च त्रिविधा बालमृत्यवः ।
ततः परं नृणामायुर्गणयेद् द्विजसत्तम ! ।।


हे द्विज ! और भी मारक ग्रह के लक्षण कहता हूँ ।
पूर्व में जो अल्पायु, मध्यमायु और पूर्णायु - यह तीन प्रकार का आयुर्दाय बताया गया है, उसमें ३२ वर्ष से पूर्व अल्पायु, तदन्तर ६४ वर्ष पर्यन्त मध्यमायु और उसके बाद १०० वर्ष तक दीर्घायु तथा १०० वर्ष से ऊपर उत्तमायु जानना चाहिये ।

२० वर्ष तक जातकों के आयुर्दाय का निर्धारण करना कठिन होता है । अतः जन्म से २० वर्ष तक पापग्रहों से रक्षा हेतु जप-होम-चिकित्सादि द्वारा जातक की रक्षा करनी चाहिये ।

२० वर्ष तक कोई पिता के दोष से, कोई माता के दोष से, कोई अपने पूर्वार्जित कुकर्म से उत्पन्न अरिष्ट योगों से मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । अतः बाल्यावस्था में मरण के तीन कारण होते हैं । इसलिये २० वर्ष के बाद ही आयुर्दाय का गणित करके आयु का निर्धारण करना चाहिये ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 5 अगस्त 2020

महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र


सनातन धर्म में एक महान् धार्मिक ग्रन्थ श्रद्धापूर्वक पढ़ा जाता है  जिसका नाम है 'महाभारत'। इस दिव्य ग्रन्थ के रचयिता हैं ज्योतिष शास्त्र के महान ज्ञाता 'ऋषि पाराशर' के पुत्र 'महर्षि वेदव्यास'।

महर्षि वेदव्यास जी भगवान विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं। उनका जन्म द्वीप में हुआ था, अत: उनका नाम द्वैपायन पड़ा। उनका शरीर श्याम वर्ण का था, इसलिए वह कृष्ण द्वैपायन भी कहलाये । वेदों के विभाग करने के कारण उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा। बद्रीवन में निवास करने के कारण बादरायण भी कहलाये । वे महामुनि 'पराशर' के पुत्र थे और उनकी माता का नाम 'सत्यवती' था।

वेदव्यास जी ने ब्रह्मसूत्र की रचना के साथ-साथ 18 पुराण तथा उपपुराणों की रचना भी की है । परन्तु मैं यहां उनके द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र का वर्णन करने जा रहा हूँ, जिसके विधिवत् पाठ करने से निकलने वाली ध्वनि तरंगों की ऊर्जा से सभी ग्रहों से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।


|| नवग्रह स्तोत्र ||

श्री गणेशाय नमः
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् |
तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् || १ ||

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् |
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् || २ ||

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् |
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् || ३ ||

प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् |
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् || ४ ||

देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् |
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् || ५ ||

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् |
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् || ६ ||

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् || ७ ||

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् |
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् || ८ ||

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् |
रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् || ९ ||

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः |
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति || १० ||

नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् |
ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् || ११ ||

ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः |
ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः || १२ ||

|| इति श्री वेद व्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं ||


जो जपापुष्प के समान अरुणिम आभावाले , महान् तेज से सम्पन्न , अन्धकार के विनाशक , सभी पापों को दूर करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं , उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो दधि , शंख तथा हिम के समान आभा वाले , क्षीर समुद्र से प्रादुर्भूत , भगवान् शंकर के शिरोभूषण तथा अमृतस्वरूप हैं , उन चन्द्रमा को मैं नमस्कार करता हूँ।

जो पृथ्वी देवी से उद्भूत, विद्युत् की कान्तिके समान प्रभा वाले, कुमारावस्था वाले तथा हाथ में शक्ति लिये हुए हैं , उन मंगल को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो प्रियंगु लता की कली के समान गहरे हरित वर्ण वाले, अतुलनीय सौन्दर्य वाले तथा सौम्यगुण से सम्पन्न हैं , उन चन्द्रमा के पुत्र बुध को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं , स्वर्णिम आभा वाले हैं, ज्ञानसे सम्पन्न हैं तथा तीनों लोकों के स्वामी हैं, उन बृहस्पति को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो हिम, कुन्दपुष्प तथा कमलनाल के तन्तु के समान श्वेत आभा वाले, दैत्यों के परम गुरु, सभी शास्त्रों के उपदेष्टा तथा महर्षि भृगु के पुत्र हैं, उन शुक्र को मैं प्रणाम करता हूँ ।

जो नीले कज्जलके समान आभा वाले , सूर्य के पुत्र , यमराज के ज्येष्ठ भ्राता तथा सूर्य पत्नी छाया तथा मार्तण्ड ( सूर्य ) – से उत्पन्न हैं , उन शनैश्चर को मैं नमस्कार करता हूँ ।

जो आधे शरीरवाले हैं , महान् पराक्रम से सम्पन्न हैं , सूर्य तथा चन्द्र को ग्रसने वाले हैं तथा सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं , उन राहु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

पलाशपुष्पके समान जिनकी आभा हैं , जो रुद्रस्वभाव वाले और रुद्र के पुत्र हैं , भयंकर हैं , तारकादि ग्रहों में प्रधान हैं , उन केतु को मैं प्रणाम करता हूँ ।

भगवान् वेदव्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति का जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित्त होकर पाठ करता है , उसके समस्त विघ्न शान्त हो जाते हैं ।

स्त्री – पुरुष और राजाओंके दुःस्वप्नोंका नाश हो जाता है । पाठ करने वालों को अतुलनीय ऐश्वर्य और आरोग्य प्राप्त होता है तथा उनके पुष्टि की वृद्धि होती है ।

किसी भी ग्रह, नक्षत्र, चोर तथा अग्नि से जनित पीड़ायें शान्त हो जाती हैं. इस प्रकार स्वयं व्यास जी कहते हैं, इसलिए इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिये।

इस प्रकार महर्षि व्यास जी द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 26 जून 2020

बृहस्पति का स्वराशि में प्रवेश


30 जून 2020 को बृहस्पति वक्री गति से भ्रमण करते हुए नीच राशि से निकलकर अपनी स्वराशि में प्रवेश करेंगे और वहां 20 नवम्बर 2020 तक रहेंगे।जिसके परिणाम स्वरूप ज्ञान, आध्यात्म और बैंक से संबंधित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिये शुभ समय का आरंभ होगा। विद्यार्थियों के लिए भी आने वाले 5 माह का समय शुभ होगा।

आइए जानते हैं बृहस्पति के इस राशि परिवर्तन के कारण सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के जीवन मे क्या प्रभाव पड़ेगा।

मेष राशि- मेष लग्न
मेष राशि-मेष लग्न वाले जातकों के भाग्य में अब तक जो रुकावटें आ रही थीं वह दूर होंगी तथा धर्म में रुचि बढ़ेगी, एवं देश में ही यात्राओं के योग बनेंगे।

वृष राशि-वृष लग्न
वृष राशि-वृष लग्न वाले जिन जातकों के पिता के स्वास्थ्य में समस्याएं चल रही थीं वह ठीक होंगी, ससुराल पक्ष से संबंधों में सुधार होगा तथा जीवन साथी को धन की प्राप्ति के योग बनेंगे।

'मिथुन राशि- मिथुन लग्न'
मिथुन राशि-मिथुन लग्न वाली जिन कन्याओं का विवाह संबंध टूट गया है, वह संबध पुनः वापस आयेगा। स्त्रियों की जन्म कुंडली मे बृहस्पति पति का कारक होता है, ऐसे में उसके स्वराशि में प्रवेश कर लेने से स्त्रियों के वैवाहिक संबंधों में अप्रत्याशित सुधार देखने को मिलेंगे। सभी जातकों को इस पांच महीने पार्टनरशिप तथा सरकारी नौकरी से लाभ मिलेगा।

कर्क राशि-कर्क लग्न
कर्क राशि-कर्क लग्न वाले जातकों के जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, शत्रु पक्ष शांत होंगे तथा कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के योग बढ जाएंगे।

सिंह राशि-सिंह लग्न
सिंह राशि-सिंह लग्न के जो छात्र प्रतियोगी प्ररीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, यदि उनकी जन्म कुंडली में भी बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित हुए तो वह आगामी पांच माह तक अपने सभी परीक्षा परिणामों में सफलता प्राप्त करेंगे।

कन्या राशि-कन्या लग्न
कन्या राशि-कन्या लग्न वाले जिन जातकों के भूमि-भवन से संबंधित कार्य रुके हुए थे अब वह पूर्ण होंगे तथा जिनकी माता को शारिरिक कष्ट चल रहे थे उनकी माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा।
नये वाहन का सुख प्राप्त होगा तथा सेवकों से संबंध मधुर होंगे।

तुला राशि-तुला लग्न
तुला राशि-तुला लग्न वाले जिन एक्सपोर्टरों का विदेश में धन रुका हुआ था अब वह आना आरम्भ हो जायेगा, तथा मित्रों एवं छोटे भाई-बहनों से संबंध मधुर होंगे।

वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न
वृश्चिक राशि-वृश्चिक लग्न वाले जातकों के लिये गुरु का स्वराशि में प्रवेश अत्यंत शुभ फल दायक है। क्यों कि गुरु इनकी कुण्डली में धनेश होकर धन भाव में गोचर करने के कारण एक तो वैसे ही धन देंगे तथा  धन के कारक होने से इस पांच माह में अत्यधिक धन वर्षा करेंगे एवं संतान प्राप्ति भी करवाएंगे।

धनु राशि-धनु लग्न
धनु राशि-धनु लग्न वाले जातकों को गुरु लग्न में ही आ जाने के कारण से उत्तम स्वास्थ्य, मान-सम्मान, माता, भूमि, वाहन आदि का सुख देंगे।

मकर राशि-मकर लग्न
मकर राशि-मकर लग्न वाले जातकों का चिकित्सा के ऊपर खर्चा बन्द करवाकर देव गुरु बृहस्पति अब धार्मिक अनुष्ठानों एवं शुभ कार्यों में धन खर्च करवाएंगे, तथा कोर्ट केस में विजय प्राप्ति के योग बढ़ जायेंगे।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न वाले जातकों को देव गुरु बृहस्पति अत्यधिक धन लाभ देंगे तथा इनके चाचा, छोटी बुआ एवं बड़े भाई-बहनों को मान-सम्मान और स्वास्थ्य का लाभ होगा।

मीन राशि- मीन लग्न
मीन राशि-मीन लग्न वाले जातकों को स्वास्थ्य, मान-सम्मान प्राप्त होगा तथा रुके हुये सरकारी कार्य पूर्ण होंगे, तथा इस राशि-लग्न वाले सरकारी अधिकारी व राजनेता अब तक जिन कठिनाइयों का सामना कर रहे थे वह उनसे मुक्त होंगे।

यदि इनमें से किसी की जन्म कुंडली में बृहस्पति अशुभ स्थिति अथवा अत्यधिक प्राप प्रभाव में हैं और उनकी दशा अंतर्दशा भी अशुभ चल रही है तो उन्हें इन सब उत्तम फलों की प्राप्ति नहीं होगी अथवा कम होगी।

परंतु जिन लोगों की जन्म कुंडली में बृहस्पति शुभ स्थानों के स्वामी होकर शुभ स्थिति, शुभ प्रभाव में हैं और उन्होंने  उसका रत्न आदि धारण करके उसे शक्ति प्रदान की हुई है, उनके लिये यह समय अत्यंत शुभ फलप्रद होगा।

'शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 16 मई 2020

अग्नि पुराण में वर्णित शुभाशुभ स्वप्न



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं अग्नि पुराण में वर्णित शुभाशुभ स्वप्नों का वर्णन करने जा रहा हूँ।

अग्नि पुराण के दो सौ उनतीसवें अध्याय में पुष्कर जी, भगवान् परशुराम जी से कहते हैं-

हे भार्गव परशुराम जी !
नाभि के सिवा शरीर के अंगों में तृण और वृक्षों का उगना, कांस के बर्तनों का मस्तक पर रखकर फोड़ा जाना, माथा मुड़ना, नग्न होना, मैले कपड़े पहनना, तेल लगना, तेल में नहाना, कीचड़ लपेटना, ऊंचाई से गिरना, विवाह होना, गीत सुनना, वीणा आदि के बाजे सुनकर मन बहलाना, हिंडोले पर चढ़ना, पद्म और लोहों का उपार्जन, सर्पों को मारना, लाल फूल से भरे वृक्षों तथा चाण्डाल को देखना, सूअर, कुत्ते, गधे और ऊंटों पर चढ़ना, चिड़ियों के मांस का भक्षण करना, तेल पीना, खिचड़ी खाना, माता के गर्भ में प्रवेश करना, चिता पर चढ़ना, इंद्र के उपलक्ष्य में खड़ी की हुई ध्वजा पर टूट पड़ना, सूर्य और चंद्रमा का गिरना, दिव्य, अंतरिक्ष और भू लोक में होने वाले उत्पातों का दिखाई देना, देवता, ब्राह्मण, राजा और गुरुओं का कुपित होते हुए दिखाई देना, नाचना, हंसना,गीत गाना,वीणा के सिवाय अन्य प्रकार के बाजों का स्वयं बजना, नदी में डूबकर नीचे जाना, गोबर , कीचड़ तथा स्याही मिलाये हुए जल से स्नान करना, कुमारी कन्याओं का आलिंगन, पुरुषों का एक दूसरे के साथ मैथुन, दक्षिण दिशा की ओर जाना, अपने अंगों की हानि, वमन और विरेचन करना, रोग से पीड़ित होना, फलों को हानि, धातुओं का भेदन करना, घरों का गिरना, घरों में झाड़ू देना, पिशाचों, राक्षसों, वानरों तथा चण्डालों आदि के साथ खेलना, शत्रु से अपमानित होना, शत्रु की ओर से संकट प्राप्त होना, गेरुआ वस्त्र धारण करना तथा गेरुए वस्त्रों से खेलना, लाल फूलों की माला पहनना ये सब बुरे स्वप्न हैं। इन्हें दूसरों पर प्रकट न करना अच्छा है ऐसे स्वप्न देखकर पुनः सो जाना चाहिये।

आगे पुष्कर जी कहते हैं-
हे भार्गव परशुराम जी !

यदि पृथ्वी पर या आकाश में श्वेत पुष्पों से भरे हुये वृक्षों का दर्शन हो, अपनी नाभि से वृक्ष अथवा तिनका उत्पन्न हो, अपनी अधिक भुजायें और अधिक मस्तक दिखाई दें, सिर के बाल पके हुये दिखायी दें तो उसका फल उत्तम होता है।

श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत वस्त्र धारण करना, चंद्रमा , सूर्य और तारों को पकड़ना, परिमार्जन करना, इंद्र की ध्वजा का आलिंगन करना, ध्वजा को ऊंचे उठाना, पृथ्वी पर पड़ती जल धाराओं को अपने ऊपर रोकना, शत्रुओं की बुरी दशा देखना, वाद-विवाद, जुआ तथा संग्राम में अपनी विजय देखना, खीर खाना, रक्त से स्नान करना, रक्त का देखना, सुरा, मद्य अथवा दूध पीना, अस्त्रों से घायल होकर छटपटाना, आकाश का स्वच्छ होना तथा गाय, भैंस, सिंहनी, हथिनी और घोड़ी को मुंह से दुहना ये सब उत्तम स्वप्न हैं।

देवता, ब्राह्मण और गुरुओं की प्रसन्नता, गायों के सींग अथवा चंद्रमा से गिरे हुये जल के द्वारा अभिषेक होना, अपना राज्याभिषेक होना, अपने मस्तक का काटा जाना, आग में पड़ना, मृत्यु को प्राप्त होना, राज्यचिह्नों का प्राप्त होना, अपने हाथ से वीणा बजाना ये स्वप्न उत्तम फल प्रदान करने वाले हैं, ऐसा समझना चाहिये।

जो स्वप्न के अंतिम भाग में राजा, हाथी, घोड़ा, स्वर्ण, बैल तथा गाय को देखता है उसका कुटुम्ब बढ़ता है। बैल, हाथी, महल की छत, पर्वत शिखर तथा वृक्ष पर चढ़ना, रोना, शरीर में घी, विष्ठा का लग जाना तथा अगम्या स्त्री के साथ समागम करते हुए देखना यह सब शुभ स्वप्न हैं।

रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे हुए स्वप्न एक वर्ष तक फल देने वाले होते हैं, दूसरे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न छः माह में, तीसरे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न 3 माह में, चौथे प्रहर में देखे जाने वाले स्वप्न 15 दिनों में तथा अरुणोदय की वेला में देखे जाने वाले स्वप्न 10 दिनों में ही अपना फल प्रकट कर देते हैं।

यदि एक ही रात्रि में शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के स्वप्न दिखाई पड़ें तो उनमें जिसका दर्शन बाद में हो उसी का फल घटित होता है। अतः अशुभ फल देखने के पश्चात सो जाना चाहिये तथा शुभ स्वप्न देखने के पश्चात सोना अच्छा नहीं होता।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 2 मई 2020

उच्च के ग्रहों की नीच दृष्टि



जन्म कुंडली में उच्च के ग्रहों का होना भी कितना घातक हो सकता है, यह सब आप बड़े-बड़े राजनेताओं, तानाशाहों, उच्च अधिकारियों, उद्योगपतियों तथा फिल्मी कलाकारों की जन्म कुंडलियों पर शोध करके देख सकते हैं।

जातक की जन्म कुण्डली में 'उच्च का ग्रह' जो उसे भौतिक ऊंचाइयां प्रदान कर रहा होता है, उसी 'उच्च के ग्रह' की ठीक अपने से 'सप्तम भाव' पर पड़ने वाली 'नीच दृष्टि', उसे उस शारीरिक अंग व सगे-संबंधी के सुख से वंचित कर रही होती है, जिस शारीरिक अंग व सगे-संबंधी का वह भाव होता है।

यही कारण है कि जो व्यक्ति जितनी अधिक ऊंचाई पर होता है उसका रोग तथा दुख भी उतना ही बड़ा होता है तथा उसे जीवन में किसी एक निकटतम संबंधी का सुख नहीं होता। और यह नियम केवल मनुष्य पर ही नहीं मनुष्य रूप में जन्म लेने वाले ईश्वर पर भी कार्य करता है।

