Translate

सोमवार, 16 अगस्त 2021

सूर्य का स्वराशि में प्रवेश

 
एक वर्ष के उपरान्त आज मध्य रात्रि १ बजकर १७ मिनट पर ग्रहों के राजा सूर्य का अपनी ही राशि 'सिंह' में प्रवेश होने जा रहा है, जो कि वहां १६ सितम्बर २०२१ तक रहेंगे। सिंह राशि में ग्रहों के सेनापति 'मंगल' पहले से ही विराजमान हैं ।

सिंह राशि में ग्रहों के राजा 'सूर्य' और सेनापति 'मंगल' का यह योग देश के प्रधानमंत्री और सभी सेनाओं के सेनाध्यक्षों को अत्यन्त शक्ति प्रदान करने वाला होगा। गोचर में ग्रहों का यही योग राज्यों में मुख्यमंत्रियों और उनके साथ कार्य करने वाले पुलिस के सर्वोच्च अधिकारियों को भी शक्ति प्रदान करने का कार्य करेगा। ऐसे में यदि केंद्र और राज्य सरकारें चाहें तो आगामी एक माह तक सभी प्रकार की राष्ट्र विरोधी शक्तियों को अत्यन्त तीक्ष्ण क्षति पहुँचा सकती हैं ।

प्राचीन काल में राजाओं के पास राज-ज्योतिषी इसी कार्य के लिए हुआ करते थे जो राजाओं को उचित मार्गदर्शन देकर राज्य की रक्षा करने में इस महान विधा का उपयोग किया करते थे। आज यदि भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित करना है तो इसमें ज्योतिष विद्या एक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है।

सभी राशि-लग्नों वाले जातकों के लिए सूर्य का स्वराशि में प्रवेश निम्न फल प्रदान करने वाला होगा-
मेष राशि-मेष लग्न
सूर्य आपके पंचम भाव में गोचर करेंगे । इस राशि-लग्न के जातक यदि हृदय योगी हों और वह अपना ऑपरेशन करवाना चाहते हैं तो वह करवा सकते हैं, पढ़ने वाले छात्रों के लिए यह समय प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता लेकर आएगा । पेट में एसिड न बने इसका ध्यान रखें।

वृष राशि-वृष लग्न
प्रॉपर्टी से सम्बंधित रुकावटें दूर होंगी, माता के स्वास्थ्य में सुधार होगा, नया वाहन लेने जा रहे हों तो ले सकते हैं।

मिथुन राशि- मिथुन लग्न
छोटे भाई-बहनों में से किसी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं चल रहा हो तो उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा। स्वयं के पराक्रम में वृद्धि होगी। विदेश यात्रा की रुकावटें दूर होंगी।

कर्क राशि-कर्क लग्न
आकस्मिक धन लाभ के योग बनेंगे, वाणी स्थान पर सूर्य के आगमन के कारण आप आक्रामक वाणी का प्रयोग करेंगे, नेत्रों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है।

सिंह राशि-सिंह लग्न
आपके लग्न में ही सूर्य के आ जाने के कारण स्वास्थ्य का लाभ होगा, मान सम्मान की वृद्धि होगी किन्तु सूर्य की सप्तम शत्रु दृष्टि जीवन साथी के भाव मे पड़ने से जीवन साथी के साथ विवाद भी उत्पन्न होगा।

कन्या राशि-कन्या लग्न
12 वें भाव मे सूर्य का गोचर आपके नेत्रों के लिए कष्टकारक होगा, एड़ी से पंजों के मध्य कोई चोट लग सकती है।

तुला राशि-तुला लग्न
बड़े भाई बहनों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, आपके स्वयं के लाभ में वृद्धि होगी।

वृश्चिक राशि- वृश्चिक लग्न
सरकारी नौकरी के योग बनेंगे, इस राशि-लग्न के जो जातक ठेकेदारी का कार्य करते हैं उनको सरकारी ठेके मिलने के प्रबल योग बनेंगे, राजनीति में उच्च पद प्राप्ति के योग बनेंगे। पिता से धन की प्राप्ति होगी, माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

धनु राशि-धनु लग्न
पिता के स्वास्थ्य में लाभ होगा, भाग्य से कार्यों में सफलता प्राप्त होगी, छोटे भाई-बहनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, विदेश यात्रा से बचें।

मकर राशि-मकर लग्न
जीवन साथी के नेत्रों में कष्ट होगा परंतु जीवन साथी को धन प्राप्ति के योग भी बनेंगे । यदि इस राशि-लग्न का कोई जातक मृत्युशैया पर हुआ तो अकस्मात् ही उसको अपने स्वास्थ्य में चमत्कारिक सुधार देखने को मिलेगा।

कुम्भ राशि-कुम्भ लग्न
जीवन साथी के स्वास्थ्य में सुधार होगा, जीवन साथी को मानसम्मान की प्राप्ति होगी परंतु आपका उनसे मतभेद हो सकता है।

मीन राशि-मीन लग्न
शत्रु पराजित होंगे। कोर्ट केस में विजय प्राप्ति होगी परन्तु लंबी दूरी की यात्रा से बचें। दादी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

नोट- जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा शुभ ग्रहों की चल रही हो और जन्मकुंडली में सूर्य भी अच्छी स्थिति में हुआ केवल उन्हीं जातकों को सूर्य के इस राशि परिवर्तन के शुभ फल प्राप्त होंगे और अशुभ फल भी घटित नहीं होंगे।

इसके विपरीत जिन जातकों की दशा-अन्तर्दशा उनकी जन्म कुंडली मे स्थित अशुभ ग्रहों की चल रही होगी और जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य भी अशुभ स्थिति में होंगे उनके लिए सूर्य का यह गोचर भी लाभकारी नहीं होगा।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 20 मई 2021

ज्योतिष का रहस्य : भाग - २


भगवान् शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं वैदिक ज्योतिष के कुछ गूढ़ रहस्यों को प्रकट करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरा यह लेख ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को अनन्त काल तक दिशा प्रदान करता रहेगा। 

अपने इतने वर्षों के अध्ययन, शोध और Professional Career से प्राप्त अनुभव के आधार पर मैंने यह पाया कि यदि किसी जातक की जन्मकुण्डली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो, नीच राशि में हो और वह नीचभंगता को भी प्राप्त नहीं हो रहा हो, तो वह ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर अशुभ फल ही देगा। 

