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शनिवार, 2 मई 2020

उच्च के ग्रहों की नीच दृष्टि



जन्म कुंडली में उच्च के ग्रहों का होना भी कितना घातक हो सकता है, यह सब आप बड़े-बड़े राजनेताओं, तानाशाहों, उच्च अधिकारियों, उद्योगपतियों तथा फिल्मी कलाकारों की जन्म कुंडलियों पर शोध करके देख सकते हैं।

जातक की जन्म कुण्डली में 'उच्च का ग्रह' जो उसे भौतिक ऊंचाइयां प्रदान कर रहा होता है, उसी 'उच्च के ग्रह' की ठीक अपने से 'सप्तम भाव' पर पड़ने वाली 'नीच दृष्टि', उसे उस शारीरिक अंग व सगे-संबंधी के सुख से वंचित कर रही होती है, जिस शारीरिक अंग व सगे-संबंधी का वह भाव होता है।

यही कारण है कि जो व्यक्ति जितनी अधिक ऊंचाई पर होता है उसका रोग तथा दुख भी उतना ही बड़ा होता है तथा उसे जीवन में किसी एक निकटतम संबंधी का सुख नहीं होता। और यह नियम केवल मनुष्य पर ही नहीं मनुष्य रूप में जन्म लेने वाले ईश्वर पर भी कार्य करता है।

यद्द्पि ईश्वर अपनी योग माया से स्वयं को साकार रूप में प्रकट करके अवतार धारण किया करते हैं तथापि 'पंचमहाभूतों' से व्याप्त देह में जन्म लेने के कारण स्वयं ईश्वर भी अपने ही द्वारा निर्मित ग्रहों के आधीन होने को विवश हैं, क्यों कि वह अपनी ही बनाई गई मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकते।

उदाहरण के लिये -
भगवान् श्री राम को कभी पत्नी तथा सन्तान का सुख प्राप्त नहीं हुआ एवं उनका सम्पूर्ण जीवन राक्षसों से युद्ध करते हुए बीत गया, अपना राजपाट छोड़कर वनवास जाना पड़ा, जिसके वियोग में उनके पिता भी चल बसे।

भगवान् श्री कृष्ण के जन्म के समय उनके माता-पिता कारावास में बंद रहकर घोर यातनाएं सहन कर रहे थे, कंस द्वारा उनके 7 भाइयों का वध कर दिया गया था। बाल्यकाल में ही कंस द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों से उन्हें युद्ध करना पड़ा। कंस वध के उपरांत जरासंध से बार-बार युद्ध करना पड़ा। बाद में महाभारत जैसे विध्वंसकारी युद्ध में पांडवों की सहायता करने के कारण गांधारी का श्राप सहन करना पड़ा, यहां तक कि उनको 'स्यमंतक मणि' चोरी का आरोप तक सहन करना पड़ा।


भगवान् परशुराम को अपनी ही माता तथा सगे भाइयों का सर काटना पड़ा। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध में 21 बार अत्याचारी क्षत्रियों से युद्ध करके उनके अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त करवाकर अंत में उस पाप से मुक्त होने के लिए सैंकड़ों वर्षों तक तप करना पड़ा।

अब बात करते हैं तानाशाहों की-
युगांडा का तानाशाह ईडी अमीन जो कि नरभक्षण के लिए कुख्यात था ,उसे भी युगांडा-तंज़ानिया युद्ध के पश्चात लीबिया तथा सउदी अरब में निर्वासितों का जीवन जीना पड़ा।

एडोल्फ हिटलर जो संसार को दूसरे विश्व युद्ध में झोंकने तथा 6 करोड़ लोगों की हत्याओं के लिये उत्तरदायी माना जाता है और जिसके कारण भारत ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त हो सका, उस हिटलर को भी अंत में अपने बंकर में छुपकर आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ा।

इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी, इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन और लीबिया के तानाशाह मुअम्मर अल-गद्दाफी जैसों का अंत कैसे हुआ वह किसी से छुपा नहीं है।

आधे विश्व को रौंदकर भारत भूमि पर विजय प्राप्ति का दुःस्वप्न अपने हृदय में लिया हुआ विश्व विजेता सिकन्दर, हिन्दू राजा पोरस की सेना के हाथों बुरी तरह रगड़ दिया गया, और कभी यूनान की धरती पर वापस प्रवेश न कर सका।

अब बात करते हैं राजनेताओं की-
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को वाशिंगटन के ‘फोर्ड थियटर’ में गोली मार दी गयी जिसके कारण अगले दिन उनकी मृत्यु हो गयी। उसी प्रकार अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन केनेडी को भी टेक्सास के डलास में गोली मार दी गयी । भारत के विभाजन के कारण हिंदुओं की जो दुर्दशा हुई उसे देखकर हिन्दू क्रांतिकारियों द्वारा गांधी को गोली मार दी गयी ।


लाल बहादुर शास्त्री की रूस में विष देकर हत्या कर दी गयी, सुभाष चंद्र बोस के साथ कितने षड्यंत्र किये गए सबको ज्ञात है। सिखों से शत्रुता मोल लेने के कारण इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई । श्रीलंका की आंतरिक समस्या में हस्तक्षेप करने के कारण राजीव गांधी की हत्या कर दी गयी। पाकिस्तान में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गयी।

वर्तमान समय में देखा जाए तो भारतीय राजनीति के इतिहास पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी से लेकर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी, मायावती जी , ममता बनर्जी जैसे बड़े-बड़े राजनेताओं को भी जीवन साथी तथा संतान का सुख नहीं है। अनेक राजनेता विभिन्न गंभीर रोगों से ग्रसित हैं जिसके कारण उन्हें विदेश जाकर अपनी चिकित्सा करवानी पड़ रही है।