यद्द्पि ईश्वर अपनी योग माया से स्वयं को साकार रूप में प्रकट करके अवतार धारण किया करते हैं तथापि 'पंचमहाभूतों' से व्याप्त देह में जन्म लेने के कारण स्वयं ईश्वर भी अपने ही द्वारा निर्मित ग्रहों के आधीन होने को विवश हैं, क्यों कि वह अपनी ही बनाई गई मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकते।

उदाहरण के लिये -
भगवान् श्री राम को कभी पत्नी तथा सन्तान का सुख प्राप्त नहीं हुआ एवं उनका सम्पूर्ण जीवन राक्षसों से युद्ध करते हुए बीत गया, अपना राजपाट छोड़कर वनवास जाना पड़ा, जिसके वियोग में उनके पिता भी चल बसे।

भगवान् श्री कृष्ण के जन्म के समय उनके माता-पिता कारावास में बंद रहकर घोर यातनाएं सहन कर रहे थे, कंस द्वारा उनके 7 भाइयों का वध कर दिया गया था। बाल्यकाल में ही कंस द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों से उन्हें युद्ध करना पड़ा। कंस वध के उपरांत जरासंध से बार-बार युद्ध करना पड़ा। बाद में महाभारत जैसे विध्वंसकारी युद्ध में पांडवों की सहायता करने के कारण गांधारी का श्राप सहन करना पड़ा, यहां तक कि उनको 'स्यमंतक मणि' चोरी का आरोप तक सहन करना पड़ा।


भगवान् परशुराम को अपनी ही माता तथा सगे भाइयों का सर काटना पड़ा। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में 21 बार अत्याचारी क्षत्रियों से युद्ध करके उनके अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त करवाकर अंत में उस पाप से मुक्त होने के लिए सैंकड़ों वर्षों तक तप करना पड़ा।

अब बात करते हैं तानाशाहों की-
युगांडा का तानाशाह ईडी अमीन जो कि नरभक्षण के लिए कुख्यात था ,उसे भी युगांडा-तंज़ानिया युद्ध के पश्चात लीबिया तथा सउदी अरब में निर्वासितों का जीवन जीना पड़ा।

एडोल्फ हिटलर जो संसार को दूसरे विश्व युद्ध में झोंकने तथा 6 करोड़ लोगों की हत्याओं के लिये उत्तरदायी माना जाता है और जिसके कारण भारत ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त हो सका, उस हिटलर को भी अंत में अपने बंकर में छुपकर आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ा।

इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी, इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन और लीबिया के तानाशाह मुअम्मर अल-गद्दाफी जैसों का अंत कैसे हुआ वह किसी से छुपा नहीं है।

आधे विश्व को रौंदकर भारत भूमि पर विजय प्राप्ति का दुःस्वप्न अपने हृदय में लिया हुआ विश्व विजेता सिकन्दर, हिन्दू राजा पोरस की सेना के हाथों बुरी तरह रगड़ दिया गया, और कभी यूनान की धरती पर वापस प्रवेश न कर सका।

अब बात करते हैं राजनेताओं की-
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को वाशिंगटन के ‘फोर्ड थियटर’ में गोली मार दी गयी जिसके कारण अगले दिन उनकी मृत्यु हो गयी। उसी प्रकार अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन केनेडी को भी टेक्सास के डलास में गोली मार दी गयी । भारत के विभाजन के कारण हिंदुओं की जो दुर्दशा हुई उसे देखकर हिन्दू क्रांतिकारियों द्वारा गांधी को गोली मार दी गयी ।


लाल बहादुर शास्त्री की रूस में विष देकर हत्या कर दी गयी, सुभाष चंद्र बोस के साथ कितने षड्यंत्र किये गए सबको ज्ञात है। सिखों से शत्रुता मोल लेने के कारण इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई । श्रीलंका की आंतरिक समस्या में हस्तक्षेप करने के कारण राजीव गांधी की हत्या कर दी गयी। पाकिस्तान में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गयी।

वर्तमान समय में देखा जाए तो भारतीय राजनीति के इतिहास पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से लेकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी, मायावती जी , ममता बनर्जी जैसे बड़े-बड़े राजनेताओं को भी जीवन साथी तथा संतान का सुख नहीं है। अनेक राजनेता विभिन्न गंभीर रोगों से ग्रसित हैं जिसके कारण उन्हें विदेश जाकर अपनी चिकित्सा करवानी पड़ रही है।

ऐसे अनगिनत राजनेताओं, फिल्मी कलाकारों ,उद्योगपतियों आदि की बात की जाये तो विषय बहुत अधिक खिंच जायेगा, अतः यहां केवल समझाने के उद्देश्य से कुछ उदाहरण मात्र दिए गए हैं कि जो व्यक्ति जितनी ऊंचाई पर होता है उसके साथ दुख भी उतने ही बड़े होते हैं और यह सब होता है उनकी जन्म कुंडली में स्थित उच्च के ग्रहों की नीच दृष्टि के कारण। नहीं तो स्टीफन विलियम हॉकिंग जैसे वैज्ञानिकों को 'मोटर न्यूरॉन डिजीज' जैसे रोग से ग्रसित होकर एक कुर्सी पर अपना जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता।


अतः उच्च के ग्रहों में संतान का जन्म होना भी कभी-कभी अत्यंत दुखदाई हो जाता है, क्यों कि वह उच्च का ग्रह आपको जितना अधिक देता है, किसी और स्थान पर अपने से सप्तम भाव पर पड़ने वाली अपनी नीच दृष्टि से उतना ही अधिक छीन भी लेता है।

इसलिये विद्वान व्यक्तियों को अपनी संतानों का जन्म का वह समय-काल निर्धारित करना चाहिये जब ग्रह अपनी उच्च राशि में होने के स्थान पर अपनी मूल-त्रिकोण, स्वराशि अथवा मित्र ग्रह की राशि में स्थित हों।
"शिवार्पणमस्तु "
-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

सनातन धर्म की आतंरिक चुनौतियाँ




सनातन धर्म के लिए दो प्रमुख चुनौतियाँ वर्तमान समय में हमारे लिए विकराल रूप धारण करती जा रही हैं जिनका उल्लेख मैं अपने इस ब्लॉग में करने जा रहा हूँ। जिनमें से प्रथम है विलुप्त होती प्राचीन पूजा पद्धति और द्वितीय है परंपरा से दीक्षित धर्म गुरुओं का अभाव।

पूजा पद्धति -

देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर से युद्ध को नाट्य रूप में प्रदर्शित करने के लिये बनाया गया 'डांडिया रास' जिसमें कभी शुद्ध भक्ति भाव समाहित हुआ करता था वह कब प्रेमी जोड़ों के मिलन का आयोजन बनकर रह गया हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

वर्ष भर अच्छी वर्षा के लिये इंद्र आदि देवताओं के लिये यज्ञ द्वारा नवीन अन्न भेंट करने के लिये मनाया जाने वाला होली पर्व , जिसमें नगर तथा गाँव के हर चौराहों पर बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन हुआ करता था, कब हुड़दंगों से सरोबार हो गया हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

रात्रि भर जागरण करते हुए दुर्गा सप्तशती तथा वेदोक्त देवी सूक्त के उच्च कोटि के मंत्रो द्वारा भगवती दुर्गा की उपासना करके प्रातः यज्ञ करके उनको आहुति प्रदान करने वाला तथा 9 दिनों तक शरीर में स्थित 9 चक्रों के भेदन के पश्चात सिद्धि प्राप्ति के लिये शास्त्रों में वर्णित 'नवरात्रि' का शुभ मुहूर्त कब फिल्मी संगीत पर आधारित भौंडे संगीत का आयोजन (जागरण) बनकर रह गया हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

ब्रह्मांड में दो महा प्रलयंकारी शक्तियों के मिलन का सिद्ध मुहूर्त 'महाशिवरात्रि' जिसमें हम रात्रि जागरण करके उच्च कोटि के मंत्रो द्वारा शिव-शक्ति की सम्मलित शक्ति को एक साथ आत्मसात किया करते थे, कब 'भोले की बारात' बनकर रह गया, हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

गोपनीय और दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति के लिए शास्त्रों में वर्णित अत्यन्त सिद्ध मुहूर्त ( दीपावली ) कब विस्फोटक पदार्थों से विस्फोट करके प्रकृति के कण-कण में सूक्ष्म रूप में व्याप्त ब्रह्म चेतना को आहत करके उसे कुपित करने, मदिरापान और जुआ खेलने का पर्व बनकर रह गया, हमें ज्ञात ही नहीं रहा।

ऐसे अनेक उदाहरण आज मिल जाएंगे जिससे ज्ञात होता है कि भक्ति काल और उसके पश्चात हमारी पूजा पद्धति में किस प्रकार से विकृति आयी है जिसके कारण कभी अंतरिक्ष को भी अपने प्रलयंकारी शस्त्रों की टंकार से हिलाकर रख देने वाला 'हिन्दू' आज अपने ग्रन्थों में वर्णित मंत्रो की शक्ति से अज्ञान रहकर जीवन और मृत्यु के बीच रगड़ने को विवश है।