यही नहीं, ऐसा ग्रह उस जातक के जन्म और चंद्र लग्न दोनों ही पर लगाए जाने वाले गोचर में यदि शुभ स्थिति में भी भ्रमण कर रहा होगा तब भी वह उस जातक को उतना शुभ फल देने में समर्थ नहीं हो सकेगा जितना किसी अन्य जातक को देगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में उस ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है।  

इसके विपरीत यदि कोई ग्रह किसी जातक की जन्मकुण्डली में शुभ स्थिति में है तो ऐसा ग्रह उस जातक को अपनी महादशा,अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा और प्राणदशा काल में भी जीवन भर शुभ फल ही देगा। ऐसा ग्रह गोचर में यदि अशुभ स्थिति में भी भ्रमण करेगा तो भी वह ग्रह उस जातक को उतना अशुभ फल देने में समर्थ नहीं होगा जितना किसी अन्य के लिए होगा, क्योंकि जन्मकुण्डली में वह ग्रह शुभ स्थिति में है। 

साधारणतः ज्योतिषी इन बातों पर तो विचार कर लेते हैं कि ग्रहों का बलाबल कितना है ? नवांश कुण्डली में उनकी स्थिति कैसी है ? पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की किससे मित्रता-शत्रुता है ? ग्रह कारक-अकारक-मारक में से कौन सा है ? ग्रह को केन्द्राधिपति दोष तो नहीं है ? कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हो गया ? आदि-आदि ! 

किन्तु सूक्ष्म परीक्षण करते समय उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिये कि वह ग्रह जिन राशियों के स्वामी हैं, उन राशियों में कौन -कौन से ग्रह स्थित हैं क्योंकि एक सूक्ष्म सिद्धांत यह भी है कि यदि कोई ग्रह जिस भी राशि में होगा उस राशि के स्वामी ग्रह की दशा-अंतर्दशा प्राप्त होने पर वह ग्रह भी पीछे से अपना फल अवश्य देगा। 

उदाहरण के लिये मान लेते हैं किसी जातक की शुक्र की २० वर्ष की महादशा आरम्भ हुयी और और शुक्र की दोनों राशियों (वृष-तुला) पर राहु व शनि बैठे हैं और जन्मकुंडली में शुक्र अत्यन्त शुभ स्थिति में हैं, योगकारक भी हैं, तब भी ऐसे शुक्र की महादशा उस जातक को उतना शुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि इस पूरी शुक्र की महादशा में जब-जब शुक्र की अन्तर्दशा , प्रत्यन्तर्दशायें, सूक्ष्म दशायें और प्राणदशायें प्राप्त होंगी, तब-तब शुक्र की दोनों राशियों पर बैठे राहु- शनि भी पीछे से अपना अशुभ फल देते रहेंगे और इसे देखकर बड़े-बड़े ज्योतिषी भी अचंभित रह जायेंगे कि इतने अच्छे शुक्र की महादशा में भी जातक दुखी जीवन व्यतीत करने पर विवश है। 

यही नियम उन अशुभ ग्रहों की महादशाओं पर भी लगाया जायेगा, जिनकी राशियों पर कोई शुभ ग्रह स्थित है। तब ऐसे जातक को वह अशुभ ग्रह की महादशा भी उतना अशुभ फल नहीं दे सकेगी क्योंकि उसकी राशियों पर स्थित शुभ ग्रह भी पीछे से अपना शुभ फल देंगे और यहाँ भी ज्योतिषी अचंभित रह जायेंगे कि इस जातक को इतने अशुभ ग्रह की दशा प्राप्त होने पर भी इसका समय इतना अच्छा कैसे व्यतीत हो रहा है। 

बात यहीं समाप्त हो जाती तो भी ठीक था परन्तु बात यहीं समाप्त नहीं होती। ज्योतिष शास्त्र इतना विशाल समुद्र है कि जिसका पार पाना सबकी क्षमता की बात नहीं है, यह इसलिए क्योंकि अभी हमने नक्षत्रों की तो बात की ही नहीं। 

जब बात आती है कुण्डली के सूक्ष्म परीक्षण की तो हमें यह भी देखना होगा कि जातक की जन्मकुण्डली में सभी नवग्रह किन-किन नक्षत्रों पर स्थित हैं तथा जिस ग्रह की दशा-अन्तर्दशा चल रही है, उस ग्रह के नक्षत्र पर कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं क्यूंकि पीछे से वह ग्रह भी उस दशा-अन्तर्दशा में अपना फल जातक को देता है जो दशापति के नक्षत्र पर स्थित होता है तथा दशापति ग्रह स्वयं उस ग्रह का भी प्रभाव लेकर कार्य करता है, जिसके नक्षत्र पर वह स्वयं स्थित होता है। 

अतः जब भी कोई जातक अपनी जन्मकुण्डली का परीक्षण करवाने हमारे पास आये तो हमें उसकी जन्मकुण्डली में इन सब बातों का ध्यान पूर्वक सूक्ष्म परीक्षण करके उसकी जन्मकुण्डली को दो भागों में विभक्त करना चाहिये। जिसमें प्रथम भाग में उसकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों को रखना चाहिये तथा द्वितीय भाग में अशुभ ग्रहों को। जिससे शुभ ग्रहों को ज्योतिषीय उपायों द्वारा और अधिक शक्ति प्रदान करके, उनके शुभ फल देने की क्षमता में वृद्धि की जा सके तथा अशुभ ग्रहों के दान, व्रत और उनकी विधिवत् शांति आदि करवाकर उनके अशुभ फल देने की क्षमता को न्यूनतम स्थिति में लाकर भविष्य में उस जातक के साथ घटित होने जा रही दुर्घटना-विपत्ति आदि की संभावनाओं को टाला जा सके। 

"शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 16 मई 2021

शार्ली एब्दो के हिन्दू विरोधी कार्टून का उत्तर

भारत में कोविड-19 महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर के बीच ऑक्सीजन संकट के लिए भारतीयों, विशेष रूप से हिंदुओं का उपहास उड़ाने वाला एक कार्टून बनाया गया है । इस कार्टून में भारतीयों को पृथ्वी पर लेटे, ऑक्सीजन के लिए छटपटाते हुए दिखाया गया है।