ऐसे अनगिनत राजनेताओं, फिल्मी कलाकारों ,उद्योगपतियों आदि की बात की जाये तो विषय बहुत अधिक खिंच जायेगा, अतः यहां केवल समझाने के उद्देश्य से कुछ उदाहरण मात्र दिए गए हैं कि जो व्यक्ति जितनी ऊंचाई पर होता है उसके साथ दुख भी उतने ही बड़े होते हैं और यह सब होता है उनकी जन्म कुंडली में स्थित उच्च के ग्रहों की नीच दृष्टि के कारण। नहीं तो स्टीफन विलियम हॉकिंग जैसे वैज्ञानिकों को 'मोटर न्यूरॉन डिजीज' जैसे रोग से ग्रसित होकर एक कुर्सी पर अपना जीवन व्यतीत नहीं करना पड़ता।


अतः उच्च के ग्रहों में संतान का जन्म होना भी कभी-कभी अत्यंत दुखदाई हो जाता है, क्यों कि वह उच्च का ग्रह आपको जितना अधिक देता है, किसी और स्थान पर अपने से सप्तम भाव पर पड़ने वाली अपनी नीच दृष्टि से उतना ही अधिक छीन भी लेता है।

इसलिये विद्वान व्यक्तियों को अपनी संतानों का जन्म का वह समय-काल निर्धारित करना चाहिये जब ग्रह अपनी उच्च राशि में होने के स्थान पर अपनी मूल-त्रिकोण, स्वराशि अथवा मित्र ग्रह की राशि में स्थित हों।
"शिवार्पणमस्तु "
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

ज्योतिष में रोग एवं आयु विचार



सामान्यतः यह कहा जाता है कि जिस समय जातक का जन्म होता है उसी समय उसकी मृत्यु का समय और कारण भी निर्धारित हो जाता है तथा वह अपने जीवन काल में किन-किन रोगों से ग्रसित होगा और उसका समय काल क्या होगा, उस जातक की जन्म पत्रिका में यह सब लिख दिया जाता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या उस जातक के जीवनकाल में उत्पन्न होने वाले रोगों को बढ़ने से रोका जा सकता है अथवा उसकी आयु बढ़ाई जा सकती है ? ऐसे में वैदिक ज्योतिष हमें वह प्रकाश दिखाता है जिसके माध्यम से हम उस जातक के असाध्य रोगों को कम अथवा नगण्य कर सकते हैं तथा उसकी आयु वृद्धि भी कर सकते हैं।

जातक की जन्मकुंडली में बारह भाव उसकी शारीरिक संरचना को दर्शाते हैं जिसमें प्रथम भाव - जातक का सिर (Head) , द्वितीय भाव - मुख (Mouth & Face), तृतीय भाव - गर्दन और दाहिना कान (Throat & Right Ear), चतुर्थ भाव - छाती (Chest), पंचम भाव - उदर व हृदय (Stomach & Heart), षष्टम भाव - यकृत, आंतें, अग्नाशय एवं गुर्दा (Liver, Intestines, Pancreas & Kidney), सप्तम भाव - यौन अंग (Sex Organs), अष्टम भाव - गुदा (Anus), नवम भाव - नितम्ब, पीठ व कमर (Hips, Back & Waist), दशम भाव - जांघ और घुटना (Thighs & Knees), एकादश भाव - पिंडलियाँ एवं बांया कान (Calf & Left Ear) तथा द्वादश भाव - एड़ी से लेकर पंजो तक एवं बायें नेत्र (Heel to Toe & Left Eye) का माना जाता है।

यही नियम इनकी 12 राशियों, 27 नक्षत्रों एवं नवग्रहों पर भी प्रयुक्त होता है।

राशियां 
१. मेष- सिर, २. वृष- मुख (Mouth & Face) ३. मिथुन - गर्दन और दाहिना कान (Throat & Right Ear) ४. कर्क -छाती (Chest) ५. सिंह -उदर व हृदय (Stomach & Heart) ६. कन्या- यकृत, आंतें, अग्नाशय एवं गुर्दा (Liver, Intestines, Pancreas & Kidney)७. तुला-यौन अंग (Sex Organs) ८. वृश्चिक -गुदा (Anus) ९. धनु- नितम्ब, पीठ व कमर (Hips, Back & Waist) १०. मकर- जांघ और घुटना (Thighs & Knees) ११. कुम्भ- पिंडलियाँ एवं बांया कान (Calf & Left Ear)  १२. मीन-एड़ी से लेकर पंजो तक एवं बायें नेत्र (Heel to Toe & Left Eye)

ग्रह 
सूर्य- मानव शरीर में हड्डियों, दाहिना नेत्र, हृदय और उदर से संबंधित रोगों का कारक होता है।
चंद्रमा- वाम नेत्र, श्वेत रक्त कणिकायें (White Blood Cells), फेंफड़े, कैल्शियम तथा मानसिक रोगों का कारक होता है।
मंगल- गुर्दें, रक्तचाप ( Blood Pressure), ज्वर (Fever) आदि रोगों तथा वाहन, अग्नि, शस्त्र आदि से मृत्यु का कारक होता है।
बुध-  त्वचा, गूंगापन, हकलाहट, दमा रोग, जीभ तथा वाणी, मस्तिष्क और बुद्धि से संबंधित रोगों का कारक होता है।
गुरु- यकृत (Liver), चर्बी, मोटापा, दाहिना कान आदि से संबंधित रोगों का कारक होता है।
शुक्र- यौन अंग (Sex-Organs), पथरी, गर्भाशय तथा मूत्र संबंधित रोगों का कारक होता है।
शनि- बायां कान, घुटने, पिंडली, स्नायु तंत्र, लकवा, पक्षघात, गैस संबंधित समस्या एवं कैंसर जैसे रोगों का कारक होता है।
राहु- भूत-प्रेत जनित समस्याओं, विषाक्त पदार्थों के सेवन से होने वाली मृत्यु, मानसिक उत्तेजना एवं अकस्मात होने वाली मृत्यु का कारक होता है।
केतु- कुष्ठ रोग, फोड़े फुंसी, चेचक, विस्फोटक पदार्थों से होने वाली मृत्यु एवं महामारी का कारक होता है।