परंपरा से दीक्षित धर्म गुरुओं का आभाव-

हिंदुओं का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि यदि परपंरा प्राप्त कुछ गिने-चुने धर्म गुरुओं को छोड़ दिया जाये तो उन्हें उनके ही धर्मगुरुओं ने कभी धर्म का सही स्वरूप समझाया ही नहीं अन्यथा आज धर्म के विषय में बोलने के लिए अनाधिकृत (जिसको अधिकार न प्राप्त हो) लोग अपनी चोंच न खोल रहे होते।

जिन हिंदुओं के 99% देवी-देवता अपने हाथों में विध्वंसकारी अस्त्र-शस्त्र धारण करके निरंतर यह संदेश देते हों कि दुष्ट, दुराचारी, विधर्मी आसुरी शक्ति वाले दुष्टों का वध करना पुण्य कार्य है पाप नहीं, उन्ही हिंदुओं को उनके धर्म गुरुओं ने केवल भक्ति का पाठ पढ़ाकर सनातन धर्म के साथ जो अन्नाय किया है उसका भुगतान हमारी आने वाली पीढ़ियों को करना होगा।

यहां तक भी ठीक था परंतु अब स्थिति यह है कि भक्ति काल और उसके पश्चात सनातन धर्म में कुकुरमुत्तों की भांति ऐसे अनेक सम्प्रदाय उग आये हैं जिनका उद्देश्य केवल अपने-अपने गुरुओं का महिमा-मंडन करना और अपने भक्तों को उन्हीं गुरुओं के इर्द-गिर्द भटकाये रखना है, जिससे उनके चंदे की दुकानें चलती रहें फिर चाहे धर्म की कितनी ही हानि क्यों न हो जाये।

इन सम्प्रदायों द्वारा चलाये गये ब्रेन वाशिंग प्रोग्राम से उनके चेलों की स्थिति इतनी विकराल हो चुकी है कि आप चाहे उनके समक्ष ईश्वर को कुछ भी कह लें परंतु यदि उनके सम्प्रदाय के गुरु के लिए आपने कुछ भी लिख दिया अथवा कह दिया तो वह आप पर झुंड लेकर टूट पड़ेंगे।

इनके अनुयायी संख्या बल में इतने अधिक हो चुके हैं कि हैं कि अनेक सरकारों को भी इनके वोट बैंक के कारण इनके समक्ष झुकना पड़ता है ।

यह तो निश्चित है कि मानव द्वारा निर्मित सब कुछ नष्ट हो जाना है फिर वह चाहे वह कोई पंथ हो, मजहब हो अथवा सम्प्रदाय ! शेष रहना है तो केवल ईश्वर द्वारा निर्मित धर्म और ज्ञान ! परंतु जब तक ऐसा नहीं हो जाता, तब तक हम इन पंथों, सम्प्रदायों तथा उनके अनुयायियों द्वारा सनातन धर्म में किये जा रहे अतिक्रमणों और उनकी सीमाओं के उल्लंघनों को झेलने के लिए विवश हैं।

(शिवार्पणमस्तु)


Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

ज्योतिष में रोग एवं आयु विचार



सामान्यतः यह कहा जाता है कि जिस समय जातक का जन्म होता है उसी समय उसकी मृत्यु का समय और कारण भी निर्धारित हो जाता है तथा वह अपने जीवन काल में किन-किन रोगों से ग्रसित होगा और उसका समय काल क्या होगा, उस जातक की जन्म पत्रिका में यह सब लिख दिया जाता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या उस जातक के जीवनकाल में उत्पन्न होने वाले रोगों को बढ़ने से रोका जा सकता है अथवा उसकी आयु बढ़ाई जा सकती है ? ऐसे में वैदिक ज्योतिष हमें वह प्रकाश दिखाता है जिसके माध्यम से हम उस जातक के असाध्य रोगों को कम अथवा नगण्य कर सकते हैं तथा उसकी आयु वृद्धि भी कर सकते हैं।

जातक की जन्मकुंडली में बारह भाव उसकी शारीरिक संरचना को दर्शाते हैं जिसमें प्रथम भाव - जातक का सिर (Head) , द्वितीय भाव - मुख (Mouth & Face), तृतीय भाव - गर्दन और दाहिना कान (Throat & Right Ear), चतुर्थ भाव - छाती (Chest), पंचम भाव - उदर व हृदय (Stomach & Heart), षष्टम भाव - यकृत, आंतें, अग्नाशय एवं गुर्दा (Liver, Intestines, Pancreas & Kidney), सप्तम भाव - यौन अंग (Sex Organs), अष्टम भाव - गुदा (Anus), नवम भाव - नितम्ब, पीठ व कमर (Hips, Back & Waist), दशम भाव - जांघ और घुटना (Thighs & Knees), एकादश भाव - पिंडलियाँ एवं बांया कान (Calf & Left Ear) तथा द्वादश भाव - एड़ी से लेकर पंजो तक एवं बायें नेत्र (Heel to Toe & Left Eye) का माना जाता है।

यही नियम इनकी 12 राशियों, 27 नक्षत्रों एवं नवग्रहों पर भी प्रयुक्त होता है।

राशियां 
१. मेष- सिर, २. वृष- मुख (Mouth & Face) ३. मिथुन - गर्दन और दाहिना कान (Throat & Right Ear) ४. कर्क -छाती (Chest) ५. सिंह -उदर व हृदय (Stomach & Heart) ६. कन्या- यकृत, आंतें, अग्नाशय एवं गुर्दा (Liver, Intestines, Pancreas & Kidney)७. तुला-यौन अंग (Sex Organs) ८. वृश्चिक -गुदा (Anus) ९. धनु- नितम्ब, पीठ व कमर (Hips, Back & Waist) १०. मकर- जांघ और घुटना (Thighs & Knees) ११. कुम्भ- पिंडलियाँ एवं बांया कान (Calf & Left Ear)  १२. मीन-एड़ी से लेकर पंजो तक एवं बायें नेत्र (Heel to Toe & Left Eye)

ग्रह 
सूर्य- मानव शरीर में हड्डियों, दाहिना नेत्र, हृदय और उदर से संबंधित रोगों का कारक होता है।
चंद्रमा- वाम नेत्र, श्वेत रक्त कणिकायें (White Blood Cells), फेंफड़े, कैल्शियम तथा मानसिक रोगों का कारक होता है।
मंगल- गुर्दें, रक्तचाप ( Blood Pressure), ज्वर (Fever) आदि रोगों तथा वाहन, अग्नि, शस्त्र आदि से मृत्यु का कारक होता है।
बुध-  त्वचा, गूंगापन, हकलाहट, दमा रोग, जीभ तथा वाणी, मस्तिष्क और बुद्धि से संबंधित रोगों का कारक होता है।
गुरु- यकृत (Liver), चर्बी, मोटापा, दाहिना कान आदि से संबंधित रोगों का कारक होता है।
शुक्र- यौन अंग (Sex-Organs), पथरी, गर्भाशय तथा मूत्र संबंधित रोगों का कारक होता है।
शनि- बायां कान, घुटने, पिंडली, स्नायु तंत्र, लकवा, पक्षघात, गैस संबंधित समस्या एवं कैंसर जैसे रोगों का कारक होता है।
राहु- भूत-प्रेत जनित समस्याओं, विषाक्त पदार्थों के सेवन से होने वाली मृत्यु, मानसिक उत्तेजना एवं अकस्मात होने वाली मृत्यु का कारक होता है।
केतु- कुष्ठ रोग, फोड़े फुंसी, चेचक, विस्फोटक पदार्थों से होने वाली मृत्यु एवं महामारी का कारक होता है।

नक्षत्र
१. कृतिका - सिर, २. रोहिणी- माथा, ३. मृगशिरा- भौहें, ४. आद्रा- नेत्र, ५. पुनर्वसु- नाक, ६. पुष्य- मुख व होंठ , ७. आश्लेषा- कान, ८. मघा- ठोढ़ी, ९. पूर्वाफाल्गुनी- दाहिना कान, १०. उत्तराफाल्गुनी- बायां कान, ११. हस्त- अंगुलियां, १२.  चित्रा- गला, १३. स्वाति- छाती, १४. विशाखा- ह्रदय, १५. अनुराधा- यकृत, १६. ज्येष्ठा- आमाशय, १७. मूल- कांख, १८. पूर्वाषाढ़ा- पीठ, १९. उत्तराषाढ़ा- रीढ़ की हड्डी, २०. श्रवण- नितम्ब, २१. धनिष्ठा- गुदाद्वार, २२. शतभिषा- दायीं जांघ, २३. पूर्वाभाद्रपद- बायीं जांघ, २४. उत्तराभाद्रपद- पिंडलियाँ, २५. रेवती- टखने, २६. अश्वनी- पाँव का ऊपरी भाग, २७. भरणी- तलवे। 


ऐसे में एक कुशल ज्योतिषी को चाहिये कि वह जातक की जन्म कुंडली में 12 भावों, 12 राशियों पर स्थित ग्रहों तथा उन पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रभावों तथा 27 नक्षत्रों पर स्थित ग्रहों का सूक्ष्म अध्ययन करके एवं रोगों के कारक ग्रहों  की स्थिति को ध्यान में रखकर फलादेश करे व उपाय बताये।