इस कार्टून को फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका 'शार्ली एब्दो' द्वारा प्रकाशित किया गया है, जिसमें हिंदू देवताओं पर कटाक्ष करते हुए पूछा गया है कि वह कोविड की दूसरी लहर में अपने धर्म के लोगों की सहायता क्यों नहीं कर सके।

 शार्ली एब्दो के कार्टून के साथ एक लाइन भी है जिसमें लिखा है, ”भारत में 33 करोड़ देवता और एक भी ऑक्सीजन पैदा करने में सक्षम नहीं ।”

शार्ली एब्दो पत्रिका को हम उन लोगों की भांति उत्तर नहीं देंगे, जिन्होंने अपने पैगम्बर का कार्टून बनाये जाने पर, जनवरी 2015 में फ्रांस के सबसे प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों सहित 17 व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया था।

ऐसी प्रतिक्रिया देना हम हिंदुओं के संस्कारों में इसलिये नहीं है क्योंकि हमारे यहां तो अनादि काल से ही शास्त्रार्थ की परंपरा रही है, जिसमें यह व्यवस्था की हुई है कि हमारे मत का विरोधी व्यक्ति भी आकर हमारे धर्म ग्रन्थों पर हमें शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे सकता है।

हम उस धर्म का पालन करने वाले मनुष्य हैं जहां भगवान विष्णु की छाती में लात मारकर उन्हें अपमानित करने के पश्चात भी उनके स्नेह का पात्र बन जाने वाले भृगु जैसे ऋषि भी हुए हैं तो अपने फरसे के प्रहार से गणेश जी का दंत तोड़ने वाले भगवान परशुराम जी भी।

अपने भगवान का निरादर करने वाले किसी मनुष्य के साथ हम इस कारण से भी हिंसा नहीं करते कि इस मनुष्य में एक दिन ईश्वरीय चेतना जाग्रत होगी और यह धर्म के मार्ग पर आ जायेगा ।

किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें सनातन धर्म की मर्यादा के अनुरूप किसी विधर्मी को उत्तर देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः ईश्वर की प्रेरणा से मैं शार्ली एब्दो को अपने धर्म की मर्यादा के अनुरुप उत्तर देने जा रहा हूँ।

तो सुनो ! हे "शार्ली एब्दो" के कार्टूनिस्टों- सर्वप्रथम तो यह जान लो कि वर्तमान में हम भारतीय जिस मानव निर्मित संविधान से अपना जीवन यापन कर रहे हैं, वह सनातन धर्म के बनाये गए नियमों से नहीं चलता ।

सनातन धर्म ने हमारे लिए जो संविधान बनाया था वह हमारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों और शास्त्रों के सम्मिश्रण से बना है, जिसका पालन करने पर न तो वायु ही दूषित होती, न ही जल ! क्योंकि उस संविधान के अनुसार तो हम हर उस प्राकृतिक वस्तु का संरक्षण करते आये थे जो मानव जाति ही नही समस्त जीवों के लिए हितकारी हैं।

हे "शार्ली एब्दो"- यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो यहां न नदियां दूषित होतीं, न ही ऑक्सीजन देने वाले वृक्षों का कटान होता, न ही अपनी जिव्हा के क्षणिक स्वाद के लिए पशुओं का वध होता और इसके विपरीत हर घर मे यज्ञ में आहुतियों के रूप में आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का प्रयोग होता, जिससे कोरोना वायरस तो छोड़िए उसके पिताजी भी इस वायुमंडल में जीवित न रहते।

हे शार्ली एब्दो - यदि यह देश वैदिक संविधान से चलता तो आज देशी गाय के गोबर की खाद से खेती हो रही होती और उससे उत्पन्न होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता ऐसी होती कि हम न केवल दीर्घायु होते, हमारी संताने भी निरोगी होतीं।

यह देश यदि वैदिक संविधान से चलता तो यज्ञों में पड़ने वाले 'देशी गाय के दुग्ध से निर्मित घी' की आहुतियों से हमारे समस्त देवी-देवता प्रसन्न होते और प्रसन्न होकर भारत ही नहीं तुम्हारे फ्रांस को भी निरोगी होने का आशीर्वाद देते और केवल हमें ही नहीं आपको भी कभी आक्सीजन की कमी से मरने न देते।  

तो हे 'शार्ली एब्दो', यह भारत देश 'ईश्वर और देवी देवताओं' के बनाये गए संविधान से चल कहाँ रहा है जो वह हिंदुओं की सहायता करने आएं और आकर हमारे लिए ऑक्सीजन का निर्माण करें ।

वैसे आपको मैं यह बात बता दूं कि हमारे देवी-देवताओं का कार्य ऑक्सीजन का निर्माण करना नहीं है, उसके लिए उन्होंने वृक्ष बनाये हैं, जिनका संरक्षण न कर पाना हमारी भयानक भूल है, जिसके लिए हम अपने देवी-देवताओं को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। 

अतः आप हम हिंदुओं को व्यर्थ का ज्ञान न दें और अपनी ऊर्जा का व्यय फ्रांस को आने वाले संकटों से बचाने में करें तथा जिस चीन ने अपने पालतू और बिके हुए वैश्विक संगठनो के साथ मिलकर कोरोना वायरस को पूरे विश्व में वायरल करके उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नष्ट करने का कुचक्र रचा है, यदि हो सके तो उसके विरुद्ध अपनी चोंच खोलने का प्रयास करें, जिससे फ्रांस की जनता भी आप पर गर्व कर सके ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

मंगलवार, 4 मई 2021

जब भगवान् श्रीकृष्ण ने तोड़ी अपनी प्रतिज्ञा

महाभारत के युद्ध में एक ऐसा क्षण भी आया था जब स्वयं भगवान् श्री कृष्ण को भी धर्म की रक्षा के लिए, इस युद्ध में शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी पड़ी थी। भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए मैं, पवित्र महाभारत ग्रन्थ के "भीष्म पर्व" में वर्णित इस अद्भुत प्रसंग का वर्णन करने जा रहा हूँ_


महाभारत के युद्ध का तीसरे दिन था, आज पितामह भीष्म पांडव सेना के लिए साक्षात काल बन चुके थे, उनके पराक्रम से पांडव सेना त्राहि-त्राहि कर रही थी और अर्जुन पितामह के प्रेम के मोहपाश में बंधकर उनकी ओर अपने भयानक बाण नहीं चला रहे थे। महाधनुर्धर "सात्यकि" ही एक ऐसे थे जो पितामह के बाणों से बचने के लिए इधर-उधर भाग रही पांडव सेना को एकजुट करने में लगे थे, ऐसे में धर्म की रक्षा के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने वाले योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण का धैर्य टूट गया और उन्होंने क्रोध में भरकर कहा_