नक्षत्र
१. कृतिका - सिर, २. रोहिणी- माथा, ३. मृगशिरा- भौहें, ४. आद्रा- नेत्र, ५. पुनर्वसु- नाक, ६. पुष्य- मुख व होंठ , ७. आश्लेषा- कान, ८. मघा- ठोढ़ी, ९. पूर्वाफाल्गुनी- दाहिना कान, १०. उत्तराफाल्गुनी- बायां कान, ११. हस्त- अंगुलियां, १२.  चित्रा- गला, १३. स्वाति- छाती, १४. विशाखा- ह्रदय, १५. अनुराधा- यकृत, १६. ज्येष्ठा- आमाशय, १७. मूल- कांख, १८. पूर्वाषाढ़ा- पीठ, १९. उत्तराषाढ़ा- रीढ़ की हड्डी, २०. श्रवण- नितम्ब, २१. धनिष्ठा- गुदाद्वार, २२. शतभिषा- दायीं जांघ, २३. पूर्वाभाद्रपद- बायीं जांघ, २४. उत्तराभाद्रपद- पिंडलियाँ, २५. रेवती- टखने, २६. अश्वनी- पाँव का ऊपरी भाग, २७. भरणी- तलवे। 


ऐसे में एक कुशल ज्योतिषी को चाहिये कि वह जातक की जन्म कुंडली में 12 भावों, 12 राशियों पर स्थित ग्रहों तथा उन पर पड़ने वाले ग्रहों के प्रभावों तथा 27 नक्षत्रों पर स्थित ग्रहों का सूक्ष्म अध्ययन करके एवं रोगों के कारक ग्रहों  की स्थिति को ध्यान में रखकर फलादेश करे व उपाय बताये।

अब बात करते हैं आयु वृद्धि के उपायों की-
ज्योतिष शास्त्र में लग्न-लग्नेश, तृतीय-तृतीयेश, अष्टम-अष्टमेश एवम शनि यह सातों आयु के कारक माने गये हैं।
इन सातों का विचार करते हुए तथा रोग एवं मारकेश की स्थिति आदि का विचार करके उचित रत्नों, दान तथा मंत्रो का प्रयोग करके जातक की आयु 120 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
"शिवार्पणमस्तु"
Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

Mahamariyon Ka Kaaran Aur Nivaran महामारियों का कारण और निवारण



भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों में अपना मस्तक रखते हुये आज मैं संसार में महामारियों के कारक ग्रह केतु के विषय में विस्तार पूर्वक बताने जा रहा हूँ-

ज्योतिष शास्त्र में सभी प्रकार की महामारियों का कारक ग्रह 'केतु' को माना गया है । केतु एक धूम्र वर्ण का छाया ग्रह है जो कि अकस्मात शुभाशुभ फल देने के लिये प्रसिद्ध है। यह 'मंगल' के समान फल देता है, जिस ग्रह और जिस राशि में बैठा होता है उसकी भी छाया ले लेता है तथा अचानक से दुर्घटना, आगजनी, बम विस्फोट, नृशंस हत्याओं के लिये उत्तरदायी होता है।

विषाणु(Virus) जनित भयानक महामारियां जैसे (पोलियो, कोढ़, चेचक(Pox), प्लेग, स्वाइन फ्लू (H1N1), इबोला, जीका, कोरोना (Covid-19)आदि जो पूर्व में प्रकट हो चुकी हैं अथवा जितनी भी महामारियां भविष्य में प्रकट होने वाली हैं इन सभी का कारक केतु ही होता है। फोड़ें -फुंसी, सफेद दाग आदि भी जन्म कुंडली मे केतु की अशुभ स्थिति के कारण ही होते हैं।

कोढ़ी व्यक्ति, कुत्तों, भेड़ियों, लोमड़ियों तथा लकड़बग्घों में इसकी नकारात्मक ऊर्जा सर्वाधिक मानी जाती हैं यही कारण है कि शास्त्रों के अनुसार घरों में कुत्ता पालन निषेध किया गया है तथा कुत्ते के स्पर्श होने पर वस्त्र सहित स्नान करने का विधान निश्चित किया गया है जिससे केतु जनित रोगों से बचा जा सके।

ज्योतिष के ग्रंथों में केतु की अशुभ दशा प्राप्त होने पर कोढ़ी व्यक्तियों तथा कुत्तों को प्रसन्न करने का उल्लेख मिलने का भी यही कारण है कि इन दोनों को प्रसन्न करके स्वयं के लिए घातक केतु की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को कम किया जा सके।

यह तो बात हुई कारण की अब बात करते हैं निवारण की, तो देखिये संसार में जितने भी प्रकार के विषैले और हानिकारक तत्व हैं अथवा परमाणु विकिरण( Nuclear Radiation) हैं उन सभी को ब्रह्मांड में व्याप्त शिव तत्व, 'शिवलिंग' के माध्यम से निरन्तर अपने अंदर अवशोषित करता रहता है, जिसके कारण संसार के प्राणी इन विषैले तत्वों की भयानक ऊर्जा से बचे रहते हैं । यही कारण है कि हम वैदिक मंत्रों के द्वारा निरंतर शिवलिंग को जल, दुग्ध, घी, शहद आदि से शांत करने का प्रयास करते रहते हैं जिससे कि उस परम कल्याणमयी शिवलिंग के द्वारा हम विषैले तत्वों की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बचे रहें।

चूंकि केतु की ऊर्जा के कारण इन विषैले तत्वों को फैलने का माध्यम मिलता है अतः केतु की नकारात्मकता को रोकने का सामर्थ्य केवल भगवान् 'शिव' और उनकी 'शक्ति' में ही है अतः शिव-शक्ति की उच्च कोटि की साधनाओं के द्वारा केतु की उग्रता को समाप्त किया जा सकता है ।