अब बात करते हैं आयु वृद्धि के उपायों की-
ज्योतिष शास्त्र में लग्न-लग्नेश, तृतीय-तृतीयेश, अष्टम-अष्टमेश एवम शनि यह सातों आयु के कारक माने गये हैं।
इन सातों का विचार करते हुए तथा रोग एवं मारकेश की स्थिति आदि का विचार करके उचित रत्नों, दान तथा मंत्रो का प्रयोग करके जातक की आयु 120 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
"शिवार्पणमस्तु"
Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 23 मार्च 2020

Devaasur Sangraam देवासुर संग्राम



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये मैं आने वाले समय में आसुरी शक्तियों के उदय एवं देव शक्तियों की पराजय के अति दुर्लभ योग का वर्णन करने जा रहा हूँ ।

अंततः वह समय आ ही गया जब 3 माह के लिये आसुरी शक्तियां जीवों के अवचेतन मन (Subconscious Mind)
को अपने नियंत्रण में ले लेंगी। यही वह समय होगा जब चारों ओर शुक्र का वासनात्मक प्रभाव होगा और जिसके कारण सात्विक से सात्विक उपासना करने वाले साधक भी शुक्र के इस प्रभाव से बच नहीं पायेंगे।

यही वह समय होगा जब बड़े-बड़े मठाधीश और धर्म उपदेशक भी जो अब तक अपने तात्कालिक लाभ के लिये ग्रहों की शक्तियों को नकारते रहे हैं, वह भी भोगों में लिप्त होकर अपनी साधनाओं से पृथक हो जायेंगे।

तीन माह के इस अवधिकाल में जब तक देव गुरु बृहस्पति की शक्तियां क्षीण रहेंगी तब तक भूत-प्रेतों को सिद्ध करने वाले 'वाममार्गी' तथा काले जादू (Black Magic) से दूसरों का जीवन नष्ट करने वाले 'तामसी साधक' अपने कार्यों में सफल होंगे तथा पैशाचिक साधनाओं के जानकार 'शमशान जागरण' जैसी प्राण घातक क्रियाओं में भी विजय प्राप्त करेंगे।

अंधकार और वनों में छुपकर निवास करने वाली पिशाचनियाँ एवं चुड़ैलें नर बलि देकर महाभयानक शक्तियां प्राप्त करेंगी। भीम पुत्र घटोत्कच के द्वारा बसाई गयी 'मायोंग' नगरी की मायावी शक्तियां पुनः जाग्रत हो उठेंगी।

28 मार्च 2020 को दैत्य गुरु शुक्र के 4 माह के लिये स्वराशि में प्रवेश करने के कारण उसके बलवान होने तथा 30 मार्च को 3 माह के लिये देव गुरु बृहस्पति के अपने नीच राशि में प्रवेश करने से उसके क्षीण होने के कारण विश्व में आध्यात्मिक और देव शक्तियां पराजित होने लगेंगी तथा संसार में दुष्ट एवं पैशाचिक शक्तियों का प्रादुर्भाव होगा।

यह ऐसा समय काल होता है जिसमें वाममार्गी, कापालिक साधकों के द्वारा की जाने वाली वाममार्गी साधनायें शीघ्रता से फल देती हैं तथा दक्षिण मार्गी और सात्विक साधकों को असफलता प्राप्त होती है।

ऐसे में जो साधक 'वाममार्गी' एवं 'कर्ण पिशाचनी' जैसी घोर तमोगुणी साधनाओं को करना चाहते हैं उनके लिये यह काल अमृत के समान सिद्ध होगा।

किंतु जो साधक इस समय का उपयोग "काले जादू (Black Magic)" के माध्यम से दूसरों के जीवन में "नकारात्मक ऊर्जा (Negative Energy)" को भेजने में करना चाहते हैं उन सभी को मेरी चेतावनी है कि ऐसा भूलकर भी न करें क्यों कि 3 माह के पश्चात बृहस्पति के वक्री गति से स्वराशि में प्रवेश करते ही देव शक्तियां बलवान होने लगेंगी जो उनके स्वयं का सर्वनाश कर देगीं।

यद्दपि इस 4 माह के अवधि काल में शुक्र के स्वराशि में रहने से सांसारिक सुखों को ही सर्वस्व मानने वाले भोगी मनुष्यो के सुखों में महान वृद्धि होगी तथापि मनुष्यों को नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से स्वयं को रक्षित तो करना ही होगा।

ऐसे में जो मनुष्य इन दुष्ट शक्तियों एवं तामसी साधकों द्वारा भेजी गई मूठ, कृत्या जैसी शक्तियों से बचना चाहते हैं वह सभी आगामी नवरात्रि में, अग्नि पराभूत करने वाले 'अर्जुन' के 12 नामों को भोजपत्र पर, अष्टगंध की स्याही से अनार की कलम द्वारा लिखकर, लाल वस्त्र में, अपनी दाहिनी भुजा में बांध लें, बांधते समय मन ही मन भगवती दुर्गा के मंत्रों का जाप करते रहें।

उच्च कोटि के विद्वान एवं दक्षिण मार्गी तंत्र साधक, देवताओं के लिये भी दुर्लभ और हर प्रकार की कृत्या को नष्ट करने की क्षमता रखने वाली महाविद्या 'विपरीत प्रत्यंगिरा' शक्ति का आवाह्न करें जिससे आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त की जा सके।

अर्जुन के 12 नाम इस प्रकार से हैं-

  1. धनञ्जय - राजसूय यज्ञ के समय बहुत से राजाओं को जीतने के कारण अर्जुन का यह नाम पड़ा।
  2. कपिध्वज - महावीर हनुमान अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहते थे, अतः इनका नाम कपिध्वज पड़ा।
  3. गुडाकेश - 'गुडा' कहते हैं निद्रा को। अर्जुन ने निद्रा को जीत लिया था, इसी से उनका यह नाम पड़ा था।
  4. पार्थ - अर्जुन की माता कुंती का दूसरा नाम 'पृथा' था, इसीलिए वे पार्थ कहलाये।
  5. परन्तप - जो अपने शत्रुओं को ताप पहुँचाने वाला हो, उसे परन्तप कहते हैं।
  6. कौन्तेय - कुंती के नाम पर ही अर्जुन कौन्तेय कहे जाते हैं।
  7. पुरुषर्षभ - 'ऋषभ' श्रेष्ठता का वाचक है। पुरुषों में जो श्रेष्ठ हो, उसे पुरुषर्षभ कहते हैं।
  8. भारत - भरतवंश में जन्म लेने के कारण ही अर्जुन का भारत नाम हुआ।
  9. किरीटी - प्राचीन काल में दानवों पर विजय प्राप्त करने पर इन्द्र ने इन्हें किरीट (मुकुट) पहनाया था, इसीलिए अर्जुन किरीटी कहे गये।
  10. महाबाहो - आजानुबाहु होने के कारण अर्जुन महाबाहो कहलाये।
  11. फाल्गुन - फाल्गुन का महीना एवं फल्गुनः इन्द्र का नामान्तर भी है। अर्जुन इन्द्र के पुत्र हैं। अतः उन्हें फाल्गुन भी कहा जाता है।
  12. सव्यसाची - 'महाभारत' में अर्जुन के इस नाम की व्याख्या इस प्रकार है-
उभौ ये दक्षिणौ पाणी गांडीवस्य विकर्षणे। तेन देव मनुष्येषु सव्यसाचीति माँ विदुः।।
अर्थात् -
जो दोनों हाथों से धनुष का संधान कर सके, वह देव मनुष्य सव्यसाची कहा जाता है।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

Mahamariyon Ka Kaaran Aur Nivaran महामारियों का कारण और निवारण



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये आज मैं संसार में महामारियों के कारक ग्रह केतु के विषय में विस्तार पूर्वक बताने जा रहा हूँ-

ज्योतिष शास्त्र में सभी प्रकार की महामारियों का कारक ग्रह 'केतु' को माना गया है । केतु एक धूम्र वर्ण का छाया ग्रह है जो कि अकस्मात शुभाशुभ फल देने के लिये प्रसिद्ध है। यह 'मंगल' के समान फल देता है, जिस ग्रह और जिस राशि में बैठा होता है उसकी भी छाया ले लेता है तथा अचानक से दुर्घटना, आगजनी, बम विस्फोट, नृशंस हत्याओं के लिये उत्तरदायी होता है।

विषाणु(Virus) जनित भयानक महामारियां जैसे (पोलियो, कोढ़, चेचक(Pox), प्लेग, स्वाइन फ्लू (H1N1), इबोला, जीका, कोरोना (Covid-19)आदि जो पूर्व में प्रकट हो चुकी हैं अथवा जितनी भी महामारियां भविष्य में प्रकट होने वाली हैं इन सभी का कारक केतु ही होता है। फोड़ें -फुंसी, सफेद दाग आदि भी जन्म कुंडली मे केतु की अशुभ स्थिति के कारण ही होते हैं।

कोढ़ी व्यक्ति, कुत्तों, भेड़ियों, लोमड़ियों तथा लकड़बग्घों में इसकी नकारात्मक ऊर्जा सर्वाधिक मानी जाती हैं यही कारण है कि शास्त्रों के अनुसार घरों में कुत्ता पालन निषेध किया गया है तथा कुत्ते के स्पर्श होने पर वस्त्र सहित स्नान करने का विधान निश्चित किया गया है जिससे केतु जनित रोगों से बचा जा सके।