 ये यान्ति ते यान्तु शिनिप्रवीर येऽपि स्थिताः सात्वत तेऽपि यान्तु। भीष्मं रथात् पश्य निपात्यमानं द्रोणं च सङ्ख्ये सगणं  मयाऽद्य।।
शिनिवंश के प्रमुख वीर ! सात्वत रत्न ! जो भाग रहे हैं, वे भाग जाएँ।  जो खड़े हैं, वह भी चले जाएँ। तुम देखो, मैं अभी इस संग्राम भूमि में सहायकगणों के साथ भीष्म और द्रोण को रथ से मार गिराता हूँ।

 

न मे रथी सात्वत कौरवाणां क्रुद्धस्य मुच्येत रणेऽद्य कश्चित्। तस्मादहं गृह्य रथाङ्गमुग्रं प्राणं हरिष्यामि महाव्रतस्य।।

सात्वत वीर ! आज कौरव सेना का कोई भी रथी क्रोध में भरे हुए मुझ कृष्ण के हाथों जीवित नहीं छूट सकता । मैं अपना भयानक चक्र लेकर महान् व्रतधारी भीष्म के प्राण हर लूंगा।

 

निहत्य भीष्मं सगणं  तथाऽऽजौ द्रोणं च शैनेय रथप्रवीरौ। प्रीतिं करिष्यामि धनंजयस्य राज्ञश्च भीमस्य  तथाश्विनोश्च।।

सात्यके ! सहायकगणों सहित भीष्म और द्रोण, इन दोनों वीर महारथियों को युद्ध में मारकर मैं अर्जुन, राजा युधिष्ठिर, भीमसेन तथा नकुल-सहदेव को प्रसन्न करूँगा।

 

निहत्य सर्वान्धृतराष्ट्रपुत्रां- स्तत्पक्षिणो ये च नरेन्द्रमुख्याः। राज्येन राजानमजातशत्रुं संपादयिष्याम्यहमद्य  हृष्टः॥ 

धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों तथा उसके पक्ष में आये हुए सभी श्रेष्ठ नरेशों को मारकर मैं प्रसन्नतापूर्वक आज अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर को राज्य से सम्पन्न कर दूंगा।

 

इतीदमुक्त्वा स महानुभावः सस्मार चक्रं निशितं पुराणम्। सुदर्शनं चिन्तितमात्रमेव तस्याग्रहस्तं स्वयमारुरोह॥

ऐसा कहकर महानुभाव श्रीकृष्ण ने अपने पुरातन एवं तीक्ष्ण आयुध सुदर्शन चक्र का स्मरण किया।  उनके चिंतन मात्रा करने से ही वह स्वयं उनके हाथ के अग्रभाग में प्रस्तुत हो गया।


तमात्तचक्रं  प्रणदन्तमुच्चैः क्रुद्धं  महेन्द्रावरजं समीक्ष्य।सर्वाणि भूतानि भृशं विनेदुः क्षयं कुरूणामिव चिन्तयित्वा।।

महेंद्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण कुपित हो हाथ में चक्र उठाये बड़े जोर से गरज रहे थे। उन्हें उस रूप में देखकर कौरवों के संहार का विचार करके सभी प्राणी हाहाकार करने लगे।

 

स  वासुदेवः प्रगृहीतचक्रः संवर्तयिष्यन्निव सर्वलोकम्। अभ्युत्पतँल्लोकगुरुर्बभासे भूतानि धक्ष्यन्निव धूमकेतुः॥

वे जगद्गुरु वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण हाथ में चक्र ले मानो सम्पूर्ण जगत का संहार करने के लिए उद्यत थे और समस्त प्राणियों को जलाकर भस्म कर डालने के लिए उठी हुई प्रलयाग्नि के समान प्रकाशित हो रहे थे।

 

तमाद्रवन्तं प्रगृहीतचक्रं दृष्ट्वा देवं शान्तनवस्तदानीम्। असंभ्रमं तद्विचकर्ष दोर्भ्यां महाधनुर्गाण्डिवतुल्यघोषम्।।

भगवान् को चक्र लिए अपनी ओर वेगपूर्वक आते देख शान्तनुनन्दन भीष्म उस समय तनिक भी भय अथवा घबराहट का अनुभव न करते हुए दोनों हाथों से गांडीव धनुष के समान गंभीर घोष करने वाले अपने महान धनुष को खींचने लगे। 


उवाच भीष्मस्तमनन्तपौरुषं गोविन्दमाजावविमूढचेताः ॥ एह्येहि देवेश जगन्निवास नमोस्तु ते माधव चक्रपाणे। प्रसह्य मां पातय लोकनाथ रथोत्तमात्सर्वशरण्य सङ्ख्ये ॥

उस समय युद्ध स्थल में भीष्म के चित्त में तनिक भी मोह नहीं था।  वे अनन्त पुरुषार्थशाली भगवान् श्रीकृष्ण का आवाहन करते हुए बोले- आइये-आइये देवेश्वर ! आपको नमस्कार है।  हाथ में चक्र लिए आये हुए माधव ! सबको शरण देने वाले लोकनाथ ! आज युद्धभूमि में बलपूर्वक इस उत्तम रथ से मुझे मार गिराइये। 

त्वया हतस्यापि ममाऽद्य कृष्ण श्रेयः परिस्मिन्निह चैव लोके। संभावितोऽस्म्यन्धकवृष्णिनाथ लोकैस्त्रिभिर्वीर तवाभियानात् ॥

श्रीकृष्ण ! आज आपके हाथ से यदि मैं मारा जाऊँगा तो इहलोक और परलोक में भी मेरा कल्याण होगा। अन्धक और वृष्णिकुल की रक्षा करने वाले वीर ! आपके इस आक्रमण से तीनों लोकों में मेरा गौरव बढ़ गया है। 

 

रथादवप्लुत्य ततस्त्वरावान् पार्थोऽप्यनुद्रुत्य यदुप्रवीरम्। जग्राह पीनोत्तमलम्बबाहुं बाह्वोर्हरिं व्यायतपीनबाहुः॥