प्राचीन काल में राजा-महाराजा इन महामारियों तथा अन्य अनिष्टकारी घटनाओं से अपनी तथा अपनी प्रजा की रक्षा के लिये समय-समय पर अपने कुल गुरुओं की आज्ञा से वैदिक तथा तांत्रिक विद्वानों की सहायता से बड़े-बड़े यज्ञ अनुष्ठान आदि करवाया करते थे, वर्तमान में न तो वह शासक ही धर्म के पथ पर चलने वाले रहे और न साधक ही।

ऐसे समय में अच्छे वेदपाठी तथा तांत्रिक विद्वान ढूंढना ही दुष्कर कार्य है तथा वह मिल भी जायें तो भारत के अधर्मी, विधर्मी तत्व ऐसे यज्ञों-अनुष्ठानों को क्रियान्वित नहीं होने देंगे जिनकी सहायता से कोरोना वायरस जैसी महामारियों का पूर्णतः विनाश किया जा सकता है।

ऐसे में भारत सरकार यदि उच्च कोटि के विद्वानों द्वारा प्रत्येक जिले में 1-1 'कोटि चंडी' अनुष्ठान, वेदपाठियों द्वारा सामूहिक रुद्राभिषेक तथा उच्च कोटि के तांत्रिक विद्वानों द्वारा दस महाविद्याओं के यज्ञों के आयोजन करवाये तो आगामी 10 वर्षों तक कोरोना वायरस ही नहीं अनेक प्रकार की दुष्ट शक्तियों से भारत तथा भारतवासियों की रक्षा हो सकेगी, साथ ही 'भगवती चंडी' के आशीर्वाद से राष्ट्र में रहकर राष्ट्र को क्षीण करने वाले 'दानव दलों' का सर्वनाश होगा तथा 'महाकाली' के आशीर्वाद के कवच से राष्ट्र की सीमायें भी सुरक्षित होंगी जिससे सनातन धर्म का भगवा ध्वज सम्पूर्ण दिशाओं में अपना परचम लहरायेगा तथा हिंदुत्व के शंखनाद से दसों दिशाओं में व्याप्त पैशाचिक शक्तियों का विनाश किया जा सकेगा।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

Gochar main Mangal- Ketu Yuti गोचर में मंगल-केतु युति




भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों का ध्यान करते हुये मैं 8 फरवरी  2020 को गोचर में होने जा रही मंगल-केतु युति के परिणामस्वरूप घटित होने वाली घटनाओं की पूर्व चेतावनी देने जा रहा हूँ-

गोचर में 26 दिसम्बर  2019 से अपनी ही राशि वृश्चिक में भ्रमण कर रहे मंगल 8 फरवरी  2020 को प्रातः  3:52 मिनट पर अपनी राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं ।

इस दिन मंगल अपनी राशि वृश्चिक को छोड़कर बृहस्पति की राशि धनु में प्रवेश करेंगे जहां पहले से ही गुरु और केतु भ्रमण कर रहे हैं।

अतः गोचर में इस राशि परिवर्तन के साथ ही मंगल की केतु और बृहस्पति के साथ युति होने जा रही है जो कि 22 मार्च  2020को प्रातः  4:39 मिंनट तक रहेगी।
तत्पश्चात मंगल अपनी उच्च राशि मकर में पहले से ही स्थित शनि के साथ चले जायेंगे।

8 फरवरी से लेकर 22 मार्च तक के इस अवधि काल के अंतर्गत जब तक मंगल-केतु की युति रहेगी विश्व में भारी हिंसा, बम विस्फोट, आगजनी, साम्प्रदायिक दंगे, दो देशों में युद्धों की स्थिति, ट्रेन, बस, प्लेन दुर्घटनायें आदि देखने को मिलेंगी। तथा लोगों में हिसा की भावना में वृद्धि होगी।

चिकित्सा के क्षेत्र में अचानक सर्जरी आदि में अत्यधिक वृद्धि देखने को मिलेगी, और इस अवधि काल में समस्त विश्व में बहुत ऑपरेशन होंगे।

यद्द्पि देव गुरु बृहस्पति की इन दोनों ग्रहों के साथ युति इस विनाशकारी योग की विध्वंसकारी शक्ति को कम करने का प्रयास करेगी तथापि विश्व में इन घटनाओं को घटित होने से रोक नहीं पायेगी।

ऐसे में जिन लोगों की जन्म कुंडली में पहले से ही मंगल-केतु अशुभ स्थिति में हों अथवा उनकी युति जन्म कुंडली के किसी भी भाव में हो और दशा-अंतर्दशा भी अशुभ चल रही हो उन्हें इस अवधि काल में दूर की यात्रा टाल देनी चाहिये अन्यथा शरीर के जिस भाव मे यह युति होगी दुर्घटना से उस अंग की क्षति हो सकती है।

इस अवधिकाल में लोगों को यथा संभव तामसी आहार जैसे मांस-मदिरा आदि के प्रयोग से बचना चाहिये तथा किसी योग्य वैदिक विद्वान की सहायता से मंगल-केतु का वैदिक मंत्रों से हवन करवा लेना चाहिये और स्वयं हनुमान जी की उपासना करनी चाहिये जिससे मंगल-केतु युति की मारक क्षमता के प्रभाव को कम किया जा सके।

सभी को इस दुर्योग से बचाव के लिये केतु को प्रसन्न करने हेतु कुष्ठ रोगियों और कुत्तों की सेवा तथा मंगल की प्रसन्नता के लिये लाल वस्तुओं के दान मंगलवार के दिन मंगल की होरा में करने चाहिये तथा लाल एवं धूम्र वर्ण के वस्त्रों को धारण करने से बचना चाहिये जिससे मंगल-केतु की नकारात्मक रश्मियों के प्रभाव से उनका अवचेतन मन (Subconscious Mind) मुक्त रहे।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava

सोमवार, 29 जुलाई 2019

Striyon ke Shubhashubh Yog स्त्रियों के शुभाशुभ योग


भगवान् शंकर और माँ भवानी के चरणों को प्रणाम करते हुये मैं 'वैदिक ज्योतिष' के मतानुसार स्त्रियों की कुंडली में बनने वाले कुछ शुभ व अशुभ योगों का वर्णन कर रहा हूँ।

कुल नाश योग-

पापकर्तरिके लग्ने चन्द्रे जाता च कन्यका।
समस्तं पितृवंशं च पतिवंशं निहन्ति सा।।
अर्थात- जिस कन्या के जन्म समय में लग्न तथा चन्द्रमा पापकर्तरी योग में हों तो वह स्त्री पितृ-कुल तथा पति-कुल दोनों का नाश करने वाली होती है।

अधिक गुणयोग-

लग्ने चन्द्रज्ञशुक्रेषु बहुसौख्यगुणान्विता।
जीवे तत्रातिसम्पन्ना पुत्रवित्तसुखान्विता।।
अर्थात-
लग्न में चंद्रमा, बुध, शुक्र हों तो ऐसी स्त्री अधिक गुण तथा सौख्य से युत रहती है एवं उसमें गुरु भी हो जाये तो अधिक पुत्र, धन और सुख से भी परिपूर्ण होती है।

विषकन्या योग-

१- स- सरपाग्निजलेशर्क्षे भानुमन्दारवासरे।
भद्रातिथौ जनुर्यस्या: सा विशाख्या कुमारिका।।
अर्थात-
अश्लेषा-कृतिका-शतभिषा नक्षत्र , रवि-शनि-मंगलवार, भद्रा(२,७,१२) तिथि; इन तीनों के योग में जिस कन्या का जन्म होता है वह विषकन्या कही जाती है।
२- सपापश्च शुभो लग्ने द्वौ पापौ शत्रुभस्थितौ।
यस्या जनुषि सा कन्या विषाख्या परिकीर्तिता।।
अर्थात-
जिसके जन्म समय में लग्न में एक पाप ग्रह तथा एक शुभ ग्रह हो और दो पाप ग्रह अपने शत्रुराशि में बैठे हों ऐसे योग में जन्मी कन्या विषकन्या कही जाती है।

सन्यास योग- 

क्रूरे सप्तमगे कश्चित् खेचरो नवमे यदि।
सा प्रव्रज्यां तदाप्नोति पापखेचरसम्भवाम्।।
अर्थात-
सप्तम में क्रूर ग्रह हो और नवम में कोई भी ग्रह हो तो पाप ग्रह से संबंधित होने के कारण वह स्त्री प्रव्रज्या धारण कर लेती है, अर्थात सन्यासिनी हो जाती है।

पति के समक्ष मृत्युयोग-

विलग्नादष्टमे सौम्ये पापदृग्योगवर्जिते।
मृत्यु: प्रागेव विज्ञेयस्तस्या मृत्युर्न संशयः।।
अर्थात-
जिस स्त्री के लग्न से अष्टम में शुभ ग्रह हो उस पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो, और योग भी न हो तो उस स्त्री का पति के समक्ष ही मरण होता है।

पति के साथ मरण योग-

अष्टमे शुभपापौ चेत् स्यातां तुल्यबलौ यदा।
सह भर्ता तदा मृत्युं प्राप्त्वा स्वर्याति निश्चियात्।।
अर्थात-
यदि अष्टम भाव में तुल्यसंज्ञक पाप और शुभ ग्रह हों , पाप और शुभ ग्रह के बल भी तुल्य हों तो वह स्त्री पति के साथ ही मृत्यु को प्राप्त कर स्वर्ग को प्राप्त होती है।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शनिवार, 27 जुलाई 2019

Kisko Na Dein Jyotish ka Gyaan किसको ना दें ज्योतिष का ज्ञान


ज्योतिष का ज्ञान किसके समक्ष प्रकट करना चाहिए और किसके समक्ष प्रकट नहीं करना चाहिये, आज मैं इस विषय प्रकाश डालते हुए 'ज्योतिष शास्त्र' को जानने वाले महान तपस्वी 'ऋषि पराशर जी' के प्राचीन ग्रंथ 'बृहत पाराशर होरा शास्त्रम् ' में 'ऋषि पराशर' और 'ऋषि मैत्रेय जी' का आपस मे संवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।

मैत्रेय उवाच

भगवन् ! परमं पुण्यं गुह्यं वेदाङ्गमुत्तमम्।

त्रिस्कन्धं ज्यौतिषं होरा गणितं सहिंतेति च ।।

एतेष्वपि त्रिषु श्रेष्ठा होरेति श्रूयते मुने।

त्वत्तस्तां श्रोतुमिच्छामि कृपया वद में प्रभो।

कथं सृष्टिरियं जाता जगतश्च लयः कथम्  ।

खस्थानां भूस्थितानां च सम्बन्धम वद विस्तरात् ।।

मैत्रेय जी ने कहा-
हे भगवन् ! वेदाङ्गों में सर्वोत्तम एवं परम पुण्य दायक 'ज्यौतिषशास्त्र' के 'होरा,गणित और संहिता' इस प्रकार तीन स्कंध हैं। उनमें से भी होराशास्त्र सर्वोत्तम है। उसे मैं आपसे सुनना चाहता हूँ । हे प्रभो ! मुझे सब बतला दिया जाये। इस संसार की उत्पत्ति कैसे हुई और प्रलय किस प्रकार होता है, साथ ही आकाशस्थ ग्रह-नक्षत्रों से पृथ्वी स्थित जीव-जंतुओं का क्या संबंध है ? इत्यादि सभी बातें विस्तारपूर्वक मुझे अवगत करा दें।।