ज्योतिष के ग्रंथों में केतु की अशुभ दशा प्राप्त होने पर कोढ़ी व्यक्तियों तथा कुत्तों को प्रसन्न करने का उल्लेख मिलने का भी यही कारण है कि इन दोनों को प्रसन्न करके स्वयं के लिए घातक केतु की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को कम किया जा सके।

यह तो बात हुई कारण की अब बात करते हैं निवारण की, तो देखिये संसार में जितने भी प्रकार के विषैले और हानिकारक तत्व हैं अथवा परमाणु विकिरण( Nuclear Radiation) हैं उन सभी को ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व, 'शिवलिंग' के माध्यम से निरन्तर अपने अंदर अवशोषित करता रहता है, जिसके कारण संसार के प्राणी इन विषैले तत्वों की भयानक ऊर्जा से बचे रहते हैं । यही कारण है कि हम वैदिक मंत्रों के द्वारा निरंतर शिवलिंग को जल, दुग्ध, घी, शहद आदि से शांत करने का प्रयास करते रहते हैं जिससे कि उस परम कल्याणमयी शिवलिंग के द्वारा हम विषैले तत्वों की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बचे रहें।

चूंकि केतु की ऊर्जा के कारण इन विषैले तत्वों को फैलने का माध्यम मिलता है अतः केतु की नकारात्मकता को रोकने का सामर्थ्य केवल भगवान् 'शिव' और उनकी 'शक्ति' में ही है अतः शिव-शक्ति की उच्च कोटि की साधनाओं के द्वारा केतु की उग्रता को समाप्त किया जा सकता है ।

प्राचीन काल में राजा-महाराजा इन महामारियों तथा अन्य अनिष्टकारी घटनाओं से अपनी तथा अपनी प्रजा की रक्षा के लिये समय-समय पर अपने कुल गुरुओं की आज्ञा से वैदिक तथा तांत्रिक विद्वानों की सहायता से बड़े-बड़े यज्ञ अनुष्ठान आदि करवाया करते थे, वर्तमान में न तो वह शासक ही धर्म के पथ पर चलने वाले रहे और न साधक ही।

ऐसे समय में अच्छे वेदपाठी तथा तांत्रिक विद्वान ढूंढना ही दुष्कर कार्य है तथा वह मिल भी जायें तो भारत के अधर्मी, विधर्मी तत्व ऐसे यज्ञों-अनुष्ठानों को क्रियान्वित नहीं होने देंगे जिनकी सहायता से कोरोना वायरस जैसी महामारियों का पूर्णतः विनाश किया जा सकता है।

ऐसे में भारत सरकार यदि उच्च कोटि के विद्वानों द्वारा प्रत्येक जिले में 1-1 'कोटि चंडी' अनुष्ठान, वेदपाठियों द्वारा सामूहिक रुद्राभिषेक तथा उच्च कोटि के तांत्रिक विद्वानों द्वारा दस महाविद्याओं के यज्ञों के आयोजन करवाये तो आगामी 10 वर्षों तक कोरोना वायरस ही नहीं अनेक प्रकार की दुष्ट शक्तियों से भारत तथा भारतवासियों की रक्षा हो सकेगी, साथ ही 'भगवती चंडी' के आशीर्वाद से राष्ट्र में रहकर राष्ट्र को क्षीण करने वाले 'दानव दलों' का सर्वनाश होगा तथा 'महाकाली' के आशीर्वाद के कवच से राष्ट्र की सीमायें भी सुरक्षित होंगी जिससे सनातन धर्म का भगवा ध्वज सम्पूर्ण दिशाओं में अपना परचम लहरायेगा तथा हिंदुत्व के शंखनाद से दसों दिशाओं में व्याप्त पैशाचिक शक्तियों का विनाश किया जा सकेगा।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

Gochar main Mangal- Ketu Yuti गोचर में मंगल-केतु युति




भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों का ध्यान करते हुये मैं 8 फरवरी  2020 को गोचर में होने जा रही मंगल-केतु युति के परिणामस्वरूप घटित होने वाली घटनाओं की पूर्व चेतावनी देने जा रहा हूँ-

गोचर में 26 दिसम्बर  2019 से अपनी ही राशि वृश्चिक में भ्रमण कर रहे मंगल 8 फरवरी  2020 को प्रातः  3:52 मिनट पर अपनी राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं ।

इस दिन मंगल अपनी राशि वृश्चिक को छोड़कर बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करेंगे जहां पहले से ही गुरु और केतु भ्रमण कर रहे हैं।

अतः गोचर में इस राशि परिवर्तन के साथ ही मंगल की केतु और बृहस्पति के साथ युति होने जा रही है जो कि 22 मार्च  2020को प्रातः  4:39 मिंनट तक रहेगी।
तत्पश्चात मंगल अपनी उच्च राशि मकर में पहले से ही स्थित शनि के साथ चले जायेंगे।

8 फरवरी से लेकर 22 मार्च तक के इस अवधि काल के अंतर्गत जब तक मंगल-केतु की युति रहेगी विश्व में भारी हिंसा, बम विस्फोट, आगजनी, साम्प्रदायिक दंगे, दो देशों में युद्धों की स्थिति, ट्रेन, बस, प्लेन दुर्घटनायें आदि देखने को मिलेंगी। तथा लोगों में हिसा की भावना में वृद्धि होगी।

चिकित्सा के क्षेत्र में अचानक सर्जरी आदि में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलेगी, और इस अवधि काल में समस्त विश्व में बहुत ऑपरेशन होंगे।

यद्द्पि देव गुरु बृहस्पति की इन दोनों ग्रहों के साथ युति इस विनाशकारी योग की विध्वंसकारी शक्ति को कम करने का प्रयास करेगी तथापि विश्व में इन घटनाओं को घटित होने से रोक नहीं पायेगी।

ऐसे में जिन लोगों की जन्म कुंडली में पहले से ही मंगल-केतु अशुभ स्थिति में हों अथवा उनकी युति जन्म कुंडली के किसी भी भाव में हो और दशा-अंतर्दशा भी अशुभ चल रही हो उन्हें इस अवधि काल में दूर की यात्रा टाल देनी चाहिये अन्यथा शरीर के जिस भाव मे यह युति होगी दुर्घटना से उस अंग की क्षति हो सकती है।

इस अवधिकाल में लोगों को यथा संभव तामसी आहार जैसे मांस-मदिरा आदि के प्रयोग से बचना चाहिये तथा किसी योग्य वैदिक विद्वान की सहायता से मंगल-केतु का वैदिक मंत्रों से हवन करवा लेना चाहिये और स्वयं हनुमान जी की उपासना करनी चाहिये जिससे मंगल-केतु युति की मारक क्षमता के प्रभाव को कम किया जा सके।

सभी को इस दुर्योग से बचाव के लिये केतु को प्रसन्न करने हेतु कुष्ठ रोगियों और कुत्तों की सेवा तथा मंगल की प्रसन्नता के लिये लाल वस्तुओं के दान मंगलवार के दिन मंगल की होरा में करने चाहिये तथा लाल एवं धूम्र वर्ण के वस्त्रों को धारण करने से बचना चाहिये जिससे मंगल-केतु की नकारात्मक रश्मियों के प्रभाव से उनका अवचेतन मन (Subconscious Mind) मुक्त रहे।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 19 अगस्त 2019

Tantra Peethika Rahasay तंत्र पीठिका रहस्य



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों मे अपना मस्तक रखते हुये तथा 'कालीतत्व रहस्य', दुर्गातत्व तथा पदार्थदर्श (शारदातिलक की व्याख्या) के रचनाकार और वेदांत तथा आगम शास्त्र के प्रकांड पंडित 'राघवभट्ट' जी को प्रणाम करते हुए मैं तंत्र शास्त्र में वर्णित उन चार पीठिकाओं का वर्णनं करने जा रहा हूँ जिनके बिना मंत्र सिद्धि नहीं की जा सकती।  दक्षिणमार्गी, मध्यममार्गी तथा वाम मार्गी तीनों ही प्रकार के साधकों के लिए उपयोगी ये चार पीठिकायें इस प्रकार हैं- 
१- श्मशान पीठ, २- शव पीठ, ३- अरण्य पीठ, 4- श्यामा पीठ 

(श्मशान पीठ)

जिस साधना में प्रतिदिन रात्रि काल में श्मशान भूमि में जाकर यथाशक्ति विधि से मन्त्र का जाप किया जाता है उसे 'श्मशान' पीठ कहते हैं। जितने दिन का प्रयोग होता है, उतने दिन तक मन्त्र का साधन यथाविधि किया जाता है। अधिकांशतः तंत्र साधक इसी पीठ का आश्रय लेते हैं क्यों कि यह पीठ शेष तीन पीठिकाओं के अपेक्षाकृत सरल है।

(शव पीठ)

किसी मृत कलेश्वर के ऊपर बैठकर या उसके भीतर घुसकर मन्त्रानुष्ठान संपूर्ण करना 'शव-पीठिका' है। प्रायः वाममार्गियों में इस पीठिका की प्रधानता देखी जाती है। कर्णपिशाचिनी, उच्छिष्ठ चाण्डालिनी, कर्णेश्वरी, उच्छिष्ठ गणपति
आदि उग्र शक्तियों की साधना तथा अघोर पंथियों की साधनाएं इसी पीठिका के द्वारा सम्पन्न होती हैं।