मोटी, लम्बी और उत्तम भुजाओं वाले यदुकुल के श्रेष्ठ वीर भगवान् श्रीकृष्ण को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी बड़ी उतावली के साथ रथ से कूदकर उनके पीछे दौड़े और निकट जाकर भगवान् की दोनों बाहें पकड़ लीं। अर्जुन की भुजाएं भी मोटी और विशाल थीं।

 

निगृह्यमणाश्च तदाऽऽदिदेवो भृशं सरोषः किल चात्मयोगी । आदाय वेगेन जगाम विष्णु- र्जिष्णुं महावात इवैकवृक्षम् ॥ 

आदिदेव आत्मयोगी भगवान् श्रीकृष्ण बहुत रोष में भरे हुए थे।  वे अर्जुन के पकड़ने से भी रुक न सके। जैसे आंधी किसी वृक्ष को खींचे लिए जाये, उसी प्रकार वे भगवान् विष्णु (कृष्ण), अर्जुन को लिए हुए ही बड़े वेग से आगे बढ़ने लगे।

पार्थस्तु विष्टभ्य बलेन पादौ भीष्मान्तिकं तूर्णमभिद्रवन्तम्। बलान्निजग्राह हरिं किरीटी पदेऽथ राजन् दशमे कथंचित् ॥

राजन ! तब किरीटधारी अर्जुन ने भीष्म के निकट बड़े वेग से जाते हुए श्रीहरि के चरणों को बलपूर्वक पकड़ लिया और किसी प्रकार दसवें कदम पर पहुंचते-पहुंचते उन्हें रोका।

 

अवस्थितं च प्रणिपत्य कृष्णं प्रीतोऽर्जुनः काञ्चनचित्रमाली। उवाच कोपं प्रतिसंहरेति गतिर्भवान् केशव पाण्डवानाम् ॥

जब श्रीकृष्ण भगवान् खड़े हो गये, तब सुवर्ण का विचित्र हार पहने हुए अर्जुन ने अत्यन्त प्रसन्न हो उनके चरणों में प्रणाम करते हुए कहा- केशव ! आप अपना क्रोध रोकिये। प्रभो ! आप ही पांडवों के आश्रय हैं।

 

न हास्यते कर्म यथाप्रतिज्ञं पुत्रैः शपे केशव सोदरैश्च । अन्तं करिष्यामि यथा कुरूणां त्वयाहमिन्द्रानुज संप्रयुक्तः ॥

केशव ! अब मैं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार कर्तव्य का पालन करूँगा, उसका कभी त्याग नहीं करूँगा। यह बात मैं अपने पुत्रों और भाइयों की शपथ खाकर कहता हूँ।  उपेंद्र ! आपकी आज्ञा मिलने पर मैं समस्त कौरवों का अंत कर डालूंगा।  

 

ततः प्रतिज्ञां समयं च तस्य जनार्दनः प्रीतमना निशम्य। स्थितः  प्रिये कौरवसत्तमस्य रथं सचक्रः पुनरारुरोह ॥

अर्जुन की यह प्रतिज्ञा और कर्तव्य पालन का यह निश्चय सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण का मन प्रसन्न हो गया। वे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन का प्रिय करने के लिये उद्यत हो पुनः चक्र लिए रथ पर जा बैठे।

 

इस प्रकार महाभारत के तीसरे दिन, भीष्म और द्रोण सहित सम्पूर्ण कौरव सेना भगवान् श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से संहार होने से बच सकी थी।

 "शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava



गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

पशुओं के अकारण रोने का रहस्य...

 प्रायः देखने में आता है जब कभी हमारे घर के आसपास कोई कुत्ता,बिल्ली आदि पशु यदि असमय ही विलाप करने लगते हैं तो हमारे घर के बड़े बुजुर्ग हमसे कहते हैं कि कोई अशुभ घटना घटित होने वाली है, क्योंकि कुत्ते, बिल्ली आदि का रोना शुभ नहीं माना जाता।


मैकाले द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति से प्राप्त शिक्षा के कारण हिन्दू युवा पीढ़ी उनकी इन बातों को अंधविश्वास का नाम देकर उनका उपहास उड़ाती है। ऐसे में क्या इन जानवरों के रोने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार छुपा हुआ है या हमारे बड़े बुजुर्ग अंधविश्वासी हैं ? आइये जानते हैं...

मनुष्य अपने नेत्रों से वैज्ञानिकों द्वारा ज्ञात Electromagnetic Spectrum के एक छोटे से अंश को ही देख पाता है । इस Visible light Spectrum की सीमा 380 नैनोमीटर से लेकर 750 नैनोमीटर तक ही होती है, जिसमें 7 रंगों का समावेश होता है, जिसका संयुक्त स्वरूप हमें श्वेत रंग के रूप में प्राप्त होता है।


जबकि बहुत सारे पशु-पक्षी और यहां तक कि मछलियां तक इस सीमा से पार भी देख पाते हैं, ऐसे में वह उन शक्तियों को देख लेते हैं जिनको मनुष्य अपने नग्न नेत्रों से नहीं देख पाता और वह पशु-पक्षी भयभीत या विचलित होकर असामान्य सा व्यवहार करने लगते हैं।

जब भी किसी स्थान पर निकट भविष्य में किसी की मृत्यु होने वाली होती है अथवा भयानक आपदा आने वाली होती है तो वहां के वातावरण में एक प्रकार की खिन्नता छा जाती है, जिसका कारण है कि वह स्थान उसके मृत सगे सम्बन्धियों, मृत शुभचिंतकों एवं मित्रों की आत्माओं से भर जाता है और वह आत्माएं उसे अपने साथ ले जाने के लिए वहीं एकत्र हो जाती हैं।


जिसके कारण अनेक बार मरणासन्न व्यक्ति मूर्छा की अवस्था में अपने परिवारजनों को यह बताये हुए देखा जाता है कि मुझे लेने मेरे मरे हुए मित्र या सगे सम्बन्धी आये हुए हैं और मुझे बुला रहे हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार मृत व्यक्तियों को लेने के लिए हमें यमदूतों के आने का भी विवरण प्राप्त होता है। ऐसे में यह दृश्य देखकर कुत्ते, बिल्ली आदि पशु रोने तथा विचित्र प्रकार का क्रंदन करने लगते हैं।