पराशर उवाच
साधु पृष्टम त्वया विप्र ! लोकानुग्रहकारिणा।
अथाहं परमं ब्रह्म तच्छक्तिं भारतीं पुनः।।
सूर्यं नत्वा ग्रहपतिं जगदुत्पत्तिकारणम्।
वक्ष्यामि वेदनयनं यथा ब्रह्ममुखाच्छुतम्।।
शान्ताय गुरुभक्ताय सर्वदा सत्यवादिने।
आस्तिकाय प्रदातव्यं ततः श्रेयो ह्यवाप्स्यति।।
न देयं परशिष्याय नास्तिकाय शठाय वा।
दत्ते प्रतिदिनं दुःखं जायते नात्र संशयः ।।

पराशर जी ने कहा-
हे ब्राह्मण ! लोककल्याण-हेतु आपने उत्तम प्रश्न किया है। आज मैं परब्रह्म परमेश्वर और सरस्वती देवी को तथा जगत् को उत्पन्न करने वाले ग्रहों के अधिपति भगवान सूर्य को प्रणाम करके जिस प्रकार ब्रह्माजी के मुखारविंद से 'ज्यौतिष शास्त्र' सुना हूँ, उसी प्रकार कहता हूँ।

इस शास्त्र का उपदेश शांत, गुरुभक्त, सदैव सत्य बोलने वाले और आस्तिक को ही देना चाहिये, इसी से कल्याण प्राप्त होता है। परशिष्य, नास्तिक एवं शठजनों को इस शास्त्र का उपदेश नहीं करना चाहिये। इस प्रकार के मनुष्यों को ज्यौतिषशास्त्रोपदेश करने वाला दुःख का भागी होता है; इसमे कोई संदेह नहीं है।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

Rajaneeti aur Dharm राजनीति और धर्म


प्रायः यह देखने मे आता है कि अपनी अज्ञानता के कारण वर्तमान का युवा राजनीति और धर्म को पृथक-पृथक देखना चाहता है। किंतु वह ये विचार नही करता कि यदि राजनीति के पीछे धर्म नहीं होगा तो राजनेता नास्तिक हो जाएंगे और नास्तिक होने के कारण किसी भी राजनेता को ईश्वरीय सत्ता का भय भी नहीं होगा,और ऐसा राजनेता समाज में पाप एवं अत्याचार को ही जन्म देगा।

यही कारण है कि त्रेता युग में श्री राम के काल से भी पहले से राजाओं को नियंत्रित करने के लिए राजगुरु हुआ करते थे जो राजाओं को धर्म और अधर्म दोनों का ज्ञान देते हुए प्रजा का पालन पोषण करने तथा राज्य चलाने में सहायता किया करते थे। वर्तमान में राजनेताओं में बढ़ रही नीचता का कारण उनके पीछे धर्म तथा धर्म गुरुओं का ना होना ही है ।

अतः युवाओं को विचार करके यह स्वयं निर्धारित करना होगा कि राजनीति और धर्म का समन्वय उचित है अथवा अनुचित, क्या धर्म विहीन राजनीति और राजनेता जनता के साथ न्याय कर पाएंगे , यदि उनके पीछे धर्म ना हुआ तो क्या वह निरंकुश नहीं हो जाएंगे ?

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

Mantra Bhed मंत्र भेद


तंत्र शास्त्र के महान ग्रंथ 'मन्त्र महोदधि' में वर्णित मन्त्रों के तीन प्रकार -

पुंस्त्रीनपुंसका: प्रोक्ता मनवस्त्रिविधा बुधै ।
वषडंताः फडन्ताश्च पुमांसो मनवः स्मृता ।।
वौषट स्वाहान्तगा नार्यो हुम् नमोन्ता नपुंसका:।
वश्योच्चाटनरोधेषु पुमांस: सिद्धिदायका:।।
क्षुद्रकर्मरुजां नाशे स्त्रीमन्त्रा: शीघ्रसिद्धिदा: ।
अभिचारे स्मृता क्लीबा एवं ते मनवस्त्रिधा ।।
अर्थात-
विद्वानों ने पुरुष, स्त्री, और नपुंसक भेद से तीन प्रकार के मंत्र कहे हैं।
जिन मंत्रों के अंत मे 'वषट' अथवा 'फट' हों वे पुरुष मंत्र हैं। 'वौषट' और 'स्वाहा' अंत वाले मंत्र स्त्री तथा हुम् एवं नमः वाले मंत्र नपुंसक मंत्र कहे गए हैं।

वशीकरण, उच्चाटन एवं स्तम्भन में पुरुष मंत्र, क्षुद्रकर्म एवं रोग विनाश में स्त्री मंत्र तथा अभिचार( मारण आदि) प्रयोग में नपुंसक मंत्र सिद्धिदायक कहे गए हैं। इस प्रकार से मंत्रो के तीन भेद होते हैं।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu Bhargava

बुधवार, 24 जुलाई 2019

भगवान शिव और श्री हरि विष्णु एक ही हैं


अहंकार, द्वेष, लोभ एवं स्वार्थ के वशीभूत होकर सनातन धर्म में कुछ 'सम्प्रदाय' केवल भगवान विष्णु की ही महिमा का गुणगान करते हैं। यहां तक तो बात ठीक है परंतु दुःख तब होता है जब उनके यहां भगवान शिव को तुच्छ देवता कहकर उनका अपमान किया जाता है, इस विषय मे वैदिक ज्योतिष का क्या मत है, आइये देखते हैं।

वैदिक ज्योतिष के महानतम ग्रंथ 'बृहत पाराशर होरा शास्त्रम' में त्रिकालज्ञ (तीनों कालों को जानने वाले) पाराशर ऋषि , मैत्रेय ऋषि से भगवान के तीनों स्वरूपों का वर्णन कुछ इस प्रकार से करते हैं-
श्रीशक्त्या सहितो विष्णु: सदा पाति जगत्त्रयम।
भूशक्त्या सृजते ब्रह्मा नीलशक्त्या शिवोSत्ति हि।।
अर्थात-
पूर्वोक्त वासुदेव श्री शक्ति के सहित विष्णुस्वरूप होकर तीनों भुवनों का पालन करते हैं, भूशक्ति से युक्त होकर ब्रह्मस्वरूप बनकर सृष्टी करते हैं तथा नील शक्ति से युक्त होकर शिव स्वरूप बनकर संहार करते हैं।)

इस श्लोक के माध्यम से यह सिद्ध होता है कि पालन करते समय भगवान की जो शक्ति 'विष्णु' नाम से जानी जाती है संहार करते समय वही शक्ति 'शिव' कहलाती है, ऐसे में शिव का अपमान करके वह सभी क्या भगवान विष्णु का अपमान नहीं कर रहे हैं?