(अरण्य पीठ)

मनुष्य जाति का जहां संचार न हो, हिंसक पशुओं जैसे बाघ, सिंह, भालू, भेड़िये, विषैले सर्प आदि जहां बहुतायत में निवास करते हों, ऐसे निर्जन वन-स्थान में किसी पवित्र वृक्ष अथवा शून्य मंदिर (जहां कोई मनुष्य न आता जाता हो) का आश्रय लेकर मन्त्र-साधना करना और निर्भयतापूर्वक मन को एकाग्र रखकर तल्लीन हो जाना 'अरण्य-पीठिका' है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि इसी पीठिका का आश्रय लेकर महान सिद्धियों को प्राप्त किया करते थे। 

(श्यामापीठ)

यह अत्यंत कठिन से कठिनतर पीठिका है , बहुत कम मनुष्य इस पीठिका से उत्तीर्ण हो सकते हैं। एकांत में किसी षोडशवर्षीय, नवयौवना, सुंदर कन्या को वस्त्र-रहित कर, स्वयं उसके सम्मुख बैठकर साधक मन्त्र-साधने में तत्पर हो तथा मन मे काम-वासना के विचार लाना तो दूर एक पल के लिए भी अपने मन को विचलित न होने दे और कठोर ब्रह्मचर्य में स्थित रहकर मन्त्र का साधन करे, इसे ही 'श्यामा-पीठिका' कहते हैं।  
जैन-ग्रन्थ में लिखा है कि द्वैपायनपुत्र मुनीश्वर शुकदेव, स्थूलिभद्राचार्य और हेमचंद्राचार्य ने इस पीठिका का आलम्बन लेकर मन्त्र-साधना की थी तथा वह सिद्ध हुये थे। 

चेतावनी- 
अंतिम और सर्वाधिक कठिन पीठिका (श्यामा पीठ) का वर्णन मैंने यहां केवल ज्ञान देने के उद्देश्य की पूर्ति मात्र के लिये किया है तथा यह पीठ कंठ तक वासना में डूबे कलियुगी मनुष्यों के लिए नहीं है, जिसका कारण यह है कलियुगी मनुष्यों में इतना संयम नहीं है कि वह इस पीठिका से उत्तीर्ण हो सकें तथा यह हमारी वर्तमान न्याय-व्यवस्था द्वारा दंडनीय अपराध भी है। अतः वर्तमान न्याय-व्यवस्था का सम्मान करते हुए भी किसी भी व्यक्ति को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये। तब भी यदि कोई साधक इस पीठिका का प्रयोग सिद्धियों की प्राप्ति के लिये करता है तो वह अपने विनाशकारी कर्म के लिये स्वयं ही उत्तरदायी होगा।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

Gati ya Adhogati गति या अधोगति




भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये तथा ऋषि पराशर जी के वचनों में श्रद्धा रखते हुये, आज मैं ज्योतिषशास्त्र के उन तीन गुप्त रहस्यों को प्रकट करने जा रहा हूँ जिसके विषय में जानने की हर मनुष्य की इच्छा होती है, वह तीन रहस्य इस प्रकार से हैं -

१- मनुष्य किस लोक से पृथ्वी पर आया है ?

२- मृत्यु के पश्चात उसके शव की क्या गति होगी ?

३- मृत्यु के पश्चात वह किस लोक को जायेगा ? 

रविचन्द्रबलाक्रांन्तम् त्र्यंशनाथे गुरौ जनः।
देवलोकात् समायातो विज्ञेयो द्विजसत्तम।।
शुक्रेन्द्वो: पितृलोकात्तु मर्त्याच्च रविभौमयोः।
बुधSSकर्योर्नरकादेवं जन्मकालाद्वदेत् सुधी:।।
अर्थात
रवि और चन्द्रमा जो बली हों वह यदि गुरु के द्रेष्काण में हों तो जातक देवलोक से आया है,अर्थात जन्म लेने से पूर्व वह देवलोक में रहता था, ऐसा जानना चाहिये। यदि शुक्र या चन्द्रमा के द्रेष्काण में हो तो वह पितृलोक (चन्द्रलोक) से आया है। इसी प्रकार यदि सूर्य-मंगल के द्रेष्काण में मर्त्यलोक से एवं बुध या शनि के द्रेष्काण में हो तो वह जातक नरक से आया है, ऐसा जानना चाहिये।

अग्न्यम्बु मिश्रभत्र्यंशैर्ज्ञेयो मृत्युरगृहाश्रितै:।
परिणामः शवस्याSत्र भस्मसंक्लेदशोषकै:।।
व्यालवर्गदृकाणयैस्तु विडम्बो भवति ध्रुवम्।
शवस्य स्वश्रृगालाधैर्गध्रकाकादिपक्षिभि:।।
अर्थात
लग्न से अष्टम स्थान में अग्नि तत्व वाले ग्रह का द्रेष्काण हो अर्थात अशुभ ग्रहों का द्रेष्काण हो तो जातक का शव अग्नि में जलाया जाता है। जलचर वाले ग्रह का द्रेष्काण हो तो जल में फेंका जाता है, मिश्र अर्थात शुभ-अशुभ ग्रहों का द्रेष्काण रहने से जातक का शव सूख जाता है। यदि व्याल (सर्प) द्रेष्काण हो तो कुक्कुर,श्रृगालादि हिंसक जंतुओं से या कौवा आदि पक्षियों से चञ्चु द्वारा चोंच से नोचकर शव का भक्षण किया जाता है।

गुरुश्चन्द्रसितौ सूर्यभूमौ ज्ञार्की यथाक्रमम्।
देवेन्दुभूम्यधोलोकान् न्यन्त्यस्तारिरंध्रगा:।।
अर्थात
लग्न से ६,७,८ भावों में गुरु (ब्रहस्पति) गया हो तो जातक देवलोक में जाता है एवं उक्त स्थानों में चंद्रमा-शुक्र हो तो जातक चंद्रलोक (पितृलोक) में जाता है तथा सूर्य-मंगल हो तो मर्त्य ( भूलोक) में और बुध-शनि उक्त स्थानों में स्थित हों तो जातक मरण के अनंतर अधोलोक (नरक) में जाता है । उक्त स्थानों में अधिक ग्रह बैठे हों तो जो ग्रह सार्वधिक बली हो वह ग्रह जिस लोक का कारक हो, जातक मरण के बाद उसी लोक में जाता है।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

Dus Mahavidhya Rahasaya दस महाविद्या रहस्य




दस महाविद्यायें और उनकी उत्त्पत्ति का रहस्य 

दस महाविद्याओं का संबंध परंपरातः सती (शिवा, पार्वती) से है। सती के पिता दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में भगवान् शिव को आमंत्रित नहीं किया, सती ने शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। शिव ने अनुचित बताकर उन्हें रोका, परंतु सती अपने निश्चय पर अटल रहीं।

उन्होंने कहा- मैं प्रजापति के यज्ञ में अवश्य जाऊँगी और वहां या तो अपने प्राणेश्वर देवाधिदेव के लिये यज्ञभाग प्राप्त करूंगी या उस यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी।

यह कहते हुये सती के नेत्र लाल हो गये, वे शिव को उग्र दृष्टि से देखने लगीं, उनके अधर फड़कने लगे, वर्ण कृष्ण हो गया, क्रोधाग्नि से दग्ध शरीर महाभयानक एवं उग्र दिखने लगा।

देवी का यह स्वरूप साक्षात महादेव के लिये भी भयप्रद और प्रचण्ड था। उस समय उनका श्री विग्रह करोड़ों मध्याह्न के सूर्यों के समान तेज-सम्पन्न था और वे बार बार अट्टहास कर रही थीं।

देवी के इस विकराल रूप को देखकर शिव(लीलावश) भाग चले। भागते हुये रुद्र को दसों दिशाओं में रोकने के लिये देवी ने अपनी अङ्गभूता दस देवियों को प्रकट किया। देवी की ये स्वरूपा शक्तियां ही 'दस महाविद्याएं' हैं । 

जिनके नाम हैं-  (१) काली(२) तारा (३) छिन्नमस्ता (४) भुवनेश्वरी (५) बगलामुखी (६) धूमावती (७) त्रिपुर सुंदरी (८) मातङ्गी (९) षोडशी (१०) त्रिपुर भैरवी।

शिव ने सती से इन महाविधाओं का जब परिचय पूँछा तब सती ने स्वयं इसकी व्याख्या करके उन्हें बताया-