अनेक बार जब मौसम वैज्ञानिकों ने ऐसे जीवों के व्यवहार का अध्ययन किया तो यहां तक पाया कि जब भी कोई भूकम्प, सूनामी या चक्रवात आदि आने वाले होते हैं जो अनेक जीव पहले से ही असामान्य व्यवहार करने लगते हैं जिसका कारण उनके Sensors का हमारे Sensors से अधिक Active (जाग्रत) होना होता है। उदाहरण स्वरूप- वर्षा आने से पूर्व चींटियों का अपने अंडे लेकर उस स्थान को छोड़ देना ।

बहुत सारे अज्ञानी मनुष्य जो आत्माओं पर विश्वास नहीं करते उनको यह अवश्य जान लेना चाहिए कि Energy (ऊर्जा) कभी समाप्त नहीं होती, बस वह एक स्वरूप (Form) से दूसरे स्वरूप में परिवर्तित हो जाती है और आत्मा भी एक Energy ही है, जो कभी नष्ट नहीं होती, बस शरीर बदलती रहती है। इसलिए श्रीमद्भागवत् गीता में आत्मा के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि...


वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
    तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
अर्थात-
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
           न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।2.23।।
अर्थात-
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है ; जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।

अब अपने विषय पर पुनः लौटते हुए बात करते हैं उन पशुओं की जिनके व्यवहार में हम अचानक से ऐसे परिवर्तन देखते हैं।

ऐसे पशुओं के व्यवहार में अचानक से आये इन परिवर्तनों का कारण यदि उनका चोटिल हो जाना, उनके बच्चे आदि की मृत्यु हो जाना हो तब तो यह सामान्य बात है परंतु यदि यह कारण नहीं है तो समझ लेना चाहिये कि कुछ ही समय में कोई विपत्ति आने वाली है।

ऐसे में उन पशुओं को वहां से भगाने के स्थान पर अपनी तथा घर की Aura (आभामंडल) को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए तथा पहले से ही जिनके आधीन ब्रह्मांड की समस्त नकारात्मक शक्तियां रहती हैं ऐसे कालों के भी काल, भगवान शंकर का भवानी सहित ध्यान करके उनसे विपत्ति को टालने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ।

"शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

रविवार, 18 अप्रैल 2021

जीवन में नकारात्मक ऊर्जा के दुष्प्रभाव एवं उपाय

 भगवान शंकर और माता भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुए आज मैं उस रहस्य को प्रकट करने जा रहा हूँ जिसके कारण करोड़ों मनुष्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं।


आपने अनेक बार देखा होगा कि जब भी कभी आप कोई शुभ कार्य करने का विचार मन में लायें और उसमें अनेक प्रकार के व्यवधान आयें तो हो सकता है कि कोई अदृश्य ऊर्जा आपको उसे क्रियान्वित करने से रोक रही है, तो ऐसी स्थिति में समझ लेना चाहिए कि आप किसी नकारात्मक ऊर्जा की चपेट में आ चुके हैं।


वह ऊर्जा आपके रुष्ट पूर्वजों के रूप में हो सकती है, ब्रह्मांड में विचरण करती हुई कोई अत्यन्त क्रोधी अतृप्त आत्मा हो सकती है अथवा आपके शत्रु द्वारा आपके ऊपर किये गए षट्कर्म (मारण, सम्मोहन,वशीकरण,विद्वेषण,स्तंभन और उच्चाटन) में से कोई एक अभिचारिक प्रयोग के फलस्वरुप उत्पन्न कोई ऐसी घोरतम ऊर्जा हो सकती है जो केवल आपके विनाश के लिए ही भेजी गई हो।


यदि ऐसा है तो आपकी जन्मकुंडली में स्थित शुभ ग्रहों के योग भी अपनी दशा आने पर आपकी रक्षा कर सकने में समर्थ नहीं होते और व्यक्ति यह विचार करने पर विवश हो जाता है कि ज्योतिषी के द्वारा वर्णित किया गया मेरी जन्म-कुंडली का उत्तम फलादेश क्या केवल मिथ्या मात्र है ?

ऐसी स्थिति में सर्वप्रथम आवश्यक है उस ऊर्जा का परिज्ञान किया जाए जो जातकों के Subconscious Mind (अवचेतन मन) को अपने नियंत्रण में लेकर उसके जीवन का सर्वनाश कर रही है।

वर्तमान में यह शक्तियां इसलिये भी अत्यन्त प्रबल हो चुकी हैं क्यों कि मनुष्य मदिरा और मांसाहार का प्रयोग करके स्वयं तमोगुणी होकर अत्यंत घोर तमोगुणी ऊर्जा (Negative Energy) को अपनी ओर आकर्षित करके अपनी सकारात्मक ऊर्जा ( Positive Energy) को नष्ट कर रहे हैं। ऐसे मनुष्यों को दीर्घ काल तक यह ज्ञात ही नहीं हो पाता कि वो दैवीय ऊर्जा के नियंत्रण से बाहर निकलकर किसी और ही ऊर्जा के द्वारा कब और कैसे संचालित होने लगे।


ऐसे जातक जिनके जीवन या तो नष्ट हो चुके हैं अथवा नष्ट होने की स्थिति में है, जब मैंने उनकी जन्म-कुंडलियों का निरीक्षण किया तो यह पाया कि ऐसी नकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित जातकों की उस समय राहु अथवा केतु की महादशा-अन्तर्दशा चल रही थीं क्योंकि राहु-केतु की दशा-अन्तर्दशा में मनुष्य बड़ी सरलता से इन नकारात्मक ऊर्जाओं की चपेट में आ जाता है।

यह स्थिति तब और विकट हो जाती है जब ऐसे व्यक्ति का सूर्य-चंद्रमा भी अशुभ स्थिति में हों क्योंकि सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में आत्मा कारक तथा चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है, ऐसे में यदि यह दोनों ग्रह भी जन्म-कुंडली में पाप प्रभाव में अथवा अशुभ स्थिति में आ जाएं तो व्यक्ति अपनी आत्मा तथा मन पर नियंत्रण न होने से नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में घिरकर जीवन भर घोर दुःख उठाता रहता है ।

ऐसे में इस तमोगुणी ऊर्जा से अपने जीवन को नष्ट होने से बचाने के लिए मैं कुछ उपाय बताने जा रहा हूँ, जिससे मेरी यह देह भगवान शंकर के चरणों में विलीन होने के उपरांत भी इस ज्ञान का उपयोग करके मनुष्य अनन्त काल तक अपने जीवन को सुखमय बनाते रहें...

1- किसी योग्य ज्योतिषी से अपनी जन्मकुंडली का परीक्षण करवाकर उन ग्रहों के रत्न धारण करें जो ग्रह आपकी कुंडली में शुभ हों तथा उन ग्रहों की विधिवत शांति करवा लें जो आपकी कुंडली में अशुभ स्थिति में हों।


2- अपनी जन्मकुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों के रंगों का प्रयोग न करें, न ही उनकी दिशाओं में निवास करें । यदि शनि-राहु की स्थिति जन्मकुंडली में शुभ भी हो तो भी काले-नीले रंगों का प्रयोग न करें।

3- भवन निर्माण के समय भूमि तथा उसके वास्तु का ध्यान रखें। अनेक वास्तु दोषों से युक्त भवन को अति शीघ्र ही त्याग दें।

4- घर में पुरानी लकड़ी, अधिक लोहा न रखें तथा धूल और दूषित जल एकत्र न होने दें।

5- मांस-मदिरा का सेवन न करें।

6- घर में सीलन न आने दें तथा घर की नालियों में बहने वाले जल प्रवाह को जाम न होने दें।

7- ऐसी इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं जो आपके उपयोग में नहीं आ रहीं उन्हें तत्काल घर से बाहर कर दें, उनसे निकलने वाला विकिरण न केवल नकारात्मक ऊर्जा को आप तक लाता है, आपके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।

8- घोर मानसिक अशांति उत्पन्न करने वाले टीवी प्रोग्राम ( उदाहरणार्थ-बिगबॉस एवं अश्लील भौंडे नाच गाने वाले) जिसको देख कर आपके मस्तिष्क में नकारात्मक रसायन प्रवाहमान होते हों , उन्हें तिलांजलि दे दें।

9- संभव हो तो देशी गाय के गोबर से घर के फर्श को लीपें और यदि पक्के फर्श हों तो उन पर नित्य सेंधा नमक मिश्रित जल से पोंछा लगाएं।

10- घर में पवित्र मंत्रों, शंख व घण्टों की ध्वनि होते रहने की व्यवस्था करें।

11- गुग्गल, संब्रानी, कपूर आदि का धुआँ दें तथा देव मूर्तियों की आरती करके उस आरती को स्वयं लेकर अपना आभामंडल (Aura) ठीक करें ।


12- घर में तुलसी एवं अशोक जैसे वृक्ष लगाएं ।

13- वर्ष भर में आने वाले सिद्ध मुहूर्तों का समय उच्च कोटि की साधना में दें ।

14- रात्रि के समय खुले आकाश के नीचे शयन न करें और न ही मीठा दूध आदि पीकर खुले अन्तरिक्ष के नीचे जाएं क्योंकि आप नहीं जानते वहां उस समय कौन सी शक्तियां विचरण कर रही हों।

15- चौराहों से निकलने के समय ध्यान दें किसी ऐसी वस्तु पर पैर न पड़ जाएं जो श्रापित हो अथवा किसी के द्वारा अपना उतारा करके रखी गयी हो।

15- एक क्षण भी अपवित्र न रहें, प्रतिदिन स्नान करें, सम्भव हो तो जल में पवित्र औषधियां मिला लें।

16- बाहर से आने वाले जूते-चप्पल घर से बाहर ही रखें, घर में प्रवेश करने से पूर्व पैरों को जल से धो लें।

17- दिन ढलने के उपरान्त देशी गाय के घी अथवा तिल के तेल का दीपक जलाएं जो रात्रि भर जलता रहे।

18- दूसरों की सुख समृद्धि से द्वेष तथा लोभी आचरण करके अपनी Aura में अपने लिए नकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रवेश स्थान न दें क्योंकि दूसरों से द्वेष रखने वाले तथा लोभी मनुष्य के सभी जप, तप, पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं।

19- योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में स्फटिक, रुद्राक्ष और Black Tourmaline का उपयोग करें।

20- अपने उन सभी पूर्वजों को प्रतिदिन प्रणाम करें जो अपने अन्त काल तक ज्ञान वृद्ध रहे हों।


21- भगवान शंकर और देवी महामाया महाकाली की उच्च कोटि के मंत्रों से आराधना करें, क्योंकि समस्त तमोगुणी शक्तियां और यह चराचर जगत उन्हीं के तो अधीन हैं ।

''शिवार्पणमस्तु''

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

बुध का अपनी नीच राशि मीन में प्रवेश

 


बुध ग्रह 1 अप्रैल 2021 से लेकर 16 अप्रैल 2021 तक अपनी नीच राशि 'मीन' में स्थित रहेंगे, जिसमें वह वहीं पहले से संचार कर रहे 'उच्च के शुक्र' से युति करके कुछ राशियों के लिए नीचभंग राजयोग तो बनाएंगे परंतु अपने से सम्बंधित रोग भी देंगे।


बुध का यह 16 दिनों का अपनी नीच राशि में गोचर जीवों में गले, श्वांस, त्वचा और मस्तिष्क से सम्बंधित रोगों में वृद्धि तथा वाणी से सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न करेगा।

अतः जो व्यक्ति पहले से ही इनसे सम्बंधित रोगों से ग्रसित हैं वह अपने चिकित्सकों से परामर्श करके अपनी जांच करवा लें, जिससे समय पर उनको सही उपचार मिल सके।

{बुध के मीन राशि में संचार का 12 लग्नों एवं राशियों पर पड़ने वाला प्रभाव}

(मेष लग्न-मेष राशि)
आपके लिए बुध का यह गोचर आपके छोटे भाई बहनों के लिए अशुभ रहेगा, आप गले की समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं।

(वृष लग्न-वृष राशि)
बुध का यह गोचर आपको अकस्मात धन लाभ दे सकता है परंतु पेट तथा संतान के लिए शुभ नहीं है, अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें।

(मिथुन लग्न-मिथुन राशि)
यदि संभव हो तो इन 16 दिनों के लिए अपने सरकारी कार्यों को टाल दें तथा भूमि, वाहन का क्रय-विक्रय करने से बचें।

(कर्क लग्न-कर्क राशि)
विदेश यात्रा से बचें तथा पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें ।

(सिंह लग्न-सिंह राशि)
ससुराल पक्ष से विवाद करने की स्थिति से बचें तथा बड़े भाई- बहन के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(कन्या लग्न-कन्या राशि)
जीवन साथी तथा नौकरी से अकस्मात लाभ हो सकता है परंतु जीवन साथी के स्वास्थ्य के लिए यह समय शुभ नहीं है।

(तुला लग्न-तुला राशि)
पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(वृश्चिक लग्न-वृश्चिक राशि)
शेयर मार्केट से अकस्मात ही धन की प्राप्ति हो सकती है परंतु अपने उदर तथा संतान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(धनु लग्न-धनु राशि)
जीवन साथी से भूमि तथा वाहन की प्राप्ति के योग बनेंगे परंतु माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

(मकर लग्न-मकर राशि)
यद्द्पि इस लग्न-राशि के निर्यातकों को इस अवधि काल में विदेशों में कर्ज देने से बचना चाहिए तथापि उनका विदेशों से भाग्योदय होगा।

(कुम्भ लग्न- कुम्भ राशि)
इस लग्न-राशि के जातकों की संतान को धन लाभ होने की प्रबल संभावना रहेगी परंतु कुटुंब में किसी की मृत्यु का समाचार प्राप्त हो सकता है। इस लग्न-राशि के जातकों को इस 16 दिन की अवधि काल में मुख से सम्बंधित कोई रोग प्रकट हो सकता है।

(मीन लग्न-मीन राशि)
विदेश यात्रा से धन लाभ होगा परंतु स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

विशेष-
जिन जातकों की जन्मकुंडली में बुध शुभ स्थिति में है और उन्होंने किसी 'ज्योतिष और रत्न विशेषज्ञ' के परामर्श से 'पन्ना रत्न' धारण किया हुआ है उनको चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, उनके लिए बुध का यह गोचर अन्य की अपेक्षाकृत कम समस्याएं लेकर आएगा।

जो जातक अपनी जन्म-कुंडली में बुध की अशुभ स्थिति में होने के कारण पन्ना धारण नहीं कर सकते, वह बुध ग्रह के दान करें, हरे वस्त्रों का प्रयोग न करें तथा श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ एवम गणेश जी की आराधना करें।

"शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 29 मार्च 2021

श्रीमद्भागवत् गीता के नाम पर चल रहे मिथ्या प्रचार का निराकरण...

 



क्या आप जानते हैं गीता में यह लिखा है, वह लिखा है, ऐसे जितने भी लेख आपको देखने को मिलते हैं उनमें से 99% वाक्य गीता में लिखे ही नहीं होते।

 कृपया हिन्दू समाज अपने ग्रंथों को बिना पढ़े कुछ भी शेयर करने की प्रवृत्ति को त्यागे और साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि उन्हें जब भी ऐसी कोई पोस्ट दिखाई दे तो वह उस व्यक्ति से उस पोस्ट का स्रोत अवश्य पूछें कि यदि गीता में यह लिखा है तो वह कौन से अध्याय के कौन से नम्बर श्लोक में लिखा है।


धर्म का आलम्बन लेकर अपना जीवन यापन करने वाले निष्ठावान साधक, श्रीमद्भागवत् गीता ही नहीं अपने अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करके स्वयं भी जाग्रत हों और दूसरों को भी जाग्रत करें, जिससे धर्म की रक्षा की जा सके, क्योंकि...

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्

अर्थात-

मरा हुआ धर्म,मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म, रक्षक की रक्षा करता है,इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।

 "शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 27 मार्च 2021

फिल्मी कलाकारों का भगवान के रूप में पूजन : उचित अथवा अनुचित ?

 


प्रायः देखने मे यह आ रहा है कि सामान्य जनमानस उन फिल्मी कलाकारों को ही अपने इष्ट देव के रूप में ध्यान करके पूजने लगता है जो फिल्मों अथवा टीवी सीरियलों में देवी-देवताओं का रोल करते हैं । सनातनियों में यह एक ऐसी बुराई है जिस ओर कोई धर्म गुरु ध्यान नहीं दे रहा है।

 

ये सभी कलाकार यदि मांसाहारी न भी हों तो भी अधिकांशतः उन होटलों में भोजन ग्रहण अवश्य करते हैं जिनमें मांस पकाया जाता है तथा जहां शुद्धि-अशुद्धि का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। यही नहीं, शराब पीना तो इन कलाकारों की दिनचर्या का अभिन्न अंग होता है, जिसके बिना तो इनकी कोई भी पार्टी अधूरी होती है ।


अधिकांशतः इन कलाकारों का जीवन फिल्मों के अश्लील वातावरण में ही व्यतीत होने से इनमें नकारात्मक ऊर्जा की मात्रा सामान्य मनुष्यों से भी कई गुना अधिक होती है।

 

आकर्षण का सिद्धांत यह कहता है कि आप जिस चीज का भी ध्यान करते हो वह आपसे आकर्षित होकर आपके पास आने लगती है, ऐसे में यदि जो मनुष्य इन फिल्मी कलाकारों को अपने इष्ट के रूप में ध्यान करता है तो उन मनुष्यों में ईश्वरीय गुणों के स्थान पर इन फिल्मी कलाकारों की नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर जाती है और मनुष्य अपना पतन स्वयं ही कर बैठता है ।


यदि हम यह भी मान लेते हैं कि कोई टीवी कलाकार किसी धार्मिक सीरियल अथवा फिल्म को करने के पश्चात सात्विक आचरण करके अपनी दिनचर्या व्यतीत कर रहा है तब भी वह भगवान के समान ऊर्जा वाला तो नहीं हो सकता न। ऐसे में उस टीवी कलाकार का ध्यान करने में साधक की आध्यात्मिक ऊर्जा दिशाहीन ही कही जाएगी क्योंकि उसे उसी निम्न स्तर की ऊर्जा की ही प्राप्ति होगी जिसका वह ध्यान कर रहा है।

 

अतः सनातनियो में व्याप्त इस भयानक रोग को अब नष्ट करने का समय आ गया है, अन्यथा इन फिल्मी कलाकारों को ईश्वर के रूप में पूजने से मोक्ष मिलना तो दूर उल्टा आपका विनाश ही होगा ।

''शिवार्पणमस्तु"


-Astrologer Manu Bhargava