रुद्रहृदय उपनिषद में कहा गया है —
येनमस्यन्तिगोविन्दंतेनमस्यन्ति_शंकरम् ।
येऽर्चयन्तिहरिंभक्त्यातेऽर्चयन्तिवृषध्वजम् ॥5॥
अर्थात-
जो गोविंद को नमस्कार करते हैं ,वे शंकर को ही नमस्कार करते हैं । जो लोग भक्ति से विष्णु की पूजा करते हैं, वे वृषभ ध्वज भगवान् शंकर की पूजा करते हैं ।

यद्विषन्तिविरूपाक्षंतेद्विषन्ति_जनार्दनम् ।
येरुद्रंनाभिजानन्तितेनजानन्तिकेशवम् ॥6॥
अर्थात-
जो लोग भगवान विरुपाक्ष त्रिनेत्र शंकर से द्वेष करते हैं, वे जनार्दन विष्णु से ही द्वेष करते हैं। जो लोग रूद्र को नहीं जानते ,वे लोग भगवान केशव को भी नहीं जानते।

सत्यता यह है कि भक्तिकाल में मुगल आक्रांताओं से किसी भी तरह से धर्म को बचाये रखने के लिए विद्वानों ने जब वैदिक मार्ग छोड़कर भक्तिमार्ग का आश्रय लिया तब वहीं से यह सब विकृतियां उत्पन्न हुईं क्योंकि उससे पूर्व जितना भी ज्ञान हुआ करता था उसके पीछे शास्त्रों का आधार हुआ करता था।

अतः मुगल काल के पश्चात सनातन धर्म में कुकुरमुत्तों की भांति जितने भी पंथ, सम्प्रदाय उग आये हैं (जिनमे वेदों की आड़ लेकर मूर्ति पूजा को पाखंड बताकर सनातन धर्म पर आघात करने वाले सम्प्रदाय भी सम्मलित हैं )उन सभी का विसर्जन करके उसके स्थान पर पुनः वैदिक शिक्षा की व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता है नहीं तो यह लोग अपने अनुयायियों को ऐसे ही मूर्ख बनाकर अपनी दुकानें चलाते रहेंगे।

''शिवार्पणमस्तु"

- Astrologer Manu Bhargava

Ratan Dhaaran Rahasay रत्न धारण रहस्य


यह सृष्टि का नियम है कि कोई भी जीव अपने शत्रुओं तथा अपना अनिष्ट करने वालों को कभी भी शक्ति प्रदान नहीं करना चाहता, फिर भी ज्ञान के अभाव में 90% व्यक्ति उन ग्रहों का रत्न धारण किये हुए होते हैं जो उनकी जन्म कुंडली में उनका अनिष्ट कर रहे होते हैं ।

इसके पीछे उनका यह तर्क होता है कि रत्न धारण करने से उस ग्रह का अनिष्ट प्रभाव कम हो जाएगा, जबकि सत्य यह है कि रत्न किसी भी ग्रह की शुभ-अशुभ फल देने की क्षमता को कई गुना बढ़ाने का कार्य करते हैं। ऐसे में केवल किसी ग्रह की महादशा-अंतर्दशा आ जाने पर उस ग्रह का रत्न धारण कर लेना कहाँ तक उचित है जबकि वह जन्म कुंडली में अशुभ फल कर रहा हो।

ऐसे ही शनि की ढैया अथवा साढ़े साती लग जाने पर अधिकांश व्यक्ति शनि की धातु माने जाने वाले लोहे का छल्ला धारण करके शनि के दुष्प्रभावों को कम करने का प्रयास करते हैं जबकि उन्हें उस समय शनि की वस्तुओं तथा दिशा से दूर रहना चाहिये।
अनेक बार देखा गया कि जातक स्वयं से ही नवरत्न जड़ित अंगूठी धारण कर लेता है जबकि किसी भी जातक की जन्मकुंडली में 9 के 9 ग्रह शुभ नहीं हो सकते, ऐसे में जो ग्रह उसकी जन्मकुंडली में अशुभ फल दे रहे होते हैं उनका रत्न धारण करते ही उनकी अनिष्ट करने की क्षमता भी कई गुना अधिक बढ़ जाती है।

ऐसे में यह ही कहा जा सकता है कि भला हो बाजार में मिलने वाले नकली और TREATMENT किये हुए रत्नों का जो यदि जातक को कोई लाभ नहीं दे रहे, तो उसकी हानि भी नहीं करते। ऐसे रत्न यदि गलत उंगली में भी धारण किये जायें तो भी वह हानि नहीं कर पाते क्यों कि HEATING और TREATMENT होने के कारण उनमें इतनी शक्ति नहीं रह जाती कि वह किसी को अपना शुभाशुभ फल दे सकें।

ज्योतिष विज्ञान का अध्ययन करने वाले संस्कृत के विद्वानों तथा कर्मकांडी आचार्यों को भी जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति, युति एवम दृष्टि कहीं किसी भाव या ग्रह का अनिष्ट तो नही कर रही है, इन सूक्ष्म बातों का विचार कर लेने के पश्चात ही रत्न धारण कराना चाहिये अन्यथा उनके यजमानों का अनिष्ट भी हो सकता है।

वर्तमान में समाचार पत्रों तथा टीवी चैनलों द्वारा जन्म तथा प्रचलित नाम राशि के आधार पर रत्न धारण करवाने का नया प्रचलन चल पड़ा है जबकि हो सकता है कि किसी व्यक्ति का राशि रत्न वाला ग्रह जन्म कुंडली में उस व्यक्ति का बहुत अनिष्ट कर रहा हो,अतः व्यक्ति को किसी योग्य विद्वान से जन्म कुंडली की सूक्ष्म विवेचना करवा लेने के पश्चात ही कोई रत्न धारण करना चाहिए ,केवल जन्म राशि के आधार पर नहीं, और बोलते हुए नाम के आधार पर तो कदापि नहीं ।

जन्म कुंडली ना होने पर कृपया करके कोई भी रत्न धारण ना करें उसके स्थान पर मानसिक, वाचिक, दैहिक पापों से बचते हुए तथा सात्विक आहार ग्रहण करते हुए किसी योग्य 'वेदपाठी अथवा तंत्र विद्या में निपुण ब्राह्मण गुरुओं' से प्राप्त मंत्रो द्वारा पंच देवोपासना अर्थात "गणेश, दुर्गा, सूर्य, विष्णु तथा शिव" जैसे उच्च कोटि के देवी-देवताओं की उपासना करें, उसी से आपका कल्याण होगा।

''शिवार्पणमस्तु"

-Astrologer Manu bhargava

Jyotish Ka Rahasya ज्योतिष का रहस्य : भाग - 1


आज मैं ज्योतिष में श्रद्धा रखने वाले सज्जनों की सभी शंकाओं का निवारण करने जा रहा हूँ कृपया ध्यान पूर्वक पढ़ें-

प्रायः देखने में आता है कि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में दशा -अंतर्दशा बहुत शुभ चल रही होती है परंतु फिर भी उस पर अचानक से विपत्ति आ जाती है, तथा दशा-अंतर्दशा अशुभ होने पर भी उन्हें अचानक से धन आदि की प्राप्ति हो जाती है।
तो ये सब क्या है ? क्या ज्योतिष के सिद्धांत मिथ्या हैं ?

मित्रों ज्योतिष के जो भी सिद्धांत पूर्व के ऋषियों ने हमें दिये हैं वह मिथ्या नहीं है , सत्यता यह है कि जन्म कुंडली में दशा-अंतर्दशा के अतिरिक्त प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा, प्राण दशा एवं गोचर का फल भी जातक को मिलता है।

अनेक बार गोचर (तात्कालिक रूप से राशियों, नक्षत्रों पर घूमने वाले ग्रहों की स्थिति) में ग्रहों का फल इतना शुभ हो जाता है कि ग्रह ,जातक को अपने अवधिकाल मे शुभ फल प्रदान करके अगली राशि में चला जाता है भले ही जातक की दशा-अंतर दशा अशुभ चल रही हो । इसी प्रकार से अनेक बार शुभ दशा-अंतर्दशा के चलने पर भी यदि गोचर में ग्रहों की स्थिति अशुभ हो जाए तो जातक को बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं।

ठीक इसी प्रकार शुभ गोचर और शुभ दशा-अंतर दशा के चलने पर भी यदि प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा, प्राण दशाएं अशुभ चल रही हों तो भी जातक कष्ट प्राप्त कर जाता है तथा इसके विपरीत गोचर एवं दशा-अंतर दशाओं के अशुभ स्थिति में होने पर भी यदि प्रत्यंतर, सूक्ष्म और प्राण दशाएं शुभ चल रही हों तो भी जातक को अचानक से शुभ फल की प्राप्ति हो जाती है।

अतः मनुष्य चाहे कितना भी चतुर हो जाये ईश्वर ने उसके सभी बटन अपने हाथों में ले रखे हैं जिसे दबाने पर मनुष्य कठपुतलियों की भांति नृत्य करने पर विवश है ,ईश्वर की इस क्रीड़ा को या तो कोई सिद्ध पुरुष समझ सकता है अथवा कोई ज्योतिषाचार्य।

अतः एक अच्छे ज्योतिषी को चाहिये कि यदि उनके पास कोई जातक अपनी जन्म कुण्डली लेकर आये तो वह उसकी कुंडली में दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा, सूक्ष्म दशा , प्राण दशा तथा गोचर की स्थिति को देखकर ही कोई निर्णय दें व उपाय बताएं ।

इसके अतिरिक्त जातकों को चाहिए कि वह ज्योतिषीय उपायों को करने के साथ-साथ सत्कर्मो को करते हुए स्वयं भी उन उच्च कोटि के देवी-देवताओं की आराधना करते रहें जिन्होंने मनुष्यों को उनके पाप पुण्यों के भुगतान कराने के लिए यह ग्रह-नक्षत्रों का पूरा सैटअप बनाया है।

अंत में एक और बात यह कि ज्योतिष यहीं समाप्त नहीं हो जाता, कुंडली में ग्रहों के बलाबल, दृष्टि-युति संबंध, मारक, कारक, अकारक ग्रह, मुख्य कुण्डली में कहीं ग्रह अस्त तो नहीं हुआ अथवा अंशो में (डिग्रिकली) कम शक्तिशाली तो नहीं है, अष्टक वर्ग में बिंदुओं की स्थिति, वर्गोत्तम ग्रह ,पंचधामैत्री चक्र में ग्रहों की स्थिति, नक्षत्रों पर शुभ-अशुभ प्रभाव पड़ने वाले प्रभाव आदि इन सूक्ष्म बातों की विवेचना के आधार पर ही सूक्ष्म निर्णय दिये जा सकते हैं।

''शिवार्पणमस्तु"
-Astrologer Manu Bhargava