येयं  ते पुरतः  कृष्णा सा काली भीमलोचना ।
श्यामवर्णा च या देवी स्वयमूर्ध्वं व्यवस्थिता ।।
सेयं   तारा   महाविद्या  महाकालस्वरूपिणी ।
सव्येतरेयं     या   देवी    विशीर्षातिभयप्रदा ।।
इयं    देवी   छिन्नमस्ता   महाविद्या   महामते ।
वामे   त्वेयं   या   देवी  सा  शम्भो भुवनेश्वरी ।।
पृष्ठतस्तव     या    देवी    बगला    शत्रुसूदनी ।
वह्निकोणे    तवेयं    या  विधावारूपधारिणी ।।
सेयं    धूमावती     देवी    महाविधा    महेश्वरी ।
नैऋत्यां   तव    या    देवी   सेयं   त्रिपुरसुंदरी ।।
वायौ   या   ते  महाविद्या  सेयं   मतङ्गकन्यका ।
ऐशान्यां   षोडशी   देवी  महाविद्या   महेश्वरी  ।।
अहं   तु  भैरवी  भीमा  शम्भो  मा  त्वं  भयं कुरु ।
एताः    सर्वा:   प्रकृष्टास्तु    मूर्तयो   बहुमूर्तिषु ।।

'शम्भो ! आपके सम्मुख जो यह कृष्णवर्णा एवं भयंकर नेत्रों वाली देवी स्थित हैं वह 'काली' हैं । जो श्याम वर्ण वाली देवी स्वयं ऊर्ध्व भाग में स्थित हैं यह महाकालस्वरूपिणी महाविद्या 'तारा' हैं । महामते ! बायीं ओर जो यह अत्यन्त भयदायिनी मस्तकरहित देवी हैं, यह महाविद्या 'छिन्नमस्ता' हैं । शम्भो ! आपके वामभाग में जो यह देवी हैं वह 'भुवनेश्वरी' हैं । आपके पृष्ठभाग में जो देवी हैं वह शत्रु संहारिणी 'बगला' हैं । आपके अग्निकोण में जो यह विधवा का रूप धारण करने वाली देवी हैं वह महेश्वरी महाविद्या 'धूमावती' हैं । आपके नैऋत्य कोण में जो देवी हैं वह 'त्रिपुरसुंदरी' हैं । आपके वायव्यकोण में जो देवी हैं वह मतङ्गकन्या महाविद्या 'मातङ्गी' हैं । आपके ईशानकोण में महेश्वरी महाविद्या 'षोडशी' देवी हैं । शम्भो ! मैं भयंकर रूप वाली 'भैरवी' हूँ । आप भय मत करें ! ये सभी मूर्तियां बहुत सी मूर्तियों में प्रकृष्ट हैं ।

इस प्रकार 'श्रीमन्महीधर भट्ट' द्वारा रचित दिव्य ग्रन्थ 'मंत्र महोदधि' में वर्णित 'दस महाविद्याओं' की उत्पत्ति का रहस्य समाप्त हुआ।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

Pralay Ka Varnana प्रलय का वर्णन



पवित्र महाभारत ग्रन्थ के 'शांतिपर्व' के अन्तर्गत 'मोक्षधर्मपर्व' में वर्णन किया गया है कि 'भगवान् शंकर', किस प्रकार से 'प्रलयरुद्र' बनकर सृष्टि का संहार कर देते हैं। 
भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये मैं 'संहारक क्रम' बताने जा रहा हूँ।

याज्ञवल्क्य उवाच
यथा संहरते जन्तून् ससर्ज च पुनः पुनः।
अनादिनिधनो ब्रह्मा नित्यश्चाक्षर एव च।।
याज्ञवल्क्य जी बोले
राजन् ! आदि और अंत से रहित नित्य अक्षरस्वरूप ब्रह्माजी किस प्रकार बारंबार प्राणियों की सृष्टि और संहार करते हैं यह बता रहा हूँ, ध्यान देकर सुनो।

अहः क्षयमथो बुद्ध्वा निशि स्वप्नमनास्तथा।
चोदयामास भगवानव्यक्तोSहंकृतं नरम्।।
भगवान् ब्रह्मा जी जब देखते हैं कि मेरे दिन का अंत हो गया है तब उनके मन में रात को शयन करने की इच्छा होती है, इसलिये वे अहंकार के अभिमानी देवता रुद्र को संहार करने के लिये प्रेरित करते हैं।

ततः शतसहस्त्रांशुरव्यक्तेनाभिचोदितः।
कृत्वा द्वादशधाSSत्मानमादित्यो ज्वलदग्निवत्।।
उस समय वे रुद्रदेव ब्रह्माजी से प्रेरित होकर प्रचंड सूर्य का रूप धारण करते हैं और अपने को बारह रूपों में अभिव्यक्त करके अग्नि के समान प्रज्ज्वलित हो उठते हैं।

चतुर्विधं महीपाल निर्दहत्याशु तेजसा।
जरायुजाण्डजस्वेदजोदिभज्जं च नराधिप।।
भूपाल ! नरेश्वर ! फिर वे अपने तेज से "जरायुज,अण्डज,स्वेदज और उदिभज्ज" इन चार प्रकार के प्राणियों से भरे हुये सम्पूर्ण जगत् को शीघ्र ही भस्म कर डालते हैं।

एतदुन्मेषमात्रेण विनष्टं स्थाणु जङ्गमम्।
कूर्मपृष्ठसमा भूमिर्भवत्यथ समन्ततः।।
पलक मारते-मारते इस समस्त चराचर जगत् का नाश हो जाता है और यह भूमि सब ओर से कछुए की पीठ की तरह प्रतीत होने लगती है।

जगद्  दग्ध्वामितबलः केवलां जगतीं ततः।
अम्भसा बलिना क्षिप्रमापूरयति सर्वशः।।
जगत् को दग्ध करने के बाद अमित बलवान् रुद्रदेव इस अकेली बची हुई सम्पूर्ण पृथ्वी को शीघ्र ही जल के महान प्रवाह में डुबो देते हैं।

ततः कालाग्निमासाद्य तदम्भो याति संक्षयम्।
विनष्टेSम्भसि राजेन्द्र जाज्वलत्यनलो महान्।।
तदन्तर कालाग्नि की लपट में पड़कर वह सारा जल सूख जाता है। राजेन्द्र ! जल के नष्ट हो जाने पर अग्नि भयानक रूप धारण करती है और सब ओर से बड़े जोर से प्रज्ज्वलित होने लगती है।

तमप्रमेयोSतिबलं ज्वलमानं विभावसुम्।
ऊष्माणम् सर्वभूतानां सप्तार्चिषमथाञ्जसा।।
भक्षयामास भगवान् वायुरष्टात्मको बली।
विचरन्नमितप्राणस्तिर्यगूर्ध्वमधस्तथा।।
सम्पूर्ण भूतों को गर्मी पहुंचाने वाली तथा अत्यंत प्रबल वेग से जलती हुई उस सात ज्वालाओं से युक्त आग को बलवान् वायुदेव अपने आठ रूपों में प्रकट होकर निगल जाते हैं और ऊपर नीचे तथा बीच में सब ओर प्रवाहित होने लगते हैं।

तमप्रतिबलं भीममाकाशं ग्रसतेSSत्मना।
आकाशमप्यभिनदन्मनो ग्रसति चाधिकम्।।
तदन्तर आकाश उस अत्यंत प्रबल एवं भयंकर वायु को स्वयं ही ग्रस लेता है। फिर गर्जन-तर्जन करने वाले उस आकाश को उससे भी अधिक शक्तिशाली मन अपना ग्रास बना लेता है।

मनो ग्रसति भूतात्मा सोSहंकारः प्रजापतिः।
अहंकारं महानात्मा भूतभव्यभविष्यवित्।।
क्रमशः भूतात्मा और प्रजापतिस्वरूप अहंकार मन को अपने में लीन कर लेता है। तत्पश्चात भूत, भविष्य और वर्तमान का ज्ञाता बुद्धिस्वरूप महत्तत्व अहंकार को अपना ग्रास बना लेता है।

तमप्यनुपमात्मानं विश्वं शम्भु: प्रजापति:।
अणिमा लघिमा प्राप्तिरीशानो ज्योतिरव्यय:।।
सर्वतः पाणिपादान्तः सर्वतोSक्षिशिरोमुखः।
सर्वतः श्रुतिमाँल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति।।
हृदयं सर्वभूतानां पर्वणाड्गुष्ठमात्रक:।
अथ ग्रसत्यनन्तो हि महात्मा विश्वमीश्वरः।।
इसके बाद, जिनके सब ओर हाथ-पैर हैं, सब ओर नेत्र , मस्तक और मुख हैं , सब ओर कान हैं तथा जो जगत् में सबको व्याप्त करके स्तिथ हैं, जो सम्पूर्ण भूतों के हृदय में अँगुष्ठ पर्व के बराबर आकर धारण करके विराजमान हैं। अणिमा, लघिमा और प्राप्ति आदि ऐश्वर्य जिनके अधीन हैं, जो सबके नियन्ता ज्योतिःस्वरूप , अविनाशी, कल्याणमय, प्रजा के स्वामी , अनन्त, महान और सर्वेश्वर हैं , वे परब्रह्म परमात्मा उस अनुपम विश्वरूप बुद्धितत्व को अपने में लीन कर लेते हैं।

ततः समभवत्  सर्वमक्षयाव्ययमव्रणम्।
भूतभव्यभविष्याणाम् स्त्रष्टारमनघम् तथा।।
तदन्तर ह्रास और वृद्धि से रहित, अविनाशी और निर्विकार, सर्वस्वरूप परब्रह्म ही शेष रह जाता है उसी ने भूत, भविष्य और वर्तमान की सृष्टि करने वाले निष्पाप ब्रह्मा की भी सृष्टि की है।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava